सेक्सी हवेली का सच compleet

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rajsharma
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सेक्सी हवेली का सच compleet

Post by rajsharma »

सेक्सी हवेली का सच--1


वो हवेली आज भी वैसे ही सुनसान थी जैसे की वो पिच्छले 10 साल से थी. आसमान में चाँद पुर नूर पे था और हर तरफ चाँदनी फैली हुई थी. उसके बावजूद हवेली के गलियारे अंधेरे में डूबे हुए थे. दूर से कोई देखे तो इस बात का अंदाज़ा तक नही हो सकता था के इसमें कोई ज़िंदा इंसान भी रहता है. आँगन में सूखी घास, बबूल की झाड़ियाँ, खुला हुआ बड़ा दरवाज़ा, डाल पे बोलता हुआ उल्लू, हर तरफ मनहूसियत पुर जोश पर ही.

पूरी हवेली में 25 कमरे में जिसमें से 23 अंधेरे में डूबे हुए. सिर्फ़ 2 कमरो में हल्की सी रोशनी थी. एक कमरा था ठाकुर शौर्या सिंग का और दूसरा उनकी बहू रूपाली का. हवेली में फेले हुए सन्नाटे की एक वजह 2 दिन पहले हुई मौत भी थी. मौत हवेली की मालकिन और ठाकुर शौर्या सिंग की बीवी सरिता देवी की जो एक लंबी बीमारी के बाद चल बसी थी. उस रात हवेली में मौत का ख़ौफ्फ हर तरफ देखा जा सकता था. मरने से पहले बीमारी में दर्द की वजह से उठी सरिता देवी की चीखें जैसी आज भी हर तरफ गूँज रही थी.

मगर हमेशा यही आलम ना था. इस हवेली ने खूबसूरत दिन भी देखे थे. हवेली को शौर्या सिंग के परदादा महाराजा इंद्रजीत सिंग ने बनवाया था. ना तो आसपास के किसी रजवाड़े में ऐसी हवेली थी और ना ही किसी का इतना सम्मान था जितना इंद्रजीत सिंग का था. परंपरा अगली कयि पीढ़ियों तक बनी रही. हर तरफ इंद्रजीत सिंग के कुल पर लोक गीत गाए जाते थे. जो भी हवेली तक आया कभी खाली हाथ नही गया. जो भी गुज़रता, हवेली के दरवाज़े पे सर झुकाके जाता जैसे वो कोई मंदिर हो और यहाँ भगवान बस्ते हों.

आज़ादी के बाद महाराजा की उपाधि तो चली गयी मगर रुतबा और सम्मान वही रहा. लोग आज भी हवेली में रहने वालो को महाराज के नाम से ही पुकारते थे. और यही सम्मान शौर्या सिंग ने भी पाया जब उनका राजतिलक किया गया. और फिर एक दिन पड़ोस के रजवाड़े की बेटी सरिता देवी को बहू बनाकर इस हवेली में लाया गया.

शौर्या सिंग को सरिता देवी से 4 औलाद हुई. 3 बेटे और एक बेटी. सबसे बड़े बेटे पुरुषोत्तम की शादी रूपाली से हुई और वही अपने पिता जी ज़मीन जायदाद की देखबाल भी करता था. दूसरा बेटा तएजवीर सिंग अपने बड़े भाई का हाथ साथ देता था पर ज़्यादा वक़्त अययाशी में गुज़रता था. तीसरा बेटा कुलदीप सिंग अब भी विदेश में पढ़ रहा था. और सबसे छ्होटी थी सबकी लड़ली कामिनी. 3 भाइयों की दुलारी और घर में सबकी प्यारी शौर्या सिंग की एकलौती बेटी.

हवेली में हर तरफ हसी गूँजती रहती थी. आनेवाले अपनी झोलिया भरके जाते और दुआ देते के कुल का सम्मान सदा ऐसे ही बना रहे और शायद होता भी यही मगर एक घटना ने जैसे सब बर्बाद कर दिया. वो एक दिन ऐसा आया के शौर्या सिंग से उसका सब छीन्के ले गया. उनका सम्मान, खुशियाँ, दौलत और उनका सबसे बड़ा बेटा पुरुषोत्तम सिंग.

एक शाम पुरुषोत्तम सिंग घर से गाड़ी लेके निकला तो रात भी लौटके नही आया. ये कोई नयी बात नही थी. वो अक्सर काम की वजह से रात बाहर ही रुक जाता था इसलिए किसी ने इश्स बात पर कोई ध्यान नही दिया. मुसीबत सुबह हुई जब खबर ये आई के पुरुषोत्तम की गाड़ी हवेली से थोड़ी दूर सड़क के किनारे खड़ी मिली और पुरुषोत्तम का कहीं कोई पता नही था. गाड़ी में खून के धब्बे सॉफ देखे जा सकता थे. तलाश की गयी तो थोड़ी ही दूर पुरुषोत्तम सिंग की लाश भी मिल गयी. उसके जिस्म में दो गोलियाँ मारी गयी थी.

हवेली में तो जैसी आफ़त ही आ गयी. परिवार के लोग तो पागलसे हो गये. किसी को कोई अंदेशा नही था के ये किसने किया. पहले तो किसी की इतनी हिम्मत ही नही सकती थी के शौर्या सिंग की बेटे पे हाथ उठा देते और दूसरा पुरुषोत्तम सिंग इतना सीधा आदमी था का सबसे हाथ जोड़के बात करता था. उसकी किसी से दुश्मनी हो ही नही सकती थी.

उसके बाद जो हुआ वो बदतर था. शौर्या सिंग ने बेटे के क़ातिल की तलाश में हर तरफ खून की नदियाँ बहा दी. जिस किसी पे भी हल्का सा शक होता उसकी लाश अगले दिन नदी में मिलती. सबको पता था के कौन कर रहा था पर किसी ने डर के कारण कुच्छ ना कहा. यही सिलसिला अगले 10 साल तक चलता रहा. शौर्या सिंग और उनके दूसरे बेटे तएजवीर सिंग ने जाने कितनी लाशें गिराई पर पुरुषोत्तम सिंग के हत्यारे को ना ढूँढ सके.

हत्यारा तो ना मिला लेकिन कुल पर कलंक ज़रूर लग गया. जो लोग शौर्या सिंग को भगवान समझते थे आज उनके नाम पे थूकने लगे. जिसे महाराज कहते थे आज उसे हत्यारा कहने लगे. और हवेली को तो जैसे नज़र ही लग गयी. जो कारोबार पुरुषोत्तम सिंग के देखरेख में फल फूल रहा था डूबता चला गया. शौर्या सिंग ने भी बेटे के गम में शराब का सहारा लिया. यही हाल तएजवीर सिंग का भी था जिसे पहले से ही नशे की लत थी. कर्ज़ा बढ़ता चला गया और ज़मीन बिकती रही

हवेली का 150 साल का सम्मान 10 सालों में ख़तम होता चला गया.

रूपाली अपने कमेरे में अकेली लेटी हुई थी. नींद तो जैसे आँखो से कोसो दूर थी. बस आँखें बंद किए गुज़रे हुए वक़्त को याद कर रही थी. वो 20 साल की थी जब पुरुषोत्तम सिंग की बीवी बन कर उसने इस हवेली में पहली बार कदम रखा था. पिच्छले 13 सालों में कितना कुच्छ बदल गया था. गुज़रे सालों में ये हवेली एक हवेली ना रहकर एक वीराना बन गयी थी.

रूपाली पास के ही एक ज़मींदार की बेटी थी. वो ज़्यादा पढ़ी लिखी नही थी और हमेशा गाओं में भी पली बढ़ी थी. भगवान में उसकी श्रद्धा कुच्छ ज़्यादा ही थी. हमेशा पूजा पाठ में मगन रहती. ना कभी बन सवारने की कोशिश की और ना ही कभी अपने अप्पर ध्यान दिया. उसकी ज़िंदगी में बस 2 ही काम थे. अपने परिवार का ख्याल रखना और पूजा पाठ करना.

पर जब शौर्या सिंग ने उसे पहली बार देखा तो देखते ही रह गये. वो सादगी में भी बला की खूबसूरत लग रही थी. ऐसी ही तो बहू वो ढूँढ भी रहे थे अपने बेटे के लिए. जो उनके बेटे की तरह सीधी साधी हो, पूजा पाठ करती हो और उनके परिवार का ध्यान रख सके. बस फिर क्या था, बात आगे बढ़ी और 2 महीनो में रूपाली हवेली की सबसे बढ़ी बहू बनकर आ गयी.

उसके जीवन में पुरुष का संपर्क पहली बार सुहग्रात को उसके पति के साथ ही था. वो कुँवारी थी और अपनी टाँगें ज़िंदगी में पहली बार पुरुषोत्तम के लिए ही खोली. पर उस रात एक और सच उस पर खुल गया. सीधा साधा दिखनेवाला पुरुषोत्तम बिस्तर पर बिल्कुल उल्टा था. उसने रात भर रूपाली को सोने ना दिया. दर्द से रूपाली का बुरा हाल था पर पुरुषोत्तम था के रुकने का नाम ही नही ले रहा था. वो बहुत खुश था के उसे इतनी सुंदर पत्नी मिली और रूपाली हैरत में अपने पति को देखती रह गयी.

यही समस्या अगले 3 साल तक उनकी शादी में आती रही. पुरुषोत्तम हर रात उसे चोदना चाहता था और रूपाली की रति क्रिया में रूचि बस नाम भर की थी. वो बस नंगी होकर टांगे खोल देती और पुरुषोत्तम उसपर चढ़कर धक्के लगा लेता. यही हर रात होता रहा और धीरे धीरे पुरूहोत्तम उससे दूर होता चला गया.

रूपाली को इस बात का पूरा ग्यान था के उसका पति उससे दूर जा रहा है पर वो चाहकर भी कुच्छ ना कर सकी. पुरुषोत्तम बिस्तर पे जैसे एक शैतान का रूप ले लेता और वो उसके आक्रामक अंदाज़ का सामना ना कर पाती. उसके लिए इन सब कामों की ज़रूरत बस बच्चे पैदा करने के लिए थी, ना की ज़िंदगी का मज़ा लेने के लिए. धीरे धीरे बात यहाँ तक आ पहुँची के दोनो बिस्तर पे नंगे होते पर बात नही करते थे. और फिर एक दिन जब पुरुषोत्तम की हत्या का पता चला तो रूपाली की दुनिया ही लूट गयी. वो इतनी बड़ी हवेली में जैसे अकेली रही गयी और पहली बार उसे अपने पति की कमी का एहसास हुआ.

उसके बाद जो हुआ वो उसने बस एक मूक दर्शक बनके देखा. खून में सनी तलवार जैसे हवेली में आम बात हो गयी थी. कोई किसी से बात नही करता था. अगले दस साल तक यही सन्नाटा हवेली में छाया रहा और इन सबका सबसे बुरा असर उसकी सास सरिता देवी पर हुआ जो बिस्तर से जा लगी. हर तरह की दवा की गयी पर उनकी बीमारी का इलाज ना हो सका. और 10 साल बाद उन्होने दम तोड़ दिया.

उस रात रूपाली अपनी सास के पास ही थी. घर में और कोई भी ना था. ठाकुर शौर्या सिंग शराब के नशे में कहीं बाहर निकल गये थे. दूसरा बेटा तो कयि दिन तक घर ना आता था और बेटी कामिनी अपने भाई कुलदीप के पास विदेश में थी. नौकर तो कब्के हवेली छ्चोड़के भाग चुके थे. बस एक वही थी जो अपनी सास को मरते हुए देख रही थी, वहीं उनके पास बैठे हुए. सरिता देवी ने उसका हाथ पकड़ा हुआ था जब उन्होने आखरी साँस ली, पर उससे पहले उन्होने जो कहा उसने रूपाली को हैरत में डाल दिया. मरने से ठीक पहले सरिता देवी ने उसकी आँखों में देखा और उससे एक वादा लिया के वो इस हवेली की खुशियाँ वापस लाएगी. रूपाली की समझ में नही आया के कैसे पर एक मारती हुई औरत का दिल रखने के लिए उसने वादा कर दिया. फिर सरिता देवी ने जो कहा वो रूपाली की समझ में बिल्कुल नही आया. उनके आखरी शब्द अब भी उसके दिमाग़ में गूँज रहे थे “ बेटी, औरत का जिस्म दुनिया में हर फ़साद की सबसे बड़ी जड़ है और ऐसा हमेशा से होता आया है. महाभारत और रामायण तक इसी औरत के जिस्म की वजह से हुई. पर इस जिस्म के सहारे फ़साद ख़तम भी किया जा सकता है” और इसके बाद सरिता देवी कुच्छ ना कह सकी.

उसकी सास की कही बात का मतलब अब उसे समझ आ रहा था. मरती हुई उस औरत ने उससे एक वादा लिया और ये भी बता गयी के उस वादे को पूरा कैसे करना है. कैसे इस पूरे परिवार को एक साथ फिर इस हवेली की छत के नीचे लाना है. ये बात अगर आज से दस साल पहले रूपाली ने सुनी होती तो शायद वो अपनी सास को ही थप्पड़ मार देती पर इन 10 सालों में जो उसने देखा था उसके कारण भगवान से उसकी श्रद्धा जैसे ख़तम ही हो गयी थी.

रूपाली अपने बिस्तर से उठी और कुच्छ सोचती हुई खिड़की तक गयी. खिड़की से बाहर का नज़ारा देखकर उसका रोना छूट पड़ा. आज जो आँगन कब्रिस्तान जैसा लग रहा है कभी इसी आँगन में देर रात तक महफ़िल जमा होती थी. नाच गाना होता था. हसी गूंजा करती थी. उसने अपने आँसू पोंचछते हुए खिड़की पर पर्दे डाल दिए और दरवाज़ा अंदर से बंद कर दिया. फिर उसने पलटके कमरे में लगे बड़े शीशे में अपने आप को देखा.

