कमाल की तैयारी कर रखी थी नितिन ने.. अपने कपटी तेज दिमाग़ का इस्तेमाल करते हुए उसने छ्होटी से छ्होटी बात पर गौर किया था.. श्रुति को मिशन पर लगाने से पहले.. श्रुति के पास हर सवाल का जवाब था; पहले ही तैयार किया हुआ," ऐसा भी मैने अग्यात बाबा के कहने पर ही किया था.. उन्होने कहा था कि यग्य के दौरान मुझे आपके पास नही जाना है.. आपको छ्छूना नही है.. इसीलिए.. इसीलिए उस दिन मैने आपको देखा तक नही.. सिर झुकाए ही रही हर वक़्त.. और रात को सपने में कहीं आप मुझे छ्छू ना लें.. इसीलिए ऐसा कहा था..!"
"ओह्ह.. पर यहाँ भी मुझे नीरू मिल गयी.. बिल्कुल जैसा आपने सपने में बताया था.. और सपने में जैसे घर के बाहर आप मुझे खड़ी दिखाई देती थी.. बिल्कुल वैसा ही घर है उनका.. मैं तो हैरान हो गया था देख कर.. आपकी बात पर मुझे पूरा विस्वास है.. पर मेरी समझ में ये नही आ रहा की ये संयोग कैसे हुआ.. या इसके पिछे भी अग्यात बाबा का ही हाथ है...? रोहन के दिमाग़ में अब भी सवालों का अतः भंडार उथल पुथल मचाए हुए था...
रोहन के बात पूरी करने से पहले ही नीरू बोलना शुरू हो गयी थी.. नितिन को विस्वास था कि ये सवाल भी ज़रूर किया जाएगा..," हां.. उन्होने ही अपनी मन्त्र सक्ति से 'किसी नीरू' का पता लगाया था.. यग्य की सफलता के लिए मुझे पिच्छले जनम के नाम का प्रयोग करना ज़रूरी था.. और मेरी कही हुई बात यग्य के नियमों के अनुसार सच होनी भी आवस्याक थी.. इसीलिए उन्होने 'मन्त्र शक्ति' से यहाँ वाली नीरू का पता लगाया और मुझे सपने में इसी जगह का प्रयोग करने को बोला था..."
"हुम्म.. " नीरू के आख़िरी जवाब का मतलब उसको पूरी तरह समझ नही आया था.. पर क्यूंकी वह उस की किसी बात पर शक नही कर रहा था इसीलिए पचाने में कोई दिक्कत नही हुई.. बतला की नीरू पूरी तरह उसके दिमाग़ से निकल चुकी थी," अब तो मुझे सपनो में आकर नही डरा-ओगी ना!" रोहन उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा....
बेचारी श्रुति रोहन की मुस्कुराहट का भी जवाब अपनी मर्ज़ी से नही दे पाई," बाबा ने कहा है कि जब तक हम.. वो.. शादी नही कर लेते, आपको ऐसे ही सपने आते रहेंगे.. मैं यूँही आपको टीले पर बुलाती रहूंगी.. और यूँही कहती रहूंगी कि मैं बतला मैं हूँ.. मैं श्रुति नही हूँ.. नीरू हूँ.. " नीरू ने 'सेक्स' शब्द की जगह 'शादी' शब्द का इस्तेमाल किया.. इतने सभ्या इंसान के सामने 'सेक्स' वो बोल ही नही पाई...
"पर ऐसा क्यूँ?" रोहन ने उत्सुकता से पूचछा...
यहाँ श्रुति हड़बड़ा गयी.. ये पहला ऐसा सवाल था जो उसके सामने पहले नही आया था.. पर जल्द ही वह संभालते हुए बोली," हुम्म.. पता नही.. शायद यग्य का असर तभी तक रहेगा, जब तक हम मिल नही जाते... वो.. मैं थोड़ी देर आराम कर लूँ क्या? मुझे थकान सी महसूस हो रही है..." श्रुति ने पिच्छा छुड़ाने के लिए कहा..
"ओह शुवर! सॉरी.. मुझे आपसे एकद्ूम इतने सवाल नही करने चाहियें थे.. नीचे 3 बेडरूम हैं.. पहले वाले को छ्चोड़ आप कहीं भी जाकर आराम कर लें.. तब तक मैं खाने पीने का बंदोबस्त करवाता हूँ...
"थॅंक्स!" श्रुति थके हारे कदमों से उठी और गॅलरी की तरफ बढ़ने लगी.. अचानक पीछे से उसको रोहन की आवाज़ सुनाई दी..,"श्रुति!"
"हां..?" श्रुति एकद्ूम पलट गयी...
"कुच्छ नही.. बस ऐसे ही.. एक बार और तुम्हारा चेहरा देखने का दिल कर रहा था.." रोहन के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी..
श्रुति ने फीकी मुस्कान के साथ उसकी मुस्कुराहट का स्वागत किया और मुड़कर अंदर चली गयी...
रात के करीब 11 बज चुके थे... सभी को अपने अपने रूम में गये आधे घंटे से उपर हो चुका था.. बिस्तेर पर लेटी हुई श्रुति की आँखों में नींद का नामोनिशान तक नही था. वह रोहन के बारे में ही सोच रही थी.. दोपहर में बेडरूम की और जाते हुए रोहन का उसको रोकना और फिर मुस्कुराते हुए कहना कि 'एक बार सिर्फ़ तुम्हारा चेहरा देखना चाह रहा था..' ये बात उसके दिल को छ्छू गयी थी.. यक़ीनन एक बात तो सपस्ट हो ही चुकी थी.. रोहन एक सच्चा प्यार करने वाला था.. नितिन की तरह उसमें छल कपट या किसी तरह का लालच लेशमात्रा को भी नही था.. उसको महसूस हुआ कि रोहन उसके दिल में उतर चुका है.. ना उतरने की कोई वजह भी तो नही थी.. रोहन जैसा पति तो किस्मत वालियों को ही मिलता है..
करवट लेते हुए श्रुति तड़प उठी जब उसको ख़याल आया कि रोहन के प्रति उसका लगाव सिर्फ़ एक छलावा है.. वह तो नितिन के हाथों की कठपुतली बन चुकी है और शायद जिंदगी भर भी उस'से निजात नही पा सकती.. रोहन के साथ शादी तो उसकी खुसकिस्मती ही होगी.. पर आगे क्या होगा? श्रुति ने गहरी साँस ली...
अचानक उसका फोन बज उठा.. जो आज ही नितिन ने उसको खरीद कर दिया था.. उसके अलावा किसी और की कॉल हो ही नही सकती थी.. उठकर उसने अपने पर्स में से फोन निकाल और कान से लगा लिया,"हेलो!"
"सो तो नही गयी हो ना जाने मन?" नितिन की आवाज़ फोन पर उभरी...
"हां.. सो ही गयी थी.. फोन की आवाज़ पर उठी हूँ..!" श्रुति ने जान बूझ कर नींद में होने का नाटक किया...
" ये सोने के दिन नही हैं ईडियट! कुच्छ करने के दिन हैं.. फिर तो सारी उमर ही चैन से सोना है.. जल्दी मेरे रूम में आओ!" नितिन ने आदेश सा देते हुए कहा..
"पर.. इस वक़्त.. यहाँ..." श्रुति तड़प सी उठी...
"तुम किंतु परंतु बहुत करती हो.. चुप चाप जल्दी बाहर निकल कर बीच वाले बेडरूम में आ जाओ.. सब सो चुके हैं..!" कहते ही नितिन ने फोन काट दिया...
अपने गुस्से को फोन पटक कर उतारने की कोशिश करती हुई श्रुति उठी और ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपने कपड़ों और बालों को दुरुस्त करने के बाद बाहर निकल गयी...
---------------------------
"आओ मेरी जान.. ज़रा दरवाजा बंद कर लो!" नितिन अंडरवेर में ही बैठा था.. देखते ही ग्लानि में श्रुति ने मुँह फेर लिया..," मुझसे ये सब नही होगा.. प्लीज़!"
"अरे.. मैं कब कुच्छ करने को कह रहा हूँ अपने साथ.. हा हा हा.. ये बताओ, सब ठीक से लपेट लिया ना रोहन को...!" नितिन ने पूचछा...
"नही.. उन्हे मेरी किसी बात का विस्वास नही हुआ मुझे लगता है.. तुम ये कोशिश छ्चोड़ ही दो तो अच्च्छा है...!" श्रुति ने जानबूझ कर ऐसा कहा....
"पर.. मेरे सामने तो ऐसी कोई बात नही कही उसने.. इस बारे में कोई जिकर तक नही किया.. ना ही कोई और सवाल पूचछा.. तुम ये कैसे कह रही हो कि उसको विस्वास नही हुआ?" नितिन विचलित सा होता हुआ बोला...
"हो सकता है उन्हे तुम पर भी शक हो गया हो.. इसीलिए ना कहा हो तुमसे.. पर उन्होने ऐसे बहुत से सवाल किए थे जिनका में जवाब नही दे पाई.. और तुम भी नही दे सकोगे.. आख़िर में देख लेना.. ना तुम कहीं के रहोगे और ना ही मैं.. प्लीज़.. ये नाटक बंद करो अब.. अभी तो हम ये भी कह सकते हैं कि तुम मज़ाक कर रहे थे.. अपने साथ मुझे भी ग्लानि के दलदल में मत घसीतो प्लीज़.. जो होना था हो चुका.. मेरी इज़्ज़त से तुम खेल ही चुके हो.. क्यूँ मुझे जान देने पर मजबूर कर रहे हो..." श्रुति एक ही साँस में बोलती चली गयी...
"तुम्हे ग़लतफहमी है.. वो बातों को परख कर देखने के नज़रिए से नही सुनता... वो सबको अपने जैसा ही समझता है.. वैसे ऐसा कौनसा सवाल किया था उसने.. जिसका जवाब तुम नही दे पाई..." नितिन ने पूचछा...
"मुझे याद नही है.. प्लीज़ मुझे जाने दो वापस.. अपने घर.. मैं तुम्हारे हाथ जोड़ती हूँ.." श्रुति गिड़गिडती हुई घुटनो के बल बैठ गयी.. और सुबकने लगी...
"तुम ऐसे हार मान गयी तो मेरा क्या होगा..? बोलो.."नितिन ने उठकर उसके कंधे पकड़े और खड़ी कर दिया.. श्रुति पूरी तरह टूट चुकी थी," मैं अपनी जान दे दूँगी..!"
"तुम्हारे अकेले के जान देने से काम चल जाता तो मैं तुम्हे पहले ही मरने की सलाह दे देता... पर अगर तुमने ऐसा किया तो तुम्हारी मूवी सबसे पहले में तुम्हारे ही इलाक़े में बेचूँगा.. सोचो तुम्हारे बापू पर क्या गुज़रेगी.. वो ना जी पाएँगे और ना मर पाएँगे.. उनकी भी तो कुच्छ सोचो!" नितिन के चेहरे पर कुत्सित मुस्कान उभर आई...
श्रुति का अंतर्मन बिलबिला उठा," बापू के बारे में ऐसा क्यूँ कह रहे हो.. ? मैं कर तो रही हूँ सब कुच्छ.."
"शाबाश! इसी हौंसले से काम करोगी, तभी बात बनेगी.." नितिन अलमारी के पास गया और वापस मुड़ते हुए बोला," लो! ये पहन लो!" कहते हुए उसने गाढ़े नीले कलर की एक झीनी सी नाइटी उसकी और उछाल दी.. नाइटी का कपड़ा बहुत ही हूल्का और पतला था..
उसको देखते ही श्रुति बिलखती हुई बोली," पर तुमने वादा किया था कि दोबारा तुम मेरे साथ ये सब नही करोगे... क्यूँ मुझे जिंदा लाश बनाने पर तुले हुए हो.."
"जब तक तुम मेरा कहा मानती रहोगी, मैं अपना वादा नही तोड़ूँगा.. हां.. तुम्हारे सवाल और शिकायतें अगर यूँही बढ़ती रही तो एक बात बता देता हूँ.. 'वादे' मेरे लिए कोई खास मायने नही रखते.. मैं किसी भी वादे को तोड़ने से नही हिचकूंगा अगर तुमने मेरी एक भी बात नही मानी तो... जाओ बाथरूम में जाकर इसको पहन लो.. हाँ.. ब्रा नही होनी चाहिए बदन पर!" नितिन ने कहा और दरवाजा बंद करने लगा....
आँखों में आँसुओं का समंदर समेटे श्रुति बाथरूम में चली गयी....
श्रुति बाहर आई तो उसके हुश्न का जलवा देखते ही बन रहा था.. नाइटी उसके बदन चिपकी हुई हर हिस्से को उजागर सी करती हुई उसके नितंबों से कुच्छ ही नीचे तक थी.. बिना ब्रा के मस्त छतियो का सौंदर्या नाइटी में से उभर कर अलग ही दिख रहा था... शर्मिंदगी और ज़िल्लत से तार तार हो चुकी श्रुति सिर झुकाए बार बार अपनी नाइटी को नीचे खींचने की कोशिस करती पर उसकी चूचियों का उठान नाइटी को वापस उपर खींच लेता... और उसकी लगभग नंगी चिकनी जांघें फिर से देखने वाले को पिघलने के लिए मजबूर सा करने लगती...
वह सूबक रही थी...
"हाए.. इस जवानी पर कौन नही मार मिटेगा.. मैं तो फाँसी पर भी चढ़ने को तैयार हूँ.." नितिन ने अचानक उभर आए अपने अंडरवेर के 'उस' हिस्से को सहलाते हुए कहा..," एक बार और बस!"
"नही.. मुझे हाथ भी मत लगाना प्लीज़.. मैं पहले ही टूट चुकी हूँ.. मुझे मरने पर मजबूर मत करो!" श्रुति बिलखते हुए बोली...
"मैं मज़ाक कर रहा था.. अब ये रोना धोना छ्चोड़ो.. और रोहन के कमरे में जाओ!" नितिन अचानक सीरीयस हो गया....
"क्या? ऐसे?" श्रुति चौंक पड़ी.. और आस्चर्य से नितिन की आँखों में देखा...
"हाँ.. ऐसे.. आओ, बिस्तेर पर आकर बैठ जाओ.. मैं समझाता हूँ की तुम्हे क्या करना है...आज मैने तुम्हे रोहन के लिए ही तैयार किया है.. अब ये मत कहना कि उसके साथ भी नही करूँगी कुच्छ.. मैं पहले ही बहुत सब्र कर चुका हूँ.. अब ज़्यादा सहन नही होगा मुझसे.. और ध्यान रखना ये हमारे प्लान का सबसे ज़रूरी हिस्सा है.." कहते हुए नितिन उसको सारी बात समझाने लगा... श्रुति निस्तब्ध सी वहीं खड़ी खड़ी उसकी बातें सुनती रही...
अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet
- rajsharma
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
Read my all running stories
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
अधूरा प्यार--11
गतांक से आगे .............................
श्रुति काँपते हुए कदमों से बाहर निकल कर रोहन के बेडरूम की और बढ़ी.. कुच्छ दूर जाकर उसने पिछे मुड़कर देखा; नितिन दरवाजे पर खड़ा उसकी और ही देखकर मुस्कुरा रहा था.. नज़रें घुमा वा सीधा चलती हुई रोहन के बेडरूम के दरवाजे पर पहुँची और हल्क से दरवाजा खटखटाया..
"कौन?" अंदर से रोहन की आवाज़ आई..
"मैं हूँ श्रुति.. प्लीज़ दरवाजा खोलो!" श्रुति के बोलते ही नितिन ने अपना दरवाजा बंद कर लिया...
रोहन दरवाजा खोलते ही श्रुति को देखकर चौंक पड़ा.. रोने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गयी थी और वह भय में काँप सी रही थी," क्या हुआ श्रुति? क्या हुआ तुम्हे?"
बिना इजाज़त लिए ही श्रुति अंदर घुसने लगी तो रोहन ने हटकर उसको रास्ता दे दिया. पर जैसे ही रोहन ने लाइट ऑन की वह दूसरी बार चौंका,"ये..." पर वह बात खा गया..
श्रुति का पहनावा देखकर और उस पहनावे में उसको अपने पास देख कर रोहन का अचंभित होना लाजिमी था. ड्रेस में वो जैसे बिना कुच्छ पहने ही खड़ी लग रही थी.. उसके अंग अंग की स्थिति का रोहन को अंदाज़ा उपर से ही हो रहा था और कमर से ज़रा नीचे के बाद तो अंदाज़ा लगाने की भी ज़रूरत नही थी.. वहाँ से तो वो थी ही नंगी. रोहन ने कभी श्रुति को इस तरह की लड़की के रूप में नही जाना था.. श्रुति तो उसके सामने पहले ही सिर झुकाए खड़ी थी.. शर्मिंदा सा होकर रोहन भी ज़्यादा देर तक उसको नही देख पाया.. अपना चेहरा दूसरी और करके बोला," क्या हुआ श्रुति? इस समय यहाँ...?"
"ववो.. मुझे बुरे सपने आ रहे हैं.. मुझे डर लग रहा है.." श्रुति ने जवाब दिया....
"श.. सपनो से डरने की क्या ज़रूरत है.. थोड़ा पानी पी लो और सो जाओ..." टेबल पर रखे जाग से रोहन ने गिलास में पानी डाला और एक तरफ देखते हुए श्रुति को पकड़ा दिया..
"मुझे सच में बहुत डर लग रहा है रोहन.. मैं.. मैं यही सो जाउ क्या?" श्रुति ने थरथरते लबों से बात पूरी की...
"यहाँ? तुम्हे लगता है ये ठीक रहेगा?" रोहन अलमारी में कुच्छ ढूंढता हुआ बोला...
"पर मुझे डर लग रहा है.. मैं अकेली नही सो सकती...!" श्रुति ने ज़ोर सा देकर कहा.. नितिन ने उसको कहा था कि अगर वापस आ गयी तो उसके पास सोना पड़ेगा..
रोहन अलमारी से चदडार निकाल कर लाया और उसको श्रुति के कंधों पर डाल कर उसके चारों और लपेट दिया..," आओ, बैठो!"
रोहन के चादर लपेटने का अभिप्राय जान श्रुति शर्म से पानी पानी हो गयी.. सपस्ट था की रोहन को उसका 'ये' पहनावा हरगिज़ पसंद नही आया था.. टीस भरी एक साँस श्रुति के अंदर से बाहर निकली.. कहाँ रोहन है और कहाँ नितिन! रोहन की इस एक अदा ने श्रुति को हमेशा हमेशा के लिए उसकी दीवानी बना दिया.. हज़ारों दुआयं देता हुआ श्रुति का दिल उस पर न्योचछवर हो गया...
पैर नीचे लटकाए हुए ही वह बिस्तेर पर बैठ गयी.. काफ़ी देर तक कमरे में चुप्पी च्छाई रही.. श्रुति ने कमरे में चारों और नज़र दौड़ाई और उसको 'फॅन्सी लाइट' के साथ जुड़ा केमरा ढूँढने में कोई दिक्कत नही हुई.. केमरा बिस्तर पर ही फोकस किया हुआ प्रतीत हो रहा था... नितिन ने उसके बारे में पहले ही बताते हुए रोहन के साथ सेक्स ना करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी थी..
श्रुति को अब रोहन से प्यार करने में किसी तरह की कोई दिक्कत नही थी.. बुल्की अब तो यह उसका सपना सा बन गया था.. अब रोहन ही उसका पहला और आख़िरी प्यार था.. पर रोहन का व्यक्तिताव ही ऐसा था की श्रुति को समझ नही आ रहा था की शुरुआत कैसे करे..
"सो जाओ!" रोहन ने कहा और दूसरी और करवट लेकर कर लेट गया..
"एक मिनिट..!" श्रुति ने दीवार के साथ लगते हुए अपनी टाँगें सीधी बिस्तर पर फैला ली.. ये सब उसने इस तरह से किया की चदडार उसकी कमर तक रह गयी और उसकी नंगी चिकनी जांघें पूर्ण रूप से अनावृत हो गयी.. इतनी उपर कि रोहन अगर करवट उसकी और ले लेता तो वह गुलाबी पॅंटी के किनारों को भी सॉफ देख सकता था..
