Incest अनैतिक संबंध

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rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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“दीं जनरल त्रेट ऑफ अ फ्रेंडशिप इनक्लूड सिमीलर इंटरेस्ट, म्युचुअल रिस्पेक्ट अँड एन अट्याचमेंट टू इच अदर….” ये कहते हुए मैडम एकदम से रुक गईं, ऐसा लगा जैसे वो कुछ ऐसा बोल गईं जो उन्हें नहीं बोलना चाहिए था. मैं अब कुछ-कुछ समझने लगा था की आखिर मैडम के मन में क्या चल रहा है पर कुछ भी कहने से डर रहा था. डर इसलिए रहा था की कहीं मैं गलत निकला तो मैडम के नजर में जो मेरी इज्जत है वो चली जाएगी और एक डर ये भी था की कहीं मेरे कुछ कहने से उनका दिल न टूट जाये. मैंने सोचा की मैं अपनी बात कुछ इस तरह से रखूँगा की उन्हें ये समझ आ जाये की मैं प्यार क्यों नहीं कर सकता.
“यू आर एवन गिविंग मी कंपनी इन वॉकिंग!” इतना कह कर वो हँसने लगी. “सो नाऊ वीआर फ्रेंड्स राईट?” अब मैं इसका जवाब ना तो नहीं दे सकता था. इसलिए मैंने हाँ में सर हिलाया और मैडम ने हाथ मिलाने के लिए अपना दायाँ हाथ आगे बढाया. मैंने अभी उनसे हाथ मिलाया और मुस्कुरा दिया.
हम वॉक करते-करते करीबन एक किलोमीटर दूर आ गए तो मैडम ने चाय पीने के लिए कहा. टपरी वाली मस्त चाय पी कर मैडम में शॉपिंग के लिए बोला और हम जुहू मार्किट आ गए वहाँ मैडम ने कुछ बालियाँ खरीदी और खरीदते वक़्त वो बार-बार मुझसे पूछती की ये कैसी हे. मैंने भी पूरा इंटरेस्ट लेते हुए उन्हें एक बालियाँ उठा के दीं जो उन पर बहुत जच रही थी. उन्हें पहन के तो मैडम खुश हो गईं और मेरी पसंद की तारीफ करने लगी. मेरा मन किया की मैं आशु के लिए भी एक बाली खरीदूं पर मैडम से क्या कहूँगा ये सोच कर रह गया.कुछ दूर आ कर मैडम ने मॉल जाने के लिए कहा और हम एक मॉल में घुसे. वहाँ एक शोरूम में मैडम ने मुझे एक बिज़नेस सूट दिया और ट्राय करने को कहा. अब ये देख कर तो मेरी आँख फटी की फटी रह गई. "आई एम सॉरी मॅडम! आई कान्ट टेक दिस.”
"क्यों?" मैडम ने सवाल पूछा. “मॅडम इट्स वे टू कोस्टली! I …आई कान्ट अफ्रेड इट!” मैंने दबी हुई आवाज में कहा. “ओह कम ऑन! इट्स अ गिफ्ट… फ्रॉम अ फ्रेंड टू अनादर.”
“नो…नो…नो… मॅडम… आई कान्ट… प्लीज” मैंने उन्हें मना करते हुए कहा. पर उन्होंने जबरदस्ती करते हुए कहा;"इसका मतलब की हम दोस्त नहीं हैं?"
"जी मैंने ऐसा तो कुछ नहीं कहा. दोस्ती में जरुरी तो नहीं की इतना महँगा गिफ्ट दिया जाए?" मैंने उन्हीं की बात उन पर डालते हुए कहा. "पर मैं अपनी ख़ुशी से दे रही हूँ!"
"जानता हूँ मॅडम पर मैं इतना महँगा गिफ्ट अभी डीजर्व नहीं करता!" मैंने बात खत्म करना चाहा पर मैडम तो जैसे अड़ ही चुकी थी की वो मुझे गिफ्ट दे कर रहेगी. "क्या डीजर्व नहीं करता?" उन्होंने गुस्से में मेरा हाथ पकड़ के मुझे एक तरफ खड़ा किया और गुस्से में बोली; "एक लड़का जो पिछले दो दिन से मेरा इतना ख्याल रख रहा है, ट्रैन में मुझे उन लफंगों की गन्दी नजरों से बचाता है! होटल के एक कमरे में मैं नशे में थी फिर भी जिसने मेरा कोई गलत फायदा नहीं उठाया वो ये सूट डीजर्व नहीं करता तो फिर इस दुनिया में शीवरली की कोई कीमत ही नहीं हे."
"मॅडम तो आप मुझे ये सब करने की कीमत दे रहे हो? अभी तो आप ने कहा की हम दोस्त हैं और अभी आप कीमत की बात कर रहे हैं?"
"मेरा वो मतलब नहीं था..... उस टाइम आपने राखी से कहा था ना की आज पता चला की इंसान की जिंदगी में कपड़ों की क्या वैल्यू होती है, मुझे बहुत बुरा लगा."
"मॅडम वो...." आगे बोलने के लिए मेरे पास शब्द नहीं थे. मैं बहुत ही गैरतमंद इंसान हूँ और उनसे ऐसा कोई भी तोहफा नहीं लेना चाहता था. शायद वो ये समझ गईं थीं इसलिए वो बोलीं; "अच्छा एक शर्ट तो ले लो?" अब मुझे बुरा लग रहा था की मैं भला कब तक उन्हें ऐसे मना करू. "ठीक है पर पैसे मैं दूंगा."
"अरे ये क्या बात हुई? ठीक है! पसंद मैं करुंगी." उन्होंने हँसते हुए कहा और मैंने भी और मना नहीं किया. फिर मैडम ने एक नेवी ब्लू कलर की एक शर्ट पसंद की जिसे मैंने उन्हें ट्राय करके दिखाया और पैसे मैंने दिये.
शाम के ६ बजने लगे थे तो मैडम ने पावभाजी खाने के लिए कहा. मैं इधर सोच रहा था की आशु के लिए क्या खरीदूँ, आखिर मुझे याद आया की उसने एक बार मुझसे डायरी माँगी थी. तो पावभाजी खाने के बाद मैंने एक डायरी ली.मैडम ने मुझे वो डायरी लेते देखा तो खुद को पूछने से रोक न पाईं; "आप शायरी करते हो क्या?" अब मुझे कुछ तो जवाब देना ही था सो मैंने हाँ में सर हिला दिया और ये सुन करते वो मुझसे और भी ज्यादा इम्प्रेस हो गई. तो एक शेर हमें भी सुनाइए! मैडम की फरमाइश पर मुझे आशु की याद आ गई और फिर मुझे गुलाम अली जी का एक शेर याद आ गया;
"फासले ऐसे भी होंगे,
ये कभी सोचा ना था.
सामने बैठा था मेरे,
और वो मेरा ना था."
ये सुनते ही मैडम एक दम से चुप हो गईं. एक पल के लिए मेरे सामने आशु का चेहरा आ कर ठहर गया."आप शायरी इस डायरी में जरूर लिखना." इतना कह कर मैडम ने अपनी चुप्पी तोड़ दी और मैंने भी सोचा की इसे पढ़ कर आशु भी खुश हो जायेगी. शायद उसे उसकी बेरुखी भी याद आ जाये! खेर हम थोड़े दूर वहीँ घूमें. मैंने मैडम की कुछ तसवीरें लीं उन्हींके फ़ोन से और फिर खाना खा कर होटल ८ बजे पहुंचे. वहाँ से चेक-आउट किया और स्टेशन पहुँच गए. हम वहाँ एक बेंच पर बैठ गये. ट्रैन आई और हम अपनी-अपनी बर्थ पर लेट गये. इस बार हमारी टिकट्स कन्फर्म हो गई थीं.नाम वाली दिक्कत अब भी हुई तो फिर मैंने कैसे ना कैसे कर के बात संभाल ली.
आज रात मैं चैन से सोया इस ख़ुशी में की शनिवार को मुझे देख कर आशु खुश हो जायेगी. हालाँकि मैडम ने दो बार मुझे उठाया था क्योंकि उन्हें वाशरूम जाना था और मैंने इसका कोई माइंड नहीं किया. अगले दिन आठ बजे मैडम ने मुझे उठाया. फ्रेश हो कर हम ने चाय-नाश्ता किया. सर का फ़ोन आया और मुझे नहीं पता की उनकी क्या बात हुई क्योंकि मैं डायरी में वही शेर लिख रहा था. सर से बात कर के मैडम ने बात शुरू की; "इजंट इट स्ट्रेंज, अ हँडसम गाय फिल विद सो मच ऑफ शीवरली इज सिंगल?” उन्होंने शीवरली शब्द पर बहुत जोर दे कर कहा. ये सुन कर मेरे मन में जो पहले विचार आया था की शायद मैडम मुझसे प्यार करती हैं, क्यों ना उस विचार का गला घोट दू.
मैंने बहुत गंभीर होते हुए कहा; "मॅडम माई विलेज इज फेमस फॉर ऑनर किलिंग! माई कजन्स वाइफ वाज बर्न अलाईव बिकाज ऑफ दिस!” ये सुनते ही मैडम के हालत देखने लायक थी.उनका मुँह खुला का खुला रह गया.उनका हँसता-खेलता हुआ चेहरा मायूस हो गया और तभी उनको याद आय की वो ट्रैन वाला हादसा और जो होटल में हुआ वो; "आई….आई एम रियली सॉरी! दॅट टी. टी. ई. सॉ अस…अँड…ह…हाऊ…. आर यू गोइंग टू टेल देम?”
