बीच पर समुद्र के किनारे चांद की रोशनी में अनिरुद्ध शर्मा और सोनिया वालसन मौजूद थे ।
“कैसा रोमांटिक माहौल है !” - अनिरुद्ध बोला ।
सोनिया ने कोई उत्तर न दिया ।
अनिरुद्ध ने सोनिया के सलेट की तरह सपाट लेकिन बला के हसीन चेहरे पर एक निगाह डाली और फिर दोबारा बोला - “मैं कह रहा था कि...”
“कितना रोमांटिक माहौल है ।” - सोनिया बोली - “मैंने सुना ।”
अनिरुद्ध तनिक हकबकाया । प्रत्यक्षतः रोमांटिक माहौल उस लड़की का प्रिय विषय नहीं था । उसने माहौल का पीछा वक्ती तौर पर छोड़कर नया पैतरा बदलने का फैसला किया ।
“तुम” - वो बोला - “उस... उस जरीवाला के साथ हो ?”
“हां ।” - वो सहज भाव से बोली - “कोई एतराज ?”
“कतई नहीं । वैसे क्या रिश्तेदारी है ?”
“कोई रिश्तेदारी नहीं । फ्रेंड हैं हम ।”
“फ्रेंड !”
“पुराने ।”
“वो मोटा, थुलथुल फ्लैशी बूढा तुम्हारा पुराना फ्रेंड है ?”
“मिस्टर ! माइंड युअर लैंग्वेज !”
“मेरा नाम मिस्टर नहीं, अनिरुद्ध है ।”
वो खामोश रही ।
“यहां पहले कभी आयी हो ?”
“नहीं । पहली बार आयी हूं ।”
“अलेमाओ से भी पहली बार मिली हो ?”
“हां । आज ही । अभी । थोड़ी ही देर पहले । तुम तो उसके पहले से वाकिफ हो । तुम्हें तो वो अपना अजीज दोस्त बता रहा था ।”
“मेरी छोड़ो । अपनी बात करो ।”
“अपनी क्या बात करूं ?”
“कहां पायी जाती हो ?”
“मर्जी हो तो सब जगह ।” - उसके चेहरे पर एक धूर्त मुस्कराहट आयी - “मर्जी न हो तो कहीं भी नहीं ।”
“भई, मेरा सवाल तुम्हारी रिहायश की बाबत था । रहने वाली कहां की हो ?”
“बैंगलोर की ।”
“बढिया ।”
“क्या बढिया ?”
“मैं वहां अक्सर आता-जाता रहता हूं । यानी कि फिर मुलाकात मुमकिन है ?”
“क्या गारन्टी है ?”
“गारन्टी तो कोई नहीं, फिर भी...”
“उम्मीद पर दुनिया कायम है ।”
“ऐन मेरे मुंह की बात छीनी तुमने ।”
वो हंसी ।
उस घड़ी वो बालू के एक टीले के साथ लगी खड़ी थी ।
अनिरुद्ध ने एकाएक आगे बढकर अपनी दोनों हथेलियां टीले की दीवार के साथ यूं सटा दीं कि वो उसकी बांहों के घेरे में आ गयी ।
“मेरी दिली ख्वाहिश है” - वो बड़े अनुरागपूर्ण स्वर में उसके कान में फुसफुसाया - “कि यहां के अलावा कहीं मेरी तुमसे दोबारा मुलाकात हो ।”
वो जोर से हंसी ।
“हंस क्यों रही हो ?”
वो फिर हंसी ।
“तुम तो यूं हंस रही हो जैसे मैंने तुम्हें कोई चुटकुला सुनाया हो ।”
“चुटकुला ही सुनाया है ।”
“क्या ? मेरा तुमसे दोबारा मिलने की ख्वाहिश करना तुम्हारी निगाह में चुटकुला है ?”
“हां ।” - वो पूरी ढिठाई से बोली ।
“क्यों भला ?”
“क्योंकि मैं एक लग्जरी आइटम हूं । हर कोई मुझे अफोर्ड नहीं कर सकता ।”
“मैं ‘हर कोई’ नहीं हूं ।” - अनिरुद्ध तमककर बोला ।
सोनिया ने लापरवाही से कन्धे झटकाये ।
“तुम जानती नहीं हो मैं कौन हूं !” - अनिरुद्ध बोला ।
“जानती तो नहीं हूं । कौन हो ?”
“मैं हिन्दुस्तान का सबसे मकबूल टीवी प्रोड्यूसर हूं...”
“तुम कुबेरदत्त हो ?”
