वापसी : गुलशन नंदा

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rajsharma
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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लाश का पोस्टमार्टम हुआ, तो गुरनाम की मौत का कारण सिर का फट जाना निश्चित हुआ। शायद वह कहीं ऊंचाई से फिर किसी चट्टान पर जा गिरा था, जिस कारण उसका सिर फट गया और वह मर गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट से यह भी स्पष्ट हो गया था कि जिस समय उसकी मृत्यु हुई, उसके मेदे में काफ़ी मात्रा में शराब मौजूद थी।

पुलिस चौकी में उसके अतिरिक्त उसके यूनिट का कमांडेंट कर्नल मजुमदार और कुछ दूसरे फौजी अफ़सर भी उपस्थित थे। कर्नल मजुमदार ने बताया कि हेड क्वार्टर से मिली सूचना के अनुसार कैप्टन गुरनाम सिंह को किसी विशेष कार्य से कश्मीर भेजा गया था।जब उन्होंने रशीद से उस विशेष कार्य के बारे में कोई जानकारी प्राप्त करें चाहे तो रशीद झट कह उठा, ” नो सर! मुझे तो उसने इतना ही बताया था कि वह छुट्टी काटने कश्मीर आया था।”

“लेकिन तुम्हारा मकान छोड़ कर अचानक ही वह होटल में क्यों शिफ्ट कर गया था?” कर्नल ने पूछा।

“मेरी ही भूल से। वास्तव में मुझे उसका शराब पीना पसंद नहीं था। पीने के बाद वह कुछ अधिक ही बहकने लगता था। एक रात मैंने उसे टोका, तो वह सवेरे ही बिना मुझसे कुछ कहे होटल चला गया।”

“ओह! होटल जाने के बाद तुम उससे मिले थे?”

“जी नहीं! दो एक बार प्रयत्न किया, लेकिन वह मिला नहीं।”

“शराब के अलावा उसकी और भी कोई कमज़ोरी थी?”

“औरत!” रशीद ने झिझकते हुए कहा।

“दैट्स राइट!” पुलिस अफसर ने बीच में कहा, “गुरनाम सिंह के होटल से गायब हो जाने से एक दिन पहले वह होटल में अकेला नहीं था, बल्कि रुखसाना नाम की एक लड़की देर तक उसके साथ शराब पीती रही थी।”

रुखसाना का नाम सुनते ही रशीद के बदन में एक झुरझुरी सी दौड़ गई और उसने झट पूछा, “वह लड़की मिली क्या?”

“नहीं वह अपने दोस्त जॉन के साथ कश्मीर छोड़ कर भाग गई है।”

“कहाँ?”

“पुलिस इसकी छानबीन कर रही है।”

“मुझे विश्वास है इंस्पेक्टर!” रशीद के कुछ ऊँचे स्वर में कहा, “मेरे दोस्त की मौत का कारण वे लोग ज़रूर जानते होंगे।”

“यह तुम कैसे कह सकते हो।” कर्नल मजुमदार ने प्रश्न किया।

“उस रात कर्नल चौधरी की विदाई की पार्टी में मेरे दोस्त और जॉन की झड़प हो गई थी। उस समय रुखसाना उसके साथ थी।”

“और दो दिन बाद उसकी मंगेतर गुरनाम के साथ शराब पी रही थी। अजीब बात है!” कर्नल मजुमदार ने आश्चर्य प्रकट किया।

“पीने वालों का क्या भरोसा सर! एक रात उलझते हैं, दूसरी रात दोस्त बन जाते हैं।” रशीद के स्थान पर इंस्पेक्टर ने उत्तर दिया और रशीद से संबोधित हो कर पूछ बैठा, “क्या आप रुखसाना और जॉन को जानते थे?”

“जी नहीं! बस उसी दिन ऑफिसर्स मैस में सरसरी सी मुलाकात हुई थी।”

“वे लोग किसके गेस्ट थे?” कर्नल ने पूछा।

“मुझे नहीं मालूम सर!” रशीद ने माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।

कुछ और पूछताछ तथा पुलिस की कार्रवाई के बाद गुरनाम की लाश फौज के हवाले कर दी गई। रशीद भारी मन के साथ उसकी लाश अपनी यूनिट में ले आया। वैसे भी गैरिजन ड्यूटी पर होने के कारण उसके अंतिम संस्कार का उत्तरदायित्व उन्हीं पर था।

रशीद ने अपने हाथों से अपने दोस्त की अर्थी सजाई और पूरे फौजी सम्मान के साथ उसका दाह संस्कार हुआ। जब उसने दोस्त की लाश को आग के हवाले किया, तो हवा में फायर हुए और फौजी बिगुल की उदास धुन से सारा वातावरण शोक ग्रस्त हो गया, रशीद की आँखों में अनायास आँसू उमड़ आये। उसे इस बात का बड़ा दुख था कि ड्यूटी निभाते हुए उसने रणजीत के दोस्त की जान ले ली।

गुरनाम का चंद दोस्तों के अतिरिक्त इस दुनिया में कोई ना था। पत्नी शादी के थोड़े दिनों बाद ही मर गई थी। औलाद से वह वंचित रहा। ले-देकर रिश्ते के एक चाचा थे, जिन्होंने उसकी खेती बड़ी संभाली हुई थी। वे उसकी मौत की खबर सुनकर कश्मीर आये और रीति के अनुसार गुलाब के फूल लेकर चले गये। जाने से पहले जब उन्होंने गुरनाम का असबाब मांगा, तो पुलिस ने यह कहकर इंकार कर दिया कि जब तक पुलिस की कार्रवाई पूरी नहीं हो जाती, वह असबाब पुलिस के अधिकार में रहेगा।

