Adultery ओह माय फ़किंग गॉड

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rajsharma
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

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अचानक इस हरकत से सोमा एक ज़ोरदार आवाज के साथ उछली – “हाय रे. मर गयी माईईईईईईईइ”

उसकी सिसकारी की आवाज इतनी तेज थी की मुझे डर लगा की कहीं पड़ोस वाले सुन ना ले. मैंने जल्दी से हथेली उसकी मुँह पर रखा. वह एक बार मुझसे नज़र मिलाई फिर आंख बंदकर सोफे पर ढेर हो गयी. मैं तौलिये का एक छोर उसकी मुँह में डाला और फिर से उसकी चूत को दोनों ऊँगली से चोदने लगा. अब् उसकी मुँह से गु-गु की आवाज आ रही थी. वह लगातार अपने कमर को उछाल रही थी. मुझे भीअब बर्दास्त नहीं हो रहा था. एक हाथ से सोमा को चोद रहा था दूसरी हाथ से मैंने मुठ मरने लगा. अब सोमा की चूत गीली होने लगी. उसकी मुँह से गु-गुवाहट की आवाज बड़ने लगी. मैंने फिर ऊँगली और मुँह दोनों से उसकी चूत को मज़ा देने लगा. मेरा लंड भी पानी छोड़ने को तैयार होने को था, लेकिन मैं इतनी जल्दी झड़ने वाला नहीं था. मै लंड को छोड़ सोमा की चूत को जोर-जोर से चोदने लगा. अब वह आनंद की चरम सीमा पर पहुँच गयी थी. उसका बदन जोर-जोर के झटके देने लगा. उसकी चूत से तेज महक आ रही थी. चंद सेकंड में एक झटके के साथ पानी की तेज धार निकली जो मेरे चेहरे पर आ लगी. चूत की पिचकारी काफी तेज थी जो रुकने का नाम नहीं ले रही थी. मैं उसकी चूत पर जोर से चपत लगा रहा था. आखिर में सोमा का शरीर एक आखिरी झटके से साथ शान्त हो गया. अब मैं उसकी जन्घो के बीच खड़े होकर लंड को तेजी से आगे-पीछे करने लगा. मेरा लंड तो तैयार हो था इसलिए ज्यादा इन्तेजार नहीं करना पड़ा. 5-7 झटको में ही मेरा काम तमाम हो गया. बिर्य की तेज धार उछाल कर सोमा की चुचियों पर पड़ी. मैं सोफे पर निढाल होकर गिर पड़ा और सोमा के बगल में लेट गया. वह अभी भी हल्की आवाज में सिसिकारी ले रही थी. उसने मुझे अपनी और खींचकर मेरे सीने में सर टिककर लेट गयी. हम दोनों काफी ज्यादा थक गए थे लेकिन रात अब भी बाकी है.



मैं और सोमा दिन भर के काम-क्रीड़ा से काफी थक गए थे. सोफ़ा पर हमदोनो एक-दुसरे से चिपक के सोये थे बिना हरकत के. सेक्स के बाद भूख भी जोरो की लगी थी लेकिन किचन जाकर खाना बनाने की कोई इच्छा नहीं हो रही थी. अभी 5 मिनट हुए ही थे की बाहरी दरवाजे पर जोर की दस्तक हुई. मैं घबराकर खड़ा हुआ. सोमा शायद मदहोशी में थी. आधा आँख खोलते हुए कहा – “क्या हुआ बाबु? कौन आया है?”

मैंने जल्दी से उसको चुप कराकर फुसफुसाकर कहा – “एकदम आवाज मत करो. तुम बाथरूम में छुप जाओ. जबतक मैं ना बुलाऊ बाहर मत आना और बिल्कुल आवाज मत करना.”

सोमा बेमानी ढंग से नंगी ही बाथरूम चली गयी. अन्दर से उसने दरवाजा लगा लिया. दरवाजे पर फिर से दस्तक हुई. इस बार ज्यादा जोर से हुई. मैं तो बिल्कुल घबरा गया. जल्दी से पायजामा डाला ऊपर से टी-शर्ट डाली और कांपते हाथो से दरवाजा खोला. बाहर रीता काकी खड़ी थी. रीता काकी मेरे पडोसी है और मेरी माँ के साथ काफी अच्छा नाता है. काका बहुत पहले गुजर चुके है. एक ही बेटा है जो मुझसे 4 साल बड़ा है, शादी हो चुकी है अभी कोई बच्चा नहीं हुआ है. हालाँकि काकी बहुत अच्छी है और माँ की अनुपस्थिति में मेरे परिवार का ख्याल रखती है. लेकिन सिर्फ उसके बेटे के सिवा मैं किसी से कभी ज्यादा बात नहीं की. खैर, वापस घटना पर आते है.

