धन्यवाद दोस्तो
मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है complete
- rajsharma
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
गुल नवाज़ मेरी ज़ुबान को चूसे जा रहा था और उस के हाथ मेरी पीठ पर चल रहे थे. उस ने मुझे अपने हाथों में कस लिया जिस की वजह से में उस के साथ एक दम चिपक सी गई.
में गुल नवाज़ से लिपटी हुई उस का गरम बदन और गरम साँसे अपने जिस्म और गर्दन पर महसूस कर रही थी.
इसी दौरान मेरे बदन पर फिरते फिरते गुल नवाज़ का बया हाथ अचानक मेरे बाएँ मम्मे पर आ कर रुक गया.
अपने शोहर का हाथ पहली बार अपनी गुदाज छाती पर महसूस करते ही मेरी तो साँस ही जैसे रुकने लगी.
में पूरी तरह से कांप गई और कसमसा कर मैने गुल नवाज़ से अलग हटने की एक नाकाम सी कोशिश की, पर गुल नवाज़ ने मुझे कस कर दबोचा हुआ था.
गुल नॉवज़ के हाथ मेरी चाहती से खेलने लगे. जिस से में भी शर्मो हया के पर्दे से थोड़ा बाहर निकली और जवानी के सरूर में आते हुए अपनी चूत की गर्मी के हाथो मजबूर हो कर जिसे बहकने ही लगी.
थोड़ी देर के बाद गुल नवाज़ का हाथ मेरे बदन से खेलते खेलते मेरी सलवार के नाडे पर आ गया. और उस ने मेरे लबों को चूमते चाटते एक झटके में ही मेरी सलवार के नाडा को खोल दिया.नाडा खुलते ही मेरी सलवार सरक कर बिस्तर पर गिर गाईए.
इस से पहले के में थोड़ा संभाल पाती दूसरे ही लम्हे गुल नवाज़ ने मेरी कमीज़ भी उतार दी. कमीज़ उतरने की देर थी कि गुल नवाज़ ने अपने हाथों को मेरी कमर के पीछे ले जा कर पीछे से मेरी ब्रेजियर का हुक खोल दिया और एक झटके से मेरी ब्रेजियर को उतार कर फेंक दिया.
जिंदगी में पहली बार यूँ आनन फानन किसी मर्द के हाथों अपने आप को अपने कपड़ों की क़ैद से आज़ाद होते देख कर में तो शरम से लाल हो गयी.
मगर इस शरम के साथ साथ ही मुझ नज़ाने क्यूँ इतना मज़ा भी आया कि इस मज़े और जोश में मुझे अपनी चूत से पानी भी निकलता हुआ महसूस होने लग.
मुझ मुकम्मल नंगा करते ही गुल नवाज़ ने अपने कपड़े भी उतार दिए .गुल नवाज़ को नंगा होते देख कर ,मैने अपनी आँखों के सामने अपना हाथ रख लिया.
मगर गुल नवाज़ ने मेरी आँखों से मेरे हाथ हटा कर मुझे अपनी तरफ देखने पर मजबूर कर दिया.
उस रात जिंदगी में पहली बार मैने एक मर्द का लंड देखा और जिस को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया.
में सोचने लगी कि मेरी चूत का छेद तो बहुत ही छोटा था. एक उंगली तो इस में जा नही पाती ये इतना बड़ा लंड कैसे मेरे अंदर जा पाएगा. ये ही सोच कर मुझ बहुत घबराहट होने लगी और माथे पर पसीना आ गया.
थोड़ी देर तक लालटेन की मध्यम रोशनी में मेरे नंगे जिस्म का जायज़ा लेने के बाद गुल नवाज़ ने आगे बढ़ कर मेरे मम्मो को अपने हाथ में पकड़ कर इतनी ज़ोर से मसला कि मेरे मुँह से "आआआआआआहह हह" निकल गयी.
