Incest अनैतिक संबंध

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rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध

Post by rajsharma »

मैं: वो सब इसलिए कह रही थी क्योंकि मैं उनकी बेटी को मुफ्त में पढ़ाता था. हॉस्टल का खाना कितना वाहियात होता था.इसलिए वो बदले में मुझे घर का खाना खिलाया करती थी और इसी कारन उनका अपनापन मेरे प्रति थोड़ा ज्यादा हे. इससे ज्यादा उन्होंने कभी कुछ नहीं कहा.
पिताजी: तो कब करेगा तू शादी?
मैं: पिताजी एक बार नौकरी पक्की हो जाये, पैसा अच्छा कमाने लगूँ तो मैं शादी कर लुंगा.
ताऊ जी: तुझे पैसे की क्यों चिंता है? इतना बड़ा खेत.....
मैं: (उनकी बात काटते हुए) मुझे अपने पाँव पर खड़ा होना हे. जब मुझे लगेगा की मैं अपने पाँव पर खड़ा हो गया हूँ तो मैं आपको खुद बता दूँगा और शायद आप भूल रहे हैं की आपने वादा किया था!
मेरा इतना कहना था की उन्हें अपना वादा याद आ गया और उन्होंने आगे कुछ नहीं कहा. बस गुस्से से मुझे एक बार देखा और फिर खाना खाने लगे. खाने के बाद मैं ऊपर आ गया और छत पर चक्कर लगाने लगा. घंटे भर बाद आशु भी खाना खा के ऊपर आ गई और मुझे इस तरह गुम-सुम छत पर टहलते हुए देखने लगी. जब मेरी नजर उस पर पड़ी तो मैं ने पाया की वो बड़ी गौर से मुझे देख रही थी और मन ही मन कुछ सोच रही थी. "क्या हुआ जान?" मेरी आवाज सुन कर वो होश में आते हुई बोली; "कुछ नहीं... बस ऐसे ही आपको देख रही थी. आपके जितना प्यार करने वाले को पा कर आज मुझे खुद पर बहुत गर्व हो रहा हे.” आगे कुछ बोलने से पहले ही भाभी आ गई और उन्होंने आशु को बिस्तर लाने को कहा. आज सभी औरतें छत पर सोने वाली थीं सो मैं उतर के अपने कमरे में लेट गया.अगली सुबह मुझे जल्दी जाना था तो मैं बिना नाश्ता किये जाने लगा तो आशु भाग के मेरे पास आई और परांठे जो की उसने पैक कर दिए थे मुझे दे दिए और नीचे चली गई.
कुछ दिन बीते और आखिर वो दिन आ ही गया जब आशु को कॉलेज ज्वाइन करना था. शनिवार को घर आते-आते रात हो गई. घर के सभी लोग खाना खा चुका था.. मुझे देखते ही आशु ने तुरंत खाना परोस के मुझे दे दिया और खुद अपने कमरे में चली गई. मैं खाना खा के ऊपर आया तो देखा उसने अपने कमरे में सारा सामान समेट रखा था. एक बैग जिसमें उसके कपडे थे वो तैयार रखा था. पूरे कमरे को उसने अच्छे से साफ़ किया था. जब उसकी नजर मुझ पर पड़ी तो उसके चेहरे ने उसकी सारी खुशियों को बयान कर दिया. उसने मुझे गले लगाना चाहा पर तभी पीछे से ताई जी आ गई और कमरे को देखते हुए आशु को ताना मारते हुए बोली; "चलो शुक्र है तू ने अपने कमरे को साफ़ कर दिया वरना ये भी हमें ही करना पडता."
"समझदार है!" मैंने उनके ताने का जवाब दिया और फिर अपने कमरे में आ कर लेट गया.मेरे जाते ही ताई जी आशु को ज्ञान देने लगी की शहर में उसे किन-किन बातों का ध्यान रखना हे. मैं अपने कमरे से उनकी सारी बातें सुन रहा था. ये ज्ञान कम और ताने ज्यादा थे! मैं चुप-चाप करवट लेके लेट गया और सुबह पाँच बजे के अलार्म के साथ उठ बैठा. मैं बाहर आया और अंगड़ाई लेने लगा तो देखा आशु नीचे घर के काम कर रही हे. मुझे देखते ही वो मुस्कुरा दी और फिर अपने काम में लग गई. मैं जल्दी से नाहा-धो के तैयार हुआ और फिर सभी ने नाश्ता किया.
ताऊ जी: देख आशु शहर जा के कहीं मटर-गश्ती शुरू न कर देना! तेरा ध्यान सिर्फ और सिर्फ पढ़ाई में रहना चाहिए और हर शनिवार-इतवार को दोनों घर आते रहना.
मैं; जी ... आप तो जानते ही हैं की मुझे दूसरे और आखरी शनिवार की छुट्टी मिलती है..... तो....
पिताजी: ठीक है... पर ख्याल रखिओ आशु का और हमें तुम दोनों की कोई शिकायत नहीं आनी चाहिए!
मैं: जी... वैसे भी हमारा मिलना कहाँ हो पायेगा?
ताई जी: क्यों?
मैं: मेरे पास समय ही नहीं होता! एक रविवार मिलता है तो उसमें भी कपडे धो ना और खाना बनाने में समय निकल जाता हे. शाम को फ्री होता हूँ पर हॉस्टल में ६ बजे के बाद मनाही हे.
ताई जी: तो इसे (आशु) कोई दिक्कत हुई तो?
ताऊ जी: अरे कुछ दिक्कत नहीं होगी. सब देखा है हमने, तू चिंता मत कर.
मैंने आगे कुछ और नहीं कहा और फटाफट नाश्ता किया और अपनी बुलेट रानी को कपडा मारने बाहर चला गया.सब कुछ अच्छे से साफ़ कर के जब मैंने पीछे पलट के देखा तो आशु अपना बैग कंधे में टाँगे खड़ी थी. मैंने आगे बढ़ कर उससे बैग लिया और बाइक पर बैठ गया और बैग को पेट्रोल की टंकी पर रख लिया. एक स्टाइल वाली किक मारी और भड़भड़ करती हुई बुलेट स्टार्ट हुई, मैंने पलट के आशु को पीछे बैठने को कहा. तो वो सम्भल के बैठ गई और अपना दायाँ हाथ मेरे कंधे पर रख लिया. सारे घर वाले बाहर आ कर खड़े हो चुका था. और आशु की कुछ सहेलियां भी बुलेट की आवाज सुन कर वहाँ आ कर खड़ी हो गईं और हाथ हिला कर उसे बाय कहने लगी. ताऊ जी ने फिर से कहा; "सम्भल के जाना और वहाँ जा के हमें फ़ोन करना." अब उन्हें भी तो थोड़ा बहुत दिखावा तो करना था ना! गाँव से करीब दो किलोमीटर दूर पहुंचे होंगे की मैंने बाइक रोक दी और आशु से दोनों तरफ टांग कर के बैठने को कहा. उसने ठीक वैसे ही किया और अपने दोनों हाथों को मेरी बगल से ले कर सामने की तरफ लाइ और मेरी छाती को कस के पकड़ लिया. उसका सर मेरी पीठ में धंसा हुआ था और आँखें बंद थी. आशु की गर्म सांसें मुझे मेरी पीठ पर महसूस हो रही थी. मैं बाइक को चालीस की स्पीड में ही चला रहा था ताकि इस सफर का जितना हो सके उतना आनंद ले सकू.
दो घंटे की ड्राइव के बाद अब थकावट होने लगी तो मैंने बाइक एक ढाबे की तरफ मोड़ दी जहाँ की मैं अक्सर रुका करता था. जब भी घर जाता या आता था. बाइक रुकते ही आशु जैसे अपने ख्यालों की दुनिया से बाहर आई. "चलो चाय पीते हैं." मैंने उसे कहा तो वो बाइक से उतरी और मैंने बाइक पार्क की.हम दोनों ढाबे में घुसे. मुझे देखते ही वेटर ने तपाक से नमस्ते की और आशु को मेरे साथ देखते ही वो समझ गया की वो प्रियतमा है और उसने नमस्ते दीदी कहा! आशु ने उसकी नमस्ते का जवाब दिया और फिर हम खिड़की के पास वाले टेबल पर बैठ गये. "आपको पता है मैं क्या सोच रही थी?" आशु ने मुझसे पुछा तो मैंने ना में सर हिला दिया. "मुझे ऐसा लग रहा था जैसे हम दोनों इस नर्क से भाग के कहीं अपनी छोटी सी दुनिया बसाने जा रहे हे. इन दो घंटों में मैं जो कुछ भी सोच सकती थी वो सब सोच लिया की हमारा घर कैसा होगा, बच्चे कितने होंगे!" आशु ने बड़े भोलेपन से कहा और मैंने सोचा की मुझे उसे अब अपने प्लान से अवगत करा देना चाहिए.
मैं: घर से भागना इतना आसान नहीं है जितना तुम सोच रही हो. जैसे ही हम घर से भागेंगे उसके कुछ घंटों में ही लठैतों को बस स्टैंड और रेलवे स्टेशन भेजा जायेगा हमें रोकने के लिए. हर बस को रोक कर चेकिंग की जाएगी और हमें पकड़ के मौत के घाट उतार दिया जायेगा. इसलिए हमें जो कुछ भी करना है वो बहुत सोच समझ कर करना होगा और किसी भी हालात में घर पर या किसी भी इंसान को हमारे इस रिश्ते के बारे में कुछ पता नहीं चलना चाहिए! सबसे जरुरी चीज जो हमें चाहिए वो है पैसा. इस डेढ़ साल की नौकरी में मैं कुछ दस हजार ही जोड़ पाया हु. मेरी नौकरी के बारे में घर में सब जानते हैं और मुझे भी कुछ पैसे घर भेजने पड़ते हे. पर अब तुम चूँकि शहर आ चुकी हो तो अगले साल से तुम्हें भी कुछ पार्ट टाइम नौकरी करनी होगी. ये वही पैसे हैं जिससे हम बचा सकते हैं और जिनकी मदद से दूसरे शहर में हमें घर किराये पर लेना, बर्तन-भांडे आदि खरीदने में मदद करेंगे.
आशु: और हम भागेंगे कैसे?
मैं: तुम्हारे थर्ड ईयर के पेपर होने के अगले दिन ही हम भागेंगे. मैं घर पर फ़ोन कर दूँगा की हम घर आ रहे हैं, अब चूँकि घर पहुँचने में ४ घंटे लगते हैं और घर वाले कम से कम ६ से ८ घंटे तक हमें नहीं ढूंढेंगे तो हमारे पास इतना टाइम होगा की हम ज्यादा से ज्यादा दूरी तय कर सके. यहाँ से हम सीधा बनारस जायेंगे और वहाँ से बैंगलोर!
आशु: बैंगलोर?
मैं: हाँ... वो बड़ा शहर है और वहाँ तक हमें ढूँढना इतना आसान नहीं होगा. मोबाइल फेंकना होगा, बैंक अकाउंट बंद करना होगा और तुम्हारे नए कागज बनवाने होंगे.
आशु: कागज?
मैं: आधार कार्ड और पॅन कार्ड.
आशु: वो तो घर में कभी बनाने नहीं दिये.
मैं: जानता हूँ और वही हमारे काम आयेगा. नए कागजों का कोई पेपर ट्रेल नहीं होगा.
आशु मेरी सारी बातें हैरानी से सुन रही थी की मैंने इतनी सारी प्लानिंग कर रखी हे. इतने में सुमन का फ़ोन आ गया, जिसे देख कर आशु को बहुत गुस्सा आया. उसने दरअसल पूछने के लिए फ़ोन किया था की हम दोनों कब तक पहुँच रहे हे. "ये क्यों फोन कर रही थी आपको?" उसने गुस्सा दिखाते हुए पूछा. "जान, वो पूछ रही थी कब तक हम दोनों हॉस्टल पहुंचेंगे. अब गुस्सा छोडो और चाय पियो और हाँ याद रहे उसे भूले से भी हमारे बारे में शक़ नहीं होना चाहिए." ये सुन कर आशु कुछ बुदबुदाई और फिर चाय पीने लगी. उसकी इस अदा पर मुझे हँसी आ गई जिसे देख के वो भी थोड़ा मुस्कुरा दी. खेर हम चाय पी कर निकले और दो घंटे बाद शहर पहुँच गये. रास्ते भर आशु मुझसे उसी तरह चिपकी रही जैसे मुझे छोड़ना ही ना चाहती हो. जैसे ही हम शहर में दाखिल हुए मैंने आशु को ढंग से बैठने को कहा और वो पहले की तरह बायीं तरफ दोनों पैर कर के बैठ गई और उसका दाहिना हाथ मेरे दाएं कंधे पर था.