पुलिस की छानबीन की रशीद पूरी जानकारी रखता था। जब टैक्सी ड्राइवर का बयान पुलिस में रिकॉर्ड हुआ, तो उन्हें गुरनाम की मृत्यु के कारण पर संदेह होने लगा। ड्राइवर ने बताया कि वह एक लड़की का पीछा करता हुआ पीर बाबा के डेरे तक गया था। जब उसकी वापसी की प्रतीक्षा कर रहा था, तो बहुत देर बाद एक आदमी उसके पास आया और उसका किराया चुकाकर बोला था कि सरदारजी को थोड़ा समय लगेगा, इसलिए वह चला जाये। फिर जैसे-जैसे छानबीन आगे बढ़ती रही, उसके संदेह दृढ़ होता गया कि गुरनाम की मौत नदी में गिरने से नहीं हुई, बल्कि पीर बाबा के डेरे पर हुई थी। उसके कमरे से मिली फिल्म की रील को जब प्रोजेक्टर पर चढ़ाया गया, तो उसमें जॉन और पीर बाबा के चेहरे स्पष्ट दिखाई दे रहे थे।

यह रहस्य पाते ही पुलिस ने पीर बाबा के अड्डे पर छापा मारा। पीर बाबा और उसके चेलों को पकड़ लिया गया। लेकिन उन्हें वहाँ ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिल सका कि जिससे वे इस अड्डे को दुश्मनों का अड्डा सिद्ध कर सके या यह प्रमाणित कर सके कि गुरनाम की हत्या वहीं पर हुई है। फिर उन्होंने बयान और गवाहों के आधार पर जॉन और रुखसाना के वारंट जारी कर दिये।

रशीद को यह जान कर संतोष हुआ कि 555 के मामले में उसका कहीं वर्णन नहीं है। इसका अर्थ था कि उस पर किसी को संदेह नहीं था और वह संतोष से इस देश में रहकर अपना निश्चित कार्य कर सकता था। लेकिन इस घटना को दृष्टि में रखते हुए कुछ समय के लिए उसे अपना कार्य बंद कर देना चाहिए।

तभी उसे रणजीत की माँ की याद आ गई, जो अपने बेटे से मिलने के लिए तड़प रही होगी। हर चार दिन बाद उसका एक पत्र आता था। उन पत्रों से उसकी उनकी बेचैनी झलकती थी। पिछले पत्र में तो उसने यहाँ तक लिख दिया था कि अगर वह तुरंत छुट्टी लेकर आया, तो वह स्वयं ही श्रीनगर पहुँच जायेगी।

माँ कहीं अपने इकलौते बेटे से मिलने के लिए मूर्खता ना कर बैठे, यह सोचते ही वह घबरा गया। अब उसके पास टालमटोल का कोई बहाना नहीं था। उसने सोचा कि हो सकता है अधिक टालने पर किसी को उस पर संदेह ना हो जाये। यह बात पहले ही उसकी दृष्टि में थी और इससे निपटने के लिए उसने अपनी रिंग के एक आदमी को इस गाँव में भेज दिया था। अब उसे छुट्टी के लिए प्रार्थना पत्र देना ही पड़ा।

अगले दिन उसकी छुट्टी की प्रार्थना स्वीकार हो गई। उसने घर आकर अलमारी में से वह पत्र निकाला, जो आज उसे प्राप्त हुआ था और उसके जासूस साथी ने मनाली से भेजा था। इस पत्र में रणजीत की माँ की तस्वीर थी। उसकी आदतों, व्यवहार संबंधियों इत्यादि का पूरा ब्यौरा था।

आराम कुर्सी पर बैठे न जाने कितनी देर तक वह उस वृद्धा की तस्वीर देखता रहा। इस महिला के चेहरे से एक विशेष तेज झलकता था। रशीद की अपनी माँ बचपन ही में ख़ुदा को प्यारी हो चुकी थी। ममता की मिठास का उसे ज़रा भी अनुभव नहीं था। वह महिला उसकी माँ नहीं थी। रणजीत की माँ थी और न जाने क्यों उसे कुछ ऐसा अनुभव हो रहा था कि रणजीत की माँ की कोख उजाड़कर वह कोई बहुत बड़ा पाप कर रहा था। माँ तो फिर माँ ही है…चाहे किसी की भी हो। इस विचार के आते ही उसका सारा शरीर कांपकर रह गया। उसके दिल में एक अनोखी पीड़ा उठी और जैसे उसका सारा शरीर ही बोझल हो गया हो। वह सुस्ताने के लिए उसी कुर्सी पर टांगे पसारकर लेट गया। उसने आँखें बंद कर ली और थोड़ी देर के लिए अपने शरीर ढीला छोड़ दिया।

तभी एकाएक किसी आहट ने उसे चौंका दिया। उसे लगा कमरे में अकेला नहीं था। कोई छाया उसके पास से गुज़र कर चली गई थी। अपनी सांस रोक, टेबल लैंप के धुंधले प्रकाश में वह कमरे में इधर-उधर देखने लगा। उसे यों प्रतीत हुआ, जैसे कोई सामने लटके पर्दे के पीछे से छिपने का प्रयत्न कर रहा है। रशीद ने कुर्सी से उठने का प्रयास किया, लेकिन भय से उसका शरीर कुर्सी से चिपक कर रह गया।

“कौन हो तुम?” बड़ी मुश्किल से फटी आवाज में वह चिल्लाया।

कुछ क्षण तक कमरे में मौन रहा। फिर वह छाया पर्दे के पीछे से निकलकर मेज के पास रोशनी में आ गई। रशीद के मुँह से अनायास एक भयभीत चीख निकल गई। उसने कांपती दृष्टि से देखा, तो सामने रणजीत खड़ा मुस्कुरा रहा था। अपनी आँखों पर विश्वास न करते हुए वह फिर चिल्लाया, “कौन हो तुम?”

“ओ हो! अपने हमशक्ल को इतनी जल्दी भूल गए हो।” रणजीत एक विषैली हँसी हँसता हुआ बोला।

“लेकिन तुम तो कैंप में कैद थे।” रशीद घबराकर बोला।

“कैद था, लेकिन फ़रार होकर यहाँ वापस आ गया हूँ।”

रणजीत ने कहा और फिर उसके पास आकर उसकी आँखों में झांकता हुआ बोला, “और अब मैं तुम्हें कैदी बनाऊंगा….गिन गिन कर तुमसे बदले लूंगा।”

“मुझसे?”