गुल नवाज़ के हाथों की ये गर्मजोशी मुझ भी गरमा गई.आज पहली बार मेरे बदन से कोई खेल रहा था इस लिए ना चाहते हुए भी मेरा जिस्म गर्म होने लगा.
गुल नवाज़ अपनी उंगली और अंगूठे से मेरे निपल्स को बेदर्दी से मसल्ने लगा. में जोश में एक दम पागल सी हो रही थी. मेरी चूत लगा तार पानी छोड़े जा रही थी.
गुल नवाज़ ने अपना मुँह नीचे मेरी नंगी छातियों की तरफ बढ़ाया और अपने मुँह में मेरा दायां मम्मा ले लिया और बाएँ मम्मे को अपनी मुट्ठी से कस कर दबाने लगा.
"क्या सख़्त और मज़े दार मम्मे हैं तुम्हारे, मेरी रानी." गुल नवाज़ ने ये कहते हुए मेरे दोनो मम्मो को कस कर आपस में जोड़ा और फिर बेखुदी में जज़्बात से बेकाबू होते हुए मेरे दोनो मम्मो के दरमियाँ में अपनी ज़ुबान को फेरने लगा.
मैने भी मस्ती में आते हुए अपनी बाहों से गुल नवाज़ के सिर को पकड़ लिया और अपनी छातियों को उपर की तरफ करने लगी.
मेरी चूत पानी छोड़े जा रही थी...मेरी चूत से टपक टपक पानी बह के बिस्तर की चदार पर जा कर जज़्ब होने लगा ...
गुल नवाज़ के हाथ मेरे जिस से खेलते खेलते मेरी कंवारी चूत पर आ चुके थे.
गुल नवाज़ ने मेरी चूत पर हाथ फेरते हुए फिर अपने हाथ की दरमियानी उंगली मेरी चूत में घुसा दी. "उफफफफफफफफफ्फ़...." में तड़प उठी.
गुल नवाज़ ने अपनी उंगली मेरी चूत में डाल कर उस को आहिस्ता आहिस्ता मेरी फुद्दी के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.
मुझे भी मज़ा आने लगा और में आहें भरने लगी. थोड़ी देर बाद गुल नवाज़ उठा और उस ने मेरे दोनो पैर उठा कर अपने कंधो पर रख लिए.
अब गुल नवाज़ का तना हुआ लंड मेरी चूत से बस एक इंच की ही दूरी पर था.
मेरे शोहर गुल नवाज़ ने मेरी टाँगो को अपने हाथों से पकड़ कर फैलाया और अपने लंड का टोपा मेरी चूत के उपर रख दिया.
गुल नवाज़ के लंड को अपनी चूत से टकराते हुए महसूस कर के मेरी सारे बदन में आग सी लग गई. और मज़े के मारे मेरा बदन जैसे झुरजुरी सी लेने लगा.
तभी गुल नवाज़ ने एक झटका मारा और उस का लंड मेरी कंवारी चूत कर परदा फाड़ता हुआ अंदर घुस गया.
में दर्द से चिल्ला उठी, उईए......आअहह .आहह......... आआहह. मगर अब गुल नवाज़ कब रुकने वाला था. उसे मुझ पर कोई तरस ना आया और वो एक भूके कुत्ते की तरह मेरी बोटी बोटी नोचने लगा.
चूँकि मेरे और गुल नवाज़ के कमरे की दीवार नुसरत और सुल्तान भाई के साथ मिली हुई थी. इस लिए रात के सन्नाटे में साथ वाले मेरे भाई के कमरे से आती हुई हल्की हल्की सिसकियों की आवाज़ों से पता चल रहा था. कि दूसरे कमरे में भी वो ही खेल खेला जा रहा है तो हमारे कमरे में ज़ोरो शोर से जारी था.
में गुल नवाज़ से लिपटी हुई उस का गरम बदन और गरम साँसे अपने जिस्म और गर्दन पर महसूस कर रही थी.
