लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस) complete
- rajsharma
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
एकदम मस्त.....
Read my all running stories
(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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- Ankit
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
अभी मे अपने घर जाने की सोच ही रहा था….कि चाची के शब्द याद आगाये…”तुम्हें कुच्छ चीज़ों का पता चले”…!!!
चाची किस बारे में बोली..? कुच्छ तो ऐसा है.. जो चाची मुझे समझाना चाहती हैं…?
यही सब सोच विचार करता हुआ मे अपने खेतों की तरफ बढ़ गया… अभी 4:30पीम हुए थे.. मे 15 मिनिट में अपने खेतों पर पहुँच गया…
जैसा मेने पहले बताया था, कि हमारे खेतों पर ही ट्यूबवेल है, उसी से चारों परिवारों के खेतों की सिंचाई होती है, जिसका वो बाकी के चाचा लोग कुच्छ मुआवज़ा देते हैं..
ट्यूबवेल पर हमने दो कमरे बना रखे हैं, जिसमें एक में पंप सेट लगा है, दूसरा उठने बैठने और सोने के लिए है…
ज़रूरत की सुविधाएँ उसी कमरे में मौजूद रहती हैं..
मे सीधा अपने ट्यूबवेल पर पहुँचा… कुच्छ मजदूर खेतों में लगे हुए थे.. ट्यूबवेल चल रहा था,
मुझे नही पता कि इस समय उसका पानी किसके खेतों में जा रहा था.
मे जैसे ही बैठक वाले कमरे के पास पहुँचा.. मुझे अंदर से आती हुई कुच्छ अजीव सी आवाज़ें सुनाई दी..
ट्यूबवेल के कमरों की छत ज़्यादा उँची नही थी, यही कोई दस - साडे दस फीट रही होगी..
उस कमरे के पीछे वाली दीवार में एक रोशनदान था, जो छत से करीब दो-ढाई फीट नीचे था..
मेने पीछे जाकर उछल्कर उस रोशनदान की जाली पकड़ ली, और अपने हाथों के दम से अपने शरीर को उपर उठा लिया…
जैसे ही मेने अंदर का नज़ारा देखा …. मेरी आखें चौड़ी हो गयी….
जिस बात की मेने अपने जीवन में कल्पना भी नही की थी, वो हक़ीकत बनकर मेरी आँखों के सामने था…
मे ये सीन ज़्यादा देर ना देख सका… सच कहूँ तो देखना भी नही चाहता था….
लेकिन तभी चाची के शब्द एक बार फिर मेरे कनों में गूंजने लगे.. “कुच्छ चीज़ें हैं जो तुम्हें जाननी चाहिए..”
तो क्या चाची ये सब जानती हैं..? या उन्हें सक़ था..?
अगर ये चीज़ें मुझे जाननी चाहिए… तो जाननी पड़ेगी…
उसके लिए मे किसी ऐसी चीज़ को खोजने लगा जो मुझे उस रोशनदान तक आसानी पहुँचा सके..
मेरी नज़र पास में पड़ी एक 4-5 फुट लंबी सोट..(मोटी सी लकड़ी) पर पड़ी..
बिना आवाज़ किए मेने उसे उठाके दीवार के सहारे तिरच्छा करके टिकाया और उस पर पैर जमा कर फिर से रोशनदान की जाली पकड़ कर खड़ा हो गया…
अंदर बड़ी चाची.. चंपा रानी … एकदम नंगी… अपनी टाँगें चौड़ी किए पड़ी थी…
उपर बाबूजी.. अपने मूसल जैसे लंड जो लगभग मेरे जैसा ही था, से उसके भोसड़े की कुटाई कर रहे थे..
उनकी मोटी-मोटी जांघे चाची के चौड़े चक्ले चुतड़ों पर थपा-थप पड़ रही थी…
चुदते हुए चंपा रानी हाए…उऊहह….सस्सिईइ…औरर्र…. ज़ॉर्सईए…चोदो…जेठ जी…जैसी आवाज़ें निकाल रही थी…
चंपा – हाअए जेठ जी… इस उमर में भी आपमें कितनी ताक़त है…हाए…मेरी ओखली कूट-कूट कर खाली करदी आपने… एक आपका भाई है, जो लुल्ली घुसाते ही टपकने लगता है…
बाबूजी – अरे रानी, ये सब मेरी बहू की सेवा का कमाल है.. सच में खाने पीने का बहुत ख्याल रखती है मोहिनी बहू….!
कुछ देर बाद वो दोनो फारिग हो गये… बाबूजी चाची के बगल में पड़े हाँफ रहे थे…
चाची उनके नरम पड़ चुके लंड को अपने पेटिकोट से साफ करते हुए बोली..