उनकी घबराहट उनके चेहरे से झलक रही थी और मैं भी अंदर ही अंदर जानता था की जब ये बात सामने आएगी तो काण्ड होना तय हे. क्योंकि कोई भी मेरी बात पर ऐतबार नहीं करता की जो कुछ हुआ उसमें मेरी कोई गलती नहीं थी. मैंने नकली मुस्कराहट अपने चेहरे पर लाते हुए कहा; “हावेंट थोट अबाउट इट! बट डोन्ट वरी .आई वॉन्ट ड्राग यू इन दॅट मेस!” मैंने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा. पर वह बिलकुल मायूस हो गईं और फिर से गिलटी महसूस करने लगी. अब उस समय मैं अगर ज्यादा कुछ बोलता तो शायद उसका कुछ गलत मतलब निकलता, उन्हें कहीं ये ना लगे की मेरे मन में भी उनके लिए कोई प्यार-व्यार है इसलिए मैं चुप-चाप फिर से लेट गया.पर मैडम बहुत उदास थीं!
अब एक हँसता-खेलता इंसान मेरे कारन गुम- सुम हो गया था और रह-रह कर मैं गिलटी महसूस करने लगा था. "मॅडम यू डोन्ट ह्याव टू वरी, दीं लिजीट पनिशमेंट आई विल गेट इज इदर म्यारिज ऑर किक फ्रॉम होम. अँड ट्रस्ट मी आई एम रियली हॅपी फॉर दीं पनिशमेंट!” मैंने थोड़ा हँसते हुए कहा ताकि उनका कुछ मन हल्का हो पर वो अब भी गुम-सुम थी.
"मॅडम आपके इस तरह गुम-सुम होने से इसका कोई हल तो निकलेगा नही. जब ये बात सामने आएगी तब मैं इसका कोई ना कोई हल निकाल लुंगा." पर मैडम अब भी चुपचाप थीं, इससे ज्यादा मैं उन्हें कुछ कह नहीं सकता था. पूरा सफर वो इसी तरह गुम-सुम रहीं और मुझसे कोई भी बात नहीं की.
रात दो बजे हम स्टेशन पहुँचे और अब वहाँ से घर जाना था. सर कार ले कर हम दोनों को लेने आये और मुझे घर छोडा. जब मैं जाने लगा तो मैडम ने मुस्कुराते हुए कहा; "कल की छुट्टी ले लेना, सी यू ऑन मंडे!" ये सुन कर मेरी लाटरी निकल गई और मैंने उन्हें 'शुक्रिया मॅडम' कहा और ऊपर चला गया.सर की उस टाइम जली जरूर होगी पर वो कुछ बोले नही.
घर आकर मे बिस्तर पर ऐसे ही पड़ गया और सो गया.अगली सुबह ७ बजे उठ कर तैयार हुआ और आशु के कॉलेज के लिए निकल गया.उसके कॉलेज के गेट पर बाइक रोक कर उसका इंतजार करने लगा, जैसे ही उस की नजर मुझ पर पड़ी वो भाग कर आई और मेरे गले लग गई और उसकी आँखों से गंगा-जमुना बहने लगी. "ये तीन मैंने कैसे काटे मैं ही जानती हूँ!" उसने रोते-रोते कहा.
"तीन दिन से मेरे कॉल 'काट' ही तो रही थी." मैंने उसे छेड़ते हुए कहा. ये सुन कर आशु फिर से गुस्सा हो गई पर उसे मनाने के लिए मैंने उसे उसका तौहफा दिया. डायरी देख कर तो वो खुश हो गई और उस पर छपे गेटवे ऑफ़ इंडिया की तस्वीर देख कर वो और भी खुश हो गई. अंदर खोल कर देखा तो दूसरे पैन पर मैंने वही शेर लिखा था जिसे पढ़ कर उसे मेरे दिल के दर्द के बारे में एहसास हुआ पर वो कान पकड़ के माफ़ी माँगने लगी. इतने में उसकी एक सहेली भी आ गई और मुझे देखते ही वो समझ गई की मैं उसका बॉयफ्रेंड हु. हालाँकि मैं ये नहीं चाहता था और उम्मीद कर रहा था की आशु बोलेगी की मैं उसका चाचा हु. पर आशु के कुछ कहने से पहले ही वो बोल पड़ी; "ओह! तो ये ही हैं वो जिनकी वजह से तू इतने दिन गुम-सुम थी?" ये सुन कर वो शर्मा गई और मेरी बाजू पर अपना सर रख दिया. "हाई" मैंने इतना कहा और उसने अपना हाथ आगे करते हुए कहा; "माय सेल्फ निशा.मैंने उससे हाथ मिलाया और "राज " कहा. निशा ने मेरा हाथ बहुत जोर से दबा रखा था और वो हाथ छोड़ ही नहीं रही थी इसे देख आशु जल गई और उसने दोनों का हाथ छुड़वा दिया. "हेल्लो मैडम आप जा कर अपने वाले से हाथ मिलाओ" ये सुन कर हम दोनों हँस पडे.
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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"तो चलें?" मैंने आशु से कहा तो हैरानी से मेरी तरफ देखने लगी. "क्या कोई जरुरी लेक्चर है?" वो खुश हो गई और ना में सर हिलाया और फ़ौरन बाइक पर पीछे बैठ गई. निशा और जोर से हँसने लगी और फिर बाय बोल कर चली गई. आशु हमेशा की तरह मेरी पीठ से चिपक कर बैठ गई. जैसे की तीन दिन से उसका जिस्म बर्फ बन गया था और मेरे बदन की तपिश से वो सारी बर्फ पिघलना चाहती थी. "तो जान! बताओ की जाना कहाँ है?" मैंने उससे पूछा.
"घर और कहाँ?" आशु तपाक से बोली. मैं समझ गया था की उसे घर क्यों जाना था तो मैंने रास्ते से खाने के लिए कुछ पैक करवाया और फिर हम दोनों घर आ गये.
ऊपर आ कर जैसे ही मैंने दरवाजा बंद किया की आशु ने मुझे पीछे से कस कर अपनी बाहों में भर लिया. "हम्म्म्म....आप के बिना इतना दिन मैं अधूरी हो गई थी." आशु ने मेरी पीठ पर कमीज के ऊपर से किस करते हुए कहा. मैं उसकी तरफ घुमा और उसे गोद में उठा कर पलंग पर लिटाया और जूते उतार के मैं भी उसकी बगल में पाँव ऊपर कर के लेट गया.उसने मेरे बाएं हाथ को अपना तकिया बनाया और मुझसे मुंबई के बारे में सब पूछने लगी. मैंने पहले तो उसे मेरे कॉर्पोरेट वर्ल्ड का एक्सपीरियंस बताया जिसे सुन कर वो दंग रह गई. मेरे बिज़नेस सूट वाली बात पर वो भी मायूस हुई और कहने लगी की जब उसे पहली सैलरी मिलेगी तो वो मुझे ये सूट दिलायेगी. ये सुन कर मुझे उस पर बहुत प्यार आने लगा. वहाँ खींची तसवीरें देख आशु का मन वहाँ जाने का कर रहा था और वो कहने लगी की शादी के बाद जब हमारी लाइफ सेटल हो जाएगी तो वो मुंबई मेरे साथ जरूर जायेगी. इसी तरह से हम दोनों बातें करते रहे और फिर मैंने सोचा की उसे सच-सच बता दूँ जो भी कुछ हुआ, क्योंकि मैं उससे कुछ भी नहीं छुपाना चाहता था. तो मैंने उसे शुरू से लेकर आखिर तक सारी बात बता दी और ये सब सुनते ही वो छिटक कर मुझसे दूर खडी हो गई.
आशु: तो इसलिए गए थे ना आप उस मैडम के साथ? (उसने गुस्से में कहा)
मैं: यार मैंने क्या किया? बॉस ने लास्ट मोमेंट पर बोला की उनकी जगह मॅडम जाएँगी तो मैं क्या करता?
आशु: उसकी हिम्मत कैसे हुई आपको छूने की?
मैं: यार कुछ गलत इंटेंशन नहीं था उनका... वो बस....
आशु: (मेरी बात काटते हुए) आपको कैसे पता की इंटेंशन सही थी या गलत? और आप ने उसे खुद को छूने कैसे दिया? (आशु ने चीखते हुए कहा.)
मैं: आशु बात को समझने की कोशिश कर! वो दोनों लड़के उन्हें घूर-घूर के देख रहे थे! शी वाज स्केअर्ड! वो मुझे ट्रस्ट करती थीं इसलिए उन्होंने सिर्फ मेरी गोद में सर रखा. मैंने उन्हें जरा भी नहीं छुआ?
आशु: ये देखने के लिए मैं तो नहीं थी ना? एक होटल में दोनों पति-पत्नी के नाम से रहे रहे थे! आपने उसे जरा भी नहीं कहा की मॅडम आप ये गलत कर रहे हो?
मैं: रात के तीन बज रहे थे, कहीं भी कमरा नहीं मिल रहा था! हर कोई गलत ही सोच रहा था तो ऐसे में उन्हें मजबूरन झूठ लिखना पडा. मेरा विश्वास कर उस रात मैं सोफे पर सोया था और वो पलंग पर! हमारे बीच कुछ भी नहीं हुआ था. एक पल भी मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं आया! उन्होंने तो मुझे दारु भी ऑफर की पर मैंने सिर्फ इसलिए मना कर दिया क्योंकि मैंने तुमसे वादा किया था., इतना प्यार करता हूँ तुम से!
आशु: मैं कैसे मान लूँ? एक कमरे में एक आदमी और एक औरत हैं और फिर भी उन दोनों के बीच कुछ नहीं हुआ! ये सतयुग है क्या?
मैं: .....
आशु: (मेरे कुछ कहने से पहले ही आशु बोल पडी.) आपको कैसा लगता अगर ये सब मेरे साथ हुआ होता? क्या आप मेरी बात पर भरोसा करते?
मैं: (उसकी आँखों में देखते हुए) हाँ ... मैं तुम्हारी बात का विश्वास करता क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ, तुम पर आँख मूँद कर विश्वास करता हु.
आशु: वेल मैं आप पर विश्वास नहीं कर सकती! उस जैसी बला की खूबसूरत औरत के साथ आप रहे और फिर भी उसे छुआ तक नही.
