Incest मम्मी मेरी जान
- SATISH
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Re: मम्मी मेरी जान
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Re: मम्मी मेरी जान
उन्होनो उसकी मम्मी जैसी सुन्दर, निहायत खूबसूरत और बेहद सेक्सी औरत को उस बच्चे जैसे छोटे से लंड के बावजूद किस तरह अपने पास सम्भाला हुआ था, पूरी तरह उसकी समज से बाहर था. और इस तरह इस सब की शुरुवात हुयी.पहले वह अपनी बहन मोना का दीवाना था पर अब वह अपनी मम्मी का भी दीवाना हो गया अब
उसने अपनी मम्मी को एक औरत की नज़र से देखना शुरू कर दिया न के एक मम्मी की तरह. वो बहुत ही खूबसूरत थी और उम्र के हिसाब से उसका जिस्म बेहद आकर्षक था. डैड बहुत ही हैंडसम थे, तगड़े जिस्म के मालिक, अच्छे स्वभाव के और पढ़े लिखे मगर इन सब के बावजूद मम्मी को जरूर उनकी टांगों के बिच की कमी खलती होगी और वो जरूर इच्छा करती होगी की काश डैड का वो अंग भी उनके बाकि अंगों की तरह लम्बा तगड़ा होता! शायद मम्मी को शादी हो जाने तक इस बारे में पता नहीं चला था और जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी. तो इसका मतलब शादी से पहले उन्होनो कभी चुदाई नहीं की थी .
जितना वह इस बारे में सोचता उतनी ही उसकी ख्वाहिश बढ़ती जाती के मम्मी को अपना दिखाऊ. सतीश हर बार खुद को चेताता था. कितना ऊटपटाँग और मूर्खतापूर्ण विचार था. सतीश अपनी काल्पनिक दुनिया में अपने खयाली पुलाव पका रहा था. मगर घंभीरता से सोचने पर उसे लगता के मेरी किसी ऐसी हरकत की प्रतिक्रिया में वो बेहद्द क्रोधित हो सकती थी. 'खुद पर क़ाबू रखो' वह अपने आप से दोहराता. घर का ख़ुशनुमा माहोल, मम्मी का लाड़-दुलार पाकर वह अपनी उद्ण्डता के लिए खुद को धिक्कारना बंद कर देता और उसकी इच्छा फिर से बलवति होने लगती. हर बार इस ख्याल मात्र से के वह अपनी मम्मी को अपना नंगा लंड दिखा रहा है, सतीश का लंड खड़ा हो जाता था.
सतीश अपने दिमाग में कई परिदृश्यों की कल्पना करता जिनमे कुछ वास्तविक हो सकते थे मगर ज्यादातर असलियत से कोसो दूर था. कुछ संजोगिक होते तो कुछ जानबूझकर.
सतिशने आखिर आगे बढ्ने का फैसला किया. सुरुआत में सतिशने लापरवाही की कुछ घटनाओ का सहारा लिया. सतीश जानबूझकर ऐसे जाहिर करता के पयजामे के अंदर अर्ध कठोर लंड के बारे में उसे कोई होश ही नहीं है या फिर उसके बॉक्सर्स के किनारे से झाँकते सुपाडे की उसे कोई जानकारी नहीं है. मगर जल्द ही अपनी इस लापरवाही के दिखावे से आगे बढ़ गया और ऐसे तरीके अपनाने लगा के उसे साफ़ साफ़ पता चल जाये के वह यह सब जानबूझकर कर रहा है कोई भी ऐसी हरकत करने के बाद सतीश को टॉयलेट भागना पडता ताकि वह जल्द से जल्द मुठ मार सके और खुद को लंड की दर्दभरी अकडन से छुटकारा दिला सके. सतीश मुट्ठ मारते हुये ऑंखे बंद कर लेता ताकी वह उस अनिच्छुक आनंद को महसूस कर सके जो मम्मी यक़ीनी तौर पर उसके असलि, मर्दो वाले लंड को देखने से हासिल करती थी.