“हाँ तुमसे! ठीक उसी तरह तड़पाऊंगा, जैसे तुमने मुझे तड़पाया है। तुम मेरी माँ की ममता को घायल करके उसकी आत्मा को दुख पहुँचाना चाहते थे ना! इतने दिनों तो तुम्हें मेरी मंगेतर की भावनाओं से खेलकर उसे अपने दिल बहलाने का खिलौना बना रखा था, अब मैं तुमसे सारा हिसाब चुकता करूंगा। तुम्हें अपनी कैद में रखकर प्रतिशोध की बरछी से तुम्हारा कलेजा छलनी कर दूंगा। जो काम तुमने अधूरा छोड़ा है, उसे मैं पूरा करूंगा। मैं तुम्हारे स्थान पर मेज़र रशीद बनकर पाकिस्तान जाऊंगा। वहाँ के सब सैनिक भेद चुराकर अपने देश भेजूंगा और तुम्हारी सुंदर पत्नी सलमा को आलिंगन में लेकर अपने दिल की प्यास बुझाऊंगा। कहो कैसा लगेगा यह सब तुम्हें?”

“ओ शट अप…यू रास्कल!” रशीद गुस्से से चीख पड़ा और एक झटके से कुर्सी छोड़कर रणजीत के सामने आ खड़ा हुआ। रणजीत उसकी कंपन और उसके चेहरे का उतार-चढ़ाव देखकर अनायास हँसने लगा और फिर ज़ोर-ज़ोर से ठहाके लगाने लगा। उसके ठहाके रशीद के कानों में जैसे-जैसे ज़हर टपका ने लगे। और फिर जब यह ठहाके उसकी सहनशक्ति की सीमा पार कर गये, तो उसने लपककर रणजीत के गाल पर एक ज़ोरदार तमाचा जड़ दिया।

रशीद के बदन को सहसा जैसे किसी भूकंप ने झिंझोड़ कर रख दिया। उसने संभलने का एक और असफ़ल प्रयत्न किया, तो अपने आपको उस टेबल लैंप से उलझा हुए पाया, जो मेज़ पर गिरकर औंधा हो गया था।

लैंप के गिरने से कमरे में अंधेरा हो गया। धुंधलके में उसने इधर-उधर दृष्टि दौड़ाई, तो वहाँ कोई भी नहीं था। झट ही नींद की झोंक से उसका मस्तिष्क साफ हो गया और उसे पता चला कि यह केवल एक भयानक सपना था। उसका सारा शरीर पसीने से लथपथ था।

सपने का प्रभाव बहुत देर तक उसके मस्तिष्क पर बना रहा। अपने बिस्तर पर लेटा न जाने वह कब तक वह करवटें बदलता रहा और अपने अशांत दिल की धड़कनें सुनता रहा।
(14)
पूनम का अर्ध-पागल पिता मेज पर युद्ध क्षेत्र का नक्शा जमाये बैठा था। लकड़ियों और लोहे के कुछ टुकड़ों से बंदूकें और तोपें बनाई गई थी और टीन के डिब्बों से टैंको तथा आरमर्ड कारों का काम लिया गया था। अब उस भूमि पर जहाँ सामने से दुश्मन आक्रमण करने वाला था, बारूद बिखेरकर सुरंगे बिछाने में व्यस्त था। साथ-साथ वह बोलता जा रहा था।

“सौ फीसदी इसी तरह से हमला होगा। तो यह सुरंगें दुश्मन के परखच्चे उड़ा देंगी और अगर वह सुरंगों से बच भी गया, तो हमारे जवान उसे गोलियों से भून कर रख देंगे। लेकिन वेट…वेट…जवानों! एक भी फायर हो गया, तो दुश्मन होशियार हो जायेगा। पहले उसे चोट पर आने दो।”


तभी रशीद मकान में प्रविष्ट हुआ और पूनम का पिता चीख उठा।

“फायर…आ गया दुश्मन…फायर।”

रशीद जहाँ था, वहीं ठिठककर रह गया। उसके कदमों की आहट सुन कर पूनम का पिता पलटा और चिंगारियाँ बरसाती आँखों से रशीद को घूरता हुए बोला, “कौन हो तुम?”
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

Post by rajsharma »

“जी…आपने मुझे पहचाना नहीं। मैं रणजीत हूँ…कैप्टन रणजीत!”

“ओह कैप्टन रणजीत! तुम कहाँ चले गये थे? शायद तुम पाकिस्तान की कैद में थे।” उसने मस्तिष्क पर बल देते हुए कहा।

“जी हाँ! आज ही कैद से छूट कर आया हूँ।”

“मैंने तुमसे कहा था, मेरा एटम बम का फार्मूला ले जाओ। तुम्हें दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती। लेकिन तुम लोग मुझे पागल समझते हो। हालांकि पागल तुम ख़ुद हो। बोलो कौन पागल है? तुम या मैं?”

“जी…जो आपको पागल समझता है, वह पागल है।”

“गुड, अब तुम काफी समझदार हो गए हो। लेकिन पूनम बिल्कुल मूर्ख है। कैसे कैद हुए थे तुम?”

“जी…हमारी टुकड़ी जैसे ही हमले के बाद बिखरी, मैं दुश्मनों की पकड़ में आ गया।”

“मैं भी सेकंड वर्ल्ड वॉर में एक बार पकड़ा गया था। लेकिन उस वक़्त मेरे पास एटम बम का फार्मूला नहीं था। वरना जापानी मुझे बिल्कुल गिरफ्तार ना कर सकते थे। अब मैंने ब्रिटिश गवर्नमेंट को लिखा है कि वह मुझे फिर मैदान-ए-जंग में भेज दे, ताकि अबकी बार मैं जापानियों को छठी का दूध याद दिला दूंगा। मैंने जंग में ऐसे-ऐसे नक्शे तैयार किए हैं कि….देखना चाहते हो, तो देखो।” उसने मेज़ पर बनाए युद्ध क्षेत्र के नक्शे की ओर संकेत किया और फिर बोला, “यह लड़ाई का तरीका खास मेरी ईज़ाद है। बीस साल तक सिर खपाने के बाद मुझे यह नक्शा सूझा है। अब मेरा एक जवान, दुश्मन के हजारों जवानों का मुकाबला कर सकता है। देखो दुश्मन उस पहाड़ी की आड़ में छिपा हुआ है। उसने मेज़ के दूसरे किनारे पर रखे हुए एक पत्थर की ओर संकेत करते हुए कहा और फिर रशीद की ओर हाथ उठाकर बोला, “होशियार…खबरदार…दुश्मन हमला करने ही वाला है। अब मैं सुरंग में आग लगाता हूँ। माचिस है तुम्हारे पास?”