ये सुन कर मेरा दिल बहुत दुख की वो मुझ पर जरा भी भरोसा नहीं करती. पर मैंने जैसे-तैसे खुद को संभाला.
आशु: जब मैंने उसे वीडियो कॉल पर देखा था तभी से मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था! मुझे पता था वो आपको मुझसे छीन लेगी. (ये बोलते हुए रोने लगी. मैंने उसके आँसूँ पोछने चाहे तो उसने मेरा हाथ झिटिक दिया.)
मैं: जान मेरी बात को समझो! प्लीज ... प्लीज मेरा विश्वास करो! (मैंने उसके आगे हाथ जोड़े पर उसका उसक पर कोई असर नहीं पडा.)
आशु: आप एक बात का जवाब दो, जब आपके बॉस ने कहा की मेरी जगह आप मेरी बीवी के साथ चले जाओ तो आप मना नहीं कर सकते थे?
मैं: यार वो बॉस है मेरा, उसका कहा मानने के पैसे मिलते हैं मुझे.
आशु: कल को वो कहेगा की उसकी बीवी के साथ सो जाओ तो आप सो जाओगे?
ये सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने आशु पर हाथ छोड़ दिया.
मैं: बस! अब बहुत हो गया, इतनी देर से मैं मिन्नतें कर रहा हूँ और तुम्हें उस पर विश्वास ही नहीं हो रहा हे. मैं बुद्धू था जो मैंने तुम्हें सब कुछ बता दिया. ये विश्वास कर के की तुम्हें सच पता होना चाहिए. पर नहीं तुम्हें तो बेकार का बखेड़ा खड़ा करना है?
आशु रोने लगी और रोते हुए बोली; "आपके मन में उस के लिए प्यार है, उसकी इज्जत प्यारी है आपको? मेरी कोई वैल्यू नहीं?" इतना कह कर वो रोती हुई चली गई. मैं भी उसके पीछे-पीछे भागा और उसे आवाज दे कर रोकना चाहा पर वो नहीं रुकी और ऑटो कर के चली गई. मुझे उसकी चिंता हुई तो मैंने जल्दी से ऑटो का नंबर नोट किया और घर वापस आ गया.मैं जमीन पर बैठा सोचता रहा की अभी जो कुछ हुआ उसमें मेरी गलती थी क्या? आशु को सच बताना गलती थी? या उस दिन मौके का फायदा नहीं उठाना गलती थी? या फिर मैंने आशु पर हाथ उठाया, वो गलत था? पर मैंने हाथ इसलिए उठाया क्योंकि नितु मैडम के चरित्र पर ऊँगली उठा रही थी! दिमाग में जैसे उधेड़-बुन शुरू हो गई थी. दिमाग कहता था की तुझे आशु को बताने की जरुरत नहीं थी. पर दिल कह रहा था की तूने इसलिए बताया क्योंकि आगे चल कर हमारे रिश्ते में कोई गाँठ ना पड़ जाये. ये आशु का बचपना है, कुछ देर में शांत हो जायेगा. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ, मैं उसे कॉल करता रहा पर उसने फ़ोन बंद कर दिया. मैंने उसके कॉलेज के चक्कर लगाना शुरू कर दिया पर अब उसने मुझे वहाँ भी इग्नोर करना शुरू कर दिया. एक दिन मैं उसके हॉस्टल भी गया उससे मिलने पर वहाँ भी उसने मुझसे कोई बात नहीं की, बस हाँ-ना में जवाब देती रही. अब चूँकि वहाँ आंटी जी थीं तो मैं ज्यादा कुछ कह भी नहीं पाया. वो भी उठ कर चली गई ये बहाना कर के उसे असाइनमेंट पूरा करना हे. पूरे दो हफ्ते तक आशु इसी तरह करती रही, फोन बंद रखती और मैं यहाँ उसे रोज फ़ोन करता इस आस में की शायद अब वो फ़ोन उठा ले! इधर ऑफिस में मैडम अब मुझसे हँसते हुए बात करने लगी थीं, पर सिर्फ तब जब सर नहीं होते थे. मैं उनके सामने बस उसी तरह जवाब देता जैसे पहले देता था उससे ज्यादा मैंने कुछ रियेक्ट नहीं किया. जब की मेरे मन का दुःख सिर्फ मैं ही जानता था.
एक दिन मैं ऑफिस मीटिंग में था की तभी कुछ हुआ. आशु मेरे ऑफिस आई और उसने जानबूझ कर नितु मैडम से बात शुरू की;
आशु: हेल्लो मॅडम!
नितु मैडम: हाई ... सॉरी लेकीन मैंने आपको पहचाना नहीं!
आशु: अॅक्च्युअली मॅडम मुझे ये डायरी ट्रैन में मिली. किसी मिस्टर राज की डायरी हे. इसमें यहाँ का एड्रेस लिखा था तो मैं एड्रेस ढूंढते हुए यहाँ आ गई. (ये एड्रेस उसने खुद ही लिखा था.)
नितु मैडम: ओह! हाँ... ये तो राज की ही डायरी हे. थँक्यू सो मच!
आशु: इज ही योवर हसबंड?
नितु मैडम: ओह नो नो नो… ही वर्क हिअर, ही इज इन अ मीटिंग राईट नाऊ.
आशु: आई एम रियली सॉरी… आई दिडंत मीन टू….. सॉरी!
नितु मैडम: इट्स ओके!
तभी सर ने मैडम को बात करते हुए देख लिए और अंदर बुलाया; "दॅट इज माई हसबंड! आई…आई एम सॉरी आई ह्यावं टू गो. व्हाय डोन्ट यू वेट हिअर अँड वी कॅन ह्याव अ कप ऑफ कॉफी.”
“ओह नो..नो.. मॅडम आई ह्यावं टू लिव्ह… आई ह्यावं टू रश बॅक टू माई हॉस्टेल.”
“देन प्लीज गिव मी योवर नंबर, आई विल कॉल यू अँड देन वी कॅन ह्याव अ... अ.. कप ऑफ कॉफी, माई ट्रीट!!”
आशु ने उन्हें अपना नंबर दिया और मैडम ने उन्हें अपना फ़ोन नंबर दिया. इधर सर हमें नए एज (अकाउंटिंग स्टॅंडर्ड) पर ज्ञान दे (पेल) रहे थे. मैडम अंदर आईं और उन्होंने मेरी तरफ डायरी बढ़ा दी. ये वही डायरी थी जो मैंने आशु को दी थी! उसे देखते ही मेरे चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगी और मैं बाहर जाने को बेचैन हो गया."एक्स्क्युज मी सर" इतना कह कर मैं बाहर भागा पर वहाँ कोई भी नहीं था. मैं सोचने लगा की अभी हुआ क्या? ये डायरी मैडम तक कैसे पहुँची? अभी मैं ये सोच ही रहा था की मैडम ने पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और मेरी उधेड़-बुन समझते हुए उन्होंने मुझे सारी बात बताई|
मैडम की बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा आया की आशु यहाँ तक आई सिर्फ डायरी वापस करने! अपना गुस्सा मैं काम पर उतारने लगा और देर रात तक ऑफिस में बैठा रहा. कई बार फ़ोन मिलाया पर आशु का फ़ोन बंद ही था. तब मुझे लगा की आशु ने मेरा नम्बर ब्लॉक तो नहीं कर दिया. इसलिए मैंने ऑफिस के लैंडलाइन से फ़ोन किया तो इस बार घंटी गई. ५-७ घंटी के बाद उसने फ़ोन उठा लिया; "तो मेरा नंबर ब्लॉक कर रखा था ना?" ये सुन कर वो कुछ नहीं बोली. फिर मन नहीं किया की आगे उसे कुछ कहूं, इसलिए मैंने फ़ोन रख दिया और अपना बैग उठा के चल दिया. घर आया और बिना कुछ खाय-पीये ही सो गया.
उस रात मुझे बुखार चढ़ गया पर फिर भी सुबह मैं नाहा-धो के ऑफिस निकल गया.पर दोपहर होने तक हालत बहुत ज्यादा ख़राब हो गई. कमजोरी ने हालत बुरी कर दी. मैंने एक चाय पि पर तब भी कोई आराम नहीं मिला, नजाने कैसे पर मैडम को मेरी ख़राब तबियत दिख गई और वो मेरे पास आईं.मेरे माथे पर हाथ रख उन्हें मेरे जलते हुए शरीर का एहसास हुआ और उन्होंने मुझे डॉक्टर के पास जाने को बोला. मैं ऑफिस से निकला और बड़ी मुश्किल से घर बाइक चला कर पहुंचा. घर आते ही मैं बिस्तर पर पड़ा और सो गया.रात ८ बजे आँख खुली पर मेरे अंदर की ताक़त खत्म हो चुकी थी. मैंने खाना आर्डर किया ये सोच कर की कुछ खाऊँगा तो ताक़त आएगी पर खाना आने तक मैं फिर सो गया.जब से मैं शहर आ कर पढ़ने लगा था तब से मैं अपना बहुत ध्यान रखता था. जरा सा खाँसी-जुखाम हुआ नहीं की मैं दवाई ले लिया करता था. मैं जानता था की अगर मैं बीमार पड़ गया तो कोई मेरी देखभाल करने वाला नहीं है, पर बीते कुछ दिनों से मैं बहुत मटूस था. ऐसा लगता था जैसे मैं चाहता ही नहीं की मैं ठीक हो जाऊ. खाना आने के बाद उसे देख कर मन नहीं किया की खाऊँ, दो चम्मच दाल-चावल खाये और फिर बाकी छोड़ दिया और बिस्तर पर पड़ गया.रात दस बजे मैडम का फ़ोन आया और उन्होंने मेरा हाल-चाल पूछा तो मैंने झूठ बोल दिया; "मॅडम मुझे कुछ दिन की छुट्टी चाहिए ताकि मैं घर चला जाऊँ, यहाँ कोई है नहीं जो मेरी देखभाल करे." मैडम ने मुझे छुट्टी दे दी और मैं फ़ोन बंद कर के सो गया.वो रात मुझ पर बहुत भारी पड़ी, रात २ बजे मेरा बुखार १०३ पहुँच गया और शरीर जलने लगा. प्यास से गाला सूख रहा था और वहाँ कोई पानी देने वाला भी नहीं था. आशु को याद कर के मैं रोने लगा. फिर मैं कब बेहोश हो गया मुझे पता ही नही चला.