वो 33 साल की हो चुकी थी. पिच्छले 10 साल में उसने सिर्फ़ और सिर्फ़ दुख देखे थे पर इन सबके बावजूद जो एक चीज़ नही बदली थी वो था उसका हुस्न. वो आज भी वैसे ही खूबसूरत थी जैसे आज से 13 साल पहले जब दुल्हन बनकर इस कमरे में पहली बार आई थी. हन उस वक़्त थोड़ी दुबली पतली थी और अब उसका पूरा जिस्म गदरा गया था. तब वो एक लड़की थी और आज एक औरत. कमरे में ट्यूबलाइज्ट की सफेद रोशनी फेली हुई थी और नीले रंग की साड़ी में उसका रूप ऐसा खिल रहा था जैसे चाँदनी में किसी झील का पानी.

रूपाली ने अपना हाथ अपने कंधे पे रखा और साड़ी का पल्लू सरका दिया. दूसरे ही पल शरम से खुद उसकी अपनी आँखें झुक गयी. पहली बार आज उसने अपने आपको इस नज़र से देखा था. ये नज़र तो उसने अपने अप्पर तब भी नही डाली थी जब वो शादी के जोड़े में तैय्यार हो रही थी. उसने धीरे से अपनी नज़र उठाई और फिर अपने आप को देखा. नीले रंग का ब्लाउस और उसमें क़ैद उसके 36 साइज़ की छातियाँ और नीचे उसकी गोरी नाभि. उसके होंठो पे एक हल्की सी मुस्कुराहट आई और उसने टेढ़ी होकर अपनी छातियों को निहारा. जैसे दो पर्वत सर उठाए खड़े हों. गौरव के साथ और नीचे उसकी नाभि जैसे धूप में सॉफ सफेद चमकता कोई रेगिस्तान. उसने अपना एक हाथ अपने पेट पे फेरते हुए अपने दाई तरफ के स्तन पे रखा और जैसे अपने आप ही उसके हाथ ने उसकी छाति को दबा दिया. दूसरे ही पल उसके शरीर में एक ल़हेर से दौड़ गयी और उसके घुटने कमज़ोर से होने लगे. पहली बार उसने अपने आप को इस अंदाज़ में छुआ था और आज जो महसूस कर रही थी वो तो तब भी महसूस ना किया था जब यही छातियाँ उसके पति के हाथों में होती थी, जब वो इनको अपने मुँह में लेके चूसा करता था.

रूपाली ने जैसे एक नशे की सी हालत में अपने ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए. उसे 10 साल से किसी मर्द ने नही छुआ था और 10 साल में ना ही कभी उसके जिस्म ने कोई ख्वाहिश की पर आज उसकी सास की कही बात ने सब कुच्छ बदल दिया. एक एक करके ब्लाउस के सारे बटन खुल गये और अगले ही पर वो सरक कर नीचे ज़मीन पे जा गिरा. ब्रा में अपनी छातियों को देखकर रूपाली एक बार फिर शर्मा सी गयी पर अगले ही पल नज़र उठाकर अपने आपको देखने लगी. सफेद रंग की ब्रा में उसकी बड़ी बड़ी छातियाँ जैसे खुद उसपर ही क़यामत ढा रही थी. ब्रा उसकी छातियों पे कसा हुआ था और आधे स्तन ब्रा से उभरकर बाहर आ रहे थे. जैसे किसी ग्लास में शराब ज़रूरत से ज़्यादा डाल दी गयी हो और अब छलक कर बाहर गिर रही हो. रूपाली अपना एक हाथ कमर तक ले गयी और ब्रा के हुक को खोलने की कोशिश करने लगी. जैसे ही खुद उसके हाथ का स्पर्श उसकी नंगी कमर पे हुआ, उसे फिर अपने घुटने कमज़ोर होते से महसूस हुए.

धीरे से ब्रा का हुक खुला और अगले ही पल उसके दोनो स्तन आज़ाद थे. दो पर्वत जो 33 साल की उमर होने के बाद भी ज़रा नही झुके थे. आज भी उसी अकड़ से अपना सर उठाए मज़बूत खड़े थे. रूपाली को खुद अपने अप्पर ही गर्व महसूस होने लगा. उसके दोनो हाथों ने उसकी छातियों को थाम लिया और धीरे धीरे सहलाने लगे. उसके मुँह से एक ठंडी आह निकल गयी और पहली बार उसे अपनी टाँगो के बीच नमी का एहसास हुआ और उसका ध्यान अपने शरीर के निचले हिस्से की तरफ गया. उसकी टांगे मज़बूती से एक दूसरे से चिपक गयी जैसे बीच में उठती ख्वाहिश को पकड़ना चाह रही हो और छातियों पर उसकी पकड़ और सख़्त हो गयी, जैसे दबके बरसो से दबी आग को बाहर निकलना चाह रही हो.उसने फ़ौरन अपनी साड़ी को पेटिकोट से निकाला और बिस्तर की तरफ उछाल दिया. फिर उसके हाथ पेटिकोट को ऐसे उतरने लगे जैसे उसमें आग लग गयी हो. थोड़ी ही देर बाद उसका पेटिकोट भी बिस्तर पर पड़ा था और और वो सिर्फ़ एक पॅंटी पहने अपने आप को निहार रही थी. और तब उसे एहसास हुआ के उसने पिच्छले 10 साल में अपने उपेर ज़रा भी ध्यान नही दिया. पॅंटी ने उसकी चूत को तो ढक लिया था पर दोनो तरफ से बॉल बाहर निकल रहे थे. वजह ये थी के 10 साल में उसने एक बार भी नीचे शेव नही किया था. पति के मरने के बाद कभी ज़रूरत ही महसूस नही हुई. जब वो अपनी आर्म्स के नीचे के बॉल सॉफ करती तो बस वही रुक जाती . कभी चूत की तरफ ध्यान ही ना जाता. यही सोचते हुए उसने अपनी पॅंटी उतारी और पहली बार अपने आपको पूरी तरह से नंगी देखा.

शीशे में नज़ारा देखकर रूपाली के मुँह से सिसकारी निकल गयी. उसे अपनी पूरी जवानी कभी एहसास ना हुआ के वो इतनी खूबसूरत है. कभी पूजा पाठ से ध्यान ही ना हटा. जैसे आज उसने अपने आपको पहली बार पूरी तरह नंगी देखा हो. उसका लंबा कद,36 साइज़ के बड़े बड़े भारी स्तन, पतली कमर और भारी उठी हुई गांद. दो लंभी लंबी सफेद टाँगें और उनकी बीच बालों में छिपि उसकी चूत. वो पलटी और अपनी कमर से लेके अपनी गांद तक को निहारा. वो जो देख रही थी वो किसी भी मर्द को पागल कर देने के लिए काफ़ी थी. ये सोचते हुए वो मुस्कुराइ. बस एक चीज़ से छूट कारा पाना है और वो थे उसकी चूत को छिपा रहे लंबे बाल. उसने अपना एक हाथ उठे हुए बालों पे फिराया और चौंक पड़ी. बॉल गीले थे. उसका हाथ टाँगो के बीच आया तो एहसास हुए के खुद अपने आपको देख कर उसकी चूत गीली हो चुकी थी. जैसे ही उसने अपनी चूत को थोड़ा सहलाया उसके घुटने जवाब दे गये और वो ज़मीन पे गिर पड़ी. आज पहली बार उसने जाना के चूत गीला होना किसे कहते हैं और क्यूँ उसका पति उसे चोदने से पहले लंड पे तेल लगता था. क्यूंकी कभी भी उसकी चूत गीली नही होती थी और इसलिए उसे लंड लेने में तकलीफ़ होती थी.
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: सेक्सी हवेली का सच

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रूपाली ने ज़मीन पे पड़े पड़े ही अपने घुटने मोड और टांगे फैलाई. चूत खुलते ही उसे एसी की ठंडक का एहसास अपनी चूत पे हुआ. हाथ चूत तक आया और फिर धीरे धीरे उपर नीचे होने लगा. उसकी आँखें आनंद के कारण बंद होती चली गयी और मुँह से एक लंबी आ निकल गयी. हाथ थोड़ा और नीचे आया तो वो जगह मिली जहाँ उसके पति का लंड अंदर घुसता था. जगह मिली तो एक अंगुली अपने आप ही अंदर चली गयी. जोश में रूपाली ने गर्देन झटकी तो शीशे में फिर खुदपे नज़र पड़ी. नीचे कालीन पे पड़ा उसका नंगा जिस्म जैसे दुनिया की सबसे खूबसूरत चीज़ लग रहा था. बिखरे बॉल, मूडी कमर, छत की तरफ उठे हुए स्तन, जोश और एसी की ठंडी हवा के कारण सख़्त हो चुके निपल्स, खोली हुई लाबी टाँगें, गीली खुली हुई उसकी चूत और उसकी चूत को सहलाता उसका हाथ. इस नज़रे ने खुद उसके जोश को सीमा के पार पहुँचा दिया और फिर जैसे उसकी चूत और हाथ में एक जंग छिड़ गयी. मुँह से लंबी आह निकालने लगी और बदन अकड़ता चला गया.

जब जोश का तूफान ठंडा हुआ तो रूपाली के जिस्म में जान बाकी ना रही थी. उसने अपने आपको इतना कमज़ोर कभी महसूस ना किया था. बदन में जो ल़हेर उठी थी आज से पहले कभी ना उठी थी. उसकी चूत से पानी निकल कर उसकी गांद तक को गीला कर चुक्का था. उसने फिर अपने आप को शीशे में निहारा तो मुस्कुरा उठी. आज जैसे उसने अपने आप को पा लिया था. वो थोड़ी देर वैसे ही पड़ी अपने नंगे जिस्म को देखती रही और फिर जब उठने की कोशिश की तो दर्द की एक ल़हेर उसके सर में उठी. अपने सर पे हाथ फेरा तो 2 बातों को एहसास हुआ. एक के उसने जोश में अपना सर ज़मीन पे पटक लिया था जिसकी वजह से सर में दर्द हो रहा था और दूसरा चूत सहलाते गर्मी इतनी ज़्यादा हो गयी थी के चूत से बाल तक तोड़ लिए थे जो अभी भी उसकी उंगलियों के बीच फसे हुए थे. उसने अपने सर को सहलाया और अचानक उसकी हसी छूट पड़ी. आज उसे पता था के उसे क्या करना है.

रूपाली यूँ ही ज़मीन पे काफ़ी देर तक नंगी ही पड़ी रही और उसे पता ही नही चला के कब उसकी आँख लग गयी. जब नींद खुली तो सुबह के 5 बाज रहे थे.उसने कल रात ही सोच लिया था के उसे क्या करना है और कैसे करना है. अब तो बस सोच को अंजाम देने का वक़्त आ गया था.

उसने उठकर अपने कपड़े पहने और बॉल ठीक करके नीचे आई. घर में अभी भी हर तरफ सन्नाटा था. वो खामोश कदम रखते अपने ससुर के कमरे तक पहुँची. दरवाज़ा खुला था. वो अंदर दाखिल हो गयी. ठाकुर शौर्या सिंग नशे में धुत सोए पड़े थे. शराब की बॉटल अभी तक हाथ में थी. एक नज़र उनपर डालकर रूपाली का जैसे रोना छूट पड़ा. एक वक़्त था जब शौर्या सिंग का शौर्या हर तरफ फेला था. हर कोई उन्हें इज़्ज़त की नज़र से देखता था, उनका अदब करता था. शराब को कभी उन्हें कभी भी हाथ ना लगाया था. और आज उसी इंसान से हर कोई नफ़रत करता है, हर तरफ उसके नाम पे थुका जाता है.

रूपाली ने अपने ससुर के हाथ से शराब की बॉटल लेके एक तरफ रख दी. अगर हवेली की इज़्ज़त को दोबारा लाना है तो सबसे पहले उसे अपने ससुर को इस 10 साल की लंबी नींद से जगाना होगा, ये बात वो बहुत आछे से जानती थी. एक शौर्या सिंग ही हैं जो सब कुच्छ दोबारा ठीक कर सकते हैं और अभी तो एक सवाल का जवाब उसे और चाहिए थे, के उसके पति को मारने की हिम्मत किसने की थी. किसकी जुर्रत हुई थी के हवेली की खुशियों पे नज़र लगाए.

रूपाली बाहर बड़े कमरे में रखे सोफे पे आके बैठ गयी. उसे इंतेज़ार था घर के एकलौते नौकर भूषण का. भूषण ने अपनी सारी ज़िंदगी इसी हवेली की सेवा करते गुज़ार दी थी और बुढ़ापे में भी अपने ज़िंदगी के आखरी दीनो में हवेली का वफ़ादार रहा. उसने वो सब देखा जो हवेली में हुआ पर कभी गया नही. यूँ तो अब वो ही हवेली का सारा काम करता था पर अब उसके कामों में एक काम और जुड़ गया था. 24 घंटे नशे में धुत ठाकुर का ख्याल रखना. उसके दिन की शुरुआत भी ठाकुर की जगाने और उनके नहाने का इन्तेजाम करने से ही होती थी.

थोड़ी ही देर में रूपाली को नौकर के कदमों की आहट सुनाई दे गयी.

“अरे बहू आप? इतनी सुबह?” भूषण ने पुचछा.

“हां वो आपसे कुच्छ काम था. मेरा कल माँ दुर्गा का व्रत था और आज पूजा के बाद ही मैं कुच्छ खा सकती हूँ. अभी देखा तो घर में पूजा का समान ही नही है. आप लाल मंदिर जाकर पूजा की सामग्री ले आइए. क्या क्या लाना है मैं सब इस काग़ज़ पे लिख दिया है” रूपाली ने काग़ज़ का एक टुकड़ा भूषण की तरफ बढ़ाते हुए कहा. लाल मंदिर हवेली से तकरीबन 100 किलोमीटर की दूरी पे था और भूषण 4-5 घंटे से पहले वापिस नही आ सकता था ये बात रूपाली अच्छी तरह जानती थी.