रीता काकी बोली – “बिनी क्या सोये हुए थे? किसी की जोर से चिल्लाने की आवाज आई.”

मेरी तो गांड फटकार हाथ में आ गयी थी. कहीं ये घर घुसकर तलाशी न ले. मैंने अपने आपको सम्हालते हुए कहा – “हाँ काकी. गहरी नींद में था. बुरा सपना देखा रहा था इसलिए चीख़ पड़ा.” हालाँकि यह मेरी ज़िन्दगी का सबसे हसीन सपना था.

काकी थोड़ी देर सोचने के बाद बोली – “ठीक है, मुँह हाथ दो लो. आठ बज गए है. खाना बनाने की जरूरत नहीं है, मैं पूर्णिमा से खाना भिजवा देती हूँ.”

मैंने काकी को शुक्रिया कहा और दरवाजे को बंद कर कमरे में आया. पूर्णिमा काकी की बहु थी. अभी 2 साल पहले उसके बेटे की शादी हुई है लेकिन अभी तक कोई बच्चा नहीं हुआ है. मैंने कभी भाभी को गौर से नहीं देखा था न ही कभी बात भी की थी. मैं घर और मोहल्ले में एक शरीफ, कम-बोलनेवाला और सीधा लकड़ा था. मोहल्ले की लड़कियों या भाभियों से कभी भी बात नहीं करता था. मैंने घर के अन्दर देखा. सोमा और मेरे कपड़े बिखरे पड़े थे. मैंने सबको समेटकर बाथरूम ले गया. दरवाजा खटखटाने के वावजूद सोमा दरवाजा नहीं खोल रही थी. काफी दस्तक देने के बाद वो दरवाजा खोलती है. मैंने कपड़े को बास्केट में डाला. शायद सोमा की आँख लग गयी थी.

वह मेरी ओर सवालिया नजरो से घुरी. मैंने उसकी गालो को प्यार से सहलाते हुए कहा – “रानी, थोड़ी देर और यहाँ रहो. ठीक है?”

वह हाँ में सर हिलायी और फिर से दिवार से माथा टिककर आँख बंद कर ली. मैं बाहर सोफ़ा पर बैठ पूर्णिमा भाभी का इंतज़ार करने लगा. लगभग आधे घन्टे के बाद दरवाजे पर दस्तक हुई. मैंने दरवाजा खोला तो दंग रह गया. पहली बार पूर्णिमा भाभी को सामने से देखा. दुधिया गोरा रंग, भरा हुआ बदन, मोटे भारी कुल्हे, मोटी बाहें, बड़ी-बड़ी लेकिन टाइट स्तन और लम्बाई लगभग 5 फीट.

मुझे देख मुस्कुरा के बोली – “मम्मीजी ने खाना भेजा है.” और खाने का डब्बा आगे बढ़ा दी.

मैंने डब्बा लिया और कहा – “अन्दर आईये ना”

वह अन्दर आते बोली – “चाचीजी कब आने वाली है?”

मैंने कहा - “कल, आप कैसी है भाभी?”

वह एक मुस्कान से साथ मेरी और मुड़ी, मुझे ऊपर से निचे तक देखी फिर मेरे गाल पर एक चिकोटी कट कर बोली – “कैसी है भाभी...... आज तक कभी भाभी से बात नहीं किया. कभी हाल-चाल नहीं पूछा और आज घर आई हूँ तो कैसी हूँ?”

मैं थोड़ा लजाते हुए बोला – “वोह दरअसल कभी हालात ही नहीं हुए.”

भाभी बनावटी गुस्से से बोली – “बिन्नी यार , तुम बड़े चम्पू हो. इतना शरमाते क्यों हो? पता नहीं तुम्हारी बीबी का क्या हाल होगा. वैसे कब मेरी देवरानी ला रहे हो?”

मैं थोड़ा झेंप गया. बड़ी मुस्किल से बोला – “देखता हूँ शायद अगले साल.”