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जब चेहरे पर पानी की ठंडी बूंदों का एहसास हुआ तो धीरे-धीरे आँखें खोलीं, इतना आसान काम भी मुझसे नहीं हो रहा था. पलकें अचानक ही बहुत भारी लगने लगी थीं, खिड़की से आ रही रौशनी के कारन मैं ठीक से देख भी नहीं पा रहा था. कुछ लोगों की आवाजें कान में सुनाई दे रही थी जो मेरे आँख खोलने पर खेर मना रहे थे. "उठो ना?" आशु ने मुझे हिलाते हुए कहा और तभी उसकी आँख से आँसू का एक कतरा गिरा जो सीधा मेरे हाथ पर पडा. अपने प्यार को मैं कैसे रोता हुआ देख सकता था. मैंने उठने की जी तोड़ कोशिश की और बाकी का सहारा आशु ने दिया और मुझे दिवार से पीठ लगा कर बिठा दिया. अब जा के मेरी आँखों की रौशनी ठीक हो पाई और मुझे अपने कमरे में ३-४ लोग नजर आये. मेरे मकान मालिक अंकल, उनका लड़का और उनकी बहु और बगल वाले मिश्रा जी. मेरे मुँह से बोल नहीं फुट रहे थे क्योंकि गला पूरी तरह से सूख चूका था. आशु ने मुझे पीने के लिए पानी दिया और जब गला तर हुआ तो थोड़े शब्द बाहर फूटे; "आप सब यहाँ?"
पुरुषोत्तम जी (मकान मालिक) बोले; "अरे बेटा तेरी तबियत इतनी ख़राब थी तो तूने हमें बताया क्यों नहीं? ये लड़की भागी-भागी आई और इसने बताया की तू दरवाजा नहीं खोल रहा, पता है हम कितना डर गए थे की कहीं तुझे कुछ हो तो नहीं गया?" अब मुझे सारी बात समझ आ गई. पर हैरानी की बात ये थी की आशु यहाँ आई क्यों? पर आशु को रोते हुए देख उसपर जो कल तक गुस्सा आ रहा था वो अब भड़कने लगा था.
"चलिए डॉक्टर के पास." आशु ने सुबकते हुए कहा. मैंने ना में सर हिलाया;
"इतनी कोई घबराने की बात नहीं है, दवाई खाऊँगा तो ठीक हो जाऊंगा."
"आपका पूरा बदन बुखार से जल रहा है और आप इसे हलके में ले रहे हैं?" आशु ने अपने आँसूँ पोछते हुए कहा.
पर मैं अपनी जिद्द पर अड़ा रहा और डॉक्टर के पास नहीं गया.मैं जानता था की मुझे इस तरह देख कर आशु को बहुत दर्द हो रहा था और यही सही तरीका था उसे सबक सिखाने का! मुझ पर भरोसा नहीं करने की कुछ तो सजा मिलनी थी उसे! चूँकि मेरा सर दर्द से फट रहा था तो मैंने उसे चाय बनाने को कहा. चाय बना के वो लाई तो सबने चाय पि पर मेरे लिए वो चाय इतनी बेस्वाद थी की क्या बताऊँ! मेरी जीभ का सारा स्वाद मर चूका था. इतना बुखार था मुझे. सब ने मुझे कहा की मैं डॉक्टर के पास चला जाऊँ पर मैंने कहा की आज की रात देखता हूँ! आखिर सब चले गए और आशु मुझे दूर किचन काउंटर से देख रही थी. १ बजा था तो मैंने उसे हॉस्टल लौटने को कहा पर अब वो जिद्द पर अड़ गई. "जब तक आप ठीक नहीं हो जाते मैं कहीं नहीं जा रही!" उसने हक़ जताते हुए कहा.
"हेल्लो मैडम! आप यहाँ किस हक़ से रुके हो?" मैंने गुस्से से कहा. जो गुस्सा भड़का हुआ था वो अब धीरे-धीरे बाहर आने लगा था.
"आपकी जीवन संगनी होने के रिश्ते से रुकी हूँ!" उसने बड़े गर्व से कहा.
" काहे की जीवन संगनी? जिसे अपने पति पर ही भरोसा नहीं वो काहे की जीवन संगनी?" मैंने एक ही जवाब ने उसका सारा गर्व तोड़ कर चकना चूर कर दिया.
"जानू! प्लीज!" उसने रोते हुए कहा.
"तुम्हारे इस रूखे पन से मैं कितना जला हूँ ये तुम्हें पता है? वो तुम्हारे कॉलेज के बाहर रोज आ कर रुकना इस उम्मीद में की तुम आ कर मेरे सीने से लग जाओगी! अरे गले लगना तो छोडो तुमने तो एक पल के लिए बात तक नहीं की मुझसे! ऐसे इग्नोर कर दिया जैसे मेरा कोई वजूद ही नहीं है! जैसे की मैं तुम्हारे लिए कोई अनजान आदमी हूँ! मैं पूछता हूँ आखिर ऐसा कौन सा पाप कर दिया था मैंने? तुम्हें सब कुछ सच बताया सिर्फ इसलिए की हमारे रिश्ते में कोई गाँठ न पड़े और तुमने तो वो रिश्ता ही तार-तार कर दिया. जानता हूँ एक पराई औरत के साथ था पर मैंने उसे छुआ तक नहीं.उसके बारे में कोई गलत विचार तक नहीं आया मेरे मन में और जानती हो ये सब इसलिए मुमकिन हुआ क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हु. पर तुम्हें तो उस प्यार की कोई कदर ही नहीं थी. जब मुंबई गया था तब तुमने एक दिन भी मेरा कॉल उठा कर मुझसे बात नहीं की, सारा टाइम फ़ोन काट देती थी. पिछले दो हफ़्तों से तुम ने मेरा नंबर ब्लॉक कर दिया!!! किस गलती की सजा दे रही थी मुझे?" मेरे शूल से चुभते शब्दों ने आशु के कलेजे को छन्नी कर दिया था और वो बिलख-बिलख कर रोने लगी.
"आई एम …रियली ….वेरी वेरी…. सॉरी! मैंने आपको बहुत गलत समझा. आशु ने रोते हुए कहा. फिर उसने अपने आँसूँ पोछे और हिम्मत बटोरते हुए कहा; "उस दिन मैं आपके ऑफिस जान बुझ कर आई थी नितु मैडम से मिलने. मुझे देखना था ... जानना था की आखिर उसमें ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं! पर उनसे बात कर के मुझे जरा भी नहीं लगा की उनका या आपका कोई चक्कर है! मैंने उनसे पूछा क्या आप उनके पति हो तो उनके चेहरे पर मुझे कोई शिकन या गिल्ट नहीं दिखा. मुझे वो बड़ी सुलझी और सभ्य लगीं, उस दिन मुझे खुद पर गुस्सा आया की मैंने उनके बारे में ऐसा कुछ सोचा. वो तो आपको सिर्फ अपना दोस्त मानती हैं! मुझे बहुत गिल्ट हुई की मेरे इस बचपने की वजह से मैंने आपको इतना तड़पाया,इतना दुःख दिया. आप चाहते तो वो सब उनके साथ कर सकते थे और मुझे इसकी जरा भी भनक नहीं होती. पर आपने सब सच बताया और यही सोच-सोच कर मैं शर्म से मरी जा रही थी. मुझे माफ़ कर दीजिये! मैं वादा करती हूँ की मैं आज के बाद कभी आप पर शक नहीं करुंगी.”
मैंने उसकी बात का कोई जवाब नहीं दिया और बिस्तर से उठ के बाथरूम जाने को उठा तो एहसास हुआ की मुझे बहुत कमजोरी हे. आशु तेजी से मेरे पास आई और मुझे सहारा दे कर उठाने लगी. बाथरूम से वापस भी उसी ने मुझे पलंग तक छोडा. मैं लेटा और लेटते ही सो गया और करीब घंटे भर बाद आशु ने मुझे खाना खाने को उठाया. "मैं खा लूँगा, तुम हॉस्टल वापस जाओ." इतना कह के मैं उठ के बैठ गया, पर मेरी बातों से झलक रहे रूखेपन को आशु मेहसूस कर रही थी. वो दरवाजे तक गई और दरवाजे की चिटकनी लगा दी और मेरी तरफ देखते हुए अपनी कमर पर दोनों हाथ रख कर खडी हो गई; "मैं कहीं नहीं जाने वाली! जब तक आप तंदुरुस्त नहीं हो जाते मैं यहीं रहूँगी, आपके पास!"
"बकवास मत कर! हॉस्टल में क्या बोलेगी की रात भर कहाँ थी और घर पर ये खबर पहुँच गई ना तो तुझे घर बिठा देंगे, फिर भूल जाना पढ़ाई-लिखाई!" ये कहते-कहते मेरे सर में दर्द होने लगा तो मैं अपने दोनों हाथों से अपना सर पकड़ के बैठ गया.मेरा सर झुका हुआ था तो आशु मेरे नजदीक आई और मेरी ठुड्डी पकड़ के ऊपर उठाई और बोली; "मैंने आपके फोन से आंटी जी को फ़ोन कर दिया और उन्हें आपकी तबियत के बारे में सब बता दिया. उन्होंने कहा है की मैं यहाँ रुक सकती हु.”