जेठ जी ! मेरे नीलू को एक छोटी-मोटी बाइक ही दिलवा दीजिए… छोटू के पास बुलेट देखकर उसे भी मन करने लगा है…
बाबूजी – अभी पिछ्ले महीने ही मेने तुम्हें इतने पैसे दिए थे वो कहाँ गये..?
अब फिलहाल तो मेरे पास इतने पैसे नही है…. और रही बात छोटू की, तो उसे कृष्णा ने दिलाई है गाड़ी..!
चाची – अरे जेठ जी ! मे कोई ये थोड़े ना कह रही हूँ, कि उसे इतनी बड़ी गाड़ी ही दिलाओ… कोई छोटी-मोटी भी चलेगी..
बाबूजी – ठीक है.. रात को आना.. सोचके जबाब देता हूँ..कहकर उन्होने उसकी बड़ी-2 चुचियाँ मसल दी…
तभी मुझे बड़े चाचा अपने खेतों की तरफ से आते हुए दिखाई दिए…
मे फ़ौरन नीचे आकर छिप गया… जब वो भी उसी कमरे में घुस गये.. तो मे वहाँ से घर की ओर निकल लिया……!!
अपनी सोचों में डूबा हुआ मे, पता नही कब घर पहुँच गया…
भाभी ने मुझे देखा… आवाज़ भी दी… लेकिन मे अपनी धुन में सीधा अपने कमरे में चला गया.. और धडाम से चारपाई पर गिर पड़ा…
चाची किस बारे में बोली..? कुच्छ तो ऐसा है.. जो चाची मुझे समझाना चाहती हैं…?
यही सब सोच विचार करता हुआ मे अपने खेतों की तरफ बढ़ गया… अभी 4:30पीम हुए थे.. मे 15 मिनिट में अपने खेतों पर पहुँच गया…
जैसा मेने पहले बताया था, कि हमारे खेतों पर ही ट्यूबवेल है, उसी से चारों परिवारों के खेतों की सिंचाई होती है, जिसका वो बाकी के चाचा लोग कुच्छ मुआवज़ा देते हैं..
ट्यूबवेल पर हमने दो कमरे बना रखे हैं, जिसमें एक में पंप सेट लगा है, दूसरा उठने बैठने और सोने के लिए है…
ज़रूरत की सुविधाएँ उसी कमरे में मौजूद रहती हैं..
मे सीधा अपने ट्यूबवेल पर पहुँचा… कुच्छ मजदूर खेतों में लगे हुए थे.. ट्यूबवेल चल रहा था,
मुझे नही पता कि इस समय उसका पानी किसके खेतों में जा रहा था.
मे जैसे ही बैठक वाले कमरे के पास पहुँचा.. मुझे अंदर से आती हुई कुच्छ अजीव सी आवाज़ें सुनाई दी..
ट्यूबवेल के कमरों की छत ज़्यादा उँची नही थी, यही कोई दस - साडे दस फीट रही होगी..
उस कमरे के पीछे वाली दीवार में एक रोशनदान था, जो छत से करीब दो-ढाई फीट नीचे था..
मेने पीछे जाकर उछल्कर उस रोशनदान की जाली पकड़ ली, और अपने हाथों के दम से अपने शरीर को उपर उठा लिया…
जैसे ही मेने अंदर का नज़ारा देखा …. मेरी आखें चौड़ी हो गयी….
जिस बात की मेने अपने जीवन में कल्पना भी नही की थी, वो हक़ीकत बनकर मेरी आँखों के सामने था…
मे ये सीन ज़्यादा देर ना देख सका… सच कहूँ तो देखना भी नही चाहता था….
लेकिन तभी चाची के शब्द एक बार फिर मेरे कनों में गूंजने लगे.. “कुच्छ चीज़ें हैं जो तुम्हें जाननी चाहिए..”
तो क्या चाची ये सब जानती हैं..? या उन्हें सक़ था..?
अगर ये चीज़ें मुझे जाननी चाहिए… तो जाननी पड़ेगी…
उसके लिए मे किसी ऐसी चीज़ को खोजने लगा जो मुझे उस रोशनदान तक आसानी पहुँचा सके..
मेरी नज़र पास में पड़ी एक 4-5 फुट लंबी सोट..(मोटी सी लकड़ी) पर पड़ी..
बिना आवाज़ किए मेने उसे उठाके दीवार के सहारे तिरच्छा करके टिकाया और उस पर पैर जमा कर फिर से रोशनदान की जाली पकड़ कर खड़ा हो गया…
अंदर बड़ी चाची.. चंपा रानी … एकदम नंगी… अपनी टाँगें चौड़ी किए पड़ी थी…
उपर बाबूजी.. अपने मूसल जैसे लंड जो लगभग मेरे जैसा ही था, से उसके भोसड़े की कुटाई कर रहे थे..
