ससुराली प्यार
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा एक और छोटी सी कहानी आपकी पेशेखिदमत कर रहा हूँ अपडेट रेग्युलर मिलते रहेंगे दोस्तो वैसे तो मैने इस टाइम तीन कहानियाँ पहले ही शुरू कर रखी है पर इससे इस कहानी की अपडेट्स पर कोई फ़र्क नही पड़ेगा . दोस्तो ये कहानी ग़ज़ल की है जिसने अपनी ससुराल में क्या क्या हंगामे किए ये उसी का ताना बाना है तो दोस्तो चलिए कहानी शुरू करते हैं ग़ज़ल की ज़ुबानी .............................
ससुराली प्यार complete
- rajsharma
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: ससुराली प्यार
मेरा नाम ग़ज़ल अफ़सर है. में अपनी तारीफ खुद क्या करूँ मगर मुझ देखने वाले और मेरे शोहर मुझ कहते हैं कि में एक खूबसूरत लड़की हूँ.
21 साल की उमर में मेरी एंगेज्मेंट हो गई. जब कि 5 साल बाद 26 साल की उमर में ब्याह (शादी हो) कर में अपने शोहर के घर चली आई.
जिस वक़्त की कहानी में बयान करने जा रही हूँ. उस वक़्त मेरी शादी को छह (6) महीने हुए थे. और में अपनी ससुराल और शोहर से बहुत ही खुश थी.
मेरे ससुराल में,मेरे शोहर, मेरी सास,ससुर एक देवर और एक ननद 6 सदस्य एक बड़े घर में रहते थे.
मेरे देवर और ननद की अभी तक शादी नही हुई थी.
मेरे शोहर अफ़सर जिन की उमर 30 साल है वो बहुत अच्छे हैं.वो ना सिर्फ़ मुझ से मोहब्बत करते हैं बल्कि मैरा हर तरह ख्याल भी रखते थे.अफ़सर एक शरीफ इंसान थे और रिज़र्व रहते थे.
जब कि मेरा 25 साला देवर सरवर उनके मुक़ाबले में बहुत ही शरीर जोल्ली और लंबा तड़ंगा था.जो कि पहली ही नज़र में मुझे बहुत अच्छा लाघा था.
इस की वजह शायद ये भी थी .कि वो मुझ से अक्सर बहुत मज़ाक़ करता और में उस की बातों को एंजाय करते हुए बहुत हँसती थी.
रात को अफ़सर अख़बार वग़ैरह पढ़ने के लिए जल्द ही अपने बेड रूम में चले जाते.
जब कि में ड्रॉयिंग रूम में रात देर गये तक सरवर और उन की 23 साला छोटी बहन नाज़ के साथ गॅप शॅप में मसरूफ़ रहती.
नाज़ एक नाज़ुक सी बहुत प्यारी लड़की थी. अपने भाइयों की तरह कद में लंबी होने के साथ साथ वो निहायत दिल कश जिस्म और इंतिहा हसीन शकल की मालिक भी थी.
उस का हुश्न इतना क़यामत खेज था कि उस को देखने वालों की नज़र उस के हुश्न पर नहीं ठहर ती थी.
जैसा कि में पहले ही बता चुकी हूँ कि मेरा देवर सरवर मुझे बहुत अच्छा लगता था.
और में उसके साथ हँसी मज़ाक़ को बहुत पसंद करती थी. बल्कि जब से उस ने मुझ से हाथा पाई वाला मज़ाक़ शुरू किया तो मुझे और भी मज़ा आने लगा.
में अपने ससुराल में अपनी इस खुश नसीबी से बहुत खुश थी. कि मेरी सास ससुर देवर और मेरी ननद नाज़ मेरे बहुत ही क़रीब थे. और इन सब के साथ मेरा खलूस और प्यार का रिश्ता कायम हो गया था.
अफ़सर मेरे साथ एक अच्छे शोहर की तरह सुलूक रखते थे. लेकिन मेरे साथ सेक्स वो सिर्फ़ एक ज़रूरत और फ़र्ज़ समझ कर करते थे.