इसी दौरान मेरे बदन पर फिरते फिरते गुल नवाज़ का बया हाथ अचानक मेरे बाएँ मम्मे पर आ कर रुक गया.
अपने शोहर का हाथ पहली बार अपनी गुदाज छाती पर महसूस करते ही मेरी तो साँस ही जैसे रुकने लगी.
में पूरी तरह से कांप गई और कसमसा कर मैने गुल नवाज़ से अलग हटने की एक नाकाम सी कोशिश की, पर गुल नवाज़ ने मुझे कस कर दबोचा हुआ था.
गुल नॉवज़ के हाथ मेरी चाहती से खेलने लगे. जिस से में भी शर्मो हया के पर्दे से थोड़ा बाहर निकली और जवानी के सरूर में आते हुए अपनी चूत की गर्मी के हाथो मजबूर हो कर जिसे बहकने ही लगी.
थोड़ी देर के बाद गुल नवाज़ का हाथ मेरे बदन से खेलते खेलते मेरी सलवार के नाडे पर आ गया. और उस ने मेरे लबों को चूमते चाटते एक झटके में ही मेरी सलवार के नाडा को खोल दिया.नाडा खुलते ही मेरी सलवार सरक कर बिस्तर पर गिर गाईए.
इस से पहले के में थोड़ा संभाल पाती दूसरे ही लम्हे गुल नवाज़ ने मेरी कमीज़ भी उतार दी. कमीज़ उतरने की देर थी कि गुल नवाज़ ने अपने हाथों को मेरी कमर के पीछे ले जा कर पीछे से मेरी ब्रेजियर का हुक खोल दिया और एक झटके से मेरी ब्रेजियर को उतार कर फेंक दिया.
जिंदगी में पहली बार यूँ आनन फानन किसी मर्द के हाथों अपने आप को अपने कपड़ों की क़ैद से आज़ाद होते देख कर में तो शरम से लाल हो गयी.
मगर इस शरम के साथ साथ ही मुझ नज़ाने क्यूँ इतना मज़ा भी आया कि इस मज़े और जोश में मुझे अपनी चूत से पानी भी निकलता हुआ महसूस होने लग.
मुझ मुकम्मल नंगा करते ही गुल नवाज़ ने अपने कपड़े भी उतार दिए .गुल नवाज़ को नंगा होते देख कर ,मैने अपनी आँखों के सामने अपना हाथ रख लिया.
मगर गुल नवाज़ ने मेरी आँखों से मेरे हाथ हटा कर मुझे अपनी तरफ देखने पर मजबूर कर दिया.
उस रात जिंदगी में पहली बार मैने एक मर्द का लंड देखा और जिस को देख कर मेरा मुँह खुला का खुला रह गया.
में सोचने लगी कि मेरी चूत का छेद तो बहुत ही छोटा था. एक उंगली तो इस में जा नही पाती ये इतना बड़ा लंड कैसे मेरे अंदर जा पाएगा. ये ही सोच कर मुझ बहुत घबराहट होने लगी और माथे पर पसीना आ गया.
थोड़ी देर तक लालटेन की मध्यम रोशनी में मेरे नंगे जिस्म का जायज़ा लेने के बाद गुल नवाज़ ने आगे बढ़ कर मेरे मम्मो को अपने हाथ में पकड़ कर इतनी ज़ोर से मसला कि मेरे मुँह से "आआआआआआहह हह" निकल गयी.
गुल नवाज़ के हाथों की ये गर्मजोशी मुझ भी गरमा गई.आज पहली बार मेरे बदन से कोई खेल रहा था इस लिए ना चाहते हुए भी मेरा जिस्म गर्म होने लगा.
गुल नवाज़ अपनी उंगली और अंगूठे से मेरे निपल्स को बेदर्दी से मसल्ने लगा. में जोश में एक दम पागल सी हो रही थी. मेरी चूत लगा तार पानी छोड़े जा रही थी.