उनकी मोटी-मोटी जांघे चाची के चौड़े चक्ले चुतड़ों पर थपा-थप पड़ रही थी…
चुदते हुए चंपा रानी हाए…उऊहह….सस्सिईइ…औरर्र…. ज़ॉर्सईए…चोदो…जेठ जी…जैसी आवाज़ें निकाल रही थी…
चंपा – हाअए जेठ जी… इस उमर में भी आपमें कितनी ताक़त है…हाए…मेरी ओखली कूट-कूट कर खाली करदी आपने… एक आपका भाई है, जो लुल्ली घुसाते ही टपकने लगता है…
बाबूजी – अरे रानी, ये सब मेरी बहू की सेवा का कमाल है.. सच में खाने पीने का बहुत ख्याल रखती है मोहिनी बहू….!
कुछ देर बाद वो दोनो फारिग हो गये… बाबूजी चाची के बगल में पड़े हाँफ रहे थे…
चाची उनके नरम पड़ चुके लंड को अपने पेटिकोट से साफ करते हुए बोली..
जेठ जी ! मेरे नीलू को एक छोटी-मोटी बाइक ही दिलवा दीजिए… छोटू के पास बुलेट देखकर उसे भी मन करने लगा है…
बाबूजी – अभी पिछ्ले महीने ही मेने तुम्हें इतने पैसे दिए थे वो कहाँ गये..?
अब फिलहाल तो मेरे पास इतने पैसे नही है…. और रही बात छोटू की, तो उसे कृष्णा ने दिलाई है गाड़ी..!
चाची – अरे जेठ जी ! मे कोई ये थोड़े ना कह रही हूँ, कि उसे इतनी बड़ी गाड़ी ही दिलाओ… कोई छोटी-मोटी भी चलेगी..
बाबूजी – ठीक है.. रात को आना.. सोचके जबाब देता हूँ..कहकर उन्होने उसकी बड़ी-2 चुचियाँ मसल दी…
तभी मुझे बड़े चाचा अपने खेतों की तरफ से आते हुए दिखाई दिए…
मे फ़ौरन नीचे आकर छिप गया… जब वो भी उसी कमरे में घुस गये.. तो मे वहाँ से घर की ओर निकल लिया……!!
अपनी सोचों में डूबा हुआ मे, पता नही कब घर पहुँच गया…
भाभी ने मुझे देखा… आवाज़ भी दी… लेकिन मे अपनी धुन में सीधा अपने कमरे में चला गया.. और धडाम से चारपाई पर गिर पड़ा…
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Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
कुच्छ देर बाद भाभी मेरे कमरे में आईं, मुझे अपने ख़यालों में उलझे हुए पाकर वो मेरे सिरहाने पैर लटका कर बैठ गयी… और मेरे सर पर हाथ फिराया…
मेने उनकी तरफ देखकर अपना सर उनकी जाँघ पर रख दिया… वो मेरे बालों में उंगलियाँ घूमाते हुए बोली –
मेरा प्यारा बाबू कुच्छ परेशान लग रहा है…क्या हुआ है.. मुझे नही बताओगे..?
मे – आपके अलावा मेरा और है ही कॉन जिससे मे अपने मन की बात कर सकूँ…?
भाभी – तो बताओ मुझे हुआ क्या है… जिसकी वजह से मेरा लाड़ला देवेर इतना परेशान है.?
मेने भाभी को तुबेवेल्ल पर देखी हुई सारी घटना बता दी…
भाभी कुच्छ देर सन्नाटे की स्थिति में बैठी रही… फिर बोली – तो तुमने चाचा के आने के बाद की बातें नही सुनी…!
मे – नही ! मे तो ये देख कर हैरान था, कि जब चाची ने चाचा के लिए गेट खोला था, तब भी वो आधे से ज़्यादा नंगी ही थी, सिर्फ़ पेटिकोट को अपने दूधों तक चढ़ाया हुआ था…
भाभी – हूंम्म… इसका मतलब… चाचा-चाची मिलकर बाबूजी को लूट रहे हैं.. अब तो जल्दी ही कुच्छ करना पड़ेगा…!
मे – अब आप क्या करने वाली हैं भाभी…? मुझे तो बड़ा डर लग रहा है..
भाभी मेरे बालों को सहलाते हुए बोली – अभी तो मुझे भी नही पता कि मे क्या करूँगी…?
पर तुम बेफिकर रहो.. तुम्हारी भाभी सब ठीक कर देगी…!
मे – मुझे आप पर पूरा भरोसा है..
फिर भाभी ने झुक कर मेरे गाल पर चूमा और बोली – ये सब छोड़ो… ये बताओ आज छोटी चाची के यहाँ सारा दिन क्या किया..?