ये सुनते ही मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने अपनी गर्दन घुमा ली; “तेरा दिमाग ठिकाने है की नहीं?!” मैंने उसे गुस्से से डाँटा पर उसका उस पर कोई असर नहीं पड़ा, वो बस सर झुकाये वहीँ खड़ी रही. "तू क्यों सब कुछ तबाह करने पर तुली है? तुझे यहाँ आने के लिए किसने कहा था? कॉलेज में भी तेरी दोस्त का हमारे रिश्ते के बारे में तूने सब बता दिया और यहाँ भी सब को हमारे बारे में सब पता चल गया है, अब तू हॉस्टल नहीं जाएगी तो वो सब क्या सोचेंगे?" मैंने उसे समझाया, जो शायद उसके दिमाग में घुसा या फिर वो मुझे मैनिपुलेट करते हुए बोली; "आज आपकी तबियत बहुत ख़राब है! मुझे बस आज का दिन रुकने दो, कल आपकी तबियत ठीक हो जाएगी तो मैं वापस चली जाउंगी. प्लीज...." आशु ने हाथ जोड़ कर मुझसे मिन्नत करते हुए कहा.
अब मैं थोड़ा पिघल गया और उसे रुकने की इजाजत दे दी. वो खुश हो गई और थाली में दाल-चावल परोस के लाई और खुद ही मुझे खिलाने लगी. मैंने मना किया की मैं खा लूँगा पर वो नहीं मानी. पहला कौर खाते ही मुझे एहसास हुआ की खाने में कोई टेस्ट ही नहीं है! बिलकुल बेस्वाद खाना! मेरी शक्ल से ही आशु को पता चल गया की खाने में कुछ तो गड़बड़ है तो उसने एक कौर खा के देखा और बोली; "नमक-मिर्च सब तो ठीक है?!" पर मैं समझ गया की बुखार के कारन ही मेरे मुँह से स्वाद चला गया है और इसलिए खाने का मन कतई नहीं हुआ. पर आशु ने प्यार से जोर-जबरदस्ती की और मुझे खाना खिला दिया. मैं बस खाने को पानी के साथ निगल जाता की कम से कम पेट में चला जाए तो कुछ ताक़त आये.
खाना खा कर आशु ने मुझे क्रोसिन दी और मैं फिर से लेट गया और फिर सीधा शाम ५ बजे उठा. बुखार उतरा तो नहीं था बस कम हुआ था. तो मैंने आशु से कहा की वो हॉस्टल चली जाये. "आपका बुखार कम हुआ है उतरा नहीं हे. रात में फिर से चढ़ गया तो?" उसने चिंता जताते हुए कहा. फिर वो पानी गर्म कर के लाई और उसने मुझे 'स्पंज बाथ' दिया और दूसरे कपडे दिए पहनने को. फिर वही बेस्वाद चाय पि.हम दोनों में अब बातें नहीं हो रही थी. आशु बीच-बीच में कुछ बात करती थी पर मैं उसका जवाब हाँ या ना में ही देता था. फिर वो रात का खाना बनाने लगी. पर मेरा मन अब कमरे में कैद होने से उचाट हो रहा था. मैं खिड़की पास खड़ा हो गया और ठंडी हवा का आनंद लेने लगा. आशु ने मुझे बैठने को एक कुर्सी दी और कुछ देर बाद वहाँ सुमन आ गई.
"अरे राज जी! क्या हालत बना ली आपने?" उसकी आवाज सुनते ही मैं चौंक कर गया और उसकी तरफ हैरानी से देखने लगा. "दीदी ये तो बेहोश हो गए थे मकान मालिक से डुप्लीकेट चाभी ली और घर खोला तब ...." आशु के आगे बोलने से पहले ही मैं बोल पड़ा; "अब पहले से बेहतर हूँ, वैसे अच्छा हुआ तुम आ गई. जाते समय इसे साथ ले जाना."
"अरे अभी तो आई हूँ? और आप जाने की बात आकर रहे हो? बड़े रूखे हो गए आप तो? कहाँ गए आपकी शीवरली???" सुमन मुझे छेड़ते हुए बोली.
"शीवरली से तौबा कर ली मैंने! खाया-पीया कुछ नहीं गिलास तोडा बारह आना." मैंने आशु को ताना मारते हुए कहा. ये सुन कर आशु ने सुमन से नजर बचा कर कान पकडे और दबे होठों से सॉरी बोला.
"ऐसा क्या होगया की हमारे शीवरली के राजा ने तौबा कर ली? बैठ इधर आशु मैं तुझे एक किस्सा सुनाती हु. बात तब की है जब हम दोनों कॉलेज में थे.पढ़ाई में मैं जीरो थी, हाँ उसके आलावा कल्चरल प्रोग्राम में मैं हमेशा आगे रहती थी. बाकी सारे सब्जेक्ट्स तो मैं जैसे-तैसे संभाल लेती पर एकाउंट्स मेरे सर के ऊपर से जाता था और तुम्हारे चाचू ठहरे एकाउंट्स के महारथी. मेरी माँ ने इन्हें मुझे पढ़ाने के लिए बोला वो भी घर आ कर. तो जनाब हमेशा मुझे २ फुट की दूरी से पढ़ाते थे. ऐसा नहीं था की माँ का डर था बल्कि वो तो ज्यादातर बाहर ही होती थीं पर मजाल है की कभी इन्होने वो दो फुट की दूरी बाल भर भी कम की हो! अब मुझे इनके मज़े लेने होते थे तो मैं जानबूझ कर कभी-कभी इनके नजदीक खिसक कर बैठ जाती और ये एक दम से पीछे सरक जाते. इनकी मेरे नजदीक आने से इतनी फटती थी की पूछ मत! पूरे कॉलेज को पता था की जनाब मुझे पढ़ाते हैं और वो सब पता नहीं क्या-क्या बोलते थे इन्हें.कइयों ने इन्हें चढ़ाया की आज तू सुमन का हाथ पकड़ ले और बोल दे उसे की तू उससे प्यार करता है, उसे मिनट नहीं लगेगा पिघलने में पर आज तक इन्होने कभी मुझसे कुछ नहीं कहा."
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(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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आशु ये सब सुन कर हैरान थी क्योंकि मैंने उसे ये सब कभी नहीं बताया था. पर ये सुनने के बाद उसे बहुत बुरा लग रहा था की क्यों उसने मुझे पर शक किया. खेर चाय पीना और कुछ गप्पें मारने के बाद सुमन हँसती हुई बोली; "चलो आपके बीमार पड़ने से एक तो बात अच्छी हुई, की इसी बहाने पता तो चल गया की आप रहते कहाँ हो?! अब तो आना-जाना लगा रहेगा."
"अगर एक बार पूछ लेते तो मैं वैसे ही बता देता." मैंने भी हँसते हुए बता दिया.
"अच्छा जी? चलो आगे से ध्यान रखुंगी.चल भाई डॉली ?"
"दीदी प्लीज मैं आज यहीं रुक जाऊँ? अभी बुखार सिर्फ कम हुआ है उतरा नहीं है, रात को तबियत ख़राब हो गई तो कौन यहाँ देखने वाला?" आशु ने मिन्नत करते हुए कहा.
"कोई जरुरत नहीं है, मैं ठीक हु." मैंने उसी रूखेपन से जवाब दिया.
"कोई बात नहीं तू रुक जा यहाँ" सुमन ने आशु के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा. फिर मेरी तरफ देख कर बोली; "आप ना ज्यादा उड़ो मत! वरना मैं भी यहीं रुक जाउंगी. वैसे भी अब तो आपने शीवरली से तौबा कर ही ली है, तो अब तो कोई दिक्कत नहीं होगी आपको?!" सुमन ने मुझे छेड़ते हुए कहा.
"यार आप अब भी नहीं सुधरे!" मैंने हँसते हुए कहा.
"जो सुधर जाए वो सुमन थोड़े ही हे." इतना कह कर वो मुस्कुराते हुए चली गई. ये सब सुन कर अब तो जैसे आशु के मन में प्यार का राज उमड़ पडा. उसने बड़े प्यार से खाना बनाया पर नाक बंद थी और जो थोड़ी-बहुत खुशबु मैं सूँघ पाया उससे लगा की खाना जबरदस्त बना होगा, पर जब आशु ने मुझे पहला कौर खिलाया तो वही बेस्वाद! जैसे -तैसे खाना निगल लिया और फिर आशु को खाने के लिए बोला. वो अपना खाना ले कर मेरे सामने बैठ गई और खाने लगी. खाने के बाद उसने मुझे फिर से क्रोसिन दी और हम दोनों लेट गये. रात के एक बजे मुझे फिर से बुखार चढ़ गया और मैं बुरी तरह कँप-कँपाने लगा. आशु शायद जाग रही थी तो उसने मेरी कँप-कँपी सुनी और तुरंत लाइट जलाई और उठ कर मुझे पीठ के बल लिटाया. जैसे ही उसने मेरे माथे को छुआ तो वो चीख पड़ी; "हाय राम! अ...अ....आपका बदन तो भट्टी की तरह जल रहा है!" सबसे पहले उसने मुझे थोड़ा बिठाया और एक क्रोसिन की गोली दी फिर उसने आननफानन में सारी चादरें उठाई और एक-एक कर मुझ पर डाल दी. पर मैं अब भी काँप रहा था. आशु की आँखों से आँसूँ बहने लगे और जोर-जोर से मेरे हाथ और पाँव मलने लगी. जब उसे कुछ और नहीं सुझा तो वो उठी और आ कर मेरी बगल में लेट गई और मुझे उसने अपनी तरफ करवट करने को कहा. उसने मेरा मुँह अपनी छाती में दबा दिया और खुद मुझसे इस कदर लिपट गई जैसे की कोई जंगली बेल किसी पेड़ से लिपट जाती हे. मैंने भी उसे कस कर जकड लिया और अपने ऊपर भी उसने वो चादरें डाल ली और मेरी पीठ रगड़ने लगी. उसकी सांसें तेज चलने लगी थी. वो घबरा रही थी की कहीं मैं मर गया तो? उसने बुदबुदाते हुए कहा; "मैं आपको कुछ नहीं होने दुंगी. प्लीज.....प्लीज... मुझे छोड़ कर मत जाना. आपके बिना मेरा कौन है? कैसे जीऊँगी मैं?" करीब एक घंटा लगा मेरे जिस्म पर दवाई का असर होने में और मेरी कँप-कँपी थम गई. आशु के सारे कपडे मेरे माथे और उसके जिस्म के पसीने से भीग चुका था.! धीरे-धीरे हम दोनों इसी तरह एक दूसरे की बाहों में सो गये.