बुलेट रानी हॉस्टल की गेट पर रुकी तो गार्ड ने आगे आ कर मुझे नमस्ते की और आशु का बैग लेना चाहा तो मैंने उसे मना कर दिया. बाइक पार्क कर मैं आशु के साथ अंदर आया. दरवाजे पर नॉक की तो दरवाजा सुमन ने खोला और उसके चेहरे पर हमेशा की तरह ख़ुशी साफ़ झलक रही थी. "अरे हमारी टॉपर आशु भी आई है!" उसने आशु को छेड़ते हुए कहा. आशु ने सुमन को नमस्ते कहा और फिर हम बैठक में बैठ गए .तभी आंटी जी भी आ गईं. मैने आगे बढ़ कर उनके पाँव छुए और मेरे पीछे-पीछे आशु ने भी उसके पैर छुए. आंटी जी ने सुमन ख़ास हिदायत दी की वो आशु का अच्छे से ख्याल रखे और इसी के साथ मेरे जाने का समय हो गया तो मैं उठ के खड़ा हुआ और नमस्ते कर के जैसे ही बाहर जाने को मुड़ा की आशु रोने लगी और मेरे सीने से लग गई. उस पगली ने ये भी नहीं देखा की वहाँ सुमन और आंटी जी भी हे.
"वो दरअसल पहली बार घर से बाहर कहीं रुकी है, इसलिए घबरा रही हे." मैंने जैसे तैसे बात को सँभालने की कोशिश की. "अरे बेटी रोने की क्या बात है? ये भी तो तेरे घर जैसा ही हे. सुमन अंदर ले जा आशु को." आंटी जी ने आशु के सर पर हाथ फेरते हुए कहा. जैसे-तैसे मैंने आशु के हाथों को जो मेरी पीठ पर कस चुका था. उन्हें खोला और आशु के आँसू पोछे; "बस अब रोना नहीं है! मैं कल सुबह ०९:३० आऊँगा तैयार रहना. तब जा कर उसका रोना बंद हुआ और फिर सुमन आशु का हाथ पकड़ के अंदर ले गई. "अरे बेटा तुम क्यों तकलीफ करते हो? सुमन कल छोड़ आएगी इसे कॉलेज" आंटी ने कहा.
"आंटी जी वो पहला दिन है और मैं साथ रहूँगा तो इसे डर कम लगेगा." मेरी बात सुन के आंटी ने और कुछ नहीं कहा और मैं उनसे विदा ले कर घर आ गया.मेरा घर और ऑफिस हॉस्टल से १ घंटे दूर था. घर लौट कर कपडे वगैरह धो कर, खाना खाया और जल्दी सो गया.
सूबह फटाफट तैयार हो कर मैं हॉस्टल पहुँच गया और मेरी बुलेट रानी की आवाज सुनते ही आशु भागती हुई बाहर आई और उसके पीछे-पीछे सुमन भी आई और आशु की इस भागने की हरकत पर मुस्कुराने लगी. "चलो भाई बेस्ट ऑफ लक पहले दिन के लिए. अगर कोई तकलीफ हो तो मुझे बताना." सुमन ने मुस्कुराते हुए कहा.
"हाँ ... ये कॉलेज की गुंडी थी. आज भी बहुत चलती है इनकी." मैंने हँसते हुए कहा और फिर हम कॉलेज के लिए चल पडे. मुझे कॉलेज गेट पर देखते ही रहीम भैया दौड़ कर आये और सलाम किया. मेरे साथ आशु को देख वो समझ गए की वो मेरी प्रियतमा हे. हम दोनों को देख कर कोई नहीं कह सकता था की मैं आशु का चाचा हूँ, ५ साल का अंतर् तो कोई पकड़ ही नहीं सकता था. खुद को मैं अच्छे से मेन्टेन रखता था. एक दम क्लीन-शैवेन रहता था. कपडे ब्रांडेड जिससे की लगे ही ना की मैं गाँव-देहात का रहने वाला हु.
"अगर कोई भी परेशानी हो तो रहीम भैया को कह देना." मैंने आशु से कहा ताकि उसके मन का डर कम हो. कॉलेज पूरा घुमा के उसे उसकी क्लास की तरफ छोड़ने जा रहा था की उसकी नजर उस दिवार पर पड़ी जहाँ मेरी तस्वीर लगी थी और वो मुझे खींच के उस तरफ ले जाने लगी. मेरी तस्वीर देख कर उसे काफी गर्व महसूस हो रहा था. "मैं चाहता हूँ तुम्हारी भी तस्वीर मेरी बगल में लगे." मेरी बात सुन कर आशु का आत्मविश्वास लौट आया और उसने हाँ में सर हिलाया. "शाम को ५ बजे मुझे गेट पर मिलना. इतना कह के मैंने उसे उसकी क्लास में भेज दिया.
ऑफिस आने में घंटा भर लग गया और बॉस बहुत गुस्सा हो गए. पर मुझे तो शाम को जल्दी जाना था और ये बात कैसे कहूँ उनको?! मैंने उनकी डाँट का जरा भी विरोध नहीं किया और सर झुकाये सुनता रहा. एक कंपनी का पूरा फाइनेंसियल डाटा मेरे पास पेंडिंग पड़ा था इसलिए उनकी डाँट खत्म होते ही मैं सिस्टम पर बैठ गया और काम करने लगा. लंच के समय भी सभी कहते रहे पर मैं नहीं गया और बड़ी मुश्किल से केशबूक कम्पलीट की. बॉस ने जब देखा तो खुद ही मुझे खाने के लिए बोलने लगे तब मैंने उनसे जल्दी जाने की बात कही तो वो भड़क गये. "गर्लफ्रेंड का चक्कर है ना?" उन्होंने डाँटते हुए कहा. "जी मेरे भाई की लड़की का आज कॉलेज में पहला दिन है वो कहीं इधर-उधर न चली जाए इसलिए उसे हॉस्टल छोड़ के मैं वापस आ जाऊंगा." मैंने उनसे आखरी बार विनती की तो थोड़ी ना-नुकुर के बाद मान गए और बोल दिया की कल सुबह तक सारा डाटा उन्हें किसी भी हालत में कम्पलीट चाहिए. जैसे ही चार बजे मैं फ़टाफ़ट अपनी बुलेट रानी को ले के कॉलेज के लिए निकला और ठीक पाँच बजे मैं कॉलेज गेट पर रुका, मुझे देखते ही आशु रोती हुई भाग के मेरे पास आई.
मैं: क्या हुआ रो क्यों रही हो?
आशु: वो....वो....कैंटीन में.... रैगिंग .... उसने... मुझे .... डांस..... करने को.....|
मैं: (बीच में बोलते हुए) क्या नाम है उसका?
आशु: तोमर
बस आशु का इतना कहना था की मैं बाइक से उतरा और उसका हाथ पकड़ के तेजी से कैंटीन में घुसा. मैने देखा वहाँ कुछ लड़कियां डांस कर रही हैं और सेकंड और थर्ड ईयर के बच्चे खड़े देख कर हँस रहे हे. मैंने आशु का हाथ छोड़ा और भीड़ के बीचों-बीच होता हुआ सामने जा पहुंचा. ५ लड़कों का एक झुण्ड सब की रैगिंग कर रहा था और मुझे देखते ही उनमें से एक बोला; "ये लो एक और बच्चा आ गया."
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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"तुम में से तोमर कौन है?" मैंने गरजते हुए कहा. ये सुन कर उनका हीरो लड़का सामने आया और बोला; "मैं हूँ बे!" उसकी आँखें पूरी लाल थी. जिसका मतलब था उसने अभी-अभी गांजा फूंका हे. "इस कॉलेज में रैगिंग अलाउड नहीं है, जानता है ना तू?" मैंने उसकी आँखों में आँखें डाल के कहा. "तू कौन है बे? प्रिंसिपल का चमचा!?" ये सुनते ही मैंने एक जोरदार तमाचा उसके बाएं गाल पर रख दिया और वो मिटटी चाट गया.उसके सारे चमचे आ कर उसे उठाने लगे. जिन बच्चों की रैगिंग हो रही थी वो सब डरे-सहमे से एक तरफ खड़े हो गए और पूरी कैंटीन में शान्ति छ गई!
"तेरी ये हिम्मत साले!" ये कहते हुए वो तोमर नाम का लड़का अपने होठों पर लगे खून को साफ़ करते हुए बोला और अपना मोबाइल निकाल कर अपने भाई को फ़ोन करने लगा. "भाई....भाई....एक लड़के ने... मुझे बहुत मारा...मेरा खून निकाल दिया... आप जल्दी आओ भाई!" ये कहके उसने फ़ोन काट दिया और मुझे बोला; "रुक साले ...तू यहीं रुक.... एक बाप की औलाद है तो यहीं रुक|"
"यहीं बैठा हूँ.... बुलाले जिसे बुलाना हे." ये कह कर मैंने पास पड़ी कुर्सी उठाई और उसे उस लड़के की तरफ घुमा कर रख कर बैठ गया.तभी पीछे से आशु आ गई और इससे पहले वो कुछ कहे मैंने उसे इशारा कर के वापस भेज दिया.
तोमर: अच्छा ... ये तेरी बंदी है ना?! कौन से क्लास में है तू?
मैं: वो प्रिंसिपल रूम के बाहर जो दिवार है न उस पर सबसे ऊपर वाली तस्वीर मेरी है!
तोमर: वही तस्वीर तेरी कल अखबार में भी छपेगी!
मैं: आने दे तेरे भाई को फिर पता चलेगा किसकी तस्वीर छपेगी कल!
तोमर: हाँ-हाँ देख लेंगे.... और तुम लोग भी सुन लो सालों! जो कोई भी मेरे खिलाफ जाता है उसका क्या हाल होता है!
मैं: चुप-चाप बैठ जा अब! वरना दूसरे झापड़ में यहीं हग देगा!
तोमर: तेरी तो.....
इसके आगे वो कुछ कहता की उसका भाई पीछे से आ गया.मेरी पीठ अभी भी उस शक़्स की तरफ थी की तभी आवाज आई; "हाँ भई किसने पेल दिया तुझे?" ये सुन कर जैसे ही मैं पलटा तो देखा ये तो सिद्धू भैया हे. उन्होंने भी देखते ही मुझे पहचान लिया और आगे बढ़ कर सीधे गले लगा लिया. "अरे राज इतने साल बाद! कैसा है तू?" ये कहते हुए सिद्धू भइया मुस्कुरा कर मुझसे बात कर रहे थे और वो तोमर को भूल ही गये.
"ओ भैया? इसे क्या गले लगा रहे हो इसी ने तो मारा है मुझे!" तोमर बोला.
"अरे? तू तो पढ़ाकू लड़का था. तूने कैसे हाथ छोड़ दिया?!"
"भैया .... आपका भाई लड़कियों की रैगिंग कर रहा था. उन्हें यहाँ आइटम नंबर वाले गानों पर डांस करवा रहा था." ये सुनते ही उनका चेहरा तमतमा गया और वो बड़ी तेजी से उसके पास गए और एक जोरदार तमाचा उसके बाएं गाल पर दे मारा. ठीक उसी समय उन्हें गांजे की महक आई तो उन्होंने उसे उठा के एक और तमाचा मारा और वो फिर नीचे जा गिरा| "हरामजादे!!! तेरी हिम्मत कैसे हुई लड़कियों की रैगिंग करने की? ये कॉलेज हमारी माँ के नाम पर है और तू उन्हीं के नाम को गन्दा कर रहा है! समझाया था ना तुझे की कॉलेज की लड़कियों का सम्मान करना, पर तू....कुत्ते! बहुत चर्बी चढ़ी है न तुझे, अभी उतारता हूँ तेरी चर्बी!" ये कहते हुए सिद्धू भैया ने अपनी बेल्ट निकाल ली और एक जोर दार चाप उसके कंधे पर पड़ी.मैंने भाग कर उनका हाथ पकड़ कर उन्हें रोका; "छोड़ दे मुझे राज ! इस कुत्ते ने हमारे खानदान की इज्जत पर कीचड़ उछाला है!"
"भैया...." मैंने बस इतना ही कहा था की उन्होंने अपना हाथ छुड़ाया और एक बेल्ट और चाप दी! अब मैंने जैसे तैसे उन्हें पीछे से पकड़ लिया और पीछे की तरफ खींचने लगा पर मुझे बहुत ताकत लगानी पढ़ रही थी. भैया थे ही इतने बलिष्ट! उधर तोमर जमीन पर पड़ा दर्द से करहा रहा था और उसके चमचे हाथ बांधे पीछे खड़े सब कुछ देख रहे थे.
सिद्धू भैया: तेरी तो मैं जान ले लूँगा कुत्ते!
मैं: भैया.. छोड़ दो ... तमाशा मत खड़ा करो... हम बैठ कर बात करते हैं!"
सिद्धू भैया: कोई बात-वात नहीं करनी मुझे! छोड़ तू मुझे!
मैं: भैया मैं आपके आगे हाथ जोड़ के विनती कर रहा हूँ! आप घर चलो ... वहाँ आप जो चाहे इसे सजा दे देना.