“जी नहीं लाइटर है।”

“लाओ वही चलेगा”

रशीद पहले तो लाइटर देने से झिझका। लेकिन जब पूनम के पिता ने आग्रह किया, तो इंकार न कर सका। लाइटर हाथ में आते ही उसने झट से जला दिया और मेज पर बिछी बारूद में आग लगा दी। लाइटर के शोले के छूते ही बारूद भक़ से जल उठा। उसकी लपटें रशीद के चेहरे तक पहुँची थी कि पूनम की आहट सुनाई दी। वह झपटकर मेज़ तक तक पहुँची और पांव से चप्पल उतारकर उसने वह आग बुझा दी। फिर पिता की ओर मुड़कर गुस्से से बोली, “यह क्या डैडी…अभी सारे घर को आग लग जाती है।” फिर उनके हाथ में रशीद का लाइटर देखकर रशीद की ओर देखती हुई बोली, “ओह! तो यह आपका लाइटर है। आपने क्यों दिया यह इन्हें?”

“मुझे क्या मालूम था कि यह सचमुच बारूद है।” रशीद ने झेंपते हुए कहा।

“बारूद यह स्वयं बना लेते हैं। इसलिए मैं इनसे माचिस छुपाती फिरती हूँ। लाइए, लाइटर मुझे दे दीजिये, वरना घर में आग लगा देंगे आप।” उसने पिता के हाथ लाइटर छीनते हुए कहा।

“मैं तंग आ गया हूँ इन यूएनओ से। जब भी दो मुल्कों में जंग छिड़ती है, यह सीज़ फायर करा देती है।” पूनम के पिता ने बड़बड़ा कर कहा।

“अच्छा चलिए अपने कमरे में। अब तो सीज-फायर हो गया।” पूनम ने कहा और उन्हें घसीटती हुई उनके कमरे में ले गई। फिर जब वह वापस आए, तो रशीद ने उसे करुण दृष्टि से देख कर कहा, “बड़ा कठिन जीवन है तुम्हारा। तुम इन्हें अकेले घर में छोड़कर बाहर कैसे जाती होगी?”

घंटे दो घंटे के लिए भी कहीं जाती हूँ, तो चिंता लगी रहती है। शाम को ड्यूटी पर जाती हूँ, तो इनकी देखभाल एक नौकर करता है। कुछ दिन के लिए घर बाहर जाना होता है, तो किसी ने किसी को इनके पास रखकर जाती हूँ। कश्मीर गई थी, तो कमला आंटी की लड़की रमा को बुला लिया था। लेकिन वह भी इतने दिन डरती ही रही। न जाने मेरे पीछे क्या कर बैठे। दिन-ब-दिन हालत बिगड़ती जा रही है इनकी।” पूनम ने दुख भरे स्वर में रुक-रुक कर कहा।

“अच्छा आप अपनी बात बताओ।”

“कैसी हो तुम?” रशीद उसका ध्यान हटाने के लिए विषय बदलना चाहा।

“अच्छी हूँ…लेकिन आप कब आये?”

“आज सुबह की फ्लाइट से। कल शाम को मनाली जा रहा हूँ। सोचा तुम्हें साथ ले चलूं।”

“जी तो मेरा भी चाह रहा था माँ से मिलने को, लेकिन डैडी की हालत तो देख रहे हैं आप।”

“तुमने तो वचन दिया था कि तुम मेरे साथ चलोगी माँ के पास।”

“ऐसा कीजिए आप मनाली चलिए। मैं डैडी की देखभाल के लिए कमला आंटी को यहाँ बुला लेती हूँ। उनके आते ही चंद दिनों के लिए आ जाऊंगी।”

पूनम के बात सुनकर रशीद का मन बुझ गया। वह चाहता था कि पूनम उसके साथ होगी, तो माँ का ध्यान कुछ उसकी ओर बंट जायेगा। वरना हो सकता है कि अनजाने में उसकी किसी हरकत से माँ के मन में कुछ संदेह उत्पन्न हो जाये। वह इस प्रकार का कोई अवसर नहीं आने देना चाहता था। इस विचार से वह पूनम को साथ चलने का आग्रह कर रहा था, किंतु उसकी विवशता को ध्यान करके चुप रह गया।

“आप ठहरे कहाँ हैं?” पूनम ने उसकी विचारधारा बंद करते हुए पूछा।

“होटल अकबर में।”

“होटल में क्यों? मेरे घर को पराया समझते हैं क्या? चलिए अभी सामान लेकर आइये।”

“अरे एक रात की तो बात है, कल तो चला ही जाऊंगा और फिर शादी से पहले या रुकना भी तो ठीक नहीं है।” रशीद ने कुछ मुस्कुराकर अंतिम वाक्य कहा, तो पूनम शर्मा गई।

तभी अचानक रशीद की दृष्टि सामने दीवार पर फ्रेम में चढ़ी हुई एक तस्वीर पर पड़ गई। वह वापस जाकर ध्यानपूर्व उस तस्वीर को देखने लगा। रणजीत और पूनम बाहों में बाहें डाले किसी होटल की पार्टी में नाच रहे थे।

“क्या देख रहे हैं?” पूनम ने पास आकर पूछा।

“अपनी जवानी की गुस्ताखियाँ।”

