रविवार था तो संजीव भैया भी घर थे. अर्जुन उनके साथ ही बैठा हुआ टेलीविजन पर वीडियो गेम खेल रहा था. केसेट लगा कर कॉंट्रा खेलता हुआ वो थोड़ा शोर मचा रहा था. ये वीडियो गेम भैया ही लेकर आए थे जब अर्जुन इस बार घर वापिस आया था और कभी कभी दोनो भाई बैठ कर एक साथ खेल लेते थे जब उनको ऐसा टाइम मिलता था.
"भैया इस 3र्ड स्टेज पर एक भी चान्स आउट नही होने देना मेरा. नही तो मैं बाहर हो जाउन्गा." वो पूरी तरह से उसमे खोया हुआ था और भैया भी किसी माहिर खिलाड़ी के जैसे अपना खिलाड़ी उस से आगे चला रहे थे.
इतने मे ही उपर ऋतु दीदी आई और सीधा टेलीविजन बंद.
"दीदी." अर्जुन तो चीख ही पड़ा लेकिन भैया ने हंसते हुए रिमोट टेलीविजन के नीचे पड़ी गेम पर रख दिया.
"यहा तू गोलियाँ चला रहा है नीचे दादा जी ने आवाज़ दे दे के घर सर पर उठाया हुआ है. भैया आपको भी एक बार हम को लेकर मार्केट चलना है. प्लीज़ जल्दी आ जाओ नीचे आप."
संजीव भैया हा कहते हुए अपने कमरे मे चले गये कार की चाबी लेने और अर्जुन भी उदास सा दादा जी के पास.
"लाला जी आप कोंनसि दुकान चला रहे हो की आवाज़ भी नही सुनती अब?" रामेश्वर जी की डाँट मे भी मज़ाक ही होता था. जो उन्होने अर्जुन के आते ही कहा.
अर्जुन ने कॉल साहब के पाव छुए और फिर दादा जी के सामने पड़ी खाली कुर्सी पर बैठ गया. "अभी तो दादा जी थोड़ा फ्री हुआ था कि आपकी आवाज़ आ गई."
"बेटा पूरी साहब कुछ बात पूछना चाहते थे और तेरा इंतजार कर रहे थे."
अर्जुन ने दादा जी की बात सुनकर अपना चेहरा प्रशनवचक निगाहो से कॉल साहब की तरफ किया.
"अर्रे बेटा ऐसी भी कोई बड़ी बात नही थी. वो मैं बस पूछ रहा था कि आज भी तुम मार्केट जा सकते हो अगर थोड़ा टाइम है तुम्हारे पास." कॉल साहब के दिल मे आज तक कुछ झिझक थी अर्जुन को लेकर. उन्हे हमेशा ऐसा लगता था कि ये बारूद फिर ना फट जाए. उपर से वो हमेशा शांत दिखते थे लेकिन.
"अंकल, आप भी तो मेरे दादाजी हे हो. तो फिर पूछा मत कीजिए बस बताया कीजिए क्या करना है. अच्छा अब बोलिए भी."
कॉल साहब ने एक बार रामेश्वर जी की तरफ थोड़ी शंका से देखा. "वो बेटा प्रीति का ड्रेस मार्केट मे है. और मैने सोचा तुम अगर उधर जाओ तो ले आओगे आते हुए."
"हा तो मैं लेके आ सकता हूँ क्योंकि दुकान वाला तो मुझे पहचानता है. लेकिन अभी तो 10:30 बजे है अंकल और ड्रेस 1 बजे तक तयार होगी. मैं ले आउन्गा आप परेशान मत होना. हा अगर और भी कुछ लाना है तो बता दीजिए." अर्जुन ने उनकी तरफ देखते हुए पूछा.
"हा वो प्रीति बेटी अभी यही आती होगी तो तुम पूछ लेना." उन्होने इतना ही कहा था कि एक सफेद सलवार कमीज़ पहने किसी सफेद गुलाब सी प्रीति सीधा आ कर रामेश्वर जी की बगल मे बैठ गई.