“और सबसे पापुलर टीवी होस्ट हूं ।”
“शक्ल तो जरा नहीं मिलती तुम्हारी विपिन हांडा से ।”
“तुम मेरा मजाक उड़ा रही हो ।”
“तुम तो बुरा मान गए ।”
“और क्या करूं ? तुम तो मुझे खाक साबित करने पर तुली हुई हो ।”
“ये बातें छोड़ो, मिस्टर अनिरुद्ध शर्मा ।” - वो बदले स्वर में बोली - “मैं वो मंजिल नहीं जिस पर कि पलक झपकते पहुंचा जा सकता हो । और फिर अभी मेरी जिन्दगी में तुम्हारी कोई गुंजायश नहीं । जब गुंजायश होगी तो मैं तुम्हें खबर कर दूंगी ।”
“क्यों गुंजायश नहीं ?”
“क्योंकि अभी मैं पूरी तरह से मसरूफ हूं । यूं समझ लो कि सौ फीसदी बुक हूं ।”
“उस... जरीवाले के साथ ?”
“वो बहुत बड़ा, बहुत इम्पोर्टेन्ट आदमी है ।”
“मैं भी कोई मामूली हस्ती नहीं ।”
“मैंने तुम्हारी कार देखी थी । एम्बैसेडर कार चलाने वाला आदमी मामूली हस्ती ही होता है ।”
अनिरुद्ध ने आहत भाव से उसकी तरफ देखा, फिर उसके हाथ स्वयंमेव ही उसके आजू-बाजू से हट गए और वो उससे तनिक परे हटके खड़ा हो गया ।
कुछ क्षण खामोश रहा ।
“करता क्या है ये जरीवाला ?” - आखिरकार अनिरुद्ध पूछे बिना न रह सका ।
“डायमंड मर्चेंट है ।” - सोनिया बोली - “बड़ा । इम्पॉर्टेन्ट ।’’
“और तुम्हारा दोस्त है ?”
“हां ।”
“दोस्त या खरीददार ?” - अनिरुद्ध जलकर बोला ।
“कुछ भी समझ लो ।”
“समझ लिया । ये” - उसने अपना एक विजिटिंग कार्ड उसे सौंपा - “मेरा कार्ड रख लो । कभी ग्राहक न मिले तो मेरे पास आ जाना । पूरी फीस भर दूंगा ।”
तत्काल सोनिया की आंखों से चिंगारियां निकलने लगीं और उसके नथुने फूलने लगे । उसने अनिरुद्ध के कार्ड का पुर्जा-पुर्जा करके हवा में उड़ा दिया और कहरभरे स्वर में बोली - “मैं तुम्हें ये सोच के माफ कर रही हूं कि तुम नशे में हो और नहीं जानते हो कि क्या कह रहे हो । नशे में न होते और मेरे मेजबान के मेहमान न होते तो ऐसी बकवास करने के लिए चन्दिया गंजी कर देती ।”
“जो सच्चाई हज्म न हो” - अनिरुद्ध पूर्ण ढिठाई से बोला - “वो बकवास ही लगती है ।”
“तुम क्या जानो सच्चाई क्या है ? अक्ल पर नशे का पर्दा पड़ा हो तो आंखों को सच्चाई दिखाई देती है ?”
“लेकिन तुम...”
“शटअप यू स्टूपिड इग्नोरंट फूल ।” - वो तड़पकर बोली और पांव पटकती हुई समुद्र की ओर बढ चली ।
“सोनिया !” - अनिरुद्ध उसे पुकारता हुआ उसके पीछे लपका ।
“तमीज से बात करो । काल मी मिस वालसन ।”
“रुको तो सही । जरा सुनो तो सही ।”
“दफा हो जाओ ।”
“मैं खुन्दक खा गया था इसलिए...”
“गैट लास्ट !”
“आई विल नाट । मैं इतनी आसानी से तुम्हारा पीछा नहीं छोड़ने वाला ।”
“पीछा नहीं छोड़ोगे तो दुनिया छोड़ने का सामान कर दूंगी ।”
“कर देना । लेकिन...”