सेक्स के दौरान वो बस नंगे हुए चूमा चाट की अंदर डाला डिसचार्ज हुए और बस सो गये.
जब कि इस के मुकाबले मेरी सहेलियाँ जब बातों बातों में अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में कभी कभार बात करते हुए मुझ से अपनी अपनी शादी शुदा जिंदगी का एक्सपीरियेन्स शेयर करती थीं.
तो मुझे अंदाज़ा होता कि उन के शोहर उन से बहुत ही दिलचस्प और दिल कश सेक्स करते हैं.
मुझे अपनी सहेलियों कि ये बातें सुन कर बस एक ख्वाहिस थी. कि काश मेरे शोहर अफ़सर भी मेरे साथ ऐसा ही करें जैसे में अपनी सहेलियों की ज़ुबानी सुनती हूँ.
मेरे ससुराल वाले काफ़ी अमीर और मॉडर्न लोग हैं. जिस की वजह से उन का रहन सहन भी हम जैसे मिड्ल क्लास ख़ानदानों से काफ़ी अलग है.
इस बात का अंदाज़ा मुझे उस वक़्त हुआ. जब में शादी के बाद अपने ससुराल में रहने लगी.
मेरे अपने भाइयों के मुकावले मेरा देवर सरवर घर में शॉर्ट पहनता था.
में चूंकि इस तरह के माहौल की आदि नही थी. इसलिए शुरू में मुझे ये बात अजीब सी लगी. मगर फिर वक़्त के साथ आहिस्ता आहिस्ता में भी इस तरह की बातों की आदि होने लगी.
जब मेरा देवर शॉर्ट्स पहन कर मेरे सामने सोफे पर बैठ कर टीवी लाउन्ज में टीवी वग़ैरह देखता. तो कई बार मेने उस के सामने से उस के लंड को शॉर्ट्स में से बाहर हल्का सा झाँकते हुए देखा था.
जब पहली दफ़ा बैठे बैठे मेरी नज़र उस के लंड पर पड़ी थी. तो शरम और घबराहट के मारे मेरे पसीने छूट गये.
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे अंजाने में मुझ से को बहुत बड़ा गुनाह हो गया हो.
मगर सरवर का यूँ अपने घर में अपनी ही अम्मी और बहन के सामने शॉर्ट्स पहन कर घूमना और बैठना एक मामूली सी बात थी.
इसलिए फिर में भी इस बात की भी आदि होने लगी. और फिर में खुद भी आँखें बचा कर अक्सर उस के सामने से शॉर्ट में से बाहर आते हुए उस के बड़े लंड का दीदार करने की कोशिस करती और मुझे इम में मज़ा भी आता था.
21 साल की उमर में मेरी एंगेज्मेंट हो गई. जब कि 5 साल बाद 26 साल की उमर में ब्याह (शादी हो) कर में अपने शोहर के घर चली आई.
जिस वक़्त की कहानी में बयान करने जा रही हूँ. उस वक़्त मेरी शादी को छह (6) महीने हुए थे. और में अपनी ससुराल और शोहर से बहुत ही खुश थी.
मेरे ससुराल में,मेरे शोहर, मेरी सास,ससुर एक देवर और एक ननद 6 सदस्य एक बड़े घर में रहते थे.
मेरे देवर और ननद की अभी तक शादी नही हुई थी.
मेरे शोहर अफ़सर जिन की उमर 30 साल है वो बहुत अच्छे हैं.वो ना सिर्फ़ मुझ से मोहब्बत करते हैं बल्कि मैरा हर तरह ख्याल भी रखते थे.अफ़सर एक शरीफ इंसान थे और रिज़र्व रहते थे.
जब कि मेरा 25 साला देवर सरवर उनके मुक़ाबले में बहुत ही शरीर जोल्ली और लंबा तड़ंगा था.जो कि पहली ही नज़र में मुझे बहुत अच्छा लाघा था.