"दादा जी ये पीछे वाली शोकेस मे रखी लकड़ी की गुड़िया मेरी है ना.?"
जिस दीवान पर रामेश्वर जी बैठ थे उसके पीछे एक शीशे की 2 तरफ सरकने वाली शोकेस थी. उसमे कुछ फोटोफ्रम थे जिनमे घर के सदस्यो को पुरानी फोटोस लगी थी और कुछ चुनी हुई चीज़ें जैसे एक एइफ्फ़िल टवर का तांबे से बना नमूना, कुछ काँच के रंग-बिरंगे जानवर और 3 खिलोने रखे थे. जिनमे से एक चटख गुलाबी पैंट की हुई लकड़ी की गुड़िया थी.
"तुझे याद है ये मेरी बच्ची?" रामेश्वर जी ने प्रीति के सर पर हाथ फेरते पूछा.
वो किसी बिल्ली के जैसे अपनी चप्पल ज़मीन पर उतार कर शोकेस से गुड़िया उठा वापिस आ कर बैठ गई वही.
अर्जुन ध्यान से देख रहा था सबकुछ. कॉल साहब तो प्रीति का बचपना देख हँसने लगे थे.
"पंडित जी ये लड़की जब आँखों से दूर थी तो बता नही सकता के कैसे जी रहा था. अब भी देखो वैसे ही है."
"वैसे कहा रही ये पूरी साहब, मेरी बच्ची तो अब ज़्यादा अच्छी हो गई है." रामेश्वर जी ने स्नेह से ये बात कही.
"इसमे से बचे निकलेंगे. खोलो इसको बीच से पकड़ कर." जैसे ही अर्जुन ने ये बात कही तो तीनो ही हैरानी से उसकी ही तरफ देखने लगे.
फिर प्रीति ने उस गुड़िया को पेट की तरफ से गोल घुमाया तो वो खुल गई और उसके अंदर एक छोटी गुड़िया थी."
इसको भी खोलो तो एक और निकलेगी" और अर्जुन की बात सुनकर प्रीति ने दूसरी गुड़िया के साथ भी वही किया तो एक और निकली अंदर से..
प्रीति ने जैसे उसको उठाया तो अर्जुन बोल पड़ा, "बस कर इसमे और कुछ नही है अब. खाली होगी अंदर से. आख़िरी वाली तो मेरे बैग मे होगी." और हँसने लगा.
रामेश्वर जी और कॉल साहब को तो साँप सूंघ गया था ये बात सुनकर. वो गुड़िया कोई 10-11 साल पुरानी थी. इधर प्रीति को झटका तो लगा था लेकिन उसने जाहिर किए बिना ही कहा, "तुम्हे इसके बारे मे पता था?"
"ये मेरी ही तो थी. फिर मैने तुम्हे तुम्हारे 7त बर्तडे पर दी थी लेकिन तुमने वापिस यहा रख दी थी. दादाजी लेकर आए थे इसको कश्मीर से, शायद."
अर्जुन ने वैसे बैठे हुए ही जवाब दिया.
"ओह. मैने इसको पहले भी हाथ मे लिया था कई बार लेकिन ये नही पता था कि ये खुलती है. बस देख कर वापिस यही रख देती थी."
"बेटा, तुम्हे ये सब कैसे याद है?" ये बात कही थी कॉल साहब ने.
"अंकल ये क्या बात हुई? याद तो ये भी है के आप मुझको अपने हाथो से आइस-क्रीम खिलाते थे, मेरे गले मे टवल पहना कर. प्रीति खुद से खा लेती थी लेकिन मैं कपड़े खराब कर लेता था. दादाजी आपको मना भी करते थे लेकिन आप कहते थे मेरा शेर बच्चा है ये इसको किसी बात की मनाही नही है."
अर्जुन थोड़ा मुस्कुरा कर बोला और उठकर कॉल साहब के साथ जा बैठा.