वह जाने को दरवाजे की ओर मुड़ी. जाते जाते मेरे लंड को कपड़े के ऊपर से दबाते होय बोली – “ठीक है, मैं चलती हूँ. कल डिब्बा भिजवा देना.”

“जी ठीक है भाभी. गुड नाईट” वह तेज क़दमों से निकल गयी. उसके जाने के बाद मैं दरवाजा बंद किया.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

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मैंने देखा सोमा हँसते हुए बाथरूम से निकल रही है. वह मेरी टी-शर्ट पहनी थी लेकिन कमर के नीचे से नंगी थी. मैंने पूछा- “क्यों हंस रही हो?”

उसने शायद मेरी और भाभी की बात सुन ली थी. बोली – “बाबु, वह औरत जो आई थी ना, वह तुमको चाहती है.”

मैंने बिरोध करते हुए कहा – “क्या बोल रही हो? वह तो मेरे साथ मजाक कर रही थी. मैं उससे कभी मिला ही नहीं.”

सोमा पास आकर मेरा हाथ पकड़ कर बोली – “मैं जानती हूँ बाबु. वह मन में तुमको चाहती है. अगर कहूँ तो तुम्हारा लोहा चाहती है.”

मैंने हैरानी में कहा – “लोहा???”

वह मेरे लंड को जोर से दबाकर मसलते हुए बोली – “हाँ तुम्हारा लोहा.”

“शिशिशिशी......” मेरे मुँह से जोर की सीत्कार निकल गयी.

“चलो खाना खाते है”, मेरे हाथ से डब्बा लेकर वह खाने के टेबल की ओर बढ़ी.

मेरे मन में ख्यालो और सवालो से बदल घुम रहे थे. क्या सही में पूर्णिमा भाभी मुझे चाहती है. या मेरे लोहे यानी मुझसे सेक्स करना चाहती है? क्या उसका पति उसको संतुष्ट नहीं करता है? या उसको पराये मर्द की आदत है? खैर मुझे उससे क्या. जो होगा देखा जायेगा.

टेबल पर सोमा खाना निकाल चुकी थी. रोटी, सलाद और चिकेन था. हमदोनो दिनभर के भूखे, खाने पर टूट पड़े. मैंने सोमा से पूछा – “अच्छा तुम्हे कैसे पता चला की पूर्णिमा भाभी मेरा लोहा चाहती है?”

वह हँसते हुए बोली – “बाबु मैं एक औरत हूँ. औरत को जानती हूँ. मैंने देखा बाथरूम से, जब वह तुमको गाल पर चिकोटी काटी तो उसकी छाती उभर गयी. उसकी मम्मे टाइट हो गई. उसकी आखें तुम्हारी पायजामे पर थी. तुम बस उसको भाव देते रहना, देखना तुमसे जरूर अपनी मुनिया बजाएगी.” और जोर से हंस दी.

उसकी बात पर मैं भी हंसा. अगले 15 मिनट में हमने खाना ख़त्म कर प्लेटे सिंक में डालकर हाथ धोए और बेडरूम पहुंचे. आज गर्मी कुछ ज्यादा थी. अन्दर आराम नहीं लग रहा था इसलिए मैंने सोमा को छत में जाने का प्रस्ताव दिया. सोमा आनाकानी करने लगी, उसे डर था की कोई हमे देख लेगा. मैंने कहा की हम दूसरी मंजिल के छत में जायेंगे जिसकी दीवारे ऊँची है और यहाँ किसी का मकान उतना ऊँचा नहीं है. कोई हमें चाहकर भी नहीं देख पायेगा. आखिर में वह राजी हुई. मैं एक गद्दा लेकर छत में चढ़ गया. साथ में ठंडी पानी की बोतल, एक तौलिया और कंडोम का पैकेट. हमारी आखिरी पारी छत में खुले असमान में खेली जाने वाली थी.



रात के लगभग 10 बज रहे थे जब हम छत पर पहुंचे. हल्की चांदनी छाई थी और मद्धम पुरवा भी चल रही थी. हमने छत के बीचो-बीच गद्दा बिछाया और मैं बीच में लेट गया. लेटते हुए मैंने अपने कपड़े निकले और सोमा की और ललचाई नजरो से देखने लगा. वह सिर्फ टी-शर्ट पहने हुए थी. उसने धीरे-धीरे दोनों हाथ ऊपर करते हुए शर्ट निकली जैसे स्ट्रिप कर रही हो. अब वह बिल्कुल नंगी कमर को थोड़ा लचककर मुँह में एक ऊँगली डाले खड़ी थी और मुस्कुरा रही थी. जैसे वह मेरे पहल का इंतज़ार कर रही हो.

