"दिमाग़ है तेरे पास. कल छप्वा देता हूँ ", वो उठते हुए बोला "तू अभी घर जाएगा या ऑफीस छ्चोड़ूं तुझे"
"ऑफीस छ्चोड़ दे" मैने घड़ी की तरफ देखते हुए कहा "कुच्छ काम निपटाना है"
हम दोनो बंगलो से बाहर निकले और पोलीस जीप में मेरे ऑफीस की और चले. रास्ते में मेरे दिमाग़ में एक बात आई.
"यार मिश्रा एक बात बता. जो आदमी इतना छुप कर रह रहा हो जैसे के ये मनचंदा रह रहा था तो क्या वो अपने असली नाम से रहेगा? तुझे लगता है के मनचंदा उसका असली नाम था?"
मेरी बात सुनकर मिश्रा हाँ में सर हिलाने लगा
"ठीक कह रहा है तू. और इसी लिए शायद मुझे पोलीस रिपोर्ट्स में किसी मनचंदा के गायब होने की कोई रिपोर्ट नही मिली क्यूंकी शायद मनचंदा उसका असली नाम था ही नही." मिश्रा ने सोचते हुए जवाब दिया
वहाँ से मैं ऑफीस पहुँचा तो सबसे पहले प्रिया से सामना हुआ.
"झूठ क्यूँ बोला था?" उसने मुझे देखते ही सवाल दाग दिया
"क्या झूठ?" मैने अंजान बनते हुए कहा
"यही के वो आपका दोस्त मिश्रा आ रहा है" मेरे बैठते ही वो मेरे सामने आ खड़ी हुई
मैं जवाब नही दिया तो उसने फिर अपना सवाल दोहराया
"अरे पगली तू समझती क्यूँ नही. वजह थी मेरे पास झूठ बोलने की" मैने अपनी फाइल्स में देखने का बहाना करते हुए कहा
"वही वजह पुच्छना चाहती हूँ" वो अपनी बात पर आडी रही. मैने जवाब नही दिया
"ठीक है" उसने मेरे सामने पड़ा हुआ पेपर उठाया और जेब से पेन निकाला "अगर आपको मुझपर भरोसा नही और लगता है के आपको मुझसे झूठ बोलने की भी ज़रूरत है तो फिर मेरे यहाँ होने का कोई मतलब ही नही. मैं रिज़ाइन कर रही हूँ"
"हे भगवान" मैने अपना सर पकड़ लिया "तू इतनी ज़िद्दी क्यूँ है?"
"झूठ क्यूँ बोला?" उसने तो जैसे मेरा सवाल सुना ही नही
"अरे यार तू एक लड़की है और मैं एक लड़का. यूँ तू मेरे सामने कपड़े बदल रही थी तो मुझे थोड़ा अजीब सा लगा इसलिए मैने तुझे मना कर दिया. बस इतनी सी बात थी" मैने फाइनली जवाब दिया
"सामने कहाँ बदल रही थी. आपने तो दूसरी तरफ मुँह किया हुआ था" उसने नादानी से बोला
"एक ही बात है" मैं फिर फाइल्स की तरफ देखने लगा
"एक बात नही है" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "और आप मुझे कबसे एक लड़की समझने लगे. आप तो मुझे हमेशा कहते थे के मैं एक लड़के की तरह आपकी दोस्त हूँ और आपके बाकी दोस्तों में और मुझ में कोई फरक नही"
मुझे अब थोड़ा गुस्सा आने लगा था पर मैने जवाब नही दिया
"बताओ" वो अब भी अपनी ज़िद पर आडी हुई थी
"फरक है" मैने सामने रखी फाइल्स बंद करते हुए बोला और गुस्से से उसकी तरफ देखा "तू नही समझती पर फरक है"
"क्या फरक है?" उसने भी वैसे ही गुस्से से बोला
"प्रिया फराक ये है के मेरे उन बाकी दोस्तों के सीने पर 2 उभरी हुई छातिया नही हैं. जब वो कोई टाइट शर्ट पेहेन्ते हैं तो उनके निपल्स कपड़े के उपेर से नज़र नही आने लगते"
ये कहते ही मैने अपनी ज़ुबान काट ली. मैं जानता था के गुस्से में मैं थोड़ा ज़्यादा बोल गया था. प्रिया मेरी तरफ एकटूक देखे जा रही थी. मुझे लग रहा था के वो अब गुस्से में ऑफीस से निकल जाएगी और फिर कभी नही आएगी.
"सॉरी" मुझसे और कुच्छ कहते ना बना
पर जो हुआ वो मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा था. वो ज़ोर ज़ोर से हस्ने लगी.
"इतनी सी बात?" वो हस्ते हुए बोली
"ये इतनी सी बात नही है" मैने झेन्पते हुए कहा
"इतनी सी ही बात है. अरे यार दुनिया की हर लड़की के सीने पर ब्रेस्ट्स होते हैं. मेरे हैं तो कौन सी बड़ी बात है?" वो मेरे साथ बिल्कुल ऐसे बात कर रही थी जैसे 2 लड़के आपस में करते हैं.
उसके हस्ने से मैं थोड़ा नॉर्मल हुआ और मुस्कुरा कर उसकी तरफ देखने लगा
"और अब मेरे ब्रेस्ट्स पर निपल्स हैं तो वो तो दिखेंगे ही. बाकी लड़कियों के भी दिखते होंगे शायद. मैने कभी ध्यान से देखा नही" वो अब भी हस रही थी
"नही दिखते" मैं भी अब नॉर्मल हो चुका था "क्यूंकी वो अंदर कुच्छ पेहेन्ति हैं"
"क्या?" उसने फ़ौरन पुचछा
"ब्रा और क्या" जब मैने देखा के वो बिल्कुल ही नॉर्मल होकर इस बारे में बात कर रही है तो मैं भी खुल गया
"ओह. अरे यार मैने कई बार कोशिश की पर मेरा दम सा घुटने लगता है ब्रा पहनकर. लगता है जैसे सीने पर किसी ने रस्सी बाँध दी हो इसलिए नही पहना" वो मुस्कुरा कर बोली
मैं भी जवाब में मुस्कुरा दिया. वो मेरे साथ ऐसे बात कर रही थी जैसे वो किसी लड़की से बात कर रही हो. उस वक़्त मुझे उसके चेहरे पर एक भोलापन सॉफ नज़र आ रहा था और दिखाई दे रहा था के वो मुझपर कितना विश्वास करती है
"एक मिनिट" अचानक वो बोली "आपको कैसे पता के मैने अंदर ब्रा नही पहेन रखी थी?"
मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नही था
प्रिया ने मुझे ज़ोर देकर कपड़ो के बारे में फिर से पुचछा तो मैने उसको बता दिया के वो कपड़े अजीब हैं और उसपर अच्छे नही लगेंगे. शाम को वो कपड़े वापिस देने गयी तो मुझे भी ज़बरदस्ती साथ ले लिया. ऑफीस बंद करके हम निकले और थोड़ी ही देर बाद एक ऐसी दुकान पर खड़े थे जहाँ लड़कियों के कपड़े और ज़रूरत की दूसरी चीज़ें मिलती थी. दुकान पर एक औरत खड़ी हुई थी.
"कल मैने ये कपड़े यहाँ से लिए थे" प्रिया दुकान पर खड़ी औरत से बोली "तब कोई और था यहाँ"
"मेरे हज़्बेंड थे" दुकान पर खड़ी हुई औरत बोली "कहिए"
"जी मैं ये कपड़े बदलने आई थी. कोई दूसरे मिल सकते हैं? फिटिंग सही नही आई" उसने अपने पर्स से बिल निकालकर उस औरत को दिखाया
"ज़रूर" उस औरत ने कहा "आप देख लीजिए कौन से लेने हैं"
आधे घंटे तक मैं प्रिया के साथ बैठा लड़कियों के कपड़े देखता रहा. ये पहली बार था के मैं एक लड़की के साथ शॉपिंग करने आया था और वो भी लड़कियों की चीज़ें. थोड़ी ही देर में मैं समझ गया के सब ये क्यूँ कहते हैं के लड़कियों के साथ शॉपिंग के लिए कभी नही जाना चाहिए. आधे घंटे माथा फोड़ने के बाद उसने मुश्किल से 3 ड्रेसस पसंद की. एक सलवार सूट, 2 टॉप्स, 1 जीन्स और एक फुल लेंग्थ स्कर्ट जिनके लिए मैने भी हाँ की थी.
"मैं ट्राइ कर सकती हूँ?" उसने दुकान पर खड़ी औरत से पुचछा "कल ट्राइ नही किए थे इसलिए शायद फिटिंग सही नही आई"
"हां क्यूँ नही" उस औरत ने कहा "वो पिछे उस दरवाज़े के पिछे स्टोर रूम है. आप वहाँ जाके ट्राइ कर सकती हैं पर देखने के लिए शीशा नही है"
"कोई बात नही. ये देखके बता देंगे" प्रिया ने मेरी तरफ इशारा किया. हम तीनो मुस्कुराने लगे.
वो कपड़े उठाकर स्टोर रूम की तरफ बढ़ गयी. मैं दुकान से निकल कर पास ही एक पॅनवाडी के पास पहुँचा और सिगेरेत्टे जलाकर वापिस दुकान में आया. दुकान में कोई नही था. तभी वो औरत भी चेंजिंग रूम से बाहर निकली
"आपकी वाइफ आपको अंदर बुला रही हैं" उसने मुझसे कहा तो मुझे जैसा झटका लगा
"मेरी वाइफ?" मैने हैरत से पुचछा
"हाँ वो अंदर कपड़े पहेनकर आपको दिखाना चाहती हैं. आप चले जाइए" उसने स्टोर रूम की तरफ इशारा किया तो मैं समझ गया के वो प्रिया की बात कर रही है. मैं स्टोर रूम में दाखिल हुआ. अंदर प्रिया एक सलवार सूट पहने खड़ी ही.
"मैं तेरा हज़्बेंड कब्से हो गया?" मैने अंदर घुसते ही पुचछा
"अरे यार और क्या कहती उसको. थोड़ा अजीब लगता ना के मैं उसे ये कहती के यहाँ मैं आपके सामने कपड़े ट्राइ कर रही हूँ इसलिए मैने कह दिया के आप मेरे हज़्बेंड हो"
उसका जवाब सुनकर मैं मुस्कुराए बिना नही रह सका. तभी स्टोर रूम के दरवाज़े पर नॉक हुआ. मैने दरवाज़ा खोला तो वो औरत वहाँ खड़ी थी.
"आप लोग अभी हैं ना थोड़ी देर?" उसने मुझसे पुचछा तो मैं हां में सर होला दिया
"मुझे ज़रा हमारी दूसरी दुकान तक जाना है. 15 मिनट में आ जाऊंगी. तब तक आप लोग कपड़े देख लीजिए." उसने कहा तो हम दोनो ने हां में सर हिला दिया और वो चली गयी और मैने स्टोर रूम का दरवाज़ा बंद कर दिया. दुकान का दरवाज़ा वो जाते हुए बाहर से बंद कर गयी जिससे हम लोग उसके पिछे कपड़े लेकर भाग ना सकें.
मैं प्रिया की तरफ पलटा और एक नज़र उसको देखा तो मुँह से सीटी निकल गयी. वो सच में उस सूट में काफ़ी खूबसूरत लग रही थी.
"अरे यार तू तो एकदम लड़की बन गयी" मैने कहा "अच्छी लग रही है"
"थॅंक यू" उसने जवाब दिया" ये ले लूं? फिटिंग भी ठीक है"
"हाँ ले ले" मैने कहा
उसके बाद मैं स्टोर रूम के बाहर चला गया ताकि वो दूसरे कपड़े पहेन सके. उसने आवाज़ दी तो मैं अंदर गया. अब वो एक टॉप और जीन्स पहने खड़ी थी. इन कपड़ो में मेरे सामने फिर से वही लड़की खड़ी थी जिसको मैने सुबह देखा था. बड़ी बड़ी चूचियाँ टॉप फाड़कर बाहर आने को तैय्यार थी.
"ये कैसा है?" उसने मुझसे पुचछा
मैं एक बार फिर उसकी चूचियो की तरफ देखने लगा जिनपर उसके निपल्स फिर से उभर आए थे. उसने जब देखा के मैं कहाँ देख रहा हूँ तो अपने हाथ आगे अपनी छातियो के सामने कर लिए
"इनके सिवा बताओ के कैसी लग रही हूँ"
"अच्छी लग रही है" मैने हस्ते हुए जवाब दिया
उसने वैसे ही मुझे दूसरा टॉप और स्कर्ट पहेनकर दिखाया. उसे यूँ देख कर मैं ये सोचे बिना ना रह सका के अगर वो सच में लड़कियों की तरह रहे तो काफ़ी खूबसूरत है. अपना वो बेढंगा सा लड़को वाला अंदाज़ छ्चोड़ दे तो शायद उसकी गली का हर लड़का उसी के घर के चक्कर काटे.