"हुम्म.." रोहन दूसरी और मुँह किए हुए ही बोला..
"इधर घूम जाओ ना प्लीज़.." श्रुति ने कहते हुए रोहन की तरफ वाली टाँग को घुटने से मोड़ लिया.. नाइटी अब और उपर सरक गयी और श्रुति की पॅंटी सॉफ झलकने लगी...
रोहन ने जैसे ही करवट बदली, श्रुति का ये रूप देखकर वो भड़क गया," श्रुति.. मुझे तुम्हारी ये हरकत कतयि पसंद नही है.. मैने तुम्हे अच्च्ची लड़की समझा था.. ये सब बकवास बंद करो अब!"
"मुझसे 'प्यार' कर लो ना प्लीज़.. मैं तुम्हारे लिए तड़प रही हूँ.. जाने कितने दीनो से.." अपने दिल को पत्थर सा बनाते हुए श्रुति ने ये सब कहा और रोहन से लिपट जाने के लिए उसकी और लपकी.. रोहन उसकी इस हरकत पर हतप्रभ था.. धक्का सा देकर उसने श्रुति को वापस पटक दिया..,"प्यार! तुम जैसी लड़कियाँ समझती भी हैं कि प्यार आख़िर होता क्या है.. सेक्स की सन्तुस्ति को तुम प्यार मानती हो... और दावा करती हो कि हम जनम जनम के साथी हैं.. धिक्कार है तुम्हे.. नितिन भाई ने ठीक ही कहा था.. ये तुम बाप बेटी की ही साज़िश थी.. शर्म आनी चाहिए तुम्हे.. अपने शरीर को मुझे सौंप कर तुम ये साबित करना चाहती हो कि तुम मुझसे प्यार करती हो... अभी के अभी निकल जाओ यहाँ से" रोहन का चेहरा क्रोध के मारे तप गया था और आँखें जैसे अंगारे उगल रही थी..
श्रुति के पास बोलने के लिए कुच्छ था ही नही.. जो था वो वह बोल नही सकती थी.. शर्म से गर्दन झुक जाने पर भी वह हाथ जोड़ कर आँसू बहाती हुई यही प्रार्थना करती रही.." प्लीज़ रोहन.. मुझसे प्यार कर लो.. यहाँ से मत निकालो प्लीज़! मुझसे प्यार कर लो..."
रोहन के सब्र का बाँध टूट गया.. गुस्से से वह उठा और श्रुति का हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए वह बाहर ले गया.. धक्का सा दिया और अपना दरवाजा बंद कर लिया.. एक दो बार श्रुति ने हूल्का सा दरवाजा पीटा और कराहते हुए वहीं घुटनो के बल बैठ गयी.. विलाप सा करते हुए...
रोहन का दिमाग़ चकरा रहा था.. समझ में नही आया कि क्या करे.. अचानक उठा और बाहर निकल कर ज़बरदस्ती सा श्रुति को उठाकर उसके कमरे में छ्चोड़ आया और बाहर से कुण्डी लगा दी.... श्रुति बिलखती रह गयी...
काफ़ी देर तक श्रुति यूँही आँसू बहाती दीवारों को घूरती रही.. उसके पास अब उसका कुच्छ नही बचा था.. प्यार मिला भी तो आधा अधूरा!
अचानक उसने अपने पर्स में से एक तरफ से कोरा एक कागज और एक पेन निकाला और आँसुओं से कागज गीला करते हुए उसस्पर कुच्छ लिखने लगी...
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अगली सुबह सुबह एक चीख सुनकर बिस्तेर से उठने की तैयारी कर रहा रोहन चौंक कर बाहर निकला.. नौकर श्रुति के कमरे के बाहर खड़ा था और अपने दोनो हाथों से अपना सिर पकड़ रखा था," साहब.. मेम'साब!"
रोहन भागता हुआ उस तरफ गया," क्या हुआ?" पर अंदर झाँकने के बाद उसको दोबारा पूच्छने की ज़रूरत ही ना पड़ी.. श्रुति की लाश अंदर पंखे से लटकी झूल रही थी....
अगले ही पल रोहन को अपना दिमाग़ चकराता हुआ महसूस हुआ. उसी एक पल में पिच्छली रात उसके और श्रुति के बीच में जो कुच्छ भी हुआ, सब उसकी आँखों के सामने घूम गया. शायद रोहन इसके लिए खुद को ज़िम्मेदार मान चुका था. जैसे तैसे उसने दीवार पकड़ी और अपने सिर को हाथों में दबोचे नीचे बैठता चला गया.
पास खड़ा नौकर हैरत से कभी श्रुति के शरीर की और; कभी रोहन की और देखता रहा. अचानक उसकी समझ में नही आया की क्या करे और क्या ना करे. रवि, अमन और शेखर नीचे सोए हुए थे.
नौकर ने नीचे जाकर अमन को बताने की सोची ही थी की नितिन अपने रूम से बाहर निकला. रोहन को इस हालत में बैठे देख वह तेज़ी से उसकी और आया और श्रुति के बेडरूम में झाँकते ही उसके मुँह से निकला,"ओह माइ गॉड!"
नितिन लगभग भाग कर बेड पर चढ़ा और श्रुति के शरीर को उसकी जेंघो के करीब से पकड़ कर उपर उठा लिया," इधर आओ, मेरी मदद करो जल्दी!" उसने नौकर को आवाज़ दी.
"शिट! शी ईज़ नो मोर!" नितिन ने आह भारी और एक घुटना उसकी लाश के पास टीका अपनी आँखों से आँसू पौच्छे..
तब तक रोहन भी कमरे में आ चुका था. उसने नितिन के कंधे पर हाथ रखा. जैसे ही नितिन उसकी तरफ घूमा, रोहन उस'से लिपट गया," भाई! ये मैने क्या कर दिया?"
नौकर रोहन की बात सुनते ही चौंका.. बिना देर किए वह नीचे की और खिसक लिया..
"क्या मतलब? मतलब तुमने ये सब...?.. मगर क्यूँ यार?" नितिन ने रोहन की आँखों में झाँका..," ये क्या किया तुमने?"
"हां भाई.. मैने ही.. मैने ही उसको मरने के लिए मजबूर कर दिया..!" रोहन आँसू बहाते हुए बोलता जा रहा था," रात ये मेरे कमरे में आई थी.. मैं खुद से मिलन की इसकी बेकरारी को हवस की भूख समझ बैठा.. 'ये' बेचारी तो अपने बरसों पुराने 'अधूरे प्यार' को पूरा करने आई थी.. और मैने इसको जाने क्या क्या कह दिया.. बे-इज़्ज़त करके निकाल दिया इसको, अपने कमरे से! " कहते हुए वह इस जहाँ से रुखसत हो चुकी श्रुति से लिपट गया...और फुट फुट कर रोने लगा...
"संभलो अपने आपको यार.. तुम खुद को इसके लिए दोषी क्यूँ मान'ते हो? तुमने सिर्फ़ इसको कमरे से ही निकाला था.. मरने के लिए तो नही बोला ना!" नितिन ने उसकी श्रुति के जिश्म से अलग किया..
"पर भाई! ये मुझसे कितना प्यार करती होगी.. क्या कर लिया इसने? देखो तो! आआआआअ..आआआआअ" रोहन का कारून रुदन पूरी कोठी में फैल गया...
तभी कमरे में अमन, शेखर और रवि ने प्रवेश किया.. सभी को खबर लग चुकी थी.. भन्नाये हुए सभी आकर बिस्तेर के पास खड़े हो गये...
"ये क्या हो गया यार? कैसे हुआ ये सब?" अमन ने झल्लते हुए बोला...
" ये मुझसे प्यार करती थी भाई.." रोहन ने बोलना शुरू किया ही था की नितिन उसकी आवाज़ को दबा खुद सब कुच्छ बताने लगा.. रवि गौर से बोलते हुए नितिन के चेहरे की और ही देखता जा रहा था...
"ओह माइ गॉड!" पूरी बात सुनकर अमन और शेखर के मुँह से निकला...," ये तो बहुत बुरा हुआ? अब क्या करें!" अमन श्रुति के बारे में बात कर रहा था...
"अब क्या कर सकते हैं?" अब तो इसको घर पहुँचने की तैयारी करो!" रवि के मुँह से निकला....
"नही! इसको घर पर नही भेज सकते.. ये अपने बाप से झूठ बोलकर आई थी.. कि कॉलेज के टूर पर जा रही है.. इसका कुच्छ और ही करना पड़ेगा!" नितिन ने अपनी राई दी..
"नही.. मैं लेकर जाउन्गा इसको.. इसके घर! इसकी चिता को अग्नि दूँगा.. अब भी क्या मैं इसके प्यार को नज़रअंदाज कर दूं..!" रोहन भावुक हो गया था...
"अब फिल्मी बातें छ्चोड़ दे यार.. जो होना था वह हो चुका.. नितिन सही कह रहा है.. हमें इसको ठिकाने लगाने के बारे में सोचना चाहिए.. वरना सब पर मुसीबत आ सकती है..." रवि ने रोहन को कहा...
रोहन बिलखता हुआ फिर से श्रुति से लिपट गया," नही! जो कुच्छ होगा, मैं भुगत लूँगा.. पर इसको इसके घर तक मैं लेकर ही जाउन्गा.... इसकी आत्मा को फिर से नही भटकने नही दूँगा मैं...!"
"वेरी गुड!" दरवाजे पर शख्त और पैनी आवाज़ सुनकर सभी चौंक कर पलते.. वर्दीधारी इनस्पेक्टर एक प्यादे को साथ लिए दरवाजे पर खड़ा था.. सभी के खड़े होने पर वह टहलता हुआ अंदर आया और कुच्छ देर गौर से श्रुति की लाश को देखता रहा..," तो लड़कियों की आत्मा से खेलते हैं आप लोग?" इनस्पेक्टर ने बारी बारी चारों को शुर्ख नज़रों से घूरा....
"एक मिनिट.. सर.. आप मेरी बात सुनिए..!" नितिन ने कहा तो इनस्पेक्टर ने उसको अपनी उंगली सीधी कर रुकने का इशारा किया," काफ़ी देर से तुम सब की ही सुन रहा हूँ.. सर्वेंट किधर है...?"
"एक मिनिट!.." अमन कहते हुए बाहर निकल गया और बाल्कनी में खड़े होकर आवाज़ लगाई..
नौकर अगले ही पल इनस्पेक्टर के सामने था..," जी.. सर!" उसकी आवाज़ काँप रही थी..
"डरो मत राजू.. सब खुल कर बताओ क्या हुआ है यहाँ पर...!" इनस्पेक्टर ने पूचछा...
"मुझे कुच्छ नही पता साहब.. मैं तो रात से नीचे था.. सच में!" नौकर ने बीच में गला सॉफ करके बात पूरी की...
"तो फोन क्यूँ किया था उल्लू की डूम? मैं कह रहा हूँ ना.. किसी से डरने की ज़रूरत नही है... मेरे अंदर किए हुए सज़ा पूरी करने से पहले बाहर नही आते.. और तब तक तो ये चेहरा भी भूल चुके होंगे तुम्हारा.. रही नौकरी की बात.. तो तुम्हारी चोरी की आदत के बावजूद मैं तुम्हे फिर से अपने घर रखने को तैयार हूँ.. अब सीधे सीधे सारी बात समझाओ मुझे.... वरना सबसे पहले तुम्हारी ठुकाई होगी अब!" इनस्पेक्टर ने दो टुक बात कही और नौकर की गर्दन नीचे हो गयी... उसने तो रिक्वेस्ट भी करी थी कि मेरा नाम सामने मत आने देना.. पर इनस्पेक्टर ने पोलीस और मुखबिर के रिश्ते को नही निभाया...
"आप हमारी भी बात सुन लीजिए एक बार.. इसको पूरी बात का नही पता..!" नितिन ने फिर से इनस्पेक्टर को टोका... बाकी चुपचाप खड़े नौकर और इनस्पेक्टर को देख रहे थे...
"सबकी सुनी जाएगी...! बोलो राजू!" इनस्पेक्टर ने नितिन की बात को तवज्जो नही दी...
"मुझे ज़्यादा नही पता साहब.. मैं सुबह मेम'साब को चाय देने आया था.. दरवाजा खटखटाया तो पता लगा कि वो तो खुला हुआ है.. फिर भी मैने 2-4 बार आवाज़ देकर देखा.. पर मेडम ने कोई जवाब नही दिया..." कहकर नौकर रुक गया...
"फिर..?" इनस्पेक्टर ने राजू की छाती पर डंडा रख दिया...
"फिर साहब मैने दरवाजा ढकाया तो.." राजू ने कहकर अपनी उंगली श्रुति की लाश की और उठा दी...
"मतलब दरवाजा अंदर से बंद नही था.. सही है ना?" इनस्पेक्टर ने राजू को रिलॅक्स करने के लिए उसका कंधा थपथपाया....
"जी साहब!" नौकर ने नज़रें उठाकर कहा...
"इसका मतलब ये खून भी हो सकता है.. हूंम्म!"
इनस्पेक्टर ने श्रुति की लाश के पास बैठे रोहन को देखा ही था की वह बोल पड़ा," एक मिनिट सर...... राजू! तुमने दरवाजे की कुण्डी बाहर से खोली थी या नही..."
"नही साहब.. दरवाजा तो पहले ही अंदर और बाहर दोनो तरफ से खुला था.. मेरे खटखटते ही खुल गया था.. अपने आप!" राजू ने बात इनस्पेक्टर की और देखते हुए कही....
"ये बाहर से कुण्डी लगाने का क्या मामला है? उसको ज़बरदस्ती रोक रखा था क्या?" इनस्पेक्टर ने रोहन को तिर्छि निगाहों से देखते हुए कहा....
"मैं पूरी बात बताउन्गा सर! पर मैं रात को करीब एक बजे के आसपास नीरू को उसके कमरे में छ्चोड़ बाहर से कुण्डी लगाकर गया था... फिर कुण्डी खोली किसने..?" रोहन ने आस्चर्य से वहाँ मौजूद सभी लोगों को देखा....
"हूंम्म.. अगर तुम्हारी बात सच्ची है तो ये एक बहुत बड़ा पॉइंट है... इसका मतलब कि तुम्हारे उसको क़ैद करने और नौकर के आने के बीच कोई और लाश को पहले ही देख चुका था.. या हो सकता है कि उसी ने इस्कका खून भी किया हो..तुम सब के अलावा अगर घर में कोई और भी है तो उसको भी बुला लो!" इनस्पेक्टर ने अमन की और इशारा किया...
"नही.. बस हम 7 ही थे घर में.. राजू समेत!" अमन ने जवाब दिया...
"मतलब खूनी तुम ही हो?"
"क्याआआ?" अमन उच्छल पड़ा...
"मेरे कहने का मतलब तुम में से ही कोई है.. एक मिनिट.. इनस्पेक्टर ने मोबाइल निकाला और थाने में फोन किया," इनस्पेक्टर मानव बोल रहा हूँ.. 437 सेक्टर. 3 में लड़की की लाश है.. जल्दी से इसको हॉस्पिटल लेजकर पंचनामे का प्रबंध करो...!" इनस्पेक्टर ने फोन काटा और रोहन की और इशारा करते हुए बोला," आ जाओ मेरे साथ.. बाकी सब यहीं रहेंगे... !" उसको रोहन ही श्रुति का सबसे नज़दीकी दिखाई दिया... फिर अपने मातहत को हिदायत देते हुए बोला," 2 लोगों को यहीं खड़ा करो और बाकी को पूरे मकान की तलाशी लेने को बोलो...!"
"हुम्म.. अब बताओ, कौनसी पूरी बात बता रहे थे..?" इनस्पेक्टर मानव ने रोहन के बेडरूम में जाकर उसके सामने बैठते हुए पूचछा....
रोहन ने भावुक सा होते हुए अपने सपनो से लेकर टीले पर जाने की, श्रुति के घर पहुँचने की, बतला आने तक की और बाद में नितिन के साथ श्रुति को लेकर वहीं पहुँचने की, और श्रुति द्वारा बताई गयी सारी दास्तान सुना दी... पर अब उसने बतला में भी नीरू मिलने की बात का ज़िक्र करना ज़रूरी नही समझा.. क्यूंकी श्रुति की तांत्रिक वाली बात पर उसको पूरा यकीन हो गया था.. और मान'ने लगा था की उसके सपनो का कारण श्रुति ही थी...
"तुम्हे नही लगता कि कोई तुम्हारी मन-घड़ंत कहानी पर फिल्म बनाकर अच्च्छा पैसा कमा सकता है? हर किसी को ये स्क्रिप्ट मत सुनाया करो.. समझे! अब मुझे चूतिया समझना छ्चोड़ो और काम की बात बताओ!" इनस्पेक्टर रोहन की बात बंद होते ही शुरू हो गया...
"मुझे भी यही लगता था की आप विस्वास नही करेंगे.. पर यही सच है.. कल रात उसकी हरकत से मेरे उसके बारे में विचार ही बदल गये थे.. और मैं उसको ज़बरदस्ती उसके कमरे में छ्चोड़कर बाहर से कुण्डी लगा आया..!" रोहन अपनी बात पर अड़ा रहा...
"तुम्हारा कहना है कि कल वो खुद चलकर तुम्हारे कमरे में आई थी.. तुमसे सेक्स करने के लिए बेताब होकर..!" इनस्पेक्टर ने उसकी बात का निचोड़ निकालते हुए कहा...
"जी!"
"इस'से उसको क्या मिलता.. अगर वह सेक्स की भूखी ही होती तो वो तो उसको कहीं भी मिल सकता था.. काफ़ी सुंदर थी वो!" इनस्पेक्टर ने तर्क दिया...
"जी.. पर जाने क्यूँ उस वक़्त मैं ये सोच नही पाया..!" रोहन ने कहा..
"वो तांत्रिक कौन है? कभी मिले हो?"
"जी नही.. पर नितिन मिला है.. उसने रवि को बताया था.. कल!" रोहन ने सपस्ट किया...
"हुम्म.. लेट'सी.. वैसे तुम्हे क्या लगता है.. अगर तुमने उसको नही मारा तो फिर किसने मारा होगा...!" इनस्पेक्टर ने रोहन के दिल को कुरेदने की कोशिश की...
"मैं ही उसकी मौत का कारण हूँ सर!" रोहन फिर से भावुकता में बहते हुए बोला...," मैने उसके प्यार और ज़ज्बात को समझने में भूल की..."
"पर वो कुण्डी किसने खोली.. किसीने कुच्छ बताया है?"
"जी नही.. नौकर के चिल्लाने के बाद में ही सबसे पहले वहाँ पहुँचा था.. बाद में नितिन भाई आए और सबसे बाद में नीचे सो रहे बाकी तीनो..!"
"ये.. नितिन पर कितना भरोसा है?"
"जब भाई ही कह रहा हूँ सर.. तो भरोसा ना करने वाली बात तो बेमानी हो गयी ना... वो 'सच' में ही मेरे भाई जैसा है... और यकीन मानिए.. श्रुति ने स्यूयिसाइड ही की है.. किसी के बारे में भी ऐसी बात सोची ही नही जा सकती...!"
"हुम्म.. पंचनामे के बाद सब क्लियर हो ही जाएगा.. चलो थाने चलकर आराम से बात करते हैं...बाकी लोगों को भी साथ ले लो....!"
कहानी जारी है............................
गतांक से आगे .............................
श्रुति काँपते हुए कदमों से बाहर निकल कर रोहन के बेडरूम की और बढ़ी.. कुच्छ दूर जाकर उसने पिछे मुड़कर देखा; नितिन दरवाजे पर खड़ा उसकी और ही देखकर मुस्कुरा रहा था.. नज़रें घुमा वा सीधा चलती हुई रोहन के बेडरूम के दरवाजे पर पहुँची और हल्क से दरवाजा खटखटाया..
