हुस्न की जो चिंगारी कुछ बरसो पहले मुझसे जुदा हो गयी थी आज वो एक भड़कता हुआ शोला बन कर मेरी बाहों मे मचल रही थी मैने प्रीतम को बिस्तर पर पटका और उसके उपर चढ़ गया. एक बार फिर हमारे होंठ आपस मे गुत्थम गुत्था हो चुके थे , हमारा थूक आपस मे मिक्स हो रहा था और बदन उस सर्दी की दोपहर मे एक आग मे पिघल रहे थे उसके बदन का नशा मुझे बिन पिए ही हो रहा था.
उत्तेजना से काँपती हुई प्रीतम ने मेरे लंड को अपनी चूत पर रखा और मुझे इशारा किया और अगले ही पल मैं उस मस्तानी औरत मे समाता चला गया उसकी चूत आज भी किसी भट्टी की तरह ही तपती थी , आज भी उसका मस्ताना पन ज़रा भी कम नही हुआ था. और मैं इस छूट का पुराना हकदार एक बार फिर से इस छलकते जाम को पीने जा रहा था . अपनी चूत मे मेरे लंड को महसूस करते ही प्रीतम के बदन मे मस्ती भर गयी और उसकी गान्ड मेरे हर धक्के के साथ उपर नीचे होने लगी.
जब जब मैं अपने लंड को बाहर की तरफ खींचता उसकी चूत की फांके रगड़ खाते हुए बाहर को खिंचती जिस से ऐसे लगता की चूत लिपट सी गयी है और यही बात उसे बाकी औरो से अलग करती थी , प्रीतम पागलो की तरह मेरी जीभ को अपने मूह मे लिए हुई थी , चारपाई बुरी तरह से चरमरा रही थी.
प्रीतम- ये खाट जाएगी आज नीचे उतार लो.
मैं- जाने दे पर तू यही चुदेगि.
प्रीतम- मैं कह रही हूँ मान लो.
मैं- कहा ना तू यही चुदेगि.
प्रीतम- तो चोद ना , थोड़ा और ज़ोर लगा तोड़ डाल आज मेरी नस नस इतना चोद मुझे, इस तरह से रगड़ कि तेरे असर मे खो जाउ मैं, महकने लगे मेरा बदन.
मैं- आज तू जैसा चाहेगी वैसे ही होगा.
मैने उसकी गर्दन पर किस करते हुए कहा . प्रीतम की बाहे मेरी पीठ पर रेंग रही थी . पल पल बीतने पर वो मुझे पूरी तरह अपने अंदर समा लेना चाहती थी किसी घायल शेरनी की तरह बेकाबू सी होने लगी थी और जब उसका खुद पर कंट्रोल नही रहा तो वो मेरे उपर आ गयी और मेरे सीने पर हाथ रख कर ज़ोर ज़ोर से मेरे लंड पर कूदन लगी. सेक्स की उसकी ये ही बेफिक्री मुझे बहुत पसंद थी . बिस्तर पर आग लगा देना जैसे उसकी आदत सी हो गयी थी.
चारपाई हम दोनो के बोझ से बुरी तरह चरमरा रही थी पर हमारी आँखो मे अब बस एक ही चमक थी , हमारे बदन उस आग मे बुरी तरह जल रहे थे अब चरम सुख की एक तेज बारिश ही इस आग को ठंडा कर सकती थी प्रीतम की चूत बस मेरे वीर्य की धार से ही ठंडी होना चाहती थी मैने उसकी मांसल गान्ड को अपने दोनो हाथो मे जकड रखा था और वो हर बाँध को तोड़ते हुए किस बलखाती नदी की तरह मुझे अपने साथ बहाए ले जा रही थी.
जैसे कोई काला बदल आसमान पर छा जाता है वैसे ही प्रीतम अब मुझ पर छा चुकी हुई थी उसके सुर्ख होंठ एक बार फिर मुझसे जुड़ चुके थे और बस अब किसी भी पल वो भी मुझ पर बरस सकती थी मैं इंतज़ार कर रहा था उन बूँदो का जो मेरे भीतर जलती इस ज्वाला को शांत करके मुझे राहत दे सकती थी. प्रीतम को भी आभस हो चला था क्योंकि उसकी साँसे अब उखाड़ने लगी थी और मैने सही समय पर पलटी खाते हुए उसे अपने नीचे लिया और उसकी चूत पर तूफ़ानी धक्को की बरसात कर दी.