“अब क्या बूढ़े हो गए हैं?” पूनम ने शरारत से कहा।

“जबसे दुश्मन की कैद से मुक्त हुआ हूँ, दिल कुछ बुझ सा गया है। सब इच्छायें, कामनायें जैसे दम तोड़ चुकी हैं। न हँसने को मन करता है, न मज़ाक करने को।”

“शादी के बाद भी आपने मुझसे यही रुखा व्यवहार किया, तो मैं घुट-घुट कर मर जाऊंगी।”

“मरे तुम्हारे दुश्मन…जब तुम्हारा साथ मिलेगा, तो सोई हुई कामनायें अपने आप फिर जाग उठेंगी।“

“तो भूल जाइए उस कैद को…उस युद्ध के वातावरण को। अब आप केवल मेरे कैदी हैं, मेरे प्यार के कैदी।” पूनम ने भावुकता से विभोर होकर उसके हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा।

रशीद ने झुककर उसकी आँखों में झांका, तो उसे वहाँ प्यार के दिये जलते दिखाई दिये। पूनम ने उसके सीने पर सिर रखकर आँखें बंद कर ली।

“अच्छा…तो अब इस कैदी के लिए क्या हुक्म है?” रशीद ने उसके दोनों कंधे पकड़कर उसे अपने आप से अलग करते हुए पूछा।

“आज रात जा खाना हम इकट्ठे खायेंगे…होटल अकबर में।”

“It’ll be a pleasure for me! मैं तुम्हारी प्रतीक्षा करूंगा।”

वचन के अनुसार ठीक दस बजे पूनम होटल अकबर में पहुँच गई। रशीद द्वार पर खड़ा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने बड़े उत्साह से आगे बढ़कर उसका स्वागत किया। हरी साड़ी में पूनम का सौंदर्य फूटा पड़ा था। उसके खिले हुए चेहरे पर रशीद की दृष्टि न ठहर रही थी। वह उसे साथ लिए डायनिंग हॉल तक चला आया।
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(^%$^-1rs((7)
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

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हॉल में अधिकतर मेजें भरी हुई थीं। रशीद पूनम को लिए हुए उस मेज़ तक चला आया, जो उसने आज विशेष रूप से आरक्षित करा रखी थी। बैरा आया और उन दोनों कि इच्छानुसार खाने का ऑर्डर लेकर चला गया। खाने से पहले रशीद ने कोल्ड ड्रिंक्स लाने के लिए कहा। पूनम के ताज़ा निखरे हुए सौंदर्य को वह प्रशंसनीय दृष्टि से निहारे जा रहा था। पूनम ध्यानपूर्वक डायनिंग हॉल की छत पर की गई मीनाकारी को देख रही थी।

अकबर होटल का यह हॉल कुछ मुगल राजभवनों के ढंग पर सजाया गया था। कांच की हजारों रंग-बिरंगी चूड़ियाँ छत से लटक रही थीं। होटल वालों ने इस हॉल को शीश महल का नाम दे रखा था। रशीद ने पहले ही बैरे से हॉल की बनावट इत्यादि के बारे में विस्तार से पूछ रखा था और अब मुगल इतिहास के पन्नों से हवाला देते हुए पूनम को उसकी बारीकियाँ समझाई।

तभी लाउड स्पीकर पर एक डांसर लिली के डांस की घोषणा हुई। रोशनियाँ बुझ गई और अब वहाँ केवल टिमटिमाती मोमबत्तियाँ जलती रह गई। फर्श पर लगी स्पॉट लाइट का प्रकाश हुआ और छत पर लटकी चूड़ियाँ आकाश में तारों के समान चमक उठी।

हॉल की गहमा गहमी एकाएक निस्टबधता में बदल गई और हर कोई इस सुंदरी को देखने लगा, जो पश्चिमी संगीत की धुन के साथ हॉल में प्रविष्ट हुई थी। अपने अर्ध नग्न शरीर का प्रदर्शन करते हुए वह कैबरे डांस के साथ गाने लगी। उसके संक्षिप्त से काले रेशमी लिबास में जड़े हुए सितारों पर सपाट लाइट का प्रकाश पड़ रहा था और कई दर्शकों के मुँह से सिसकारियाँ सी निकल रही थी। वह नागिन के समान बलखाती हुई अपने गोरे गदराये शरीर को थिरकाती, तो लोग दिल थाम लेते।

पूनम और रशीद दोनों ध्यानपूर्वक उसे यों देख रहे थे, जैसे उसे पहले कहीं देखा जो और अब पहचानने का प्रयत्न कर रहे हों। फिर अचानक पूनम के मुँह से निकला, “अरे यह तो रुखसाना है…कश्मीर वाली!”

“हाँ हाँ, है तो वहीं। लेकिन यहाँ कैसे आ गई?” रशीद ने आश्चर्य से कहा।

उनके यों अचानक बोल पड़ने पर आस-पास बैठे लोगों ने घूरकर उन्हें देखा और वे दोनों झेंप कर चुप हो गये। लेकिन रुखसाना को वे निरंतर ध्यानपूर्वक देखते रहे।

रुखसाना को अचानक वहाँ देखकर रशीद का मूड खराब हो गया था और वह कुछ उकताया सा दिखाई दे रहा था। रुखसाना नाचती हुई अचानक रशीद की मेज़ के सामने से गुजरी और उसके साथ वाली मेज़ पर एक नौजवान का झुककर चुंबन लेती हुई आगे बढ़ गई। रशीद और पूनम ने उसकी इस असभ्य हरकत पर बुरा सा मुँह बनाया।
“रुखसाना…लिली…! यह क्या मज़रा है?” पूनम ने बहुत धीमे से रशीद के कान में कहा।

“यही तो मैं भी सोच रहा हूँ।” रशीद जानते हुए भी अनजान बनकर बोला और फिर क्षण भर रुककर कहने लगा, “ज़रूर इसमें कोई भेद है।”