"कौन?" अंदर से रोहन की आवाज़ आई..
"मैं हूँ श्रुति.. प्लीज़ दरवाजा खोलो!" श्रुति के बोलते ही नितिन ने अपना दरवाजा बंद कर लिया...
रोहन दरवाजा खोलते ही श्रुति को देखकर चौंक पड़ा.. रोने की वजह से उसकी आँखें लाल हो गयी थी और वह भय में काँप सी रही थी," क्या हुआ श्रुति? क्या हुआ तुम्हे?"
बिना इजाज़त लिए ही श्रुति अंदर घुसने लगी तो रोहन ने हटकर उसको रास्ता दे दिया. पर जैसे ही रोहन ने लाइट ऑन की वह दूसरी बार चौंका,"ये..." पर वह बात खा गया..
श्रुति का पहनावा देखकर और उस पहनावे में उसको अपने पास देख कर रोहन का अचंभित होना लाजिमी था. ड्रेस में वो जैसे बिना कुच्छ पहने ही खड़ी लग रही थी.. उसके अंग अंग की स्थिति का रोहन को अंदाज़ा उपर से ही हो रहा था और कमर से ज़रा नीचे के बाद तो अंदाज़ा लगाने की भी ज़रूरत नही थी.. वहाँ से तो वो थी ही नंगी. रोहन ने कभी श्रुति को इस तरह की लड़की के रूप में नही जाना था.. श्रुति तो उसके सामने पहले ही सिर झुकाए खड़ी थी.. शर्मिंदा सा होकर रोहन भी ज़्यादा देर तक उसको नही देख पाया.. अपना चेहरा दूसरी और करके बोला," क्या हुआ श्रुति? इस समय यहाँ...?"
"ववो.. मुझे बुरे सपने आ रहे हैं.. मुझे डर लग रहा है.." श्रुति ने जवाब दिया....
"श.. सपनो से डरने की क्या ज़रूरत है.. थोड़ा पानी पी लो और सो जाओ..." टेबल पर रखे जाग से रोहन ने गिलास में पानी डाला और एक तरफ देखते हुए श्रुति को पकड़ा दिया..
"मुझे सच में बहुत डर लग रहा है रोहन.. मैं.. मैं यही सो जाउ क्या?" श्रुति ने थरथरते लबों से बात पूरी की...
"यहाँ? तुम्हे लगता है ये ठीक रहेगा?" रोहन अलमारी में कुच्छ ढूंढता हुआ बोला...
"पर मुझे डर लग रहा है.. मैं अकेली नही सो सकती...!" श्रुति ने ज़ोर सा देकर कहा.. नितिन ने उसको कहा था कि अगर वापस आ गयी तो उसके पास सोना पड़ेगा..
रोहन अलमारी से चदडार निकाल कर लाया और उसको श्रुति के कंधों पर डाल कर उसके चारों और लपेट दिया..," आओ, बैठो!"
रोहन के चादर लपेटने का अभिप्राय जान श्रुति शर्म से पानी पानी हो गयी.. सपस्ट था की रोहन को उसका 'ये' पहनावा हरगिज़ पसंद नही आया था.. टीस भरी एक साँस श्रुति के अंदर से बाहर निकली.. कहाँ रोहन है और कहाँ नितिन! रोहन की इस एक अदा ने श्रुति को हमेशा हमेशा के लिए उसकी दीवानी बना दिया.. हज़ारों दुआयं देता हुआ श्रुति का दिल उस पर न्योचछवर हो गया...
पैर नीचे लटकाए हुए ही वह बिस्तेर पर बैठ गयी.. काफ़ी देर तक कमरे में चुप्पी च्छाई रही.. श्रुति ने कमरे में चारों और नज़र दौड़ाई और उसको 'फॅन्सी लाइट' के साथ जुड़ा केमरा ढूँढने में कोई दिक्कत नही हुई.. केमरा बिस्तर पर ही फोकस किया हुआ प्रतीत हो रहा था... नितिन ने उसके बारे में पहले ही बताते हुए रोहन के साथ सेक्स ना करने पर परिणाम भुगतने की चेतावनी भी दी थी..
श्रुति को अब रोहन से प्यार करने में किसी तरह की कोई दिक्कत नही थी.. बुल्की अब तो यह उसका सपना सा बन गया था.. अब रोहन ही उसका पहला और आख़िरी प्यार था.. पर रोहन का व्यक्तिताव ही ऐसा था की श्रुति को समझ नही आ रहा था की शुरुआत कैसे करे..
"सो जाओ!" रोहन ने कहा और दूसरी और करवट लेकर कर लेट गया..
"एक मिनिट..!" श्रुति ने दीवार के साथ लगते हुए अपनी टाँगें सीधी बिस्तर पर फैला ली.. ये सब उसने इस तरह से किया की चदडार उसकी कमर तक रह गयी और उसकी नंगी चिकनी जांघें पूर्ण रूप से अनावृत हो गयी.. इतनी उपर कि रोहन अगर करवट उसकी और ले लेता तो वह गुलाबी पॅंटी के किनारों को भी सॉफ देख सकता था..
"हुम्म.." रोहन दूसरी और मुँह किए हुए ही बोला..
"इधर घूम जाओ ना प्लीज़.." श्रुति ने कहते हुए रोहन की तरफ वाली टाँग को घुटने से मोड़ लिया.. नाइटी अब और उपर सरक गयी और श्रुति की पॅंटी सॉफ झलकने लगी...
रोहन ने जैसे ही करवट बदली, श्रुति का ये रूप देखकर वो भड़क गया," श्रुति.. मुझे तुम्हारी ये हरकत कतयि पसंद नही है.. मैने तुम्हे अच्च्ची लड़की समझा था.. ये सब बकवास बंद करो अब!"
"मुझसे 'प्यार' कर लो ना प्लीज़.. मैं तुम्हारे लिए तड़प रही हूँ.. जाने कितने दीनो से.." अपने दिल को पत्थर सा बनाते हुए श्रुति ने ये सब कहा और रोहन से लिपट जाने के लिए उसकी और लपकी.. रोहन उसकी इस हरकत पर हतप्रभ था.. धक्का सा देकर उसने श्रुति को वापस पटक दिया..,"प्यार! तुम जैसी लड़कियाँ समझती भी हैं कि प्यार आख़िर होता क्या है.. सेक्स की सन्तुस्ति को तुम प्यार मानती हो... और दावा करती हो कि हम जनम जनम के साथी हैं.. धिक्कार है तुम्हे.. नितिन भाई ने ठीक ही कहा था.. ये तुम बाप बेटी की ही साज़िश थी.. शर्म आनी चाहिए तुम्हे.. अपने शरीर को मुझे सौंप कर तुम ये साबित करना चाहती हो कि तुम मुझसे प्यार करती हो... अभी के अभी निकल जाओ यहाँ से" रोहन का चेहरा क्रोध के मारे तप गया था और आँखें जैसे अंगारे उगल रही थी..
श्रुति के पास बोलने के लिए कुच्छ था ही नही.. जो था वो वह बोल नही सकती थी.. शर्म से गर्दन झुक जाने पर भी वह हाथ जोड़ कर आँसू बहाती हुई यही प्रार्थना करती रही.." प्लीज़ रोहन.. मुझसे प्यार कर लो.. यहाँ से मत निकालो प्लीज़! मुझसे प्यार कर लो..."
रोहन के सब्र का बाँध टूट गया.. गुस्से से वह उठा और श्रुति का हाथ पकड़ कर लगभग खींचते हुए वह बाहर ले गया.. धक्का सा दिया और अपना दरवाजा बंद कर लिया.. एक दो बार श्रुति ने हूल्का सा दरवाजा पीटा और कराहते हुए वहीं घुटनो के बल बैठ गयी.. विलाप सा करते हुए...
रोहन का दिमाग़ चकरा रहा था.. समझ में नही आया कि क्या करे.. अचानक उठा और बाहर निकल कर ज़बरदस्ती सा श्रुति को उठाकर उसके कमरे में छ्चोड़ आया और बाहर से कुण्डी लगा दी.... श्रुति बिलखती रह गयी...
काफ़ी देर तक श्रुति यूँही आँसू बहाती दीवारों को घूरती रही.. उसके पास अब उसका कुच्छ नही बचा था.. प्यार मिला भी तो आधा अधूरा!
अचानक उसने अपने पर्स में से एक तरफ से कोरा एक कागज और एक पेन निकाला और आँसुओं से कागज गीला करते हुए उसस्पर कुच्छ लिखने लगी...
----------------------------------------------------------
अगली सुबह सुबह एक चीख सुनकर बिस्तेर से उठने की तैयारी कर रहा रोहन चौंक कर बाहर निकला.. नौकर श्रुति के कमरे के बाहर खड़ा था और अपने दोनो हाथों से अपना सिर पकड़ रखा था," साहब.. मेम'साब!"
रोहन भागता हुआ उस तरफ गया," क्या हुआ?" पर अंदर झाँकने के बाद उसको दोबारा पूच्छने की ज़रूरत ही ना पड़ी.. श्रुति की लाश अंदर पंखे से लटकी झूल रही थी....
अगले ही पल रोहन को अपना दिमाग़ चकराता हुआ महसूस हुआ. उसी एक पल में पिच्छली रात उसके और श्रुति के बीच में जो कुच्छ भी हुआ, सब उसकी आँखों के सामने घूम गया. शायद रोहन इसके लिए खुद को ज़िम्मेदार मान चुका था. जैसे तैसे उसने दीवार पकड़ी और अपने सिर को हाथों में दबोचे नीचे बैठता चला गया.
पास खड़ा नौकर हैरत से कभी श्रुति के शरीर की और; कभी रोहन की और देखता रहा. अचानक उसकी समझ में नही आया की क्या करे और क्या ना करे. रवि, अमन और शेखर नीचे सोए हुए थे.
नौकर ने नीचे जाकर अमन को बताने की सोची ही थी की नितिन अपने रूम से बाहर निकला. रोहन को इस हालत में बैठे देख वह तेज़ी से उसकी और आया और श्रुति के बेडरूम में झाँकते ही उसके मुँह से निकला,"ओह माइ गॉड!"
नितिन लगभग भाग कर बेड पर चढ़ा और श्रुति के शरीर को उसकी जेंघो के करीब से पकड़ कर उपर उठा लिया," इधर आओ, मेरी मदद करो जल्दी!" उसने नौकर को आवाज़ दी.
"शिट! शी ईज़ नो मोर!" नितिन ने आह भारी और एक घुटना उसकी लाश के पास टीका अपनी आँखों से आँसू पौच्छे..
तब तक रोहन भी कमरे में आ चुका था. उसने नितिन के कंधे पर हाथ रखा. जैसे ही नितिन उसकी तरफ घूमा, रोहन उस'से लिपट गया," भाई! ये मैने क्या कर दिया?"
नौकर रोहन की बात सुनते ही चौंका.. बिना देर किए वह नीचे की और खिसक लिया..
"क्या मतलब? मतलब तुमने ये सब...?.. मगर क्यूँ यार?" नितिन ने रोहन की आँखों में झाँका..," ये क्या किया तुमने?"
"हां भाई.. मैने ही.. मैने ही उसको मरने के लिए मजबूर कर दिया..!" रोहन आँसू बहाते हुए बोलता जा रहा था," रात ये मेरे कमरे में आई थी.. मैं खुद से मिलन की इसकी बेकरारी को हवस की भूख समझ बैठा.. 'ये' बेचारी तो अपने बरसों पुराने 'अधूरे प्यार' को पूरा करने आई थी.. और मैने इसको जाने क्या क्या कह दिया.. बे-इज़्ज़त करके निकाल दिया इसको, अपने कमरे से! " कहते हुए वह इस जहाँ से रुखसत हो चुकी श्रुति से लिपट गया...और फुट फुट कर रोने लगा...
"संभलो अपने आपको यार.. तुम खुद को इसके लिए दोषी क्यूँ मान'ते हो? तुमने सिर्फ़ इसको कमरे से ही निकाला था.. मरने के लिए तो नही बोला ना!" नितिन ने उसकी श्रुति के जिश्म से अलग किया..
"पर भाई! ये मुझसे कितना प्यार करती होगी.. क्या कर लिया इसने? देखो तो! आआआआअ..आआआआअ" रोहन का कारून रुदन पूरी कोठी में फैल गया...
तभी कमरे में अमन, शेखर और रवि ने प्रवेश किया.. सभी को खबर लग चुकी थी.. भन्नाये हुए सभी आकर बिस्तेर के पास खड़े हो गये...
"ये क्या हो गया यार? कैसे हुआ ये सब?" अमन ने झल्लते हुए बोला...
" ये मुझसे प्यार करती थी भाई.." रोहन ने बोलना शुरू किया ही था की नितिन उसकी आवाज़ को दबा खुद सब कुच्छ बताने लगा.. रवि गौर से बोलते हुए नितिन के चेहरे की और ही देखता जा रहा था...
"ओह माइ गॉड!" पूरी बात सुनकर अमन और शेखर के मुँह से निकला...," ये तो बहुत बुरा हुआ? अब क्या करें!" अमन श्रुति के बारे में बात कर रहा था...
"अब क्या कर सकते हैं?" अब तो इसको घर पहुँचने की तैयारी करो!" रवि के मुँह से निकला....
"नही! इसको घर पर नही भेज सकते.. ये अपने बाप से झूठ बोलकर आई थी.. कि कॉलेज के टूर पर जा रही है.. इसका कुच्छ और ही करना पड़ेगा!" नितिन ने अपनी राई दी..
"नही.. मैं लेकर जाउन्गा इसको.. इसके घर! इसकी चिता को अग्नि दूँगा.. अब भी क्या मैं इसके प्यार को नज़रअंदाज कर दूं..!" रोहन भावुक हो गया था...
"अब फिल्मी बातें छ्चोड़ दे यार.. जो होना था वह हो चुका.. नितिन सही कह रहा है.. हमें इसको ठिकाने लगाने के बारे में सोचना चाहिए.. वरना सब पर मुसीबत आ सकती है..." रवि ने रोहन को कहा...
रोहन बिलखता हुआ फिर से श्रुति से लिपट गया," नही! जो कुच्छ होगा, मैं भुगत लूँगा.. पर इसको इसके घर तक मैं लेकर ही जाउन्गा.... इसकी आत्मा को फिर से नही भटकने नही दूँगा मैं...!"
"वेरी गुड!" दरवाजे पर शख्त और पैनी आवाज़ सुनकर सभी चौंक कर पलते.. वर्दीधारी इनस्पेक्टर एक प्यादे को साथ लिए दरवाजे पर खड़ा था.. सभी के खड़े होने पर वह टहलता हुआ अंदर आया और कुच्छ देर गौर से श्रुति की लाश को देखता रहा..," तो लड़कियों की आत्मा से खेलते हैं आप लोग?" इनस्पेक्टर ने बारी बारी चारों को शुर्ख नज़रों से घूरा....
"एक मिनिट.. सर.. आप मेरी बात सुनिए..!" नितिन ने कहा तो इनस्पेक्टर ने उसको अपनी उंगली सीधी कर रुकने का इशारा किया," काफ़ी देर से तुम सब की ही सुन रहा हूँ.. सर्वेंट किधर है...?"
"एक मिनिट!.." अमन कहते हुए बाहर निकल गया और बाल्कनी में खड़े होकर आवाज़ लगाई..
नौकर अगले ही पल इनस्पेक्टर के सामने था..," जी.. सर!" उसकी आवाज़ काँप रही थी..
"डरो मत राजू.. सब खुल कर बताओ क्या हुआ है यहाँ पर...!" इनस्पेक्टर ने पूचछा...
"मुझे कुच्छ नही पता साहब.. मैं तो रात से नीचे था.. सच में!" नौकर ने बीच में गला सॉफ करके बात पूरी की...
"तो फोन क्यूँ किया था उल्लू की डूम? मैं कह रहा हूँ ना.. किसी से डरने की ज़रूरत नही है... मेरे अंदर किए हुए सज़ा पूरी करने से पहले बाहर नही आते.. और तब तक तो ये चेहरा भी भूल चुके होंगे तुम्हारा.. रही नौकरी की बात.. तो तुम्हारी चोरी की आदत के बावजूद मैं तुम्हे फिर से अपने घर रखने को तैयार हूँ.. अब सीधे सीधे सारी बात समझाओ मुझे.... वरना सबसे पहले तुम्हारी ठुकाई होगी अब!" इनस्पेक्टर ने दो टुक बात कही और नौकर की गर्दन नीचे हो गयी... उसने तो रिक्वेस्ट भी करी थी कि मेरा नाम सामने मत आने देना.. पर इनस्पेक्टर ने पोलीस और मुखबिर के रिश्ते को नही निभाया...
"आप हमारी भी बात सुन लीजिए एक बार.. इसको पूरी बात का नही पता..!" नितिन ने फिर से इनस्पेक्टर को टोका... बाकी चुपचाप खड़े नौकर और इनस्पेक्टर को देख रहे थे...
"सबकी सुनी जाएगी...! बोलो राजू!" इनस्पेक्टर ने नितिन की बात को तवज्जो नही दी...
"मुझे ज़्यादा नही पता साहब.. मैं सुबह मेम'साब को चाय देने आया था.. दरवाजा खटखटाया तो पता लगा कि वो तो खुला हुआ है.. फिर भी मैने 2-4 बार आवाज़ देकर देखा.. पर मेडम ने कोई जवाब नही दिया..." कहकर नौकर रुक गया...
"फिर..?" इनस्पेक्टर ने राजू की छाती पर डंडा रख दिया...
"फिर साहब मैने दरवाजा ढकाया तो.." राजू ने कहकर अपनी उंगली श्रुति की लाश की और उठा दी...
"मतलब दरवाजा अंदर से बंद नही था.. सही है ना?" इनस्पेक्टर ने राजू को रिलॅक्स करने के लिए उसका कंधा थपथपाया....
"जी साहब!" नौकर ने नज़रें उठाकर कहा...
"इसका मतलब ये खून भी हो सकता है.. हूंम्म!"
इनस्पेक्टर ने श्रुति की लाश के पास बैठे रोहन को देखा ही था की वह बोल पड़ा," एक मिनिट सर...... राजू! तुमने दरवाजे की कुण्डी बाहर से खोली थी या नही..."
"नही साहब.. दरवाजा तो पहले ही अंदर और बाहर दोनो तरफ से खुला था.. मेरे खटखटते ही खुल गया था.. अपने आप!" राजू ने बात इनस्पेक्टर की और देखते हुए कही....
"ये बाहर से कुण्डी लगाने का क्या मामला है? उसको ज़बरदस्ती रोक रखा था क्या?" इनस्पेक्टर ने रोहन को तिर्छि निगाहों से देखते हुए कहा....
"मैं पूरी बात बताउन्गा सर! पर मैं रात को करीब एक बजे के आसपास नीरू को उसके कमरे में छ्चोड़ बाहर से कुण्डी लगाकर गया था... फिर कुण्डी खोली किसने..?" रोहन ने आस्चर्य से वहाँ मौजूद सभी लोगों को देखा....
"हूंम्म.. अगर तुम्हारी बात सच्ची है तो ये एक बहुत बड़ा पॉइंट है... इसका मतलब कि तुम्हारे उसको क़ैद करने और नौकर के आने के बीच कोई और लाश को पहले ही देख चुका था.. या हो सकता है कि उसी ने इस्कका खून भी किया हो..तुम सब के अलावा अगर घर में कोई और भी है तो उसको भी बुला लो!" इनस्पेक्टर ने अमन की और इशारा किया...
"नही.. बस हम 7 ही थे घर में.. राजू समेत!" अमन ने जवाब दिया...
"मतलब खूनी तुम ही हो?"
"क्याआआ?" अमन उच्छल पड़ा...