गुल नवाज़ ने अपना मुँह नीचे मेरी नंगी छातियों की तरफ बढ़ाया और अपने मुँह में मेरा दायां मम्मा ले लिया और बाएँ मम्मे को अपनी मुट्ठी से कस कर दबाने लगा.
"क्या सख़्त और मज़े दार मम्मे हैं तुम्हारे, मेरी रानी." गुल नवाज़ ने ये कहते हुए मेरे दोनो मम्मो को कस कर आपस में जोड़ा और फिर बेखुदी में जज़्बात से बेकाबू होते हुए मेरे दोनो मम्मो के दरमियाँ में अपनी ज़ुबान को फेरने लगा.
मैने भी मस्ती में आते हुए अपनी बाहों से गुल नवाज़ के सिर को पकड़ लिया और अपनी छातियों को उपर की तरफ करने लगी.
मेरी चूत पानी छोड़े जा रही थी...मेरी चूत से टपक टपक पानी बह के बिस्तर की चदार पर जा कर जज़्ब होने लगा ...
गुल नवाज़ के हाथ मेरे जिस से खेलते खेलते मेरी कंवारी चूत पर आ चुके थे.
गुल नवाज़ ने मेरी चूत पर हाथ फेरते हुए फिर अपने हाथ की दरमियानी उंगली मेरी चूत में घुसा दी. "उफफफफफफफफफ्फ़...." में तड़प उठी.
गुल नवाज़ ने अपनी उंगली मेरी चूत में डाल कर उस को आहिस्ता आहिस्ता मेरी फुद्दी के अंदर बाहर करना शुरू कर दिया.
मुझे भी मज़ा आने लगा और में आहें भरने लगी. थोड़ी देर बाद गुल नवाज़ उठा और उस ने मेरे दोनो पैर उठा कर अपने कंधो पर रख लिए.
अब गुल नवाज़ का तना हुआ लंड मेरी चूत से बस एक इंच की ही दूरी पर था.
मेरे शोहर गुल नवाज़ ने मेरी टाँगो को अपने हाथों से पकड़ कर फैलाया और अपने लंड का टोपा मेरी चूत के उपर रख दिया.
गुल नवाज़ के लंड को अपनी चूत से टकराते हुए महसूस कर के मेरी सारे बदन में आग सी लग गई. और मज़े के मारे मेरा बदन जैसे झुरजुरी सी लेने लगा.
तभी गुल नवाज़ ने एक झटका मारा और उस का लंड मेरी कंवारी चूत कर परदा फाड़ता हुआ अंदर घुस गया.
में दर्द से चिल्ला उठी, उईए......आअहह .आहह......... आआहह. मगर अब गुल नवाज़ कब रुकने वाला था. उसे मुझ पर कोई तरस ना आया और वो एक भूके कुत्ते की तरह मेरी बोटी बोटी नोचने लगा.
चूँकि मेरे और गुल नवाज़ के कमरे की दीवार नुसरत और सुल्तान भाई के साथ मिली हुई थी. इस लिए रात के सन्नाटे में साथ वाले मेरे भाई के कमरे से आती हुई हल्की हल्की सिसकियों की आवाज़ों से पता चल रहा था. कि दूसरे कमरे में भी वो ही खेल खेला जा रहा है तो हमारे कमरे में ज़ोरो शोर से जारी था.
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
उस रात गुल नवाज़ और सुल्तान, दोनो कज़िन्स ने एक दूसरे की बेहन की चूत के कंवारे पन को अपने अपने लंड से फाड़ कर मुझे और नुसरत को एक लड़की से औरत बना दिया.
नुसरत की तरह मेरे लिए भी चुदाई का ये पहला तजर्बा था. मुझ नुसरत का तो पता नही मगर चुदाई के इस खेल में पहले पहले तो मुझ को बहुत दर्द हुआ.