“होगा…छोड़ो…अब लिली हो या रुखसाना…हमें क्या?” पूनम लापरवाही से बोली।

“हो सकता है एक शक्ल की दो लड़कियाँ हों।” रशीद थोड़ी देर चुप रहकर बोला।

“आप भी क्या बेतुकी सोचते हैं…यह भी कोई फिल्म है, जहाँ हीरो जुड़वा का और हीरोइन जुड़वा बहन का रोल करती है।”

पूनम की बात सुनकर रशीद अनायास मुस्कुरा पड़ा। नाच क्लाइमेक्स पर पहुँच गया। लिली एक बार बिजली की सी तेजी के साथ लहराई और फिर अचानक ही उसके कदम रुक गये। हॉल तालियों से गूंज उठा… हॉल फिर रोशनी से जगमगा उठा, लेकिन प्रकाश होने से पहले ही डांसर गायब हो चुकी थी।

उजाला होते ही बैरे अंदर आये और खाना सर्वे करने लगे। पूनम जो भूख से बेचैन हो उठी थी, झट खाने पर टूट पड़ी। रशीद मुस्कुरा उठा और वह भी उसका साथ देने लगा।

थोड़ी देर बाद रुखसाना नाच का लिबास बदलकर एक रेशमी मैक्सी पहने लहराती हुई आई और उनके पास बैठ गई। उसके हाथ में विहस्की के एक गिलास था। मुस्कुराते हुए उसने उन दोनों को बारी-बारी से देखा और बोली, “हेलो!”

“रुखसाना तुम!” उन दोनों कि ज़बान से एक साथ निकला।

“नहीं मिस लिली…रुखसाना कश्मीर में थी। यहाँ मिस लिली हूँ।” रुखसाना ने गिलास से एक सिप लिए हुए कहा।

“यह तुमने अपना नाम क्यों बदल लिया? पूनम ने आश्चर्य से पूछा।

“हर नई जगह मेरा नाम बदल जाता है। कश्मीर में रुखसाना, दिल्ली में लिली और मुंबई में अनारकली।” कहते हुए उसने गिलास से एक और सिप लिया।

“लेकिन वास्तव में तुम हो क्या?” पूनम ने कहा और अपनी बात स्पष्ट करने के लिए बोली, “मेरा मतलब है हिन्दू हो, मुसलमान हो या क्रिश्चियन हो?”

“मैं सिर्फ औरत हूँ…औरत और औरत का कोई धर्म नहीं होता…धर्म तो बस मर्दों का होता है। औरत जिस धर्म के मर्द से शादी करती है, वही उसका धर्म है।”

“जो शायद जॉन से शादी करने के बाद…”

“नाम मत लो उस फ्रॉड का मेरे सामने।” रुखसाना ने गुस्से से पूनम कि बात काटते हुए कहा।

“फ्रॉड!” रशीद के मुँह से अनायास निकला।

“हाँ फ्रॉड…पाकिस्तानी जासूस था वह।”

“क्या कह रही हो तुम?” पूनम का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसने प्रश्नसूचक दृष्टि से रशीद की ओर देखा, जो स्वयं घबरा रहा था कि नहीं नशे की तरंग में रुखसाना उसका भी भेद न खोल दे। लेकिन रुखसाना ने कनखियों से उसकी ओर देखते हुए आँखों ही आँखों में उसे संतुष्ट रहने का संकेत किया और सिगरेट सुलगा कर उसका धुआं उड़ाते हुए बोली, “मैं कैबरे से अच्छी खासी कमाई कर रही थी। उसने शादी का वादा करके मुझसे मेरा धंधा छुड़वा दिया और मुझे अपने काम के लिए इस्तेमाल करने लगा। मैं मोहब्बत की भूखी थी, उसके इशारों पर नाचती रही। लेकिन मतलब निकल जाने पर वह मुझे अकेला छोड़कर पाकिस्तान भाग गया।”

“भाग नहीं गया…बॉर्डर पकड़ा गया था…उसने आत्महत्या कर ली।” रशीद ने उसे बताया।

“आत्महत्या!” पूनम के मुँह से हल्की सी चीख निकल गई।

“बहुत अच्छा हुआ…उसका यही अंत होना चाहिए था।” रुखसाना ने घृणा से होंठ सिकोड़ते हुए कहा।

पूनम को उसका यह ढंग पसंद नहीं आया और उसे समझाते बोली, “कुछ भी हो, वह तुम्हारा प्रेमी था…तुम्हें ऐसा नहीं कहना चाहिए…हिंदुस्तानी नारी तो एक बार जिसकी हो जाती है, उस पर प्राण तक न्यौछावर कर देती है।”

“मैं उन बेवकूफ औरतों में से नहीं हूँ। अब मैंने फैसला कर लिया है कि कभी मोहब्बत का रोग नहीं लगाऊंगी। ज़िन्दगी मर्दों की तरह ऐश से गुजारूंगी…आज उसकी बाहों में, तो कल उसके आगोश में।”

“छी छी छी…कैसी बहकी-बहकी बातें करती हो।” पूनम ने घृणा से माथे पर बल डालते हुए कहा।

“अभी कहाँ बहकी हूँ डियर। पहला गिलास भी तो खाली नहीं हुआ।” रुखसाना ने कहा और फिर एक ही सांस में गिलास खाली करके मेज पर रख दिया।

तभी रुखसाना को उस नौजवान ने पुकारा, जिसका नाचते हुए उसने चुंबन ले लिया था और रुखसाना “एक्सक्यूज मी” कहकर नौजवान की मेज पर चली गई। वह शायद रुखसाना का नया आशिक था।

रशीद और पूनम ने संतोष की सांस ली। रशीद ने धीरे से कहा, “पूअर फ्रस्ट्रेटेड सोल।” और फिर दोनों जल्दी-जल्दी खाना खाने लगे।
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: वापसी : गुलशन नंदा

Post by rajsharma »

खाना समाप्त हुआ। रशीद ने जल्दी से बिल चुकाया और इस विचार से कि कहीं रुखसाना फिर आकर बोर न करे, वह उठकर बाहर जाने लगा। रुखसाना उस नौजवान के पास बैठी बातें कर रही थी। उसने कनखियों से उन्हें बाहर जाते देखा और उनकी शीघ्रता देख कर मुस्कुरा दी।