सुबह पाँच बजे मेरी आँख खुली और मैंने खुद को उसकी गिरफ्त से धीरे से छुड़ाया और उसके मस्तक पर चूमा. बुखार अब कम था पर मेरे होठों के एहसास से आशु जाग गई और मुझे जागता हुआ पा कर मेरी आँखों में देखते हुए पूछा; "अब आपकी तबियत कैसी है?" मैने मुस्कुरा कर हाँ में गर्दन हिलाई और वो समझ गई की मैं ठीक हु. उसने मेरा माथा छुआ तो घबरा गई और बोली; "बुखार खत्म नहीं हुआ आपका! आज आपको मेरे साथ डॉक्टर के पास चलना होगा." मैंने जवाब में बस हाँ कहा. कल तक मुझे जो गुस्सा आशु पर आ रहा था वो अब प्यार में बदल गया था. अब मैं उससे अब अच्छे से बात कर रहा था और वो भी अब पहले की तरह खुश थी. नाश्ता कर के वो मेरे साथ हॉस्पिटल के लिए निकली पर मेरे जिस्म में ताक़त कम थी तो नीचे आ कर हमने फ़ौरन ऑटो किया और हॉस्पिटल पहुंचा. डॉक्टर ने चेक-अप किया और डेंगू का टेस्ट कराने को कहा. ये सुनते ही आशु बहुत घबरा गई. मानो की जैसे डॉक्टर ने कहा हो की मुझे कैंसर हे. खेर ब्लड सैंपल देने के टाइम जब नर्स ने सुई लगाईं तो आशु से वो भी नहीं देखा गया और मुझे होने वाला उसके चेहरे पर दिखने लगा, उसका बचपना देख नर्स भी हँस पडी. हम दवाई ले कर घर लौटे और रिपोर्ट कल सुबह आने वाली थी.
आशु बहुत घबराई हुई थी और मुझे उसकी घबराहट दूर करनी थी; "जान!" इतना सुनना था की वो भागती हुई आई और मेरे सीने से लग गई और फफक का करो पडी. "कान तरस गए थे आपके मुँह से ये सुनने को" उसने रोते हुए कहा. "आपको कुछ हो जाता तो मैं खुद को कभी माफ़ नहीं करती. प्लीज मुझे माफ़ कर दो!" मैंने उसके सर को चूमा और उसे कस के अपनी छाती से चिपका लिया, तब जा कर उसका रोना कम हुआ. तभी नितु मैडम का फ़ोन बज उठा और फ़ोन आशु के हाथ के पास था और उसी ने मुझे फ़ोन उठा कर दिया. पर इस बार उसके मुँह पर जलन या कोई दुःख नहीं था. मैडम ने मेरा हालचाल पूछा पर मैंने उन्हें ये नहीं बताया की मैं यहीं शहर में हूँ वरना वो घर आती और फिर आशु को देख के हजार सवाल पूछती. जब उन्हें पता चला की मुझे डेंगू होने के चांस हैं तो वो भी घबरा गईं पर मैंने उन्हें ये झूठ बोल दिया की यहाँ सब परिवार वाले हैं मेरी देख-रेख करने को! आशु ये सब बड़ी गौर से सुन रही थी और जैसे ही मेरी बात खत्म हुई तो उसने पूछा की मैंने झूठ क्यों बोला; "मॅडम यहाँ आ जाती तो तुम कहाँ छुपती?" ये सुन कर आशु को समझ आ गया और वो कुछ खाने के लिए बनाने लगी. फिर आस-पडोसी भी आये और मेरा हाल-चाल पूछने लगे. पुरुषोत्तम जी तो आशु की तारीफ करते नहीं थक रहे थे!
भाई ऐसा जीवन साथी तो बड़ी मुश्किल से मिलता है, जो लड़की शादी से पहले इतना ख्याल रखती हो वो भला शादी के बाद कितना ख्याल रखेगी?! ये सुन आशु के गाल शर्म से लाल हो गये.
"तुम दोनों जल्दी से शादी कर लो इसी बहाने बिल्डिंग में थोड़ी रौनक बनी रहेगी." मिश्रा जी ने कहा.
"जी अभी पहले ये अपनी पढ़ाई तो पूरी कर ले!" मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया तो आशु ने भाभी के कंधे पर अपना मुँह छुपा लिया, ये देख सब हँस पडे. चाय पी कर सब गए तो आशु ने खाना बनाया और खुद अपने हाथ से मुझे खिलाया. मैंने भी उसे अपने हाथ से उसे खाना खिलाया. खाना खा कर आशु ने मुझे अपना सर उसकी गोद में रख कर लेटने को कहा. थोड़ी देर बाद दोनों की आँख लग गई और फिर जब मैं उठा तो आशु चाय बना के लाइ. चाय की चुस्की लेते हुए मैंने अपनी चिंता उस पर जाहिर की;
मैं: आशु....चीजें वैसे नहीं हो रही जैसी होनी चाहिए!
आशु: क्यों?? क्या हुआ?
मैं: मैं चाहता था की हमारा प्यार एक राज़ रहे तब तक जब तक की तुम अपने फाइनल ईयर के पेपर नहीं दे देती. पर यहाँ तो सबको पता चल चूका है!
आशु: कल जब मैं आपसे मिलने आई तो मैं २० मिनट तक आपका दरवाजा खटखटाती रही, आपको दसियों दफा कॉल किया पर आप ने कोई जवाब ही नहीं दिया. मेरा मन अंदर से कितना घबरा रहा था ये आप सोच भी नहीं सकते! कलेजा मुँह को आ गया था. लगता था की हमारा साथ छूट गया और वो भी सिर्फ मेरी वजह से! मैंने हार कर पड़ोसियों से पूछा तो उन्होंने कहा की मकान मालिक के पास डुप्लीकेट चाभी हे. मैंने उनसे ये कहा की मैं आपकी मंगेतर हूँ और आपसे मिलने आई हूँ, तब जा कर उन्हें मेरी बात का भरोसा हुआ. कॉलेज में मेरी सिर्फ और सिर्फ एक दोस्त है निशा, वो भी आपके बारे में ज्यादा नहीं जानती. मैंने उसे बस इतना बताया की आप एक ऑफिस में जॉब करते हो. इससे ज्यादा जब भी वो पूछती है तो मैं बात टाल जाती हु. उस दिन सिद्धू भैया भी शायद जान या समझ चुके हों, क्योंकि उनका भाई तो अब हमारे कॉलेज में नहीं पढता. हॉस्टल में मैं किसी से ज्यादा बात नहीं करती.जी लगा कर पढ़ती हूँ तो इसलिए किसी को हमारे रिश्ते के बारे में भनक तक नही. हम एक समाज में रहते हैं, अब मिलेंगे तो लोग देखेंगे ही और बिना मिले तो मैं आपसे रह नहीं सकती!
मैं: और तुम्हारी पढ़ाई का क्या?
आशु: आपसे किया वादा मुझे याद है!
ये सुन कर मैं थोड़ा निश्चिन्त हुआ पर फिर भी एक डर तो था की अगर बात खुल गई तो आशु की पढ़ाई ख़राब हो जाएगी. पर फिर सोचा की जो होगा देखा जायेगा! वो रात बड़े प्यार से बीती, सोने के समय आज भी आशु ने मुझे कल की तरह अपने सीने से चिपका लिया और गहरी सांसें लेते हुए सो गई. मैं समझ रहा था की मेरे इतने करीब होने से उसके जिस्म में क्या उथल-पुथल मची हुई है पर मैं अभी इतना स्वस्थ नहीं हुआ था की उसके साथ संभोग कर सकूँ! आज दो बार दवाई लेने से ये फायदा हुआ था की अब बुखार नहीं था. बॉडी अब भी रिकवर कर रही थी. अगले दिन रिपोर्ट आई और हुआ भी वही जो डॉक्टर ने कहा था. डेंगू! डॉक्टर ने खूब सारी दवाइयाँ लिख दी, बुखार रोकने से ले कर मल्टी विटामिन तक! गोलियां भी रिवाल्वर के कारतूस के साइज की! अगले तीन दिन तक आशु ने मेरी बहुत देखभाल की और मेरे कई बार उसे हॉस्टल जाने के आग्रह करने के बाद भी उसने मेरी बात नहीं मानी.बुखार अब नहीं था पर कमजोरी बहुत थी मेरा प्लेटलेट काउंट काफी गिर चूका था. ये तो आशु चार टाइम खाना बना कर मुझे खिला रही थी तो ज्यादा घबराने वाली बात नहीं थी. रात में सोने के समय रोज आशु मुझे अपने सीने से चिपका कर सोती, रोज रात को मेरी आँखों के सामने उसके स्तनों की घाटी होती और सुबह आँख खुलते ही मुझे फिर वही घाटी दिखती.
सुमन भी मुझे से मिलने रोज आती और अपने साथ फ्रूट्स लाती और वही हँसी-मज़ाक चलता रहा. तीसरे दिन तो आंटी जी भी आ गईं और उन्होंने भी आशु की बहुत तारीफ की; "भाई भतीजी हो तो आशु जैसी की अपने चाचा का इतना ख़याल रखती हे." ये सुन कर आशु को उतना अच्छा नहीं लगा जितना पुरुषोत्तम अंकल की तारीफ करने से हुई थी. अब उन्होंने तो आशु को मेरी मंगेतर माना था और आंटी जी ने उसे भतीजी!