तभी आतिशबाजी चलने लगी । आकाश रौशन होने लगा, उस पर रंग-बिरंगे अनार फूटने लगे और सितारे चमचमाने लगे ।
अनिरुद्ध ने घूमकर देखा तो आतिशबाजी के साथ-साथ उसे मेघना का हाथ थामे अलेमाओ अपनी ओर बढता दिखाई दिया ।
“मैं तुम्हें ही ढूंढ रहा था ।” - वो अनिरुद्ध के करीब आकर बोला ।
अनिरुद्ध ने सहमति में सिर हिलाया ।
“पापा !” - मेघना उत्तेजित स्वर में बोली - “अंकल कहते हैं कि उनके याट से आतिशबाजी और भी बढिया दिखाई देगी ।”
“याट से आतिशबाजी की रंग-बिरंगी रोशनियां” - अलेमाओ बोला - “पानी से रिफ्लेक्ट होती भी दिखाई देंगी न, माई फ्रेंड । आओ, याट पर चलते हैं । वहां भी ड्रिंक का इन्तजाम है ।”
“बाकी लोग ?” - अनिरुद्ध ने सवाल किया ।
उसी क्षण आसमान में एक बम-सा फूटा जिसकी इतनी रोशनी हुई कि कुछ क्षण को जैसे वहां दोपहर हो गयी । उस रोशनी में अनिरुद्ध की निगाह अलेमाओ के चेहरे पर पड़ी तो उसने देखा कि वो बुरी तरह से पसीने से भीगा हुआ था ।
“तुम औरों की परवाह न करो ।” - वो बड़े उत्कण्ठापूर्ण स्वर में बोला - “वो भीतर बंगले में अपनी व्यापारिक सौदेबाजी में लगे हुए हैं । इस वक्त व्यापार के अलावा उनकी किसी बात में कोई दिलचस्पी नहीं । आतिशबाजी में तो कतई नहीं ।”
“यानी कि आतिशबाजी की वजह से इस बार किसी को भी नहीं बुलाया ?”
“नहीं ।”
“ये लोग, जो कि तुम कहते हो कि यहां व्यापारिक वार्तालाप में मशगूल हैं, भी न आते तो आतिशबाजी तुम अकेले ही देखते ? चर्चिल चलाता और तुम नजारा करते ?”
“यार, ऐन मौके पर कुछ ऐसी दुश्वारियां पैदा हो गयी थीं कि मैं चाहकर भी हमेशा की तरह किसी को यहां इनवाइट नहीं कर सका था । तुम्हें भी नहीं ।”
“इन्हीं लोगों की वजह से ?”
“यही समझ लो ।”
“ऐसी बात थी तो आतिशबाजी का प्रोग्राम कैंसिल ही कर देते ।”
“तुम अकेले आए होते तो शायद कर भी देता लेकिन अब तो तुम्हारी बिटिया के लिए ही आतिशबाजी करनी होगी ।”
“पापा” - मेघना उतावले स्वर में बोली - “जल्दी चलो न ?”
“देखा कितनी उतावली हो रही है आतिशबाजी के लिए ?”
“हां ।” - अनिरुद्ध बोला ।
“आओ चलो ।” - उसने जबरन अनिरुद्ध की बांह में बांह पिरोई और उसे याट की ओर ले चला -“आतिशबाजी का बेहतरीन नजारा बस अब शुरू होने ही वाला है ।”
अनिरुद्ध ने पर खड़ी सोनिया की ओर निगाह दौड़ाई ।
“उसे भी बुला लो ।” - वो बोला ।
“ओफ्फोह !” - अलेमाओ तल्खी से बोला - “तुम तो चलो ।”
“मैं तो चल ही रहा हूं लेकिन...”
“अच्छा, अच्छा ।” - उसने सोनिया की तरफ घूमकर आवाज लगायी - “मिस वालसन ! आइए, याट पर चलिए । वहां से आतिशबाजी का नजारा बढिया होगा ।”
वो पहले ही जोर-जोर से इनकार में सिर हिलाने लगी ।
“नाट विद दिस इंसल्टिग पर्सन ।” - वो पिस्तौल की नाल की तरह एक उंगली अनिरुद्ध की ओर तानती हुई बोली - “इस शख्स के साथ नहीं ।”
“वो नहीं आना चाहती, यार ।” - अलेमाओ बोला ।
अनिरुद्ध ने उसकी बात की ओर ध्यान न दिया, वो सोनिया से सम्बोधित हुआ - “आई एम सारी फार माई फाउल लैंग्वेज । दिल से माफी मांग रहा हूं । बिलीव मी । प्लीज ।”
उसने उत्तर न दिया । तभी आकाश में फिर तीखी रोशनी वाले अनार फूटे । उस रोशनी में अनिरुद्ध को साफ-साफ सोनिया की सूरत दिखाई दी तो ये देखकर उसने बड़ी राहत महसूस की कि अब वो मुस्करा रही थी ।
“ओह कम आन, प्लीज ।” - अनिरुद्ध ने फिर याचना की - “प्रोटी प्लीज ।”
“आलराइट ।” - वो बोली और लम्बे डग भरती उनके करीब पहुंच गयी ।
“सो आल इज फारगिवन ?” - अनिरुद्ध बोला ।
“यस ।” - वो मुस्कराती हुई बोली ।
“वुई आर फ्रेंड्स नाओ ?”
“यस ।”
“पार्टनर, शेक ।” - अनिरुद्ध उसकी तरफ हाथ बढाता हुआ बोला ।
दोनों ने हाथ मिलाये ।
“ओह, पापा !” - मेघना बोली - “अब चलो भी तो सही ।”
सव पायर की ओर बढ चले जहां कि अलेमाओ का याट खड़ा था ।
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Thriller एक ही अंजाम
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