सतिशने कभी भी मुट्ठ मारते हुये मम्मी द्वारा अपना लंड छुये जाने की कल्पना नहीं की थी, क्योंके असल में उसके पास इतना समय ही नहीं होता था. सतीश उसी समय झड जाता था जब कल्पना में मम्मी के चेहरे पर हैरत के भाव बदल कर कमोत्तेजना का रूप ले लेते और वो सतीश का लंड पकडने के लिए हाथ आगे बढाती थी.......
ओर ऐसे इसका धीरे धीरे अंत हो जाता? मगर नहि. अंत-तहा होना तो एहि चाहिए था के वह अपनी मम्मी को लेकर अपनी फैंटसी से आखिरकार थक जाता और मुट्ठ मारने के लिए नयी कल्पनायों का सहारा लेता. मगर नहि, उसके साथ ऐसा नहीं हुआ. सतीश इतना 'समझदार' नहीं था. डैड की तीखी सोच विचार क्षमता उस में नहीं थी. सतिशने अपनी कल्पना को वास्तविकता में बदलने दिया. सतीश स्कूल से घर जाते ही एक छोटा सा बॉक्सर पहन कर घर में घूमता फिरता ताकि मम्मी का ध्यान उसकी जांघों के बिच झूलते उसके तगड़े लंड की और जाये.वह हालांकि, टीवी पर किसी प्रोग्राम देखने को लेकर या किसी किताब को पढ़ने को लेकर जबरदस्त दिलचस्पी का दिखावा करता मगर सतीश का पूरा ध्यान उसकी सारी इन्द्रियां इसी पर केन्द्रीत होती के वह मम्मी की और से किसी इशारे या संकेत को पढ़ सके के उसका ध्यान उसके लंड की और जा रहा है के नही.
उसने अपनी मम्मी को एक औरत की नज़र से देखना शुरू कर दिया न के एक मम्मी की तरह. वो बहुत ही खूबसूरत थी और उम्र के हिसाब से उसका जिस्म बेहद आकर्षक था. डैड बहुत ही हैंडसम थे, तगड़े जिस्म के मालिक, अच्छे स्वभाव के और पढ़े लिखे मगर इन सब के बावजूद मम्मी को जरूर उनकी टांगों के बिच की कमी खलती होगी और वो जरूर इच्छा करती होगी की काश डैड का वो अंग भी उनके बाकि अंगों की तरह लम्बा तगड़ा होता! शायद मम्मी को शादी हो जाने तक इस बारे में पता नहीं चला था और जब पता चला तब तक बहुत देर हो चुकी थी. तो इसका मतलब शादी से पहले उन्होनो कभी चुदाई नहीं की थी .
जितना वह इस बारे में सोचता उतनी ही उसकी ख्वाहिश बढ़ती जाती के मम्मी को अपना दिखाऊ. सतीश हर बार खुद को चेताता था. कितना ऊटपटाँग और मूर्खतापूर्ण विचार था. सतीश अपनी काल्पनिक दुनिया में अपने खयाली पुलाव पका रहा था. मगर घंभीरता से सोचने पर उसे लगता के मेरी किसी ऐसी हरकत की प्रतिक्रिया में वो बेहद्द क्रोधित हो सकती थी. 'खुद पर क़ाबू रखो' वह अपने आप से दोहराता. घर का ख़ुशनुमा माहोल, मम्मी का लाड़-दुलार पाकर वह अपनी उद्ण्डता के लिए खुद को धिक्कारना बंद कर देता और उसकी इच्छा फिर से बलवति होने लगती. हर बार इस ख्याल मात्र से के वह अपनी मम्मी को अपना नंगा लंड दिखा रहा है, सतीश का लंड खड़ा हो जाता था.