"मेरे कहने का मतलब तुम में से ही कोई है.. एक मिनिट.. इनस्पेक्टर ने मोबाइल निकाला और थाने में फोन किया," इनस्पेक्टर मानव बोल रहा हूँ.. 437 सेक्टर. 3 में लड़की की लाश है.. जल्दी से इसको हॉस्पिटल लेजकर पंचनामे का प्रबंध करो...!" इनस्पेक्टर ने फोन काटा और रोहन की और इशारा करते हुए बोला," आ जाओ मेरे साथ.. बाकी सब यहीं रहेंगे... !" उसको रोहन ही श्रुति का सबसे नज़दीकी दिखाई दिया... फिर अपने मातहत को हिदायत देते हुए बोला," 2 लोगों को यहीं खड़ा करो और बाकी को पूरे मकान की तलाशी लेने को बोलो...!"
"हुम्म.. अब बताओ, कौनसी पूरी बात बता रहे थे..?" इनस्पेक्टर मानव ने रोहन के बेडरूम में जाकर उसके सामने बैठते हुए पूचछा....
रोहन ने भावुक सा होते हुए अपने सपनो से लेकर टीले पर जाने की, श्रुति के घर पहुँचने की, बतला आने तक की और बाद में नितिन के साथ श्रुति को लेकर वहीं पहुँचने की, और श्रुति द्वारा बताई गयी सारी दास्तान सुना दी... पर अब उसने बतला में भी नीरू मिलने की बात का ज़िक्र करना ज़रूरी नही समझा.. क्यूंकी श्रुति की तांत्रिक वाली बात पर उसको पूरा यकीन हो गया था.. और मान'ने लगा था की उसके सपनो का कारण श्रुति ही थी...
"तुम्हे नही लगता कि कोई तुम्हारी मन-घड़ंत कहानी पर फिल्म बनाकर अच्च्छा पैसा कमा सकता है? हर किसी को ये स्क्रिप्ट मत सुनाया करो.. समझे! अब मुझे चूतिया समझना छ्चोड़ो और काम की बात बताओ!" इनस्पेक्टर रोहन की बात बंद होते ही शुरू हो गया...
"मुझे भी यही लगता था की आप विस्वास नही करेंगे.. पर यही सच है.. कल रात उसकी हरकत से मेरे उसके बारे में विचार ही बदल गये थे.. और मैं उसको ज़बरदस्ती उसके कमरे में छ्चोड़कर बाहर से कुण्डी लगा आया..!" रोहन अपनी बात पर अड़ा रहा...
"तुम्हारा कहना है कि कल वो खुद चलकर तुम्हारे कमरे में आई थी.. तुमसे सेक्स करने के लिए बेताब होकर..!" इनस्पेक्टर ने उसकी बात का निचोड़ निकालते हुए कहा...
"जी!"
"इस'से उसको क्या मिलता.. अगर वह सेक्स की भूखी ही होती तो वो तो उसको कहीं भी मिल सकता था.. काफ़ी सुंदर थी वो!" इनस्पेक्टर ने तर्क दिया...
"जी.. पर जाने क्यूँ उस वक़्त मैं ये सोच नही पाया..!" रोहन ने कहा..
"वो तांत्रिक कौन है? कभी मिले हो?"
"जी नही.. पर नितिन मिला है.. उसने रवि को बताया था.. कल!" रोहन ने सपस्ट किया...
"हुम्म.. लेट'सी.. वैसे तुम्हे क्या लगता है.. अगर तुमने उसको नही मारा तो फिर किसने मारा होगा...!" इनस्पेक्टर ने रोहन के दिल को कुरेदने की कोशिश की...
"मैं ही उसकी मौत का कारण हूँ सर!" रोहन फिर से भावुकता में बहते हुए बोला...," मैने उसके प्यार और ज़ज्बात को समझने में भूल की..."
"पर वो कुण्डी किसने खोली.. किसीने कुच्छ बताया है?"
"जी नही.. नौकर के चिल्लाने के बाद में ही सबसे पहले वहाँ पहुँचा था.. बाद में नितिन भाई आए और सबसे बाद में नीचे सो रहे बाकी तीनो..!"
"ये.. नितिन पर कितना भरोसा है?"
"जब भाई ही कह रहा हूँ सर.. तो भरोसा ना करने वाली बात तो बेमानी हो गयी ना... वो 'सच' में ही मेरे भाई जैसा है... और यकीन मानिए.. श्रुति ने स्यूयिसाइड ही की है.. किसी के बारे में भी ऐसी बात सोची ही नही जा सकती...!"
"हुम्म.. पंचनामे के बाद सब क्लियर हो ही जाएगा.. चलो थाने चलकर आराम से बात करते हैं...बाकी लोगों को भी साथ ले लो....!"
कहानी जारी है............................
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
अधूरा प्यार--12 एक होरर लव स्टोरी
गतांक से आगे ..........................................
इनस्पेक्टर रोहन के साथ रूम से बाहर निकला ही था की पोलीस वालों में से कुच्छ कपड़े उठाए उनकी ही और आता दिखाई दिया... मानव वहीं खड़ा हो गया!
"सर! सिर्फ़ ये लॅडीस कपड़े मिले हैं.. एक रूम से.. बाकी कुच्छ खास नही था!" पोलीस वाले ने आते ही कपड़े इनस्पेक्टर मानव को दिखाए...
रोहन कपड़े देखते ही तपाक से बोला," ये श्रुति के ही कपड़े हैं.. कल उसने दिन में यही पहन रखे थे...
"हुम्म.. कहाँ से मिले ये?" मानव ने पूचछा...
"सर.. वो लास्ट वाले बेडरूम के बाथरूम से..!"
रोहन आस्चर्य से बोला," क्या? पर...?" पोलीस वाला नितिन के कमरे की तरफ इशारा कर रहा था...
"पर क्या?" मानव ने उत्सुकता से रोहन की और देखा...
"नही.. कुच्छ खास नही सर!" रोहन अपने मन की बात को खा गया...
"देखो.. बात खास है या आम, ये मैं सोचूँगा.. दिल में कोई बात मत रखो.. जो कुच्छ भी है मन में.. सब निकाल दो..."
"सर, रियली कोई खास बात नही है.. मैं सिर्फ़ ये सोच रहा था कि श्रुति के कपड़े नितिन के बाथरूम में कैसे आए.." रोहन ने जवाब दिया..
"यही तो वो सवाल हैं बेटा, जिनके जवाब मुझे ढूँढने हैं.. नितिन ने तुम्हारी प्रेम कहानी में इतना इंटेरेस्ट क्यूँ लिया? वह वहीं रहकर तुम्हे बुलाने की बजाय श्रुति को यहाँ लेकर क्यूँ आया..? नितिन तांत्रिक से क्यूँ मिला? कुण्डी किसने खोली? और अब ये उसके कपड़े नितिन के बाथरूम में कैसे पहुँचे.. खैर.. रात को जब श्रुति तुम्हारे पास आई तो क्या यही कपड़े पहन रखे थे उसने??" मानव ने पूचछा...
"जी नही.. वो कोई और ड्रेस थी..?" रोहन ने जवाब दिया...
"मतलब? क्या ये भी नही थी जो उसके शरीर पर अब है?" इनस्पेक्टर अपना सिर खुजाता हुआ बोला...
"जी नही.. दरअसल उस ड्रेस की वजह से ही मुझे गुस्सा आया था.. ऐसी ही ऊटपटांग डाल रखी थी..."
"आओ मेरे साथ..!" कहकर मानव ने सिपाही को ड्रेस साथ रखने को बोला और रोहन फिर से श्रुति वाले कमरे में ले गया.. श्रुति की लाश को हॉस्पिटल वाले ले जा चुके थे.. वहाँ खड़े सभी लोगों का चेहरा उतरा हुआ था... सभी के चेहरे पीले पड़ गये थे...
"ज़रा कमरे में ढुंढ़ो, वो कपड़े कौन्से हैं...?" मानव ने रोहन को इशारा किया....
रोहन को अलमारी में ज़्यादा ताकझांक नही करनी पड़ी.. निहायत ही अश्लील नाइटी ऐसे ही बीच वाले खाने में फैंकी हुई थी... रोहन उसको उठाने को झुका तो इनस्पेक्टर ने मना कर दिया," हाथ मत लगाओ तुम इसको..! और एक सिपाही से उसको सावधानी से उठा लेने को बोला...
"अब इसका बॅग खोलकर इसके सारे कपड़े निकालो...!" मानव ने सिपाही को बोला.. सिपाही ने बॅग उलट कर सारे कपड़े बिस्तेर पर उलट दिए.. 'उस' एक नाइटी के अलावा श्रुति के पास इस तरह का कोई और उत्तेजक कपड़ा नही था.. बुल्की सारे कपड़े शरीर को लगभग पूरा ढकने वाले थे... इनस्पेक्टर ने इस बात पर गौर किया और सबको साथ लेकर चलने का इशारा पोलीस वालों को किया.
आधे घंटे बाद पाँचों मानव के सामने बैठे थे...
इनस्पेक्टर ने नितिन को कुर्सी बदल कर बीच में उसके सामने आने को बोला.. नितिन ने वैसा ही किया और रोहन लाइन में सबसे आख़िरी कुर्सी पर चला गया...
"तुम इतने थके हुए क्यूँ लग रहे हो? रात भर जागे हो क्या?" मानव ने नितिन से पूचछा..
"जी नही तो.. मैं ठीक हूँ बिल्कुल.. और जो थोड़ा बहुत तनाव आप मेरे चेहरे पर देख रहे हैं.. वो 'बेचारी' श्रुति की लाश देखने के कारण है.. उसके साथ सच में ही बहुत बुरा हुआ?" नितिन ने सफाई के साथ जवाब देते हुए खुद को संभाला...
"तुम्ही श्रुति के कातिल हो!" मानव ने तपाक से कहा...
"क्कक्या बकवास कर रहे हैं आप? उसने ख़ुदकुशी की है.. सभी जानते हैं.. रोहन ने उसके साथ संबंध बनाने से इनकार कर दिया.. इस'से वह हताश हो गयी..." नितिन एक बार तो सकपका गया था..
लगभग यही एक्सप्रेशन रोहन के चेहरे पर भी आए थे," सर आप बेवजह नितिन पर शक कर रहे हैं..!"
"मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा है क्या जो मैं इस पर बेवजह शक कर रहा हूँ.. मैने तुम पर नही किया.. हालाँकि, तुम उसके साथ सबसे ज़्यादा देर तक थे.. मैं ये भी कह सकता था कि तुमने ही ज़बरदस्ती करने की कोशिश की और जब नही मानी तो उसको मारकर फाँसी पर टाँग दिया.. पर मैने नही कहा ना? हमारा रोज़ का यही काम होता है बच्चू.. हम कातिल को नज़रों से पहचान लेते हैं.."
इनस्पेक्टर बोलते बोलते उत्तेजित सा हो गया था.. टेबल पर रखा पानी का गिलास खाली करते हुए वह फिर बोलना शुरू हो गया..
"मेरे कहने का ये मतलब था कि अगर तुम उसको यहाँ लेकर नही आते तो उसके साथ ये सब नही होता.. है ना?
"ज्जई.. ये तो है.." नितिन ने नज़रें झुका ली...
"तो क्यूँ लेकर आए उसको? तुम्हारा क्या फायडा था इसमें..?" मानव ने ज़ोर देकर पूचछा...
"मेरा क्या फायडा होता भला.. मैने तो जो किया, रोहन के लिए किया..!" नितिन ने सफाई दी..
"ऐसा क्या कर दिया तुमने, रोहन के लिए..." मानव ने फिर पूचछा....
"जी.. वो रोहन यहाँ किसी लड़की के चक्कर में ही आया था.. श्रुति ने जब मुझे ये बताया कि... दरअसल रोहन को पिच्छले कयि महीनो से सपने आ रहे थे.. तो इसने मुझे साथ लेकर उस लड़की के पास जाने का फैंसला किया.. लड़की ने हमें टीले.." बोलते हुए नितिन को मानव ने बीच में ही रोक दिया..," ये सब बकवास में सुन चुका हूँ... ये बताओ श्रुति ने तुम्हे क्या बताया?"
"जी यही कि सब उसने ही किया था.. एक तांत्रिक के साथ मिलकर... उसने मुझे बाते की.........." नितिन ने वही बातें दोहरा दी जो पहले दिन श्रुति ने रोहन को और आज रोहन ने इनस्पेक्टर को बताई थी....
"तुम्हे ये सब श्रुति ने कैसे बता दिया.. बताना होता तो उसी दिन बता देती जिस दिन तुमने उसको कॉलेज छ्चोड़ा था... या तुमने बाद में उसके साथ कोई ज़बरदस्ती की थी...?" मानव ने पूचछा...
सवाल पर एक बार तो नितिन बग्लें झाँकने लगा.. फिर सहज होते हुए जवाब दिया," अब ये तो वही बता सकती थी कि उन्होने मुझे क्यूँ बता दी.. मैने सिर्फ़ उसको ये बताया था कि रोहन किसी 'नीरू' के चक्कर में बतला गया है...
"क्क्या? क्या नाम बताया तुमने?" इनस्पेक्टर अचानक चौंक पड़ा..
"जी नीरू!" नितिन ने जवाब दिया...
"श.. अच्च्छा!" मानव ने घूर कर रोहन की और देखा और सामने देखते हुए बोला," फिर?"
"ये सुनकर वो बेचैन सी हो गयी और उसने रोहन ने बात करवाने को कहा.. पर जब रोहन का फोन नही मिला तो उसने मुझे ही सब कुच्छ बता दिया..." नितिन ने इतनी देर में ही बात बना ली थी....
"पर तुम उसके पास दोबारा करने क्या गये थे?" मानव ने फिर पूचछा...
"जी.. वो मैं सच्चाई का पता लगाना चाहता था.. और जो कुच्छ भी हो रहा था.. मुझे किसी साजिश की बू आ रही थी..." नितिन ने लंबी साँस लेकर अपने आपको अगले सवाल के लिए तैयार किया....
"तांत्रिक से मिले हो तुम?" मानव ने पूचछा..
"ज्जई.. नही!" नितिन के ऐसा कहते ही उसके साथ बैठे रवि ने उसको हैरत से देखा.. नितिन ने उसका हाथ दबाकर चुप रहने का इशारा किया तो वह बिफर उठा," मेरा हाथ क्यूँ दबा रहे हो भाई.. जो सच है.. वही बताओ ना.. कल तुमने मुझे बताया था कि....."
नितिन ने सकपका कर उसकी और देखा.. ," वो मैने यूँही कह दिया था यार.. ताकि तुम्हे उसकी बात पर विस्वास हो जाए..."
"कमाल है ना? तुम सच्चाई का पता लगाना चाहते थे.. पर तांत्रिक से मिले बिना ही तुम्हे उसस्पर विस्वास हो गया.. तुम हर हालत में ये चाहते थे की रोहन को श्रुति की बात पर.. या मैं इसको सही करके कहूँ तो तुम्हारी बनाई हुई बात पर विस्वास हो जाए, इसीलिए तुमने इनको झूठ बोल दिया कि मैं तांत्रिक से मिल चुका हूँ.. जब तुम किसी से मिले ही नही तो छानबीन क्या घंटा की तुमने..!" मानव कुर्सी से खड़ा हो गया....
नितिन के पास कोई जवाब नही था.. वो चुप बैठा सामने देखता रहा...
"बोलते क्यूँ नही..?" मानव वापस कुर्सी पर बैठ गया..
शेखर और अमन जो अब तक परेशान से बैठे थे, वो भी मामले में दिलचस्पी लेने लगे थे...
"अब मैं क्या बोलूं सर.. आप बेवजह बात को घुमा फिरा कर देख रहे हैं..." नितिन हताश सा हो गया था...
"एक बात बोलूं? तुम पढ़े लिखे दिखाई देते हो इसीलिए अपना भेजा खपा रहा हूँ.. वरना यहाँ बातों को घुमाने की ज़रूरत नही पड़ती.. हाथ घूमने से काम जल्दी बन जाता है.. वो चीखें सुन रहे हो ना तुम?" मानव ने तैश में आकर कहा...
"जी!" नितिन और कुच्छ नही बोला...
"अब ध्यान से सुनो! जितनी कहानी मेरी समझ में आ गयी है.. वो मुझसे सुनते जाओ.. और बीच बीच में मेरे सवालों को नोट करते जाना और आख़िर में सबका जवाब एक साथ देना... वरना मैं भूल जाउन्गा की तुम भी मेरी तरह इंसान हो!" मानव ने कड़वे लहजे में बात कही और...शुरू हो गया..
"मुझे नही पता कि सपने वाला क्या ड्रामा था और ना ही मैं उनका जिकर करूँगा.. पर जब रोहन बतला आ गया तो जाने तुम्हे क्या खुजली शुरू हो गयी.. तुम श्रुति से मिले.. पता नही कैसे और क्यूँ, पर तुमने रोहन के सपने वाली बात का फायडा उठाने के लिए श्रुति को ज़बरदस्ती अपने साथ मिलाया और कहीं रोहन तुम्हारे हाथ से ना निकल जाए इसीलिए तुम श्रुति को यहीं ले आए.. तुमने उसको अश्लील सी नाइटी उसको पहनाई और रोहन के कमरे में भेज दिया.. उसके पास इस तरह का कोई और कपड़ा क्यूँ नही मिला..सबूत हैं उसके वो कपड़े, जो उसने कल दिन में पहन रखे थे और रात को तुम्हारे बाथरूम में मिले.. कुच्छ कहना चाहते हो इस बारे में...?"
"मुझे नही पता की उसके कपड़े मेरे बाथरूम में कैसे आए...? हो सकता है जब में बाहर था तो वो बाथरूम में कपड़े चेंज करके गयी हो... सर आप.." नितिन के माथे पर पसीना छलक आया.. उसको अहसास हो चुका था कि वो घिरता जा रहा है...," मैं उसको कोई भी नाइटी पहन'ने को क्यूँ दूँगा भला...? मेरा क्या फायडा होता इसमें..?"
"यही तो मुझे पता करना है कि तुम्हारा क्या फायडा होता? खैर.. श्रुति कोई बच्ची नही थी, अगर वह यूँही तुम्हारे कमरे में कपड़े बदलने गयी होती तो अपने कपड़े कभी वहाँ नही छ्चोड़ती.. खास तौर पर वो ब्रा तो बिल्कुल नही जो वहाँ मिली... श्रुति एक ग़ैरतमंद लड़की थी जिसको तुमने वैश्या के तौर पर रोहन के सामने पेश किया".... इनस्पेक्टर की इस बात पर सामने बैठे सभी लोगों के चेहरे खुल गये..
"म्म्मै.. मेरी कुच्छ समझ में नही आ रहा सर आप कह क्या रहे हैं...!"
"अभी समझ में आ जाएगा..," वो श्रुति का लेटर लेकर आना!" मानव ने ऊँची आवाज़ में कहा. नितिन का चेहरा आस्चर्य और भय के मारे सफेद पड़ गया...
"जी.. लाया साहब!" और एक सिपाही आकर मानव को लेटर दे गया..
"सुनो.. श्रुति ने क्या लिखा है मरने से पहले..
"रोहन!
मुझे माफ़ करना.. मैने जो कुच्छ भी किया था.. वो तुम्हारे ही एक दोस्त के दबाव में आकर किया था... "
मानव लेटर को पढ़ ही रहा था की नितिन ने झपट्टा मारा और इस'से पहले कोई कुच्छ समझ पाता, वह लेटर को निगल चुका था... यह लेटर ही आख़िरकार उसको मौत के फंदे तक पहुँचा सकता था...," हां.. मैने किया है उसका खून.." नितिन कुर्सी से उठ कर अपना सिर पकड़ कर धरती पर बैठ गया और रोने लगा...
मानव ज़ोर का ठहाका लगाकर हंसा.. रोहन कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की लात उसके पेट में मारी...," साले!" और रोहन भी अपना सिर पकड़ कर दीवार के साथ खड़ा हो गया...
"रिलॅक्स! अभी तो इसको बहुत कुच्छ बताना बाकी है.." मानव ने उसको गिरेबान से पकड़ा और वापस कुर्सी पर बिठा दिया..," अब तुम आराम से सब बता रहे हो या...?"