तब जा कर भैया का गुस्सा कुछ काबू में आया और उन्होंने बेल्ट छोड़ दी. "तुम सब लोग सुन लो! आज के बाद यहाँ किसी ने भी रैगिंग की तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा. रैगिंग करनी है तो उस फाटक वाले कॉलेज में पढ़ो, इस कॉलेज में प्यार, मोहब्बत, आशिक़ी, नशे के लिए कोई जगह नहीं हे. राज जैसे स्टूडेंट्स ने इस कॉलेज की जो शान बनाई है वो बनी रहनी चाहिए और इस शान पर अगर किसी ने कलंक लगाने की कोशिश की तो वो जान से जायेगा!" सिद्धू भैया ने गरज के साथ अपना फरमान सुनाया. "....और राज , इस कुत्ते की गलती के लिए मैं तुझसे हाथ जोड़ कर माफ़ी माँगता हु." ये कहते हुए भैया ने हाथ जोड़े तो मैंने उनके हाथ पकड़ लिए; "ये क्या कर रहे हो भैया? लड़का भटक गया है, आप इस समझाओगे तो समझ जायेगा."
"सुना तूने कुत्ते! चल माफ़ी माँग राज से." भैया ने गरजते हुए तोमर से कहा. वो बेचारा रोता हुआ खड़ा हुआ और हाथ जोड़ के माफ़ी मांगने लगा तो मैंने भी उसे माफ़ कर दिया. "आज के बाद तूने किसी को भी परेशान किया ना तो देख फिर! और आप सभी को भी बता दूँ, इसका नाम राकेश है और आज के बाद आप में से किसी भी स्टूडेंट को इससे डरने की जरुरत नहीं है, कोई भी इसे तोमर नहीं कहेगा. साले कुत्ते! हमारी जात का नाम ले कर ऐसे डरा रखा है जैसे की कोई तोप हो! घर चल तू अब, जरा पिताजी को भी पता चले तेरे खौफ के बारे में." ये कहते हुए भैया ने उसके पिछवाड़े पर लात मारी और वो बेचारा शर्म के मारे सर झुका कर निकल लिया. भैया से कुछ बातें हुई और फिर हम दोनों गेट पर पहुँचे, पीछे पीछे आशु भी आ रही थी तो भैया ने उससे पूछा: "हाँ भई तुम क्यों हमारे पीछे आ रही हो? कुछ काम है क्या मुझसे?"
"जी....वो....." इतना कहते हुए आशु ने मेरी तरफ इशारा कर दिया और ये सुनके भैया हँसते हुए बोले; "अच्छा जी... तो यही हैं जिनकी वजह से तुम ने राकेश को पेल दिया."
"भैया वो...."
"अरे छोडो भाई! हम सब समझ गए!" ये कहते हुए वो मुझे छेड़ने लगे. "चलो बढ़िया है! खुश रहो!" इतना कह कर भैया अपनी गाडी में बैठ के निकल गये.
उनके जाते ही डरी-सहमी सी आशु मेरे सीने से लग गई और रोने लगी. उस ने आज पहली बार ऐसा कुछ देखा था जो उसके लिए पूरी तरह नया नितुभव था. मैंने उसे पुचकार के चुप कराया और उसके माथे को चूमा तो वो कुछ शांत हुई. फिर उसे बाइक पर बिठा कर हॉस्टल छोड़ा.कल की मुलाक़ात का समय भी तय हुआ और इसी तरह रोज़ कॉलेज के बाद एक घंटे के लिए मिलना, घूमना-फिरना, प्यार भरी बातें करना... ऐसे करते हुए दिन बीते.. बस मेरे लिए ऑफिस और पर्सनल लाइफ को बैलेंस करना मुश्किल हो रहा था जिसका पता मैंने आशु को कभी चलने नहीं दिया.... और फिर वो दिन आया जब आशु का जन्मदिन था.
मैंने आज पूरे दिन की छुट्टी ले रखी थी. आशु को भी मैंने बता दिया था की वो आज आधे दिन के बाद बंक मार के मेरे साथ चले. सबसे पहले तो मैं उसे एक अच्छी सी रोमांटिक मूवी दिखाने ले गया और फिर उसके बाद उसे आज पहली बार अपने घर पर लाया. कमरे में दाखिल होते ही वो कमरे की सजावट देख कर दंग रह गई. फ्रिज से केक निकाल के जब मैंने रखा तो उसकी आँखों में ख़ुशी के आँसूं छलक आये. केक पर लगी मोमबत्ती बुझा कर सबसे पहला टुकड़ा उसने मुझे खिलाया और फिर वही आधे टुकड़ा मैंने आशु को खिला दिया. मैंने उसे कस के अपने सीने से लगा लिया पर अगले ही पल वो मुझसे थोड़ा दूर हुई और नीचे जमीन की तरफ देखने लगी. फिर मेरी आँखों में देखा और अपने पंजों पर खड़ी हो कर मेरे होठों को चूम लिया. मैं उसके इस अचानक हुए हमले से थोड़ा हैरान था. जो उसने साफ़ पढ़ ली और शर्म से सर झुका लिया. पर आज मैं अपनी जान को कैसे नाराज करता सो मैं आगे बढ़ा और आशु के चेहरे को अपने दोनों हाथों में थामा और उसे गुलाबी होठों को चूमा. मेरे स्पर्श से आशु के जिस्म में हलचल शुरू हो चुकी थी और उसने अपने दोनों होठों को मेरे होठो पर रख दिया. इधर मैंने अपने होठों को थोड़ा खोला और आशु के निचले होंठ को अपने मुँह में भर लिया और उसे चूसने लगा. ५ सेकंड के बाद मैंने ऐसा ही उसके ऊपर वाले होंठ के साथ भी किया. आशु ने कभी ऐसा चुम्बन महसूस नहीं किया था इसलिए वो मदहोश होने लगी थी. उसका जिस्म हल्का होने लगा था और उसके जिस्म का वजन मुझ पर आने लगा था. इधर मैं बारी-बारी उसके दोनों होठों को चूसने में लगा था की तभी मेरे लिंग में तनाव आने लगा और दिमाग ने जैसे बहुत तेज करंट मुझे मारा और मैंने आशु को खुद से अलग किया. हम दोनों की सांसें भारी हो चली थी और मेरे तन और दिमाग में जंग छिड़ चुकी थी. तन संभोग चाहता था और दिमाग उसके परिणाम से डरता था. आशु को आ रहे आनंद में जैसे ही विघ्न पड़ा उसने अपनी आँखें खोली और फिर मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी की भला क्यों मैंने ये चुंबन तोडा?! पर उसके ऊपर जैसे कुछ फर्क पड़ा ही नही. इसलिए वो धीरे-धीरे कदमों से मेरे पास आई और मैं धीरे-धीरे पीछे हटने लगा और पलंग पर जा बैठा. वो मेरे पास आकर खड़ी हो गई और फिर घुटने मोड़ के नीचे बैठ गई और मेरे चेहरे को अपने हाथ में थामा और फिर से अपने गुलाबी होंठ मेरे होठों पर रखे और मेरे नीचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूस ने लगी. आशु मेरे कश्मक़श को समझ नहीं रही थी और बस मेरे होठों को बारी-बारी से चूस रही थी. इधर मेरा काबू भी खुद के ऊपर से छूटने लगा था और हाथ अपने आप ही उठ के उसके दोनों गालों पर आ चुका था., मेरी जीभ भी अब कोतुहल करने को तैयार थी. जैसे ही आशु ने मेरे ऊपर के होंठ को छोड़ के नीचले होंठ को पकड़ने के लिए अपना मुँह खोला मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में सरका दी और मैं ये महसूस कर के हैरान था की उसने तुरंत ही मेरी जीभ को मुँह में भर के चूसना शुरू कर दिया. अब तो मेरी हालत ख़राब हो चुकी थी. लिंग कस के खड़ा हो चूका था और पैंट में तम्बू बना चूका था. हाथ नीचे आ कर आशु के वक्ष को छूना चाहते थे पर अभी भी दिमाग में थोड़ी ताक़त थी इसलिए उसने हाथों को नीचे सरकने नहीं दिया.
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Incest अनैतिक संबंध

Post by rajsharma »

इधर आशु को तो जैसे मेरी जीभ इतनी पसंद आ रही थी की वो उसे छोड़ ही नहीं रही थी और सांसें रोक कर उसे चूस-चूस के निचोड़ना चाहती थी. आशु के हाथ भी हरकत करने लगे थे और उस ने मेरी शर्ट के बटन खोलने शुरू कर दिए थे. बस तीन ही बटन खुले थे की मैंने उसके हाथों को रोक दिया. तभी आशु ने मेरी जीभ की चुसाई छोड़ी और अपनी जीभ मेरे मुँह में सरका दी तो मैंने उसकी जीभ को चूसना शुरू कर दिया. इधर आशु के हाथों ने फिर से मेरी कमीज के बटन खोलना शुरू कर दिया था और मेरे हाथों ने उसके चेहरे को थामा हुआ था. अब लिंग की हालत यूँ थी की वो पैंट फाड़ के बाहर आने को मचल रहा था और दिमाग में फिर से घंटी बजने लगी थी की कहीं कुछ हो ना जाए! मैंने आशु की जीभ को चूसना बंद किया और इससे पहले की मैं कुछ कहूं उसने पुनः अपने होठों से मेरे निचले होंठ को अपने मुँह की गिरफ्त में ले लिया. जैसे-तैसे कर के मैंने इस चुंबन को तोडा और आशु के होठों पर ऊँगली रखते हुए कहा; "बस! बाकी...शादी के बाद!" ये सुन के वो ऐसे मुँह बनाने लगी जैसे किसी छोटे बच्चे के हाथ से लॉलीपॉप छीन ली हो!
"आऊच.... मेरा छोटा बच्चा|" ये कह के मैंने उसे गले लगा लिया और फिर खाने ले लिए कुछ आर्डर किया. मैं बाथरूम में घुसा ताकि अपने लिंग को शांत कर लूँ, कहीं आशु देख लेती तो पता नहीं क्या सोचती?!
दस मिनट में मैं मुँह धो कर बाहर लौटा तो देखा आशु पलंग पर बैठी हे. उसकी पीठ दिवार से लगी थी और दोनों पाँव पलंग पर सीधे थे. उसने अपनी दोनों बाहें खोल के मुझे पलंग पर बुलाया. मैं उसके गले लगने के बजाये उसकी गोद में सर रख कर लेट गया.आशु के उँगलियाँ मेरे बालों में चलने लगी;
आशु: ये बर्थडे अब तक का बेस्ट बर्थडे था. थैंक यू जानू!
मैं: हम्म...
आशु: एक और थैंक यू आपको!
मैं: एक और? किस लिए?
आशु: किस करना सिखाने के लिए. (ये कह के आशु हँसने लगी.) वैसे आप तो काफी माहीर निकले? और कितनी बार कर चुके हो?
मैं: पागल फर्स्ट टाइम था!
आशु: अच्छा? इतना परफेक्ट कैसे?
मैं: वीडियो देख-देख के सीख गया.
आशु: अच्छा? मुझे भी दिखाओ!
मैं: नहीं... उसमें 'और' भी कुछ है! 'वो सब' अभी नहीं!
आशु: स्कूल और कॉलेज में बहुत सी लड़कियां हैं जिन्होंने 'वो सब' कर रखा है और वो सब मज़े ले कर सुनाती हे. इसलिए थेअरी तो मुझे अच्छे से पता हे.
मैं: अच्छा? चलो प्रैक्टिकल शादी के बाद कर लेना?
आशु: इतना इंतजार करना पड़ेगा? आप भी ना?! आप की उम्र के लड़के तो लड़कियों के पीछे पड़े रहते हैं इन सब के लिए और एक आप हो की.....
मैं: अब कुछ तो फर्क होगा न मुझ में और बाकियों में, वरना तुम मुझिसे प्यार क्यों करती?
आशु: आपका मन नहीं करता?
मैं: करता है.... पर जिम्मेदारियां भी हैं! घर से भागना आसान काम नहीं है!
आशु: हम प्रोटेक्शन इस्तेमाल करते हे.
मैं: तुम सच में चाहती हो की पहली बार में मैं कॉन्डम इस्तेमाल करूँ?
आशु: नहीं....(कुछ सोचते हुए) मैं गर्भनिरोधक गोली ले लुंगी.
मैं: ऐसा कुछ नहीं करना ... थोड़ा सब्र करो! (मैंने थोड़ा डाँटते हुए कहा.)
आशु: सॉरी! पर आप वीडियो तो दिखा दो ना प्लीज? देखने से तो कुछ नहीं होगा.
मैं: तुम बहुत जिद्दी हो! ये लो...