मैं बाहर खड़ा सोच ही रहा था के स्टोर रूम से प्रिया की आवाज़ आई. वो मुझे अंदर बुला रही थी. मैं दरवाज़ा खोलकर अंदर जैसे ही गया तो मेरी आँखें खुली की खुली रह गयी.
वो अंदर सिर्फ़ स्कर्ट पहने मेरी तरफ अपनी पीठ किए खड़ी थी. स्कर्ट के उपेर उसने कुच्छ नही पहेन रखा था. सिर्फ़ एक ब्रा था जिसके हुक्स बंद नही थे और दोनो स्ट्रॅप्स पिछे उसकी कमर पर लटक रहे थे.
क्रमशः............................
Bhoot bangla-भूत बंगला
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
Read my all running stories
(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--4
गतान्क से आगे.....................
मैं अंदर घुसते ही फ़ौरन दूसरी तरफ पलट गया.
"क्या हुआ? उधर क्या देख रहे हो?" उसने मेरी तरफ पीठ किए किए ही पुचछा
"उधर कुच्छ नही देख रहा. तेरी तरफ ना देखने की कोशिश कर रहा हूँ" मैने जवाब दिया
"क्यूँ?" प्रिया भोलेपन से बोली
"क्यूंकी तू इस वक़्त मेरे सामने आधी नंगी खड़ी है इसलिए" मैने जवाब दिया और फिर बाहर जाने लगा
"अरे कहाँ जा रहे हो? इधर आओ" वो मुझे रोकते हुए बोली. अब भी उसकी पीठ मेरी तरफ थी
"क्या?" मैं रुक गया. पर अब भी मैने दूसरी तरफ चेहरा किया हुआ था.
"अरे यार अब ये फ़िज़ूल की नौटंकी छ्चोड़ो" वो थोड़ा सा चिड़के बोली "ज़रा मेरे पिछे आकर ये हुक्स बंद करो. मुझसे हो नही रहे"
मुझे समझ नही आ रहा था के हो क्या रहा है. या तो ये लड़की बिल्कुल बेवकूफ़ है या मुझपर कुच्छ ज़्यादा ही भरोसा करती है.
"कुच्छ पहेन ले प्रिया" मैने कहा
"हाँ पहेन लूँगी पर ज़रा ये हुक्स तो बंद करो. जल्दी करो ना" वो खुद ही थोड़ा सा मेरी तरफ सरक गयी.
जब मैने देखा के उसके दिल में कुच्छ नही है और ना ही वो मुझसे ज़रा भी शर्मा रही है तो मैं भी उसकी तरफ घूम गया और उसके नज़दीक गया. स्कर्ट उसने सरका कर काफ़ी नीचे बाँध रखा था और उसकी पॅंटी उपेर से दिखाई दे रही थी. मैने एक नज़र उसकी नंगी कमर पर डाली तो अंदर तक सिहर उठा. आख़िर था तो एक लड़का ही ना. भले वो लड़की कोई भी थी पर सामने एक लड़की आधी नंगी हालत में खड़ी हो तो असर तो होना ही था. मेरा लंड मेरी पेंट में झटके मारने लगा. मैने आगे बढ़कर उसकी ब्रा के दोनो स्ट्रॅप्स पकड़े और हुक लगाने की कोशिश करने लगा. मेरे दोनो हाथ की उसकी उंगलियाँ उसकी नंगी कमर पर लगी तो हटाने का दिल नही किया. मैने 2-3 बार कोशिश की पर हुक बंद नही कर पाया. एक बार मैने ज़ोर से कोशिश की तो थोड़ा सा हिली और पिछे को मेरे और करीब हो गयी. वो मुझसे हाइट में छ्होटी थी इसलिए उसके पिछे खड़े हुए मेरी नज़र सामने सीधा उपेर से उसके क्लीवेज पर पड़ी और नज़र जैसे वहीं जम गयी. ब्रा में उसकी चूचिया मुश्किल से क़ैद हो पा रही थी. मेरा दिल किया के अपने हाथ आगे करके उन दोनो चूचियो को मसल डालूं.
फाइनली मैं हुक बंद करने में कामयाब हो गया. प्रिया ने जब देखा के हुक लग गया तो वो आगे को हुई और मेरे सामने ही घूम गयी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.
"तुम कह रहे थे ने के मुझसे लड़की बन कर रहना चाहिए इसलिए मैने सोचा के ये भी ले ही लूँ" उसने कहा
पर मुझे तो जैसे उसकी आवाज़ आ ही नही रही थी. वाइट कलर के ब्रा में उसकी हल्की सावली चूचिया जैसे मुझपर कहर ढा रही थी. आधी से ज़्यादा चूचिया ब्रा के उपेर और साइड से लग रहा था मानो अभी गिर पड़ेंगी. मेरी नज़र वहीं जमकर रह गयी थी. मैने जब जवाब नही दिया तो प्रिया ने महसूस किया के मैं क्या देख रहा हूँ. उसने शर्मा कर अपने दोनो हाथ आगे कर लिए और फिर से दूसरी तरफ घूमकर खड़ी हो गयी.
तभी बाहर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और मैं समझ गया के दुकान की मलिक वो औरत आ गयी है. प्रिया ने फ़ौरन आगे बढ़कर एक टॉप उठाया और मैं दरवाज़ा खोलकर स्टोर रूम से बाहर आ गया
थोड़ी देर बाद हम कपड़े उठाकर दुकान से निकल गये और बस स्टॉप की तरफ बढ़े जहाँ से प्रिया बस लेकर घर जाती थी. स्टोर रूम में मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो शायद थोडा शर्मा गयी थी इसलिए कुच्छ कह नही रही थी और मुझे भी बिल्कुल समझ नही आ रहा था के बात कैसे शुरू करूँ. हम दोनो चुप चाप चलते रहे.
थोड़ी ही देर में वो अपनी बस में बैठकर जा चुकी थी. मैने एक ठंडी आह भारी और अपनी कार की तरफ बढ़ गया.
शाम को तकरीबन 7 बजे मैं घर पहुँचा और ये देखकर राहत की सास ली के देवयानी घर पर नही थी.
"बाहर वॉक के लिए गयी है" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए मुझे बताया.
वो किचन में खड़ी खाना बना रही थी. मैने जल्दी से अपना समान वहीं सोफे पर रखा और किचन के अंदर दाखिल हुआ और रुक्मणी के पिछे जा खड़ा हुआ. मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुए सीधा सामने उसकी चूचियो पर जा पहुँचा और मैं उसके गले को चूमते हुए उसकी चूचिया दबाने लगा. लंड पिछे से उसकी गांद से सॅट चुका था.
"क्या बात है बड़े मूड में लग रहे हो?" रुक्मणी आह भरते हुए बोली
मैं उसको कैसे बताता के प्रिया को यूँ ब्रा में देखकर लंड तबसे ही खड़ा हुआ है.
"कल रात तो आई नही थी ना" मैने लंड उसकी गांद पर रगड़ते हुए कहा
"वो देवयानी ..... "रुक्मणी कुच्छ कहना ही चाह रही थी के मैने उसको अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैने पागलों की तरह उसको चूमने लगा और वो भी उसी गर्मी से मेरा जवाब दे रही थी.
"बेडरूम में चलो" मैने रुक्मणी से कहा
"नही" उसने फ़ौरन जवाब दिया "देवयानी काफ़ी देर की गयी हुई है. आती ही होगी"
मैं समझ गया के वो कह रही थी के जो करना है जल्दी निपटा लें वरना कहीं ऐसा ना हो के देवयानी आ जाए और मामला अधूरा रह जाए. उसने उस वक़्त एक टॉप और नीचे पाजामा पहेन रखा था. उसको चूमते हुए मैने उसका टॉप उपेर उठाया और उसकी दोनो चूचिया हाथों में पकड़ ली. ब्रा उसने अंदर पहेन नही रखा था इसलिए टॉप उठाते ही चूचिया नंगी हो गयी. बहुत जल्द उसका एक निपल मेरे मुँह में था और दूसरा मेरे हाथ की उंगलियों के बीच.
"आआहह " रुक्मणी ने अपनी गर्दन पिछे झटकते हुए अपना हाथ सीधा मेरे लंड पर रख दिया और पेंट के उपेर से दबाने लगी.
आग काबू के बाहर हो रही थी. मैने उसके दोनो कंधे पकड़े और नीचे की और दबाया. वो मेरा इशारा समझकर फ़ौरन अपने घुटनो पर बैठ गयी और मेरी पेंट खोलने लगी. पेंट खोलकर उसने नीचे घुटनो तक खींची और मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया.
उसकी इस अदा का मैं क़ायल था. वो जिस तरह लंड चूस्ति थी वो मज़ा उसको चोदने में भी नही था. जो मज़ा वो अपने मुँह और हाथ से देती थी उसके चलते कई बार तो मेरा दिल करता था के मैं बस उससे लंड चुस्वता रहूं, चोदु ही ना. और उस वक़्त भी वो वही कर रही थी. मेरे सामने बैठी वो मेरा लंड पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लेती और अंदर उसपर जीभ फिराती. उसका एक हाथ मेरी बॉल्स सहला रहा था और दूसरे हाथ से वो लंड चूसने के साथ साथ मसल भी रही थी.
इससे पहले के मैं उसके मुँह में ही पानी गिरा देता, मैने उसको पकड़कर फिर से खड़ा किया और घूमकर हल्का सा झुका दिया. वो इशारा समझते हुए किचन में स्लॅब के उपेर झुक गयी और अपनी गांद उठाकर मेरे सामने कर दी. मैने उसका पाजामा और पॅंटी खींचकर उसको घुटनो तक कर दी और उसकी गांद को हाथों में थाम कर लंड चूत पर रखा.
"आआहह जल्दी करो" वो भी अब मेरी तरह जिस्म की आग में बुरी तरह झुलस रही थी और लंड चूत में लेने को मरी जा रही थी.
मैने लंड पर हल्का सा दबाव डाला और लंड के आगे का हिस्सा उसकी चूत के अंदर हो गया.
"पूरा घुसाओ" उसने झुके झुके ही कहा
मैने लंड थोडा बाहर खींचा और इस बार धक्का मारा तो रुका नही. लंड उसकी चूत में अंदर तक घुसता चला गया. वो कराह उठी. मैने उसका टॉप उपेर खींचा और पिछे से उसकी कमर सहलाते हुए फिर से हाथ आगे लाया और उसकी छतिया पकड़ ली.
"ज़ोर से दबाओ" रुक्मणी बोली तो मैं उसकी चूत पर धक्के मारता हुआ उसकी चूचिया ऐसे रगड़ने लगा जैसे उनसे कोई दुश्मनी निकल रहा था. पीछे उसकी चूत पर मेरे धक्के पूरी ताक़त के साथ पड़ रहे थे. हवा में एक अजीब सी वासना की खुसबु फेल गयी थी और हमारी आअहह की आवाज़ों के अलावा सिर्फ़ उसकी गांद पर पड़ते मेरे धक्को की आवाज़ सुनाई दे रही थी. मेरी खुद की आँखें भी बंद सी होने लगी थी और लग रहा था के किसी भी पल मेरा लंड पानी छ्चोड़ देगा. एक बार आँखें बंद हुई तो ना जाने सामने कैसे प्रिया का नंगा जिस्म फिर से आँखों में घूमने लगा और इस ख्याल ने मेरे मज़े को कई गुना बढ़ा दिया. मैने यूँ ही आँखें बंद किए प्रिया की चूचियो के बारे में सोचने लगा और पूरी तेज़ी के साथ रुक्मणी को चोदने लगा. मैं प्रिया के हर अंग के बारे में सोच रहा था. उसकी नंगी कमर, ब्रा में बंद चूचिया और उठी हुई गांद.
गांद का ख्याल आते ही मेरे हाथ अपने आपं रूमानी की गांद पर आ गये और मैं उसकी गांद सहलाने लगा. धक्को की रफ़्तार अब काफ़ी बढ़ चुकी थी और मैं जानता था के अब किसी भी वक़्त मैं ख़तम हो जाऊँगा. मैने रुक्मणी से गांद मारने के बारे में पुच्छने की सोची और उसकी एक अंगुली उसकी गांद में घुसाने की कोशिश की. अंगुली गांद पर महसूस होते ही वो फ़ौरन आगे को हो गयी और मना करने लगी. एक बार गांद मरवाने की कोशिश से वो इतनी डर गयी थी के अब अंगुली तक नही घुसाने देती थी.