कुर्सी पर बैठा नितिन एक गहरी साँस छ्चोड़कर किसी मशीन की तरह चालू हो गया..
"मुझे आज अहसास हो रहा है कि दोस्त की दौलत हड़पने के चक्कर में मैं किस हद तक गिर गया हूँ.. इसके सपने पर मुझे तब भी विस्वास नही था और आज भी नही है.. पर मेरे दिमाग़ को इस बात का फायडा उठाने की हवस ने इस कदर जकड़ा की मैं गिरता ही चला गया... मैं श्रुति को ज़बरदस्ती अपनी बंद हो चुकी फॅक्टरी में ले गया.. वहाँ उसको डराया और अपने साथ सेक्स करने को मजबूर किया.. मैने उसकी सी.डी. बना ली थी. उसको ब्लॅकमेल करते हुए मैने उसको अपने साथ साज़िश में शामिल कर लिया.. मैं चाहता था कि वो रोहन के साथ शादी करके तलाक़ ले ले और क़ानूनन इसकी आधी प्रॉपर्टी की हकदार बन जाए.. फिर उस सी.डी. के दम पर सब कुच्छ मेरा ही होना था..
गतांक से आगे ..........................................
इनस्पेक्टर रोहन के साथ रूम से बाहर निकला ही था की पोलीस वालों में से कुच्छ कपड़े उठाए उनकी ही और आता दिखाई दिया... मानव वहीं खड़ा हो गया!
"सर! सिर्फ़ ये लॅडीस कपड़े मिले हैं.. एक रूम से.. बाकी कुच्छ खास नही था!" पोलीस वाले ने आते ही कपड़े इनस्पेक्टर मानव को दिखाए...
रोहन कपड़े देखते ही तपाक से बोला," ये श्रुति के ही कपड़े हैं.. कल उसने दिन में यही पहन रखे थे...
"हुम्म.. कहाँ से मिले ये?" मानव ने पूचछा...
"सर.. वो लास्ट वाले बेडरूम के बाथरूम से..!"
रोहन आस्चर्य से बोला," क्या? पर...?" पोलीस वाला नितिन के कमरे की तरफ इशारा कर रहा था...
"पर क्या?" मानव ने उत्सुकता से रोहन की और देखा...
"नही.. कुच्छ खास नही सर!" रोहन अपने मन की बात को खा गया...
"देखो.. बात खास है या आम, ये मैं सोचूँगा.. दिल में कोई बात मत रखो.. जो कुच्छ भी है मन में.. सब निकाल दो..."
"सर, रियली कोई खास बात नही है.. मैं सिर्फ़ ये सोच रहा था कि श्रुति के कपड़े नितिन के बाथरूम में कैसे आए.." रोहन ने जवाब दिया..
"यही तो वो सवाल हैं बेटा, जिनके जवाब मुझे ढूँढने हैं.. नितिन ने तुम्हारी प्रेम कहानी में इतना इंटेरेस्ट क्यूँ लिया? वह वहीं रहकर तुम्हे बुलाने की बजाय श्रुति को यहाँ लेकर क्यूँ आया..? नितिन तांत्रिक से क्यूँ मिला? कुण्डी किसने खोली? और अब ये उसके कपड़े नितिन के बाथरूम में कैसे पहुँचे.. खैर.. रात को जब श्रुति तुम्हारे पास आई तो क्या यही कपड़े पहन रखे थे उसने??" मानव ने पूचछा...
"जी नही.. वो कोई और ड्रेस थी..?" रोहन ने जवाब दिया...
"मतलब? क्या ये भी नही थी जो उसके शरीर पर अब है?" इनस्पेक्टर अपना सिर खुजाता हुआ बोला...
"जी नही.. दरअसल उस ड्रेस की वजह से ही मुझे गुस्सा आया था.. ऐसी ही ऊटपटांग डाल रखी थी..."
"आओ मेरे साथ..!" कहकर मानव ने सिपाही को ड्रेस साथ रखने को बोला और रोहन फिर से श्रुति वाले कमरे में ले गया.. श्रुति की लाश को हॉस्पिटल वाले ले जा चुके थे.. वहाँ खड़े सभी लोगों का चेहरा उतरा हुआ था... सभी के चेहरे पीले पड़ गये थे...
"ज़रा कमरे में ढुंढ़ो, वो कपड़े कौन्से हैं...?" मानव ने रोहन को इशारा किया....
रोहन को अलमारी में ज़्यादा ताकझांक नही करनी पड़ी.. निहायत ही अश्लील नाइटी ऐसे ही बीच वाले खाने में फैंकी हुई थी... रोहन उसको उठाने को झुका तो इनस्पेक्टर ने मना कर दिया," हाथ मत लगाओ तुम इसको..! और एक सिपाही से उसको सावधानी से उठा लेने को बोला...
"अब इसका बॅग खोलकर इसके सारे कपड़े निकालो...!" मानव ने सिपाही को बोला.. सिपाही ने बॅग उलट कर सारे कपड़े बिस्तेर पर उलट दिए.. 'उस' एक नाइटी के अलावा श्रुति के पास इस तरह का कोई और उत्तेजक कपड़ा नही था.. बुल्की सारे कपड़े शरीर को लगभग पूरा ढकने वाले थे... इनस्पेक्टर ने इस बात पर गौर किया और सबको साथ लेकर चलने का इशारा पोलीस वालों को किया.
आधे घंटे बाद पाँचों मानव के सामने बैठे थे...
इनस्पेक्टर ने नितिन को कुर्सी बदल कर बीच में उसके सामने आने को बोला.. नितिन ने वैसा ही किया और रोहन लाइन में सबसे आख़िरी कुर्सी पर चला गया...
"तुम इतने थके हुए क्यूँ लग रहे हो? रात भर जागे हो क्या?" मानव ने नितिन से पूचछा..
"जी नही तो.. मैं ठीक हूँ बिल्कुल.. और जो थोड़ा बहुत तनाव आप मेरे चेहरे पर देख रहे हैं.. वो 'बेचारी' श्रुति की लाश देखने के कारण है.. उसके साथ सच में ही बहुत बुरा हुआ?" नितिन ने सफाई के साथ जवाब देते हुए खुद को संभाला...
"तुम्ही श्रुति के कातिल हो!" मानव ने तपाक से कहा...
"क्कक्या बकवास कर रहे हैं आप? उसने ख़ुदकुशी की है.. सभी जानते हैं.. रोहन ने उसके साथ संबंध बनाने से इनकार कर दिया.. इस'से वह हताश हो गयी..." नितिन एक बार तो सकपका गया था..
लगभग यही एक्सप्रेशन रोहन के चेहरे पर भी आए थे," सर आप बेवजह नितिन पर शक कर रहे हैं..!"
"मुझे किसी पागल कुत्ते ने काटा है क्या जो मैं इस पर बेवजह शक कर रहा हूँ.. मैने तुम पर नही किया.. हालाँकि, तुम उसके साथ सबसे ज़्यादा देर तक थे.. मैं ये भी कह सकता था कि तुमने ही ज़बरदस्ती करने की कोशिश की और जब नही मानी तो उसको मारकर फाँसी पर टाँग दिया.. पर मैने नही कहा ना? हमारा रोज़ का यही काम होता है बच्चू.. हम कातिल को नज़रों से पहचान लेते हैं.."
इनस्पेक्टर बोलते बोलते उत्तेजित सा हो गया था.. टेबल पर रखा पानी का गिलास खाली करते हुए वह फिर बोलना शुरू हो गया..
"मेरे कहने का ये मतलब था कि अगर तुम उसको यहाँ लेकर नही आते तो उसके साथ ये सब नही होता.. है ना?
"ज्जई.. ये तो है.." नितिन ने नज़रें झुका ली...
"तो क्यूँ लेकर आए उसको? तुम्हारा क्या फायडा था इसमें..?" मानव ने ज़ोर देकर पूचछा...
"मेरा क्या फायडा होता भला.. मैने तो जो किया, रोहन के लिए किया..!" नितिन ने सफाई दी..
"ऐसा क्या कर दिया तुमने, रोहन के लिए..." मानव ने फिर पूचछा....
"जी.. वो रोहन यहाँ किसी लड़की के चक्कर में ही आया था.. श्रुति ने जब मुझे ये बताया कि... दरअसल रोहन को पिच्छले कयि महीनो से सपने आ रहे थे.. तो इसने मुझे साथ लेकर उस लड़की के पास जाने का फैंसला किया.. लड़की ने हमें टीले.." बोलते हुए नितिन को मानव ने बीच में ही रोक दिया..," ये सब बकवास में सुन चुका हूँ... ये बताओ श्रुति ने तुम्हे क्या बताया?"
"जी यही कि सब उसने ही किया था.. एक तांत्रिक के साथ मिलकर... उसने मुझे बाते की.........." नितिन ने वही बातें दोहरा दी जो पहले दिन श्रुति ने रोहन को और आज रोहन ने इनस्पेक्टर को बताई थी....
"तुम्हे ये सब श्रुति ने कैसे बता दिया.. बताना होता तो उसी दिन बता देती जिस दिन तुमने उसको कॉलेज छ्चोड़ा था... या तुमने बाद में उसके साथ कोई ज़बरदस्ती की थी...?" मानव ने पूचछा...
सवाल पर एक बार तो नितिन बग्लें झाँकने लगा.. फिर सहज होते हुए जवाब दिया," अब ये तो वही बता सकती थी कि उन्होने मुझे क्यूँ बता दी.. मैने सिर्फ़ उसको ये बताया था कि रोहन किसी 'नीरू' के चक्कर में बतला गया है...
"क्क्या? क्या नाम बताया तुमने?" इनस्पेक्टर अचानक चौंक पड़ा..
"जी नीरू!" नितिन ने जवाब दिया...
"श.. अच्च्छा!" मानव ने घूर कर रोहन की और देखा और सामने देखते हुए बोला," फिर?"
"ये सुनकर वो बेचैन सी हो गयी और उसने रोहन ने बात करवाने को कहा.. पर जब रोहन का फोन नही मिला तो उसने मुझे ही सब कुच्छ बता दिया..." नितिन ने इतनी देर में ही बात बना ली थी....
"पर तुम उसके पास दोबारा करने क्या गये थे?" मानव ने फिर पूचछा...
"जी.. वो मैं सच्चाई का पता लगाना चाहता था.. और जो कुच्छ भी हो रहा था.. मुझे किसी साजिश की बू आ रही थी..." नितिन ने लंबी साँस लेकर अपने आपको अगले सवाल के लिए तैयार किया....
"तांत्रिक से मिले हो तुम?" मानव ने पूचछा..
"ज्जई.. नही!" नितिन के ऐसा कहते ही उसके साथ बैठे रवि ने उसको हैरत से देखा.. नितिन ने उसका हाथ दबाकर चुप रहने का इशारा किया तो वह बिफर उठा," मेरा हाथ क्यूँ दबा रहे हो भाई.. जो सच है.. वही बताओ ना.. कल तुमने मुझे बताया था कि....."
नितिन ने सकपका कर उसकी और देखा.. ," वो मैने यूँही कह दिया था यार.. ताकि तुम्हे उसकी बात पर विस्वास हो जाए..."
"कमाल है ना? तुम सच्चाई का पता लगाना चाहते थे.. पर तांत्रिक से मिले बिना ही तुम्हे उसस्पर विस्वास हो गया.. तुम हर हालत में ये चाहते थे की रोहन को श्रुति की बात पर.. या मैं इसको सही करके कहूँ तो तुम्हारी बनाई हुई बात पर विस्वास हो जाए, इसीलिए तुमने इनको झूठ बोल दिया कि मैं तांत्रिक से मिल चुका हूँ.. जब तुम किसी से मिले ही नही तो छानबीन क्या घंटा की तुमने..!" मानव कुर्सी से खड़ा हो गया....
नितिन के पास कोई जवाब नही था.. वो चुप बैठा सामने देखता रहा...
"बोलते क्यूँ नही..?" मानव वापस कुर्सी पर बैठ गया..
शेखर और अमन जो अब तक परेशान से बैठे थे, वो भी मामले में दिलचस्पी लेने लगे थे...
"अब मैं क्या बोलूं सर.. आप बेवजह बात को घुमा फिरा कर देख रहे हैं..." नितिन हताश सा हो गया था...
"एक बात बोलूं? तुम पढ़े लिखे दिखाई देते हो इसीलिए अपना भेजा खपा रहा हूँ.. वरना यहाँ बातों को घुमाने की ज़रूरत नही पड़ती.. हाथ घूमने से काम जल्दी बन जाता है.. वो चीखें सुन रहे हो ना तुम?" मानव ने तैश में आकर कहा...
"जी!" नितिन और कुच्छ नही बोला...
"अब ध्यान से सुनो! जितनी कहानी मेरी समझ में आ गयी है.. वो मुझसे सुनते जाओ.. और बीच बीच में मेरे सवालों को नोट करते जाना और आख़िर में सबका जवाब एक साथ देना... वरना मैं भूल जाउन्गा की तुम भी मेरी तरह इंसान हो!" मानव ने कड़वे लहजे में बात कही और...शुरू हो गया..
"मुझे नही पता कि सपने वाला क्या ड्रामा था और ना ही मैं उनका जिकर करूँगा.. पर जब रोहन बतला आ गया तो जाने तुम्हे क्या खुजली शुरू हो गयी.. तुम श्रुति से मिले.. पता नही कैसे और क्यूँ, पर तुमने रोहन के सपने वाली बात का फायडा उठाने के लिए श्रुति को ज़बरदस्ती अपने साथ मिलाया और कहीं रोहन तुम्हारे हाथ से ना निकल जाए इसीलिए तुम श्रुति को यहीं ले आए.. तुमने उसको अश्लील सी नाइटी उसको पहनाई और रोहन के कमरे में भेज दिया.. उसके पास इस तरह का कोई और कपड़ा क्यूँ नही मिला..सबूत हैं उसके वो कपड़े, जो उसने कल दिन में पहन रखे थे और रात को तुम्हारे बाथरूम में मिले.. कुच्छ कहना चाहते हो इस बारे में...?"
"मुझे नही पता की उसके कपड़े मेरे बाथरूम में कैसे आए...? हो सकता है जब में बाहर था तो वो बाथरूम में कपड़े चेंज करके गयी हो... सर आप.." नितिन के माथे पर पसीना छलक आया.. उसको अहसास हो चुका था कि वो घिरता जा रहा है...," मैं उसको कोई भी नाइटी पहन'ने को क्यूँ दूँगा भला...? मेरा क्या फायडा होता इसमें..?"
"यही तो मुझे पता करना है कि तुम्हारा क्या फायडा होता? खैर.. श्रुति कोई बच्ची नही थी, अगर वह यूँही तुम्हारे कमरे में कपड़े बदलने गयी होती तो अपने कपड़े कभी वहाँ नही छ्चोड़ती.. खास तौर पर वो ब्रा तो बिल्कुल नही जो वहाँ मिली... श्रुति एक ग़ैरतमंद लड़की थी जिसको तुमने वैश्या के तौर पर रोहन के सामने पेश किया".... इनस्पेक्टर की इस बात पर सामने बैठे सभी लोगों के चेहरे खुल गये..
"म्म्मै.. मेरी कुच्छ समझ में नही आ रहा सर आप कह क्या रहे हैं...!"
"अभी समझ में आ जाएगा..," वो श्रुति का लेटर लेकर आना!" मानव ने ऊँची आवाज़ में कहा. नितिन का चेहरा आस्चर्य और भय के मारे सफेद पड़ गया...
"जी.. लाया साहब!" और एक सिपाही आकर मानव को लेटर दे गया..
"सुनो.. श्रुति ने क्या लिखा है मरने से पहले..
"रोहन!
मुझे माफ़ करना.. मैने जो कुच्छ भी किया था.. वो तुम्हारे ही एक दोस्त के दबाव में आकर किया था... "
मानव लेटर को पढ़ ही रहा था की नितिन ने झपट्टा मारा और इस'से पहले कोई कुच्छ समझ पाता, वह लेटर को निगल चुका था... यह लेटर ही आख़िरकार उसको मौत के फंदे तक पहुँचा सकता था...," हां.. मैने किया है उसका खून.." नितिन कुर्सी से उठ कर अपना सिर पकड़ कर धरती पर बैठ गया और रोने लगा...
मानव ज़ोर का ठहाका लगाकर हंसा.. रोहन कुर्सी से उठा और एक ज़ोर की लात उसके पेट में मारी...," साले!" और रोहन भी अपना सिर पकड़ कर दीवार के साथ खड़ा हो गया...
"रिलॅक्स! अभी तो इसको बहुत कुच्छ बताना बाकी है.." मानव ने उसको गिरेबान से पकड़ा और वापस कुर्सी पर बिठा दिया..," अब तुम आराम से सब बता रहे हो या...?"
कुर्सी पर बैठा नितिन एक गहरी साँस छ्चोड़कर किसी मशीन की तरह चालू हो गया..
"मुझे आज अहसास हो रहा है कि दोस्त की दौलत हड़पने के चक्कर में मैं किस हद तक गिर गया हूँ.. इसके सपने पर मुझे तब भी विस्वास नही था और आज भी नही है.. पर मेरे दिमाग़ को इस बात का फायडा उठाने की हवस ने इस कदर जकड़ा की मैं गिरता ही चला गया... मैं श्रुति को ज़बरदस्ती अपनी बंद हो चुकी फॅक्टरी में ले गया.. वहाँ उसको डराया और अपने साथ सेक्स करने को मजबूर किया.. मैने उसकी सी.डी. बना ली थी. उसको ब्लॅकमेल करते हुए मैने उसको अपने साथ साज़िश में शामिल कर लिया.. मैं चाहता था कि वो रोहन के साथ शादी करके तलाक़ ले ले और क़ानूनन इसकी आधी प्रॉपर्टी की हकदार बन जाए.. फिर उस सी.डी. के दम पर सब कुच्छ मेरा ही होना था..
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
प्लान ये था कि मैं श्रुति से कहलवाकर रोहन को विस्वास दिल्वाउ कि 'श्रुति' ही वो 'नीरू' है जो उसके सपनो में आती है.. उसके बाद ये उस'से आराम से शादी कर लेता.. पर जब इसने मुझे बताया कि इसको यहाँ भी कोई 'नीरू' मिल गयी है तो मुझे सब कुच्छ मिट्टी में मिलता नज़र आने लगा... इसीलिए मैने उसको ज़बरदस्ती यहाँ आने के लिए तैयार किया... सब ठीक चल रहा था लेकिन जब उसने मुझे बाते की रोहन को उसकी कहानी पर विस्वास नही हुआ तो मैं दूसरा तरीका अपनाने पर मजबूर हो गया जो पहले ही मेरे दिमाग़ में था.. मैने शाम को ही रोहन के कमरे में केमरा फिट कर दिया था. श्रुति को मैने बोल दिया था कि मैने रोहन के रूम में केमरा फिट कर दिया है और मैं उसकी हर हरकत पर नज़र रखूँगा... और ये भी कि अगर इसको वो सेक्स के लिए मजबूर नही कर पाई तो उसको मेरे पास सोना पड़ेगा... मैने उसको 'वो' नाइटी पहन'ने को दी और रोहन के पास भेज दिया... यहीं पर मेरा दाँव उल्टा पड़ गया.. रोहन शायद उन्न कपड़ों की वजह से ही चिड गया और उसको रूम से बाहर निकाल कर उसको उसके कमरे में छ्चोड़ आया.. बाद मैं मैने उसको कयि फोन किए पर उसने फोन उठाया ही नही.. मैं उसके कमरे में गया तो 'वो' पंखे पर झूल रही थी.. नीचे लेटर रखा हुआ था.. मेरे पास अब कुच्छ बचा नही था.. मैने चुपचाप लेटर और उसका फोन अपनी जेब में डाला और बाहर निकल आया.. फिर भी मैं मानता हूँ कि उसका कातिल मैं ही हूँ.." कहकर नितिन फुट फुट कर रोने लगा...