“जैसा आप कहें” भूषण ने काग़ज़ का टुकड़ा लेते हुए कहा. “ पर घर का काम?”

“वो सब मैं देख लूँगी. आप जल्दी ये सब समान ले आइए” रूपाली ने उसे जाने का इशारा करते हुए कहा.

बहू की भगवान में कितनी शरद्धा है. कितना पूजा पाठ करती है और फिर भी उपेरवाले ने बेचारी को भरी जवानी में ऐसे दिन दिखाए. ये सोचता हुआ भूषण धीरे धीरे दरवाज़े की तरफ बढ़ गया.

बाहर सवेरे का सूरज दिखना शुरू हो गया था. अब वक़्त था ठाकुर को जगाने का. रूपाली अपने कमरे में पहुँची और अपनी ब्रा और पॅंटी उतार फेंकी. विधवा होने के कारण उसे हमेशा सफेद सारी में ही रहना पड़ता था पर उसमें भी उसका हुस्न देखते ही बनता था. ब्रा ना होने के कारण सफेद ब्लाउस में उसकी दोनो छातियाँ हल्की हल्की नज़र आने लगी थी. रूपाली ने आईने में एक नज़र अपने उपेर डाली और सारी का पल्लू थोड़ा सा एक तरफ कर दिया और ब्लाउस का उपेर का एक बटन खोल दिया. सफेद ब्लाउस में अब उसकी चूचियाँ पल्लू ना होने के कारण और ज़्यादा नज़र आने लगी थी. निपल तो सॉफ देखा जा सकता था और ब्लाउस का एक बटन खुल जाने के बाद उसका क्लीवेज किसी की भी धड़कन रोक देने के लिए काफ़ी था.

अपने आप को देखकर रूपाली फिर मुस्कुरा उठी.वो अभी ठाकुर को जाकर जगाने का सोच ही रही थी के नीचे से शौर्या सिंग की आवाज़ आई. वो चिल्लाकर भुसन को आवाज़ दे रहे थे. रूपाली ने जल्दी से अपना पल्लू ठीक किया, सर पे घूँघट डाला और तेज़ कदमो से चलती नीचे बड़े कमरे में आई.

“जी पिताजी”

उसकी आवाज़ सुन शौर्या सिंग पलटे.

“भूषण कहाँ है बहू”

“जी उन्हें मैने लाल मंदिर भेजा है. घर में पूजा की सामग्री नही है. मेरा कल से व्रत था जो मुझसे पूजा के बाद ख़तम करना है” रूपाली ने सोचा समझा जवाब दिया.

“ह्म. ठीक है” शौर्या सिंग एक नज़र बहू पे डाली और कुच्छ कह ना सके पर चेहरे पे आई झुंझलाहट रूपाली ने देख ली थी.

“आपके नहाने का पानी हमने गरम कर दिया है और बाथरूम में है. आप नहा लीजिए तब तक हम नाश्ता बना देते हैं” रूपाली ने कहा

शौर्या सिंग अब भी नशे में धुत थे ये बात रूपाली से छुपि नही. कदम अब भी लड़खड़ा रहे थे.

“ठीक है” कहते हुए शौर्या सिंग वापिस अपने कमरे में जाने के लिए पलते और लड़खड़ा गये. घुटना सामने रखे सोफे से टकराया और वो गिरने लगे. रूपाली ने फ़ौरन आगे बढ़के सहारा दिया और इस चक्कर में उसकी सारी का पल्लू उसका सर से सरक कर नीचे जा गिरा.

“संभलके पिताजी” रूपाली ने अपने ससुर के सीने के दोनो तरफ बाहें डाली और उन्हें गिरने से बचाया. शौर्या सिंग का एक हाथ उसके सारी के बीच नंगे पेट पे आया और दूसरा उसके कंधे पे. कुच्छ पल के लिए उसका सीना रूपाली की चुचियों से दब गया. जब संभले तो एक नज़र रूपाली पे डाली. वो अभी तक उन्हें सहारा दे रही थी इसलिए सारी का पल्लू ठीक नही किया था. शौर्या सिंग ने आज दूसरी बार उसका चेहरा देखा था. पहली बार जब उसे पहली बार उसके बाप के घर देखा था और आज. वो आज भी उतनी ही सुन्दर लग रही थी, बल्कि उससे कहीं ज़्यादा. और फिर नज़र चेहरे से हटके उसके गले से होती उसकी चुचियों पे आ गयी जो ब्रा से बाहर निकलके गिरने को हो रही थी. सफेद रंग के ब्लाउस में निपल सॉफ नज़र आ रहे थे. दूसरे ही पल उन्होने शरम से नज़र फेर ली.

पर ससुर की नज़र को रूपाली से बची नही. वो जानती थी के ससुर जी ने वो सब देख लिया है जो वो दिखाना चाहती थी. जब शौर्या सिंग संभले तो उसने अलग हटके अपने सारी ठीक करी.

“आप थोड़ी देर यहीं बैठ जाइए. मैं तब तक आपके लिए चाय ला देती हूँ” कहते हुए उसने ससुर जी को वहीं बिठाया और किचन की तरफ बढ़ गयी. किचन में जाकर उसने एक प्याली में चाय निकाली और फिर ब्लाउस में से वो छ्होटी से बॉटल निकाली जो उसकी माँ ने शादी से पहले उसे दी थी.

“ये एक जड़ी बूटी है. ये पुरुष में काम उत्तेजना जगाती है.इसे अपने पास रखना. अगर कभी तेरा पति बिस्तर पे तेरा साथ ना दे रहा हो तो उसे ये पीला देना. फिर वो तुझे रात भर सोने नही देगा” ये बात उसकी माँ ने उसे मुस्कुराते हुए बताई थी. उस वक़्त रूपाली ये बात सुनके शरम से गड़ गयी थी और उसका दिल किया था के इसे फेंक दे. पर फिर जाने क्या सोचकर रख ली थी और आज यही चीज़ उसके काम आ रही थी. माँ तो रही नही पर उनकी चीज़ आज काम आई सोचते हुए रूपाली ने आधी बॉटल चाय की प्याली में मिला दी.

ठाकुर को चाय की प्याली थमाकर वो उनके नहाने का पानी बाथरूम में रखने चली गयी. वापिस आई तो ठाकुर चाय ख़तम कर चुके थे.

“हमें तो पता ही नही था के आप इतनी अच्छी चाय बनाती हैं बेटी” शौर्या सिंग ने कहते हुए चाय की प्याली नीचे रखी

“शुक्रिया पिताजी” कहते हुए रूपाली चाय की प्याली उठाने को झुकी और शौर्या सिंग का कलेजा उनके मुँह को आ गया. बहू के झुकते ही उसका क्लीवेज फिर उनकी आँखो के सामने एक पल के लिए आया और उन्होने अपने जिस्म में एक हरकत महसूस की. लंड ने जैसे एक ज़माने के बाद आज अंगड़ाई ली हो. ठाकुर को अपने उपेर आश्चर्या हुआ. वो हमेशा सोचते थे के अपने काम पे उन्हें पूरा काबू है पर आज उनकी बेटी समान बहुर को देख कर उनका जिस्म उन्हें धोखा दे रहा था. उन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नही था के ये कमाल उनकी चाय में मिली जड़ी बूटी का था.

रूपाली चाय की प्याली रखकर वापिस आई तो देखा के ठाकुर उठने की कोशिश कर रहे हैं पर नशे के कारण कदम लड़खड़ा रहे थे. उसने फिर आगे बढ़के सहारा दिया.

“आइए हम आपको बाथरूम तक ले चलते हैं” कहते हुए रूपाली ने ठाकुर को सहारा दिया. ठाकुर शौर्या बहू का कंधा पकड़के खड़े हुए. रूपाली ने एक हाथसेउनका पेट पकड़कर एक हाथ से उनका दूसरा हाथ पकड़ रखा था जो उसके कंधे पे था. उसके हाथ की नर्माहट और उसके जिस्म की गर्माहट शौर्या सिंग सॉफ महसूस कर सकते थे. अंजाने में ही उनकी नज़र फिर बहुर के ब्लाउस पे चली गयी. क्लीवेज तो ना दिखा क्यूँ सारी पूरी तरफ से चुचियों के उपेर थी पर इस बात का अंदाज़ा ज़रूर हो गया के ब्लाउस का अंदर बहुर की छातियाँ कितनी बड़ी बड़ी हैं.

धीरे कदमों से दोनो बाथरूम तक पहुँचे. ठाकुर को अंदर छ्चोड़कर रूपाली बाहर कमरे में आई ही थी के अंदर बाथरूम में ज़ोर की एक आवाज़ आई. वो भागकर फिर बाथरूम में पहुँची तो देखा के शौर्या सिंग नीचे गिरे पड़े थे.

“ओह पिताजी. आपको चोट तो नही आई” उसने अपने ससुर को उठाके बिठाया.

“नही कोई ख़ास नही. पेर फिसल गया था पर मैने दीवार का सहारा ले लिया इसलिए ज़्यादा ज़ोर से नही गिरा.” ठाकुर ने अपनी कमर सहलाते हुए जवाब दिया.

“ये कम्बख़्त भूषण. इसे पता है के हमें नहलाने का काम इसका है फिर भी सुबह सुबह गया ” ठाकुर ने गुस्से में कहा.

“ग़लती हमारी है पिताजी. हमने भेजा था.” रूपाली ने कहा

“फिर भी. उसे सोचना चाहिए था.” ठाकुर ने फिर अपनी कमर पे हाथ फिराया.

“लगता है आपकी कमर में चोट आई है. हमें दिखाइए” कहते हुए रूपाली ठाकुर के पिछे आई और इससे पहले के वो कुच्छ कहते उनके कुर्ते को उपेर उठाकर कमर देखने लगी

शौर्या सिंग जैसे हक्के बक्के रह गये. वो मना करना चाहते थे पर बहू ने इंतेज़ार ही नही किया.

“ज़्यादा चोट नही आई पिताजी. हल्की सी खरोंच है” रूपाली ने कुर्ता फिर नीचे करते हुए कहा.

“ह्म्‍म्म्म…” ठाकुर बस इतना ही कह सके.

“आप बैठिए. हम आपको नहला देते हैं वरना आप फिर गिर जाएँगे.” रूपाली ने कहा

ठाकुर उसे मना करना चाहते थे पर शरीर में उठी काम उत्तेजना ने चुप कर दिया. रूपाली ने उनका कुर्ता पकड़के उतारा और ठाकुर ने अपने दोनो हाथ हवा में उठाकर उसकी मदद की. अब जिस्म पे सिर्फ़ एक धोती रह गयी.

“घूँघट में नहलाओगी? कुच्छ नज़र आएगा?” ठाकुर ने मुस्कुराते हुए पुचछा.

रूपाली ने अपने चेहरे से घूँघर हटा दिया और सारी का पल्लू अपनी कमर में पेटिकोट के साथ फँसा लिए. अब उसका पल्लू उसके ब्लाउस के बीच से जा रहा था और एक भी छाती को नही ढक रहा था. शौर्या सिंग ने उसका चेहरे को सॉफ तरह इतनी नज़दीक से पहली बार देखा था. उन्होने उसपे एक भरपूर नज़र डाली और दिल ही दिल में तारीफ किए बिना ना रह सके. और फिर नज़र जैसे अपने आप उसकी छातियो से आके चिपक गयी जो अब पल्लू हट जाने के वजह से ब्लाउस में सॉफ नज़र आ रही थी.

रूपाली ने अपने ससुर के शरीर पे पानी डालना शुरू किया. पानी वो इस अंदाज़ में डाल रही थी के आधा पानी ठाकुर के उपेर गिरता और आधा उसके अपने उपेर. थोड़ी ही देर में ठाकुर के साथ साथ वो भी पूरी तरह भीग चुकी थी. उसका ब्लाउस उसकी छातियों से चिपक गया था. अंदर ब्रा ना होने के कारण अब उस ब्लाउस का होना ना होना एक बराबर था. वो ठाकुर के सामने खड़ी थी जिसकी वजह से उसकी छातियों का भरपूर नज़ारा उसके ससुर को मिल रहा था. उसने साबुन उठाया और अपने सासूस के सर पे लगाना शुरू किया.

उधर शौर्या सिंग का अपने उपेर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. सालों से उन्होने किसी को नही चोदा था और आज एक औरत का जिस्म इतने करीब था. उनकी बहू झुकी हुई उनके सर पे साबुन लगा रही थी. पानी से भीगा ब्लाउस अब जैसे था ही नही. उसकी दोनो चूचियाँ उनके सामने सॉफ नज़र आ रही थी. रूपाली उनके इतना करीब थी के वो अगर अपना मुँह हल्का सा आगे कर दें तो उसके क्लीवेज को चूम सकते थे.

रूपाली घूमकर ठाकुर के पिछे आई और कमर पे साबुन लगाने लगी. बुढ़ापे में भी अपने ससुर का जिस्म देखकर उसकी मुँह से जैसे वाह निकल पड़ी थी. इस उमर में इतना तन्द्रुस्त जिस्म. बुढ़ापे का कहीं कोई निशान नही,चौड़ी छाती, मज़ब्बूत कंधे. उसे इस बात का भी अंदाज़ा था के ठाकुर एकटूक उसकी चूचियों को ही घूर रहे थे और यही तो वो चाहती भी थी. अचानक वो आगे को गिरी और और अपनी दोनो चूचियाँ ठाकुर के कंधो पे रखके दबा दी.
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: सेक्सी हवेली का सच

Post by rajsharma »

“माफ़ कीजिएगा पिताजी. पेर फिसल गया था” कहते हुए तो खड़ी हुई और पानी डालकल साबुन धोने लगी.