मेने शर्म से अपना मूह उनकी साड़ी के पल्लू में छिपा लिया… तो उन्होने मेरे दोनो बगलों पर गुदगुदी करते हुए कहा….
ओये-होये… मेरे शर्मीले राजा... इसका मतलब चाची अब जल्दी ही माँ बनने वाली हैं… आन्ं.. बोलो… !
मेने हँसते हुए कहा… पता नही… हो भी सकता है…!
भाभी – हो नही सकता… होगा ही.. मुझे अपने देवर पर पूरा भरोसा है…
मे – पर भाभी ! सच में चाची में ही कोई कमी हुई तो…?
भाभी – तुम्हें लगता है.. चाची जैसी भरपूर जवान औरत में कोई कमी होगी..?
मुझे 110% यकीन है.. एक महीने के अंदर ही कोई अच्छी खबर सुनने को मिलेगी…! देख लेना तुम…!
मे – भगवान करे.. चाची माँ बन जाएँ.. इससे बड़ी खुशी मेरे लिए और क्या होगी…
भाभी हँसते हुए बोली… और अपने बाप बनने की भी… है ना…. !
इस बात पर हम दोनो ही बहुत देर तक हँसते रहे.. जिसे रामा दीदी सुनकर हमारे पास आई और पुछ्ने लगी..
क्या बात है.. देवर भाभी इतने खुश क्यों हो रहे हैं…?
तो भाभी ने उसे गोल-मोल जबाब देकर टरका दिया… और फिर वो उठकर खाने पीने के इंतेजाम में लग गयी…..!
रात 8 बजे हम सभी एक साथ खाना खा रहे थे… भाभी ने हम तीनों को खाना परोसा और वो भी एक खाली चेयर लेकर हमारे पास ही बैठ गयी..
बाबूजी के कहने पर ही अब उन्होने उनसे परदा करना छोड़ दिया था, बस सर पर पल्लू ज़रूर डाल लेती थी..क्योंकि बाबूजी उन्हें अपनी बेटी ही मानते थे…!
हमारा खाना ख़तम होने ही वाला था, तभी भाभी ने बातों का सिलसिला शुरू किया – बाबूजी ! आपसे एक बात करनी थी…!
बाबूजी – हां कहो मोहिनी बेटा..! क्या बात करनी है…??
भाभी – रूचि के पापा कह रहे थे, शहर में कोई ज़मीन देखी है इन्होने, अच्छे मौके की ज़मीन है.., बड़े देवर जी से भी बात की थी उन्होने,
तो उस ज़मीन के लिए उन्होने भी हां बोल दिया है.., वो दोनो भी कुच्छ पैसों का इंतेज़ाम कर सकते हैं.
लेकिन ज़मीन ज़्यादा है, उनका विचार है कि मिलकर तीनों भाइयों के नाम से ले ली जाए.. अगर बाबूजी कुच्छ मदद करदें तो..?
बाबूजी कुच्छ देर चुप रहे फिर कुच्छ देर सोच कर बोले – राम का विचार तो उत्तम है.. पर सच कहूँ तो बेटा… अभी मेरे पास कुच्छ भी नही है….
भाभी चोन्कने की आक्टिंग करते हुए बोली – ऐसा कैसे हो सकता है बाबूजी..?
माना कि, सालों पहले जब वो दोनो भाई पढ़ते थे, तब खर्चे भी ज़्यादा थे..
लेकिन दो-तीन सालों से तो कोई ऐसा खर्चा भी नही रहा,
उपर से दोनो भाई जब भी आते हैं, कुच्छ ना कुच्छ देकर ही जाते हैं…
आपकी तनख़्वाह, खेतों की आमदनी…ये सब मिलाकर काफ़ी बचत हो जाती होगी,
मे तो समझ रही थी कि आपके पास ही इतना तो पैसा होगा कि उनको कुच्छ करने की ज़रूरत ही ना पड़े…!
बाबूजी थोड़े तल्ख़ लहजे में बोले – तो अब तुम मुझसे हिसाब-किताब माँग रही हो बहू..?
भाभी – नही बाबूजी ! आप ग़लत समझ रहे हैं… मे भला आपसे कैसे हिसाब माँग सकती हूँ..?
मे तो बस कह रही थी, कि कुच्छ समय पहले आप अकेले ही कमाने वाले थे, और खर्चे पहाड़ से उँचे थे, फिर भी आपने किसी बात की कोई कमी नही होने दी किसी को भी…,
पर अब तो इतने खर्चे भी नही रहे उपर से आमदनी भी बढ़ी है.. तो स्वाभाविक है कि बचत तो ज़्यादा होनी ही चाहिए….!
- Kamini
- Novice User
- Posts: 2112
- Joined: 12 Jan 2017 13:15
Re: लाड़ला देवर ( देवर भाभी का रोमांस)
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