"छोटे दादू, अतीत की यादें पतझड़ सी ज़रूर होती है लेकिन हमें फिर भी कुछ महकते फूल हमेशा याद रहते है." और पहली बार उसने अपनी बाहे उस सख़्त इंसान के दोनो तरफ लपेट ली. ये इंसान जो हमेशा किसी मजबूत वृक्ष सा तना रहता था वो भी इस लड़के से लिपट सा गया था. "मेरे बच्चे मैने कोशिश की थी." इतना बोलकर कॉल साहब की आँखें बस नम हो चली.
Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
- rajsharma
- Super member
- Posts: 15850
- Joined: 10 Oct 2014 07:07
Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
Read my all running stories
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
- rajsharma
- Super member
- Posts: 15850
- Joined: 10 Oct 2014 07:07
Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
Read my all running stories
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
-
- Posts: 7
- Joined: 12 Apr 2019 11:26
Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
किसी कहानी को पूरा भी कर लिया करो
- Attitude8boy
- Posts: 38
- Joined: 20 Apr 2020 19:40
- Location: Delhi
- Contact:
Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
Are Bhai 4 Mahine Ho Gaye Ab To Update Dedo
- rajsharma
- Super member
- Posts: 15850
- Joined: 10 Oct 2014 07:07
Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
"छोटे दादू, अतीत की यादें पतझड़ सी ज़रूर होती है लेकिन हमें फिर भी कुछ महकते फूल हमेशा याद रहते है." और पहली बार उसने अपनी बाहे उस सख़्त इंसान के दोनो तरफ लपेट ली. ये इंसान जो हमेशा किसी मजबूत वृक्ष सा तना रहता था वो भी इस लड़के से लिपट सा गया था. "मेरे बच्चे मैने कोशिश की थी." इतना बोलकर कॉल साहब की आँखें बस नम हो चली.
"मैं ना कहता था सतीश, की प्यार कही नही जाता. देख ले सब यही सोच रहे थे की ये एक नया अर्जुन है लेकिन सब ग़लत हे थे. ये आज भी तुझसे उतना हे प्यार करता है." रामेश्वर जी ने भी काफ़ी समय के बाद अपने इस अज़ीज दोस्त का नाम लिया था. उनको भी अर्जुन के इस व्यवहार और बातों ने अंदर से हिला ज़रूर दिया था लेकिन एक ख़ुसी थी की उनके बच्चे मे अपने अंधेरे अतीत से सिर्फ़ फूल हे चुगे थे, दर्द नही.
"अच्छा अब छोड़ मेरे दोस्त को और तयार हो कर आ." उन्होने अर्जुन से कहा जो अभी भी कॉल साहब से चिपका था और इधर प्रीति की तरफ किसी का ध्यान नही गया जो रोते हुए भी मुस्कुरा रही थी.
"देख ले मानो ये मुझे तेरे से ज़्यादा प्यार करते है, आज भी." अर्जुन ने अलग होते हे प्रीति की तरफ देख कहा और उठकर किसी बचे सा भाग गया. पीछे छोड़ गया तीन मुस्कुराते हैरान चेहरे.
"वैसे दादू आपसे तो बिल्कुल ये उम्मीद ना थी." प्रीति आँखें सॉफ कर खिलखिला उठी.
"अर्रे तेरा दादा कितना भी सख़्त क्यो ना हो इसने शहर के सभी डॉक्टर की जान निकाल दी थी जब अर्जुन पैदा होने के बाद बीमार हुआ था. मैं तो 2 दिन बाद आ पाया था पोस्टिंग की वजह से लेकिन इसने दिन रात एक कर दिया था उसको बचाने मे. ये कहता था कि अर्जुन को आर्मी मे भेजेंगे और फिर अपनी बात से मुकर भी गया था. जो दिल करेगा वो अर्जुन बनेगा."