अचानक उसकी नज़र बैठे हुए ठाकुर की टाँगो की तरफ पड़ी और उसकी आँखें खुली रह गयी. उसके ससुर का लंड खड़ा हुआ था ये धोती में भी सॉफ देखा जा सकता था. सॉफ पता चलता था के लंड कितना लंबा और मोटा है. रूपाली को पहली बार अंदाज़ा हुआ के लंड इतना लंबा और मोटा भी हो सकता है. उसके पति का तो शायद इसका आधा भी नही था. एक बार को तो उसे ऐसा लगा के हाथ आगे बढ़के पकड़ ले.अपने दिल पे काबू करके रूपाली ने नहलाने का काम ख़तम किया और मुड़कर बाथरूम से बाहर निकल गयी.

शौर्या सिंग की नज़र तो जैसे बहू की छातियों से हटी ही नही. जब वो नहलाकर जाने के लिए मूडी तो उनका कलेजा जैसे फिर उनके मुँह को आ गया. सारी भीग जाने की वजह से रूपाली की गांद से चिपक गयी थी और गांद के बीच की दरार में जा फासी थी. उसकी उठी हुई गांद की गोलैईयों को देखकर ठाकुर के दिल में बस एक ही बात आई.

“बहुत सही नाम रखा इसके माँ बाप ने इसका. रूपाली”

पानी में भीगी रूपाली जैसे भागती हुई अपने कमरे में पहुँची. इस सारे कार्यक्रम में उसका खुद का जिस्म जैसे दहक उठा था. अगर वो 2 मिनट और बाथरूम में रुक जाती तो उसे पता था के वो खुद अपने ससुर का लंड अपने हाथ में ले लेती. कमरे में घुसते ही उसे अपने जिस्म से भीगे कपड़े उतार के फेकने शुरू किए. नंगी होकर वो बिस्तर पे जा गिरी और एक बार फिर उसकी उंगलियो की चूत से जुंग शुरू हो गयी.

उधेर रूपाली के जाते ही शौर्या सिंग का हाथ अपनी धोती तक पहुँच गया. उन्हें याद भी ना था के आखरी बार अपने हाथ से कब काम चलाया था उन्होने. शायद बचपन में कभी. और आज बहू ने उनसे ये काम बुढ़ापे में करवा दिया. लंड को हाथ से हिलाते शौर्या सिंग ने जैसे ही बहू के नंगे जिस्म की कल्पना अपने नीचे की तो पुर शरीर में जैसे रोमांच की एक ल़हेर सर से पावं तक दौड़ गयी.

चूत में लगी आग ठंडी होकर जब उंगलियों पे बहने लगी तो रूपाली ने उठकर अपने कपड़े समेटे. दिल तो चाह रहा था के अभी ससुर जी के सामने जाके टांगे खोल दे पर उसने अपने उपेर काबू रखा. पहेल उसने शौर्या सिंग से ही करनी थी वरना सारा खेल बिगड़ सकता था. उसे ऐसी बनना था के शौर्या सिंग लट्तू की तरह उसी की आगे पिछे घूमता रहे. कपड़े बदलकर भीगे हुए कपड़ो को सूखने के लए वो अपने कमरे की बाल्कनी में आई तो उसे अपना पहले देवर तएजवीर सिंग की गाड़ी आती दिखाई दी.

तएजवीर सिंग को ज़्यादातर लोग कुल का कलंक कहते थे. वजह थी उसकी अययाशी की आदत. औरतों के बाज़ार में उसका आना जाना था, नशे की उसे लत थी. अक्सर हफ्तों तक घर वापिस नही आता था पर किसी की हिम्मत कभी नही हुई के उसे पलटके कुच्छ कहे. ऐसा रौब था उसका. उसका बाप तक उसके आगे कुच्छ नही कहता था. तेज अपनी मर्ज़ी का आदमी था. जो चाहा करता. आज भी वो 2 हफ्ते बाद घर वापिस आया था.

तेज का कमरा जहाँ था वहाँ तक जाने के लिए उसे रूपाली के कमरे की आगे से होके गुज़रना पड़ता था. वो हमेशा रुक कर पहले अपनी भाभी का हाल पुछ्ता था और फिर अपने कमरे तक जाता था. आज भी ऐसा ही होगा ये बात रूपाली जानती थी. वो पलटकर अपने कमरे तक वापिस पहुँची और कमरे का दरवाज़ा खोल दिया. कार पार्क करके यहाँ तक पहुँचने में तेज को कम से कम 5 मिनट्स का टाइम लगेगा. ये सोचे हुए वो बाथरूम में पहुँची. अपने सारे बाल गीले किए और अपनी सारी और ब्लाउस उतार दिया. अब सिर्फ़ एक काले रंग के पेटिकोट और उसी रंग के ब्रा में वो शीशे के सामने आके खड़ी हो गयी, जैसे अभी नहा के निकली हो. दरवाज़ा उसके पिछे था और वो शीशे में देख सकती थी. थोड़ी देर वक़्त गुज़रा और उसे तेज के कदमो के आवाज़ आई. जैसे जैसे कदम रखने की आवाज़ नज़दीक आती रही वैसे वैसे रूपाली के दिल की धड़कन बढ़ती रही. उसके जिस्म में शरम, वासना और दार की अजीब सी ल़हेर उठ रही थी. थोड़ी देर बाद दरवाज़ा थोड़ा सा खुला और उसे तेज का चेहरा नज़र आया.

तेजविंदर सिंग 2 हफ्ते बाद घर कुच्छ पैसे लेने के लिए लौटा था. जो पैसे वो लेके गया था वो रंडी चोदने और शराब पीने में उड़ा चुक्का था. उसने गाड़ी हवेली के सामने रोकी और अंदर दाखिल हुआ. सामने ही उसके बाप का कमरा था पर उसने वहाँ जाना ज़रूरी नही समझा. वैसे भी वो सिर्फ़ थोड़ी देर के लिए आया था. पैसे लेके उसने वापिस चले जाना था. वो अपने कमरे की तरफ बढ़ गया. रास्ते में भाभी का कमरा पड़ता था. उनका हाल वो हमेशा पुछ्ता था. रूपाली पे उसे दया आती थी. बेचारी भारी जवानी में इस वीरान हवेली में क़ैद होके रह गयी थी. वो रूपाली के कमरे के सामने रुका और दरवाज़ा हल्का सा खोला ही था के उसका गला सूखने लगा.

रूपाली लगभग आधी नंगी शीशे के सामने खड़ी बाल बना रही थी. वो शायद अभी नाहके निकली थी और जिस्म पर सिर्फ़ एक ब्रा और पेटिकोट था. लंबे गीले बॉल उसके पेटिकोट को भी गीला कर रहे थे जो भीग कर उसकी गांद से चिपक गया था. एक पल के लिए वो शरम के मारे दरवाज़े से हट गया और अपने कमरे की तरफ चल पड़ा पर फिर पलटा और दरवाज़े से झाँकने लगा. उसने अपनी ज़िंदगी में कितनी औरतों को नंगी देखा था ये गिनती उसे भी याद नही थी पर रूपाली जैसी कोई भी नही थी. गोरा मखमल जैसा जिस्म, मोटापे का कहीं कोई निशान नही, लंबे बॉल, पतली कमर और गोल उठी हुई गांद. इस नज़ारे ने जैसे उसकी जान निकल दी. वो एक अय्याश आदमी था और भाभी है तो क्या, चूत तो आख़िर चूत ही होती है ऐसी उसकी सोच थी. वो औरो के चक्कर में जाने किस किस रंडी के यहाँ पड़ा रहता था और उसे अब अपनी बेवकूफी पे मलाल हो रहा था. घर में ऐसा माल और वो बाहर के धक्के खाए? नही ऐसा नही होगा.

रूपाली जानती थी के पिछे दरवाज़े पे खड़ा तेज उसे देख रहा था. शीशे के एक तरफ वो उसके चेहरे की झलक देख सकती थी. उसने बड़ी धीरे धीरे अपने गीले बॉल सुखाए ताकि उसका देवर एक लंबे वक़्त तक उसे देख सके. वो जान भूझ कर अपनी गांद को थोड़ा आगे पिछे करती और उसकी वो हरकत तेज की क्या हालत कर रही थी ये भी उसे नज़र आ रहा था. थोड़ी देर बाद उसने अपना ब्लाउस उठाया और पहेनटे हुए बाथरूम की तरफ चली गयी. कपड़े पहेन कर जब वो वापिस आई तो तेज भी दरवाज़े पे नही था. उसने अपने कपड़े ठीक किए और दरवाज़ा खोलकर बाहर निकली.

बाहर निकलकर रूपाली ने एक नज़र तेज के कमरे की तरफ डाली. दरवाज़ा बंद था. उसने एक लंबी साँस ली और सीढ़ियाँ उतरकर बड़े कमरे में आई. उसके ससुर कहीं बाहर जाने को तैय्यार हो रहे थे.

“भूषण आ गया क्या?” शौर्या ने पुचछा

“जी नही. तेज आए हैं” रूपाली सिर झुकाके बोली

“आ गया अय्याश” कहते हुए शौर्या ने एक नज़र रूपाली पे डाली. अभी यही औरत जो घूँघट में खड़ी है थोड़ी देर पहले उन्हें नहला रही थी. थोड़ी देर पहले इसकी दोनो छातियाँ उनके चेहरे के सामने आधी नंगी लटक रही थी सोचकर ही शौर्या सिंग के बदन में वासना की लहर दौड़ उठी. अब उनकी नज़र में जो उनके सामने खड़ी थी वो उनकी बहू नही एक जवान औरत थी.

“मैं ज़रा बाहर जा रहा हूँ. शाम तक लौट आउन्गा. भूषण आए तो उसे मेरे कपड़े धोने के लिए दे देना.” कहते हुए शौर्या सिंग बाहर निकल गये

रूपाली उन्हें जाता देखकर मुस्कुरा उठी. ये सॉफ था के वो नशे में नही थे. और उसे याद भी नही था के आखरी बार शौर्या सिंग ने हवेली से बाहर कदम भी कब रखा था.

यही सोचती हुई वो शौर्या सिंग के कमरे में पहुँची और चीज़ें उठाकर अपनी जगह पे रखने लगी. गंदे कपड़े समेटकर एक तरफ रखे. एक नज़र बाथरूम की तरफ पड़ी तो शरम से आँखें झुक गयी. यहीं थोड़ी देर पहले वो अपने ससुर के सामने आधी नंगी हो गयी थी. अभी वो इन ख्यालों में ही थी के कार स्टार्ट होने की आवाज़ आई. वो लगभग भागती हुई बाहर आई तो देखा के तेज कार लेके फिर निकल गया था.

“फिर निकल गये अययाशी करने.” जाती हुई कार को देखके रूपाली ने सोचा.

ससुर का कमरा सॉफ करके वो किचन में पहुँची. खाना बनाया और खाने ही वाली थी के याद आया के उसने भूषण को कहा था के उसका व्रत है. वो बाहर आके उसका इंतेज़ार करने लगी और थोड़ी ही देर में भूषण लौट आया.

“लो बहू. आपकी पूजा का पूरा समान ले आया.” कहते हुए भूषण ने समान उसके सामने रख दिया.

रूपाली ने व्रत खोलने का ड्रामा किया और खाना ख़ाके अपने कमरे में आ गयी. दोपहर का सूरज आसमान से जैसे आग उगल रहा था. इस साल बारिश की एक बूँद तक नही गिरी थी. वो सुबह की जागी हुई थी. बिस्तर पे लेटी ही थी के आँख लग गयी ओर अपने अतीत के मीठे सपने मैं खो गयी

पुरुषोत्तम के एक हाथ में रूपाली की सारी का पल्लू था जो वो अपनी और खींच रहा था. दूसरी तरफ से रूपाली अपनी सारी को उतारने से बचने के लिए पूरा ज़ोर लगा रही थी और पुरुषोत्तम से दूर भाग रही थी.

“छ्चोड़ दीजिए ना. मुझे पूजा करनी है” उसने पुरुषोत्तम से कहा.

“पहले प्रेम पूजा फिर काम दूजा” कहते हुए पुरुषोत्तम ने उसकी सारी को ज़ोर का झटका दिया. रूपाली ने अपने दोनो हाथों से कसकर सारी को थाम रखा था जिसका नतीजा ये हुए के वो एक झटके में पुरुषोत्तम की बाहों में आ गयी.

“उस भगवान का सोचती रहती हो हमेशा. पति भी तो परमेश्वर होता है. हमें खुश करने का धर्म भी तो निभाया करो” पुरषोत्तम ने उसे देखके मुस्कुराते हुए कहा.

“आपको इसके अलावा कुच्छ सूझता है क्या” रूपाली पुरुषोत्तम के हाथ को रोकने की कोशिश कर रही थी जो उसके पेट से सरक कर उसकी सारी पेटिकोट से बाहर खींचने की कोशिश कर रहा था.

“तुम्हारी जैसी बीवी जब सामने हो तो कुच्छ और सूझ सकता है भला” कहते हुए पुरुषोत्तम ने अपने एक हाथ उसके पेटिकोट में घुसाया और सारी बाहर खींच दी.

रूपाली ने सारी को दोनो हाथों से पकड़ लिया जिसकी वजह से वो पूरी तरह से पुरषोत्तम के रहमो करम पे आ गयी. पुरोशोत्तम ने आगे झुक कर अपने होंठ उसके होंठो पे रख दिया और दूसरा हाथ कमर से नीचे होता हुआ उसकी गांद पे आ गया.