लेकिन फिर जब कुछ देर चुदाई के बाद दर्द जब कम होने लगा तो मैने अपने शोहर गुल नवाज़ की बाहों में अपनी सुहाग रात का खूब मज़ा लिया.
उस दिन के बाद अक्सर रात को गुल नवाज़ और सुल्तान दोनो पी कर घर आते और कमरे में आते ही नशे की हालत में अपनी अपनी बीबीयों पर चढ़ दौड़ते.
एक तो दिन भर बाहर खेतों में काम करने की थकान और दूसरा शराब के असर की वजह से चुदाई सेफ़ारिग होते ही गुल नवाज़ थक कर मेरे पहलू में गिर जाता और दूसरे ही लम्हे उस के खर्राटे मेरे कानू में गूंजने लगते थे.
शादी के ठीक 9 महीने बाद नुसरत ने एक बच्चे को जनम दिया जब कि मेरी कोख अभी तक खाली थी.
ऐसा नही था कि में और गुल नवाज़ बच्चा नही चाहते थे. या बच्चा पैदा करने की कोशिश नही कर रहे थे.
गुल नवाज़ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उन दिनो ही मेरे साथ चुदाई का नागा करता जब मेरी “माहवारी” चल रही होती थी. इस के अलावा तो वो हर रात दिल भर का मुझे चोदता था.
इस दौरान दो साल मज़ीद गुज़र गये और नुसरत ने एक और लड़की को जनम दे दिया.
मगर लगता था कि बच्चों की खुशी अभी मेरे नसीब में नही थी.
शादी के तीन साल बाद…
अब मेरी और नुसरत की उमर 26 साल हो चुकी थी. जब कि मेरे शोहर की उमर अब 27 साल और भाई सुल्तान अब 28 साल का हो चुका था.
में और नुसरत कजिन्स होने के साथ साथ एक दूसरे ही निहायत अच्छी दोस्त तो पहले ही थी. और फिर एक दूसरे की भाभी बनने के बाद हम दोनो एक दूसरे के दुख सुख को मज़ीद अच्छी तरह से समझने लगी थीं.
एक दिन दुपहर को में और नुसरत अकेली सहन में चार पाई पर बैठे इधर उधर की बातें कर रही थीं. जब कि नुसरत के दोनो बच्चे साथ वाली चार पाई पर लेटे सो रहे थे.
“अम्मी जी कोशिस कर रही हैं कि भाई गुल नवाज़ तुम को तलाक़ दे दें” नुसरत ने बातों बातों के दौरान मेरी तरफ बहुत संजीदा अंदाज़ में देखते हुए कहा.
“तलाक़ मगर क्यों”नुसरत की ये बात सुन कर मेरा कलेजा हिल गया और मेरी आँखों में आँसू उमड़ आए.
“क्यों कि तुम्हारी शादी को अब काफ़ी टाइम हो गया है और अभी तक तुम्हारा कोई बच्चा नही हुआ इस लिए” नुसरत ने मुझे जवाब दिया.
“नुसरत मुझे पता है कि तुम्हारे दो बच्चे होने के बाद तुम्हारी अम्मी और मेरी सास मेरे बच्चे ना होने की वजह से परेशान हैं. लेकिन अगर मेरे बच्चे नही हो रहे तो इस में मेरा क्या कसूर है” मैने परेशानी की हालत में अपनी कजिन से कहा.
“रुखसाना तुम को कोई बीमारी तो नही और अगर है तो तुम ने इस के इलाज के लिए कोई दवाई वगेरह ली है” नुसरत ने मुझ से पूछा.
“नही मुझे कोई बीमारी नही क्यों कि मैने गाँव की “दाई” (मिड वाइफ) से अपना मुआईना (चेकप) भी करवाया है और उस की दी हुई दवाई भी इस्तेमाल की है मगर अभी तक उस का कोई असर नही हुआ” मैने जवाब दिया.