हल्की चांदनी में उसका सांवला बदन खजुराहो की मूरत लग रही थी. मैंने उसे इशारे से अपने पास बुलाया. वह उसी कामुक अंदाज़ में कमर लचकाकर अपनी चूतड़ मटकाते हुए मेरे पास आई और पैरों को मोड़ते हुए मेरी कमर के बगल में बैठ गयी. मेरे एक हाथ को पकड़ कर एक ऊँगली अपने मुँह में डाल दी और चूसने लगी. उसकी आँखें वासना से लाल थी. ऊँगली को लोलीपोप की भांति जोर-जोर से चूसने लगी और मेरी धड़कन बढ़ने लगी. उसने मेरे दुसरे हाथ को अपनी दायीं चुंची पर रख दी और मैं अच्छे बच्चे की तरह उसकी चूची को दबाने लगा. उसकी चूची कठोर हो गयी थी. मेरे माथे पर पसीने की बुँदे आने लगी और मेरा लंड पुरे शबाब में आ गया.



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अब सोमलता दोनों जन्घो को चीरते हुए मेरे कमर पर बैठ गयी और मेरे होंठो को चूसने लगी. उसकी गांड की दरार मेरे लंड के ऊपर थी और वह लगातार कमर को ऊपर-निचे कर मेरे लुंड को रगड़ रही थी. मैं उसकी पीठ को मसल-सहला रहा था. उसकी सख्त चूचियां मेरे सीने पर गड़ रही थी. गर्मी की वजह से उसका भी बदन पसीने से भींग गया था और उसकी बगलों के पसीने से भींगे बालो से तेज़ महक आ रही थी. भले यह महक किसी को गन्दी बदबू लग सकता है. लेकिन एक लड़के को किसी औरत के बगलों की पसीने की महक भी उसके लिंग में तूफान लाता है.

सोमा ने मेरी जीभ को होंठो से पकड़कर चूसने लगी और इस क्रम में हमारा ढेर सारा लार बहकर मेरे बदन पर गिरने लगा. उसकी होंठो की पकड़ इतनी मजबूत थी की लगता था जैसे मेरे जीभ को खींच कर निकल लेगी. मैं बाजी पलटी, उसकी बालो को जोर से पकड़ते हुए उसकी गर्दन को चूमने लगा. उसके गले से हल्की गुर्राहट निकल रही थी. उसकी गर्दन और छाती को जीभ से चाटना शुरू किया, जिसने उसको गरम कर दिया जिसका अहसास मेरी कमर पर राखी उसकी गीली चूत दे रही थी. बदन पर लगे पसीने की नमकीन स्वाद को चाटते हुए उसकी चुचियों को मुँह से डालकर चूसने लगा. कभी उसकी चूची को दांत से जोर से काट देता तो कभी निप्पल खिंच के चूसता. उसकी गले से अब सिसिकारी निकल रही थी. अपने बदन को मेरे बाँहों से पकड़ से छुड़ाना चाहती और मैं ज्यादा कसकर उसको पकड़ लेता. उसकी चूतड़ लगातार मेरे लिंग को रगड़ रही थी. मेरे लिंग में तनाव बड़ने लगा इसलिए मैंने और इंतज़ार नहीं कर जल्दी से मेरा कड़क लंड उसकी चूत में डालना चाहता था. मैंने सोमा को कमर से पकड़कर उल्टा घुमाया और उसे पेट के बल गद्दे पर पटका.

वह थोड़ा गुर्राई और बोली – “साले कमीने, मैं कोई तेरी छिनाल हूँ जो इतनी जोर से पटक रहा है?”