"माँ सेवा करेगी ही, इसके चाचू ने भी इसका कम ख्याल रखा है? स्कूल से लेकर एक ये ही तो हैं जो इसे पढ़ा रहे हैं."
सुमन की बात सुन कर आशु खुद को बोलने से नहीं रोक पाई; "आंटी जी घर में सिर्फ और सिर्फ ये ही हैं जिन्होंने मुझे बचपन से लेकर अब तक पढ़ाया हे. दसवीं और बारहवीं मैं इन्हीं की वजह से पढ़ पाई वरना घरवाले तो सब पीछे पड़े थे की ब्याह कर ले."
नोट करने वाली बात ये थी की आशु ने मुझे एक बार भी 'चाचू' नहीं बोला था और मैं ये बात समझ चूका था पर डर रहा था की आंटी ये बात पकड़ न लें. शुक्र है की उन्होंने इस बात पर ध्यान नहीं दिया! उनके जाने के बाद मुझे ध्यान आया की घर में मेरी तबियत के बारे में किसी को पता है या नहीं? क्या आशु ने किसी को बताया?
"आशु, तूने घर में फ़ोन किया था?" मैंने आशु से घबराते हुए पूछा.
"नहीं... मुझे याद नहीं रहा." आशु का जवाब सुन कर मैं गंभीर हो गया.मैंने तुरंत फ़ोन घर मिला दिया ये जानने के लिए की कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है? पर शुक्र है की कोई घबराने की बात नहीं थी. मैं ने राहत की साँस ली और आशु को बताया की आगे से ये बात कभी मत भूलना. मुझे जरूर याद दिला देना वरना वो लोग अगर हॉस्टल पहुँच गए तो बखेड़ा खड़ा हो जायेगा. उसने हाँ में सर हिलाया उसने भी चैन की साँस ली. आज रात सोने के समय भी उसने ठीक वही किया, मेरा सर अपने सीने से लगा कर वो लेट गई. मैं इतने दिनों से उसके जिस्म की गर्मी को महसूस कर पा रहा था. पर मजबूर था की कुछ कर नहीं सकता था. आज मैंने ठान लिया था की इतने दिनों से आशु मेरी खातिरदारी में लगी है तो उसे थोड़ा खुश करना तो बनता हे.
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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मैंने आशु के स्तनों की घाटी को अपने होठों से चूमा तो उसकी सिसकारी फुट पड़ी; "ससससस...अ..ह...हह" और वो हैरत से मेरी तरफ देखने लगी. मुझे ऐसा लगा जैसे वो मुझसे मिन्नत कर रही हो की मैं उसकी इस आग का कुछ करू. मैंने थोड़ा ऊपर आते हुए उसके गुलाबी होठों को चूम लिया, आगे मेरे कुछ करने से पहले ही आशु के अंदर की आग प्रगाढ़ रूप धारण कर चुकी थी. उसने गप्प से अपने होठों और जीभ के साथ मेरे होठों पर हमला कर दिया. उसकी जीभ अपने आप ही मेरे मुँह में घुस गई और मेरी जीभ से लड़ने लगी. मैंने भी अपने दोनों हाथों से उसके चेहरे को थामा और अपने होठों से उसके निचले होंठ को मुँह में भर चूसने लगा. ये मेरा सबसे मन पसंद होंठ था और मैं हमेशा उसके नीचले होंठ को ही सबसे ज्यादा चूसता था. दो मिनट तक मैं बस उसके निचले होंठ को चुस्ता रहा और जब जी भर गया तो अपनी जीभ और निचले होठ की मदद से उसके ऊपर वाले होंठ को मुँह में भर के चूसने लगा. जीभ से मैं उसके ऊपर वाले मसूड़ों को भी छेड़ दिया करता. इधर आशु के हाथों ने अपनी हरकतें शुरू कर दी, सबसे पहले तो वो मेरी टी-शर्ट को उतारने की जद्दोजहद करने लगे. पर मैंने अपने हाथों से उसे रोक दिया और वापस उसके चेहरे को थाम लिया और अपनी जीभ और होठों से उसके होठों को बारी-बारी चुस्ता रहा. आशु को इसमें बहुत मजा आ रहा था पर उसे चाहिए था मेरा लिंग, जो मैं उसे दे नहीं सकता था! मैंने उसके होठों को चूसना रोका और उसके चेहरे को थामे हुए ही कहा; "अपना पाजामा निकाल और जो मैं कह रहा हूँ वो करती जा."
मेरी बात सुन उसने लेटे-लेटे अपनी पजामी का नाडा खोल दिया और उसे अपनी नितंब से नीचे करते हुए उतार फेंक दिया और बेसब्री से मेरे अगले आदेश का इंतजार करने लगी. मैं सीधा लेट गया,पीठ के बल उसे और मेरे दोनों तरफ टांग कर के मेरे पेट पर बैठने को कहा. आशु तुरंत उठ कर वैसे ही बैठ गई. फिर मैंने उसके कूल्हों पर अपना हाथ रखा और उसे धीरे-धीरे सरक कर मेरे सर की तरफ आने को कहा. वो भी धीरे-धीरे कर के ठीक मेरे मुँह के ऊपर आ कर उकडून हो कर बैठ गई. कमरे में अँधेरा था इसलिए न तो मैं और न वो मेरी शक्ल और भावों को देख पा रही थे. जैसे ही मेरी जीभ ने उसकी योनी के कपालों को छुआ तो वो चिंहुँक उठी और ऊपर की ओर हवा में उचक गई.
मैंने उसकी जांघ पर हाथ रख कर उसे मेरे मुँह पर बैठने को कहा और तब जा कर वो नीचे वापस मेरे मुँह पर बैठ गई. मैंने अपने हाथों से उसकी जांघों को पकड़ लिया ताकि वो और न उचक जाये. मैंने फिर से आशु के योनी के कपालों को जीभ से छेड़ा पर इस बार वो ऊपर नहीं उचकी. अब मैंने अपने होठों से उन कपालों को पकड़ लिया और नीचे की तरफ खींचने लगा, आशु को हो रहे मीठे दर्द के कारन उसके मुँह से 'आह' निकल गई. उसने अपने दोनों हाथों से मेरे सर को थाम लिया और दबाव देकर अपने योनी को मेरे मुँह पर रगड़ना चाहा" पर मैंने उसे ऐसा करने से रोक दिया. अपने दोनों हाथों को मैं उसकी जांघ से हटा कर उसके योनी के इर्द-गिर्द इस कदर सेट किया की मेरे दोनों हाथों के बीच उसकी योनी थी. आशु का उतावलापन बढ़ने लगा था और मैं उसे रोक रहा था ताकि वो ज्यादा से ज्यादा मजा ले सके. मैंने आशु के कपालों को होठ से चूसना शुरू कर दिया था और इधर आशु अपनी कमर मटका रही थी ताकि वो अपनी योनी को और अंदर मेरे मुँह में घुसा दे!
मैंने जितना हो सके उतना अपना मुँह खोला. आशु की योनी को जितना मुँह में भर सकता था उतना मुँह में भरा और अपनी जीभ उसके योनी में घुसा दी. मेरी जीभ उसके योनी के कपालों के बीच से अपना रास्ता बना कर जितना अंदर जा सकती थी उतना चली गई. "स्स्स्सस्स्स्स...आअह्ह्ह्हह" इस आवाज के साथ आशु ने मेरी जीभ का अपनी योनी में स्वागत किया. मैंने अपनी जीभ अंदर-बाहर करनी शुरू कर दी और इधर आशु बेकाबू होने लगी. उसने अपनी कमर इधर-उधर मटकाना शुरू कर दी और अपने हाथों से मेरे सर के बाल पकड़ के खींचने लगी. इधर मेरी जीभ अंदर-बाहर हो रही थी और उधर आशु ने अपनी कमर को आगे-पीछे हिलाना शुरू कर दिया. हम दोनों एक ऐसे पॉइंट पर पहुँच गए जहाँ मेरी जीभ और आशु की कमर लय बद्ध तर्रेके से आगे-पीछे हो रहे थे. ५-७ मिनट और आशु की योनी से रस निकल पड़ा जो मेरे मुँह में भरने लगा. आशु ने अपनी दोनों टांगें चौड़ी की और अपने योनी को मेरे मुँह पर दबा दिया और सारा रस मेरे मुँह में उतर गया.अपना सारा रस मुझे पिला कर वो नीचे खिसकी और अपनी योनी को ठीक मेरे लिंग पर रख कर वो मेरे ऊपर लुढ़क गई. उसकी सांसें तेज हो चुकी थी और पसीनों की बूंदों ने उसके मस्तक पर बहना शुरू कर दिया था. दस मिनट बाद जब उसकी सांसें नार्मल हुई तो वो बोली; "शुक्रिया!!!" मैंने उसके मस्तक को चूम लिया और उसे अपनी बाहों में भर लिया. उसके बाद तो आशु को बड़ी चैन की नींद आई, ऐसी नींद की वो सारी रात मेरी छाती पर सर रख कर ही सोई.सुबह मैंने ही उसे जगाया वो भी उसके सर को चूम कर.
"हाय! क्या शुरुवात हुई है सुबह की!" आशु ने मेरी छाती पर लेटे हुए ही अंगड़ाई लेते हुए कहा. फिर वो उठी और उसकी नजर अपनी पजामी पर पड़ी जो फर्श पर पड़ी थी. उसने वो उठा कर पहना और बाथरूम में नहाने चली गई. सुमन ने उसके कुछ कपडे ला दिए थे जिन्हें पहन कर आशु बाहर आई. आज तो मेरा भी मन नहाने का था पर ठन्डे पानी से नहाने के बजाये आज मुझे गर्म पानी मिला नहाने को.जब मैं नहा कर बाहर निकला तो आशु गुम- सुम दिखी, मैंने उसे हमेशा की तरह पीछे से पकड़ लिया और अपने हाथ को उसके पेट पर लॉक कर दिया.
मैं: क्या हुआ मेरी जानेमन को?