ये कहते हुए मैंने उसे अपने फ़ोन में रखी एक ब्लू-फिल्म लगा के दे दी और तभी दरवाजे पर दस्तक हुई. खाना आ चूका था तो मैंने खाना लिया और आशु के हाथ से फ़ोन छीन लिया और कहा; "पहले खाना ... बाद में देख ना." ये कहते हुए मैंने उसे पहली बार पिज़्ज़ा दिखाया और बताया की ये है क्या| आशु को पिज़्ज़ा बहुत पसंद आया और हम दोनों ने खाना खाया और वापस पलंग पर बैठ गए पर इस बार आशु ने अपना सर मेरी गोद में रखा था और वो वही ब्लू-फिल्म देखने लगी. ब्लू-फिल्म से उसके जिस्म का तो पता नहीं पर मेरे लिंग में हरकत होने लगी थी. वो तन के खड़ा होना चाहता था पर आशु का सर ठीक उसी के ऊपर था. मैंने थोड़ा हिलना चाहा की मैं उसका सर हटा दूँ पर वो ये सब समझ चुकी थी और उसने कुछ इस कदर करवट ले ली अब उसका बायां गाल ठीक मेरे लिंग के ऊपर था. वो मुझ से कुछ नहीं बोली बस बड़ी गौर से ब्लू-फिल्म देखती रही. इधर लिंग बगावत पर उत्तर आये और अपने आप ही पैंट के ऊपर से आशु के गाल पर थाप देने लगे जिसे आशु ने शायद महसूस भी किया. अब मैंने उठ के खड़े होने की कोशिश की तो आशु ने वीडियो रोक दी और हँसते हुए कहा; "अच्छा बाबा! अब तंग नहीं करुँगी!" मतलब वो मेरे लिंग को साफ़ महसूस कर रही थी और जान बुझ कर मेरे साथ ऐसा कर रही थी. "तू बदमाश हो गई हे." ये कहते हुए मैंने उसके गाल पर हलकी सी थपकी लगाई. मैं वापस दिवार से पीठ लगा कर बैठ गया और उसने भी अपना सर अब मेरे सीने से टिका लिया और वीडियो देखने लगी. ठुकाई का सीन शुरू हुआ ही था की आशु का हाथ मेरे लिंग पर आगया और ऐसा लगा जैसे वो नाप के देख रही हो के मेरा लिंग उस आदमी के लिंग के मुकाबले कितना बड़ा हे. मैंने धीरे से उसका हाथ अपने लिंग से हटा दिया और वापस उसका हाथ अपनी छाती पर रख दिया. तीस मिनट की वीडियो को उसने बिना काटे देखा और उसका जिस्म पूरा गर्म हो चूका था" उसने वीडियो पूरी होते ही फ़ोन रखा और खड़ी हो गई और मेरा हाथ पकड़ के मुझे खींच के लेटने को कहा और फिर खुद मेरी बगल में लेट गई. अपने दाएं हाथ को मेरे गाल पर रखा और मुझे किस करने लगी. शुरू-शुरू में मैंने भी उसकी किस का जवाब बहुत अच्छे से दिया पर जब लिंग फिर से खड़ा हो गया तो मैंने उसे रोक दिया; "बस जान!" और फिर घडी देखि तो सवा पांच बजे थे. "कुछ देर और रुक जाते हैं ना?" आशु ने मेरा हाथ पकड़ के मुझे उठने से रोकते हुए कहा. "आने-जाने में १ घंटा लगेगा, फिर हॉस्टल में क्या बोलोगी?" मैंने तुरंत अपने कपड़े ठीक किये पर आशु का तो जैसे जाने का मन ही नहीं था. "कल भी बंक मारूँ?" उसने खुश होते हुए कहा.
"दिमाग ख़राब है? यही सब करने के लिए यहाँ आई थी? फर्स्ट सेमेस्टर में फ़ैल हो गई तो घर वाले फिर घर पर बिठा देंगे. समझी? कॉलेज पढ़ने के लिए होता है समय बर्बाद करने के लिए नहीं और आज के बाद कभी मुझे बिना बताये बंक मारा ना तो सोच लेना!" मैंने आशु को थोड़ा झड़ते हुए कहा. डाँट सुन के उसका सर झुक गया; "पढ़ाई के मामले में कोई मस्ती नहीं! समझी?" उसने हाँ में सर हिलाया और फिर मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के ऊँची की और उसके होठों को चूमा. तब जा के वो फिर से खुश हो गई और अपने कपडे ठीक किये और मुँह हाथ धो के हम घर से निकले और मैंने आशु को हॉस्टल छोडा. आशु को मैं कभी भी कॉलेज के गेट से पिकअप नहीं करता था बल्कि चौक पर बत्ती के पास मेरी बाइक हमेशा खड़ी होती थी और हॉस्टल भी मैं उसे कुछ दूरी पर छोड़ता था ताकि कोई भी हमें एक साथ न देखे.
आशु बाइक से तो उत्तर गई पर उस का हॉस्टल जाने का मन कतई नहीं था इसलिए उसे खुश करने के लिए मैंने अपने बैकपैक से उसके लिए एक गिफ्ट निकाला और उसे दे दिया. गिफ्ट देख कर वो खुश हो गई. गिफ्ट में एक फ़ोन था और एक सिम-कार्ड भी. वो ख़ुशी से उछलने लगी और अचानक से मेरे गले लग गई और थैंक यू कहते हुए उसकी जुबान नहीं थक रही थी. "इसका पता किसी को भी नहीं चलना चाहिए? न कॉलेज में न हॉस्टल में?" मैंने उसे थोड़ा सख्त लहजे में कहा और जवाब में उसने हाँ में सर हिलाया पर उसके चेहरे की ख़ुशी अब भी कायम थी. जाने से पहले उसने अचानक से मेरे होठों को चूमा और फिर हॉस्टल की तरफ भागती हुई घुस गई. मैंने भी बाइक घुमाई और ऑफिस आ गया और काम करने लगा. ये मेरा रोज का काम था की शाम को जल्दी आशु को मिलने पहुँचो और आशु को हॉस्टल छोड़ के ऑफिस देर तक बैठो और फिर देर रात घर पहुँचो और बिना खाये-पीये सो जाओ! बॉस इसलिए कुछ नहीं कहता था की उसे काम कम्पलीट मिलता था पर मेरी कई बार रेल लग जाती थी!
जो बदलाव अब मैं आशु में देख रहा था वो ये था की वो अब उसका प्यार मेरे लिए अब कई गुना बढ़ चूका था. जब भी उसे टाइम मिलता तो वो कहीं छुप कर मुझे फ़ोन करती, व्हाट्स ऍप पर मैसेज करती रहती. रोज सुबह-सुबह उसका प्यार भरा मैसेज देख कर मैं उठता. तरह-तरह के हेयर स्टाइल बना कर उसका सेल्फी भेजना और मेरे पीछे पड़ जाना की मैं उसे सेल्फी भेजूँ! जब भी हम मिलते तो वो मेरा हाथ थाम लेती, और तरह-तरह की फोटो खीचती. कभी मुझे किस करते हुए तो कभी पॉउट करते हुए और बहाने से मुझे किस करती. कभी इस पार्क में, कभी उस पार्क में, कभी किसी कैफ़े में और यहाँ तक की एक दिन उसने एक पुराने खंडर जाने की भी फरमाइश कर दी. ये खंडर प्रेमी जोड़ों के लिए जन्नत था क्योंकि यहाँ कोई आता-जाता नहीं था. जब हम वहाँ पहुँचे तो वहाँ कोई जगह खाली नहीं थी पर आशु मेरा हाथ थामे मुझे खींच के अंदर और अंदर ले जा रही थी. उसे तो जैसे भूत-प्रेत का कोई डर ही नहीं था. अंदर पहुँच कर वो मेरी तरफ मुड़ी और अपनी बाहें मेरे इर्द-गिर्द लपेट ली. फिर वो अपने पंजो पर खड़ी हो गई और मेरे होठों पर किस कर दी. मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ पर घूमने लगे थे और इधर आशु ने अपनी बाहें मेरे गले में डाल ली. हम अपने किस में इतना मग्न थे की आस-पास की कोई खबर ही नहीं थी. जब जेब में फ़ोन बजा तब जा के होश आया, फोन आशु के हॉस्टल से था जिसे देखते ही हम तुरंत बाहर आये और फटाफट हॉस्टल पहुंचे.
इस शनिवार हमें घर जाना था तो मैं सुबह-सुबह आशु को लेने हॉस्टल पहुंचा. रास्ते भर आशु मेरी पीठ से चिपकी रही और हमारा एक मात्र हॉल्ट वो ढाबा ही था जहाँ रुक कर हम चाय पीने लगे.
आशु: तो अब हम अपने रिश्ते को आगे कब ले कर जा रहे हैं?
मैं: आगे? मतलब?
आशु: 'वो'
मैं: वो सब शादी के बाद
आशु: पर क्यों?
मैं: तुम प्रेग्नेंट हो गई तो?
आशु: ऐसा कुछ नहीं होगा.
मैं: आशु! मैं इस बारे में अब कोई बात नहीं करूँगा! नहीं मतलब नहीं! (मैंने गुस्से से कहा)
आशु: अच्छा ठीक है! पर आप आज रात को मेरे कमरे में तो आओगे आज? कितने दिनों बाद आज मौका मिला हे.
मैं: पागल हो गई हो क्या? किसी ने देख लिया तो क्या होगा जानती हो ना?
आशु: कोई नहीं देखेगा. आप सब के सोने के बाद आ जाना.
मैं: नहीं!
आशु: मैं इंतजार करुँगी!
इतना कह कर वो टेबल से उठ गई और बाइक के पास जा कर खड़ी हो गई. मैं बिल भर के बाहर आया और बिना उससे कुछ बोले बाइक स्टार्ट की और हम फिर से हवा से बातें करते हुए घर की ओर चल दिये. रास्ते में आशु उसी तरह मुझसे चिपकी रही पर मैंने उससे और कोई बात नहीं की. हम घर पहुँचे और आशु ने सब के पैर छू के आशीर्वाद लिया और मैं सीधा अपने कमरे में घुस गया और बिस्तर पर पड़ गया.कुछ देर बाद आशु ऊपर आई और मेरे कमरे में झांकते हुए निकल गई. वो समझ गई थी की मैं उससे नाराज हु. उसी ने घर पर आज खाना बनाया और फिर सब के साथ बैठ के यहाँ-वहाँ की बातें चल ने लगी. हमेशा की तरह आशु भी कोने में बैठी बातें सुनती रही पर मेरा सर भन्ना रहा था सो मैं उठ के बाहर चला गया.कुछ ही दूर गया हूँगा की पीछे से जय की आवाज आई और फिर उस के साथ खेत पर बैठ कर माल फुंका. रात साढ़े आठ बजे घर घुसा तो घरवालों ने ताने मारने शुरू कर दिए की इतने दिन बाद आया है, ये नहीं की कुछ देर सब के साथ बैठ जाये. मैं बिना कुछ कहे ऊपर गया और तौलिया ले कर नीचे आ कर नहाया और ऊपर कमरे में टी-शर्ट डालने ही वाला था की मेरे नंगे जिस्म पर मुझे आशु ने पीछे से जकड लिया. उसकी उँगलियाँ मेरी छाती पर घूमने लगी थी. मैंने तुरंत ही उसे खुद से दूर किया; "दिमाग ख़राब है तेरा?" गुस्से से लाल मैंने टी-शर्ट पहनी और नीचे जा कर सब के साथ बैठ गया और बातों में ध्यान लगाने लगा.