प्रीतम ने अपनी आँखे बंद कर ली और खुद को मेरे हवाले कर दिया. बमुश्किल 3-4 मिनिट का समय और लिया हम ने और एक दूसरे को चूमते हुए झड गये. पर आज बस यू ही नही झडे थे हम दोनो चुदाई के इस खेल मे आज लगा कि जैसे रूह तक को सुकून मिला हो पर इस से पहले हम इस अनुभूति को और फील कर पाते कड़क की आवाज़ के साथ चारपाई का पाया टूट गया और मैं प्रीतम के साथ साथ नीचे आ गिरा.
प्रीतम- कमर तुडवा दी ना. मैं पहले ही रोई थी ये खाट जाएगी.
मैं- उठने तो दे .
प्रीतम बडबडाते हुए अलग हुई और हम दोनो उठे. प्रीतम अपने कपड़े पहन ने लगी.
मैं- अभी क्यो पहन रही है .
प्रीतम- अभी के लिए इतना ही ठीक है रात को अकेली ही हूँ आ जइयो फिर घमासान मचाएँगे.
मैं- पर रुक तो सही अभी.
वो- हाँ, रुकूंगी ना थोड़ी देर.
मैने भी अपने कपड़े पहन ने चालू किए और तभी बाहर से कोई किवाड़ पीटने लगा.
प्रीतम- अब कौन आ गया दुनिया को दो पल चैन नही है.
मैं- रुक खोलता हूँ.
मैने अपने कपड़े पहने और दरवाजा खोला तो अनिता भाभी और गीता दोनो खड़े थे . भाभी अंदर आई और आते ही प्रीतम को देखा. गीता भी पीछे पीछे आ गयी.
गीता- मनीष बहुत दिनो बाद देखा तुम्हे.
मैं- बस अब ऐसा ही है .
गीता- कितने दिन हुए आए.
मैं- थोड़े ही दिन हुए, कल परसो मे वापिस चला जाउन्गा.
गीता- बिना मुझसे मिले ही .
मैं- आने वाला था पर कुछ कामो मे उलझ जाता हूँ.
प्रीतम- मैं जा रही हूँ बाद मे मिलती हूँ.
मैं- रुक ना चाय पीते है फिर जाना. भाभी सबके लिए चाय बना लो ना.
ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
nice update bhai
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(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
दीवाली की आप सभी दोस्तो को बहुत बहुत हार्दिक बधाई
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
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Re: ज़िंदगी भी अजीब होती है Restart
भाभी ने एक नज़र प्रीतम पर डाली और बोली- अभी फ़ुर्सत नही है मेरी ढेर सारा काम पड़ा है अब कुछ लोगो की तरह फालतू तो हूँ नही मैं .
प्रीतम- रहने दे मनीष , चाय का मूड भी नही है मेरा पर तू रात को आ जाना तुझे दूध पिलाउन्गी .
प्रीतम ने जिस अंदाज मे बात कही थी अनिता भाभी को बहुत गुस्सा आ गया था वैसे ही वो पहले से ही प्रीतम को यहाँ देख कर नाराज़ थी मैं समझ गया था.
भाभी- देवर जी, इस से कह दो कि अभी के अभी यहाँ से चली जाए वरना ठीक नही रहेगा इसके लिए.
प्रीतम- चलती हूँ मनीष, आज कल कुछ लोगो की सुलग बहुत रही है .
प्रीतम मेरे पास आई और कान मे बोली- आज कल इसकी नही ले रहा क्या तू जो ये इतना उछल रही है तबीयत से पेल इसको थोड़े नखरे कम हो जाएँगे.
प्रीतम के जाने के बाद मैं और गीता कुर्सियो पर बैठ गये.
मैं- भाभी क्या बात है क्या ज़रूरत थी प्रीतम से झगड़ने की .
भाभी- हिम्म्त कैसे हुई उस कुतिया को यहाँ पर लाने की मूह ही मारना है तो बाहर हज़ार जगह है यहाँ ये सब नही चलेगा.
मैं- क्या बोल रही हो भाभी, दोस्त है वो मेरी.
भाभी- और मैं मैं क्या हूँ, कितना तड़प रही हूँ तुम्हारे करीब आने को दो घड़ी तुम्हारे साथ बाते करने को पर तुम हो कि बाहर मूह मार रहे हो आख़िर मुझ मे अब क्या कमी लगने लगी तुम्हे .
मैं- मैने बोला तो था ना कि थोड़ी फ़ुर्सत आने दो.
भाभी- मेरे लिए फ़ुर्सत नही है और जनाब यहाँ रंडियो को चोद रहे हो.
मैं- तमीज़ से भाभी प्रीतम भी मेरे लिए बहुत अज़ीज़ है .
भाभी- होगी ही, मैं अब लगती भी क्या हूँ तुम्हारी. अब जब नयी नयी मिलने लगी तो मेरे पास क्यो आना है तुम्हे.