कमरे में काफ़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा.. मानव ने ही कुच्छ देर बाद चुप्पी तोड़ी," रोने से कुच्छ नही होगा रोहन! पर श्रुति जाते जाते तुम्हे तुम्हारी आस्तीन में पल रहे एक ज़हरीले नाग से छुटकारा दिला गयी.. इसने तो सोचा भी नही होगा कि राजू मुझे फोन कर देगा और ये इस तरह फँस जाएगा... इसने तो चुपचाप लाश ठिकाने लगवा देनी थी और तुम्हारा दोस्त होने का ढोंग भी करता रहता.. फिर कभी डॅस'ता...अगर ये बाहर आते हुए कुण्डी बंद करनी ना भूलता तो शायद मैं तुम्हारी बात पर विस्वास करके मामले को पंचनामा होने तक यूँही छ्चोड़ देता.. और पंचनामे में तो शायद साबित हो ही जाएगा कि उसने आत्महत्या ही की है.. और कारण भी मैं यही मानता कि तुम्हारे कमरे से जॅलील होकर निकलने के बाद उसके पास कोई रास्ता ही नही बचा होगा..
पर तुम्हारे कुण्डी बंद करने और सुबह राजू को दरवाजा खुला मिलने पर ही मुझे पहली बार ये शक हुआ था कि हो सकता है कि किसी ने उसका खून कर दिया हो.. एक बात और.. आम तौर पर आत्महत्या करने वाले सभी लोग कोई ना कोई नोट छ्चोड़ कर ज़रूर जाते हैं.. वो भी हमें वहाँ नही मिला... इस'से भी मेरे इसी ख्याल को बल मिला कि हो ना हो उसका खून किया गया है.. उसके बाद इसके कमरे में श्रुति के कपड़े मिलना, निहायत ही कामुक नाइटी का पहन'ना, जो कि उसके नेचर से मेल नही खाती.. इसका उसको बतला लेकर आना.. और फिर तुम्हारे कमरे में बैठे हुए मुझे फॅन्सी लाइट के साथ केमरा लगा दिखाई देना; इन्न सब बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि श्रुति को ब्लॅकमेल किया जा रहा था और बहुत पहले ही शक हो गया था कि इसी आदमी में गड़बड़ है... पर जब तक कि इसने वो कोरा कागज मेरे हाथ से नही छ्चीना था.. मुझे विस्वास नही हो रहा था कि गुत्थी इतनी आसानी से सुलझ जाएगी.."
"खैर.. अब तुम जा सकते हो.. अगर इंसानियत के नाते इसकी जमानत का प्रबंध करवाना चाहते हो तो अप्लिकेशन लगवा देना कोर्ट में.. ना चाहो तो भी कम से कम इसके घर वालों को तो इत्तला कर ही देना..." मानव ने कहा और नितिन को उठाकर ले गया...
"अब यूँ मुँह लटकाए क्यूँ बैठे हो यार.. जो कुच्छ हुआ उसका हम सबको अफ़सोस है.. पर हम कर ही क्या सकते थे? गनीमत है कि उस नितिन की असलियत बेपर्दा हो गयी.. दोस्ती के नाम पर कलंक था वो!" अमन ने रोहन के पास बैठ उसके कंधे पर हाथ रख लिया..
"सॉरी यार! मेरी वजह से तुम्हे ये दिन देखना पड़ा.. थाने तक जाना पड़ा. मैं माफी चाहता हूँ.." रोहन ने कंधे पर रखा अमन का हाथ पकड़ लिया..
"अबे साले.. देखा शेखर! अब ये हमें भी नितिन जैसा समझ रहा है.. ये बात कहकर तो तुमने हमें गाली सी दे दी.. हमारा क्या घिस गया..? सच्चाई ही सामने आई ना.. चल छ्चोड़, तुझे स्पेशल चाय पिलाता हूँ पंजाब वाली..सारी टेन्षन दूर हो जाएगी.. अबे राजू! साले चुगलखोर!" अमन ने राजू को आवाज़ लगाई...
पर राजू वहाँ होता तो मिलता!
"लगता है डर के मारे भाग गया साला! वैसे काम बंदे ने एक नंबर. का कर दिया.. अगर वो पोलीस को नही बुलाता तो हम तो यही समझते रहते कि श्रुति... " बात को पूरी किए बिना ही अमन आगे बोला," और नितिन सॉफ सॉफ बच जाता.. फिर जाने क्या तिकड़म खेलता तुम्हारे साथ.. खैर तू बैठ.. मैं चाय बनाकर लाता हूँ..!"
अमन कहकर उठने लगा तो शेखर खड़ा हो गया,"तुम लोग बातें करो.. मैं अपने हाथ का कमाल दिखाता हूँ आज.." और किचन की तरफ चला गया...
"फिर अब क्या सोचा है?" अमन वापस उसके पास बैठते हुए बोला.. रवि का दिमाग़ बहुत ज़्यादा खराब था.. पास ही सोफे पर पसरा हुआ वो अपने चेहरे को रुमाल से ढके लेटा हुआ सा था....
"अब करने को बचा ही क्या है? श्रुति के पापा को बताना पड़ेगा..." रोहन की आँखें भर आई..," फिर वही जिंदगी काटनी है यार... सुबह कॉलेज.. शाम को घर!"
"क्यूँ? अपनी नीरू को भूल जाएगा क्या? उसको ऐसे ही तड़पति रहने देगा अब?" अमन को लगा जैसे वह नीरू को तो भूल ही गया है..
"अब सोचने को क्या बचा यार.. अब तो सब सॉफ हो ही गया कि ये नितिन की साज़िश थी.. सपने भी उसी की वजह से आते होंगे..." रोहन ने यूँही मुँह लटकाए हुए कहा...
रवि उसकी बात सुनते ही उच्छल बैठा,"अबे साले.. मुझे डमरू कहता है; खुद तूने कभी दिमाग़ का यूज़ किया है कि नही.. या वो है ही नही तेरे अंदर.. नितिन ने साज़िश तेरे उसको सपने के बारे में बताने के बाद शुरू की.. श्रुति की बात साज़िश हो सकती है.. उसके सपनों की बात झूठी हो सकती है.. हो क्या सकती है, झूठी ही थी... पर तेरे सपने तो किसी की साज़िश नही है ना.. वो तो सच ही हैं.. और जो घर तू सपने में देखता था.. वैसा ही घर तू नीरू का बता रहा है.. अब तो ये सॉफ हो गया ना कि यही वो लड़की है जिसका तुझसे जनम जनम का संबंध है.. कहाँ से सोच रहा है तू.."
"हां.. यार.. मेरा तो कल से दिमाग़ ही खराब है.. आक्च्युयली सुबह ये सब देखने के बाद कुच्छ और सोच ही नही पाया.. जो कल रात को सोच रहा था वही अब तक सोच रहा हूँ.. इसका मतलब 'नीरू' है!" रोहन की आँखों में हल्की सी चमक आ गयी...
"नही नही.. नीरू कहाँ है..!" रवि मुँह कड़वा सा करके बोला," मैने तुझे कल भी बोला था.. कि मुझे नितिन के मन में खोट लग रहा है.. पर तूने मेरी बात सुनी ही नही.. नितिन के कहानी में इतना इंटेरेस्ट लेने की जो बात इनस्पेक्टर कह रहा था.. वही बात तुझसे मैं करना चाहता था.. इन्फेक्ट वो मुझे मार्केट में जब कहानी बता रहा था.. तभी मुझे शक हो गया था कि नितिन झूठ बोल रहा है.. और झूठ भी अपनी मर्ज़ी से.. पर यहाँ सुनता कौन है मेरी.. चली गयी ना बेचारी श्रुति!" रवि की आँखें लाल हो गयी...
"छ्चोड़ो यार! जो हुआ सो हुआ!" अमन ने रवि को शांत करने की कोशिश की...
"ऐसे कैसे छ्चोड़ सकते हैं मिस्टर. अमन!" कमरे में इनस्पेक्टर मानव ने प्रवेश किया तो तीनो चौंक कर खड़े हो गये..," आइए इनस्पेक्टर साहब!" अमन उसका स्वागत सा करता हुआ बोला...
"लेटर पढ़ कर मेरा दिमाग़ खराब हो गया है.. इसीलिए मुझे यहाँ आना पड़ा.. सॉरी!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा..
"अरे जब चाहिए आइए.. आपका ही घर है.. पर आप तो कह रहे थे कि लेटर नही था.. सिर्फ़ एक कोरा कागज ही था जो आप हमारे सामने पढ़ रहे थे..!" अमन ने उत्सुक होकर पूचछा...
तभी कमरे में ट्रे उठाए हुए शेखर ने प्रवेश किया.. इनस्पेक्टर को बैठे देख एक बार उसके कदम ठितके.. फिर चुपचाप आकर टेबल पर चाय रख दी..
"थॅंक्स! बड़ी देर से इच्च्छा हो रही थी... राजू भाग गया क्या?" मानव ने एक कप उठाते हुए शेखर के चेहरे की और देखकर कहा...
"जी.. उसने सोचा होगा कि.." अमन अपनी बात पूरी करता इस'से पहले ही इनस्पेक्टर बोल पड़ा," डॉन'ट वरी.. शाम तक वापस आ जाएगा.. वैसे तुम सब को तो खुशी ही हो रही होगी कि नितिन की असलियत का पता लग गया...
"जी बिल्कुल!" इस बार रोहन बोला," पर वो लेटर के बारे में आप क्या कह रहे हो..."
"हुम्म.. दरअसल जो लेटर श्रुति ने लिखा था, वो हमें नितिन की तलाशी लेते हुए उसकी जेब से मिला.. ये लो.. पढ़ो ज़रा लेटर को.. उस की कॉपी है.." मानव ने लेटर रोहन को पकड़ा दिया...
छ्होटा छ्होटा लिखा हुआ था.. शायद कागज श्रुति के पास कम था... रोहन उसमें आँखें जमाकर उसको बोल कर पढ़ने लगा..
------------------------------------------
"रोहन!
सुबह जब आप सोकर उठेंगे तो मैं इस दुनिया में आपको नही मिलूंगी. निहायत ही शर्मनाक हरकत की मैने आपके साथ; मेरा भी दिल रो रहा था उस वक़्त. प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना. सब मेरी मजबूरी थी. मजबूरी भी ऐसी की बता नही सकती. वरना मेरे 'बापू' जीते जी मर जाएँगे. पर मैं आपसे बे-इंतहा प्यार करती हूँ, और आपकी नज़रों का अब सामना नही कर सकती. इसीलिए दुनिया छ्चोड़ कर जा रही हूँ.
हो सके तो मेरे बापू के पास चले जाना. जीते जी मैने कोई ऐसा काम अपनी मर्ज़ी से नही किया जो उनके मान सम्मान को ठेस पहुँचाए. मरने के बाद 'कोई' मुझे बदनाम कर सकता है. हो सके तो उनको संभाल लेना!
कहते हैं कि भगवान की मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नही हिलता. भगवान मिलेंगे तो उनसे कुच्छ बातें पूच्हूँगी. मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ? कौन्से कर्मों की सज़ा मिली मुझे? मैने तो कभी किसी की तरफ नज़र उठाकर भी नही देखा, किसी के बारे में सोचा तक नही, सिवाय आपके. फिर मुझे आप के सामने ही जॅलील क्यूँ करवाया? क्यूँ नही उन्होने पहले ही मुझे उठा लिया अपनी गोद में.. उन्होने ये 'प्यार' बनाया ही क्यूँ? और बनाया भी तो हर बार अधूरा ही क्यूँ छ्चोड़ दिया, क्यूँ नही मिलने देते वो प्यार करने वालों को..?
फिर प्रार्थना करूँगी उनसे.. इस जनम में नीरू का प्यार उसको दे दें. और अगले जनम में मुझे मेरा अधूरा प्यार!
तुम्हारी हो चुकी हूँ, इंतजार करूँगी; अगले जनम में!
श्रुति"
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सभी की आँखें नाम हो गयी थी.. सिवाय मानव के," तुम श्रुति से कितनी बार मिले थे रोहन?"
"जी, बस दो बार.. एक बार उसके घर पर, और एक बार कल रात को!" रोहन ने रुमाल निकाल अपनी आँखें पौंचछते हुए कहा....
"तुम्हारे बीच कुच्छ बातें भी हुई थी क्या? आइ मीन, रोमॅंटिक.. प्यार भरी..!" मानव ने पूचछा...
"जी नही.. जो भी हुई थी, या तो कल दिन में हुई थी.." रोहन कुच्छ देर रुका और फिर फट सा पड़ा,"या फिर रात में.." कहता हुआ रोहन बिलखने लगा.. रात को उसने श्रुति के साथ जैसा व्यवहार किया, उसको याद करके....
"कूल डाउन यार.. लाइफ में सब कुच्छ होता रहता है.. तुम्हारी जगह कोई भी शरीफ इंसान होता, तो वो भी यही करता.. तुम्हे थोड़े ही पता था कि वह मजबूरी में वो सब कर रही है.. पर ये एक ही बात मेरी समझ में नही आई अभी तक! मैं वहीं जान'ने आया हूँ..." मानव ने उसको खुद को संभालने की सलाह दी..
"क्या?" रोहन बोला..
" मैने कभी प्यार किया नही है.. पर जहाँ तक मेरा ख़याल है.. प्यार तो धीरे धीरे होता है.. खास तौर पर इतना प्यार की कोई किसी की नज़रों से गिर जाने पर स्यूयिसाइड ही कर ले.. उसके पास और भी रास्ते थे.. नितिन 'केमरे' में देख ही लेता कि श्रुति ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की.. फिर वह जैसे चल रहा था.. वैसे भी चलने दे सकती थी.. जान देना तो आख़िरी हथियार होता और वो तो कभी भी कर सकती थी.. अगर कोई रास्ता ना बचता तो?" मानव ने कहा," और सबसे खास बात, श्रुति को प्यार कब हो गया रोहन से.. अगर वह इस'से कभी घुली मिली ही नही.. समय नही गुज़ारा साथ!"
इस बार अमन खुद को बोलने से नही रोक सका," सच कह रहे हो इनस्पेक्टर साहब.. 'प्यार' किए बिना पता ही नही चलता कि 'साला' ये होता क्या है.. इत्ता छ्होटा सा नाम है.. पर इसमें रंग इतने भरे हुए हैं कि आदमी सिर्फ़ अपने प्यार को समझ सकता है.. दूसरे के प्यार को नही.. "
"कभी कभी हम सालों साथ रह जाते हैं और पता ही नही चलता की हमें 'प्यार' हो गया है.. जुदा होने के बाद हमें अहसास होता है कि 'उसके' बिना जीना कितना मुश्किल है.. तब हमें पता चलता है कि हमें तो प्यार हो गया था.."
"कभी कभी पहली नज़र में ही हमें प्यार हो जाता है और हम समझ जाते हैं कि 'यही' प्यार है.. बोलना चाहते हैं, पर कभी बोल ही नही पाते.. जाने क्यूँ उसके सामने कभी ज़ुबान ही नही खुलती.. और जब खुलती है तो अलग होना हमारी मजबूरी बन चुका होता है.."
"एक तरफ़ा प्यार भी होता है.. हम पागल होकर किसी के पीछे लग जाते हैं और लाख जतन करके भी उसको अहसास ही नही करा पाते की 'वो' हमारे लिए क्या है.. उसके लिए सब कुच्छ छ्चोड़ देते हैं.. अपनी मंज़िल, मा-बाप के सपने, सब कुच्छ भूल कर सिर्फ़ एक ही चीज़ याद रहती है,'उसका नाम!' अपना सब कुच्छ बर्बाद करने के बाद भी हमें कभी पचहतावा नही होता कि उसने हमारे प्यार को तवज्जो नही दी.. और छ्चोड़ कर चली गयी..."
"कभी कभी 'उसकी' नफ़रत से भी हमें प्यार हो जाता है.. और हम सामने वाले पर उसकी नफ़रत के बावजूद उस पर जान लुटाने को तैयार रहते हैं.. 'पतंगा' क्या अग्नि से निकलने वाली आँच महसूस करके झुलस्ता नही होगा.. पर फिर भी वो 'उसमें' जान दिए बगैर मानता नही.. ये भी प्यार ही है.."
"श्रुति का प्यार रोहन की नफ़रत से ही पैदा हुआ होगा.. इसकी ऐसी नफ़रत जिसने रोहन के व्यक्तिताव को उसकी नज़रों में कहीं ऊँचा उठा दिया.. इसने उसके खुद को इसको सौंपने पर भी 'प्यार' नाम की कद्र रखी.. और उसको हाथ नही लगाया... वह आई यहाँ मजबूरी में थी.. पर रोहन की इंसानियत देख वह इस पर मर मिटी.. उसने दोनो तरह के लोग देख लिए; नितिन जैसे भी और फिर रोहन जैसे भी.. प्यार होता कैसे नही रोहन से!"
"प्यार..." अमन बिना रुके बोलता ही जा रहा था कि मानव ने उसको टोक दिया," तुमने 'प्यार' में पीएचडी कर रखी है क्या? या कोई 'लोवेगुरू' हो?"
"नही इनस्पेक्टर साहब! प्यार का कोई गुरु कैसे हो सकता है. प्यार ही पैदा करता है और प्यार ही जान ले लेता है.. प्यार ही सब कुच्छ सिखाता है और प्यार ही सब कुच्छ भूलने पर मजबूर करता है.. प्यार ही आदमी को खड़ा करता है और प्यार ही गिरा देता है.. सारी दुनिया उसकी गुलाम है.. सारी दुनिया उसके ही कारण चल रही है.. प्यार ही सबका गुरु है..." अमन ने गहरी साँस छ्चोड़ी...
"उफ़फ्फ़.. मैं तो तुम्हे ऐसे ही समझ रहा था यार.. तुम तो कमाल हो.. माइ नेम ईज़ मानव, नाइस टू मीट यू ब्रो!" मानव ने अमन की और हाथ बढ़ाते हुए कहा.. अमन ने दोनो हाथों में उसका हाथ पकड़ लिया...
"अब चलने का टाइम हो गया भाई.. जल्द ही मिलूँगा तुमसे.. मुझे भी प्यार करके देखना है यार.. हा हा हा" मानव ने कहा और बाहर निकल गया...
कहानी जारी है.................................
कमरे में काफ़ी देर तक सन्नाटा छाया रहा.. मानव ने ही कुच्छ देर बाद चुप्पी तोड़ी," रोने से कुच्छ नही होगा रोहन! पर श्रुति जाते जाते तुम्हे तुम्हारी आस्तीन में पल रहे एक ज़हरीले नाग से छुटकारा दिला गयी.. इसने तो सोचा भी नही होगा कि राजू मुझे फोन कर देगा और ये इस तरह फँस जाएगा... इसने तो चुपचाप लाश ठिकाने लगवा देनी थी और तुम्हारा दोस्त होने का ढोंग भी करता रहता.. फिर कभी डॅस'ता...अगर ये बाहर आते हुए कुण्डी बंद करनी ना भूलता तो शायद मैं तुम्हारी बात पर विस्वास करके मामले को पंचनामा होने तक यूँही छ्चोड़ देता.. और पंचनामे में तो शायद साबित हो ही जाएगा कि उसने आत्महत्या ही की है.. और कारण भी मैं यही मानता कि तुम्हारे कमरे से जॅलील होकर निकलने के बाद उसके पास कोई रास्ता ही नही बचा होगा..