“तो फिर क्या वजह है कि तुम अभी तक माँ बनने से महरूम हो?”नुसरत ने सवालिया अंदाज़ में पूछा.
“में तो तुम्हारे भाई को अपने साथ हम बिस्तरी करने से कभी नही रोकती. मगर इस के बावजूद अभी तक बच्चा ना होने की समझ मुझे भी नही” मैने अपनी आँखें झुकाते हुए आहिस्ता से रंजीदा लहजे में अपनी कजिन को जवाब दिया.
“मुझे अंदाज़ा है मेरी बेहन के बच्चे होना या ना होना नसीब की बात है. अब मुझे ही देख लो,हालाँकि में अपने बेटे की पैदाइश के बाद मजीद कोई बच्चा पैदा नही करना चाहती थी.
और इस लिए तुम्हारा भाई मुझ से हम बिस्तरी करते वक़्त “अहतियातन” हमेशा बाहर ही फारिग होता है. मगर शायद तुम्हारे भाई के हर कतरे में इतनी ताक़त है कि बाहर निकालते निकालते भी उस का आख़िरी क़तरा अपना काम कर जाता है और इसका नतीजा “मुन्नी” की शकल में तुम्हारे सामने माजूद है”.
नुसरत ने एक हल्की और शरारती मुस्कुराहट के साथ मेरी तरफ देखते हुए मुझे बताया.
“तुम अभी बच्चे नही चाहती मगर क्यों” मैने हैरानी से नुसरत की तरफ देखते हुए पूछा.
“हाए तुम को तो जैसे पता ही नही मेरी भोली बानो” नुसरत ने मुझे छेड़ते हुए कहा.
“नही मुझे वाकई ही नही अंदाज़ा कि तुम क्यों अभी बच्चे नही चाहती” मैने अंजान बनते हुए दुबारा पूछा.
“वो इस लिए कि में अभी अपनी शादी शुदा जिंदगी के शुरू में तुम्हारे भाई के साथ मज़े करना चाहती हूँ. मगर हर वक़्त हमला (प्रेग्नेंट) होने का ख़ौफ़ मेरे दिमाग़ पर छाया रहता है. जिस की वजह से में तुम्हारे भाई के साथ हम बिस्तरी का पूरा मज़ा नही ले पाती” नुसरत ने मेरी तरफ देखा और हल्के से आँख मारते हुए मेरी बात का जवाब दिया.
“ये अजीब बात है कि एक में हूँ जो हर कीमत पर बच्चा पैदा करना चाहती हूँ और इस लिए अपने शोहर को कभी इनकार नही करती और एक तुम हो कि हमला होने के खोफ़ से ही चुदाई के सही मज़े नही ले पा रही हो.
अगर बच्चा होने का इतना ही डर है तो तुम लोग “साथी” (कॉंडम) इस्तेमाल कर लिया करो”: मैने नुसरत से कहा.
“वो तो तुम्हारा भाई अब इस्तेमाल करता है मगर सच कहूँ मुझे “साथी” के साथ हम बिस्तरी का मज़ा नही आता” नुसरत बोली.
“मगर क्यों” मैने तजसोस करते हुए पूछा.
“ वो इस लिए के मेरा दिल करता है की साथी के बगैर चुदाई का खुल कर मज़ा लूँ. क्यों कि रब्बर के बगैर जब गरम लंड का फुददी के गोश्त से टकराता है तो उस का स्वाद ही कुछ और होता है और में वो मज़ा लेना चाहती हूँ मेरी “बानो” मगर मज़ीद बच्चों होने के डर से नही ले पाती”
नुसरत के मुँह से आज पहली बार इस तरह की गंदी बात सुन कर हम दोनो कज़िन्स खिलखिला कर हँसने लगी.
नुसरत की तरह मेरे लिए भी चुदाई का ये पहला तजर्बा था. मुझ नुसरत का तो पता नही मगर चुदाई के इस खेल में पहले पहले तो मुझ को बहुत दर्द हुआ.