रात के खाने के बाद मैं छत पर टहल रहा था और आशु में आये बदलावों के बारे में सोच रहा था. उसके जिस्म में भूख की ललक मुझे साफ़ नजर आ रही थी.तभी वहाँ आशु चुप-चाप आ कर खड़ी हो गई. नजरें झुकी हुई, हाथ बाँधे वो जैसे अपने जुर्म का इकरार कर रही हो. बचपन में जब भी उससे कोई गलती हो जाती थी तो वो इसी तरह खड़ी हो जाती थी और उस समय जब तक मैं उसे गले लगा कर माफ़ न कर दूँ उसके दिल को चैन नहीं आता था. 'आशु.... तू ये सब क्यों कर रही है? खुद पर काबू रखना सीख प्लीज! वरना सब कुछ खत्म हो जायेगा!" ये कहते हुए मैंने उसके सामने हाथ जोड़ दिये. जिसे देख उसकी आँख से आँसूं गिरने लगे. इस बात की परवाह किये बिना की हम घर पर हैं और कोई हमें देख लेगा मैंने आशु को कस कर अपने गले लगा लिया. मेरी बाहों में आते ही वो टूट के सुबकने लगी और बोली; "जानू.... मैं क्या करूँ? मुझसे ये दूरी बर्दाश्त नहीं होती. हम एक शहर में हो कर भी कभी दिल भर के मिल नहीं पाते. हमेशा हॉस्टल की घंटी या कोई साथ न देख ले वाला डर हमें एक दूसरे के करीब नहीं आने देता. आप जी तोड़ कोशिश करते हो की हम ज्यादा से ज्यादा साथ रहे पर आपको अपनी नौकरी भी देखनी हे. आप जब भी मिलते हो तो वो पल मैं आपके साथ जी भर के जीना चाहती हूँ इसलिए उन कुछ पलों में मैं सारी हदें तोड़ देती हु. जन्मदिन वाले दिन के बाद से तो आपके बिना एक पल को भी चैन नहीं आता! रात-रात भर तकिये को खुद से चिपकाए सोती हूँ, ये सोच कर की वो तकिया आपका जिस्म है जिसकी गर्मी से शायद मेरा जिस्म थोड़ा ठंडा पद जाए पर ऐसे कभी नहीं होता. पढ़ाई में भी मन नहीं लगता, किताब खोल कर बस आप ही के ख्यालों में गुम रहती हु. आपके जिस्म की गर्माहट को महसूस करने को हरपल बेताब रहती हु. प्लीज-प्लीज हम अभी क्यों नहीं भाग जाते? मैं आप के साथ एक पेड़ के नीचे रह लूँगी पर अब और आप से दूर नहीं रहा जाता." उसकी बातें सुन कर उसके दिल का हाल मैं जान चूका था पर इस कोई इलाज नहीं था. अगर मेरा खुद के शरीर पर काबू है इसका मतलब ये तो नहीं तो की दूसरे का भी उसके शरीर पर काबू हो?
"जान! मैं समझ सकता हूँ तुम कैसा महसूस करती हो, और यक़ीन मानो मेरा भी वही हाल है पर हम दोनों को एक दूसरे पर काबू रखना होगा! हम अभी नहीं भाग सकते, बिना पैसों के हम बनारस तो क्या इस जिले के बाहर नहीं जा सकते. हमें बहुत बड़ी लड़ाई लड़नी है और उसके लिए खुद पर काबू रखना होगा. मैं ये नहीं कहता की हम मिलना बंद कर दें, पर हमें जिस्मानी रिश्ते को रोकना होगा. ये किस करणा, ये गले लगणा ..... इन सब पर काबू रखना होगा. जब मौका मिलेगा तब हम ये सब करेंगे और प्लीज संभोग अभी नहीं! वो शादी के बाद!"
इसके आगे मेरे कुछ कहने से पहले ही आशु मुझसे अलग हो गई और सर झुकाये हुए बोली; "इससे तो अच्छा है की मैं जान ही दे दूँ!" आशु की आँखें से आँसूं थमने का नाम ही नहीं ले रहे थे, मैंने आगे बढ़ कर उसके आँसू पोछने चाहे पर वो एकदम से मुड़ी और नीचे अपने कमरे में चली गई. मैं कुछ देर तक और छत पर टहलता रहा और सोचता रहा. घडी पर नजर डाली तो बारह बज रहे थे. मैं अपने कमरे की तरफ जाने लगा तो आशु के कमरे का दरवाजा खुला था. अंदर झाँका तो पाया आशु अब भी रो रही थी और अपने तकिये को अपनी छाती से चिपकाये हुए थी. पता नहीं क्यों पर बार-बार वो तकिये को चुम रही थी. शायद ये सोच रही होगी की वो तकिया मैं हु. तभी उसने करवट बदली पर इससे पहले वो मुझे देख पाती मैं दिवार की आड़ में छुप गया और वो करवट बदल के फिर से उसी तकिये को खुद से चिपकाये हुए प्यार करती रही. १५ मिनट तक मैं छुप कर उसे यूँ तकिये से लिपटे रोता देखता रहा पर मजबूर था क्योंकि अगर कोई घरवाला देख लेता तो?!!! मन मार के जैसे ही अपने कमरे में जाने को मुड़ा की नीचे से ताऊ जी की आवाज आई; "इतनी रात गए क्या कर रहा है?" ये सुनते ही मैं हड़बड़ा गया, शुक्र है की मैं आशु के कमरे में नहीं घुसा वरना आज सब कुछ खत्म हो जाता.
"जी वो.... नींद नहीं आ रही थी इसलिए छत पर टहल रहा था." मेरी आवाज सुनते ही आशु उठ के बाहर आ गई और बिना कुछ बोले ही मेरे मुँह पर दरवाजा बंद कर दिया. मैं भी उसके इस बर्ताव से चौंक गया और समझ गया की उसे बहुत बुरा लगा हे. मैं अपना इतना सा मुँह ले कर अपने कमरे में आ गया और बिस्तर पर लेट गया पर नींद तनिक भी नहीं आई. घड़ियाँ गिन-गिन कर रात गुजारी और सुबह जब चलने का समय हुआ तो आशु अब भी खामोश थी.
गाँव से कुछ दूर आने के बाद मैंने बाइक रोक दी और आशु को दोनों तरफ पैर कर के बैठने को कहा तो उसने मेरी ये बात भी अनसुनी कर दी. मजबूरन मुझे ऐसे ही बाइक चलानी पड़ी, ढाबे पर पहुँच कर मैंने बाइक रोकी और आशु को चाय पीने चलने को कहा तो उसने फिर से मना कर दिया. अब मैंने जबरदस्ती उसका हाथ पकड़ के खींचा और उसे ढाबे में ले गया और जबरदस्ती चाय पिलाई.
"जान!आई एम सॉरी!!! प्लीज मुझे माफ़ कर दो! मैं तुम्हें दुःख नहीं पहुँचाना चाहता था. तुम जो सजा दोगी वो मंजूर है पर प्लीज मुझसे बात करो!"
मैंने आशु से की मिन्नतें की पर वो कुछ नहीं बोली. हमने चुप-चाप चाय पी और फिर हम वापस हाईवे पर आ गए, पर मैंने बाइक बजाये हॉस्टल की तरफ ले जाने के अपने घर की तरफ मोड़ दी. घर पहुँचने से पहले मैंने बाइक एक मेडिकल स्टोर के पास रोकी और कुछ दवाइयाँ ले कर वापस आया. "आपकी तबियत ख़राब है?" आशु ने चिंता जताते हुए पूछा. तो मैंने मुस्कुरा कर नहीं कहा और बाइक घर की तरफ घुमा दी. जैसे ही घर पहुँच कर मैंने बाइक रोकी तो आशु बड़ी हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. मैंने उसे ऊपर कमरे की तरफ चलने को कहा और कमरे की चाभी भी उसे दे दी. मैंने बाइक नीचे पार्क की और घर फ़ोन कर दिया की हम घर पहुँच गए हैं, और साथ ही आशु के हॉस्टल में फ़ोन कर दिया की गाँव में कुछ काम है इसलिए मैं उसे कल हॉस्टल छोड़ दूंगा. फिर खाने के मैगी ली और सारा सामान ले कर मैं कमरे में आया. आशु खड़ी हो कर पीछे वाली खिड़की से बाहर कुछ देख रही थी. मुझे देखते ही वो बोली; "मुझे हॉस्टल कब छोड़ोगे?" मैंने आशु का हाथ पकड़ा और उसे खींच के पलंग के पास ले आया और बोला: "आज की रात और कल की दोपहर आप मेरे साथ गुजारोगे!" ये सुन के आशु बोली: "क्यों?"
"आपने कहा था ना आप का मन मेरे बिना नहीं लगता तो मैंने सोचा की क्यों न आपको इतना प्यार करूँ की आपको मेरी कमी कभी महसूस न हो."
ये सुन कर आशु ने मेरी तरफ पीठ कर दी और बोली; "मैं जानती हूँ ये आप सिर्फ मुझे खुश करने के लिए कर रहे हो. आपको ऐसा कुछ भी करने की जरुरत नहीं जिसके लिए आपका मन गवाही ना देता हो."
मैं ने आशु को पीछे से अपनी बाँहों में जकड़ा और उसके कान में फुसफुसाता हुआ बोला; "दिल से कह रहा हु." इतना कह कर मैंने उसे गोद में उठा लिया और बिस्तर पर ला कर लिटा दिया और झुक कर आशु के होठों को चूम लिया. मेरे होंठ के स्पर्श से उसकी सारी कठोरता खत्म हो गई और उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल दी और मेरे किस का जवाब देने लगी. मैंने अपने होंठ खोले के अपनी जीभ से उसके होठों को रगड़ा और फिर अपने दोनों होठों के भीतर उसके नीचे होंठ को भर के चूसने लगा. तभी आशु ने धीरे से मुझे खुद से दूर किया और बोली; "आप .... मुझे धोका तो नहीं दोगे ना?" मैंने ना में सर हिलाया. "पर एक शर्त है! वादा करो की तुम पढ़ाई में ध्यान लगाओगी."
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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"वादा करती हूँ जानू! पढ़ाई को ले कर आपके पास कोई शिकायत नहीं आयेगी." इतना कह के आशु ने अपनी बाहें फिर से मेरी गर्दन पर जकड़ दी और मुझे खींच के अपने ऊपर झुका लिया और अपनी जीभ से मेरी जीभ को छूने व चूसने लगी. उसके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे पर मेरे हाथ अभी भी मेरे वजन को संभाले हुए थे. मैं उठा और आशु की आँखों में देखते हुए अपनी शर्ट के बटन खोलने लगा और वो भी उठ बैठी पर पलंग पर घुटनों के बल बैठ के मेरे चेहरे को अपने दोनों हाथों से थामा और फिर से मेरे होठों को बारी-बारी से चूसने लगी. मैंने अपनी कमीज उतारी पर आशु ने एक पल के लिए भी मेरे होठों को अपने मुँह से आजाद नहीं किया.
मैंने ही अपने होठों को उससे छुड़ाया और कहा; "जान कपडे तो उतारो" ये सुनते ही उसके गाल शर्म से लाल हो गये. मैं समझ गया की वो क्यों शर्मा रही हे. मैंने खुद उसके सूट को उतारने के लिए हाथ आगे बढाए तो उसकी नजरें झुक गई. मैंने धीरे से उसका सूट उतरा और आशु ने इसमें मेरा पूरा सहयोग दिया. अब वो मेरे सामने सिर्फ एक ब्रा में थी और शर्म से अब भी उसकी नजरें झुकी हुई थी. मैंने उसकी ठुड्डी पकड़ के ऊपर की और उसके गुलाबी होठों को चूमा और धीरे-धीरे उसे फिर से लिटा दिया और उसके ऊपर आ कर उसके होठों को चूसने लगा. उसका निचला होंठ बहुत फूला हुआ था. और हो भी क्यों ना पिछले कुछ महीनों से मैं जो उसका रसपान कर रहा था.लिंग पूरे जोश में आ कर बाहर आने को बेताब थे पर आशु को तो जैसे किस करने से फुरसत ही नहीं थी. मैं भी कोई जल्दी नहीं दिखाना चाहता था इसलिए हम दोनों पिछले पंधरा मिनट से बस एक दूसरे को होठों को चूस और चाट ही रह थे. शायद आशु को भी मेरे लिंग का एहसास होने लगा तो उसके हाथ अपने आप ही मेरे लिंग पर आ गए और वो धीर-धीरे से उसे सहलाने लगी. लिंग को मिल रहे स्पर्श से उसमें तनाव बढ़ता ही जा रहा था और अब पैंट में कैद होने से दर्द हो रहा था. मैंने धीरे-धीरे अपने हाथ को सरका कर आशु की पायजामे के नाड़े पर रख दिया और अपनी उँगलियों से नाड़े का छोर ढूंढने लगा. आशु भी मेरी उँगलियों को अपनी नाभि के आस पास महसूस करने लगी थी और उसका जो हाथ अभी तक लिंग को सहला रहा था वो अब मेरी बनियान के अंदर जा घुसा था और जैसे कुछ ढूंढ रहा था. आखिर मुझे नाड़े का छोर मिल ही गया और मैंने उसे धीरे-धीरे खींचना शुरू कर दिया. आखिर कार वो खुल गया और आशु की पजामी अब ढीली हो चुकी थी. मैंने अपना हाथ धीरे-धीरे अंदर सरकना शुरू कर दिया और इधर आशु के जिस्म में सिहरन शुरू हो गई थी. फिर मैं एक पल के लिए रुक गया और आशु के होठों को अपने होठों की पकड़ से आजाद करते हुए कहा; "जान! पहली बार बहुत दर्द होगा! मुझे कम पर तुम्हें बहुत ज्यादा होगा, खून भी निकलेगा!" ये सुन कर आशु थोड़ा डर गई.