मैं- भाभी प्रीतम के बारे मे तो बहुत पहले से पता है आपको और आपकी उस से नही बनती तो मैं क्या कर सकता हूँ.
भाभी- मुझे कुछ नही सुन ना . तुम तो साहब लोग हो बड़े लोग हो जो जी मे आए करो , मेरी किसको पड़ी है .
मैं- ज़्यादा ड्रामा हो रहा है भाभी.
भाभी- अब तो ड्रामा ही लगेगा एक दौर था जब मेरे बिना एक पल नही कट ता था और आज देखो .
तभी गीता अंदर आ गयी तो हम चुप हो गये.
गीता- अनिता , मैं चलती हूँ फिर कभी आउन्गि.
भाभी- चाय तो पीकर जाना, बस बन ही गयी है.
भाभी ने कप्स मे चाय डाली और हम पीने लगे. गीता ने अपन कप रखा और जाने के लिए तैयार हो गयी.
मैं- मैं भी चलता हूँ कयि दिन हो गये खेतो की तरफ नही गया.
मेरी बात सुनते ही गीता की आँखो मे चमक आ गयी और हम प्लॉट से बाहर निकल कर गाँव से बाहर की तरफ जाने वाले रास्ते पर चल दिए.
प्रीतम- रहने दे मनीष , चाय का मूड भी नही है मेरा पर तू रात को आ जाना तुझे दूध पिलाउन्गी .
प्रीतम ने जिस अंदाज मे बात कही थी अनिता भाभी को बहुत गुस्सा आ गया था वैसे ही वो पहले से ही प्रीतम को यहाँ देख कर नाराज़ थी मैं समझ गया था.
भाभी- देवर जी, इस से कह दो कि अभी के अभी यहाँ से चली जाए वरना ठीक नही रहेगा इसके लिए.
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प्रीतम मेरे पास आई और कान मे बोली- आज कल इसकी नही ले रहा क्या तू जो ये इतना उछल रही है तबीयत से पेल इसको थोड़े नखरे कम हो जाएँगे.
प्रीतम के जाने के बाद मैं और गीता कुर्सियो पर बैठ गये.
मैं- भाभी क्या बात है क्या ज़रूरत थी प्रीतम से झगड़ने की .
भाभी- हिम्म्त कैसे हुई उस कुतिया को यहाँ पर लाने की मूह ही मारना है तो बाहर हज़ार जगह है यहाँ ये सब नही चलेगा.
मैं- क्या बोल रही हो भाभी, दोस्त है वो मेरी.
भाभी- और मैं मैं क्या हूँ, कितना तड़प रही हूँ तुम्हारे करीब आने को दो घड़ी तुम्हारे साथ बाते करने को पर तुम हो कि बाहर मूह मार रहे हो आख़िर मुझ मे अब क्या कमी लगने लगी तुम्हे .
मैं- मैने बोला तो था ना कि थोड़ी फ़ुर्सत आने दो.
भाभी- मेरे लिए फ़ुर्सत नही है और जनाब यहाँ रंडियो को चोद रहे हो.
मैं- तमीज़ से भाभी प्रीतम भी मेरे लिए बहुत अज़ीज़ है .
भाभी- होगी ही, मैं अब लगती भी क्या हूँ तुम्हारी. अब जब नयी नयी मिलने लगी तो मेरे पास क्यो आना है तुम्हे.
मैं- भाभी प्रीतम के बारे मे तो बहुत पहले से पता है आपको और आपकी उस से नही बनती तो मैं क्या कर सकता हूँ.
भाभी- मुझे कुछ नही सुन ना . तुम तो साहब लोग हो बड़े लोग हो जो जी मे आए करो , मेरी किसको पड़ी है .
मैं- ज़्यादा ड्रामा हो रहा है भाभी.
भाभी- अब तो ड्रामा ही लगेगा एक दौर था जब मेरे बिना एक पल नही कट ता था और आज देखो .
तभी गीता अंदर आ गयी तो हम चुप हो गये.
गीता- अनिता , मैं चलती हूँ फिर कभी आउन्गि.
भाभी- चाय तो पीकर जाना, बस बन ही गयी है.
भाभी ने कप्स मे चाय डाली और हम पीने लगे. गीता ने अपन कप रखा और जाने के लिए तैयार हो गयी.
मैं- मैं भी चलता हूँ कयि दिन हो गये खेतो की तरफ नही गया.
मेरी बात सुनते ही गीता की आँखो मे चमक आ गयी और हम प्लॉट से बाहर निकल कर गाँव से बाहर की तरफ जाने वाले रास्ते पर चल दिए.
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