लेकिन फिर जब कुछ देर चुदाई के बाद दर्द जब कम होने लगा तो मैने अपने शोहर गुल नवाज़ की बाहों में अपनी सुहाग रात का खूब मज़ा लिया.
उस दिन के बाद अक्सर रात को गुल नवाज़ और सुल्तान दोनो पी कर घर आते और कमरे में आते ही नशे की हालत में अपनी अपनी बीबीयों पर चढ़ दौड़ते.
एक तो दिन भर बाहर खेतों में काम करने की थकान और दूसरा शराब के असर की वजह से चुदाई सेफ़ारिग होते ही गुल नवाज़ थक कर मेरे पहलू में गिर जाता और दूसरे ही लम्हे उस के खर्राटे मेरे कानू में गूंजने लगते थे.
शादी के ठीक 9 महीने बाद नुसरत ने एक बच्चे को जनम दिया जब कि मेरी कोख अभी तक खाली थी.
ऐसा नही था कि में और गुल नवाज़ बच्चा नही चाहते थे. या बच्चा पैदा करने की कोशिश नही कर रहे थे.
गुल नवाज़ तो सिर्फ़ और सिर्फ़ उन दिनो ही मेरे साथ चुदाई का नागा करता जब मेरी “माहवारी” चल रही होती थी. इस के अलावा तो वो हर रात दिल भर का मुझे चोदता था.
इस दौरान दो साल मज़ीद गुज़र गये और नुसरत ने एक और लड़की को जनम दे दिया.
मगर लगता था कि बच्चों की खुशी अभी मेरे नसीब में नही थी.
शादी के तीन साल बाद…
अब मेरी और नुसरत की उमर 26 साल हो चुकी थी. जब कि मेरे शोहर की उमर अब 27 साल और भाई सुल्तान अब 28 साल का हो चुका था.
में और नुसरत कजिन्स होने के साथ साथ एक दूसरे ही निहायत अच्छी दोस्त तो पहले ही थी. और फिर एक दूसरे की भाभी बनने के बाद हम दोनो एक दूसरे के दुख सुख को मज़ीद अच्छी तरह से समझने लगी थीं.
एक दिन दुपहर को में और नुसरत अकेली सहन में चार पाई पर बैठे इधर उधर की बातें कर रही थीं. जब कि नुसरत के दोनो बच्चे साथ वाली चार पाई पर लेटे सो रहे थे.
“अम्मी जी कोशिस कर रही हैं कि भाई गुल नवाज़ तुम को तलाक़ दे दें” नुसरत ने बातों बातों के दौरान मेरी तरफ बहुत संजीदा अंदाज़ में देखते हुए कहा.
“तलाक़ मगर क्यों”नुसरत की ये बात सुन कर मेरा कलेजा हिल गया और मेरी आँखों में आँसू उमड़ आए.
“क्यों कि तुम्हारी शादी को अब काफ़ी टाइम हो गया है और अभी तक तुम्हारा कोई बच्चा नही हुआ इस लिए” नुसरत ने मुझे जवाब दिया.
“नुसरत मुझे पता है कि तुम्हारे दो बच्चे होने के बाद तुम्हारी अम्मी और मेरी सास मेरे बच्चे ना होने की वजह से परेशान हैं. लेकिन अगर मेरे बच्चे नही हो रहे तो इस में मेरा क्या कसूर है” मैने परेशानी की हालत में अपनी कजिन से कहा.
“रुखसाना तुम को कोई बीमारी तो नही और अगर है तो तुम ने इस के इलाज के लिए कोई दवाई वगेरह ली है” नुसरत ने मुझ से पूछा.
“नही मुझे कोई बीमारी नही क्यों कि मैने गाँव की “दाई” (मिड वाइफ) से अपना मुआईना (चेकप) भी करवाया है और उस की दी हुई दवाई भी इस्तेमाल की है मगर अभी तक उस का कोई असर नही हुआ” मैने जवाब दिया.