"आपसे दूर रहने के दर्द से तो कम होगा ना?" ये कह कर उसने मुझे अपनी सहमति दी और मैंने मुस्कुरा कर उसके माथे को चूमा. मेरा हाथ उसकी पैंटी पर आ चूका था और मुझे उसके ऊपर से ही उस की योनी की गर्मी महसूस होने लगी थी. मैंने अपनी बीच वाली ऊँगली को आशु की पैंटी के ऊपर रगड़ना शुरू कर दिया जिसके परिणाम स्वरुप आशु की सीत्कार निकल गई. आनंद से उसकी आँखें बंद हो चली थी. मैंने अब अपना हाथ उसकी पैंटी से बाहर निकाला और उसकी पजामी को पकड़ कर नीचे सरकाने लगा पर अब भी आशु ने अपनी आँख नहीं खोली थी. पजामी तो निकाल दी मैंने पर आशु की गुलाबी रंग की पैंटी ने मेरा मन मोह लिया. उसे देखते ही मन ही नहीं कर रहा था की उसे निकालूँ, ऊपर से आशु की माँसल जांघें मेरे लिंग में कोहराम मचाने लगी थी. मैंने नीचे झुक कर आशु की नाभि के नीचे चूम लिया और अपने दोनों हाथों की उँगलियों को उसकी पैंटी में फँसा कर के उसे निकाल दिया और अब जो मेरे सामने थी उसे देख तो मेरा कलेजा धक कर के रह गया.एक दम गुलाबी और चिकनी योनी! उसके गुलाबी पट बंद थे और योनी की रक्षा कर रहे थे, उन्हें देखते ही मेरे मुँह में पानी आ गया! मैं उनपर झुक कर उन्हें चूमना चाहता था पर जैसे ही मेरी गर्म साँस आशु को अपने योनी पर महसूस हुई उसने ने अपने दोनों हाथों से मेरे चेहरे को थामा और अपने ऊपर आने को कहा. "जानू वो सब बाद में! पहले आप….." उसने बात अधूरी छोड़ दी पर मैं समझ गया की उसे संभोग करना है ना की फोरप्ले! "जान… फोरप्ले अगर नहीं किया तो बहुत दर्द होगा. तुम बस रिलैक्स करो और इतने बरसों से जो मैं वीडियो देख कर जो ज्ञान अर्जित किया है उसे इस्तेमाल करने दो."
मेरी बात सुन कर हम दोनों के चेहरे पर मुस्कान आ गई. तभी मैंने गौर किया की आशु की ब्रा तो मैंने निकाली ही नही. अब ये ऐसा काम था जो मैंने कभी किया नहीं था और ना ही इसके बारे में कोई ज्ञान मुझे वीडियो देखने से मिला था. मैंने आशु का हाथ पकड़ के उसे उठा के बिठाया और उसके होठों को चूसने लगा और अपने हाथ उसके पीछे ले जाकर ब्रा के हुक ढूंढने लगा. जब उँगलियों ने उन्हें ढूंढा तो ये दिक्कत थी की उन्हें खोलने के लिए उसका सिरा कहाँ है? आशु मेरी ये नादानी समझ गई और उसने मेरे होठों से अपने होंठ छुड़ाए और अपने दोनों हाथ पीछे ले जा कर ब्रा के हुक खोल दिये. ब्रा ढीली हो गई पर अभी भी आशु के जिस्म से चिपकी हुई थी. मैंने धीरे से आशु की ब्रा को उसके सुनहरे जिस्म से अलग किया और पलंग से नीचे गिरा दिया. अपनी ब्रा को नीचे गिरते देख आशु कसमसाने लगी थी. मेरी नजर जब उसकी छाती पर पड़ी तो मेरी आँखें फटी की फटी रह गई. आशु के कोमल वक्ष मुझे उसे छूने को कह रहे थे, वो गुलाबी अरेओला ....सससस.....हाय! मैंने थोड़ा सा झुक कर आशु के बाएं वक्ष को अपने होठों से छुआ और अपनी जीभ से उसके छोटे से प्यार से स्तनाग्र को छेड़ा तो आशु के मुँह सिसकारी निकल पडी. मैंने आशु के चेहरे पर देखा तो उसकी गर्दन पीछे की ओर झुकी हुई थी और आँखें बंद थी.
मैं उठ कर खड़ा हुआ और अपनी बेल्ट खोली और फिर पैंट के हुक खोलते ही वो नीचे जा गिरी, मेरे कच्छे पर बने उभार को आशु टकटकी बांधे देखती रही. मैं पलंग से उतरा और अपनी पैंट कुर्सी पर फेंकी और बैग से कुछ निकाल कर वापस आशु के पास आ गया.जब मैं लौटा तो आशु मुझे थोड़ी डरी सी दिखी; "क्या हुआ जान?!" मैंने उसके दाएं गाल को छूते हुए कहा. "आप उठ कर गए तो मुझे लगा आप मुझे छोड़के जा रहे हो!" ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो गई.
"जान मैं तो बस ये लेने गया था." ये कहते हुए मैंने उसे कंडोम दिखाया. पहले तो आशु को समझ ही नहीं आया की मेरे हाथ में आखिर है क्या फिर जब उसने डिब्बे पे लिखा पढ़ा तो वो नाराज होते हुए बोली; "नहीं! आप इसे यूज़ नहीं करोगे! ये हमारा.... पहलीबार है.... और मुझे फील करना है....सब कुछ! मैं बाद में गर्भनिरोधक गोली ले लुंगी." ये कहते हुए उसने मेरे हाथ से कंडोम का डिब्बा छीन लिया और दूर फेंक दिया. मैंने आगे उससे बहस करना ठीक नहीं समझा उल्टा मैं फिर से आशु के ऊपर आ गया और आशु की नाभि पर अपने होंठ रखे और आशु के मुँह से फिर से "सससस...'' आवाज निकली. अगला चुम्बन मैंने आशु की गुलाबी योनी की फाँकों पर किया तो उसके पूरे जिस्म में करंट दौड़ गया और उसके मुँह से फिर से सीत्कार फूट पडी. मैंने अपनी जीभ से आशु की योनी की फाँकों को कुरेदना शुरू कर दिया. ऐसा लगा मानो जीभ की नोक अपने लिए अंदर जाने का रास्ता बना रही हो. पर योनी के गुलाबी होंठ खुल ही नहीं रहे थे, तो मैंने जितना हो सके उतना मुँह खोला और आशु की योनी के ऊपर रख दिया. अपनी जीभ से मैंने फाँकों को जोर से कुरेदना शुरू कर दिया. आखिर फाँकों को मुझ पर तरस आ गया और अंगड़ाई लेते हुए मुझे योनी का छेद दिखाई दिया. बस फिर क्या था मैंने उस अध्खुली फाँक को अपने मुँह में भर के मैं चूसने लगा. इधर आशु पर इसका बहुत मादक असर हुआ और उसके मुँह से बस सिसकारियाँ ही सिसकारियाँ फूटने लगी....."स्स्सस्स्स्स...स्स्सस्स्स्स.... ससससस आए ससससस हहहह स्स्सस्स्स्स!!!" आशु की सिसकारियाँ मेरे लिए प्रोत्साहन का काम कर रही थी और मैंने अपनी पूरी जीभ से योनी के द्वार को चाटना...चूसना...कुरेदना...शुरू कर दिया.
आशु के दोनों हाथ मेरे सर के ऊपर थे और वो मेरे बालों में अपने हाथ फिराने लगी. अब मैंने अपने दोनों हाथ की उँगलियों से आशु के योनी के द्वार को खोला और अपनी जीभ जितनी हो सके उतनी अंदर डाल दी. जैसे ही जीभ अंदर घुसी आशु चिहुँक पड़ी; "सीईई ...!!!!" मैंने अपनी जीभ से आशु की योनी ठुकाई शुरू कर दी और मेरे इस प्रहार से उसकी हालत ख़राब होने लगी थी. वो बार-बार मेरे सर का दबाव अपनी योनी पर बढ़ाती जा रही थी. "सससससस...ीसीसीसीसीसिस..... सीईई..... सीईई.... ईईई .... आआह्ह्हह्ह्ह्ह!!!" करते हुए वो झड़ गई और हाँफते हुए निढाल हो कर रह गई. उसका सारा रस मैंने अपनी जीभ से चाट-चाट कर पी लिया था! आखिर मैं भी उसके ऊपर से उठ कर उसकी बगल में लेट गया.पिछले पाँच मिनट से मुँह खोल कर आशु की योनी चाटने से मुँह दर्द करने लगा था.
दो मिनट बाद जब आशु की सांसें नार्मल हुई तो वो करवट ले कर मेरी छाती पर अपना सर रख कर लेट गई. "जानू! आज मुझे पता चला की चरम सुख क्या होता है! थैंक यू!!!!" मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया क्योंकि उसे तो तृप्ति मिल गई थी पर मैं तो अभी भी प्यासा था. आशु शायद समझ गई तो उसका हाथ मेरे लिंग पर आ गया और वो उसे सहलाने लगी. अपने मुँह को खोल आशु ने मेरे दाएं स्तनाग्र को मुँह में भर लिया जैसे शिकायत कर रही हो की क्यों मैंने अभी तक उसके स्तनों को प्यार नहीं किया? मैंने आशु के दाएं गाल को अपनी उँगलियों से सहलाया और उसके मुँह से अपने स्तनाग्र को छुड़ाया और उसकी आँखों में देखते हुए कहा; "जान......." मेरा बस इतना कहना था की वो मेरी बात समझ गई और मुझे उसके चेहरे पर डर की रेखा दिखने लगी. "डर लग रहा है?!" मैंने पूछा तो जवाब में आशु ने बस हाँ में सर हिला दिया. "मैं पूरी कोशिश करूँगा की मेरी जान को कम से कम दर्द हो." सबसे पहले मैंने अपना कच्छा उतारा और आशु की टांगों को खोल कर उनके बीच घुटने मोड़ कर बैठ गया.मेरे फनफनाते हुए लिंग को आशु एक टक बांधे घूर रही थी. जैसे की सोच रही हो की ये दानव मेरी छोटी सी योनी में कैसे घुसेगा?! मैंने बहुत सारा थूक अपने लिंग पर चुपेड़ा और उसे धीरे से आशु की योनी के होठों पर छुआया. इतने भर से ही उसने अपनी आँखें कस के भीँचलि जैसे की उसे बहुत दर्द हुआ हो! इसलिए मैं बिना लिंग अंदर डाले उसके ऊपर छा गया और उसके होठों को एक बार चूमा, तब जाके उसकी आँखें खुली. मैं समझ गया की लिंग अंदर डालने से पहले मुझे आशु को थोड़ा उत्तेजित करना होगा. इसलिए मैं उसके जिस्म को चूमता हुआ उसके स्तनों पर आ गया और गप्प से उसके दाएं स्तन को अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ से उसके स्तनाग्र से छेडने लगा. अपने दाएं हाथ से मैंने आशु के बाएं स्तन को धीरे से दबाना शुरू कर दिया. अपनी उँगलियों से मैं आशु के बाएं स्तनाग्र को दबाने लगा और उसके दाएं स्तनाग्र को तो मैं ऐसे चूसने लगा था जैसे उस में से दूध निकल रहा हो. पाँच मिनट की चुसाई के बाद मैंने आशु के बाएं स्तन को भी ऐसे ही चूसा उसके छोटे से स्तनाग्र को मैं दांतों से खींच रहा था और बीच-बीच में काट भी रहा था. आशु बहुत ज्यादा उत्तेजित हो गई थी और अपना हाथ नीचे ले जा कर मेरा लिंग पकड़ के अपनी योनी की तरफ खींचने में लगी थी. मैंने जब उसके बाएं वक्ष को छोड़ा तो देखा उसके दोनों स्तन लाल हो चुका था. और उनपर मेरे दांतों के निशाँ साफ़ नजर आ रहे थे. मैंने और समय गँवाय बिना अपना लिंग उसकी योनी के द्वार पर रखा और धीरे से अंदर धकेला. मेरे लिंग की चमड़ी चूँकि अभी भी बंद थी तो लिंग अंदर नहीं गया पर इससे आशु को दर्द बहुत हुआ और उसने अपनी सर को बायीं तरफ झटक दिया. मैंने सोचा की बिना दम लगाए तो लिंग अंदर जायेगा नहीं इसलिए मैंने अपनी कमर को पीछे किया और एक झटका मार के लिंग अंदर डाला.मेरी इस हरकत से मेरी और आशु दोनों की जान पर बन आई! मेरे लिंग की चमड़ी एकदम से खुली और जलन से मेरी नितंब फ़ट गई और उधर आशु के मुँह से जोरदार चींख निकली!