रूपाली ने दोनो हाथ पुरुषोत्तम के सीने पे रख उसे पिछे धकेलने की कोशिश की. इस चक्कर में उसकी सारी उसकी हाथ से छूट गयी और खुली होने की वजह से उसके पैरों में जा गिरी. अब वो सिर्फ़ ब्लाउस और पेटिकोट में रह गयी थी. पुरुषोत्तम ने उसे ज़ोर से पकड़ा और अपने साथ चिपका लिया. उसका लंड पेटिकोट के उपेर से ठीक रूपाली की चूत से जा टकराया. दूसरा हाथ गांद पे दबाव डाल रहा था जिससे चूत और लंड आपस में दबे जा रहे थे.

“छ्चोड़ दीजिए ना” रूपाली ने कहा

“नही जान. बोलो चोद दीजिए ना” पुरूहोत्तम ने कहा और रूपाली शरम से दोहरी हो गयी.

“हे भगवान. एक तो आपकी ज़ुबान. जाने क्या क्या बोलते हैं” कहते हुए रूपाली ने पूरा ज़ोर लगाया और पुरुषोत्तम की गिरफ़्त से आज़ाद हो गयी. छूट कर वो पलटी ही थी के पुरुषोत्तम ने उसे फिर से पकड़ लिया और सामने धकेलते हुए दीवार से लगा दिया. रूपाली दीवार से जा चिपकी और उसकी दोनो चुचियाँ दीवार से दब गयी. पुरुषोत्तम पिछे से फिर रूपाली से चिपक गया और उसके गले को चूमना लगा. नीचे से उसका लंड रूपाली की गांद पे दब रहा था और उसका एक हाथ घूमकर रूपाली की एक छाति को पकड़ चुका था.

“रेप करोगे क्या” रूपाली ने पुचछा जिसके जवाब में पुरुषोत्तम ने उसकी छाति को मसलना शुरू कर दिया. उसका लंड अकड़ कर पत्थर की तरह सख़्त हो गया था ये रूपाली महसूस कर रही थी. उसके लंड का दबाव रूपाली की गांद पे बढ़ता जराहा था और एक हाथ दोनो चुचियों का आटा गूँध रहा था.

“ओह रूपाली. आज गांद मरवा लो ना” पुरुषोत्तम ने धीरे से उसके कान में कहा.

“बिल्कुल नही” रूपाली ने ज़रा नाराज़गी भरी आवाज़ में कहा “ और अपनी ज़ुबान ज़रा संभालिए”

पुरुषोत्तम का दूसरा हाथ उसका पेटिकोट उपेर की तरफ खींच रहा था. रूपाली को उसने इस तरह से दीवार के साथ दबा रखा था के वो चाहकर भी कुच्छ ना कर पा रही थी. थोड़ी ही देर में पेटी कोट कमर तक आ गयी और उसकी गांद पर सिर्फ़ एक पॅंटी रह गयी. वो भी अगले ही पल सरक कर नीचे हो गयी और पुरुषोत्तम का हाथ उसकी नंगी गांद को सहलाने लगा.

रूपाली की समझ में नही आ रहा था के वो क्या करे. वो चाहकर हिल भी नही पा रही थी. वो अभी नाहकार पूजा करने के लिए तैय्यार हो ही रही थी के ये सब शुरू हो गया. अब दोबारा नहाना पड़ेगा ये सोचकर उसे थोड़ा गुस्सा भी आ रहा था.

तभी उसे अपनी गांद पे पुरुषोत्तम का नंगा लंड महसूस हुआ. उसे पता ही ना चला के उसने कब अपनी पेंट नीचे सरका दी थी और लंड को उसकी गांद पे रगड़ने लगा था.

“थोड़ा झुक जाओ” पुरुषोत्तम ने कहा और उसकी कमर पे हल्का सा दबाव डाला. रूपाली ने झुकने से इनकार किया तो वो फिर उसके कान में बोला.

“भूलो मत के लंड के सामने तुम्हारी गांद है. अगर नही झुकी तो ये सीधा गांद में ही जाएगा. सोच लो”

रूपाली ना चाहते हुए भी आधे मॅन के साथ झुकने लगी.

“रूपाली, रूपाली” बाहर दरवाज़े पे से उसकी सास सरिता देवी की आवाज़ आ रही थी.

“बेटा पूजा का वक़्त हो गया है. दरवाज़ा खोलो”

रूपाली सीधी खड़ी हो गयी और कपड़े ठीक करने लगी. पुरुषोत्तम तो कबका पिछे हटके पेंट फिर उपेर खींच चुक्का था. चेहरे पे झल्लाहट के निशान सॉफ दिख रहे थे जिसे देखकर रूपाली की हसी छूट पड़ी.

“बहू” दरवाज़े फिर से खाटकाया गया और फिर से आवाज़ आई

“बहू” और इसके साथ ही रूपाली के नींद खुल गयी. बाहर खड़ा भूषण उसे आवाज़ दे रहा था.
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Re: सेक्सी हवेली का सच

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सेक्सी हवेली का सच--2



“क्या हुआ?” रूपाली ने बिस्तर से उठते हुए पुचछा

“बड़े मलिक आपको याद कर रहे हैं” भूषण की आवाज़ आई

“अभी आती हूँ” कहते हुए रूपाली अपने बिस्तर से उठी

उसका ध्यान अपने सपने की और चला गया. पुरुषोत्तम से ये उसकी आखरी मुलाकात थी. इसके बाद पुरुषोत्तम जो गया तो फिर ज़िंदा लौटके नही आया. रूपाली की मोटी मोटी आँखों से आँसू बह निकले.जीतने समय वो पुरुषोत्तम की बीवी रही हमेशा यही होता था जो उसने सपने में देखा था.वो हमेशा उसके करीब आने की कोशिश करता और वो यूँ ही टाल मटोल करती. कभी बिस्तर पे उसका साथ ना देती. उसके लिए चुदाई का मतलब सिर्फ़ टांगे खोलके लेट जाना था. बस इससे ज़्यादा कुच्छ नही पर पुरुषोत्तम ने उसके साथ कभी बदसुलूकी नही की. वो हमेशा की तरह उससे आखरी वक़्त तक वैसे ही प्यार करता रहा और ना ही उसने बिस्तर पर कभी ज़्यादा की ज़िद की. पूछ ता ज़रूर था पर रूपाली के मना कर देने पे हमेशा रुक जाता था. कभी ज़बरदस्ती नही करता था. वो भारी कदमों से अपनी पति की तस्वीर की तरफ गयी और उसपे हाथ फिराती तस्वीर से बातें करने लगी.

“आप फिकर ना करें. जो भी आपकी मौत का ज़िम्मेदार है वो अब ज़्यादा दिन साँसें नही लेगा” उसने भारी आवाज़ में अपने पति की तस्वीर से कहा.

“अपने पति को हमेशा प्यासा रखा और अपने ससुर पे डोरे डाल रही हूँ. वाह रे भगवान” सोचते हुए रूपाली नीचे आई.

भूषण काम ख़तम करके जा चुक्का था. अब हवेली में सिर्फ़ रूपाली और शौर्या सिंग रह गये थे. रूपाली नीचे आई तो शौर्या सिंग बड़े कमरे में बैठे उसका इंतेज़ार कर रहे थे.

“आओ बहू. बैठो” शौर्या सिंग ने पास पड़ी कुर्सी की तरफ इशारा करते हुए कहा. ”एक बात बताओ. तुमने आखरी बार नये कपड़े कब लिए थे.

ससुर ने पुचछा तो रूपाली को ध्यान आया के उसने पिच्छले 10 साल में एक नया कपड़ा नही खरीदा. आखरी बार नये कपड़े उसे पुरुषोत्तम ने ही लाके दिए थे.

“जी याद नही. कभी ज़रूरत ही नही पड़ी. हमारे पास पहले से ही इतने कपड़े हैं के हमने सारे पहने ही नही. और वैसे भी जिसे सफेद सारी पहन नी हो उसे नये कपड़े लाके क्या करना” रूपाली ने कहा.

“अब ऐसा नही होगा. आपको सफेद सारी पहेन्ने की कोई ज़रूरत नही.पुरुषोत्तम के चले जाने से आपकी ज़िंदगी ख़तम हो जाए ऐसा हम नही चाहते. हम आपके लिए कुच्छ कपड़े लाए हैं. ये ले जाइए और कल से ये पहना कीजिए.” शौर्या ने पास रखे कपड़ो की तरफ इशारा करते हुए कहा.

“पर लोग क्या कहेंगे?” रूपाली थोड़ा झिझक रही थी.

“उसकी आप चिंता ना करें. वैसे भी अब यहाँ आता कौन है. यहाँ सिर्फ़ आप और हम हैं. आप ये कपड़े ले जाएँ” ठाकुर ने ऐसी आवाज़ में कहा जैसे कोई फ़ैसला सुनाया हो. मतलब सॉफ था. रूपाली आगे कुच्छ नही कह सकती थी. उसे अपने ससुर की बात मान लेनी थी.

रूपाली ने आगे बढ़के कपड़े उठाए.

“और एक बात और” शौर्या सिंग ने कहा”घर में आपको घूँघट करने की ज़रूरत नही. आपका चेहरा हमसे छुपा नही है.”

“जी जैसा आप कहें” रूपाली कपड़े उठाके कमरे से बाहर जाने लगी “आप कपड़े बदलके बाहर आ जाएँ. हम खाना लगा देते हैं”

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रूपाली कपड़े लेके उपेर अपने कमरे में पहुँची और कपड़े एक एक करके देखने लगी. सब कपड़े रंगीन थे. ब्लाउस सारे लो नेक थे और ज़्यादातर ट्रॅन्स्परेंट थे. केयी ब्लाउस तो बॅकलेस थे. उसने कपड़ो की तरफ देखा और मुस्कुरा उठीं. शौर्या सिंग को फसाना इतना आसान होगा ये उसने सोचा नही था पर अगले ही पल उसने अपने सवाल का जवाब खुद ही मिल गया. 10 साल से वो इंसान सिर्फ़ शराब के नशे में डूबा रहा. किसी औरत के पास नही गया और आज जब एक जवान औरत खुद इतना नज़दीक आ गयी तो बहू बेटी का लिहाज़ कहाँ रह जाता है. फिर तो सामने सिर्फ़ एक जवान जिस्म नज़र आता है. और वो खुद कहाँ उससे अलग थी. क्या वो खुद गरम नही हो गयी थी अपने ससुर को नहलाते हुए. उसे भी तो 10 साल से मर्द की जिस्म की ज़रूरत थी.

रूपाली ने कपड़े समेटकर अलमारी में रखे और फिर नीचे आई. शौर्या सिंग खाने की टेबल पे उसका इंतेज़ार कर रहा था.

वो किचन में गयी और खाना लाके टेबल पे लगाने लगी. ऐसा करते हुए उसे कई बार शौर्या सिंग के नज़दीक आने पड़ा. उसने सॉफ महसूस किया के उसके ससुर की नज़र कभी सारी से नज़र आ रहा उसके नंगे पेट पे थी तो कभी ब्लाउस में बंद उसकी बड़ी बढ़ी छातियों की निहार रही थी. उसने खामोशी से खाना लगाया और खुद भी सामने बैठ कर खाने लगी.

“खाना अच्छा बना लेती हैं आप” शौर्या सिंग ने कहा

“जी शुक्रिया” रूपाली ने अपने ससुर के कहे अनुसार घूँघट हटा दिया. उसकी नज़र शौर्या सिंग की नज़र से टकराई तो उसमें वासना की ल़हेर सॉफ नज़र आई.

“हम जो कपड़े लाए थे वो नही पहने आपने?”

“जी सुबह पहेन लूँगी. फिलहाल खाना लगाना था तो ऐसे ही आ गयी”

रूपाली दोबारा उठकर शौर्या सिंग को खाना परोसने लगी. वो ठाकुर के दाई तरफ खड़ी प्लेट में खाना डालने के लिए झुकी तो सारी का पल्लू सरक कर सामने रखी दाल में जा गिरा.

“ओह….माफ़ कीजिएगा” रूपाली फ़ौरन सीधी खड़ी होकर सारी झटकने लगी.

शौर्या सिंग की नज़र मानो उसकी छाती से चिपक कर रह गयी. वो सारी का पल्लू हटाकर उसे सॉफ कर रही थी. ब्लाउस में बंद उसकी छातियों को देख कर शौर्या सिंग सिर्फ़ ये सोचते रह गये के ये छातियाँ नंगी कैसी दिखती होंगी, कितनी बड़ी होंगी, कितनी गोरी होंगी अंदर से.

“मैं कुच्छ और ला देती हूँ” रूपाली ने सारी का पल्लू ठीक किया. उसे पता था के शौर्या सिंग इतनी देर से क्या घूर रहा था.

“नही ठीक है. हम खा चुके” कहते हुए शौर्या सिंग उठकर अपने कमरे की तरफ बढ़ गये.

रूपाली बर्तन उठा कर किचन की तरफ बढ़ चली. एक वक़्त था जब नौकरों की लाइन होती थी घर में और आज उसे खुद बर्तन सॉफ करने पड़ रहे थे. ये सोचते हुए वो किचन की सफाई करने लगी. एक बात जो सोचकर वो खुश हो रही थी वो ये थी के हमेशा नशे में डूबा रहने वाला उसका ससुर आज शराब के करीब तक नही गया था. पूरा दिन अपने पुर होश में रहा.

आहट सुनकर वो पाली तो देखा के शौर्या सिंग किचन के दरवाज़े पे खड़ा था.

“बहू ज़रा भूषण को बाहर उसके कमरे से बुला लाओ. हमारे पैरों में दर्द हो रहा है. थोड़ा मालिश कर देगा आकर.” ठाकुर ने कहा

“पर वो तो अब तक सो चुके होंगे” रूपाली पलटकर बोली

“तो क्या हुआ. जगा दो” शौर्या सिंग ने ठाकुराना अंदाज़ में कहा.