"अंदर मत निकालना" वो मेरे धक्को की रफ़्तार से समझ गयी के मैं ख़तम होने वाला हूँ "बाहर गिराना"
मैने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर से उसको चोदने लगा
थोड़ी ही देर बाद देवयानी आ गयी और हम सब खाना खाकर अपने अपने रूम्स में चले गये.
अगले दिन सॅटर्डे था और सॅटर्डे सनडे को मैं काम नही करता था. चाय पीते हुए मैने न्यूसपेपर खोला तो फ्रंट पेज पर ही मनचंदा के बारे में छपा हुआ था के पोलीस को उसके बारे में कोई जानकारी नही है और अगर कोई कुच्छ जनता है तो पोलीस से कॉंटॅक्ट करे.
गतान्क से आगे.....................
मैं अंदर घुसते ही फ़ौरन दूसरी तरफ पलट गया.
"क्या हुआ? उधर क्या देख रहे हो?" उसने मेरी तरफ पीठ किए किए ही पुचछा
"उधर कुच्छ नही देख रहा. तेरी तरफ ना देखने की कोशिश कर रहा हूँ" मैने जवाब दिया
"क्यूँ?" प्रिया भोलेपन से बोली
"क्यूंकी तू इस वक़्त मेरे सामने आधी नंगी खड़ी है इसलिए" मैने जवाब दिया और फिर बाहर जाने लगा
"अरे कहाँ जा रहे हो? इधर आओ" वो मुझे रोकते हुए बोली. अब भी उसकी पीठ मेरी तरफ थी
"क्या?" मैं रुक गया. पर अब भी मैने दूसरी तरफ चेहरा किया हुआ था.
"अरे यार अब ये फ़िज़ूल की नौटंकी छ्चोड़ो" वो थोड़ा सा चिड़के बोली "ज़रा मेरे पिछे आकर ये हुक्स बंद करो. मुझसे हो नही रहे"
मुझे समझ नही आ रहा था के हो क्या रहा है. या तो ये लड़की बिल्कुल बेवकूफ़ है या मुझपर कुच्छ ज़्यादा ही भरोसा करती है.
"कुच्छ पहेन ले प्रिया" मैने कहा
"हाँ पहेन लूँगी पर ज़रा ये हुक्स तो बंद करो. जल्दी करो ना" वो खुद ही थोड़ा सा मेरी तरफ सरक गयी.
जब मैने देखा के उसके दिल में कुच्छ नही है और ना ही वो मुझसे ज़रा भी शर्मा रही है तो मैं भी उसकी तरफ घूम गया और उसके नज़दीक गया. स्कर्ट उसने सरका कर काफ़ी नीचे बाँध रखा था और उसकी पॅंटी उपेर से दिखाई दे रही थी. मैने एक नज़र उसकी नंगी कमर पर डाली तो अंदर तक सिहर उठा. आख़िर था तो एक लड़का ही ना. भले वो लड़की कोई भी थी पर सामने एक लड़की आधी नंगी हालत में खड़ी हो तो असर तो होना ही था. मेरा लंड मेरी पेंट में झटके मारने लगा. मैने आगे बढ़कर उसकी ब्रा के दोनो स्ट्रॅप्स पकड़े और हुक लगाने की कोशिश करने लगा. मेरे दोनो हाथ की उसकी उंगलियाँ उसकी नंगी कमर पर लगी तो हटाने का दिल नही किया. मैने 2-3 बार कोशिश की पर हुक बंद नही कर पाया. एक बार मैने ज़ोर से कोशिश की तो थोड़ा सा हिली और पिछे को मेरे और करीब हो गयी. वो मुझसे हाइट में छ्होटी थी इसलिए उसके पिछे खड़े हुए मेरी नज़र सामने सीधा उपेर से उसके क्लीवेज पर पड़ी और नज़र जैसे वहीं जम गयी. ब्रा में उसकी चूचिया मुश्किल से क़ैद हो पा रही थी. मेरा दिल किया के अपने हाथ आगे करके उन दोनो चूचियो को मसल डालूं.
फाइनली मैं हुक बंद करने में कामयाब हो गया. प्रिया ने जब देखा के हुक लग गया तो वो आगे को हुई और मेरे सामने ही घूम गयी और मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगी.
"तुम कह रहे थे ने के मुझसे लड़की बन कर रहना चाहिए इसलिए मैने सोचा के ये भी ले ही लूँ" उसने कहा
पर मुझे तो जैसे उसकी आवाज़ आ ही नही रही थी. वाइट कलर के ब्रा में उसकी हल्की सावली चूचिया जैसे मुझपर कहर ढा रही थी. आधी से ज़्यादा चूचिया ब्रा के उपेर और साइड से लग रहा था मानो अभी गिर पड़ेंगी. मेरी नज़र वहीं जमकर रह गयी थी. मैने जब जवाब नही दिया तो प्रिया ने महसूस किया के मैं क्या देख रहा हूँ. उसने शर्मा कर अपने दोनो हाथ आगे कर लिए और फिर से दूसरी तरफ घूमकर खड़ी हो गयी.
तभी बाहर दरवाज़ा खुलने की आवाज़ आई और मैं समझ गया के दुकान की मलिक वो औरत आ गयी है. प्रिया ने फ़ौरन आगे बढ़कर एक टॉप उठाया और मैं दरवाज़ा खोलकर स्टोर रूम से बाहर आ गया
थोड़ी देर बाद हम कपड़े उठाकर दुकान से निकल गये और बस स्टॉप की तरफ बढ़े जहाँ से प्रिया बस लेकर घर जाती थी. स्टोर रूम में मुझे अपनी तरफ यूँ देखता पाकर वो शायद थोडा शर्मा गयी थी इसलिए कुच्छ कह नही रही थी और मुझे भी बिल्कुल समझ नही आ रहा था के बात कैसे शुरू करूँ. हम दोनो चुप चाप चलते रहे.
थोड़ी ही देर में वो अपनी बस में बैठकर जा चुकी थी. मैने एक ठंडी आह भारी और अपनी कार की तरफ बढ़ गया.
शाम को तकरीबन 7 बजे मैं घर पहुँचा और ये देखकर राहत की सास ली के देवयानी घर पर नही थी.
"बाहर वॉक के लिए गयी है" रुक्मणी ने मुस्कुराते हुए मुझे बताया.
वो किचन में खड़ी खाना बना रही थी. मैने जल्दी से अपना समान वहीं सोफे पर रखा और किचन के अंदर दाखिल हुआ और रुक्मणी के पिछे जा खड़ा हुआ. मेरे हाथ उसकी कमर से होते हुए सीधा सामने उसकी चूचियो पर जा पहुँचा और मैं उसके गले को चूमते हुए उसकी चूचिया दबाने लगा. लंड पिछे से उसकी गांद से सॅट चुका था.
"क्या बात है बड़े मूड में लग रहे हो?" रुक्मणी आह भरते हुए बोली
मैं उसको कैसे बताता के प्रिया को यूँ ब्रा में देखकर लंड तबसे ही खड़ा हुआ है.
"कल रात तो आई नही थी ना" मैने लंड उसकी गांद पर रगड़ते हुए कहा
"वो देवयानी ..... "रुक्मणी कुच्छ कहना ही चाह रही थी के मैने उसको अपनी तरफ घुमाया और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैने पागलों की तरह उसको चूमने लगा और वो भी उसी गर्मी से मेरा जवाब दे रही थी.
"बेडरूम में चलो" मैने रुक्मणी से कहा
"नही" उसने फ़ौरन जवाब दिया "देवयानी काफ़ी देर की गयी हुई है. आती ही होगी"
मैं समझ गया के वो कह रही थी के जो करना है जल्दी निपटा लें वरना कहीं ऐसा ना हो के देवयानी आ जाए और मामला अधूरा रह जाए. उसने उस वक़्त एक टॉप और नीचे पाजामा पहेन रखा था. उसको चूमते हुए मैने उसका टॉप उपेर उठाया और उसकी दोनो चूचिया हाथों में पकड़ ली. ब्रा उसने अंदर पहेन नही रखा था इसलिए टॉप उठाते ही चूचिया नंगी हो गयी. बहुत जल्द उसका एक निपल मेरे मुँह में था और दूसरा मेरे हाथ की उंगलियों के बीच.
"आआहह " रुक्मणी ने अपनी गर्दन पिछे झटकते हुए अपना हाथ सीधा मेरे लंड पर रख दिया और पेंट के उपेर से दबाने लगी.
आग काबू के बाहर हो रही थी. मैने उसके दोनो कंधे पकड़े और नीचे की और दबाया. वो मेरा इशारा समझकर फ़ौरन अपने घुटनो पर बैठ गयी और मेरी पेंट खोलने लगी. पेंट खोलकर उसने नीचे घुटनो तक खींची और मेरा लंड अपने मुँह में भर लिया.
उसकी इस अदा का मैं क़ायल था. वो जिस तरह लंड चूस्ति थी वो मज़ा उसको चोदने में भी नही था. जो मज़ा वो अपने मुँह और हाथ से देती थी उसके चलते कई बार तो मेरा दिल करता था के मैं बस उससे लंड चुस्वता रहूं, चोदु ही ना. और उस वक़्त भी वो वही कर रही थी. मेरे सामने बैठी वो मेरा लंड पूरा का पूरा अपने मुँह में ले लेती और अंदर उसपर जीभ फिराती. उसका एक हाथ मेरी बॉल्स सहला रहा था और दूसरे हाथ से वो लंड चूसने के साथ साथ मसल भी रही थी.
इससे पहले के मैं उसके मुँह में ही पानी गिरा देता, मैने उसको पकड़कर फिर से खड़ा किया और घूमकर हल्का सा झुका दिया. वो इशारा समझते हुए किचन में स्लॅब के उपेर झुक गयी और अपनी गांद उठाकर मेरे सामने कर दी. मैने उसका पाजामा और पॅंटी खींचकर उसको घुटनो तक कर दी और उसकी गांद को हाथों में थाम कर लंड चूत पर रखा.
"आआहह जल्दी करो" वो भी अब मेरी तरह जिस्म की आग में बुरी तरह झुलस रही थी और लंड चूत में लेने को मरी जा रही थी.
मैने लंड पर हल्का सा दबाव डाला और लंड के आगे का हिस्सा उसकी चूत के अंदर हो गया.
"पूरा घुसाओ" उसने झुके झुके ही कहा
मैने लंड थोडा बाहर खींचा और इस बार धक्का मारा तो रुका नही. लंड उसकी चूत में अंदर तक घुसता चला गया. वो कराह उठी. मैने उसका टॉप उपेर खींचा और पिछे से उसकी कमर सहलाते हुए फिर से हाथ आगे लाया और उसकी छतिया पकड़ ली.
"ज़ोर से दबाओ" रुक्मणी बोली तो मैं उसकी चूत पर धक्के मारता हुआ उसकी चूचिया ऐसे रगड़ने लगा जैसे उनसे कोई दुश्मनी निकल रहा था. पीछे उसकी चूत पर मेरे धक्के पूरी ताक़त के साथ पड़ रहे थे. हवा में एक अजीब सी वासना की खुसबु फेल गयी थी और हमारी आअहह की आवाज़ों के अलावा सिर्फ़ उसकी गांद पर पड़ते मेरे धक्को की आवाज़ सुनाई दे रही थी. मेरी खुद की आँखें भी बंद सी होने लगी थी और लग रहा था के किसी भी पल मेरा लंड पानी छ्चोड़ देगा. एक बार आँखें बंद हुई तो ना जाने सामने कैसे प्रिया का नंगा जिस्म फिर से आँखों में घूमने लगा और इस ख्याल ने मेरे मज़े को कई गुना बढ़ा दिया. मैने यूँ ही आँखें बंद किए प्रिया की चूचियो के बारे में सोचने लगा और पूरी तेज़ी के साथ रुक्मणी को चोदने लगा. मैं प्रिया के हर अंग के बारे में सोच रहा था. उसकी नंगी कमर, ब्रा में बंद चूचिया और उठी हुई गांद.
गांद का ख्याल आते ही मेरे हाथ अपने आपं रूमानी की गांद पर आ गये और मैं उसकी गांद सहलाने लगा. धक्को की रफ़्तार अब काफ़ी बढ़ चुकी थी और मैं जानता था के अब किसी भी वक़्त मैं ख़तम हो जाऊँगा. मैने रुक्मणी से गांद मारने के बारे में पुच्छने की सोची और उसकी एक अंगुली उसकी गांद में घुसाने की कोशिश की. अंगुली गांद पर महसूस होते ही वो फ़ौरन आगे को हो गयी और मना करने लगी. एक बार गांद मरवाने की कोशिश से वो इतनी डर गयी थी के अब अंगुली तक नही घुसाने देती थी.