सतीश अपने दिमाग में कई परिदृश्यों की कल्पना करता जिनमे कुछ वास्तविक हो सकते थे मगर ज्यादातर असलियत से कोसो दूर था. कुछ संजोगिक होते तो कुछ जानबूझकर.
सतिशने आखिर आगे बढ्ने का फैसला किया. सुरुआत में सतिशने लापरवाही की कुछ घटनाओ का सहारा लिया. सतीश जानबूझकर ऐसे जाहिर करता के पयजामे के अंदर अर्ध कठोर लंड के बारे में उसे कोई होश ही नहीं है या फिर उसके बॉक्सर्स के किनारे से झाँकते सुपाडे की उसे कोई जानकारी नहीं है. मगर जल्द ही अपनी इस लापरवाही के दिखावे से आगे बढ़ गया और ऐसे तरीके अपनाने लगा के उसे साफ़ साफ़ पता चल जाये के वह यह सब जानबूझकर कर रहा है कोई भी ऐसी हरकत करने के बाद सतीश को टॉयलेट भागना पडता ताकि वह जल्द से जल्द मुठ मार सके और खुद को लंड की दर्दभरी अकडन से छुटकारा दिला सके. सतीश मुट्ठ मारते हुये ऑंखे बंद कर लेता ताकी वह उस अनिच्छुक आनंद को महसूस कर सके जो मम्मी यक़ीनी तौर पर उसके असलि, मर्दो वाले लंड को देखने से हासिल करती थी.
सतिशने कभी भी मुट्ठ मारते हुये मम्मी द्वारा अपना लंड छुये जाने की कल्पना नहीं की थी, क्योंके असल में उसके पास इतना समय ही नहीं होता था. सतीश उसी समय झड जाता था जब कल्पना में मम्मी के चेहरे पर हैरत के भाव बदल कर कमोत्तेजना का रूप ले लेते और वो सतीश का लंड पकडने के लिए हाथ आगे बढाती थी.......
ओर ऐसे इसका धीरे धीरे अंत हो जाता? मगर नहि. अंत-तहा होना तो एहि चाहिए था के वह अपनी मम्मी को लेकर अपनी फैंटसी से आखिरकार थक जाता और मुट्ठ मारने के लिए नयी कल्पनायों का सहारा लेता. मगर नहि, उसके साथ ऐसा नहीं हुआ. सतीश इतना 'समझदार' नहीं था. डैड की तीखी सोच विचार क्षमता उस में नहीं थी. सतिशने अपनी कल्पना को वास्तविकता में बदलने दिया. सतीश स्कूल से घर जाते ही एक छोटा सा बॉक्सर पहन कर घर में घूमता फिरता ताकि मम्मी का ध्यान उसकी जांघों के बिच झूलते उसके तगड़े लंड की और जाये.वह हालांकि, टीवी पर किसी प्रोग्राम देखने को लेकर या किसी किताब को पढ़ने को लेकर जबरदस्त दिलचस्पी का दिखावा करता मगर सतीश का पूरा ध्यान उसकी सारी इन्द्रियां इसी पर केन्द्रीत होती के वह मम्मी की और से किसी इशारे या संकेत को पढ़ सके के उसका ध्यान उसके लंड की और जा रहा है के नही.
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Re: मम्मी मेरी जान
बढ़िया अपडेट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
मांगलिक बहन....एक अधूरी प्यास- 2....Incest सपना-या-हकीकत.... Thriller कागज की किश्ती....फोरेस्ट आफिसर....रंगीन रातों की कहानियाँ....The Innocent Wife ( मासूम बीवी )....Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा ).....फिर बाजी पाजेब Running.....जंगल में लाश Running.....Jalan (जलन ).....Do Sage MadarChod (दो सगे मादरचोद ).....अँधा प्यार या अंधी वासना ek Family ki Kahani...A family Incest Saga- Sarjoo ki incest story).... धड़कन...
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Re: मम्मी मेरी जान
bhai update mast hai
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