वहाँ से रशीद और पूनम होटल के बगीचे में चले आये। जहाँ घास में छिपे रंगीन बल्ब एक अनोखी मनोहर छटा प्रस्तुत कर रहे थे। आसपास खिले फूलों की फैली सुगंध ने उन्हें विभोर-सा कर दिया। हाल में उत्पन्न हुई घुटन कुछ ही क्षण में हवा के झोंकों ने समाप्त कर दी। पूनम ने रशीद का हाथ अपने हाथों में ले लिया और उसके साथ टहलने लगी… इस रोमांचमयी वातावरण से उसे उन्माद की सी अनुभूति होने लगी।

कुछ देर बाद रशीद ने अनुभव किया कि पूनम जो अपने आपको एक सीमित फासले पर रखती थी, उस समय बात-बात पर रशीद से चिपकी जा रही थी। कभी उसके गले में बाहें डाल देती, कभी सीने से लग जाती और रशीद उसके इस व्यवहार से बेचैन हुआ जा रहा था। आखिर जब पूनम अधिक ही खुल गई और जब उसकी सहनशक्ति से दूर हो गई, तो वह पूनम से कह उठा, “चलो, अब मैं तुम्हें तुम्हारे घर छोड़ आऊं।”

“क्यों इतनी जल्दी उकता गए मुझसे।” उसने शिकायत भरे स्वर में कहा।

“यह बात नहीं…मैं सोच रहा था कि तुम्हारे डैडी घर पर अकेले होंगे।”

“जी नहीं! उनकी देखभाल के लिए इस समय घर पर नौकर है।”

“तो चलो, फिर कहीं चल कर एक-एक कप कॉफी पियें।” रशीद ने उसका हाथ पकड़कर कहा।

“ऊंह, इतना सुंदर समा छोड़कर फिर उसी घुटन में चलें।” पूनम ने ठुनक कर कहा और पास होकर रशीद को अपनी बाहों में जकड़ लिया। उसके गदराए हुए जवान बदन का स्पर्श और बालों से आती भीनी सुगंध ने कुछ देर के लिए रशीद पर एक जादू सा कर दिया। वह भूल गया कि वह परीक्षा के किस लक्ष्य पर है।

“यह तुम्हें क्या हो गया है?” उसने पूनम के कान के पास मुँह ले जाकर कहा।

“एक नशा। तुम्हारे सामीप्य का नशा…कितने लंबे वियोग के बाद मुझे मिले हो। यों लग रहा है, जैसे आज की रंगीन रात मेरी शादी की रात हो। जीवन की सारी खुशियाँ तुम्हारी बाहों में सिमट आई हो। हमेशा के लिए इन मजबूत बाहों जा सहारा मुझे कब दोगे रणजीत!” कहते-कहते उसकी आवाज भर्रा गई और भावुकता में उसने रशीद को ज़ोर से भींच लिया।

पूनम पर जैसे पागलपन सा सवार था…वह भावनाओं की सब सीमायें पार किए जा रही थी। उसके जवान बदन की आंच ने रशीद की धमनियों में भी ज्वाला सी भड़का दी थी। इस समय उसे यूं लगने लगा था, जैसे उसकी बाहों में पूनम नहीं सलमा थी। वह पूनम को बाहों में जकड़े हुए था और उसके होंठ पूनम के होठों से मिलने वाले थे कि सहसा वह चौंक पड़ा। उसे अनुभव हुआ जैसे पास ही पेड़ों के पीछे रणजीत छिपा खड़ा है…उसकी मोटी-मोटी आँखें पत्तों से झांक रही हैं और वह उससे कह रहा है, “जब मैं तुम्हारी हसीन जमाल बीवी सलमा को आगोश में ले कर अपनी प्यास बुझाऊंगा, तो तुम्हें कैसा लगेगा?”

रशीद ने झट अपने उमड़ते हुए भावों को नियंत्रण में किया और झटके से पूनम को अपने से अलग कर दिया। पूनम उसकी अचानक उत्साह हीनता का कारण न समझ सकी और उसके पसीने से भीगे चेहरे को देखकर आश्चर्य से पूछ बैठी, “क्या बात रणजीत?”

“कुछ नहीं…जाओ…अब तुम घर जाओ। देर हो गई है।” वह बेरुखी से बोला और जल्दी से पलटकर तेज-तेज कदमों से होटल में जाने लगा। पूनम अपनी जगह खड़ी विस्मय से उसे देखती रही। वह छोटी-छोटी क्यारियों को फलांगता हुआ तेजी से उससे दूर जा रहा था।

पूनम ने सोचा शायद वह उसकी सीमा से अधिक घनिष्ठता से नाराज हो गया है। सचमुच वह कुछ अधिक भावुक हो गई थी। यह सोचकर उसका गला भर आया। उसका जी चाहा कि वह पीछे भागकर क्षमा मांग ले, लेकिन फिर साहस ने उसका साथ न दिया। कुछ देर तक वह अकेली वहाँ स्थिर सी खड़ी रही और फिर कांपते कदमों से बगीचे से बाहर निकल गई।

उसी बगीचे के एक अंधेरे कुंज का सहारा लेकर रुखसाना उन दोनों का यह नाटक देख रही थी। शराब की गर्मी और उन दोनों के प्यार के रोमांचमयी दृश्य ने उसके बदन में आग सी लगा रखी थी। उसकी धमनियाँ जैसे तड़पने लगी थी। उसने हाथ में पकड़ा शराब का गिलास अंतिम घूंट लेकर खाली कर दिया और लापरवाही से उसे घास में एक ओर उछाल दिया…फिर अचानक रशीद की बेबसी का विचार आती ही एक खनकता हुआ ठहाका उसके कंठ से निकला।