"अंदर मत निकालना" वो मेरे धक्को की रफ़्तार से समझ गयी के मैं ख़तम होने वाला हूँ "बाहर गिराना"
मैने हाँ में गर्दन हिलाई और फिर से उसको चोदने लगा
थोड़ी ही देर बाद देवयानी आ गयी और हम सब खाना खाकर अपने अपने रूम्स में चले गये.
अगले दिन सॅटर्डे था और सॅटर्डे सनडे को मैं काम नही करता था. चाय पीते हुए मैने न्यूसपेपर खोला तो फ्रंट पेज पर ही मनचंदा के बारे में छपा हुआ था के पोलीस को उसके बारे में कोई जानकारी नही है और अगर कोई कुच्छ जनता है तो पोलीस से कॉंटॅक्ट करे.
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
मेरे पास करने को आज कुच्छ ख़ास नही था. आम तौर पर मेरे सॅटर्डे और सनडे रुक्मणी के साथ बिस्तर पर गुज़रते थे पर देवयानी के घर में होने की वजह से अब ये मुमकिन नही था. मैं काफ़ी देर तक बैठा न्यूसपेपर पढ़ता रहा. थोड़ी देर बाद रुक्मणी मुझे ब्रेकफास्ट के लिए बुलाने आई. उसको देखने से लग रहा था के वो कहीं जाने के लिए तैय्यर थी.
"कहाँ जा रही हो?" मैने उसको देखते हुए पुचछा
"कुच्छ काम है. थोड़ी देर में वापिस आ जाऊंगी. ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने लगा दिया है खा लेना" उसने मुझसे कहा तो मैं हां में सर हिलाता खड़ा हो गया.
मैं नाहकार ब्रेकफास्ट के लिए टेबल पर आ बैठा. अभी मैं खा ही रहा था के देवयानी के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो बाहर निकली. मैं उसको घर पर देखकर हैरान रह गया क्यूंकी मुझे लगा था के शायद वो भी रुक्मणी के साथ बाहर गयी होगी. पर शायद उसको देर तक सोने की आदत थी इसलिए रुक्मणी उसके बिना ही चली गयी थी.
"गुड मॉर्निंग" उसने मुझको देखते हुए कहा
मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए जवाब दिया. वो अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थी और उसके कमरे की खिड़की ठीक उसके पिछे खुली हुई थी. उसने एक सफेद रंग की नाइटी पहेन रखी थी. खिड़की से सूरज की रोशनी पिछे से कमरे के अंदर आ रही थी जिसके वजह से उसकी नाइटी पारदर्शी हो गयी थी और उसकी दोनो टाँगो का आकर नाइटी के अंदर सॉफ दिखाई दे रहा था. मैने एक पल के लिए उसको देखा और फिर नज़र हटाकर नाश्ता करने लगा.
"रुक्मणी कहाँ है?" उसने वहीं खड़े खड़े पुचछा
"कहीं बाहर गयी है. थोड़ी देर में आ जाएगी" मैने जवाब दिया
"वैसे आपकी रात कैसी गुज़री ?" वो मेरे सामने टेबल पर बैठते हुए बोली
"ठीक ही थी" मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया
"नही मेरा मतलब के रात अकेले कैसे गुज़री? मेरे आने से काफ़ी प्राब्लम हो रही होगी आपको, नही?" उसने सामने रखा एक एप्पल उठाया और बड़ी मतलबी निगाह से मेरी तरफ देखते हुए एप्पल खाने लगी.
"क्या मतलब?" मैने सवाल किया
"मतलब सॉफ है आहमेद साहब. पहले हर रात मेरी बहेन आपके साथ बिस्तर पर होती थी और अब आपको मेरी वजह से अकेले सोना पड़ रहा है" उसने जवाब दिया
मेरा मुँह का नीवाला मेरे मुँह में ही रह गया और मैं चुपचाप उसकी तरफ देखने लगा. जबसे वो आई थी तबसे मैने उससे कोई बात नही की थी इसलिए इस बात का सवाल ही नही उठता के उसको मेरी बातों से मेरे और रुक्मणी के रिश्ते पर कोई शक उठा हो और ऐसा भी नही हो सकता था के रुक्मणी ने उससे कुच्छ कहा हो.
"क्या कह रही हैं आप?" मैने धीरे से कहा
"ओह कम ऑन इशान" उसने हस्ते हुए कहा "तुम्हें क्या मैं छ्होटी बच्ची लगती हूँ? जिस तरह से तुमने मुझे पिछे से किचन में आकर पकड़ा था ये सोचकर के मैं रुक्मणी हूँ उससे इस बात का सॉफ अंदाज़ा लग जाता है के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है"
मेरे सामने उसकी बात सॉफ हो गयी. मैने उस दिन किचन में उसको पकड़ लिया था ये सोचकर के वो रुक्मणी है और ये बात सॉफ इशारा करती थी के मेरे और रुक्मणी के शारीरिक संबंध थे. मैं खामोशी से उसको देखता रहा
"अरे क्या हुआ?" वो उठकर मेरे करीब आते हुए बोली "रिलॅक्स. मुझे कोई प्राब्लम नही है यार. तुम दोनो की अपनी ज़िंदगी है ये और मुझे बीच में दखल अंदाज़ी का कोई हक नही. मुझे कोई फरक नही पड़ता"
उसने कहा तो मेरी जान में जान आई वरना मुझे लग रहा था के कहीं ये इस बात पर कोई बवाल ना खड़ा कर दे. वो अब मेरे पिछे आ खड़ी हुई थी और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रख दिए
"और वैसे भी" वो नीचे को झुकी और मेरे कान के पास मुँह लाकर बोली "तुम यहाँ मेरी बहेन के घर में फ्री में रहो तो उसके बदले उसको कुच्छ तो देना ही पड़ेगा ना. और ठीक भी तो है, उस बेचारी की भी अपनी ज़रूरत है जिसका ध्यान तुम रख लेते हो. फेर डील"
वो पिछे से मुझसे सटी खड़ी थी और उसके दोनो हाथ मेरे कंधो से होते हुए अब मेरी छाती सहला रहे थे. उसकी दोनो चूचिया मेरे सर के पिछे हिस्से पर दबे हुए थे.
"वैसे एक बात कहूँ इशान" उसने वैसे ही झुके झुके कहा "जिस तरह से उस दिन तुमने मुझे पकड़ा था, उससे मुझे अंदाज़ा हो गया था के तुम मेरी बहेन को काफ़ी खुश रखते होंगे. और इसलिए ही शायद वो तुम पर इतनी मेहरबान है"
मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. वो जिस तरह से मेरे साथ पेश आ रही थी उससे ये बात ज़ाहिर हो गयी थी के वो क्या चाहती है.
"मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाह रही थी के मर्दानगी की कदर करना मैं भी चाहती हूँ" उसने अपने होंठ अब मेरे कानो पर रख दिए थे.
उसके दोनो हाथ अब भी मेरी छाती सहला रहे थे और धीरे धीरे नीचे को जा रहे थे. जो करना था वो खुद ही कर रही थी. मैं तो बस बैठा हुआ था. उसके हाथ मेरे पेट से होते हुए मेरे लंड तक पहुँचे ही वाले थी के ड्रॉयिंग रूम में रखे फोन की घंटी बजने लगी और जैसे हम दोनो को एक नींद से जगा दिया. वो फ़ौरन मेरे से हटकर खड़ी हो गयी और मैं भी उठ खड़ा हुआ. एक नज़र मैने उसपर डाली और ड्रॉयिंग रूम में आकर फोन उठाया.
फोन के दूसरी तरफ इनस्पेक्टर मिश्रा था
"यार तेरी बात तो एकदम सही निकली" फोन के दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई
"कौन सी बात"" मैने एक नज़र देवयानी पर डाली जो मुझे खड़ी देख रही थी.
"वो अड्वर्टाइज़्मेंट वाली" मिश्रा ने जवाब दिया
"मतलब? कुच्छ पता चला क्या?" मेरा ध्यान देवयानी से हटकर मिश्रा की तरफ आया
"हाँ और अड्वर्टाइज़्मेंट का इतनी जल्दी जवाब आएगा ये तो मैने सोचा ही नही था. आज सुबह ही तो छपा था" मिश्रा की आवाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी कोई जुंग जीत कर आया हो
"किसका जवाब दिया?" मैने पुचछा
"मनचंदा की बीवी का. फोन आया थे मुझे. वो कहती है के जिस आदमी का डिस्क्रिप्षन हमने अख़बार में छापा है वो उसके पति का है जो पिछले 8 महीने से गया है" मिश्रा ने कहा
"कहाँ से आया था" मैने पुचछा
"मुंबई से" मिश्रा बोला "और तेरी दूसरी बात भी सही थी"
"कौन सी?" मैने पुचछा
"मनचंदा उसका असली नाम नही था. उसका असली नाम विपिन सोनी था. और उसकी बीवी का नाम है भूमिका सोनी" मिश्रा बोला
"गुजराती?" मैने सोनी नाम से अंदाज़ा लगाते हुए कहा
"नही राजस्थानी" मिश्रा ने कहा "वो मंडे को आ रही है बॉडी देखने के लिए. फिलहाल तो वो ऐसा कह रही है. पक्का तो बॉडी देखने के बाद ही कह सकती है"
"ह्म्म्म्म" मैने सोचते हुए कहा "चलो केस में कुच्छ तो आगे बढ़े"
"हाँ अब कम से कम उस बेचारे की लाश लावारिस तो नही बची" मिश्रा बोला
"पर एक बात समझ नही आई" मेरे दिमाग़ में अचानक एक ख्याल आया "ये अड्वर्टाइज़्मेंट तो हमने यहाँ के अख़बार में दिया था. उसको मुंबई में खबर कैसे लग गयी?"
"उसकी कोई दोस्त है जो इसी शहेर में रहती है. उसने पेपर देखा तो फोन करके सोनी बताया और उसके बाद उसने मुझे फोन किया"
"ह्म्म्म्म" मैने फिर हामी भारी
"तू आएगा?" मिश्रा बोला
"कहाँ?" मैने पुचछा
"यार मैं सोच रहा थे के जब वो आइडेंटिफिकेशन के लिए आए तो तू भी यहाँ हो. अब तक तेरी ही कही बात से ये केस थोड़ा आगे बढ़ा है. हो सकता है आगे भी तेरी सलाह काम आए" मिश्रा ने कहा
"ठीक है. मुझे टाइम बता देना" मैने जवाब दिया
"कहाँ जा रही हो?" मैने उसको देखते हुए पुचछा
"कुच्छ काम है. थोड़ी देर में वापिस आ जाऊंगी. ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने लगा दिया है खा लेना" उसने मुझसे कहा तो मैं हां में सर हिलाता खड़ा हो गया.
मैं नाहकार ब्रेकफास्ट के लिए टेबल पर आ बैठा. अभी मैं खा ही रहा था के देवयानी के कमरे का दरवाज़ा खुला और वो बाहर निकली. मैं उसको घर पर देखकर हैरान रह गया क्यूंकी मुझे लगा था के शायद वो भी रुक्मणी के साथ बाहर गयी होगी. पर शायद उसको देर तक सोने की आदत थी इसलिए रुक्मणी उसके बिना ही चली गयी थी.
"गुड मॉर्निंग" उसने मुझको देखते हुए कहा
मैने उसकी तरफ देखा और मुस्कुराते हुए जवाब दिया. वो अपने कमरे के दरवाज़े पर खड़ी थी और उसके कमरे की खिड़की ठीक उसके पिछे खुली हुई थी. उसने एक सफेद रंग की नाइटी पहेन रखी थी. खिड़की से सूरज की रोशनी पिछे से कमरे के अंदर आ रही थी जिसके वजह से उसकी नाइटी पारदर्शी हो गयी थी और उसकी दोनो टाँगो का आकर नाइटी के अंदर सॉफ दिखाई दे रहा था. मैने एक पल के लिए उसको देखा और फिर नज़र हटाकर नाश्ता करने लगा.
"रुक्मणी कहाँ है?" उसने वहीं खड़े खड़े पुचछा
"कहीं बाहर गयी है. थोड़ी देर में आ जाएगी" मैने जवाब दिया
"वैसे आपकी रात कैसी गुज़री ?" वो मेरे सामने टेबल पर बैठते हुए बोली
"ठीक ही थी" मैने मुस्कुरा कर जवाब दिया
"नही मेरा मतलब के रात अकेले कैसे गुज़री? मेरे आने से काफ़ी प्राब्लम हो रही होगी आपको, नही?" उसने सामने रखा एक एप्पल उठाया और बड़ी मतलबी निगाह से मेरी तरफ देखते हुए एप्पल खाने लगी.
"क्या मतलब?" मैने सवाल किया
"मतलब सॉफ है आहमेद साहब. पहले हर रात मेरी बहेन आपके साथ बिस्तर पर होती थी और अब आपको मेरी वजह से अकेले सोना पड़ रहा है" उसने जवाब दिया
मेरा मुँह का नीवाला मेरे मुँह में ही रह गया और मैं चुपचाप उसकी तरफ देखने लगा. जबसे वो आई थी तबसे मैने उससे कोई बात नही की थी इसलिए इस बात का सवाल ही नही उठता के उसको मेरी बातों से मेरे और रुक्मणी के रिश्ते पर कोई शक उठा हो और ऐसा भी नही हो सकता था के रुक्मणी ने उससे कुच्छ कहा हो.
"क्या कह रही हैं आप?" मैने धीरे से कहा
"ओह कम ऑन इशान" उसने हस्ते हुए कहा "तुम्हें क्या मैं छ्होटी बच्ची लगती हूँ? जिस तरह से तुमने मुझे पिछे से किचन में आकर पकड़ा था ये सोचकर के मैं रुक्मणी हूँ उससे इस बात का सॉफ अंदाज़ा लग जाता है के तुम्हारे और मेरी बहेन के बीच क्या रिश्ता है"
मेरे सामने उसकी बात सॉफ हो गयी. मैने उस दिन किचन में उसको पकड़ लिया था ये सोचकर के वो रुक्मणी है और ये बात सॉफ इशारा करती थी के मेरे और रुक्मणी के शारीरिक संबंध थे. मैं खामोशी से उसको देखता रहा
"अरे क्या हुआ?" वो उठकर मेरे करीब आते हुए बोली "रिलॅक्स. मुझे कोई प्राब्लम नही है यार. तुम दोनो की अपनी ज़िंदगी है ये और मुझे बीच में दखल अंदाज़ी का कोई हक नही. मुझे कोई फरक नही पड़ता"
उसने कहा तो मेरी जान में जान आई वरना मुझे लग रहा था के कहीं ये इस बात पर कोई बवाल ना खड़ा कर दे. वो अब मेरे पिछे आ खड़ी हुई थी और दोनो हाथ मेरे कंधे पर रख दिए
"और वैसे भी" वो नीचे को झुकी और मेरे कान के पास मुँह लाकर बोली "तुम यहाँ मेरी बहेन के घर में फ्री में रहो तो उसके बदले उसको कुच्छ तो देना ही पड़ेगा ना. और ठीक भी तो है, उस बेचारी की भी अपनी ज़रूरत है जिसका ध्यान तुम रख लेते हो. फेर डील"
वो पिछे से मुझसे सटी खड़ी थी और उसके दोनो हाथ मेरे कंधो से होते हुए अब मेरी छाती सहला रहे थे. उसकी दोनो चूचिया मेरे सर के पिछे हिस्से पर दबे हुए थे.
"वैसे एक बात कहूँ इशान" उसने वैसे ही झुके झुके कहा "जिस तरह से उस दिन तुमने मुझे पकड़ा था, उससे मुझे अंदाज़ा हो गया था के तुम मेरी बहेन को काफ़ी खुश रखते होंगे. और इसलिए ही शायद वो तुम पर इतनी मेहरबान है"
मेरी समझ में नही आ रहा था के क्या करूँ. वो जिस तरह से मेरे साथ पेश आ रही थी उससे ये बात ज़ाहिर हो गयी थी के वो क्या चाहती है.
"मैं तो सिर्फ़ ये कहना चाह रही थी के मर्दानगी की कदर करना मैं भी चाहती हूँ" उसने अपने होंठ अब मेरे कानो पर रख दिए थे.
उसके दोनो हाथ अब भी मेरी छाती सहला रहे थे और धीरे धीरे नीचे को जा रहे थे. जो करना था वो खुद ही कर रही थी. मैं तो बस बैठा हुआ था. उसके हाथ मेरे पेट से होते हुए मेरे लंड तक पहुँचे ही वाले थी के ड्रॉयिंग रूम में रखे फोन की घंटी बजने लगी और जैसे हम दोनो को एक नींद से जगा दिया. वो फ़ौरन मेरे से हटकर खड़ी हो गयी और मैं भी उठ खड़ा हुआ. एक नज़र मैने उसपर डाली और ड्रॉयिंग रूम में आकर फोन उठाया.
फोन के दूसरी तरफ इनस्पेक्टर मिश्रा था
"यार तेरी बात तो एकदम सही निकली" फोन के दूसरी तरफ से उसकी आवाज़ आई
"कौन सी बात"" मैने एक नज़र देवयानी पर डाली जो मुझे खड़ी देख रही थी.
"वो अड्वर्टाइज़्मेंट वाली" मिश्रा ने जवाब दिया
"मतलब? कुच्छ पता चला क्या?" मेरा ध्यान देवयानी से हटकर मिश्रा की तरफ आया
"हाँ और अड्वर्टाइज़्मेंट का इतनी जल्दी जवाब आएगा ये तो मैने सोचा ही नही था. आज सुबह ही तो छपा था" मिश्रा की आवाज़ से ऐसा लग रहा था जैसे वो अभी कोई जुंग जीत कर आया हो
"किसका जवाब दिया?" मैने पुचछा
"मनचंदा की बीवी का. फोन आया थे मुझे. वो कहती है के जिस आदमी का डिस्क्रिप्षन हमने अख़बार में छापा है वो उसके पति का है जो पिछले 8 महीने से गया है" मिश्रा ने कहा
"कहाँ से आया था" मैने पुचछा
"मुंबई से" मिश्रा बोला "और तेरी दूसरी बात भी सही थी"
"कौन सी?" मैने पुचछा
"मनचंदा उसका असली नाम नही था. उसका असली नाम विपिन सोनी था. और उसकी बीवी का नाम है भूमिका सोनी" मिश्रा बोला
"गुजराती?" मैने सोनी नाम से अंदाज़ा लगाते हुए कहा
"नही राजस्थानी" मिश्रा ने कहा "वो मंडे को आ रही है बॉडी देखने के लिए. फिलहाल तो वो ऐसा कह रही है. पक्का तो बॉडी देखने के बाद ही कह सकती है"
"ह्म्म्म्म" मैने सोचते हुए कहा "चलो केस में कुच्छ तो आगे बढ़े"
"हाँ अब कम से कम उस बेचारे की लाश लावारिस तो नही बची" मिश्रा बोला
"पर एक बात समझ नही आई" मेरे दिमाग़ में अचानक एक ख्याल आया "ये अड्वर्टाइज़्मेंट तो हमने यहाँ के अख़बार में दिया था. उसको मुंबई में खबर कैसे लग गयी?"
"उसकी कोई दोस्त है जो इसी शहेर में रहती है. उसने पेपर देखा तो फोन करके सोनी बताया और उसके बाद उसने मुझे फोन किया"
"ह्म्म्म्म" मैने फिर हामी भारी
"तू आएगा?" मिश्रा बोला
"कहाँ?" मैने पुचछा
"यार मैं सोच रहा थे के जब वो आइडेंटिफिकेशन के लिए आए तो तू भी यहाँ हो. अब तक तेरी ही कही बात से ये केस थोड़ा आगे बढ़ा है. हो सकता है आगे भी तेरी सलाह काम आए" मिश्रा ने कहा
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
उस दिन और उसके अगले दिन और कुच्छ ना हुआ. रुक्मणी और देवयानी दोनो साथ ही घर पर रही और बाहर गयी भी तो साथ. ना तो मैं देवयानी से कुच्छ बात कर सका और ना ही रुक्मणी को चोदने का मौका मिला. उपेर से दिमाग़ में मनचंदा यानी विपिन सोनी के खून का किस्सा घूमता रहा.
मंडे सुबह ही मेरे पास मिश्रा का फोन आ गया और उसने मुझे पोलीस स्टेशन पहुँचने को कहा. सोनी की बीवी सुबह ही उससे मिलने आने वाली थी. मेरी भी उस दिन कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मैं भी तैय्यर होकर पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.
तकरीबन सुबह 10 बजे मैं और मिश्रा बैठे भूमिका सोनी का इंतेज़ार कर रहे थे. वो अपने बताए वक़्त से आधा घंटा लेट आई.
"सॉरी इनस्पेक्टर. मैं ट्रॅफिक में फस गयी थी" उसने पोलीस स्टेशन में आते ही कहा.
भूमिका सोनी कोई 35 साल की गोरी चित्ति औरत थी. वो असल में इस क़दर गोरी थी के उसको देखने वाला या तो ये सोचता के वो कोई अँग्रेज़ है या उसको कोई बीमारी है जिसकी वजह से उसकी स्किन इतनी गोरी है. वो तो उसका बात करने का अंदाज़ था जो उसके हिन्दुस्तानी होने की गवाही दे रहा था वरना पहली नज़र में तो शायद मैं भी यही सोचता के वो कोई अँग्रेज़ औरत है. वो एक प्लैइन काले रंग के सलवार सूट में थी. ना कोई मेक उप और ना ही कोई ज्यूयलरी उसके जिस्म पर थी. तकरीबन 5"5 लंबी, काले रंग के बॉल और हल्की भूरी आँखें. उसके साथ एक कोई 60 साल का आदमी भी था जो खामोशी से बैठा उसके और मिश्रा के बीच हो रही बातें सुन रहा था.
मरनेवाला, यानी विपिन सोनी, तकरीबन 50 से 60 साल के बीच की उमर का था इसलिए मैं उम्मीद कर रहा था के जो औरत खुद को उसकी बीवी बता रही है वो भी उतनी ही उमर के आस पास होगी पर जब एक 35 साल की औरत पोलीस स्टेशन में आई तो मैं हैरान रह गया. और औरत भी ऐसी जो अगर बन ठनके गली में निकल जाए तो शायद हर नज़र उसकी तरफ ही हो. और अपनी बातों से तो वो 35 की भी नही लग रही थी. हमें लग रहा था जैसे हम किसी 16-17 साल की लड़की से बात कर रहे हैं. वो बहुत ही दुखी दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी जैसे गम से भरी हुई थी जो मुझे बिल्कुल भी ज़रूरी नही लगा क्यूंकी अब तक ये साबित होना बाकी था के मरने वाला उसका पति ही थी. पर शायद ये उसका 35 साल की उमर में भी एक बचपाना ही था के उसने अपने आपको विधवा मान भी लिया था.
मेरी नज़र उसके साथ बैठे उस बूढ़े आदमी पर पड़ी जिसने अब तक कुच्छ नही कहा था और चुप बैठा हुआ था. थोड़ी देर बाद भूमिका ने बताया के वो आदमी उसका बाप था जो उसके साथ लाश को आइडेंटिफाइ करने के लिए आया था. सुरेश बंसल, जो की उसका नाम था, देखने से ही एक बहुत शांत और ठहरा हुआ इंसान मालूम पड़ता था. उसके चेहरे पर वो भाव थे जो उस आदमी के चेहरे पर होते हैं जिसने दुनिया देखी होती है, अपने ज़िंदगी में ज़िंदगी का हर रंग देखा होता है.
मिश्रा ने शुरू से लेकर आख़िर तक की कहानी भूमिका को बताई के किस तरह विपिन सोनी यहाँ रहने आया था और किस तरह घर के अंदर उसकी लाश मिली थी. इसी कहानी में उसने मुझे भूमिका से इंट्रोड्यूस कराया और बताया के मरने से पहले मैं ही वो आखरी आदमी था जिससे विपिन सोनी मिला था. वो मेरी तरफ घूम और मुझे देखते हुए बोली
"चलिए मुझे ये जानकार खुशी हुई के यहाँ कोई तो ऐसा था जो मेरे हज़्बेंड को जानता था"
"जी नही" मैने उसकी बात का जवाब दिया "मैं उन्हें आपके हज़्बेंड के तौर पर नही बल्कि मनचंदा के नाम से जानता था"
"उनका असली नाम विपिन सोनी था" कहते कहते भूमिका रो पड़ी "पर शायद अब तो उन्हें किसी नाम की ज़रूरत ही नही"
"दिल छ्होटा मत करो बेटी" भूमिका के बाप यानी सुरेश बंसल ने उसकी तरफ रुमाल बढ़ाया "वो अब भगवान के पास हैं और उससे अच्छी जगह एक भले आदमी के लिए कोई नही है"
थोड़ी देर तक सब खामोश बैठे रहे. जब भूमिका ने रोना बंद किया तो मिश्रा ने उससे फिर सवाल किया
"म्र्स सोनी आप ये कैसे कह सकती हैं के मरने वाला आपका पति था?"
"मैं जानती हूँ इनस्पेक्टर साहब" वो बोली "मनचंदा हमारे मुंबई के घर के ठीक सामने एक कपड़ो के दुकान का नाम है, मनचंदा गारमेंट्स. वहाँ से मिला था उन्हें ये नाम"
"और कुच्छ?" मिश्रा ने सवाल किया
"और मेरे पति के चेहरे पर बचपन से एक निशान था, स्कूल में लड़ाई हो गयी थी और किसी दूसरे बच्चे ने एक लोहे की रोड मार दी थी जिससे उनका चेहरा कट गया था. और उनके एक हाथ के छ्होटी अंगुली आधी है. एक बार शिकार पर उनके अंगुली कर गयी थी. और कोई सबूत चाहिए आपको?" भूमिका बोली
"जी नही इतना ही काफ़ी है" मिश्रा बोला "वैसे आपके पति कब्से गायब थे?"
"यही कोई एक साल से" भूमिका बोली
"नही बेटी" उसकी बात सुनकर उसके पास बैठा उसका बाप बोला "8 महीने से"
"यहाँ वो 6 महीने से रह रहे हैं. बीच के 2 महीने कहाँ थे आपको पता है?" मिश्रा ने पुचछा
भूमिका ने इनकार में सर हिलाया
"वो घर से गये क्यूँ थे? आपसे कोई झगड़ा?" मिश्रा ने फिर सवाल किया
इस बार जवाब भूमिका ने नही मैने दिया
"मिश्रा तुझे नही लगता के ये सारे सवाल बॉडी को आइडेंटिफाइ करने के बाद होने चाहिए?"
"सही कह रहा है" मिश्रा ने मुकुरा कर जवाब दिया "पहले म्र्स सोनी ये कन्फर्म तो कर दें के मरने वाला विपिन सोनी ही है"
वो थोड़ी देर बाद भूमिका और उसके बाप को जीप में बैठाकर हॉस्पिटल ले गया आइडेंटिफिकेशन के लिए. मुझसे उसने चलने के लिए कहा पर मुझे हॉस्पिटल्स से हमेशा सख़्त नफ़रत रही है. वहाँ फेली दवाई की महेक मुझे कभी बर्दाश्त नही हुई इसलिए मैने जाने से मना कर दिया और वापिस अपने ऑफीस की तरफ चला.
ऑफीस पहुँचा तो प्रिया खिड़की पर खड़ी बाहर देख रही थी. मैं अंदर आया तो उसने पलटकर मुझे एक नज़र देखा और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी. हमेशा की तरह ने तो उसने मुझे गुड मॉर्निंग कहा और ना ही ये पुचछा के मैं देर से क्यूँ आया. उसकी इस हरकत से मुझे उस दिन चेंजिंग रूम में हुई घटना याद आ गयी और जाने मुझे क्यूँ लगने लगा के अब शायद वो रिज़ाइन कर देगी. मैं चुप चाप आकर अपनी डेस्क पर बैठ गया. मैं उम्मीद कर रहा था के शायद वो अब उस दिन खरीदे अपने नये कपड़े पहेनकर आएगी पर उसने फिर से वही अपने पुराने लड़को जैसे कपड़े पहेन रखे थे.
कमरे में यूँ ही थोड़ी देर खामोशी च्छाई रही. आख़िर में कमरे का सन्नाटा प्रिया ने ही तोड़ा.
"तुम उस दिन मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे थे?" वो बिना मेरी तरफ पलते बोली
"मतलब?" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा
"मतलब उस दिन जब स्टोर रूम में मैने तुम्हें ब्रा का हुक बंद करने को कहा तो तुम्हारी नज़र कही और ही अटक गयी थी. क्यूँ?" इस बार भी वो बिना पलते खिड़की के बाहर देखते हुए बोली
मुझसे जवाब देते ना बना
"बताओ" वो फाइनली मेरी तरफ पलटी और खिड़की पर कमर टीकाकार खड़ी हो गयी
"क्या बताऊं प्रिया?" मैने भी सोचा के खुलके बात करना ही ठीक है. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी और उसको खोना बेवकूफी होती
"यही के क्यूँ देख रहे थे ऐसे" वो आदत के मुताबिक अपनी बात पर आड़ गयी
"अरे यार मैं एक लड़का हूँ और तुम एक लड़की तो ये तो नॅचुरल सी बात है. तुम अचानक मेरे सामने ऐसे आ गयी तो थोड़ा अजीब लगा मुझे. एक लड़का होने की हिसाब से मेरी नज़र तो वहाँ जानी ही थी. नॅचुरल क्यूरीयासिटी होती है यार" मैने एक साँस में कह डाला
कमरे में फिर खामोशी च्छा गयी
"मैने घर जाकर इस बारे में बहुत सोचा" वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी "और साची कहूँ तो तुम्हारा यूँ देखना अच्छा लगा मुझे. कम से कम इस बात का तो पक्का हो गया के मैं लड़की हूँ और लड़के मेरी तरफ भी देख सकते हैं"
मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो मुस्कुरा रही थी. मेरी जान में जान आई
"थॅंक्स यार" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "मुझे तो डाउट होने लगा था के कोई लड़का कभी क्या मेरी तरफ देखेगा पर उस दिन तुम्हारी नज़र ने ये साबित कर दिया के मुझ में वो बात है"
"है तो सही" मैने हस्ते हुए जवाब दिया "बस थोड़ा सा अपना ख्याल रखा करो"
"ह्म्म्म्म" वो गर्दन हिलाते हुए बोली
"और आज तुमने वो नये कपड़े नही पहने?" मैने सवाल किया
"नही साथ लाई हूँ" वो खुश होती हुई बोली "सोचा के पहले तुमसे एक बार बात कर लूँ फिर ट्राइ करूँगी. अच्छा बताओ के तुम्हें सबसे अच्छी ड्रेस कौन सी लगी?
"वो स्कर्ट और टॉप" मैने सोचते हुए जवाब दिया
"मुझे भी" वो बच्चो की तरह चिल्ला पड़ी "मैं वही पहेन लेती हूँ"
"ओह नो" मैने कहा "अब फिर उधर घूमना पड़ेगा"
"ज़रूरत नही है" वो खड़ी होते हुए बोली "मैने ब्रा पहेन रखा है आज"
मुझे उसकी बात एक पल के लिए समझ नही आई और जब तक समझ आई तब तक देर हो चुकी थी. वो फिर से मेरे सामने ही कपड़े बदलने वाली थी और मुझे डर था के अगर वो फिर उसी तरह मेरे सामने आई तो मेरी नज़र फिर उसकी चूचियो पर जाएगी. मैने उसको रोकना चाहा ही था पर तब वो अपनी शर्ट के सारे बटन खोल चुकी थी और फिर मेरे देखते देखते उसने एक झटके में अपनी शर्ट उतार दी.
क्रमशः........................
मंडे सुबह ही मेरे पास मिश्रा का फोन आ गया और उसने मुझे पोलीस स्टेशन पहुँचने को कहा. सोनी की बीवी सुबह ही उससे मिलने आने वाली थी. मेरी भी उस दिन कोर्ट में कोई हियरिंग नही थी इसलिए मैं भी तैय्यर होकर पोलीस स्टेशन जा पहुँचा.
तकरीबन सुबह 10 बजे मैं और मिश्रा बैठे भूमिका सोनी का इंतेज़ार कर रहे थे. वो अपने बताए वक़्त से आधा घंटा लेट आई.
"सॉरी इनस्पेक्टर. मैं ट्रॅफिक में फस गयी थी" उसने पोलीस स्टेशन में आते ही कहा.
भूमिका सोनी कोई 35 साल की गोरी चित्ति औरत थी. वो असल में इस क़दर गोरी थी के उसको देखने वाला या तो ये सोचता के वो कोई अँग्रेज़ है या उसको कोई बीमारी है जिसकी वजह से उसकी स्किन इतनी गोरी है. वो तो उसका बात करने का अंदाज़ था जो उसके हिन्दुस्तानी होने की गवाही दे रहा था वरना पहली नज़र में तो शायद मैं भी यही सोचता के वो कोई अँग्रेज़ औरत है. वो एक प्लैइन काले रंग के सलवार सूट में थी. ना कोई मेक उप और ना ही कोई ज्यूयलरी उसके जिस्म पर थी. तकरीबन 5"5 लंबी, काले रंग के बॉल और हल्की भूरी आँखें. उसके साथ एक कोई 60 साल का आदमी भी था जो खामोशी से बैठा उसके और मिश्रा के बीच हो रही बातें सुन रहा था.
मरनेवाला, यानी विपिन सोनी, तकरीबन 50 से 60 साल के बीच की उमर का था इसलिए मैं उम्मीद कर रहा था के जो औरत खुद को उसकी बीवी बता रही है वो भी उतनी ही उमर के आस पास होगी पर जब एक 35 साल की औरत पोलीस स्टेशन में आई तो मैं हैरान रह गया. और औरत भी ऐसी जो अगर बन ठनके गली में निकल जाए तो शायद हर नज़र उसकी तरफ ही हो. और अपनी बातों से तो वो 35 की भी नही लग रही थी. हमें लग रहा था जैसे हम किसी 16-17 साल की लड़की से बात कर रहे हैं. वो बहुत ही दुखी दिखाई दे रही थी और आवाज़ भी जैसे गम से भरी हुई थी जो मुझे बिल्कुल भी ज़रूरी नही लगा क्यूंकी अब तक ये साबित होना बाकी था के मरने वाला उसका पति ही थी. पर शायद ये उसका 35 साल की उमर में भी एक बचपाना ही था के उसने अपने आपको विधवा मान भी लिया था.
मेरी नज़र उसके साथ बैठे उस बूढ़े आदमी पर पड़ी जिसने अब तक कुच्छ नही कहा था और चुप बैठा हुआ था. थोड़ी देर बाद भूमिका ने बताया के वो आदमी उसका बाप था जो उसके साथ लाश को आइडेंटिफाइ करने के लिए आया था. सुरेश बंसल, जो की उसका नाम था, देखने से ही एक बहुत शांत और ठहरा हुआ इंसान मालूम पड़ता था. उसके चेहरे पर वो भाव थे जो उस आदमी के चेहरे पर होते हैं जिसने दुनिया देखी होती है, अपने ज़िंदगी में ज़िंदगी का हर रंग देखा होता है.
मिश्रा ने शुरू से लेकर आख़िर तक की कहानी भूमिका को बताई के किस तरह विपिन सोनी यहाँ रहने आया था और किस तरह घर के अंदर उसकी लाश मिली थी. इसी कहानी में उसने मुझे भूमिका से इंट्रोड्यूस कराया और बताया के मरने से पहले मैं ही वो आखरी आदमी था जिससे विपिन सोनी मिला था. वो मेरी तरफ घूम और मुझे देखते हुए बोली
"चलिए मुझे ये जानकार खुशी हुई के यहाँ कोई तो ऐसा था जो मेरे हज़्बेंड को जानता था"
"जी नही" मैने उसकी बात का जवाब दिया "मैं उन्हें आपके हज़्बेंड के तौर पर नही बल्कि मनचंदा के नाम से जानता था"
"उनका असली नाम विपिन सोनी था" कहते कहते भूमिका रो पड़ी "पर शायद अब तो उन्हें किसी नाम की ज़रूरत ही नही"
"दिल छ्होटा मत करो बेटी" भूमिका के बाप यानी सुरेश बंसल ने उसकी तरफ रुमाल बढ़ाया "वो अब भगवान के पास हैं और उससे अच्छी जगह एक भले आदमी के लिए कोई नही है"
थोड़ी देर तक सब खामोश बैठे रहे. जब भूमिका ने रोना बंद किया तो मिश्रा ने उससे फिर सवाल किया
"म्र्स सोनी आप ये कैसे कह सकती हैं के मरने वाला आपका पति था?"
"मैं जानती हूँ इनस्पेक्टर साहब" वो बोली "मनचंदा हमारे मुंबई के घर के ठीक सामने एक कपड़ो के दुकान का नाम है, मनचंदा गारमेंट्स. वहाँ से मिला था उन्हें ये नाम"
"और कुच्छ?" मिश्रा ने सवाल किया
"और मेरे पति के चेहरे पर बचपन से एक निशान था, स्कूल में लड़ाई हो गयी थी और किसी दूसरे बच्चे ने एक लोहे की रोड मार दी थी जिससे उनका चेहरा कट गया था. और उनके एक हाथ के छ्होटी अंगुली आधी है. एक बार शिकार पर उनके अंगुली कर गयी थी. और कोई सबूत चाहिए आपको?" भूमिका बोली
"जी नही इतना ही काफ़ी है" मिश्रा बोला "वैसे आपके पति कब्से गायब थे?"
"यही कोई एक साल से" भूमिका बोली
"नही बेटी" उसकी बात सुनकर उसके पास बैठा उसका बाप बोला "8 महीने से"
"यहाँ वो 6 महीने से रह रहे हैं. बीच के 2 महीने कहाँ थे आपको पता है?" मिश्रा ने पुचछा
भूमिका ने इनकार में सर हिलाया
"वो घर से गये क्यूँ थे? आपसे कोई झगड़ा?" मिश्रा ने फिर सवाल किया
इस बार जवाब भूमिका ने नही मैने दिया
"मिश्रा तुझे नही लगता के ये सारे सवाल बॉडी को आइडेंटिफाइ करने के बाद होने चाहिए?"
"सही कह रहा है" मिश्रा ने मुकुरा कर जवाब दिया "पहले म्र्स सोनी ये कन्फर्म तो कर दें के मरने वाला विपिन सोनी ही है"
वो थोड़ी देर बाद भूमिका और उसके बाप को जीप में बैठाकर हॉस्पिटल ले गया आइडेंटिफिकेशन के लिए. मुझसे उसने चलने के लिए कहा पर मुझे हॉस्पिटल्स से हमेशा सख़्त नफ़रत रही है. वहाँ फेली दवाई की महेक मुझे कभी बर्दाश्त नही हुई इसलिए मैने जाने से मना कर दिया और वापिस अपने ऑफीस की तरफ चला.
ऑफीस पहुँचा तो प्रिया खिड़की पर खड़ी बाहर देख रही थी. मैं अंदर आया तो उसने पलटकर मुझे एक नज़र देखा और फिर खिड़की से बाहर देखने लगी. हमेशा की तरह ने तो उसने मुझे गुड मॉर्निंग कहा और ना ही ये पुचछा के मैं देर से क्यूँ आया. उसकी इस हरकत से मुझे उस दिन चेंजिंग रूम में हुई घटना याद आ गयी और जाने मुझे क्यूँ लगने लगा के अब शायद वो रिज़ाइन कर देगी. मैं चुप चाप आकर अपनी डेस्क पर बैठ गया. मैं उम्मीद कर रहा था के शायद वो अब उस दिन खरीदे अपने नये कपड़े पहेनकर आएगी पर उसने फिर से वही अपने पुराने लड़को जैसे कपड़े पहेन रखे थे.
कमरे में यूँ ही थोड़ी देर खामोशी च्छाई रही. आख़िर में कमरे का सन्नाटा प्रिया ने ही तोड़ा.
"तुम उस दिन मुझे ऐसे क्यूँ देख रहे थे?" वो बिना मेरी तरफ पलते बोली
"मतलब?" मैने उसकी तरफ देखते हुए कहा
"मतलब उस दिन जब स्टोर रूम में मैने तुम्हें ब्रा का हुक बंद करने को कहा तो तुम्हारी नज़र कही और ही अटक गयी थी. क्यूँ?" इस बार भी वो बिना पलते खिड़की के बाहर देखते हुए बोली
मुझसे जवाब देते ना बना
"बताओ" वो फाइनली मेरी तरफ पलटी और खिड़की पर कमर टीकाकार खड़ी हो गयी
"क्या बताऊं प्रिया?" मैने भी सोचा के खुलके बात करना ही ठीक है. वो एक अच्छी सेक्रेटरी थी और उसको खोना बेवकूफी होती
"यही के क्यूँ देख रहे थे ऐसे" वो आदत के मुताबिक अपनी बात पर आड़ गयी
"अरे यार मैं एक लड़का हूँ और तुम एक लड़की तो ये तो नॅचुरल सी बात है. तुम अचानक मेरे सामने ऐसे आ गयी तो थोड़ा अजीब लगा मुझे. एक लड़का होने की हिसाब से मेरी नज़र तो वहाँ जानी ही थी. नॅचुरल क्यूरीयासिटी होती है यार" मैने एक साँस में कह डाला
कमरे में फिर खामोशी च्छा गयी
"मैने घर जाकर इस बारे में बहुत सोचा" वो धीरे धीरे मेरी तरफ बढ़ी "और साची कहूँ तो तुम्हारा यूँ देखना अच्छा लगा मुझे. कम से कम इस बात का तो पक्का हो गया के मैं लड़की हूँ और लड़के मेरी तरफ भी देख सकते हैं"
मैने नज़र उठाकर उसकी तरफ देखा. वो मुस्कुरा रही थी. मेरी जान में जान आई
"थॅंक्स यार" वो मेरे सामने बैठते हुए बोली "मुझे तो डाउट होने लगा था के कोई लड़का कभी क्या मेरी तरफ देखेगा पर उस दिन तुम्हारी नज़र ने ये साबित कर दिया के मुझ में वो बात है"
"है तो सही" मैने हस्ते हुए जवाब दिया "बस थोड़ा सा अपना ख्याल रखा करो"
"ह्म्म्म्म" वो गर्दन हिलाते हुए बोली
"और आज तुमने वो नये कपड़े नही पहने?" मैने सवाल किया
"नही साथ लाई हूँ" वो खुश होती हुई बोली "सोचा के पहले तुमसे एक बार बात कर लूँ फिर ट्राइ करूँगी. अच्छा बताओ के तुम्हें सबसे अच्छी ड्रेस कौन सी लगी?
"वो स्कर्ट और टॉप" मैने सोचते हुए जवाब दिया
"मुझे भी" वो बच्चो की तरह चिल्ला पड़ी "मैं वही पहेन लेती हूँ"
"ओह नो" मैने कहा "अब फिर उधर घूमना पड़ेगा"
"ज़रूरत नही है" वो खड़ी होते हुए बोली "मैने ब्रा पहेन रखा है आज"
मुझे उसकी बात एक पल के लिए समझ नही आई और जब तक समझ आई तब तक देर हो चुकी थी. वो फिर से मेरे सामने ही कपड़े बदलने वाली थी और मुझे डर था के अगर वो फिर उसी तरह मेरे सामने आई तो मेरी नज़र फिर उसकी चूचियो पर जाएगी. मैने उसको रोकना चाहा ही था पर तब वो अपनी शर्ट के सारे बटन खोल चुकी थी और फिर मेरे देखते देखते उसने एक झटके में अपनी शर्ट उतार दी.
क्रमशः........................
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Bhoot bangla-भूत बंगला
भूत बंगला पार्ट--5
गतान्क से आगे.....................
मुझे यकीन नही हो रहा था के वो मेरे सामने ही कपड़े बदल रही है. उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ किया हुआ हुआ कमर मेरी तरफ थी. सावली कमर पर वाइट ब्रा के स्ट्रॅप्स देख कर जैसे मेरे मुँह में पानी भर आया. वो उसी हालत में खड़ी अपना बॅग खोलकर कपड़े निकालने लगी. एक कपड़ा उसने खींच कर बाहर निकाला और देखा तो वो स्कर्ट थी. उसने एक पल के लिए दोबारा बॅग में हाथ डालने की सोची पर फिर एक कदम पिछे को हुई और अपनी पेंट खोलने लगी.
मैं आँखें फाडे उसको देख रहा था. मेरा मन एक तरफ तो मुझे घूम कर दूसरी और देखने को कह रहा था और दूसरी तरफ मेरा दिल ये भी चाह रहा था के मैं उसको देखता रहू. ये मेरी ज़िंदगी में पहली बार था के कोई ऐसी लड़की जिससे मेरा इस तरह का कोई रिश्ता नही था बेझिझक मेरे सामने कपड़े बदल रही थी. अगले ही पल उसने अपनी पेंट खोली और और नीचे को झुक कर उतार दी.
अब वो मेरे सामने सिर्फ़ एक वाइट कलर की ब्रा और ब्लू कलर की पॅंटी पहने मेरी तरफ पीठ किए खड़ी थी. उसकी पॅंटी ने उसकी गांद को पूरी तरह ढक रखा था पर फिर भी उस पतले कपड़े में हिलते हुए उसकी गांद के कुवर्व्स सॉफ दिखाई दे रहे थे. मेरी नज़र कभी उसकी कमर पर जाती तो कभी उसकी गांद पर. किसी गूंगे की तरह खड़ा मैं बस उसको चुप चाप देख रहा था. मैं सोच रहा था के वो यूँ ही मेरी तरफ पीठ किए स्कर्ट पहनेगी पर मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा हुआ. वो स्कर्ट हाथ में पकड़े मेरी तरफ घूम गयी.
आज पहली बार उसको आधी नंगी हालत में देख कर मुझे एहसास हुआ के उसको बनाने वाले ने भले शकल सूरत कोई ख़ास उसको नही दी थी पर वो कमी उसका जिस्म बनाने में पूरी कर दी थी. उसका जिस्म हर तरफ से कसा हुआ और कहीं ज़रा भी ढीलापन नही थी. मैने एक अपने सामने सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी में खड़ी प्रिया को उपेर से नीचे तक देखा. वो फ़ौरन समझ गयी के मैं क्या देख रहा हूँ और हस पड़ी.
"ओह प्लीज़" वो बोली "अब तुम फिर मेरे ब्रेस्ट्स को घूर्ना मत शुरू कर देना"
मेरी शकल ऐसी हो गयी जैसे किसी चोर की चोरी पकड़ी गयी हो.
"नही ऐसा कुच्छ नही है" मैने झेन्प्ते हुए कहा
उसने फुल लेंग्थ स्कर्ट को एक बार झटका और फिर पहेन्ने के लिए सामने की और झुकी. उसकी दोनो छातिया जो अब तक मैं ब्रा के उपेर से देख रहा था उसके झुकने की वजह से आधी मेरे सामने आ गयी. भले ये एक पल के लिए ही था पर मैने अंदाज़ा लगा लिया के उसकी चूचिया बहुत बड़ी हैं और कहीं अगर उसके जिस्म पर ढीला पन है तो वो वहाँ है. वो शायद इतनी बड़ी होने की वजह से अपने वज़न से थोड़ा ढालकी हुई थी. स्कर्ट टाँगो के उपेर खींचती हुई वो उठ खड़ी हुई और नीचे से अपने बदन को ढक लिया. उसके बाद उसने बॅग से टॉप निकाला और उसको पहेन्ने के लिए हाथ उपेर उठाए.
"आह" उसके मुँह से एक आह निकली
"क्या हुआ?" मैने पुचछा
"ब्रा शाद टाइट आ गयी है. सुबह भी कपड़े बदलते हुए पिछे कमर पर स्ट्रॅप चुभ सा रहा था" उसने टॉप अपने गले से नीचे उतारते हुए कहा
"जाके बदल आना" मैं पहली बार अपने सामने एक लड़की को अपनी सेक्रेटरी के रूप में देख रहा था. आज से पहले तो मैने जैसे कभी उसपर इतना ध्यान दिया ही नही था.
"हां या शायद मुझे आदत नही है इसलिए थोड़ी मुश्किल हो रही है" कहते हुए उसने सामने से अपनी चूचियो को पकड़ा और हल्का सा इधर उधर करते हुए ब्रा के अंदर सेट करने लगी.
मेरा मन किया के मैं उसके हाथ सेआगे बढ़कर खुद उन दोनो छातियो को अपने हाथ में ले लूं. मेरा लंड पूरी तरह तन चुका था और उसको च्छुपाने के लिए मैं टेबल के पिछे से खड़ा भी नही हो रहा था के कहीं वो देख ना ले. कपड़े ठीक करके वो मेरे सामने आ खड़ी हुई और घूम घूमकर मुझे दिखाने लगी.
"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा
"पहली बार पूरी लड़की लग रही हो. बस थोडा सा चेंज और बाकी है" मैने जवाब दिया.
"क्या?" उसने पुचछा ही था के सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. मैने फोन उठाया. दूसरी तरफ मिश्रा था.
"वो सोनी की बीवी ने कन्फर्म कर दिया के लाश उसके पति की ही है" फोन के दूसरी तरफ से मिश्रा बोला
"अब?" मैने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा
"कल सुबह वो पेपर्स पर साइन करके लाश ले लेगी. मैने उसको अभी कुच्छ दिन और यहीं शहेर में रहने को कहा है. वो मान गयी. पति का क्रियकरम भी यहीं करवा रही है. लाश मुंबई नही ले जा रही" मिश्रा बोला
"और कोई इन्फर्मेशन मिली उससे?" मैने सवाल किया
"नही अभी तो नही. मुझे फिलहाल उससे सवाल करना ठीक नही लगा. काफ़ी परेशान सी लग रही थी. एक दो दिन बाद फिर मिलूँगा उससे" मिश्रा ने कहा
"ह्म्म्म्म "मैं हामी भरी
"अच्छा एक बात सुन. मेरा पोलीस में एक दोस्त है जिसने अभी अभी शादी की है. वो पार्टी दे रहा है. शाम को तू आजा" मिश्रा ने कहा
वैसे तो मैं जाने को तैय्यार नही था क्यूंकी मैं उस पोलिसेवाले को जानता नही था पर मिश्रा के ज़ोर डालने पर मान गया. शाम को 7 बजे मिलने का कहकर मैने फोन नीचे रख दिया.