“तो फिर क्या वजह है कि तुम अभी तक माँ बनने से महरूम हो?”नुसरत ने सवालिया अंदाज़ में पूछा.
“में तो तुम्हारे भाई को अपने साथ हम बिस्तरी करने से कभी नही रोकती. मगर इस के बावजूद अभी तक बच्चा ना होने की समझ मुझे भी नही” मैने अपनी आँखें झुकाते हुए आहिस्ता से रंजीदा लहजे में अपनी कजिन को जवाब दिया.
“मुझे अंदाज़ा है मेरी बेहन के बच्चे होना या ना होना नसीब की बात है. अब मुझे ही देख लो,हालाँकि में अपने बेटे की पैदाइश के बाद मजीद कोई बच्चा पैदा नही करना चाहती थी.
और इस लिए तुम्हारा भाई मुझ से हम बिस्तरी करते वक़्त “अहतियातन” हमेशा बाहर ही फारिग होता है. मगर शायद तुम्हारे भाई के हर कतरे में इतनी ताक़त है कि बाहर निकालते निकालते भी उस का आख़िरी क़तरा अपना काम कर जाता है और इसका नतीजा “मुन्नी” की शकल में तुम्हारे सामने माजूद है”.
नुसरत ने एक हल्की और शरारती मुस्कुराहट के साथ मेरी तरफ देखते हुए मुझे बताया.
“तुम अभी बच्चे नही चाहती मगर क्यों” मैने हैरानी से नुसरत की तरफ देखते हुए पूछा.
“हाए तुम को तो जैसे पता ही नही मेरी भोली बानो” नुसरत ने मुझे छेड़ते हुए कहा.
“नही मुझे वाकई ही नही अंदाज़ा कि तुम क्यों अभी बच्चे नही चाहती” मैने अंजान बनते हुए दुबारा पूछा.
“वो इस लिए कि में अभी अपनी शादी शुदा जिंदगी के शुरू में तुम्हारे भाई के साथ मज़े करना चाहती हूँ. मगर हर वक़्त हमला (प्रेग्नेंट) होने का ख़ौफ़ मेरे दिमाग़ पर छाया रहता है. जिस की वजह से में तुम्हारे भाई के साथ हम बिस्तरी का पूरा मज़ा नही ले पाती” नुसरत ने मेरी तरफ देखा और हल्के से आँख मारते हुए मेरी बात का जवाब दिया.
“ये अजीब बात है कि एक में हूँ जो हर कीमत पर बच्चा पैदा करना चाहती हूँ और इस लिए अपने शोहर को कभी इनकार नही करती और एक तुम हो कि हमला होने के खोफ़ से ही चुदाई के सही मज़े नही ले पा रही हो.
अगर बच्चा होने का इतना ही डर है तो तुम लोग “साथी” (कॉंडम) इस्तेमाल कर लिया करो”: मैने नुसरत से कहा.
“वो तो तुम्हारा भाई अब इस्तेमाल करता है मगर सच कहूँ मुझे “साथी” के साथ हम बिस्तरी का मज़ा नही आता” नुसरत बोली.
“मगर क्यों” मैने तजसोस करते हुए पूछा.
“ वो इस लिए के मेरा दिल करता है की साथी के बगैर चुदाई का खुल कर मज़ा लूँ. क्यों कि रब्बर के बगैर जब गरम लंड का फुददी के गोश्त से टकराता है तो उस का स्वाद ही कुछ और होता है और में वो मज़ा लेना चाहती हूँ मेरी “बानो” मगर मज़ीद बच्चों होने के डर से नही ले पाती”
नुसरत के मुँह से आज पहली बार इस तरह की गंदी बात सुन कर हम दोनो कज़िन्स खिलखिला कर हँसने लगी.
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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`·.¸.·´ -- raj sharma
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