“इस उमर में क्यूँ उनकी नींद खराब करें. हम ही कर देते हैं” रूपाली ज़रा शरमाते हुए बोली

“आप? आप कर सकेंगी?” शौर्या सिंग ज़रा चौंकते हुए बोला

“हां क्यूँ नही. आप कमरे में चलिए. हम तेल ज़रा गरम करके ले आते हैं” रूपाली ने कहा

शौर्या सिंग पलटकर अपने कमरे में चले गये. रूपाली ने एक कटोरी में थोड़ा तेल लिया और उसे हल्का सा गरम करके ससुर के पिछे पिछे कमरे में दाखिल हो गयी.

शौर्या सिंग सिर्फ़ अपनी धोती पहने खड़े थे. कुर्ता वो उतार चुके थे.

“हमने सोचा के जब आप कर ही रही तो ज़रा कमर पे भी तेल लगा देना” ठाकुर ने कहा

“जी ज़रूर” कहते हुए रूपाली ने अपने सारी का पल्लू अपनी कमर में घुसा लिया.

शौर्या सिंग कमरे के बीच में खड़ा हुआ था. रूपाली ने बिस्तर की तरफ देखा और जैसे इशारे में ठाकुर को लेट जाने के लिए कहा. बदले में शौर्या सिंग ने कहा के खड़े हुए ही ठीक है.

रूपाली ठाकुर के सामने जाकर अपने घुटनो पे बैठ गयी.

ठाकुर ने अपनी धोती खींचकर अपने घुटनो के उपेर कर ली.रूपाली ने अपने हाथों में थोड़ा तेल लिया और अपने ससुर की पिंदलियों पे लगाके मसल्ने लगी. उसके च्छुने भर से ही ठाकुर के मुँह से एक लंबी आह छूट गयी. जाने कितने अरसे बाद एक औरत आज दूसरी बार उनके इतना करीब आई थी. उसके हाथ जिस्म पे लगे ही थे के ठाकुर के लंड में हलचल होनी शुरू हो गयी थी. समझ नही आ रहा था के अपने आपको कोसें के अपने मरे हुए बेटे की बीवी का सोचकर लंड खड़ा हो रहा है या फिर सिर्फ़ सामने बैठे हुए एक जवान खूबसूरत जिस्म पे ध्यान दें. रूपाली अब उनके घुटनो के उपेर तक तेल लगाके हाथों से रगड़ रही थी. ठाकुर ने नीचे की तरफ देखा तो लंड ने जैसे आंदोलन कर दिया हो. रूपाली सामने बैठी हुई थी. उसने सारी का पल्लू साइड में पेटिकोट के अंदर घुसा रखा था जिससे वो एक तरफ को सरक गया था. उसका क्लीवेज पूरी तरह से नज़र आ रहा था और उपेर से देखने के कारण ठाकुर की नज़र उसकी छातियों के बीच गहराई तक उतर गयी और वो ये अंदाज़ा लगाने लगे के इन चुचियों का साइज़ क्या होगा. लंड अब पुर जोश पे था.

रूपाली सामने बैठी अपने ससुर की टाँगो की सख़्त हाथों से मालिश कर रही थी. उसे पूरी तरह खबर थी के खड़े उसे उसके ससुर की नज़र उसके ब्लाउस के अंदर तक जा रही थी और वो उसकी छातियों का नज़ारा कर रहा था. उसने जान भूझ कर अपनी सारी को इस तरह से लपेटा था के उसका क्लीवेज खुल जाए और जो वो करना चाहती थी वो हो गया. उसका ससुर खड़ा हुआ उसकी चुचियाँ निहार रहा था और गरम हो रहा था. इस बात का सबूत उसका खड़ा होता लंड था जो धोती में एक टेंट जैसा आकर बना रहा था. रूपाली की साँसें उखाड़ने लगी थी. एक तो मरद की इतना नज़दीक, उपेर से ऐसी हालत में जिसमें उसकी छातियों की नुमाइश हो रही थी, तीसरे वो एक मर्द के जिस्म को काफ़ी वक़्त बाद हाथ लगा रही थी और सबसे ज़्यादा उसके ससुर का खड़ा होता लंड जिसे रूपाली बड़ी मुश्किल से नज़र अंदाज़ कर रही थी. दिल तो कर रहा था के बस नज़र जमाएँ उसे देखती ही रहे.

बैठे बैठे उसके घुटने में दर्द हुआ तो रूपाली ने ज़रा अपनी पोज़िशन बदली और अगले पल जो हुआ उसने उसके दिल की धड़कन को दुगना कर दिया. जैसे ही वो उपेर की उठी उसके ससुर का खड़ा लंड सीधा उसके माथे पे लगा. 10 साल बाद कोई लंड उसके जिस्म से लगा था. हल्के से टच ने ही रूपाली के अंदर वासना की लहरें उठा दी और उसे अपनी टाँगों के बीच होती नमी का एहसास होने लगा. जब बात बर्दाश्त के बाहर होने लगी तो वो उठकर शौर्या सिंग के पिछे आ गयी और पिछे बैठ कर टाँगो पे तेल मलने लगी.

रूपाली का माथा उनके लंड से टकराया तो शौर्या सिंग का जिस्म काँप उठा. लगा के लंड को अभी धोती से आज़ाद करके बहू के हाथ में थमा दें पर दिल पे काबू रखा. लंड खड़ा है इस बात का अंदाज़ा तो बहू को हो गया होगा. जाने क्या सोच रही होगी ये सोचकर शौर्या सिंग थोड़ा झिझके पर अगले ही पल जब रूपाली उठकर पिछे जा बैठी तो ठाकुर का दिल डूबने लगा. बहू को लंड का अंदाज़ा हो गया था इसलिए वो पिछे की तरफ चली गयी. ज़रूर इस वक़्त मुझे दिल में गालियाँ दे रही होगी. नफ़रत कर रही होगी मुझसे. सोच रही होगी के कितना गिरा हुआ इंसान हूँ मैं जो खुद अपनी बहुर के लिए ऐसा सोच रहा हूँ.

रूपाली अब अपने ससुर की टाँगो पे तेल लगा चुकी थी. उसने फिर तेल की कटोरी उठाई खड़ी हो गयी. उसने अपनी हथेली में तेल लिया और ठाकुर की कमर पे तेल लगाने लगी.हाथ ससुर की कमर पे फिसलने लगे. पीछे से भी धोती में खड़ा हुआ ठाकुर का लंड उसे सॉफ दिख रहा था और उसके अपने घुटने जवाब दे रहे थे. टाँगो के बीच की नमी बढ़ती जा रही थी. उसने कमर पे तेल और लगाकर सख़्त हाथो से मालिश शुरू कर दी और ऐसी ही एक कोशिश में उसका हाथ कमर से फिसल गया और वो लड़खड़ा कर पिछे से शौर्या सिंग के साथ जा चिपकी. उसने दोनो हाथों से अपने ससुर के जिस्म को थाम लिया ताकि गिरे नही और शौर्या सिंग के साथ लिपट सी गयी. दोनो चूचियों ठाकुर की कमर पे जाकर दब गयी और रूपाली के मुँह से आह निकल गयी. वो एक पल के लिए वैसे ही ठाकुर को थामे खड़ी रही और फिर शर्माके अलग हो गयी.

पर इन कुच्छ पलों ने ही ठाकुर को काफ़ी कुच्छ समझा दिया. अचानक से बहू का हाथ फिसला और फिर जैसे कमाल हो गया. बहू की दोनो चुचियों उनकी कमर पे आके दब गयी और बहू उनसे लिपट गयी. वो जानते थे के ऐसा उसने गिरने से बचने के लिए किया है पर जब वो अगले कुच्छ पल अलग नही हुई तो शौर्या सिंग को अजीब लगा. कमर पे छातियाँ अभी भी दबी हुई थी और ठाकुर का खुद पे काबू करना मुश्किल हो रहा था. बहुत दिन बाद चुचियों का स्पर्श उनके जिस्म को मिला था. उनकी साँसें उखाड़ने लगी और पूरा ध्यान कमर पे दबी चुचियों पे चला गया. और फिर जो हुआ वो सुनके ठाकुर के दिमाग़ में केयी बातें सॉफ हो गयी. उन्हें थामे थामे बहू के मुँह से निकली आह की आवाज़ वो बखूबी जानते थे. ऐसी आह औरत के मुँह से तब ही निकलती है जब वो गरम होती है. तो आग दोनो तरफ बराबर थी. अगर उनका लंड खड़ा हो रहा था तो रूपाली की चूत में भी आग लग रही थी.
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Re: सेक्सी हवेली का सच

Post by rajsharma »

रूपाली अपने ससुर से अलग हुए और फिर कमर पे तेल लगाने लगी. फिर उसने अपने हाथों से ठाकुर को इशारा किया के वो अपनी दोनो बाँहे उपेर उठाए. ठाकुर ने आर्म्स उपेर उठाई और रूपाली जिस्म के दोनो तरफ तेल लगाने लगी. इस कोशिश में वो ठाकुर के काफ़ी करीब आ चुकी थी और उसकी चुचियाँ फिर ठाकुर की कमर पे दबने को तैय्यार थी. रूपाली से और रहा नही गया. उसकी अपनी वासना उसे पागल कर रही थी. उसने हाथ जिस्म ठाकुर के साइड से सरका कर उसकी छाती पे तेल लगाने लगी. ऐसा करने से उसे अपने ससुर के और करीब आना पड़ा और उसकी छातियाँ फिर ठाकुर की कमर से जा लगी.उसके जिस्म में जैसे गर्मी और ठंडक एक साथ उठ गयी. ठंडक मर्दाना जिस्म के इतना करीब होके और गर्मी उसकी टाँगो के बीच उसकी चूत में. वो ठाकुर के सीने पे तेल मलने लगी और पिछे हाथ हिलने से उसकी दोनो छातियाँ ठाकुर की कमर पे घिसने लगी.

शौर्या सिंग का अब खुद पे काबू रखना मुश्किल हो गया था. रूपाली अब उनकी कमर पे तेल लगा रही थी और पिछे से उसकी दोनो छातियाँ उनकी कमर पे दब रही थी. ये बात सॉफ थी के बहू अपनी चुचियों को उनकी कमर पे और ज़्यादा घिस रही थी, और उनके करीब होके चुचियाँ कमर पे दबा रही थी. उसके मुँह से निकलती आह सीधा उनके कानो में पड़ रही थी. ठाकुर ने अपना हाथ बहू के हाथ पे रखा और उसे सहलाने लगे. दूसरे हाथ से उन्होने अपनी धोती थोड़ी ढीली की और लंड को बाहर निकाला. रूपाली उनसे लगी खड़ी थी. हाथ छाती पे तेल लगा रहे थे, चुचियाँ कमर पे दब रही थी और उसका सिर उनके कंधे पे टेढ़ा रखा हुआ था. उन्हें रूपाली का हाथ धीरे से पकड़के नीचे किया और अपने लंड पे ले जाके टीका दिया.

रूपाली की वासना से हालत खराब थी. वो और ज़ोर से अपने ससुर के साथ चिपक गयी थी और छातियाँ ज़ोर ज़ोर से उनकी कमर पे रगड़ रही थी. वो जानती थी के अब तक शौर्या सिंग जान गये होंगे के वो भी गरम हो चुकी है पर इस बात की अब उसे कोई परवाह नही थी. वो उनकी छाती को अब मालिश के लिए नही सहला रही थी. अब इस सहलाने में सिर्फ़ और सिर्फ़ वासना थी. उसके मुँह से निकलती आह इस बात का सॉफ सबूत थी के वो चुदना चाहती थी. लंड लेना चाहती थी अपने अंदर. टाँगो खोल देना चाहती थी आज 10 साल बाद. उसने अपना सर ठाकुर के कंधे पे रख दिया और अपने ससुर के जिस्म से चिपक गयी. फिर धीरे से उसे एहसास हुआ के ठाकुर ने उसके हाथ को सहलाना शुरू कर दिया है. मतलब आग दोनो तरफ लग चुकी थी और दोनो को ही इस बात का अंदाज़ा था के आग पुर जोश पे है. ठाकुर के हाथ ने रूपाली के हाथ को नीचे सरकाना शुरू किया और इससे पहले के वो कुच्छ समझ पाती उसके हाथ में एक लंबा सख़्त डंडा सा कुच्छ आ गया.

ठाकुर ने जैसे ही अपनी लंड पे रूपाली का हाथ खींचा तो रूपाली ने हाथ फ़ौरन वापिस खींचना चाहा. पर ठाकुर की गिरफ़्त मज़बूत थी. उसने हाथ हटने ना दिया और अपने लंड पे रूपाली के हाथ से मुट्ठी सी बना दी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर हटा नही पाई. एक औरत का हाथ अपने लंड पे ठाकुर को अलग ही मज़ा दे रहा था. इस लंड का आखरी बार इस्तेमाल कब हुआ था ये ठाकुर को याद तक नही था. उसने धीरे धीरे रूपाली के हाथ को आगे पिछे करना शुरू कर दिया और लंड को उसके हाथ से सहलाने लगा. थोड़ी देर बाद उसने अपना हाथ हटा लिया पर रूपाली का हाथ अपने आप लंड पे आगे पिछे होता रहा. ठाकुर के मुँह से आह आह की आवाज़ ज़ोर से निकलने लगी. तेल लगा होने के कारण बड़ी आसानी से लंड रूपाली के हाथ में फिसल रहा था. गर्मी बढ़ती जा रही थी. इतने वक़्त से ठाकुर ने चुदाई नही की थी इसलिए अब खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. वो जानते थे के ज़्यादा वक़्त नही टिक पाएँगे वो इस गरम जिस्म के सामने.