इस की वजह शायद ये भी थी .कि वो मुझ से अक्सर बहुत मज़ाक़ करता और में उस की बातों को एंजाय करते हुए बहुत हँसती थी.
रात को अफ़सर अख़बार वग़ैरह पढ़ने के लिए जल्द ही अपने बेड रूम में चले जाते.
जब कि में ड्रॉयिंग रूम में रात देर गये तक सरवर और उन की 23 साला छोटी बहन नाज़ के साथ गॅप शॅप में मसरूफ़ रहती.
नाज़ एक नाज़ुक सी बहुत प्यारी लड़की थी. अपने भाइयों की तरह कद में लंबी होने के साथ साथ वो निहायत दिल कश जिस्म और इंतिहा हसीन शकल की मालिक भी थी.
उस का हुश्न इतना क़यामत खेज था कि उस को देखने वालों की नज़र उस के हुश्न पर नहीं ठहर ती थी.
जैसा कि में पहले ही बता चुकी हूँ कि मेरा देवर सरवर मुझे बहुत अच्छा लगता था.
और में उसके साथ हँसी मज़ाक़ को बहुत पसंद करती थी. बल्कि जब से उस ने मुझ से हाथा पाई वाला मज़ाक़ शुरू किया तो मुझे और भी मज़ा आने लगा.
में अपने ससुराल में अपनी इस खुश नसीबी से बहुत खुश थी. कि मेरी सास ससुर देवर और मेरी ननद नाज़ मेरे बहुत ही क़रीब थे. और इन सब के साथ मेरा खलूस और प्यार का रिश्ता कायम हो गया था.
अफ़सर मेरे साथ एक अच्छे शोहर की तरह सुलूक रखते थे. लेकिन मेरे साथ सेक्स वो सिर्फ़ एक ज़रूरत और फ़र्ज़ समझ कर करते थे.
सेक्स के दौरान वो बस नंगे हुए चूमा चाट की अंदर डाला डिसचार्ज हुए और बस सो गये.
जब कि इस के मुकाबले मेरी सहेलियाँ जब बातों बातों में अपनी निजी ज़िंदगी के बारे में कभी कभार बात करते हुए मुझ से अपनी अपनी शादी शुदा जिंदगी का एक्सपीरियेन्स शेयर करती थीं.
तो मुझे अंदाज़ा होता कि उन के शोहर उन से बहुत ही दिलचस्प और दिल कश सेक्स करते हैं.
मुझे अपनी सहेलियों कि ये बातें सुन कर बस एक ख्वाहिस थी. कि काश मेरे शोहर अफ़सर भी मेरे साथ ऐसा ही करें जैसे में अपनी सहेलियों की ज़ुबानी सुनती हूँ.
मेरे ससुराल वाले काफ़ी अमीर और मॉडर्न लोग हैं. जिस की वजह से उन का रहन सहन भी हम जैसे मिड्ल क्लास ख़ानदानों से काफ़ी अलग है.
इस बात का अंदाज़ा मुझे उस वक़्त हुआ. जब में शादी के बाद अपने ससुराल में रहने लगी.
मेरे अपने भाइयों के मुकावले मेरा देवर सरवर घर में शॉर्ट पहनता था.
में चूंकि इस तरह के माहौल की आदि नही थी. इसलिए शुरू में मुझे ये बात अजीब सी लगी. मगर फिर वक़्त के साथ आहिस्ता आहिस्ता में भी इस तरह की बातों की आदि होने लगी.
जब मेरा देवर शॉर्ट्स पहन कर मेरे सामने सोफे पर बैठ कर टीवी लाउन्ज में टीवी वग़ैरह देखता. तो कई बार मेने उस के सामने से उस के लंड को शॉर्ट्स में से बाहर हल्का सा झाँकते हुए देखा था.
जब पहली दफ़ा बैठे बैठे मेरी नज़र उस के लंड पर पड़ी थी. तो शरम और घबराहट के मारे मेरे पसीने छूट गये.