पर तुम्हारे कुण्डी बंद करने और सुबह राजू को दरवाजा खुला मिलने पर ही मुझे पहली बार ये शक हुआ था कि हो सकता है कि किसी ने उसका खून कर दिया हो.. एक बात और.. आम तौर पर आत्महत्या करने वाले सभी लोग कोई ना कोई नोट छ्चोड़ कर ज़रूर जाते हैं.. वो भी हमें वहाँ नही मिला... इस'से भी मेरे इसी ख्याल को बल मिला कि हो ना हो उसका खून किया गया है.. उसके बाद इसके कमरे में श्रुति के कपड़े मिलना, निहायत ही कामुक नाइटी का पहन'ना, जो कि उसके नेचर से मेल नही खाती.. इसका उसको बतला लेकर आना.. और फिर तुम्हारे कमरे में बैठे हुए मुझे फॅन्सी लाइट के साथ केमरा लगा दिखाई देना; इन्न सब बातों ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया था कि श्रुति को ब्लॅकमेल किया जा रहा था और बहुत पहले ही शक हो गया था कि इसी आदमी में गड़बड़ है... पर जब तक कि इसने वो कोरा कागज मेरे हाथ से नही छ्चीना था.. मुझे विस्वास नही हो रहा था कि गुत्थी इतनी आसानी से सुलझ जाएगी.."
"खैर.. अब तुम जा सकते हो.. अगर इंसानियत के नाते इसकी जमानत का प्रबंध करवाना चाहते हो तो अप्लिकेशन लगवा देना कोर्ट में.. ना चाहो तो भी कम से कम इसके घर वालों को तो इत्तला कर ही देना..." मानव ने कहा और नितिन को उठाकर ले गया...
"अब यूँ मुँह लटकाए क्यूँ बैठे हो यार.. जो कुच्छ हुआ उसका हम सबको अफ़सोस है.. पर हम कर ही क्या सकते थे? गनीमत है कि उस नितिन की असलियत बेपर्दा हो गयी.. दोस्ती के नाम पर कलंक था वो!" अमन ने रोहन के पास बैठ उसके कंधे पर हाथ रख लिया..
"सॉरी यार! मेरी वजह से तुम्हे ये दिन देखना पड़ा.. थाने तक जाना पड़ा. मैं माफी चाहता हूँ.." रोहन ने कंधे पर रखा अमन का हाथ पकड़ लिया..
"अबे साले.. देखा शेखर! अब ये हमें भी नितिन जैसा समझ रहा है.. ये बात कहकर तो तुमने हमें गाली सी दे दी.. हमारा क्या घिस गया..? सच्चाई ही सामने आई ना.. चल छ्चोड़, तुझे स्पेशल चाय पिलाता हूँ पंजाब वाली..सारी टेन्षन दूर हो जाएगी.. अबे राजू! साले चुगलखोर!" अमन ने राजू को आवाज़ लगाई...
पर राजू वहाँ होता तो मिलता!
"लगता है डर के मारे भाग गया साला! वैसे काम बंदे ने एक नंबर. का कर दिया.. अगर वो पोलीस को नही बुलाता तो हम तो यही समझते रहते कि श्रुति... " बात को पूरी किए बिना ही अमन आगे बोला," और नितिन सॉफ सॉफ बच जाता.. फिर जाने क्या तिकड़म खेलता तुम्हारे साथ.. खैर तू बैठ.. मैं चाय बनाकर लाता हूँ..!"
अमन कहकर उठने लगा तो शेखर खड़ा हो गया,"तुम लोग बातें करो.. मैं अपने हाथ का कमाल दिखाता हूँ आज.." और किचन की तरफ चला गया...
"फिर अब क्या सोचा है?" अमन वापस उसके पास बैठते हुए बोला.. रवि का दिमाग़ बहुत ज़्यादा खराब था.. पास ही सोफे पर पसरा हुआ वो अपने चेहरे को रुमाल से ढके लेटा हुआ सा था....
"अब करने को बचा ही क्या है? श्रुति के पापा को बताना पड़ेगा..." रोहन की आँखें भर आई..," फिर वही जिंदगी काटनी है यार... सुबह कॉलेज.. शाम को घर!"
"क्यूँ? अपनी नीरू को भूल जाएगा क्या? उसको ऐसे ही तड़पति रहने देगा अब?" अमन को लगा जैसे वह नीरू को तो भूल ही गया है..
"अब सोचने को क्या बचा यार.. अब तो सब सॉफ हो ही गया कि ये नितिन की साज़िश थी.. सपने भी उसी की वजह से आते होंगे..." रोहन ने यूँही मुँह लटकाए हुए कहा...
रवि उसकी बात सुनते ही उच्छल बैठा,"अबे साले.. मुझे डमरू कहता है; खुद तूने कभी दिमाग़ का यूज़ किया है कि नही.. या वो है ही नही तेरे अंदर.. नितिन ने साज़िश तेरे उसको सपने के बारे में बताने के बाद शुरू की.. श्रुति की बात साज़िश हो सकती है.. उसके सपनों की बात झूठी हो सकती है.. हो क्या सकती है, झूठी ही थी... पर तेरे सपने तो किसी की साज़िश नही है ना.. वो तो सच ही हैं.. और जो घर तू सपने में देखता था.. वैसा ही घर तू नीरू का बता रहा है.. अब तो ये सॉफ हो गया ना कि यही वो लड़की है जिसका तुझसे जनम जनम का संबंध है.. कहाँ से सोच रहा है तू.."
"हां.. यार.. मेरा तो कल से दिमाग़ ही खराब है.. आक्च्युयली सुबह ये सब देखने के बाद कुच्छ और सोच ही नही पाया.. जो कल रात को सोच रहा था वही अब तक सोच रहा हूँ.. इसका मतलब 'नीरू' है!" रोहन की आँखों में हल्की सी चमक आ गयी...
"नही नही.. नीरू कहाँ है..!" रवि मुँह कड़वा सा करके बोला," मैने तुझे कल भी बोला था.. कि मुझे नितिन के मन में खोट लग रहा है.. पर तूने मेरी बात सुनी ही नही.. नितिन के कहानी में इतना इंटेरेस्ट लेने की जो बात इनस्पेक्टर कह रहा था.. वही बात तुझसे मैं करना चाहता था.. इन्फेक्ट वो मुझे मार्केट में जब कहानी बता रहा था.. तभी मुझे शक हो गया था कि नितिन झूठ बोल रहा है.. और झूठ भी अपनी मर्ज़ी से.. पर यहाँ सुनता कौन है मेरी.. चली गयी ना बेचारी श्रुति!" रवि की आँखें लाल हो गयी...
"छ्चोड़ो यार! जो हुआ सो हुआ!" अमन ने रवि को शांत करने की कोशिश की...
"ऐसे कैसे छ्चोड़ सकते हैं मिस्टर. अमन!" कमरे में इनस्पेक्टर मानव ने प्रवेश किया तो तीनो चौंक कर खड़े हो गये..," आइए इनस्पेक्टर साहब!" अमन उसका स्वागत सा करता हुआ बोला...
"लेटर पढ़ कर मेरा दिमाग़ खराब हो गया है.. इसीलिए मुझे यहाँ आना पड़ा.. सॉरी!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा..
"अरे जब चाहिए आइए.. आपका ही घर है.. पर आप तो कह रहे थे कि लेटर नही था.. सिर्फ़ एक कोरा कागज ही था जो आप हमारे सामने पढ़ रहे थे..!" अमन ने उत्सुक होकर पूचछा...
तभी कमरे में ट्रे उठाए हुए शेखर ने प्रवेश किया.. इनस्पेक्टर को बैठे देख एक बार उसके कदम ठितके.. फिर चुपचाप आकर टेबल पर चाय रख दी..
"थॅंक्स! बड़ी देर से इच्च्छा हो रही थी... राजू भाग गया क्या?" मानव ने एक कप उठाते हुए शेखर के चेहरे की और देखकर कहा...
"जी.. उसने सोचा होगा कि.." अमन अपनी बात पूरी करता इस'से पहले ही इनस्पेक्टर बोल पड़ा," डॉन'ट वरी.. शाम तक वापस आ जाएगा.. वैसे तुम सब को तो खुशी ही हो रही होगी कि नितिन की असलियत का पता लग गया...
"जी बिल्कुल!" इस बार रोहन बोला," पर वो लेटर के बारे में आप क्या कह रहे हो..."
"हुम्म.. दरअसल जो लेटर श्रुति ने लिखा था, वो हमें नितिन की तलाशी लेते हुए उसकी जेब से मिला.. ये लो.. पढ़ो ज़रा लेटर को.. उस की कॉपी है.." मानव ने लेटर रोहन को पकड़ा दिया...
छ्होटा छ्होटा लिखा हुआ था.. शायद कागज श्रुति के पास कम था... रोहन उसमें आँखें जमाकर उसको बोल कर पढ़ने लगा..
------------------------------------------
"रोहन!
सुबह जब आप सोकर उठेंगे तो मैं इस दुनिया में आपको नही मिलूंगी. निहायत ही शर्मनाक हरकत की मैने आपके साथ; मेरा भी दिल रो रहा था उस वक़्त. प्लीज़ मुझे माफ़ कर देना. सब मेरी मजबूरी थी. मजबूरी भी ऐसी की बता नही सकती. वरना मेरे 'बापू' जीते जी मर जाएँगे. पर मैं आपसे बे-इंतहा प्यार करती हूँ, और आपकी नज़रों का अब सामना नही कर सकती. इसीलिए दुनिया छ्चोड़ कर जा रही हूँ.
हो सके तो मेरे बापू के पास चले जाना. जीते जी मैने कोई ऐसा काम अपनी मर्ज़ी से नही किया जो उनके मान सम्मान को ठेस पहुँचाए. मरने के बाद 'कोई' मुझे बदनाम कर सकता है. हो सके तो उनको संभाल लेना!
कहते हैं कि भगवान की मर्ज़ी के बिना तो पत्ता भी नही हिलता. भगवान मिलेंगे तो उनसे कुच्छ बातें पूच्हूँगी. मेरे साथ ऐसा क्यूँ हुआ? कौन्से कर्मों की सज़ा मिली मुझे? मैने तो कभी किसी की तरफ नज़र उठाकर भी नही देखा, किसी के बारे में सोचा तक नही, सिवाय आपके. फिर मुझे आप के सामने ही जॅलील क्यूँ करवाया? क्यूँ नही उन्होने पहले ही मुझे उठा लिया अपनी गोद में.. उन्होने ये 'प्यार' बनाया ही क्यूँ? और बनाया भी तो हर बार अधूरा ही क्यूँ छ्चोड़ दिया, क्यूँ नही मिलने देते वो प्यार करने वालों को..?
फिर प्रार्थना करूँगी उनसे.. इस जनम में नीरू का प्यार उसको दे दें. और अगले जनम में मुझे मेरा अधूरा प्यार!
तुम्हारी हो चुकी हूँ, इंतजार करूँगी; अगले जनम में!
श्रुति"
-------------------------------------------------------
सभी की आँखें नाम हो गयी थी.. सिवाय मानव के," तुम श्रुति से कितनी बार मिले थे रोहन?"
"जी, बस दो बार.. एक बार उसके घर पर, और एक बार कल रात को!" रोहन ने रुमाल निकाल अपनी आँखें पौंचछते हुए कहा....
"तुम्हारे बीच कुच्छ बातें भी हुई थी क्या? आइ मीन, रोमॅंटिक.. प्यार भरी..!" मानव ने पूचछा...
"जी नही.. जो भी हुई थी, या तो कल दिन में हुई थी.." रोहन कुच्छ देर रुका और फिर फट सा पड़ा,"या फिर रात में.." कहता हुआ रोहन बिलखने लगा.. रात को उसने श्रुति के साथ जैसा व्यवहार किया, उसको याद करके....
"कूल डाउन यार.. लाइफ में सब कुच्छ होता रहता है.. तुम्हारी जगह कोई भी शरीफ इंसान होता, तो वो भी यही करता.. तुम्हे थोड़े ही पता था कि वह मजबूरी में वो सब कर रही है.. पर ये एक ही बात मेरी समझ में नही आई अभी तक! मैं वहीं जान'ने आया हूँ..." मानव ने उसको खुद को संभालने की सलाह दी..
"क्या?" रोहन बोला..
" मैने कभी प्यार किया नही है.. पर जहाँ तक मेरा ख़याल है.. प्यार तो धीरे धीरे होता है.. खास तौर पर इतना प्यार की कोई किसी की नज़रों से गिर जाने पर स्यूयिसाइड ही कर ले.. उसके पास और भी रास्ते थे.. नितिन 'केमरे' में देख ही लेता कि श्रुति ने अपनी तरफ से पूरी कोशिश की.. फिर वह जैसे चल रहा था.. वैसे भी चलने दे सकती थी.. जान देना तो आख़िरी हथियार होता और वो तो कभी भी कर सकती थी.. अगर कोई रास्ता ना बचता तो?" मानव ने कहा," और सबसे खास बात, श्रुति को प्यार कब हो गया रोहन से.. अगर वह इस'से कभी घुली मिली ही नही.. समय नही गुज़ारा साथ!"
इस बार अमन खुद को बोलने से नही रोक सका," सच कह रहे हो इनस्पेक्टर साहब.. 'प्यार' किए बिना पता ही नही चलता कि 'साला' ये होता क्या है.. इत्ता छ्होटा सा नाम है.. पर इसमें रंग इतने भरे हुए हैं कि आदमी सिर्फ़ अपने प्यार को समझ सकता है.. दूसरे के प्यार को नही.. "
"कभी कभी हम सालों साथ रह जाते हैं और पता ही नही चलता की हमें 'प्यार' हो गया है.. जुदा होने के बाद हमें अहसास होता है कि 'उसके' बिना जीना कितना मुश्किल है.. तब हमें पता चलता है कि हमें तो प्यार हो गया था.."
"कभी कभी पहली नज़र में ही हमें प्यार हो जाता है और हम समझ जाते हैं कि 'यही' प्यार है.. बोलना चाहते हैं, पर कभी बोल ही नही पाते.. जाने क्यूँ उसके सामने कभी ज़ुबान ही नही खुलती.. और जब खुलती है तो अलग होना हमारी मजबूरी बन चुका होता है.."
"एक तरफ़ा प्यार भी होता है.. हम पागल होकर किसी के पीछे लग जाते हैं और लाख जतन करके भी उसको अहसास ही नही करा पाते की 'वो' हमारे लिए क्या है.. उसके लिए सब कुच्छ छ्चोड़ देते हैं.. अपनी मंज़िल, मा-बाप के सपने, सब कुच्छ भूल कर सिर्फ़ एक ही चीज़ याद रहती है,'उसका नाम!' अपना सब कुच्छ बर्बाद करने के बाद भी हमें कभी पचहतावा नही होता कि उसने हमारे प्यार को तवज्जो नही दी.. और छ्चोड़ कर चली गयी..."
"कभी कभी 'उसकी' नफ़रत से भी हमें प्यार हो जाता है.. और हम सामने वाले पर उसकी नफ़रत के बावजूद उस पर जान लुटाने को तैयार रहते हैं.. 'पतंगा' क्या अग्नि से निकलने वाली आँच महसूस करके झुलस्ता नही होगा.. पर फिर भी वो 'उसमें' जान दिए बगैर मानता नही.. ये भी प्यार ही है.."
"श्रुति का प्यार रोहन की नफ़रत से ही पैदा हुआ होगा.. इसकी ऐसी नफ़रत जिसने रोहन के व्यक्तिताव को उसकी नज़रों में कहीं ऊँचा उठा दिया.. इसने उसके खुद को इसको सौंपने पर भी 'प्यार' नाम की कद्र रखी.. और उसको हाथ नही लगाया... वह आई यहाँ मजबूरी में थी.. पर रोहन की इंसानियत देख वह इस पर मर मिटी.. उसने दोनो तरह के लोग देख लिए; नितिन जैसे भी और फिर रोहन जैसे भी.. प्यार होता कैसे नही रोहन से!"
"प्यार..." अमन बिना रुके बोलता ही जा रहा था कि मानव ने उसको टोक दिया," तुमने 'प्यार' में पीएचडी कर रखी है क्या? या कोई 'लोवेगुरू' हो?"
"नही इनस्पेक्टर साहब! प्यार का कोई गुरु कैसे हो सकता है. प्यार ही पैदा करता है और प्यार ही जान ले लेता है.. प्यार ही सब कुच्छ सिखाता है और प्यार ही सब कुच्छ भूलने पर मजबूर करता है.. प्यार ही आदमी को खड़ा करता है और प्यार ही गिरा देता है.. सारी दुनिया उसकी गुलाम है.. सारी दुनिया उसके ही कारण चल रही है.. प्यार ही सबका गुरु है..." अमन ने गहरी साँस छ्चोड़ी...
"उफ़फ्फ़.. मैं तो तुम्हे ऐसे ही समझ रहा था यार.. तुम तो कमाल हो.. माइ नेम ईज़ मानव, नाइस टू मीट यू ब्रो!" मानव ने अमन की और हाथ बढ़ाते हुए कहा.. अमन ने दोनो हाथों में उसका हाथ पकड़ लिया...
"अब चलने का टाइम हो गया भाई.. जल्द ही मिलूँगा तुमसे.. मुझे भी प्यार करके देखना है यार.. हा हा हा" मानव ने कहा और बाहर निकल गया...
कहानी जारी है.................................
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी
अधूरा प्यार--13 एक होरर लव स्टोरी
गतांक से आगे ..........................................
"अरे शीनू! आज कॉलेज नही जाना क्या?" मम्मी ने नीचे से आवाज़ लगाई...
"जा रही हूँ मम्मी जी! बस ऋतु आ जाए एक बार!" नीरू ने उपर से ही आवाज़ लगाकर जवाब दिया और परदा हटाकर सामने सड़क की और देखा. ऋतु का घर सामने वाली गली में कुच्छ घर छ्चोड़ कर ही था. उसे जब ऋतु आती नही दिखाई तो सीढ़ियों से तेज़ी से उतरती हुई नीचे आई और ऋतु के घर फोन मिलाया,"हेलो, नमस्ते आंटिजी!"
"नमस्ते बेटी!" फोन पर शायद ऋतु की मम्मी थी..
"आई नही ऋतु अभी तक.. मैं वेट कर रही हूँ उसका.." नीरू ने पूचछा...
"बस अभी अभी निकली है बेटी.. देख.. पहुँच गयी होगी.." उधर से जवाब मिला ही था कि डोर बेल बज उठी.
"लगता है आ गयी.. अच्च्छा आंटीजी!" कहकर नीरू ने फोन रखा और अपनी किताबें उठा कर बाहर की ओर निकल गयी.. ऋतु दरवाजे पर ही खड़ी उसका इंतजार कर रही थी..
"कर दिया ना क्लास से लेट.. क्या कर रही थी अभी तक तू?" नीरू ने बाहर निकलते ही ऋतु से शिकायती लहजे में कहा..
"अरे मैं आई थी यार.. तुझे पता है.. वो दोनो आज फिर चौंक पर खड़े थे.. मैं वापस चली गयी.. खम्खा आज फिर पंगा खड़ा कर देते.. कोई भरोसा नही उस बंदर का..." ऋतु ने नीरू के साथ साथ चलते हुए मुँह सा बनाकर कहा..
"कौन दोनो? किसकी बात कर रही है तू?" नीरू ने आस्चर्य से पूचछा...
"अरे वही यार.. जिनका फोन गुम गया था बस में.. आज फिर यहाँ आए हुए थे.. पता नही क्या प्राब्लम है..?" ऋतु ने जवाब देते हुए कॉलेज के सामने वाली सड़क पार करने के लिए दोनो और देखा," ओह माइ गोड! वो खड़े दोनो.. चल सीधी चल.. !"
दोनों ने तेज़ी से सड़क पार की और कॉलेज में घुस गयी...
"नीरू को नज़र भर देख लेने से ही मेरी सारी थकान मिट गयी यार" रोहन ने कलेजे पर हाथ रखते हुए रवि को कहा...
"तू थकान मिटाने आया था या बात करने.. अगर तू यूँही 50 गज दूर खड़ा होकर उसके खुद तेरे पास आने का इंतजार करता रहा ना तो इस जनम में भी बेचारी यूँही चली जाएगी.. मैने कहा था ना गेट पर खड़ा होने के लिए.. तब तो तेरी फट गयी..." रवि उसको खींचते हुए गेट की तरफ ले गया....