रूपाली इस हमले के लिए तैय्यार नही थी. उसने लंड बहुत कम अपने हाथ में पकड़ा था वो भी अपने पति के बार बार ज़िद करने पर. उसने हाथ हटाना चाहा पर हटा नही पाई. ठाकुर ने अभी भी उसका हाथ अपने हाथ में पकड़ रखा था और उसकी उंगलियाँ अपने लंड पे लपेटकर मुट्ठी सी बना दी थी. रूपाली ने फिर हाथ हटाने की कोशिश की पर फिर नाकाम रही. अब उसके ससुर ने हाथ आगे पिछे करना शुरू कर दिया था और पूरा लंड रूपाली के तेल लगे हाथ में आगे पिछे हो रहा था. ठाकुर ने थोड़ी देर बाद हाथ हटा लिया पर रूपाली ने अपना हाथ हिलाना जारी रखा. आज पहली बार वो अपनी मर्ज़ी से एक लंड को पकड़ रही थी और उसका मज़ा ले रही थी. ठाकुर के लंड की लंबाई का अंदाज़ा उसे सॉफ तौर पे हो रहा था. लग रहा था जैसे किसी लंबे मोटे डंडे पे उसका हाथ फिसल रहा हो. ठाकुर के मुँह से जैसे जैसे आह निकलती रूपाली के हाथ की रफ़्तार और तेज़ होती जाती . वो पिछे से अपने ससुर से चिपकी खड़ी थी और उसका लंड हिला रही थी. छातियाँ उसकी कमर पर रगर रही थी और नीचे से अपनी चूत ठाकुर की गांद पे दबा रही थी. धीरे धीरे ठाकुर की आह तेज़ होती चली गयी और रूपाली पागलों की तरह लंड हिलाने लगी अचानक उसके ससुर की जिस्म थर्रा उठा, एक लंबी आह निकली और एक गरम सा लिक्विड रूपाली के हाथ पे आ गिरा. ठाकुर के लंड ने माल छ्चोड़ दिया था. रूपाली ने लंड हिलाना चालू रखा और लंड से पिचकारी पे पिचकारी निकलती रही. कुच्छ रूपाली के हाथ पे गिरी, कुच्छ सामने बिस्तर पर और और ज़मीन पर. जब माल निकलना बंद हुआ तो ठाकुर की साँस भारी होनी लगी, उसका जिस्म रूपाली की गिरफ़्त में ढीला पड़ने लगा तो वो समझ गयी के काम ख़तम हो चुका है. वो ठाकुर के जिस्म से शरमाते हुए अलग हुए, तेल की कटोरी उठाई और कमरे से बाहर आ गयी.

बाहर आकर रूपाली सीधा अपने कमरे में पहुँची. आज बहुत सी चीज़ें पहली बार हुई थी. उसने पहली बार अपनी मर्ज़ी से लंड पकड़ा था, पहले बार किसी मर्दाने जिस्म से अपनी मर्ज़ी से सटी थी, पहली बार किसी मर्द के साथ गरम हुई थी और उसके और ससुर के बीच पुराना रिश्ता टूट चुका था. अब जो नया रिश्ता बना था वो वासना का था, जिस्म की भूख का था. वो ठाकुर के लंड को को तो हिलाके ठंडा कर आई थी पर खुद उसके जिस्म में जैसी आग लग गयी थी. चूत गीली हो गयी थी और लग रहा था जैसे उसमें से लावा बहके निकल रहा हो. उसके हाथ पे अभी भी ठाकुर के लंड से निकला पानी लगा हुआ था. वो अपने बिस्तर पे गिर पड़ी. टांगे खुद ही मूड गयी, सारी उपेर खींच गयी, पॅंटी सरक कर घुटनो तक आ गयी, हाथ चूत तक पहुँचा और फिर जैसे उसकी टाँगो के बीच एक जुंग का आगाज़ हो गया.

दरवाज़े खटखटाने की आवाज़ से रूपाली की आँख खुली तो देखा के सुबह का सूरज आसमान में काफ़ी उपेर जा चुका था. रात कब उसकी आँख लग गयी उसे पता तक ना चला. सुबह देर तक सोती रही. भूषण फिर जगाने आया था. उसे अपने उठ जाने का बताकर रूपाली बाथरूम में पहुँची. हालत अभी भी कल रात वाली ही थी. पॅंटी अभी तक घुटनो में ही फासी हुई थी और ठाकुर का माल अभी भी हाथ पे ही लगा हुआ सूख चुका था. उसने बाथरूम में पहुँचकर अपने कपड़े उतारे और नंगी खड़ी होकर फिर शीशे में देखने लगी. आज जो उसे नज़र आया वो उसने पहले कभी नही देखा था. अबसे पहले शीशे में उसे सिर्फ़ एक परिवारिक औरत नज़र आती थी जिसकी भगवान में बहुत श्रद्धा थी. पर आज उसे एक नयी औरत नज़र आई. वो औरत जो चीज़ों को अपने हाथ में लेना जानती थी. जो अपने जिस्म का का इस्तेमाल करना जानती थी. जो हर चीज़ पे काबू पाना चाहती थी. जो अब और प्यासी ना रहकर अपने जिस्म की आग मिटाना चाहती थी. और सबसे ज़्यादा, जो ये पता लगाना चाहती थी के उसके पति के साथ क्या हुआ था. कौन था जिसने एक सीधे सादे आदमी की हत्या की थी.

रूपाली ने पास पड़ी क्रीम उठाई और नीचे बाथ टब के किनारे पे बैठ गयी. उसकी चूत पे अभी भी घने बॉल थे. अब इस जगह के इस्तेमाल का वक़्त आ गया था तो इन बालों की ज़रूरत नही थी. उसने क्रीम अपने हाथ में ली और धीरे धीरे चूत पर और चूत के आस पास लगानी शुरू की. हाथ चूत पे धीरे धीरे उपेर नीचे होता रहा और रूपाली को एहसास हुआ के उसकी चूत में उसी के हाथ लगाने से फिर गर्मी बढ़ती जा रही है. वो हाथ को ज़ोर से हिलाने लगी और टांगे फेलते चली गयी. दूसरा हाथ अपने आप चुचियों पे पहुँचकर उन्हें हिलाने लगा. उसने एक अंगुली पे ज़रा ज़्यादा क्रीम लगाई और उसे धीरे धीरे चूत की गहराई तक पहुँचा दिया. दूसरी अंगुली भी जल्दी ही पहली के साथ अंदर तक उतरती चली गयी. अभी उसने मज़ा लेना शुरू ही किया था के नीचे से एक शोर की आवाज़ आई. लगा जैसे दो आदमियों में बहस हो रही है. एक आवाज़ तो उसके ससुर की थी पर दूसरी आवाज़ अंजानी लगी. उसने जल्दी से रेज़र उठाया और अपनी चूत से बॉल सॉफ करना शुरू किए.

नहा कर रूपाली नीचे पहुँची तो बहस अभी भी चालू थी. उसके ससुर एक अंजान आदमी से किसी बात पे लड़ रहे थे. दोनो आदमियों ने रूपाली को नीचे आते देखा तो खामोश हो गये.

"सोच लीजिए. मैं अब और इंतेज़ार नही कर सकता" वो अंजान शक्श ये कहकर वापिस दरवाज़े से निकल गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

"इसकी हिम्मत दो देखो. कल तक हमारे जूते चाटने वाला आदमी आज हमारे दरवाज़े पे खड़ा होकर हमारे सामने आवाज़ उँची कर रहा है" ठाकुर ने रूपाली को देखते हुए कहा

रूपाली ने इस वक़्त घूँघट निकल रखा था क्यूंकी घर में भूष्ण भी था. इस वजह से वो कुच्छ ना बोली और ठाकुर पेर पटक कर अपने कमरे में दाखिल हो गये.

"कौन था ये आदमी" रूपाली ने किचन में आते ही भूषण से पुचछा पर भूषण ने कोई जवाब ना दिया और एक ग्लास और कुच्छ नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ गया.

शाम ढाल चुकी थी. ठाकुर अब तक अपने कमरे से बाहर नही आए थे. रूपाली अच्छी तरह से जानती थी के कमरे में घुसे रहने की दो वजह थी. एक तो ये के कल रात जो हुआ उसके बाद ठाकुर उससे नज़रें मिलने से कतरा रहे हैं और दूसरा गुस्से में डूबे वो फिर शराब की बॉटल खोले बैठे होंगे. ये बात तभी सॉफ हो गये थी जब भूषण ग्लास और नमकीन लेकर ठाकुर के कमरे की तरफ गया था.

"अब वक़्त आ गया है कुच्छ बातों पे से परदा उठ जाए" सोचते हुए रूपाली ठाकुर के कमरे की तरफ बढ़ी. भूषण अपना काम निपटाके जा चुका था. हवेली में अब सिर्फ़ रूपाली और ठाकुर बाकी रह गये थे.

रूपाली अपने ससुर के कमरे में पहुँची तो देखा के वो शराब के नशे में धुत बिस्तर पे पसरे पड़े थे. उसने अंदर आकर दरवाज़ा बंद कर लिया.

वो अपने ससुर के बिस्तर के पास पहुँची और गौर से देखने लगी. ज़ाहिर था के शराब का नशा अब हद के पार जा चुका था और उन्हें कुच्छ भी खबर नही थी के आस पास क्या हो रहा है.वो दिल मसोस कर रह गयी. इस हालत में वो उसके सवालो के जवाब देना तो दूर की बात है अपना नाम तक बता दें तो बहुत बड़ी बात होगी.उसने शराब की बॉटल और ग्लास उठाकर एक तरफ रखा और ससुर को ढंग से बिस्तर पे लिटाया. कमरे में इधर उधर पड़ी चीज़ें उठाकर सलीके से जगह पर रखी और बाहर जाने के लिए मूडी पर तभी शौर्या सिंग के मुँह से एक आवाज़ सुनकर वापिस पलटी. कमरे में काफ़ी ठंडक और ठाकुर सर्दी से सिकुड़कर लेटे हुए थे. रूपाली पलटकर वापिस आई और चादर उठाकर अपने ससुर के उपर डालने लगी के तभी उसकी नाज़ुर उनकी धोती में बने हुए उभार पे पड़ी.

रूपाली का दिल एक बार फिर ज़ोर से धड़कने लगा. कल शौर्या सिंग का लंड हिलाते हुए वो उनके पिछे खड़ी थी इसलिए देख नही पाई थी. काफ़ी लंबा और मोटा था इस बात का अंदाज़ा तो उसे हो गया था पर नज़र नही पड़ी थी. उस वक़्त बैठा हुआ लंड भी किसी लंबे मोटे साँप की तरह लग रहा था. रूपाली के घुटने काँप उठे और उसे समझ नही आया के वो क्या करे. एक तरफ तो उसका दिल चूड़ने के लिए कर रहा था पर ठाकुर जिस हालत में सोए पड़े थे उसमें ऐसा कुच्छ भी हो पाना मुमकिन नही था. ठाकुर से चुदने की बात सोचकर ही रूपाली की टाँगो के बीच फिर नदी बहने लगी. वो सोचने लगी के अगर ठाकुर उसे चोद्ते तो कैसा होता पर अगर माणा कर देते तो क्या? आज सुबह जब वो उसके सामने आए थे तो उससे नज़र नही मिला पा रहे थे. ज़ाहिर था के वो कल रात मालिश करते हुए जो हुआ वो सोचकर झिझक रहे थे. कैसे भी हो आख़िर वो थे तो उसके ससुर ही और वो उनके मरे हुए बेटे की बीवी. उनकी बेटी के समान. रूपाली वहीं बिस्तर पे बैठ गयी और सोचने लगी के अगर ज़रूरत पड़ी तो ठाकुर को खुश करने के लिए उसे क्या करना चाहिए. वो बिस्तर पे बिल्कुल अनाड़ी थी. पति के साथ वो कभी उसका साथ नही देती थी. बस वो जो कहता था वो सुनती रहती थी, करती भी नही थी.

अचानक उसके दिमाग़ में अपने पति का ख्याल आ गया. वो बिस्तर पे काफ़ी कामुक था. रोज़ नयी नयी फरमाइश करता रहता था. ज़ाहिर था जो चीज़ें उसे पसंद थी वही बाकी मर्दों को भी पसंद होगी.उसने वो सब बातें एक एक करके याद करनी शुरू की. उसका पति चाहता था के वो लंड हाथ से हिलाए, उसे मुँह में लेके चूसे,चुद्ते वक़्त अलग अलग पोज़िशन में आए और भी ना जाने क्या क्या. रूपाली ने मॅन में सोच लिया के वो वही सब अपने ससुर के साथ करेगी जिसके लिए उसने अपने पति को हमेशा मना किया और उसमें से एक चीज़ थी लंड चूसना जो उसका पति उसे हमेशा बोलता था पर वो करती नही थी.

ठाकुर इस वक़्त गहरी नींद में थे. रूपाली ने एक नज़र उनके चेहरे पे डाली और फिर धोती में बंद उनके लंड पर. अगर उसने बाद में ये लंड चूसना ही है तो अभी थोड़ी प्रॅक्टीस क्यूँ ना कर ली जाए. ससुर जी अभी सो रहे हैं तो कुच्छ अगर ग़लत भी हुआ तो कुच्छ नही होगा. कम से कम उसे पता तो चल जाएगा के आख़िर करना क्या है. इन सबसे ज़्यादा जो ख्वाहिश उसके दिल में उठ रही थी वो थी लंड को देखने की.

रूपाली थोडा आयेज को झुकी और काँपते हाथो से अपने ससुर को हिलाया.

"पिताजी. सो गये क्या?" उसने इस बात की तसल्ली करनी चाही के ठाकुर सचमुच गहरी नींद में है.जब दो तीन बार हिलने पर भी ठाकुर की आँख नही खुली तो रूपाली समझ गयी के कोई ख़तरा नही. फिर भी एक आखरी तसल्ली करने के लिए उसके पास रखा एक स्टील को फ्लवरपॉट उठाया और ज़ोर से ज़मीन पे फेका.