आशु: मैं बहुत सेल्फिश हूँ!
मैं: क्यों? ऐसा क्या किया तुमने?
आशु: कल रात को..... आपने तो मुझे सटिस्फाय कर दिया.... पर मैंने नहीं.... (आशु ने शर्माते हुए कहा.)
मैं: अरे तो क्या हुआ? दिन भर मेरा ख्याल रखती हो, थक गई थी इसलिए सो गई. इसमें मायूस होने की क्या बात है?
आशु: नहीं... मैं....
मैं: पागल मत बन! अभी मेरी तबियत पूरी तरह ठीक नहीं है, जब ठीक हो जाऊँगा ना तब जितना चाहे उतना सटिस्फाय कर लेना मुझे!
मैंने उसे छेड़ते हुए कहा और आशु भी हँस पडी.
मैं: तू इतने दिनों से कॉलेज नहीं जा रही है, तेरी पढ़ाई का नुकसान हो रहा होगा इसलिए कल से कॉलेज जाना शुरू कर.
आशु: आप पढ़ाई की चिंता मत करो! मैं सारा कवर-अप कर लूँगी!
मैं: आशु... बात को समझा कर! तकरीबन एक हफ्ता होने को आया है, आंटी जी और सुमन क्या सोचते होंगे? मेरी बात मान और कल से कॉलेज जाना शुरू कर और मेरी चिंता मत कर मैं घर चला जाता हु. वैसे भी पिताजी को मेरी तबियत के बारे में कुछ मालूम नहीं है, ऐसे में कुछ दिन वहाँ रुकूँगा तो बात बिगड़ेगी नही.
आशु ने बहुत ना-नुकुर की पर मैंने उसे मना ही लिया. शाम को जब सुमन आई तो मैंने उसे आशु को साथ ले जाने को कहा;
सुमन: अरे आशु चली गई तो आपका ध्यान कौन रखेगा?
मैं: मैं कल सुबह घर जा रहा हूँ वहाँ सब लोग हैं मेरा ख्याल रखने को. मैं तो रविवार ही निकल जाता पर तबियत बहुत ज्यादा ख़राब थी! आशु अपना मन मारकर चली गई और उसने जो खाना बनाया था वही खा कर मैं सो गया.
मैने पीताजी को फ़ोन कर दिया था और वो मुझे लेने बस स्टैंड आ रहे थे. चार घंटों का थकावट भरा सफर तय कर मैं गाँव के बस स्टैंड पहुँचा जहाँ पिताजी पहले से ही मौजूद थे. उन्हें नहीं पता था की मेरी तबियत इतनी खराब है की बस स्टैंड से घर तक का रास्ता जो की पंधरा मिनट का था उसे मैंने पांच बार रुक-रुक कर आधे घंटे में तय किया. घर जाते ही मैं बिस्तर पर जा गिरा.
कमजोरी इतनी थी की बयान करना मुश्किल था. आशु ने मुझे शाम को फ़ोन किया पर मैं दोपहर को खाना खा कर सो रहा था. मेरे फ़ोन ना उठाने से वो बहुत परेशान हो गई और धड़ाधड़ मैसेज करने लगी. इंटरनेट बंद था इसलिए मैसेज भी सीन नहीं थे. वो बेचैन होने लगी और दुआ करने लगी की मैं ठीक-ठाक हु. रात को आठ बजे मैं उठा तब मैंने फ़ोन देखा और फटाफट आशु को फ़ोन किया. "मैंने कहा था न की मैं आपकी देखभाल करुँगी, पर आपने जबरदस्ती मुझे खुद से दूर कर दिया! देखो आपकी तबियत कितनी ख़राब हो गई! आपने फ़ोन नहीं उठाया तो मैंने मजबूरन घर फ़ोन किया और तब मुझे पता चला की आपकी कमजोरी और बढ़ गई है!" आशु ने रोते-रोते खुसफुसाते हुए कहा.
"जान! मैं ठीक हूँ! उस टाइम थकावट हो गई थी. पर अब खाना खा कर दवाई ले चूका हु. तुम मेरी चिंता मत करो!" मैंने उसे तसल्ली देते हुए कहा.
"आपने जान निकाल दी थी मेरी! जल्दी से ऑनलाइन आओ मुझे आपको देखना है!" इतना कह कर आशु ने फ़ोन रख दिया और मैंने अपने हेडफोन्स लगाए और ऑनलाइन आ गया.आशु हमेशा की तरह बाथरूम में हेडफोन्स लगाए हुए मुझसे वीडियो कॉल पर बात करने लगी.बहुत सारे किसेस मुझे दे कर उसे चैन आया और फिर रात को चाट करने के लिए बोल कर चली गई. रात दस बज़े से वो मेरे साथ चाट पर लग गई और बारा बजे मैंने ही उसे सोने को कहा ताकि उसकी नींद पूरी हो. इधर मैं फ़ोन रख कर सोने लगा की तभी पेशाब आ गया.मैंने सोचा बजाये नीचे जाने के क्यों न छत पर ही चला जाऊ. जब मैं छोटा था तो कभी-कभी रात को छत की मुंडेर पर खड़ा हो जाता और अपने पेशाब की धार नीचे गिराता. यही बचपना मुझे याद आ गया तो मैं भी मुस्कुराते हुए छत पर आ गया और अपना लिंग निकाल कर मुंडेर पर चढ़ गया और पेशाब करने लगा. जब पेशाब कर लिया तो मैं पीछे घुमा और वहाँ जो खड़ा था उसे देखते ही मेरी सिट्टी-पिट्टी गुल हो गई.
पीछे भाभी खड़ी थी और उनकी नजर मेरे लिंग पर टिकी थी. जब मेरी नजरें उनकी नजरों का पीछा करते हुए मेरे ही लिंग तक आई तो मैंने फट से लिंग पाजामे में डाला और मुंडेर से नीचे आ गया.मैं बुरी तरह से झेंप गया था और वापस अपने कमरे की तरफ जा रहा था. इतने में पीछे से भाभी बोली; "मुझे तो लगा था की तुम आत्महत्या करने जा रहे हो, पर तुम तो पेशाब कर रहे थे! बचपना गया नहीं तुम्हारा देवर जी!" ये सुन कर मैं एक पल को रुका पर पलटा नहीं और सीधा आँगन में आ गया, हाथ-मुँह धोया और वापस कमरे में जाने लगा की तभी भाभी आशु वाले कमरे के बाहर अपनी कमर पर हाथ रखे मेरा इंतजार कर रही थी.
"तन से तो जवान हो गए, पर मन से अब भी बच्चे हो! उन्होंने हँसते हुए कहा. मैं अब भी शर्मा रहा था तो सर झुका कर अपने कमरे में घुस गया और वो आशु वाले कमरे में घुस गई. लेटते ही मुझे आशु की वो बात याद आई जिसमें भाभी मेरे बारे में सोच के नींद में मेरा नाम बड़बड़ा रही थी. आज उन्होंने ने जिस तरह से मुझे 'देवर जी' कहा था वो भी बहुत कामुक था! मैं सचेत हो चूका था और मेरा मन भाभी के जिस्म की प्यास को महसूस करने लगा था. पर आशु का प्यार मुझे गलत रास्ते में भटकने नहीं दे रहा था. अगले कुछ दिन तक भाभी मेरे साथ यही आँख में चोली का खेल खेलती रही और सबकी नजरें बचा कर मुझे अपने जिस्म की नुमाइश आकृति रही.जब भी मैं अपने कमरे में अकेला होता तो वो झाड़ू लगाने के बहाने आती और अपने पल्लू को अपने स्तनों पर से हटा के अपनी कमर से लपेट लेती.
उनके स्तनों की वो घाटी इतनी गहरी थी जिसका अंदाजा लगाना मुश्किल था.भाभी के स्तन दूध से भरे लगते थे. सैतीस की उम्र में भी उनकी वक्षो में बहुत कसावट थी. झाडू लगाते हुए वो मेरे पलंग के नजदीक आ गई और इतना झुक गई की मुझे उनके स्तनाग्र लग-भग दिख ही गये. मैं उठ के जाने को हुआ तो उन्होंने मेरा हाथ पकड़ लिया; "कहाँ जा रहे हो देवर जी?!" मैंने कोई जवाब नहीं दिया और मुँह फेर लिया. "मेरा तो काम हो गया!" इतना कह कर उन्होंने मेरा हाथ छोड़ दिया और अपनी कातिल हंसी हँसते हुए चली गई. उनकी ये डबल मीनिंग वाली बात मैं समझ चूका था. वो तो बस मुझे अपने स्तन दिखाने आई थीं! कमरा तक ठीक से साफ़ नहीं किया था उन्होंने, पहले तो सोचा की उन्हें टोक दूँ पर फिर चुप रहा और वापस लेट गया.वो पूरा दिन भाभी मुझे देख-देखकर हँसती रही और मेरे जिस्म में आग पैदा हो इसकी कोशिश करती रही.
अगले दिन भी कुछ ऐसा ही हुआ, मैं आँगन में लेटा हुआ था और वो हैंडपंप के पास उकडून हो कर बैठी कपडे धो रही थी. मैं जहाँ लेटा था वहाँ मेरे बाएं तरफ रसोई और दाएं तरफ गुसलखाना था जहाँ पर हैंडपंप लगा था. मैं पीठ के बल लेटा हुआ था और अपने फ़ोन में कुछ देख रहा था की मैंने 'गलती' से दायीं तरफ करवट ली. करवट लेते ही मेरी नजर अचानक से भाभी पर पड़ी जो मेरी तरफ देख रही थी और उनका निचला होंठ उनके दाँतों तले दबा हुआ था. उनकी दायीं टाँग सीधी थी और उन्होंने उसके ऊपर से अपने पेटीकोट ऊपर चढ़ा रखा था. भाभी मेरी तरफ प्यासी नजरों से देख रही थी और सोच रही थी की मैं उठ कर आऊँगा और उन्हें गोद में उठा कर ले जाऊंगा.
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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