कॉल साहब शांति से बैठे बस हल्का मुस्कुरा रहे थे. कितनो साल बाद उनका अंतर्मन हल्का हुआ था. अर्जुन के पिता शंकर जी भी तो सबसे करीब उनके ही थे. प्रीति वापिस गुड़िया वही रख उठकर अंदर चल दी और ये दोनो भूली बिसरी बातों मे लग गये.
"भैया हम 5 लोग कैसे बैठेंगी इसमे.?" अलका ने संजीव भैया, जो कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे थे उनसे कहा.
"दीदी आप लोग जाओ, मैने नही जाना. मैं कल हो आई थी मार्केट." प्रीति जो अभी अर्जुन की चारों बहनो के साथ खड़ी थी बोली.
"सोच ले. मैं तो तुझे गोद मे बिठा लूँगी." माधुरी दीदी ने कार के अंदर से आवाज़ दी.
"नही आप लोग जाइए." और वो वहाँ से घर के अंदर चल दी और ये सब कार मे बाहर.
…………………
"मैं ना कहता था सतीश, की प्यार कही नही जाता. देख ले सब यही सोच रहे थे की ये एक नया अर्जुन है लेकिन सब ग़लत हे थे. ये आज भी तुझसे उतना हे प्यार करता है." रामेश्वर जी ने भी काफ़ी समय के बाद अपने इस अज़ीज दोस्त का नाम लिया था. उनको भी अर्जुन के इस व्यवहार और बातों ने अंदर से हिला ज़रूर दिया था लेकिन एक ख़ुसी थी की उनके बच्चे मे अपने अंधेरे अतीत से सिर्फ़ फूल हे चुगे थे, दर्द नही.
"अच्छा अब छोड़ मेरे दोस्त को और तयार हो कर आ." उन्होने अर्जुन से कहा जो अभी भी कॉल साहब से चिपका था और इधर प्रीति की तरफ किसी का ध्यान नही गया जो रोते हुए भी मुस्कुरा रही थी.
"देख ले मानो ये मुझे तेरे से ज़्यादा प्यार करते है, आज भी." अर्जुन ने अलग होते हे प्रीति की तरफ देख कहा और उठकर किसी बचे सा भाग गया. पीछे छोड़ गया तीन मुस्कुराते हैरान चेहरे.
"वैसे दादू आपसे तो बिल्कुल ये उम्मीद ना थी." प्रीति आँखें सॉफ कर खिलखिला उठी.
"अर्रे तेरा दादा कितना भी सख़्त क्यो ना हो इसने शहर के सभी डॉक्टर की जान निकाल दी थी जब अर्जुन पैदा होने के बाद बीमार हुआ था. मैं तो 2 दिन बाद आ पाया था पोस्टिंग की वजह से लेकिन इसने दिन रात एक कर दिया था उसको बचाने मे. ये कहता था कि अर्जुन को आर्मी मे भेजेंगे और फिर अपनी बात से मुकर भी गया था. जो दिल करेगा वो अर्जुन बनेगा."
कॉल साहब शांति से बैठे बस हल्का मुस्कुरा रहे थे. कितनो साल बाद उनका अंतर्मन हल्का हुआ था. अर्जुन के पिता शंकर जी भी तो सबसे करीब उनके ही थे. प्रीति वापिस गुड़िया वही रख उठकर अंदर चल दी और ये दोनो भूली बिसरी बातों मे लग गये.
"भैया हम 5 लोग कैसे बैठेंगी इसमे.?" अलका ने संजीव भैया, जो कार की ड्राइविंग सीट पर बैठे थे उनसे कहा.
"दीदी आप लोग जाओ, मैने नही जाना. मैं कल हो आई थी मार्केट." प्रीति जो अभी अर्जुन की चारों बहनो के साथ खड़ी थी बोली.
"सोच ले. मैं तो तुझे गोद मे बिठा लूँगी." माधुरी दीदी ने कार के अंदर से आवाज़ दी.
"नही आप लोग जाइए." और वो वहाँ से घर के अंदर चल दी और ये सब कार मे बाहर.
…………………
Read my all running stories
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma