बिन बुलाया मेहमान compleet

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Re: बिन बुलाया मेहमान

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बिन बुलाया मेहमान-8

गतान्क से आगे……………………

चाचा ने मेरी सलवार में हाथ डाल दिया. उसने पॅंटीस के अंदर भी हाथ सरका दिया और धीरे धीरे मेरी योनि की तरफ बढ़ने लगा. मेरी साँसे तेज चलने लगी. पहली बार गगन के शिवा कोई और मेरी योनि को इतनी नज़दीकी से छुने जा रहा था.

"रुक जाओ मैं कहती हूँ. कुछ तो शरम करो. गगन को पता चलेगा तो वो क्या सोचेगा."

"गगन को कुछ पता नही चलेगा. तुम बस मज़े लुटो."

"मुझे कोई मज़ा नही लूटना छोड़ो मुझे." मैने छटपटाते हुए कहा.

जब चाचा का हाथ मेरी योनि पर टिका तो मैं काँप उठी. चाचा ने मेरी योनि को दो उंगलियों से फैलाया और मेरी योनि को पंखुड़ियों को मसल्ने लगा.

मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ने लगी. मेरी टांगे थर थर काँप रही थी. जब चाचा ने मेरी योनि के भज्नासा (क्लाइटॉरिस) पर उंगली टिकाई तो मेरी हालत और ज़्यादा खराब हो गयी. मेरे पूरे शरीर में बीजली की लहरे दौड़ने लगी.

"मज़ा आ रहा है ना. क्या गगन खेलता है इस तरह तुम्हारी चूत के साथ जैसे मैं खेल रहा हूँ."

"नही. वो ऐसा कुछ नही करते. मुझे छोड़ दो वरना...आहह" बोलते बोलते मेरे मूह से सिसकी निकल गयी. मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था.

"बड़ी जल्दी पानी छोड़ दिया. बाते तो बड़ी बड़ी करती हो. देखो खुद अब कैसे मज़े लूट रही है तुम्हारी चूत."

"ये ज़बरदस्ती करवाया तुमने."

"ज़बरदस्ती चूत का पानी नही निकलवा सकता कोई."

"तुम एक नंबर के कामीने हो आहह."मैं चीन्ख पड़ी क्योंकि चाचा ने मेरी योनि में उंगली डाल दी थी. गीली होने के कारण उंगली बड़ी जल्दी अंदर घुस गयी थी.

"वाह क्या चिकनी चूत है तुम्हारी. मैने ठीक ही अंदाज़ा लगाया था. तुम्हारी चूत तुम्हारी गान्ड के जैसी ही कयामत है. अच्छा एक बात बताओ. हफ्ते में कितनी बार मारता है गगन तेरी चूत."

"तुम्हे उस से क्या मतलब उंगली बाहर निकालो अपनी."

चाचा ने मेरी योनि में हर तरफ अपनी उंगली घुमानी शुरू कर दी और बोला, "इतनी भी क्या जल्दी है अभी तो बस घुस्साई ही है."

फिर ना जाने चाचा ने उंगली के साथ क्या किया मैं बहुत ज़ोर से चिल्लाई और मेरी योनि ने फिर से पानी छोड़ दिया. मुझे समझ में नही आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है. जबकि मैं तो पूरी कोशिस कर रही थी कुछ भी फील ना करने की. मगर उसकी उंगली मेरी योनि में कुछ अजीब सा जादू कर रही थी.

चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरे बायें उभार को थाम कर उसे मसल्ने लगा. अब चाचा का एक हाथ मेरे उभार पर था और एक हाथ मेरी योनि पर. मेरे नितंबो पर हल्का हल्का चाचा का लिंग महसूस हो रहा था. मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि अब मैं वहाँ चुपचाप आँखे बंद किए खड़ी थी और चाचा मेरे पीछे खड़ा मनचाहे ढंग से मेरे अंगो से खेल रहा था.

डोर बेल बजी तो मैं होश में आई. मैने तुरंत चाचा को ज़ोर से धक्का दिया और वहाँ से भाग कर अपने बेडरूम में आ गयी. अंदर आते ही मैने कुण्डी लगा ली. मेरा दिल बहुत ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.

अभी मैं संभली भी नही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

"निधि बेटी तुम्हारी कोई चिट्ठी आई है. तुम्हे हस्ताक्षर करने होंगे."चाचा ने बाहर से आवाज़ दी.

मैने दरवाजा खोला और बिना चाचा की तरफ देखे सीधा मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गयी. मैने चिट्ठी लेकर साइन कर दिए. चिट्ठी लेकर मैं अपने बेडरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि चाचा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला,

"छोड़ा ना पानी तेरी चूत ने आज फिर. तू सच में मज़े लूटती है मेरे साथ."

"तुम्हे तुम्हारे किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी देहाती. बस देखते जाओ." उसका हाथ झटक कर मैं दौड़ कर अपने बेडरूम में घुस गयी.

"आज तुम्हारा पर्दाफाश कर दूँगी मैं गगन के सामने. बड़े बाल ब्रह्मचारी बने फिरते हो हा...." मैने मन ही मन सोचा.शाम को जब गगन घर आए तभी मैं अपने बेडरूम से बाहर निकली. मैं मन ही मन खुश हो रही थी की आज गगन के सामने चाचा का झूठा नकाब उतर जाएगा. ड्रॉयिंग रूम में जब कोई नही था तब मैने चुपचाप कॅमरा उठाया और कॅमरा लेकर टाय्लेट में चली गयी.

गगन को दिखाने से पहले मैं खुद रेकॉर्डेड क्लिप को देखना चाहती थी. मगर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा. कॅमरा में ऐसा कुछ भी रेकॉर्ड नही हुआ था जिस से चाचा का पर्दाफास किया जा सके. दरअसल चाचा की छेड़खानी रेकॉर्ड होने से पहले ही मेमोरी कार्ड फुल हो गया था और रेकॉर्डिंग बंद हो गयी थी.

"ओह नो मुझे इतना कुछ सहना पड़ा पर इसमे कुछ भी रेकॉर्ड नही हुआ. अब फिर से वही सब सहना पड़ेगा." ये ख्याल आते ही मेरे तन बदन में बीजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने खुद को बहुत कोसा क्योंकि मेरा शरीर पता नही क्यों फिर से चाचा के हाथो का खिलोना बनने के लिए तैयार था.

"चाचा को फाँसते फाँसते मैं कही खुद ही ना उसके जाल में फँस जाउ. उसकी छेड़खानी याद आते ही अजीब सी हलचल होती है तन बदन में. ऐसा लगता है जैसे मुझे ये सब अच्छा लगता है."

"नही नही मुझे ये सब अच्छा कैसे लग सकता है. वो बदसूरत देहाती मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता."

"पर मेरे अंग प्रत्यंग उसके हाथो के इशारे पर नाचते हैं. आज फिर से उसने मेरी योनि को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया जबकि मैं खुद को संभालने की पूरी कॉसिश कर रही थी. बहुत समझा रही थी मैं अपनी योनि को की ऐसा कुछ नही करना है. पर मेरी एक नही चली और फिर से मेरी पॅंटीस गीली हो गयी. सच यही है कि मुझे ये सब अच्छा लगता है."

"नही हो सकता ऐसा. मुझे ये सब अच्छा बिल्कुल नही लग सकता. उसने ज़बरदस्ती करवाया मुझसे सब कुछ."
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Re: बिन बुलाया मेहमान

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"ज़बरदस्ती ऑर्गॅज़म नही करवा सकता कोई निधि. सच को स्वीकार करो तुम्हे ये सब अच्छा लगता है. गगन को ये सब बता दोगि तो नुकसान तुम्हारा ही होगा. फिर ये सब एंजाय करने को नही मिलेगा."

"मैं कोई एंजाय नही कर रही हूँ. सब कुछ मुझ पर थोपा जा रहा है."

"हां ये सच है की सब कुछ थोपा जा रहा है पर ये मत भूलो कि तुम्हे ये सब अच्छा लगने लगा है. देखा था ना तुमने. जब तुम खिड़की में खड़ी थी तब तुम्हारी योनि चाचा की छेड़खानी सोच कर ही गीली हो गयी थी."

"वो इत्तेफ़ाक था"

"हहेहहे खुद को धोका दे रही हो तुम. और चाचा सिर्फ़ तुम्हे छेड़ता ही तो है.

असली में सेक्स तो करने की कॉसिश नही कर रहा है वो. फिर क्यों गगन को सब कुछ बता कर अपने पैरो पर कुल्हाड़ी मारती हो."

"आज उसने उंगली डाल दी थी अंदर. और क्या रह गया. मैं ये सब नही होने दे सकती."

"बस उंगली ही तो डाली थी उसने. अपना मोटा वो तो नही डाला ना. और उसने अपनी डाइयरी में लिखा भी था की वो तुम्हारे साथ ऐसा कुछ नही करेगा क्योंकि तुम गगन की बीवी हो."

"बुलशिट. अंदर उंगली डालना कोई छ्होटी बात नही होती. जो भी हो मैं ये सब नही होने दूँगी मेरे साथ और चाचा के चेहरे से उसका झूठा नकाब हटा कर रहूंगी. मैं दुबारा कॅमरा लगा कर सब कुछ रेकॉर्ड करूँगी. इस बार खाली मेमोरी कार्ड लगाउन्गि कॅमरा में."

"सोच लो. फिर ये एंजाय्मेंट नही मिलेगा तुम्हे. छोड़ो कॅमरा को और सब एंजाय करो. वैसे भी सिर्फ़ कुछ ही दिन की बात और है फिर वो चला जाएगा."

चाचा के कारण मेरे मन में अंतर्द्वंद हो गया था. मेरा मन दौ हिस्सो में बॅट गया था.

"निधि कहाँ हो तुम?" बाहर से गगन की आवाज़ आई तो मेरा ध्यान टूटा.

"मुझे इस देहाती से नफ़रत है और मैं इसका पर्दाफाश करके रहूंगी." मैं दृढ़ निश्चय करके टाय्लेट से बाहर आ गयी.

गगन को अपने ऑफीस की एक फाइल नही मिल रही थी. इसीलिए मुझे ढूंड रहे थे.

अगले दिन दोपहर को अचानक मूसलाधार बारिस शुरू हो गयी. छत पर कपड़े सुख रहे. कपड़े उतारने के लिए मैं तुरंत छत की तरफ भागी. कपड़े उतार कर मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ी ही थी कि मेरा पाँव फिसल गया और मैं धडाम से नीचे गिर गयी. मेरी कमर ज़ोर से नीचे टकराई थी. दर्द की लहर पूरे शरीर में दौड़ गयी थी.

धडाम की आवाज़ सुन कर चाचा उपर दौड़ कर आया. तब तक मैं पूरी भीग चुकी थी.

"अरे निधि बेटी क्या हुआ?" चाचा मुझे उठाने के लिए आगे बढ़ा.

"दूर रहो मुझसे. मैं खुद उठ जाउन्गि." मैं चिल्लाई.

किसी तरह मैं धीरे से उठी. मेरी कमर दायें पाँव में बहुत दर्द हो रहा था. मेरे पहने कपड़े भी भीग गये थे और जो कपड़े में उतारने आई थी वो भी भीग गये थे. कपड़े गीले होने के कारण मेरे शरीर से चिपक गये थे जिसके कारण मेरे उभारों और नितंबो की शेप बिल्कुल सॉफ दीखने लगी थी. चाचा की आँखे चमक रही थी ये नज़ारा देख कर. वो एक तक मुझे घुरे जा रहा था.

"कमीना कही का. मोके का फ़ायडा उठा रहा है है." मैं सोचा.

मैने जब सीढ़ियों की तरफ कदम बढ़ाया तो मुझे दायें पाओं में बहुत दर्द महसूस हुआ. ऐसा लग रहा था जैसे की पाओं में मोच आ गयी हो. बड़ी मुस्किल से मैं नीचे उतरी.

मैने गरम पानी से नहा कर कपड़े चेंज किए मगर फिर भी दर्द से राहत नही मिली. पाओं में दर्द बढ़ता ही जा रहा था. जब दर्द असहनीय हो गया तो मैने गगन को फोन मिलाया और उन्हे सारी बात बताई.

"क्या ज़रूरत थी इतनी तेज बारिस में तुम्हे छत पर जाने की." गगन मुझे डाँटने लगे.

"कपड़े थे ना उपर. वो उतारने गयी थी. दर्द तो कमर में भी है पर पाओं की ये मोच बहुत परेशान कर रही है."

"तुम ऐसा करो फोन चाचा जी को दो."

"क्यों...वो सो रहे होंगे."

"दोपहर को नही सोते हैं वो. जाओ मेरी बात कर्वाओ उनसे."

"पर बात क्या है?"

"उन्हे पाओं की मोच उतारनी आती है. मैं उनको बोल देता हूँ वो मोच उतार देंगे."

"वॉट...तुम होश में तो हो. मैं उनसे अपनी मोच नही उतरवाउन्गि."

"क्यों...वो एक्सपर्ट हैं. एक बार गाओं में जब मेरे पाओं में मोच आ गयी थी तो उन्होने झट से मोच उतार दी थी. तुम उन्हे फोन तो दो."

मरती क्या ना करती. मैं चाचा के कमरे की तरफ चल दी. चाचा अपने बिस्तर पर आँखे बंद किए पड़ा था. मैने दरवाजा खड़काया तो वो उठ कर बैठ गया.

"अरे निधि बेटी आओ आओ"

"गगन आपसे बात करना चाहते हैं." मैने फोन चाचा को थमा दिया और बाहर आकर ड्रॉयिंग रूम में बैठ गयी. चाचा फोन पे बात करता हुआ अपने कमरे से बाहर निकला.

"तुम चिंता मत करो गगन बेटा. मैं अभी निधि बेटी की मोच उतार देता हूँ. तुम अपने काम पर ध्यान दो."

चाचा ने मुझे फोन देते हुए कहा, "यही मोच उतारू तुम्हारी या तुम्हारे कमरे में"

"मुझे कोई मोच वॉच नही उतरवानी. आप अपना काम कीजिए."

"नखरे मत करो. एक पल में दर्द गायब हो जाएगा तुम्हारा.लाओ पाओं आगे करो."

"दूर रहो मुझसे." मैने चाचा को डाँट दिया.

तभी फिर से गगन का फोन आ गया.

"चाचा को बोल दिया है मैने. उन्होने शुरू की पाओं की मालिश."

"नही अभी नही."

क्रमशः…………………………………

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Re: बिन बुलाया मेहमान

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Bin Bulaya Mehmaan-8

gataank se aage……………………
Chacha ne meri salwar mein haath daal diya. Usne panties ke ander bhi haath sarka diya aur dheere dheere meri yoni ki taraf badhne laga. Meri saanse tej chalne lagi. Pahli baar gagan ke shiva koyi aur meri yoni ko itni nazdiki se chhune ja raha tha.


"ruk jaao main kahti hun. Kuch to sharam karo. Gagan ko pata chalega to vo kya sochega."


"gagan ko kuch pata nahi chalega. Tum bas maje luto."


"mujhe koyi maja nahi lutna chodo mujhe." Maine chatpatate hue kaha.
Jab chacha ka haath meri yoni par tika to main kaamp uthi. Chacha ne meri yoni ko do ungliyon se failaya aur meri yoni ko pankhudiyon ko masalne laga.


Mere sharir mein ajeeb si lahar daudne lagi. Meri taange thar thar kaamp rahi thi. jab chacha ne meri yoni ke bhagnasa (clitoris) par ungli tikaayi to meri haalat aur jyada kharaab ho gayi. Mere pure sharir mein beejli ki lahre daudne lagi.

"maja aa raha hai na. Kya gagan khelta hai is tarah tumhaari choot ke saath jaise main khel raha hun."


"nahi. Vo aisa kuch nahi karte. Mujhe chod do varna...aahhhhh" bolte bolte mere muh se siski nikal gayi. Meri yoni ne paani chod diya tha.


"badi jaldi paani chod diya. Baate to badi badi karti ho. Dekho khud ab kaise maje lut rahi hai tumhari choot."


"ye jabardasti karvaya tumne."


"jabardasti choot ka paani nahi nikalva sakta koyi."


"tum ek number ke kamine ho aahhhhh."main cheenkh padi kyonki chacha ne meri yoni mein ungli daal di thi. gili hone ke kaaran ungli badi jaldi ander ghuss gayi thi.


"vaah kya chikni choot hai tumhaari. Maine theek hi andaja lagaya tha. tumhaari choot tumhaari gaanD ke jaisi hi kayamat hai. Achha ek baat bataao. Hafte mein kitni baar maarta hai gagan teri choot."


"tumhe us se kya matlab ungli baahar nikalo apni."


Chacha ne meri yoni mein har taraf apni ungli ghumani shuru kar di aur bola, "itni bhi kya jaldi hai abhi to bas ghussayi hi hai."


Phir na jaane chacha ne ungli ke saath kya kiya main bahut jor se chillaai aur meri yoni ne phir se paani chod diya. Mujhe samajh mein nahi aa raha tha ki aisa kyon ho raha hai. Jabki main to puri koshis kar rahi thi kuch bhi feel na karne ki. Magar uski ungli meri yoni mein kuch ajeeb sa jaadu kar rahi thi.



Chacha ne mera haath chod diya aur mere baayein ubhaar ko thaam kar use masalne laga. Ab chacha ka ek haath mere ubhaar par tha aur ek haath meri yoni par. Mere nitambo par halka halka chacha ka ling mahsus ho raha tha. main itni madhosh ho chuki thi ki ab main vaha chupchaap aankhe band kiye khadi thi aur chacha mere peeche khada manchahe dhang se mere ango se khel raha tha.
Door bell baji to main hosh mein aayi. Maine turant chacha ko jor se dhakka diya aur vaha se bhaag kar apne bedroom mein aa gayi. Ander aate hi maine kundi laga li. Mera dil bahut jor jor se dhadak raha tha.


Abhi main sambhli bhi nahi thi ki darvaje par dastak huyi.


"nidhi beti tumhari koyi chithi aayi hai. Tumhe hastakshar karne honge."chacha ne baahar se awaaj di.


Maine darvaja khola aur bina chacha ki taraf dekhe seedha mukhya dwar ki taraf badh gayi. Maine chithi lekar sign kar diye. Chithi lekar main apne bedroom ki taraf badh hi rahi thi ki chacha ne mera haath pakad liya aur bola,


"choda na paani teri choot ne aaj phir. Tu sach mein maje lutati hai mere saath."


"tumhe tumhare kiye ki saja jaroor milegi dehati. Bas dekhte jaao." Uska haath jhatak kar main daud kar apne bedroom mein ghuss gayi.



"aaj tumhara pardafaash kar dungi main gagan ke saamne. Bade baal brahmchari bane firte ho huh...." maine man hi man socha.Shaam ko jab gagan ghar aaye tabhi main apne bedroom se baahar nikli. Main man hi man khus ho rahi thi ki aaj gagan ke saamne chacha ka jhuta nakaab utar jaayega. Drawing room mein jab koyi nahi tha tab maine chupchap camera uthaya aur camera lekar toilet mein chali gayi.


Gagan ko deekhane se pahle main khud recorded clip ko dekhna chaahti thi. Magar mujhe bahut bada jhatka laga. Camera mein aisa kuch bhi record nahi hua tha jis se chacha ka pardafaas kiya ja sake. Darasal chacha ki chhedkani record hone se pahle hi memory card full ho gaya tha aur recording band ho gayi thi.



"oh no mujhe itna kuch sahna pada par isme kuch bhi record nahi hua. Ab phir se vahi sab sahna padega." ye khyaal aate hi mere tan badan mein beejli ki lahar si daud gayi. Maine khud ko bahut kosa kyonki mera sharir pata nahi kyon phir se chacha ke haatho ka khilona banane ke liye taiyar tha.


"chacha ko phansate phansate main kahi khud hi na uske jaal mein phans jaaun. Uski chhedkani yaad aate hi ajeeb si halchal hoti hai tan badan mein. Aisa lagta hai jaise mujhe ye sab achha lagta hai."


"nahi nahi mujhe ye sab achha kaise lag sakta hai. Vo badsurat dehati mujhe bilkul achha nahi lagta."


"par mere ang pratyang uske haatho ke ishare par naachte hain. Aaj phir se usne meri yoni ko paani chodane par majboor kar diya jabki main khud ko sambhalne ki puri kosish kar rahi thi. Bahut samjha rahi thi main apni yoni ko ki aisa kuch nahi karna hai. Par meri ek nahi chali aur phir se meri panties gili ho gayi. Sach yahi hai ki mujhe ye sab achha lagta hai."

"nahi ho sakta aisa. Mujhe ye sab achha bilkul nahi lag sakta. Usne jabardasti karvaya mujhse sab kuch."

"jabardasti orgasm nahi karva sakta koyi nidhi. Sach ko swikar karo tumhe ye sab achha lagta hai. Gagan ko ye sab bata dogi to nuksaan tumhara hi hoga. Phir ye sab enjoy karne ko nahi milega."

"main koyi enjoy nahi kar rahi hun. Sab kuch mujh par thopa ja raha hai."

"haan ye sach hai ki sab kuch thopa ja raha hai par ye mat bhulo ki tumhe ye sab achha lagne laga hai. Dekha tha na tumne. Jab tum khidki mein khadi thi tab tumhari yoni chacha ki chhedkani soch kar hi gili ho gayi thi."

"vo ittefaak tha"

"hehehehe khud ko dhoka de rahi ho tum. Aur chacha sirf tumhe chhedta hi to hai.

Asli mein sex to karne ki kosish nahi kar raha hai vo. Phir kyon gagan ko sab kuch bata kar apne pairo par kulhadi maarti ho."

"aaj usne ungli daal di thi ander. Aur kya rah gaya. Main ye sab nahi hone de sakti."

"bas ungli hi to daali thi usne. Apna mota vo to nahi daala na. Aur usne apni diary mein likha bhi tha ki vo tumhare saath aisa kuch nahi karega kyonki tum gagan ki biwi ho."

"bullshit. Ander ungli daalna koyi chhoti baat nahi hoti. Jo bhi ho main ye sab nahi hone dungi mere saath aur chacha ke chehre se uska jhuta nakaab hata kar rahungi. Main dubara camera laga kar sab kuch record karungi. Is baar khaali memory card lagaaungi camera mein."

"soch lo. Phir ye enjoyment nahi milega tumhe. Chodo camera ko aur sab enjoy karo. Vaise bhi sirf kuch hi din ki baat aur hai phir vo chala jaayega."

Chacha ke kaaran mere man mein anterdvandh ho gaya tha. Mera man dau hisso mein bat gaya tha.

"Nidhi kaha ho tum?" baahar se gagan ki awaaj aayi to mera dhyaan tuta.

"mujhe is dehati se nafrat hai aur main iska pardafaash karke rahungi." main dridh nishchay karke toilet se baahar aa gayi.

Gagan ko apne office ki ek file nahi mil rahi thi. Isiliye mujhe dhund rahe the.


Agle din dopahar ko achanak musladhar baaris shuru ho gayi. chatt par kapde sukh rahe. Kapde utaarne ke liye main turant chatt ki taraf bhaagi. Kapde utar kar main seedhiyon ki taraf badhi hi thi ki mera paanv phisal gaya aur main dhadaam se neeche gir gayi. Meri kamar jor se neeche takrayi thi. Dard ki lahar pure sharir mein daud gayi thi.

Dhadaam ki awaaj sun kar chacha upar daud kar aaya. Tab tak main puri bheeg chuki thi.

"arey nidhi beti kya hua?" chacha mujhe uthane ke liye aage badha.

"dur raho mujhse. Main khud uth jaaungi." main chillaai.


Kisi tarah main dheere se uthi. Meri kamar daayein paanv mein bahut dard ho raha tha. Mere pahne kapde bhi bheeg gaye the aur jo kapde mein utaarne aayi thi vo bhi bheeg gaye the. Kapde gile hone ke kaaran mere sharir se chipak gaye the jiske kaaran mere ubharon aur nitambo ki shape bilkul saaf deekhne lagi thi. Chacha ki aankhe chamak rahi thi ye nazara dekh kar. Vo ek tak mujhe ghure ja raha tha.

"kamina kahi ka. Moke ka faayda utha raha hai hai." main socha.

Maine jab seedhiyon ki taraf kadam badhaya to mujhe daayein paaon mein bahut dard mahsus hua. Aisa lag raha tha jaise ki paaon mein moch aa gayi ho. Badi muskil se main neeche utri.

Maine garam paani se naha kar kapde change kiye magar phir bhi dard se raahat nahi mili. Paaon mein dard badhta hi ja raha tha. Jab dard asahniya ho gaya to maine gagan ko phone milaya aur unhe saari baat batayi.

"kya jaroorat thi itni tej baaris mein tumhe chatt par jaane ki." gagan mujhe daantne lage.

"kapde the na upar. Vo utaarne gayi thi. Dard to kamar mein bhi hai par paaon ki ye moch bahut pareshaan kar rahi hai."

"tum aisa karo phone chacha ji ko do."

"kyon...vo sho rahe honge."

"dopahar ko nahi shote hain vo. Jaao meri baat karvao unse."

"par baat kya hai?"

"unhe paaon ki moch utaarni aati hai. Main unko bol deta hun vo moch utaar denge."

"what...tum hosh mein to ho. Main unse apni moch nahi utarvaungi."

"kyon...vo expert hain. Ek baar gaaon mein jab mere paaon mein moch aa gayi thi to unhone jhat se moch utaar di thi. Tum unhe phone to do."

Marti kya na karti. Main chacha ke kamre ki taraf chal di. Chacha apne bistar par aankhe band kiye pada tha. Maine darvaja khadkaya to vo uth kar baith gaya.

"arey nidhi beti aao aao"

"gagan aapse baat karna chaahte hain." maine phone chacha ko thama diya aur baahar aakar drawing room mein baith gayi. Chacha phone pe baat karta hua apne kamre se baahar nikla.

"tum chinta mat karo gagan beta. Main abhi nidhi beti ki moch utaar deta hun. Tum apne kaam par dhyaan do."

Chacha ne mujhe phone dete hue kaha, "yahi moch utaarun tumhari ya tumhare kamre mein"

"mujhe koyi moch voch nahi utarvani. Aap apna kaam kijiye."

"nakhre mat karo. Ek pal mein dard gaayab ho jaayega tumhara.laao paaon aage karo."

"dur raho mujhse." maine chacha ko daant diya.

Tabhi phir se gagan ka phone aa gaya.

"chacha ko bol diya hai maine. Unhone shuru ki kya paaon ki maalish."

"nahi abhi nahi."
kramashah…………………………………


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Re: बिन बुलाया मेहमान

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बिन बुलाया मेहमान-9

गतान्क से आगे……………………

चाचा ने आगे बढ़ कर मेरा हाथ पकड़ लिया और खींच कर मुझे सोफे से उठा दिया.

"फोन दो उन्हे मैं उन्हे जल्दी करने को बोलता हूँ. मोच का दर्द बहुत बेकार होता है." गगन ने कहा.

"शुरू करने वाले हैं तुम चिंता मत करो बाए." मैने फोन काट दिया क्योंकि चाचा मुझे खींच कर अपने कमरे तक ले आया था.

"रूको मेरे बेडरूम में चलते हैं." मैने कहा. मेरा प्लान था कि मैं अपने बेडरूम में कॅमरा लगा लूँगी ताकि चाचा की हर हरकत रेकॉर्ड होती जाए.

"जैसी तुम्हारी मर्ज़ी."

"आप थोड़ी देर रुकिये मैं बेडरूम में बिखरे अपने कपड़े समेट लूँ."

"ठीक है"

मैने झटपट अपने बेडरूम में आकर कॅमरा फिट किया. मैं कॅमरा ऑन करके हटी ही थी कि चाचा की आवाज़ आई. "आ जाउ क्या बेटी."

"कितना उतावला हो रहा है मोच के बहाने मेरे साथ छेड़खानी के लिए. आज तुम्हारी खैर नही."

"जी आ जाइए"

चाचा अंदर आ गया और बोला "तुम आराम से बिस्तर पर लेट जाओ. चिंता की कोई बात नही है. अभी मोच उतार देता हूँ."

"देखो पाओं के अलावा कही और हाथ मत लगाना." मैने चेतावनी दी.

"ठीक है...तुम लेटो तो सही."

क्योंकि सब कुछ रेकॉर्ड हो रहा था इसलिए मैं पीठ के बल लेट गयी. चाचा ने मेरे दायें पाओं को दोनो हाथो में लिया तो मेरा शरीर कापने लगा. चाचा ने भी मेरी कप कपि को महसूस किया.

"क्या हुआ? मज़े लेने लगी अभी से. बहुत प्यासी लगती हो. लगता है गगन ठीक से ध्यान नही दे रहा तुम पर."

"बकवास मत करो देहाती. मोच ठीक करने पर ध्यान दो"चाचा ने मेरे पाओं की मालिश शुरू कर दी. 10 मिनिट तक वो मेरे पाओं की मालिश करता रहा पर दर्द में ज़रा भी राहत नही मिली.

"कुछ आराम मिला क्या."

"नही अभी नही. आप रहने दीजिए मैं डॉक्टर को दीखा लूँगी."

"नस बहुत बुरी तरह चढ़ि हुई है एक दूसरे के उपर. तुम पीठ के बल गिरी थी ना?"

"आपने देखा तो था."

"हां देखा था. तुम्हारे चूतरों की नशे भी खींच गयी हैं. इसीलिए सिर्फ़ यहा मालिस करने से बात नही बनेगी."

"ये सब बहाने बाजी है तुम्हारी वहाँ हाथ लगाने के लिए. मैं खूब अच्छे से जानती हूँ."

"जब मुझे हाथ लगाना होता है मैं लगा ही लेता हूँ. तुम्हारी इजाज़त नही माँगता. मैं सच कह रहा हूँ तुम्हारे पाओं के दर्द को दूर करने के लिए मुझे वहाँ हाथ लगा कर देखना ही होगा. वहाँ भी नसे एक दूसरे पर चढ़ि होंगी. तुम्हे हल्का हल्का वहाँ दर्द भी हो रहा होगा."

"दर्द तो गिरने के कारण होगा. वहाँ मोच का क्या मतलब."

"मतलब है निधि. नसे आपस में जुड़ी होती है. जब तक तुम्हारे चूतरों की नशो का खीचव नही हटेगा पाओं की मोच ठीक नही होगी."

"बुलशिट. आइ डोंट बिलीव दिस."

"क्या कहा हिन्दी में बोलो. मुझे इंग्लीश नही आती."

"ये सब बकवास है. रहने दीजिए मैं शाम को डॉक्टर को दिखवा लूँगी."

"तुम्हारी मर्ज़ी. मैं तो तुम्हारे भले के लिए बोल रहा था."

"मेरा कितना भला चाहते हैं आप मैं जानती हूँ. मैं खूब समझ रही हूँ कि आप मोच के बहाने मेरे शरीर के साथ गंदी हरकत करेंगे."

"वो तो मैं वैसे भी कर सकता हूँ. इस वक्त सिर्फ़ तुम्हारा दर्द दूर करना चाहता हूँ मैं. देखो कैसी छम छम बारिस हो रही है. ऐसे में दर्द में पड़ी रहोगी तुम तो बारिश का मज़ा नही ले पाओगि."

दर्द तो मुझे बहुत हो रहा था. दर्द के कारण मेरी जान निकली जा रही थी. चाचा की ये बाते सुन कर मैं सोच में पड़ गयी थी. ये बात सही थी कि चाचा चाहता तो फिर से मेरे साथ ज़बरदस्ती करके मुझे कही भी च्छू सकता था.

मगर मैं खुद उसे छुने की इजाज़त नही दे सकती थी. लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा था. मुझे समझ में नही आ रहा था की क्या करूँ. मैं गगन को कोस रही थी. उसने मुझे अजीब मुसीबत में फँसा दिया था.

"सोच क्या रही हो...तुम ऐसे नही मानोगी." चाचा बिस्तर पर चढ़ गया और मुझे कंधो से पकड़ कर बेड पर उल्टा घुमा दिया. पहले मैने रेज़िस्ट करने की कोशिश की पर अपने दर्द का सोच कर मैने अपना रेसिस्टेंसे त्याग दिया.

चाचा मेरे दाईं तरफ मेरे घुटनो के बल बैठ गया.

"देखो सिर्फ़ मोच उतारने पर ध्यान देना. अगर कोई भी ऐसी वैसी हरकत की तुमने तो मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी."

"बता देना जो बताना है. तुम्हारे भले के लिए करूँगा जो भी करूँगा."

चाचा ने मेरे दायें नितंब के गुंबद के शिर्स पर बीचो बीच अपना दायां अंगूठा रख दिया. मेरे नितंब की गोलाई पर चाचा का अंगूठा टिकते ही एक तेज लहर सी मेरे बदन में दौड़ गयी.

"क्या हुआ?"

"क...क..कुछ नही. कितना टाइम लगेगा इसमे."

"ज़्यादा टाइम नही लगेगा घबराओ मत." चाचा ने अंगूठे से मेरे नितंब की दाईं गोलाई को ज़ोर से प्रेस किया और बोला, "कुछ फरक पड़ा पाओं में."

"नही" मैने तुरंत कहा.

चाचा ने अपना दायां अंगूठा मेरे बायें नितंब की गोलाई पर रख कर ज़ोर से दबाया और बोला, "अब कुछ फरक पड़ा."

"नही"

"कोई बात नही अब फरक पड़ेगा." चाचा ने अपने दोनो हाथ फैला कर मेरे नितंबो की गोलाई पर रख दिए और उन्हे ज़ोर से प्रेस किया. मेरे शरीर में अजीब सी बेचैनी हो रही थी चाचा की इन हर्कतो से. मगर फिर भी मैं दम साधे चुपचाप वहाँ पड़ी रही. कुछ देर तक चाचा मेरे नितंब के दोनो गुम्बदो को हाथो से नीचे की और दबाता रहा. मगर अचानक उसने मेरी दोनो गोलैईयों को आटे की तरह गुंथना शुरू कर दिया. उसकी इस हरकत से मेरी साँसे तेज चलने लगी और रह रह कर एक अजीब सी तरंग शरीर में दौड़ने लगी. कब मेरी योनि गीली हो गयी मुझे पता ही नही चला.

"कम्बख़त मेरे अंग इसके हाथो का खिलोना बन जाते हैं. फिर से मेरी गीली हो गयी. ऐसा क्यों होता है मेरे साथ." मैं खुद को कोसने लगी.

"कुछ फरक पड़ा निधि?"

"कुछ फरक नही पड़ा. आप मोच के बहाने अपनी हवस पूरी कर रहे हैं. हट जाओ. मुझे नही उतरवानी मोच तुमसे."

"सय्यम से काम लो निधि. देखो नस एक दूसरे पर चढ़ जाए तो मुस्किल से उतरती है. यहा सबसे बड़ी दिक्कत ये है की कपड़ो के कारण मुझे तुम्हारी नसे दीखाई नही दे रही."

"आ गये ना अपनी औकात पर. अब सब सॉफ हो गया. तुम ये सब अपनी हवस के लिए कर रहे हो. मुझे तो ये समझ में नही आ रहा कि मोच मेरे पाओं में है और तुम कही और ही लगे हुए हो."

"देखो सभी अंग एक दूसरे से जुड़े हैं. तुम देखना पाओं की मोच यही से ठीक होगी. तुम बस थोड़ी सी सलवार नीचे सरका लो."

"एक नंबर की बकवास है ये. मैं यहा दर्द से मरी जा रही हूँ और तुम्हे बस अपने काम से मतलब है."

"ऐसा नही है निधि. थोड़ी नीचे सरकाओ सलवार. जितनी जल्दी नीचे सर्काओगि सलवार उतनी जल्दी तुम्हारा दर्द दूर होगा."

"तुम्हे शरम नही आती ऐसा बोलते हुए. गगन को पता चलेगा तो तुम्हारी खैर नही."

तभी मेरे मोबाइल बज उठा. फोन गगन का था.

"कुछ आराम मिला क्या?"

"नही अभी तक कोई आराम नही मिला."

"क्यों चाचा जी ने मोच नही उतारी क्या अभी तक."

"वो लगे हुए हैं पर कोई फ़ायडा नही हो रहा."

"कोई बात नही चाचा जी पर भरोसा रखो. वो एक्सपर्ट हैं इस काम में."

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: बिन बुलाया मेहमान

Post by rajsharma »

मैं गगन के साथ बातों में लगी थी कि चाचा ने एक झटके में कमर से दोनो हाथो से पकड़ कर उपर उठाया और मेरी सलवार का नाडा पकड़ लिया. इस से पहले की मैं कुछ समझ पाती नाडा खुल चुका था.

"नही...." मैं ज़ोर से चिल्लाई.

चाचा ने वापिस मुझे फोर्स्फुली नीचे लेटा दिया और फुर्ती से मेरी सलवार नीचे सरका दी. अब मेरे नितंबों के गुंबद सिर्फ़ मेरी पतली सी पॅंटीस में ढके हुए चाचा की आँखो के सामने थे.

"क्या हुआ निधि. इतनी ज़ोर से क्यों चिल्लाई." गगन ने पूछा.

मेरे एक हाथ में मोबाइल था और दूसरे हाथ से मैं अपनी अपनी सलवार उपर करने की कॉसिश कर रही थी. मुझे कुछ सूझ ही नही रहा था कि क्या करूँ. मैं उठने की कॉसिश कर रही थी पर मुझे चाचा ने दोनो हाथो से दबा रखा था. मैं छटपटा रही थी.

"क्या हुआ निधि कुछ तो बोलो."

"क...क कुछ नही बहुत दर्द हुआ अचानक से."

"होता है...ये मोच बड़ी बेकार चीज़ होती है."

"नही हटो..." मैं फिर से चिल्लाई क्योंकि इस बार चाचा ने मेरी पॅंटीस नीचे सरका दी थी. मैं तो शरम और ग्लानि से मरी जा रही थी. मेरे नितंब पहली बार गगन के अलावा किसी और की आँखो के सामने नंगे थे.

"अब क्या हुआ." गगन ने पूछा.

"गगन ये मोच चाचा जी से नही उतरेगी. मैं उन्हे फोन दे रही हूँ. तुम उन्हे बोल दो कि रहने दें." मैने गर्दन घुमा कर फोन चाचा की तरफ बढ़ा दिया.

"हां गगन बेटा.............नही नही तुम चिंता मत करो. दरअसल नसो पर नस बुरी तरह चढ़ि हुई है. थोड़ा टाइम लगेगा. मैने अपनी जींदगी में इतनी गंभीर मोच आज तक नही देखी..............हां हां तुम चिंता मत करो मैं निधि का दर्द दूर करके ही दम लूँगा."

चाचा ने फोन पर बात करते वक्त भी मुझे उठने का कोई मोका नही दिया. मेरी कमर पर उसने अपना घुटना टीका रखा था और एक हाथ से मेरे कांधो पर दबाव बना रखा था. गगन से बात करने के बाद चाचा ने फोन वापिस मुझे दे दिया.

"अरे निधि तुम्हाई मोच कोई मामूली मोच नही है. चाचा जी कह रहे हैं कि थोडा वक्त लगेगा. तुम धर्य से काम लो और चाचा जी पर विस्वास रखो. चाचा जी सब ठीक कर देंगे."

मैने गगन की बात सुन कर पीछे मूड कर देखा. चाचा मेरे निर्वस्त्र नितंबो को ललचाई नज़रो से देख रहा था. वो मेरे नितंबो से ठीक नीचे मेरी जाँघो पर बैठा था और दोनो हाथ मेरी कमर पर रख रखे थे. मेरी उस से नज़रे टकराई तो कमिने ने अपने बत्तीसी दिखाते हुए मुझे आँख मार दी. मैं शरम से पानी पानी हो गयी. दिल तो कर रहा था कि उसी वक्त गगन को सब कुछ बता दूं पर ये सोच कर रुक गयी कि फोन पर ये बात करनी ठीक नही होगी क्योंकि फोन पर मैं गगन को डीटेल में नही समझा पाउन्गि. वैसे भी कॅमरा में चाचा की सारी हरकते रेकॉर्ड हो रही थी. चाचा का पर्दाफास करने के लिए मुझे भारी कीमत चुकानी पड़ रही थी. मेरे बेचारे नितंब दाँव पर लग गये थे.

"क्या हुआ निधि किस सोच में पड़ गयी."

"मुझे नही लगता की चाचा ठीक कर पाएँगे."

"नही वो कर देंगे तुम शांति रखो. उन्हे अपना काम करने दो."

चाचा ने एक हाथ से मुझे दबाए रखा और दूसरे हाथ को धीरे धीरे नीचे सरकते हुए मेरे नितंबो के पास ले आए. मेरी योनि को तो वो च्छू ही चुका था और अंदर उंगली भी डाल चुका था. अब मेरे नितंब चाचा की हवस का शिकार होने वाले थे. और मैं चाह कर भी कुछ नही कर पा रही थी.

जब चाचा ने मेरी दाईं गोलाई पर हाथ रखा तो मैं सिहर उठी. एक बिजली की लहर सी पूरे शरीर में दौड़ गयी.

चाचा ने बड़े प्यार से मेरे नितंबो के दोनो गुम्बदो पर हाथ फिराया. फिर अचानक उसने बड़ी बेरहमी से उन्हे मसलना शुरू कर दिया. ऐसा लग रहा था जैसे कि आटा गूँथ रहा हो. मेरी जो हालत हो रही थी वो मैं ही जानती थी. मेरे दोनो गुंबद चाचा की इन छेड़खानियो से मचलने लगे थे. उनमे रह रह कर सिहरन सी हो रही थी. ये बात मुझे बिल्कुल अच्छी नही लग रही थी और मैं वहाँ से उठने के लिए छटपटा रही थी पर चाचा ने मुझे कुछ इस तरह से दबा रखा था कि मैं कुछ भी नही कर पा रही थी. मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था. मैने मोबाइल उठाया और बोली, " हट जाओ तुम वरना मैं गगन को सब कुछ बता दूँगी."

"पागल मत बनो. अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मत मारो. तुम्हे ये अच्छा लग रहा है. मैं शर्त लगा सकती हूँ की इस वक्त तुम्हारी चूत रस टपका रही होगी. क्यों अपने मज़े में खलल डालती हो."

"शट अप मुझे कुछ अच्छा नही लग रहा."

"देखूं तुम्हारी चूत पर हाथ लगा कर."

"तुम्हे शरम नही आती. मोच के बहाने मेरे साथ इतनी गंदी हरकते कर रहे हो. मैं अभी गगन को सब कुछ बता दूँगी."

मैने गगन का नंबर डाइयल किया पर उसने फोन नही उठाया. मैने दुबारा नंबर डाइयल किया ही था कि मेरी साँसे एक दम से थम गयी. चाचा ने मेरे नितंबो की दरार पर उंगली फिरा रहा था.

"कितनी मस्त गान्ड है तुम्हारी. एक दम गोरी चिटी और चिकनी. कोई भी फिदा हो जाएगा इस गान्ड पर. गगन के तो खूब मज़े लगे हुए हैं." बोलते हुए चाचा ने मेरे दोनो गुम्बदो को फैला दिया हाथो से और मेरे नितंब के छिद्र को निहारने लगा.

"ऊऊहह क्या गान्ड कसम से. इसका छेद भी कितना चिकना है. एक भी बाल नही है. निधि सच कह रहा हूँ इतनी सुंदर गान्ड मैने आज तक नही देखी."

"शट अप यू पिग."

"हिन्दी में गाली दो ना."

"हट जाओ तुरंत नही तो बहुत बुरा होगा तुम्हारे साथ."

"जो छ्छोकरी मुझे पसंद आ जाती है उसके साथ मैं अपनी मर्ज़ी चलता हूँ. जो होगा देखा जाएगा."

चाचा ने मेरे पीछले छिद्र पर उंगली टिकाई तो मेरी कपकपि छूट गयी.

"क्या हुआ मचल उठी ना."

"अंदर मत डालना उंगली समझे नही तो खून पी जाउन्गि तुम्हारा."

"देखो तुम्हारे पाओं की मोच का इलाज तुम्हारी गान्ड के छेद में च्छूपा है. अंदर उंगली डालनी ही पड़ेगी तुम्हारी मोच ठीक करने के लिए."

"बुलशिट...बकवास है ये एक नंबर की. मोच के बहाने कुछ भी कर लो आआअहह नही हट जाओ." बोलते बोलते मैं चीन्ख पड़ी क्योंकि देहाती ने उंगली मेरे पीछले छिद्र में डाल दी थी. पहली बार उसमे कुछ अंदर गया था इसलिए असह्निय पीड़ा हो रही थी.

क्रमशः...................................................

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