" पर यार, ये अच्च्छा नही लगता.. समझा कर.. अमन ने बोला है ना गौरी को.. वो कर लेगी बात!" रोहन ने उसको वापस खींच लिया..," चल चलते हैं वापस!"
"अरे शीनू! तू अब आई है.. तुझे कोई पूछ रहा था..." उनको देखकर एक लड़की उनके पास आ गयी....
"कौन? और तू बाहर क्या कर रही है.. क्लास में नही गयी क्या?" नीरू ने सामने से आ रही लड़की को देखकर पूचछा...
"गयी थी यार.. सिर्फ़ 1 मिनिट लेट थी, सर ने निकल दिया.. तुम भी मत जाना.. कोई फायडा नही अब!" लड़की ने जवाब दिया..
उन्न दोनो का मुँह लटक गया.. साथ वाले पार्क में बैठते ही नीरू ने पूचछा..," कौन पूच्छ रहा था मुझे..?"
"पता नही यार.. कोई अंजान लड़की थी.. पहले नीरू करके पूचछा.. फिर शीनू करके.. नीरू भी तेरा ही नाम है क्या?" लड़की ने जवाब देकर सवाल किया....
"नही! मेरा नाम शीनू ही है..!" नीरू ने कहते हुए पूचछा," कॉलेज की नही थी क्या?"
"कॉलेज की होती तो मैं पहचान ही ना लेती.. कोई बाहर से आई थी.. तुम्हारा घर भी पूच्छ रही थी.. मैने बता दिया... शायद इस शहर की ही नही थी वो.. हरयाणा साइड का पुट था आवाज़ में...!"
"कौन हो सकती है ?" नीरू दिमाग़ पर ज़ोर लगाकर सोचने ही लगी थी कि एक और लड़की सामने से उनकी और ही आ रही थी..," हाई!"
"हाई सोना! क्या हाल हैं?" ऋतु और नीरू ने लगभग एक साथ पूचछा..
"मैं तो ठीक हूँ.. 'वो मिली क्या?" सोना ने उनके पास बैठते हुए कहा...
"कौन?" ऋतु ने पूचछा..
"पता नही.. एक सुंदर सी लड़की सुबह सुबह तुम्हे पूछ्ति फिर रही थी.." सोना ने जवाब दिया...
नीरू अपनी उंगली को दाँतों के बीच दे कर अपने नाख़ून कुतरने लगी और अपनी आँखों को सोचने के अंदाज में चौड़ी कर लिया..," हद है यार.. कौन हो सकती है..?"
"तू छ्चोड़ ना.. जो कोई भी होगी.. घर बता दिया ना उसने!" ऋतु ने नीरू के सिर पर हाथ मारा..
"आ शीनू! इधर आना एक बार!" कॉलेज के अंदर की तरफ से आ रही शिल्पा ने उनसे थोड़ा दूर खड़े होकर ही नीरू को पुकारा..
"हुम्म.. आ रही हूँ!" नीरू ने कॉपी उठाई और शिपा के पास आकर खड़ी हो गयी..," अब तू भी ये मत कहना कि मुझे कोई ढूँढ रही थी.."
"हाँ.. पर तुझे कैसे पता?" शिल्पा ने पलट कर कहा...
"बस पता लग गया.. हर किसी से उसने ये बात पूछि है शायद! चल छ्चोड़.. कुच्छ और भी काम था क्या?"
"हाँ.. तेरे पास टाइम है ना?" शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ कर कहा...
"हां बोल! ये पीरियड तो खाली ही समझ!" नीरू ने कहा और उसके साथ साथ चलने लगी....
"तेरा नाम नीरू भी है ना?" शिपा ने यहीं से बात शुरू की...
"कितनी बार कहूँ यार.. कोई मुझे नीरू ना कहा करो.. मेरा नाम शीनू है शीनू!" नीरू चिड सी गयी...
"गुस्सा क्यूँ होती है? तुझे पसंद नही तो कॉपी पर क्यूँ लिखा हुआ है?" शिल्पा ने कॉपी पर लिखे नाम की और इशारा किया...
"हे भगवान! ये किसने लिख दिया...? नीरू ने झट से पेन निकाला और पूरे नाम को मिटा दिया..," मेरे साथ ऐसा मज़ाक मत किया करो यार.. प्लीज़!"
"मैने क्या किया है शीनू? मैने तो सिर्फ़ लिखा दिखाया है.. 'वो लड़की भी पहले नीरू ही पूच्छ रही थी.. जब मेरी समझ में नही आया तो उसने शीनू कहा.. घर पूच्छ रही थी तेरा.. पर मुझे पता ही नही था.. खैर मुझे तुझसे कोई और बात करनी है..!" शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ा और पार्क के एक कोने में अपने सटक उसको भी बिठा लिया...
"बोल!" नीरू का मूड खराब हो गया था...
" देख मुझे पता है तुझे ये सब पसंद नही.. फिर भी, सुन लेना पूरी बात.. बीच में उठकर मत भागना.." शिल्पा ने भूमिका बाँधी...
"ऐसी क्या बात है? बोल ना!" नीरू ने उत्सुकतावश उसकी तरफ देखा...
" वो....... कोई तेरे लिए 500 किलोमीटर से चलकर आया है.. पूरी बात सुन लेगी ना!"
"कौन आया है? क्या कह रही है तू.. अब पहेलियाँ मत बुझा.. जो बोलना है.. एक लाइन में बोल दे..." नीरू बात जान'ने के लिए जिगयासू सी हो गयी...
"रोहन! बहुत प्यार करता है तुझसे... सुन तो!" उठकर भाग रही नीरू का हाथ पकड़कर शिल्पा ने वापस खींच लिया," मैने पहले ही कहा था कि तू पूरी बात सुन लेना एक बार! फिर तेरी मर्ज़ी है..."
"और कोई भी बात कर ले.. पर ये बकवास बातें मुझे पसंद नही.. क्या होता है प्यार? 500 किलोमीटर दूर से किसी को मुझसे प्यार हो गया.. उसको कोई सपना आया था क्या मेरा!" नीरू ने व्यंग्य किया...
"हां.. सपने ही आते हैं उसको तेरे.. तभी आया है वो यहाँ पर.. पता है तुझे या सब अच्च्छा क्यूँ नही लगता? तेरे सीने में दिल नही है.. इसीलिए!" शिल्पा ने सपस्ट करने की कोशिश की....
"हा हा हा हा.. मेरे सीने में दिल नही है.. व्हाट ए जोक यार.. फिर मैं जिंदा कैसे हूँ.. ये क्या धड़क रहा है मेरे दिल में..." नीरू ने अपना दायां हाथ सीने पर रखकर अपनी धड़कन को महसूस किया..,"आज तो फर्स्ट एप्रिल भी नही है.. फिर क्या इरादा है तेरा.." नीरू अब तक हंस रही थी...
"तू मेरी बात को सीरीयस क्यूँ नही ले रही...!" शिल्पा ने नीरू के दोनो कंधे पकड़े और उसको झकझोर दिया...
"क्या सीरीयस लूँ यार तेरी बातों को.. कौनसी शदि में जी रही है तू.. अब ये कोई बात हुई की मेरे सीने में दिल नही है... 500 किलोमीटर दूर बैठे किसी को मेरे सपने आते हैं.. उसको मुझसे प्यार हो गया है.. हा!" नीरू उसकी बातों से चिदती हुई बोली...
"यार, दिल से मेरा मतलब फीलिंग्स से है.. तू एक बार उस'से मिल ले बस! तुझे सब समझ आ जाएगा...!" शिल्पा ने ज़ोर देकर कहा....
" किस'से मिल लूँ? कहाँ मिल लूँ?" नीरू ने मजबूर होकर कहा...
"आ.. मेरे साथ तू एक बार कॉलेज के गेट तक आ!" शिल्पा नीरू को उठाकर लगभग ज़बरदस्ती खींचती हुई कॉलेज के गेट पर ले गयी.. रोहन और रवि को जैसे ही नीरू ने अपनी और आते देखा.. उसकी घिग्गी बँध गयी.. अपना हाथ छुड़ाकर भागती हुई वापस अंदर आई और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी....
"क्या हुआ? तू भाग क्यूँ आई..?" शिल्पा उसके पिछे पिछे आई और गुस्से से उसको देखने लगी....
"ये..." नीरू अब भी ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी..," इसको आते हैं मेरे सपने.. अरे तेरा उल्लू बना दिया... इनको हम बस में मिले थे..अमृतसर से आते हुए.. तब से पिछे पड़ें हैं.. हा हा हा हा..."
कहानी जारी है...............................
गतांक से आगे ..........................................
"अरे शीनू! आज कॉलेज नही जाना क्या?" मम्मी ने नीचे से आवाज़ लगाई...
"जा रही हूँ मम्मी जी! बस ऋतु आ जाए एक बार!" नीरू ने उपर से ही आवाज़ लगाकर जवाब दिया और परदा हटाकर सामने सड़क की और देखा. ऋतु का घर सामने वाली गली में कुच्छ घर छ्चोड़ कर ही था. उसे जब ऋतु आती नही दिखाई तो सीढ़ियों से तेज़ी से उतरती हुई नीचे आई और ऋतु के घर फोन मिलाया,"हेलो, नमस्ते आंटिजी!"
"नमस्ते बेटी!" फोन पर शायद ऋतु की मम्मी थी..
"आई नही ऋतु अभी तक.. मैं वेट कर रही हूँ उसका.." नीरू ने पूचछा...
"बस अभी अभी निकली है बेटी.. देख.. पहुँच गयी होगी.." उधर से जवाब मिला ही था कि डोर बेल बज उठी.
"लगता है आ गयी.. अच्च्छा आंटीजी!" कहकर नीरू ने फोन रखा और अपनी किताबें उठा कर बाहर की ओर निकल गयी.. ऋतु दरवाजे पर ही खड़ी उसका इंतजार कर रही थी..
"कर दिया ना क्लास से लेट.. क्या कर रही थी अभी तक तू?" नीरू ने बाहर निकलते ही ऋतु से शिकायती लहजे में कहा..
"अरे मैं आई थी यार.. तुझे पता है.. वो दोनो आज फिर चौंक पर खड़े थे.. मैं वापस चली गयी.. खम्खा आज फिर पंगा खड़ा कर देते.. कोई भरोसा नही उस बंदर का..." ऋतु ने नीरू के साथ साथ चलते हुए मुँह सा बनाकर कहा..
"कौन दोनो? किसकी बात कर रही है तू?" नीरू ने आस्चर्य से पूचछा...
"अरे वही यार.. जिनका फोन गुम गया था बस में.. आज फिर यहाँ आए हुए थे.. पता नही क्या प्राब्लम है..?" ऋतु ने जवाब देते हुए कॉलेज के सामने वाली सड़क पार करने के लिए दोनो और देखा," ओह माइ गोड! वो खड़े दोनो.. चल सीधी चल.. !"
दोनों ने तेज़ी से सड़क पार की और कॉलेज में घुस गयी...
"नीरू को नज़र भर देख लेने से ही मेरी सारी थकान मिट गयी यार" रोहन ने कलेजे पर हाथ रखते हुए रवि को कहा...
"तू थकान मिटाने आया था या बात करने.. अगर तू यूँही 50 गज दूर खड़ा होकर उसके खुद तेरे पास आने का इंतजार करता रहा ना तो इस जनम में भी बेचारी यूँही चली जाएगी.. मैने कहा था ना गेट पर खड़ा होने के लिए.. तब तो तेरी फट गयी..." रवि उसको खींचते हुए गेट की तरफ ले गया....
" पर यार, ये अच्च्छा नही लगता.. समझा कर.. अमन ने बोला है ना गौरी को.. वो कर लेगी बात!" रोहन ने उसको वापस खींच लिया..," चल चलते हैं वापस!"
"अरे शीनू! तू अब आई है.. तुझे कोई पूछ रहा था..." उनको देखकर एक लड़की उनके पास आ गयी....
"कौन? और तू बाहर क्या कर रही है.. क्लास में नही गयी क्या?" नीरू ने सामने से आ रही लड़की को देखकर पूचछा...
"गयी थी यार.. सिर्फ़ 1 मिनिट लेट थी, सर ने निकल दिया.. तुम भी मत जाना.. कोई फायडा नही अब!" लड़की ने जवाब दिया..
उन्न दोनो का मुँह लटक गया.. साथ वाले पार्क में बैठते ही नीरू ने पूचछा..," कौन पूच्छ रहा था मुझे..?"
"पता नही यार.. कोई अंजान लड़की थी.. पहले नीरू करके पूचछा.. फिर शीनू करके.. नीरू भी तेरा ही नाम है क्या?" लड़की ने जवाब देकर सवाल किया....
"नही! मेरा नाम शीनू ही है..!" नीरू ने कहते हुए पूचछा," कॉलेज की नही थी क्या?"
"कॉलेज की होती तो मैं पहचान ही ना लेती.. कोई बाहर से आई थी.. तुम्हारा घर भी पूच्छ रही थी.. मैने बता दिया... शायद इस शहर की ही नही थी वो.. हरयाणा साइड का पुट था आवाज़ में...!"
"कौन हो सकती है ?" नीरू दिमाग़ पर ज़ोर लगाकर सोचने ही लगी थी कि एक और लड़की सामने से उनकी और ही आ रही थी..," हाई!"
"हाई सोना! क्या हाल हैं?" ऋतु और नीरू ने लगभग एक साथ पूचछा..
"मैं तो ठीक हूँ.. 'वो मिली क्या?" सोना ने उनके पास बैठते हुए कहा...
"कौन?" ऋतु ने पूचछा..
"पता नही.. एक सुंदर सी लड़की सुबह सुबह तुम्हे पूछ्ति फिर रही थी.." सोना ने जवाब दिया...
नीरू अपनी उंगली को दाँतों के बीच दे कर अपने नाख़ून कुतरने लगी और अपनी आँखों को सोचने के अंदाज में चौड़ी कर लिया..," हद है यार.. कौन हो सकती है..?"
"तू छ्चोड़ ना.. जो कोई भी होगी.. घर बता दिया ना उसने!" ऋतु ने नीरू के सिर पर हाथ मारा..
"आ शीनू! इधर आना एक बार!" कॉलेज के अंदर की तरफ से आ रही शिल्पा ने उनसे थोड़ा दूर खड़े होकर ही नीरू को पुकारा..
"हुम्म.. आ रही हूँ!" नीरू ने कॉपी उठाई और शिपा के पास आकर खड़ी हो गयी..," अब तू भी ये मत कहना कि मुझे कोई ढूँढ रही थी.."
"हाँ.. पर तुझे कैसे पता?" शिल्पा ने पलट कर कहा...
"बस पता लग गया.. हर किसी से उसने ये बात पूछि है शायद! चल छ्चोड़.. कुच्छ और भी काम था क्या?"
"हाँ.. तेरे पास टाइम है ना?" शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ कर कहा...
"हां बोल! ये पीरियड तो खाली ही समझ!" नीरू ने कहा और उसके साथ साथ चलने लगी....
"तेरा नाम नीरू भी है ना?" शिपा ने यहीं से बात शुरू की...
"कितनी बार कहूँ यार.. कोई मुझे नीरू ना कहा करो.. मेरा नाम शीनू है शीनू!" नीरू चिड सी गयी...
"गुस्सा क्यूँ होती है? तुझे पसंद नही तो कॉपी पर क्यूँ लिखा हुआ है?" शिल्पा ने कॉपी पर लिखे नाम की और इशारा किया...
"हे भगवान! ये किसने लिख दिया...? नीरू ने झट से पेन निकाला और पूरे नाम को मिटा दिया..," मेरे साथ ऐसा मज़ाक मत किया करो यार.. प्लीज़!"
"मैने क्या किया है शीनू? मैने तो सिर्फ़ लिखा दिखाया है.. 'वो लड़की भी पहले नीरू ही पूच्छ रही थी.. जब मेरी समझ में नही आया तो उसने शीनू कहा.. घर पूच्छ रही थी तेरा.. पर मुझे पता ही नही था.. खैर मुझे तुझसे कोई और बात करनी है..!" शिल्पा ने उसका हाथ पकड़ा और पार्क के एक कोने में अपने सटक उसको भी बिठा लिया...
"बोल!" नीरू का मूड खराब हो गया था...
" देख मुझे पता है तुझे ये सब पसंद नही.. फिर भी, सुन लेना पूरी बात.. बीच में उठकर मत भागना.." शिल्पा ने भूमिका बाँधी...
"ऐसी क्या बात है? बोल ना!" नीरू ने उत्सुकतावश उसकी तरफ देखा...
" वो....... कोई तेरे लिए 500 किलोमीटर से चलकर आया है.. पूरी बात सुन लेगी ना!"
"कौन आया है? क्या कह रही है तू.. अब पहेलियाँ मत बुझा.. जो बोलना है.. एक लाइन में बोल दे..." नीरू बात जान'ने के लिए जिगयासू सी हो गयी...
"रोहन! बहुत प्यार करता है तुझसे... सुन तो!" उठकर भाग रही नीरू का हाथ पकड़कर शिल्पा ने वापस खींच लिया," मैने पहले ही कहा था कि तू पूरी बात सुन लेना एक बार! फिर तेरी मर्ज़ी है..."
"और कोई भी बात कर ले.. पर ये बकवास बातें मुझे पसंद नही.. क्या होता है प्यार? 500 किलोमीटर दूर से किसी को मुझसे प्यार हो गया.. उसको कोई सपना आया था क्या मेरा!" नीरू ने व्यंग्य किया...
"हां.. सपने ही आते हैं उसको तेरे.. तभी आया है वो यहाँ पर.. पता है तुझे या सब अच्च्छा क्यूँ नही लगता? तेरे सीने में दिल नही है.. इसीलिए!" शिल्पा ने सपस्ट करने की कोशिश की....
"हा हा हा हा.. मेरे सीने में दिल नही है.. व्हाट ए जोक यार.. फिर मैं जिंदा कैसे हूँ.. ये क्या धड़क रहा है मेरे दिल में..." नीरू ने अपना दायां हाथ सीने पर रखकर अपनी धड़कन को महसूस किया..,"आज तो फर्स्ट एप्रिल भी नही है.. फिर क्या इरादा है तेरा.." नीरू अब तक हंस रही थी...
"तू मेरी बात को सीरीयस क्यूँ नही ले रही...!" शिल्पा ने नीरू के दोनो कंधे पकड़े और उसको झकझोर दिया...
"क्या सीरीयस लूँ यार तेरी बातों को.. कौनसी शदि में जी रही है तू.. अब ये कोई बात हुई की मेरे सीने में दिल नही है... 500 किलोमीटर दूर बैठे किसी को मेरे सपने आते हैं.. उसको मुझसे प्यार हो गया है.. हा!" नीरू उसकी बातों से चिदती हुई बोली...
"यार, दिल से मेरा मतलब फीलिंग्स से है.. तू एक बार उस'से मिल ले बस! तुझे सब समझ आ जाएगा...!" शिल्पा ने ज़ोर देकर कहा....
" किस'से मिल लूँ? कहाँ मिल लूँ?" नीरू ने मजबूर होकर कहा...
"आ.. मेरे साथ तू एक बार कॉलेज के गेट तक आ!" शिल्पा नीरू को उठाकर लगभग ज़बरदस्ती खींचती हुई कॉलेज के गेट पर ले गयी.. रोहन और रवि को जैसे ही नीरू ने अपनी और आते देखा.. उसकी घिग्गी बँध गयी.. अपना हाथ छुड़ाकर भागती हुई वापस अंदर आई और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी....
"क्या हुआ? तू भाग क्यूँ आई..?" शिल्पा उसके पिछे पिछे आई और गुस्से से उसको देखने लगी....
"ये..." नीरू अब भी ज़ोर ज़ोर से हंस रही थी..," इसको आते हैं मेरे सपने.. अरे तेरा उल्लू बना दिया... इनको हम बस में मिले थे..अमृतसर से आते हुए.. तब से पिछे पड़ें हैं.. हा हा हा हा..."
कहानी जारी है...............................
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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