रशीद उसी बौखलाहट में अपने कमरे तक चला आया। उसका शरीर ठंडे पसीने में नहाया हुआ था। उसने जल्दी से कोट उतार कर एक ओर फेंका और गले की नेक टाई ढीली करके बिस्तर पर लेट गया। अभी तक एक उन्माद सा उसके मस्तिष्क पर छाया हुआ था…एक ऐसा उन्माद, जिसमें अब आत्मग्लानि सम्मिलित होकर उसे तड़पा रही थी। पूनम की भावनाओं को प्रोत्साहित करके उसे एक पीड़ा सी अनुभव हो रही थी।

मानसिक उलझन को दूर करने के लिए उसने एक सिगरेट सुलगा ली। सिगरेट लाइटर में भरी पूनम की आवाज ने उसे और भी बेचैन कर दिया। उसने झट लाइटर बुझाकर रख दिया और सिगरेट के लंबे-लंबे कश लेने लगा।

तभी कमरे के दरवाजे पर दस्तक हुई। वह चौंक गया। उसने सोचा, शायद पूनम फिर आ गई हो…और झट सिगरेट को ऐश ट्रे में रखकर दरवाजे तक चला आया। कुछ अजीब भाव से उसके दरवाजा खोल दिया, किंतु उसके सामने पूनम नहीं, बल्कि नशे में चूर रुखसाना खड़ी थी।

“तुम?” रशीद के होठों थरथराये।

“हाँ, मैं…” कहते हुए वह अंदर भी आ गई और नशीली आँखों से देखती हुई बोली, “दरवाजा बंद कर दो।”

फिर रशीद के उत्तर की प्रतीक्षा किए बिना ही उसने पलट कर चटकनी चढ़ा दी और उसके निकट आती हुई बोली, “पूनम परेशान करके चली गई?”

रशीद जो अब तक उसके आने के बारे में सोच रहा था कि उसकी यह बात सुनकर सावधान हो गया और उसे अपने आप से अलग करता हुआ बोला, “उसे मैंने भिजवा दिया।”

“झूठ…वह तड़पकर चली गई…मैं सब समझती हूँ…मैंने सब देखा है।”

“देखा है तो क्या हुआ? तुम तो मेरी मजबूरी समझती है।”

“हाँ! लेकिन कहो तो तुम्हारी इस परेशानी को दूर कर दूं।” रुखसाना ने नशे से लड़खाड़ाती आवाज में कहा और ऐश ट्रे में रखा रशीद का सिगरेट उठाकर अपने होठों से लगा।

“रुखसाना…!” रशीद ने उसकी बात सुनकर डांटा।

“शरमाओ मत…मर्द आदमी हो…मैं तुम्हारे बदन में लगी आग की तपन को महसूस कर रही हूँ। चाहो तो वह आग बुझा लो।” कहते हुए उसने रशीद के गले में बाहें डाल दीं।

“तुम नशे में हो।“ रशीद ने उसकी बाहें झटकते हुए कहा।

“हाँ मैं नशे में हूँ…लेकिन शराब के नशे में नहीं…तुम्हारे जवान और खूबसूरत बदन को देख कर मुझे नशा हो रहा है। तुम्हारी इन मखमूर आँखों ने मुझे बेसुध बना दिया है। जो आग इस वक़्त मेरे अंदर भड़क रही है, तुम्हें न बुझाई, तो मैं रात भर सो सकूंगी।“

“शटअप…बंद करो यह बकवास और चली जाओ यहाँ से।” रशीद गुस्से से बोला।

“मेरे इश्क को बकवास कहते हो…ऐसा जुल्म मत करो। देखो मेजर मैं तुम्हारी मजबूरी को समझती हूँ। जो तुम्हारे इश्क में जलाकर अभी लौट गई, उसे तो तुम छू नहीं सकते और जो तुम्हारी है, वह यहाँ से सैकड़ों मील दूर है। लेकिन मैं हाजिर हूँ। इस हाथ लगी नेमत को न ठुकराओ, अपनी आग को बुझा लो, वरना दीवाने हो जाओगे।” रुखसाना ने झूमते हुए कहा और झटपट बटन खोलकर उसने मैक्सी उतार कर फर्श पर डाल दी और अपने नग्न शरीर का प्रदर्शन करती हुई रशीद के सामने खड़ी हो गई।

रुखसाना की यह हरकत देख कर रशीद गुस्से से पागल हो गया, लेकिन उसने धैर्य से काम लिया…फर्श से उसकी मैक्सी उठाई और उसके नग्न शरीर पर डालते हुए बोला, “कपड़े पहन हो और यहाँ से चली जाओ।”

“और अगर मैं ना जाऊं, तो?”

“मैं तुम्हें जबरदस्ती बाहर निकाल दूंगा।”

“यह एक औरत की तौहीन होगी।”

“तौहीन उसकी होती है, जिसकी कोई इज्जत आबरू होती है और तुम… तुम अपने आपको बेहतर समझ सकती हो।”

“मैं तुम्हारा इशारा समझ गई मेजर। तुम मुझे बेआबरू कहना चाहते हो न…लेकिन मुझे इस गड्ढे में किसने धकेला? तुम लोगों ने…तुमने और जॉन ने…तुमने अपने नये कारोबार के लिए मेरे जिस्म को नीलाम किया…मुझे किसी की महबूबा बनाया। अपनी गर्ज के लिए मुझे गुरनाम के साथ सोने के लिए मजबूर कर दिया और अब मैं रंडी हूँ…ठीक है, अगर मैं रंडी हूँ, तो तुम लोग भड़वे हो…दलाल हो।”

रशीद से और उद्दंडता सहन न हो पाई। उसने तड़ाक से रुखसाना के गाल पर एक चपत धरते हुए कहा, “गेट आउट यू ब्लडी बिच!”

रुखसाना ने अपना गाल सहलाते हुए घायल नागिन के समान रशीद को देखा और तेजी से मैक्सी पहनते हुए कमरे से बाहर चली गई। कमरे से निकलते हुए उसने पूरे बल से, झटके से दरवाजा बंद किया। एक धमाका हुआ और फिर एक सन्नाटा छा गया… एक न समाप्त होने वाला सन्नाटा।

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