"आआआअह्ह्ह्हह्ह्ह्ह.....मममममअअअअअ.....!!!" दर्द से दोनों का बुरा हाल था. मन तो कर रहा था की लिंग बाहर निकाल के लेट जाऊँ पर ये जानता था की अगलीबार और दर्द होगा. इसलिए मैंने आशु के होठों को अपने मुँह में भर लिया और उसकी पीड़ा उसके गले में ही रोक दी. आशु ने दर्द के मारे अपने नाखून मेरी नग्न पीठ में धंसा दिए और उनमें से खून भी निकल आया. नीचे लिंग में दर्द और पीठ में जलन से मैं तड़प उठा. मैं इसी तरह से आशु के ऊपर अपना वजन दाल आकर लेटा रहा और उसके होठों को चुस्ता रहा और उसके मुँह में अपनी जीभ घूमाता रहा. करीब पाँच मिनट हुए और आशु ने अपने नाखून मेरी पीठ से निकाल दिए और अपने हाथ वापस पलंग पर रख दिये. उसी वक़्त मुझे मेरे लिंग पर गर्म पानी का एहसास हुआ, मतलब की आशु झड़ चुकी थी और वो निढाल होकर बिना कुछ बोले ही बिस्तर पर लाश की तरह पड़ी थी. मैंने आशु के होठों को छोड़ा और आशु के चेहरे की तरफ देखने लगा, आशु की आँखें बंद थी और उसके मस्तक पर पसीने की बूँदें थी. मैंने आशु के गाल को चूमा और उसे पुकारा; "जान!" तो जवाब में बस उसके मुँह से "हम्म..." निकला|
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: Incest अनैतिक संबंध

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"बहुत दर्द हो रहा है?" मैंने उसके माथे को चूमते हुए पूछा तो जवाब में बस उसके मुँह से "हम्म" निकला और दर्द की एक लकीर चेहरे पर आ गई. मेरा दिल भी उसके दर्द को महसूस कर रहा था इसलिए मैं आशु के ऊपर से हटने लगा, की तभी उसने अपने दोनों हाथों को मेरी गर्दन में डाल के हटने नहीं दिया. "जान... आपको दर्द हो रहा है! रूक जाते हैं!" मैंने चिंता जताते हुए कहा. "नहीं...." वो बस इतना ही बोल पाई और मुझे अपने ऊपर से हटने नहीं दिया. मैंने आशु के माथे फिर से चूम लिया और उसने अपनी गर्दन ऊँची कर के अपने होंठ मेरे सामने कर दिए जैसे कह रही हो की आप गलत जगह को चूम रहे हो. मैंने आशु के होठों को चूसना शरू कर दिया. इसका असर अब आशु पर दिखने लगा था और जिस्म में अब हरकत होने लगी थी. उसका दर्द कुछ कम होने लगा था और उसकी उँगलियाँ अब मेरे सर के बालों में घूमने लगी थी. मैंने उसके होठों को छोड़ा और आशु के चेहरे पर देखा तो उसने अपनी आँख खोली और उसकी आँखें मुझे नम दिखाई दे रही थी. उसकी मूक सहमति से मैंने अपने लिंग को धीरे से बाहर निकाला और फिर धीरे से अंदर किया तो आशु की कमर कांपने लगी और उसने कस के मुझे अपने आलिंगन में जकड लिया. उसकी दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द लिपट चुकी थी और उनके दबाव से ये साफ़ था की आशु अब भी पूरी तरह तैयार नहीं हे. पर मेरा सब्र अब जवाब देने लगा था. मेरे लिंग में अब तनाव बहुत बढ़ चूका था ऊपर से चमड़ी खींचने की वजह से लिंग में दर्द अभी था. मैंने फिर से आशु की तरफ देखा तो उसकी आँखें अब भी दर्द के मारे मीच राखी थी. "जान! प्लीज!!!!" मेरा इतना कहाँ था की उसने आँखें बंद किये हुए ही हाँ में गर्दन हिला दी. मैंने धीरे से अपनी कमर को पीछे खींचा और धीरे उसे अंदर-बाहर करने लगा. आशु की योनी की गर्माहट बढ़ रही थी और उस गर्माहट से मेरे लिंग को काफी आराम मिल रहा था. इसी तरह धीरे-धीरे करते हुए करीब दस मिनट हुए होंगे की मेरा ज्वालामुखी फूटने को तैयार था और मैं उसे बाहर खींचने वाला था की आशु ने कस के अपने जिस्म को मेरे जिस्म से चिपका लिया और मुझे ऐसा करने नहीं दिया और हम दोनों ही साथ-साथ झड़े! झड़ते ही मैं पस्त हो कर आशु के ऊपर गिरा और उसका भी हाल ख़राब ही था. करीब पाँच मिनट बाद मैं उसके ऊपर से उठ के उसकी बगल में लेट गया और अपने लिंग और उसकी योनी की तरफ देखा. दोनों ही खून और हमारे कामरस से सने थे, खून तो काफी निकला था और दोनों ही की यौन अंग सूझ चुका था.. मेरे लिंग के सुपडे के इर्द-गिर्द सूजन थी तो आशु की योनी मुझे सूजी हुई दिख रही थी. दस मिनट बाद में उठा और बाथरूम जा कर अपने लिंग को पानी से हलके हाथ से धोया और वापस आकर जमीन पर नंगा ही बैठ गया.जमीन की ढंडक चप से नितंबो को ठंडा कर गई. मैं दिवार का सहारा ले कर दोनों टांगें खोल कर बैठ गया.आशु की तरफ देखा तो वो अब भी सो रही थी और इधर मेरे पेट में आवाजें आने लगी थी. इसलिए में उठा और बैग से मैगी का पैकेट निकाला और बनाने लगा. मैगी की खुशबु से आशु की नींद खुल गई और उसने धीरे से आकर मुझे पीछे से अपनी बाँहों में जकड लिया. उसका नंगा जिस्म मेरी नग्न पीठ पर मह्सूस होते ही मैं पीछे मुड़ा और आशु के होंठों को चूम लिया. मैंने नोटिस किया की उसके होंठ भी थोड़े सूजे लग रहे थे.
आशु: जानू! आप क्यों बना रहे हो, मुझे बोल दिया होता तो मैं बना देती.
मैं: आज मैंने अपनी जान को बहुत दर्द दिया है, इसलिए सोचा आज मैं ही तुम्हें अपने हाथ से बना हुआ कुछ खिला दू.
आशु: दर्द तो आपको भी हुआ होगा ना? पर सच कहूँ तो आज अपने मुझे दुनिया भर की ख़ुशी एक साथ दे दी है! इसलिए आज तो मुझे आपकी सेवा करनी है, आखिर आज से आप मेरे पति जो हो गए हो!
मैं: चलो मुँह-हाथ धो कर आओ.
आशु हँसते हुए बाथरूम में चली गई और मैंने मॅगी एक ही प्लेट में परोस ली और प्लेट ले कर जैसे ही बिस्तर की तरफ घुमा की मुझे उस पर खून और हमारे कामरस का घोल पड़ा हुआ मिला. मैंने प्लेट टेबल पर रखी और चादर को बिस्तर से हटाया पर तब तक अभूत देर हो चुकी थी. मेरा गद्दा भी बीच में से लहू-लुहान हो चूका था! मैंने पंखा तेज चालु किया और जमीन पर ही प्लेट ले कर बैठ गया.आशु जब बाथरूम से आई तो मुझे नीचे बैठा देख हैरान हुई पर इससे पहले वो कुछ बोलती उसकी नजर बिस्तर पर पड़ी और वहां खून देख कर उसकी आँखें फटी की फटी रह गई.
"हाय! इतना सारा खून! कुछ बचा भी मेरे जिस्म में या सब निकल गया?" ये सुन कर मुझे हँसी आ गई और मुझे हँसता देख आशु भी खिलखिलाकर हँस पडी. आशु भी मेरे सामने ही नग्न फर्श पर बैठ गई और ठन्डे फर्श की चपत जब उसके नितंबो पर लगी तो वो 'आह' कर के फिर हँसने लगी. हमने मैगी खाई और फिर आशु बर्तन उठा कर किचन में रखने चली गई और मैं उठ कर बाथरूम में हाथ-मुँह धोने चला गया.मैंने बाथरूम से ही आशु को आवाज दे कर दूसरी चादर बिछाने को कहा. आशु ने जैसे ही अलमारी से चादर निकाली उसे मेरी गांजे की पुड़िया दिखाई दे गई. उसे जरा भी देर नहीं लगी ये समझते हुए की ये गांजा है. जैसे ही मैं बाथरूम से निकला वो मुझे पुड़िया दिखाते हुए बोली; "ये क्या है?" उसके हाथ में पुड़िया देखते ही मेरी हवा खिसक गई. अब उससे झूठ तो बोल नहीं सकता था.
मैं: वो....गा...गांजा है! (मैंने सर झुकाये हुए कहा.)
आशु: आप गांजा पीते हो? (उसने हैरानी से पूछा.)
मैं: कभी-कभी...
आशु: क्यों पीते हो? (उसने गुस्सा करते हुए पूछा.)
मैं: वो... वो... कभी...टेंशन होती है तो.... थोड़ा....
आशु: टेंशन तो दुनियाभर में सब को है, तो क्या सब ये पीते हैं?
मैं: सॉरी!
आशु: कब से पी रहे हो आप?
मैं: कॉलेज...के ...
आशु: और इसके लिए पैसे कहाँ से आते थे?
मैं: वो... टूशन....देता... था...तो....
आशु: तो इस काम के लिए आप कॉलेज के दिनों में जॉब करते थे?
मैं:हाँ ...
आशु: मुझे कभी कुछ बताया क्यों नहीं? अगर आपको कोई बिमारी लग जाती तो?
मैं: सॉरी....मैं...मैं....
आशु: आज के बाद आप कभी भी इसे हाथ नहीं लगाओगे! समझे?
मैं: हाँ ...
आशु: खाओ मेरी कसम? (आशु मेरे पास आई और मेरा हाथ अपने सर पर रख कर मेरे जवाब का इंतजार करने लगी.)
मैं: मैं तुम्हारी कसम खाता हूँ... आज के बाद कभी इसे हाथ नहीं लगाऊँगा!
ये सुन कर आशु ने वो पुड़िया कूड़े में फेंक दी और नाराज हो कर बिस्तर पर दूसरी चादर बिछाने लगी. मैं अपने हाथ बांधे सर झुकाये उसे देखता रहा. जब चादर बिछ गई तो आशु मेरे पास आई और मेरी ठुड्डी ऊपर उठाई और मेरी आँख में देखते हुए बोली; "और क्या-क्या शौक हैं आपके?"
"जी...कभी-कभी दारु भी पीता हूँ!" ये सुनते ही आशु की आँखें चौड़ी हो गईं और उसका गुस्सा फिर से लौट आया.
"मतलब अपनी जान देने की पूरी तैयारी कर रखी है आपने? आपको कुछ हो गया तो मेरा क्या होगा? ये कभी सोचा आपने?" ये कहते हुए उसकी आँखें नम हो आईं थी.
"अरे जानू... मैं कोई रोज-रोज थोड़ी ही पीता हूँ? वो तो कभी कभार किसी पार्टी में या किसी के बर्थडे पर! चलो आई प्रॉमिस आज के बाद ये सब बंद! अब तो मुस्कुरा दो मेरी जान!" ये सुन कर आशु को तसल्ली हुई और उसके चेहरे पर मुस्कान लौट आई. घडी में २:३० बजे थे, पेट भरा था और संभोग से दिल भी भरा हुआ था तो अब बारी थी सोने की. मैंने हम दोनों के पहनने के लिए अलमारी से दो टी-शर्ट निकाली तो आशु कहने लगी; "क्या जरुरत है? हम दोनों ही तो हैं यहाँ!" तो मैंने टी-शर्ट वापस अंदर रख दी और हम दोनों एक दूसरे के आगोश में लेट गये.
मैं: जान! अब भी दर्द हो रहा है?
आशु: हम्म्म...थोड़ा-थोड़ा ... और आपको?
मैं: थोड़ा...
आशु का हाथ अपने आप ही मेरे लिंग पर आ गया और वो अपनी उँगलियों से उसे सहलाने लगी. ठुकाई की थकावट आशु पर असर दिखाने लगी थी आँखें बोझिल होने लगी और वो सो गई. पर मेरा मन अब भी प्यासा था. अब उसे उठाने का मन नहीं किया और इधर नींद में उसने अपने को और कस कर मेरे जिस्म से चिपका लिया और सो गई. मैं उसके दाएं गाल को सहलाता हुआ कब सो गया पता ही नहीं चला. जब आँख खुली तो साँझ हो चुकी थी और घडी सात बजा रही थी. मैं उठा तो आशु भी उठ गई और अपनी बाहें खोल कर उसने अंगड़ाई ली. आशु के स्तन अंगड़ाई लेने से आगे को निकल आये और मुझसे कण्ट्रोल नहीं हुआ तो मैंने उसके दाएं स्तन को चूम लिया. आशु की 'सीईई' निकल गई और उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को अपने स्तन पर दबा दिया. मैंने अपनी जीभ से उसके पूरे स्तन को चाटा और उससे अलग हो कर खड़ा हो कर अंगड़ाई लेने लगा. मेरा मुँह ठीक आशु के सामने था और अभी आशु के स्तनपान के बाद लिंग खड़ा हो गया था जो अंगड़ाई लेते समय आशु के सामने बिलकुल सीधा खड़ा था और उसे अपने पास बुला रहा था. मैंने जब आशु की तरफ देखा तो पाया वो मंत्रमुग्ध सी मेरे ही लिंग को देख रही थी. मैंने एक चुटकी बजा कर उसकी तन्द्रा को भंग किया और जैसे वो किसी ख्यालों की दुनिया से बाहर आई हो वैसे मुझे देख कर मुस्कुरा दी. मैंने उसे अपना तौलिया दिया और नहाने को कहा तो उसने अदा के साथ वो तौलिया लिया और मेरा हाथ पकड़ के अंदर बाथरूम में खींच के ले जाने लगी. "जान! वहाँ इतनी जगह नहीं है की हम दोनों एक साथ नहा सके."