मुझे ऐसा महसूस हुआ कि जैसे अंजाने में मुझ से को बहुत बड़ा गुनाह हो गया हो.
मगर सरवर का यूँ अपने घर में अपनी ही अम्मी और बहन के सामने शॉर्ट्स पहन कर घूमना और बैठना एक मामूली सी बात थी.
इसलिए फिर में भी इस बात की भी आदि होने लगी. और फिर में खुद भी आँखें बचा कर अक्सर उस के सामने से शॉर्ट में से बाहर आते हुए उस के बड़े लंड का दीदार करने की कोशिस करती और मुझे इम में मज़ा भी आता था.
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Re: ससुराली प्यार
मेने एक बार मोका पाकर सरवर को बाथ रूम के रोशन दान से बाथरूम में नहाते भी देखा था.
अगरचे रोशन दान उँचा होने की वजह से में सरवर के जिस्म का निचला हिस्सा तो नही देख पाई.मगर फिर भी बालों से भारी उस की छोड़ी नंगी चाहती मुझ बेचैन कर गई.
सच तो ये कि मुझे सरवर अच्छा लगता था. और मेरे दिल में ये ख्वाहिश भी पैदा हो चुकी थी कि में काश उस के साथ सेक्स कर सकूँ.
मेरे तन बदन में मेरे देवर के औज़ार ने आग तो लगा दी थी.मगर अपनी इस क्वाहिश की तकमील करने की मुझ में हिम्मत नही पड़ रही थी.
वो कहते हैं ना कि, “व्हेइर देयर इस आ विल देयर ईज़ आ वे” या फिर उर्दू में “जहाँ चाह वहाँ राह”.
कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ और मुझे बिल आख़िर वो मोका मिल ही गया जिस की मुझे तलाश थी.
हम लोग पूरी फॅमिली के साथ अक्सर हर हफ्ते कहीं ना कहीं घूमने फिरने जाते थे.
इस दफ़ा मेरे शोहर अफ़सर ने डम्लोटी, कराची में वक़ह प्लॅनटर नामी फार्म हाउस आने और उधर ही रात गुज़ारने का प्रोग्राम बनाया.
और यूँ हम सारे घर वाले और ससुराली फॅमिली के काफ़ी लोग और रिश्ते दार एक दोपहर को एक साथ इस जगह चले आए.
ये फारम हाउस पोधो, दरख्तो और फूलों से घिरा हुआ था और यही वजह थी शायद उस का नाम प्लॅनटर था.
मैने आज तक ऐसी प्लॅनटेशन नहीं देखी थी. इसलिए मुझे इधर आ कर बहुत अच्छा लग रहा था.
मेरी साथ साथ घर के बाकी लोग भी शायद पहली बार ही इस फारम हाउस में आये थे .
इसलिए सब को ही मौसम की बहार के इस मोसम में फार्म हाउस पर मोसम को एंजाय करने में बहुत मज़ा आ रहा था.
उस दिन शाम के वक़्त हम सब ने फार्म हाउस में बने हुए स्विम्मिंग पूल में नहाने का प्रोग्राम बनाया.
और फिर मेरा शोहर अफ़सर,देवर सरवर और बाकी फॅमिली के लड़के और मर्द शॉर्ट्स और या शलवार और पाजामे में जब कि में मेरी ननद और फॅमिली की बाकी औरतें शलवार कमीज़ में ही मलबूस स्विम्मिंग पूल में उतर कर नहाने में मशगूल हो गये.
हम सब स्विम्मिंग पूल में नहा रहे थे और एक दूसरे से पानी की छेड़ छाड़ भी कर रहे थे.
स्विम्मिंग पूल के बहुत ही शाफ़ पानी की वजह स्विम्मिंग पूल में हर चीज़ बिल्कुल वज़ह नज़र आ रही थी.
अफ़सर तो कुछ देर बाद ही बाहर चले गये थे और अपनी अम्मी अब्बू से बातें कर रहे थे.