रात की खामोश पड़ी हवेली फ्लवरपॉट गिरने की आवाज़ से गूँज उठी. खुद रूपाली के कान बजने लगे पर ठाकुर की नींद नही खुली.

अपनी तसल्ली होने पर रूपाली मुस्कुराइ और फिर ठाकुर के बिस्तर पे आके बैठ गयी. काँपते हुए हाथों के उसने फिर ठाकुर की धोती की तरफ बढ़ाया. उसका गला सूख रहा था और पूरा जिस्म सूखे पत्ते के जैसे हिल रहा था. एक तो जिस्मानी रिश्ता और वो भी अपने ही ससुर के साथ. पाप और वासना के इस मेल ने उसके रोमांच को और बढ़ा दिया था.

धीरे से रूपाली ने अपना हाथ ठाकुर के सोए हुए लंड पे रखा और सिहर उठी.लगा जैसे लोहे की कोई गरम रोड उसके हाथ में आ गयी हो. उसकी दोनो टांगे आपस में और सिकुड गयी और छ्होट की दीवारें आपस में घिसने लगी. उसने हाथ को धीरे धीरे लंड पे आगे पिछे किया और लंड की पूरी लंबाई का अंदाज़ा लिया.

"बैठा हुआ भी कितना लंबा है" रूपाली ने धीरे से सोचा

उसने धोती के उपेर से ही लंड को धीरे धीरे हिलाना और दबाना शुरू किया. आनंद की वजह से उसकी दिल की धड़कन और तेज़ हो गयी थी. आँखें मदहोश सी हो रही थी. दूसरा हाथ अपने आप उसकी चूत पे पहुँच गया और धीरे धीरे सारी के उपेर से ही उपेर नीचे होने लगा.

थोड़ी देर ऐसे ही हिलाकर रूपाली ने ठाकुर की धोती को एक तरफ सरकाना शुरू किया ताकि लंड को बाहर निकाल सके. ठाकुर आराम से लेटे हुए थे इसलिए थोड़ी परेशानी हो रही थी. रूपाली ने अपना हाथ धीरे से धोती के अंदर घुसकर लंड की तरफ बढ़ाया और उसके मुँह से आह निकल पड़ी.

ठाकुर ने धोती के नीचे कुच्छ नही पहेन रखा था. रूपाली के हाथ अंदर डालते ही उसके हाथ में ठाकुर का लंड आ गया. रूपाली के होश उड़ गये.पहली बार उसने बिना किसी के कहे अपनी मर्ज़ी से एक लंड को अपने हाथ में लिया था. मज़ा जो आ रहा था उसे शब्द बयान नही कर सकते. रूपाली ने पूरे लंड पे हाथ फिराया और उसे देखने के लिए पागल सी होने लगी. उसने अपने हाथ की गिरफ़्त लंड पे मज़बूत की और दूसरा हाथ चूत से हटाकर उससे धोती का एक सिरा पकड़ा. हाथ को एक ज़ोर का झटका दिया तो धोती खुलकर एक तरफ हो गया और रूपाली के आँखो के सामने ठाकुर का लंबा मोटा काला लंड आ गया.

रूपाली की आँखें और मुँह दोनो ही खुले रह गये. लंड कैसा होता है आज उसने ये पहली बार गौर से देखा था. कुच्छ देर तक वो लंड को ऐसे ही पकड़े देखती रही. कुच्छ ना किया.फिर धीरे से अपना हाथ पुर लंड की लंबाई पे फिराया. लंड अपने आप थोड़ा हिला और ठाकुर के जिस्म में थोड़ी हरकत हुई. रूपाली ने फ़ौरन अपना हाथ रोक लिया और ठाकुर को देखने लगी पर लंड वैसे ही पकड़े रखा. फिर उसे एहसास हुआ के उसके लंड हिलने से ठाकुर को नींद में भी मज़ा आया था और जिस्म जोश की वजह से हिला था. ये सोचकर रूपाली ने लंड फिर धीरे से सहलाया और लंड में फिर करकट हुई. तभी उसे कल रात की बात याद आई जब ठाकुर ने अपना लंड उसके हाथ में देकर मुट्ठी बना दी थी. यही सोचते हुए रूपाली ने फिर लंड को वैसे ही हाथ में पकड़ लिया और उसी तरह से आगे पिछे करने लगी.

उसने हाथ ने फिर अपना जादू दिखाया. नशे में सोए पड़े ठाकुर का लंड नींद में भी खड़ा होने लगा. देखते देखते लंड अपनी पूरी औकात पे आ गया और रूपाली हैरत से देखने लगी. अगर वो दोनो हाथों से पकड़ ले तो भी पूरा लंड नही पकड़ पाएगी. मुट्ठी मुश्किल से लंड को पूरा घेर पा रही थी. रूपाली वैसे ही लंड को हिला रही थी के तभी उसके अपने पति के वो शब्द याद आए जो वो हर रात उसे कहता था

"जान. लंड मुँह में लेके चूसो ना एक बार" ये उसके पति के हमेशा ख्वाहिश होती थी जिसे रूपाली ने कभी पूरा नही किया था. लंड मुँह में लेने का सोचकर ही उसे उल्टी सी आती थी और वो हमेशा पुरुषोत्तम को मना कर देती थी. ठाकुर के लंड को हिलाते हिलाते रूपाली के दिमाग़ में ख्याल आया के क्यूँ ना आज ये भी करके देखा जाए. उसका पति हमेशा कहता था इसका मतलब मर्द को लंड चुसवाने में मज़ा आता है. आज अगर वो कर सकी तो अपने ससुर को भी इसी तरह अपने वश में रखेगी. ना कर सकी तो कुच्छ और सोचेगी. यही सोचते हुए रूपाली ने अपने होंठ पर जीभ फिराई और मुँह को खोला.

लंड के उपेर के हिस्से को उसने अपनी सारी से सॉफ किया और मुँह को ऐसे ही खोलके लंड मुँह में लेने के लिए झुकी ही थी के उसकी साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी. सामने बड़े शीशे में कमरे का दरवाज़ा दिखाई दे रहा था और दिख रहा था दरवाज़े पे खड़ा भूषण जो ना जाने कबसे खड़ा हुआ सब देख रहा था.

रूपाली घबराकर फ़ौरन पलटी. लंड उसके हाथ से छूट गया और वो बिस्तर से उठकर खड़ी हो गयी. नज़रें दरवाज़े पे खड़े भूषण से मिली. उसके यूँ अचानक पलट जाने से बुद्धा भूषण भी घबरा गया और फ़ौरन पलटकर चला गया.मेरी सभी स्टोरी आप मेरे ब्लॉग हिन्दी सेक्सी स्टोरी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम और सेक्सी कहानी ब्लॉग स्पॉट डॉट कॉम पर पढ़ सकते है

रूपाली की समझ में नही आया के क्या करे. हवेली में क्या हो रहा था अगर ये बात बाहर निकल गयी तो रही सही इज़्ज़त भी चली जाएगी. वो कहीं मुँह दिखाने लायक नही रहेगी. अगर उसके देवरो और ननद को ये बात पता चली तो वो क्या करेंगे? तेज तो शायद उसे काटकर फेक देगा. और उसका अपना खानदान? उसके बाप भाई? वो तो कहीं के नही रहेंगे. रूपाली की पूरी दुनिया उसकी आँखों के सामने घूमने लगी. समझ नही आया के क्या करे. उसने पलटकर अपने ससुर की तरफ देखा. वो अभी भी सोए पड़े थे और लंड अब भी वैसा ही खड़ा था पर जिस लंड को देखकर उसकी चूत में आग लग रही थी अब उसे देखकर कुच्छ महसूस नही हुआ. वो धीमे कदमो से ठाकुर के कमरे से बाहर निकली और बाहर बड़े कमरे में आकर सोफे पे बैठ गयी.

भूषण ने सब देख लिया था. जाने क्या सोच रहा होगा. अगर उसने किसी को कहा तो? अगर उसने ठाकुर को ही बता दिया तो? वो रात को यहाँ क्या करने आया था? शायद उसके फ्लवरपॉट फेकने की आवाज़ सुनके आया होगा. अब क्या करूँ? रूपाली का दिमाग़ जैसे फटने लगा और उसे अपना पूरा प्लान एक पल में डूबता सा लगने लगा. भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता है और इज़्ज़त भी करता था. अब मैं उसकी नज़रों में एक रंडी से ज़्यादा कुच्छ नही बची.

तभी रूपाली के दिमाग़ में एक ख्याल आया. "भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था."

यही बात रूपाली अपने दिमाग़ में काई बार दोहराती रही. उसे कुच्छ सवालों के जवाब चाहिए थे और भूषण इस हवेली के बारे में सब कुच्छ जानता था. रूपाली ने इससे आगे और कुच्छ ना सोचा. वो उठ खड़ी हुई और तेज़ कदमो से भूषण के कमरे की तरफ बढ़ी.

भूषण हवेली के बाहर बड़े दरवाज़े के पास बने एक छ्होटे से कमरे में रहता था. वो हवेली से बाहर निकली तो देखा के भूषण हवेली के लॉन में ही तेज़ कदमो से इधर उधर घूम रहा था. देखने में बेचेन से लग रहा था. वो एक छ्होटी सी कद काठी का आदमी था. मुश्किल से साढ़े पाँच फुट और बहुत ही दुबला पतला. 70 के आसपास था इसलिए कमज़ोर जिस्म में एक मुर्दे जैसा लगता था.वो परेशान सा यहाँ वहाँ घूम रहा था के सामने आती रूपाली को देखकर अपने कमरे में जाने के लिए मुड़ा.

"भूषण" रूपाली की मज़बूत आवाज़ सुनकर वो ठिठक गया.

"माफ़ करना बहूरानी. वो हवेली में ज़ोर से कुच्छ गिरने की आवाज़ आई तो मैं तो बस देखने गया था. पर मैं तो......" वो बोल ही रहा था के रूपाली ठीक उसके सामने आ खड़ी हुई.

"ये बात अगर मेरे और तुम्हारे अलावा किसी और को पता चली को गर्दन काट कर हवेली के दरवाज़े पे टंगा दूँगी" रूपाली की घायल शेरनी सी आवाज़ सुनकर भूषण सहम गया. रूपाली के लंबे छोड़े कद के आगे वो 70 साल का कमज़ोर छ्होटा सा बुद्धा ऐसा लग रहा था जैसे किसी शेरनी के सामने हिरण का बच्चा.

"ज़ुबान खुले तो कटवा दीजिएगा बहूरानी. आप भरोसा रखिए ...... " भूषण फिर दोबारा अपनी बात पूरी ना कर सका. वजह थी उसके पाजामे पे रखा रूपाली का हाथ.

रूपाली ने आगे बढ़कर भूषण के लंड को थाम लिया. भूषण घबराकर फ़ौरन पिछे हटा पर रूपाली साथ साथ आगे बढ़ी. वो पिछे एक पेड़ के साथ जा लगा और रूपाली आगे बढ़कर उससे सॅटकर खड़ी हो गयी.

उसकी नज़र ठीक भूषण की नज़रों से जा मिली. भूषण का लंड इतना छ्होटा था के रूपाली को अपने हाथ से पाजामे में लंड ढूँढना पड़ा. एक तो छ्होटा सा आदमी और बुढहा. ये तो होना ही था सोचते हुए रूपाली ने हाथ उपेर किया और उसके पाजामे का नाडा खोल दिया.

"ये आप क्या कर रही हैं बहूरानी?" भूषण बोल ही रहा था के रूपाली ने उसके मुँह पे अंगुली रखकर खामोश होने का इशारा किया और उसके सामने अपने घुटनो पे बैठ गयी.

भूषण की कुच्छ समझ नही आ रहा था. सब कुच्छ इतनी जल्दी हो रहा था के उसका दिमाग़ झल्ला रहा था. उसने सामने बैठी रूपाली पे एक नज़र में डाली और रूपाली ने एक झटके में उसका पाजामा नीचे खींच दिया.भूषण ने नीचे झुक कर पाजामा पकड़ने की कोशिश की पर नाकाम रहा. रूपाली ने दूसरा हाथ उसकी छाती पे रखा और उसे वापिस सीधा खड़ा कर दिया.

भूषण का जिस्म काँप रहा था. रूपाली ने उसका छ्होटा सा लंड अपने हाथ में लिया और धीरे धीरे हिलाने लगी और मुँह उठाकर नज़र भूषण से मिलाई.

"मैं तुमसे कुच्छ सवाल करूँगी भूषण. और मुझे सीधे सीधे जवाब चाहिए. कुच्छ भी छुपाया तो काट कर इसी लोन में गाड़ दूँगी" रूपाली की आवाज़ में जाने क्या था के उसे सुनकर ही भूषण की धड़कन रुकने लगी. पूजा पाठ में हमेशा डूबी रहने वाली ये औरत आज उसे कोई जल्लाद लग रही थी. वो सामने बैठी उसका लंड ऐसे हिला रही थी जैसे अपने सवालों के जवाब के लिए उसे रिश्वत दे रही हो.

"जी बहूरानी" भूषण ने धीमी आवाज़ में कहाँ. रूपाली अब भी उसका लंड हिला रही थी पर कुच्छ असर नही हो रहा था. लंड वैसे ही बैठा हुआ था बल्कि और भी सिकुड रहा था.

"आज जो आदमी आया था वो कौन था?" रूपाली ने पहला सवाल पुचछा. उसे महसूस हुआ के अपने ही नौकर का छ्होटा सा लंड हिलाते हुए भी उसकी चूत फिर गीली होने लगी थी. उसका दूसरा हाथ खुद ही फिर उसकी चूत पे पहुँच गया. रूपाली ने लंड गौर से देखा और अगले ही पल आगे बढ़ी और मुँह खोलकर लंड मुँह में ले लिया.

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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