"जगह बन जाएगी, आप आओ तो सही." उसने फिर से मेरा हाथ खींचा और मैं भी उसके साथ अंदर घुस गया.उसने इशारे से मुझे कमोड पर बैठने को कहा, खुद शावर का मुँह मेरी तरफ कर के चालु किया और आ कर मेरी गोद में बैठ गई. लिंग आशु के योनी के सम्पर्क में आते ही अकड़ के खड़े हो गये.पानी की बूंदें आशु के जिस्म पर ज्यादा और मेरे ऊपर कम पढ़ रही थी. आशु टकटकी बंधे मुझे देखे जा रही थी की तभी पानी की एक धार आशु के बालों से बहती हुई ठीक उसके निचले होंठ पर आ गई. आशु के गुलाबी होंठ उस पानी से पूरी तरह भीग पाते उससे पहले ही मैंने उसके निचले होंठ को अपने मुँह में भर के चूसा. आशु की उँगलियाँ मेरे बालों में चलने लगी थी और उसके भीतर भी आग दहकने लगी थी. मेरे लिंग ने भी नीचे से धीरे-धीरे उसकी योनी पर थाप देना शुरू कर दिया था. आशु ने अपने होठों को मेरे होठों की गिरफ्त से छुड़ाया और सिधी खडी हो गयी. उसने मेरे लिंग को अपनी योनी के नीचे सेट किया और धीरे-धीरे अपनी योनी को मेरे लिंग पर दबाने लगी पर जैसे ही थोड़ा सूपड़ा अंदर गया उसे दर्द होने लगा. दरअसल उसकी योनी अभी अंदर से सूखी थी इसलिए वो फिर से खडी हो गई और अपने दाहिने हाथ में ढेर सारा थूक उसने योनी और मेरे लिंग के सुपाड़ी पर अच्छे से लगा दिया और फिर धीरे-धीरे मेरे लिंग पर अपनी योनी को रगडणे लगी. इस बार लिंग अंदर जाने लगा पर दर्द तो उसे अभी भी हो रहा था. वासना हम दोनों ही के अंदर भड़क चुकी थी और मुझसे उसका ये 'स्लो ट्रीटमेंट' बर्दाश्त नहीं हो रहा था. इसलिए मैंने भी नीचे से कमर को धीरे-धीरे ऊपर की ओर उठाना शुरू कर दिया ताकि लिंग जल्दी से अंदर चला जाये. लिंग अभी आधा ही अंदर गया था की वो दर्द के मारे रूक गई और मेरी हालत तो ऐसे हो गई हो जैसे किसी ने गला दबा कर साँस रोक दी हो.
आशु की योनी ने कस के लिंग को जकड लिया और जैसे वो उसे अंदर जाने से रोक रही हो और लिंग था जो और अंदर जाना चाहता था. "जान?!" मैंने आशु से मिन्नत करते हुए कहा तो उसने हाँ में गर्दन हिला कर मुझे खुद ही आगे बढ़ने की इज्जाजत दे दी. मैंने अपनी तरफ से पूरी कोशिश करूँ की आशु को ज्यादा दर्द न हो पर ये कमबख्त जिस्म वासना से जल रहा था इसलिए मैंने कुछ ज्यादा ही जोर से लिंग अंदर पेल दिया और आशु की एक जोरदार चीख निकली; "आअह", उसने अपनी गर्दन दर्द के मारे पीछे की तरफ झटक दी. मैंने अपने दोनों हाथों को उसकी नग्न पीठ पर फिराया और उसे अपने जिस्म से चिपका लिया. दर्द के मारे उसकी आँख बंद हो चुकी थी और आंसुओं की लकीर बह निकली थी. पर लिंग इधर योनी की गर्मी में पिघलने लगा था.मेरी कमर ने अपने आप ही आशु को ऊपर झटका देना शुरू कर दिया. आशु ने कस कर मेरे सर को अपनी छाती से दबा लिया और अपने हाथों को लॉक कर दिया जिससे मेरा सर हिल भी नहीं सकता था. दो-चार सेकंड बाद जब साँस लेने में दिक्कत होने लगी तो हाथों ने आशु की पीठ पर चलना शुरू किया और जैसे ही उँगलियों में उसके बाल आये तो मैंने उन्हें पीछे की तरफ खिंचा. आशु की गर्दन पीछे की तरफ खींच गई और उसकी गिरफ्त मेरे सर के इर्द-गिर्द ढीली पडी. मैंने उसके बालों को अपनी ऊँगली से ढीला छोड़ा तब आशु ने अपनी आँखें खोली और मेरी आँखों में देख कर उसे जैसे होश आया हो. इधर मेरी कमर फिर से नीचे से धक्के देने लगी पर आशु ऊपर ज्यादा नहीं उठ रही थी. जब उसे इस बात का एहसास हुआ तो उसने खुद ही मेरे लिंग पर धीरे-धीरे ऊपर-नीचे होना शुरू कर दिया. "ससससीई" कहते हुए उसने अपनी गति बढ़ा दी थी. माने अपने दोनों हाथों को उसकी कमर के इर्द-गिर्द कस रखा था की कहीं वो गिर ना जाये. आशु पर अब ठुकाई की खुमारी चढ़ने लगी थी और उसने अपने दोनों हाथों को अपने बालों में अदा के साथ फिराना शुरू कर दिया था. ऐसा करने से उसके स्तन उभर के बाहर आ गए थे और उन्हें देख मेरा सब्र जवाब देने लगा था.
पाँच मिनट के बाद आशु ने पानी बहाना शुरू कर दिया और वो थककर मेरे सीने से लगने को आई. पर मैंने उसके दाहिने स्तन को पकड़ लिया और चूसने लगा. आशु ने मेरे सर को फिर से अपने स्तन पर दबाना शुरू कर दिया. उसकी उँगलियाँ फिर से मेरे सर पर रास्ता बनाने लगी और मैंने बारी-बारी से उसके दोनों स्तनों को चूसना और काटना शुरू कर दिया. मेरा लिंग अब अकड़ कर चीखने लगा था और आशु तो जैसे थक कर अपना सारा वजन मुझ पर डाल कर पड़ी थी और अपने स्तनों को चुसवा कर मजे ले रही थी. मैंने अपने दोनों हाथों से आशु की कमर को कस कर पकड़ा और मैं उठ खड़ा हो गया और उसे दिवार से सटा कर अपने लिंग को जोर से अंदर-बाहर करना शुरू कर दिया. आशु की दोनों टांगें मेरी कमर के इर्द-गिर्द टाइट हो चुकी थी और वो मेरे और दिवार के बीच दबी हुई थी. मेरी रफ़्तार बहुत तेज थी. इतनी तेज की आशु एक बार फिर झड़ गई और उसने फिर से मुझे कस कर अपने से चिपका लिया पर मैंने अपने धक्के चालु रखे और अगले ही क्षण मैंने अपना सारा गाढ़ा रस उसकी योनी में बहा दिया और उसके ऊपर ही लुढ़क गया.शावर से आ रहे ठन्डे पानी मेरे सर पर पड़ रहा था जिसके कारण जिस्म ज्यादा थका नहीं था. मिनट भर बाद मैंने आशु की आँखों में देखा तो मुझे उसकी आँखों में संतुष्टि नजर आई, उसने धीरे से अपने पैरों को नीचे फर्श पर टिकाया और मैं उससे दूर हुआ. पर अगले ही पल उसने मेरा हाथ थामा और अपने पंजों पर खड़े हो कर मेरे होठों को चूम लिया और मुस्कुरा दी. फिर हम साथ नहाये, उसने मुझे और मैंने उसे साबुन लगाया और फिर शावर के नीचे नहा के हम दोनों बाहर आये. अब तो बड़ी जोर से भूख लगी थी इसलिए मैंने खाना आर्डर करना चाहा तो आशु ने मना कर दिया और खुद ही बिना कपडे पहने किचन में खाना बनाने लगी. मैंने ही एक टी-शर्ट निकाल कर उसे दी;
मैं: जान इसे पहन लो.
आशु: क्यों? मुझे बिना कपडे के देखना आपको पसंद नहीं?
मैं: तुम्हें ऐसे देख कर मेरा ईमान डोल रहा हे.
आशु: हाय! सच्ची?
मैं: हाँजी!
आशु: डोलने दो! मैं तो आपकी ही हु. (आशु ने मुझे आँख मारते हुए कहा.)
आशु ने मेरी बात नहीं मानी खाना बनाने में लगी रही पर मेरा मन कहाँ मानने वाला था. मैं भी उसके पीछे सट के खड़ा हो गया और अपने दोनों हाथों को उसकी कमर से ले जाते हुए उसकी नाभि के ऊपर कस दिया. उसकी सुराही सी गर्दन मुझे चूमने के लिए बुला रही थी. मेरे दहकते होठों ने जैसे ही छुआ की आशु के मुँह से मादक सी सिसकारी निकल गई. "सससस...sssss .... आप जान ले कर रहोगे मेरी!" उसने मेरे हाथों को खोल कर आजाद होने की एक नाकाम कोशिश की पर मैं कहाँ मानने वाला था. मैं उसी तरह उसे अपनी बाँहों में कैसे हुए अपनी कमर को दाएँ-बाएँ हिलाने लगा और धीरे-धीरे नाचने लगा. आशु भी मेरा साथ देने लगी और उसने शेल्फ पर रखे अपने फ़ोन पर गाना चला दिया.
"तुझको मैं रख लूँ वहाँ
जहाँ पे कहीं है मेरा यकीं
मैं जो तेरा ना हुआ
किसी का नहीं
किसी का नहीं"
गाना सुनते-सुनते हम थिरकते रहे और आशु साथ-साथ खाना भी बनाती रही. रात नौ बजे तक मैं यूँ ही उसके जिस्म से अटखेलियाँ करता रहा और वो कसमसा कर रह जाती. आखिर खाना बना और आशु ने एक ही थाली में दोनों के लिए खाना परोसा और मुझे फर्श पर ही बैठने को कहा. मैं फर्श पर दिवार से सर लगा कर बैठा था. वो थाली पकडे मेरे सामने बैठ गई और मुझे अपने हाथ से कोर खिलाने लगी. मैंने भी उसे अपने हाथ से खिलाना शुरू कर दिया. खाना खा कर दोनों ही पलंग पर लेट गये. नींद तो आने वाली थी नहीं तो आशु ने कहा की उसे अश्लील मूवी देखनी है इसलिए मैंने उसे एक मूवी फ़ोन में चला कर दी. मैं दिवार का सहारा ले कर बैठा था और वो मेरे सीने पर सर रख कर बैठी थी. उस मूवी में लड़की के स्तन बहुत बड़े थे जिन्हें देख आशु को अपने स्तनों के अकार से निराशा हुई. उसके स्तनों का साइज छोटा था और अब चूँकि मैं उसकी निराशा ताड़ गया था इसलिए मैंने मूवी रोक दी. "क्या हुआ जान?" तो उसने जवाब में अपना सर झुका लिया और अपने स्तनों को देखते हुए बोली; "आपको तो बड़े...... पसंद हैं.... और मेरे.... तो छोटे!" उसने अटक-अटक कर कहा. "मैंने तुमसे प्यार तुम्हारे इनके (उसके स्तनों को छूते हुए) लिए नहीं किया."
"सच?" उसकी आँखें चमक उठी. "इन लड़कियों के बड़े इसलिए होते हैं क्योंकि इन्होने सर्जरी कराई हे." इतना कह के मैंने उसे थोड़ा ज्ञान बाँटा, पर सर्जरी का नाम सुन के जैसे वो हैरान हो गई. उसने फ़ोन साइड में रखा और और मेरी आँखों में देखते हुए बोली; "मैं भी कराऊँ?"
"बेबी! आपको ऐसा कुछ भी कराने की कोई जरुरत नहीं है! मैंने आपसे कहा ना की मैं आपसे प्यार करता हु. भगवान ने आपको जैसा भी बनाया है सुन्दर बनाया है और ये सर्जरी वगैरह करके इसकी सुंदरता ख़राब मत करो." मेरा जवाब सुन कर वो संतुष्ट हो गई. उसे विश्वास होगया की मेरा प्यार सिर्फ उसके जिस्म तक सीमित नहीं हे.
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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