जब कि सरवर अपनी बहन नाज़ को तैरना( स्विम्मिंग) सिखा रहा था. और दोनो हाथों से थामे हुए उसे पानी की सतह पर हाथ पाँव चलाना सिखा रहा था.
इधर में भी अपने ध्यान में मगन फॅमिली के बच्चों और दूसरे रिश्ते दरों के साथ पानी पानी खेल रही थी.
अगरचे रोशन दान उँचा होने की वजह से में सरवर के जिस्म का निचला हिस्सा तो नही देख पाई.मगर फिर भी बालों से भारी उस की छोड़ी नंगी चाहती मुझ बेचैन कर गई.
सच तो ये कि मुझे सरवर अच्छा लगता था. और मेरे दिल में ये ख्वाहिश भी पैदा हो चुकी थी कि में काश उस के साथ सेक्स कर सकूँ.
मेरे तन बदन में मेरे देवर के औज़ार ने आग तो लगा दी थी.मगर अपनी इस क्वाहिश की तकमील करने की मुझ में हिम्मत नही पड़ रही थी.
वो कहते हैं ना कि, “व्हेइर देयर इस आ विल देयर ईज़ आ वे” या फिर उर्दू में “जहाँ चाह वहाँ राह”.
कुछ ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ और मुझे बिल आख़िर वो मोका मिल ही गया जिस की मुझे तलाश थी.
हम लोग पूरी फॅमिली के साथ अक्सर हर हफ्ते कहीं ना कहीं घूमने फिरने जाते थे.
इस दफ़ा मेरे शोहर अफ़सर ने डम्लोटी, कराची में वक़ह प्लॅनटर नामी फार्म हाउस आने और उधर ही रात गुज़ारने का प्रोग्राम बनाया.
और यूँ हम सारे घर वाले और ससुराली फॅमिली के काफ़ी लोग और रिश्ते दार एक दोपहर को एक साथ इस जगह चले आए.
ये फारम हाउस पोधो, दरख्तो और फूलों से घिरा हुआ था और यही वजह थी शायद उस का नाम प्लॅनटर था.
मैने आज तक ऐसी प्लॅनटेशन नहीं देखी थी. इसलिए मुझे इधर आ कर बहुत अच्छा लग रहा था.
मेरी साथ साथ घर के बाकी लोग भी शायद पहली बार ही इस फारम हाउस में आये थे .
इसलिए सब को ही मौसम की बहार के इस मोसम में फार्म हाउस पर मोसम को एंजाय करने में बहुत मज़ा आ रहा था.
उस दिन शाम के वक़्त हम सब ने फार्म हाउस में बने हुए स्विम्मिंग पूल में नहाने का प्रोग्राम बनाया.
और फिर मेरा शोहर अफ़सर,देवर सरवर और बाकी फॅमिली के लड़के और मर्द शॉर्ट्स और या शलवार और पाजामे में जब कि में मेरी ननद और फॅमिली की बाकी औरतें शलवार कमीज़ में ही मलबूस स्विम्मिंग पूल में उतर कर नहाने में मशगूल हो गये.
हम सब स्विम्मिंग पूल में नहा रहे थे और एक दूसरे से पानी की छेड़ छाड़ भी कर रहे थे.
स्विम्मिंग पूल के बहुत ही शाफ़ पानी की वजह स्विम्मिंग पूल में हर चीज़ बिल्कुल वज़ह नज़र आ रही थी.
अफ़सर तो कुछ देर बाद ही बाहर चले गये थे और अपनी अम्मी अब्बू से बातें कर रहे थे.
जब कि सरवर अपनी बहन नाज़ को तैरना( स्विम्मिंग) सिखा रहा था. और दोनो हाथों से थामे हुए उसे पानी की सतह पर हाथ पाँव चलाना सिखा रहा था.
इधर में भी अपने ध्यान में मगन फॅमिली के बच्चों और दूसरे रिश्ते दरों के साथ पानी पानी खेल रही थी.
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Re: ससुराली प्यार
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- Ankit
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Re: ससुराली प्यार
Congratulations for new story Raj bhai