मैंने उसकी गांड को चुमते हुए कहा – “नहीं सोमा डार्लिंग, तू तो मेरी रानी है. अब आराम से करूँगा.” मैंने उसकी कमर को थोड़ा उठाया और उसकी टांगो को मोड़ते हुए कुतिया बनाया. मैंने लंड को कंडोम पहनाया और उसकी चूत को ऊँगली करने लगा. उसकी चूत पहले की अपना रस छोड़ चूका था. मैंने लंड के सुपारे को चूत के मुँह पर लगाया और कमर को थोड़ा-सा धक्का देते हुए ठेल दिया. लंड बिना किसी मुस्किल के गीली चूत में सरसराते हुए अन्दर चला गया. लंड का एक-तिहाई हिस्सा अभी भी बाहर था. मैंने लंड को थोड़ा बाहर खींचते हुए फिर से एक ज़ोरदार धक्का मारा. इस बार पूरा लंड उसकी चूत में समां गया और दोनों के गांड आपस में जोर से टकरा गया. इस टक्कर ने सोमा को बुरी तरह से हिला दिया. वह दोनों हाथो से कसकर गद्दे को पकडे रही और मैं जोर-जोर से धक्के मरने लगा. उसके गले से मीठी सिसकारी निकल रही थी जो मुझे और उकसा रही थी. मैंने लंड को पूरा बाहर निकल कर एक ही टक्कर में पूरा धकेल दिया. लंड चूत की दीवारों को फाड़ते हुए दाखिल हुआ.

सोमा दर्द से बिलबिला उठी. लगभग मुझे धकेलते हुए सीधी लेट गयी और जोर-जोर से साँस लेने लगी. मेरा लंड पुच्च की आवाज के साथ निकल आया. सोमा आंख बंद कर सांसे भर रही थी और खुद ही मम्मो को मसल रही थी.

मैंने झुककर उसकी नाभि को चूमना शुरू किया और उसके कान के पास जाकर पूछा – “रानी, तैयार हो?”

वह हाँ में सर हिलाई बगैर आंख खोले. मैंने उसकी एक टांग को कंधे पर चढ़ाया और लंड को फिर से चूत से सटाकर रगड़ने लगा. मैं उसको तडपना चाहता था. जब सोमा से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने खुद लंड को पकड़ कर चूत में डालने लगी. मैंने लंड से उसकी हाथ को हटाया और एक ही धक्के में पूरा अन्दर डाल दिया. मेरा साँस फूलने लगा. मैं थोड़ी देर रुक लम्बी सांसे भरने लगा.

मेरे रुक जाने से सोमा आंख खोलकर मुझे देखने लगी. बोली – “बाबु, तुम्हारे पांव पड़ती हूँ, अब मत तरसाओ.”

मैंने फिर से धक्के चालू किया लेकिन धीरे धीरे. उसकने अपने टांग से मेरे कंधे को कसते हुए मुझे अपने ओर खींचने लगी. मैंने अपनी गति बड़ाई और जोर धक्के के साथ चोदने लगा. उसकी गीली चूत और मेरे कंडोम लगे लिंग से फच्च-फच्च की आवाज तेज़ होने लगी. 30 धक्को के बाद मेरा लावा निकला. पसीने से तर-बतर मैं सोमा के ऊपर गिरा गया और मेरा लंड फिसलकर बाहर आ गया. सोमा और मैं एक-दुसरे के सूखे गले को लार से भिंगाने में लगे थे. मैंने लुंड से कंडोम को निकलना भी जरूरी नहीं समझा और सोमा को बाँहों में लेकर सो गया.

भोर की उजाले और चिडियों की आवाज से मेरी नींद खुली. सुबह होने से पहले ही सोमा को बाहर भेजना जरूरी था. अगर कोई देख ले तो मेरी हालत पतली होना तय था. मैंने उसको उठाया. वह आधी आंख खोले मुझे घुर रही थी. मैंने जल्दी से कपड़े समेटे और सोमा को पकड़ कर निचे उतरने लगा. नीचे उतरने के समय लगा की कोई हमे बगल से छत से देख रहा है. घर के खिड़की से देखा की पूर्णिमा भाभी छत पर खड़ी हमारे घर की ओर देख रही. मेरी हालत तो us चोर के जैसे हो गई जो रंगे हाथो पकड़ा गया हो. खैर जो होगा देखा जायेगा, यह सोच कर मैं नीचे घर में आया. तब तक सोमा भी अपने कपड़े पहन कर बाहर बरामदे में आ चुकी थी. मैंने उसको शाम को दोस्त के बीबी की पार्लर में आने का कहकर विदा किया क्योंकि अभी मोहल्ले वाले उसको मेरे घर में देख ले तो बवाल खड़ा हो जायेगा. सोमा मुझे एक चुम्मा देकर भरी मन से निकल गयी. अब मुझे पूर्णिमा भाभी को अपने बोतल में उतरना पड़ेगा अगर उसने सही में मुझे और सोमा को चुदाई करते देखा है तो. वरना मुझे कोई डर नहीं.
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