"क्या प्लान है?" प्रिया ने मुझे पुचछा तो मैने उसको शादी की पार्टी के बारे में बताया.
"ओके. एंजाय करना" उसने मुझसे कहा और वापिस अपनी टेबल पर जाके बैठ गयी.
अचानक मेरे दिमाग़ में एक ख्याल आया
"तुम साथ क्यूँ नही चलती. रात को मैं तुम्हें घर छ्चोड़ दूँगा" मेरा कहना ही था के वो इतनी जल्दी मान गयी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी.
पार्टी मेरी उम्मीद से भी कहीं ज़्यादा बोर निकली. वो उस पोलिसेवाले के छ्होटे से फ्लॅट पर ही थी और कुच्छ फॅमिलीस आई हुई थी और मैं मिश्रा को छ्चोड़कर किसी को नही जानता था जो उस वक़्त पूरी तरह नशे में था इसलिए उसका होना या ना होना बराबर था. मैने कई बार वहाँ से निकलने की कोशिश की पर निकल ना सका. प्रिया भी मेरी तरह बोर हो रही थी और बार बार चलने को कह रही थी. आख़िर में तकरीबन 11 बजे हम दोनो वहाँ से निकल सके.
"क्या बोर पार्टी थी" मैने फ्लॅट से निकलकर नीचे बेसमेंट की ओर बढ़ते हुए कहा जहाँ मेरी कार खड़ी हुई थी
"सही में" प्रिया ने मेरे साथ कदम मिलाते हुए कहा. उसने उस वक़्त भी वही स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था.
थोड़ी ही देर बाद हम दोनो बेसमेंट में पहुँचे और मेरी कार की तरफ बढ़े. मैने अपनी कार के पास पहुँचकर देखा तो प्रिया थोड़ा पिछे रुक गयी और एक अंधेरे कोने की तरफ ध्यान से देख रही थी. हम दोनो की नज़रें मिली और मैने के कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के प्रिया ने मुझे हाथ से चुप रहने का इशारा किया और धीरे से अपनी और आने को कहा. मुझे समझ नही आया के वो क्या कह रही है पर मैं शांति से उसकी तरफ बढ़ा.
"क्या हुआ?" उसके पास पहुँच कर मैने कहा
"इधर आओ" उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे तकरीबन खींचते दबे पावं से उस कोने की तरफ ले गयी जहाँ वो गौर से देख रही थी.
हम लोग धीरे धीरे चलते हुए उस कोने तक पहुँचे. प्रिया ने मुझे वहाँ रुकने का इशारा किया और किसी चोर की तरह चलती हुई आगे बढ़ी. सामने एक छ्होटा सा दरवाज़ा बना हुआ था जो बिल्डिंग की सीढ़ियों की और खुलता था. दरवाज़े की हालत देखकर ही लग रहा था के उन बिल्डिंग मे आने जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल कम ही होता था. दरवाज़े पर ज़ंग लगा हुआ था और उसी वजह से उसको पूरी तरह बंद नही किया जा सकता था. देखकर लग रहा था के किसी ने दरवाज़ा बंद तो किया पर फिर भी वो हल्का सा खुला रह गया. प्रिया उस दरवाज़े के पास पहुँची और धीरे से उस खुले हुए हिस्से से अंदर देखने लगी. फिर वो पलटी और मुस्कुराते हुए मुझे बहुत धीरे से अपने पास आने को कहा.
मैं दरवाज़े के पास पहुँचा तो प्रिया ने साइड हटकर मुझे अंदर झाँकने को कहा. अंदर देखते ही जैसे मेरे होश से उड़ गये. अंदर मुश्किल से 17-18 साल का एक लड़का और उतनी ही उमर की एक लड़की खड़ी थी. उन दोनो को देखने से ही लग रहा था के वो दोनो अभी भी स्कूल में ही हैं. लड़की दीवार के साथ लगी खड़ी थी और लड़का उसके सामने खड़ा उसको चूम रहा था. मैने एक पल के लिए उन्हें देखा और नज़र हटाकर वापिस प्रिया की और देखा जो अब भी मुस्कुरा रही थी. मैने उसको वहाँ से चलने का इशारा किया पर उसने इनकार में सर हिलाया और फिर से मुझे हटाके अंदर झाँकने लगी. थोड़ी देर देखकर वो फिर से हटी और मुझे देखने को कहा. मैने अंदर नज़र डाली तो फिर नज़र हटाना मुश्किल हो गया.
उस लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर कर दी थी और उसकी छ्होटी छ्होटी चूचियो को मसल रहा था. लड़की की आँखें बंद थी और ज़ाहिर था के उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था. मैं देख ही रहा था के पिछे से मुझे अपने कंधो पर प्रिया के हाथ महसूस हुए जो मुझे नीचे को दबा रहे थे. मैं समझ गया के वो मुझे बैठ जाने को कह रही है ताकि खुद भी मेरे सर के उपेर से अंदर देख सके. मैने नीचे को बैठ गया और अंदर देखने लगा. प्रिया पिछे से मेरे उपेर झुकी और खुद भी दरवाज़े से देखने लगी.
अब वो लड़का नीचे झुक कर उस लड़की की एक चूची को चूस रहा था और दूसरी को हाथ से मसल रहा था. लड़की का एक हाथ उसके सर पर था और वो खुद ज़ोर डालकर उस लड़के का मुँह अपनी चूची पर दबा रही थी और दूसरे हाथ से पेंट के उपेर से उसका लंड सहला रही थी. वो लड़का कभी उसकी एक चूची चूस्टा तो कभी दूसरी. हम दोनो चुप चाप खड़े सब देख रहे था और मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था के वो लड़का लड़की किस हद तक जाने वाले हैं. प्रिया मेरे उपेर को झुकी हुई और. उसकी चिन मेरे सर पर थी और दोनो हाथ मेरे कंधो पर.
थोड़ी देर यूँ ही चूचिया चूसने के बाद वो लड़का हटा और लड़की के होंठों को एक बार चूमकर उसे दीवार से हटाया. लड़की ने आँखें खोलकर उस लड़के की तरफ देखा जो तब तक खुद भी दीवार के साथ सॅट कर खड़ा हो चुका था. लड़की धीरे से मुस्कुराइ और उसके सामने आकर अपने घुटनो पर बैठ गयी और उसकी पेंट खोलने लगी. उसने लड़की की पेंट अनज़िप की और हुक खोलकर अंडरवेर के साथी ही पेंट नीचे घुटनो तक खींच दी. लड़का का खड़ा हुआ लंड जो की उतना बड़ा नही था ठीक उस लड़की की चेहरे के सामने आ गया. उसने एक बार नज़र उठाकर लड़के को देखा और मुस्कुरकर अपने मुँह खोलते हुआ पूरा लंड अपने मुँह में ले गयी.
लंड उस लड़की के मुँह में जाते ही मुझे अपने सर के उपेर एक सिसकी सी सुनाई दी तो मेरा ध्यान प्रिया पर गया. वो बड़ी गौर से उन दोनो को देख रही थी और शायद बेध्यानी में पूरी तरह मुझपर झुक चुकी थी. उसकी दोनो चूचिया मेरे कंधो पर दब रही थी और जिस तरह से वो हिल रही थी उससे मुझे अंदाज़ा हो गया के प्रिया काफ़ी तेज़ी के साथ साँस ले रही है. ज़ाहिर था के वो गरम हो चुकी थी और ये खेल देखने में उसको बड़ा मज़ा आ रहा था. मेरी नज़र उस लड़के लड़की पर और ध्यान अपने कंधो पर दब रही प्रिया की चूचियो पर था.
थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद उस लड़के ने लड़की को दोबारा खड़ा किया और फिर दीवार के साथ सटा दिया पर इस बार उस लड़की का चेहरा दीवार की तरफ और गांद लड़के की तरफ थी. वो लड़का उस लड़की के पिछे खड़े हुए अपने हाथ आगे को ले गया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. खुलते ही सलवार सरकते हुए लड़की के पैरों में जा गिरी और बल्ब की रोशनी में उस लड़की की दूध जैसी सफेद टांगे चमकने लगी. पीछे खड़े लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर उठाकर उसके गले के पास फसा दी ताकि वो उपेर ही रहे और लड़की के पिछे बैठकर उसकी पॅंटी को पकड़कर नीचे खींचता चला गया.
मुझे अपने उपेर एक और सिसकी सी सुनाई दी तो ध्यान फिर प्रिया पर गया. वो अभी भी वैसे ही झुकी चुप चाप तमाशा देख रही थी. जो बदला था वो था मेरे कंधी पर उसकी चूचियो का दबाव जो पहला बहुत हल्का था पर अब इतना बढ़ चुका था के मुझे लगा के प्रिया या तो अंजाने में या जान भूझकर अपनी चूचिया मेरे कंधो पर रगड़ रही है. उधेर वो लड़का लड़की की पॅंटी को नीचे खींच कर पिछे से उसकी टाँगो के बीचे मुँह घुसाकर उस लड़की की चूत चाटने लगा. वो लड़की अब धीरे धीरे आहें भर रही थी और खुद भी अपनी गांद हिलाकर लड़के के मुँह पर अपनी चूत रगड़ रही थी. मैं उन दोनो को देखकर हैरत में पड़ गया. इतनी सी उमर में सेक्स का इतना ग्यान. वो किसी पोर्नस्तर्स की तरह सब कुच्छ एक दम सही तरीके से एक दूसरे को मज़ा देते हुए कर रहे थे. लड़की जब लंड चूस रही थी तो ऐसी थी के कोई पोर्नस्तर भी उसको देखकर शर्मा जाए और लड़का भी बिल्कुल उसी तरह उसकी चूत चाट रहा था.
प्रिया ने मेरा कंधा हिलाया और मुझे हटने को कहा. शायद यूँ मेरे पीछे से झुक कर देखने की वजह से वो थक गयी थी इसलिए मुझे हटाकर पिछे आने को कह रही थी. मैं हटा और उसके पिछे आकर खड़ा हो गया पर मेरी तरह वो नीचे नही बैठी बल्कि खड़ी खड़ी ही झुक कर उन दोनो को देखने लगी. मैं भी उसके पिछे खड़ा होकर अंदर ध्यान देने लगा.
वो लड़का अब भी लड़की की चूत चाट रहा था. उसने पिछे से दोनो हाथों से लड़की की गांद पकड़ कर खोल रखी थी और धीरे धीरे अपनी ज़ुबान उसकी चूत पर चला रहा था. एक हाथ की अंगुली से वो लड़की की गांद के छेद को टटोल रहा था. थोड़ी देर यूँ ही चलता रहा और फिर उसके बाद लड़का खड़ा होकर लड़की के पिछे पोज़िशन लेने लगा. लड़की ने खुद अपना एक हाथ टाँगो के बीचे से निकालकर लड़के का लंड पकड़ा और अपनी चूत में सही जगह पर रखा. लड़के ने उसकी कमर को पकड़ा और ज़ोर लगाया. लड़की के मुँह से अचानक निकली आह सुनकर मैं समझ गया के लंड अंदर जा चुका है जिसके बाद लड़की ने हाथ लंड से हटाकर फिर से दीवार पकड़ ली और आधी झुक गयी. अपनी गांद उसके उपेर को उठाकर और पिछे निकाल दी ताकि लड़के का लंड आसानी से अंदर बाहर हो सके. लड़का भी पिछे से स्पीड बढ़ा चुका था और तेज़ी के साथ लंड को चूत के अंदर बाहर कर रहा था. उसकी एक अंगुली अब भी उस लड़की की गांद पर घूम रही थी जिसे देख कर मेरे मंन में ख्याल आया के ये शायद उसकी गांद भी मरेगा.
गांद का ख्याल आते हुए मेरा ध्यान अपने सामने झुकी प्रिया की गांद पर गया और तब मुझे एहसास हुआ के पिछे से देखने के कारण मैं प्रिया के कितना करीब आ चुका था. मेरा लंड ठीक उसकी गांद के बीचे दबा हुआ था. वो भी ठीक अंदर खड़ी लड़की की तरह सामने दरवाज़े को पकड़े आधी झुकी खड़ी थी और मैं उसके पिछे था. मेरा लंड पूरी तरह तना हुआ था और जिस तरह प्रिया की गांद पर दबा हुआ था उससे ऐसा ही ही नही सकता था के प्रिया को ये महसोस ना हुआ हो. मैं अजीब हालत में पड़ गया. समझ नही आया के लंड हटा लूँ या फिर ऐसे ही रगड़ता रहूं. प्रिया की भारी गांद उस वक़्त मेरे लंड को जो मज़ा दे रही थी उसके चलते मेरे लिए मुश्किल था के मैं वहाँ से हट पाता. मैं उसकी हालत में खड़ा रहा और फिर अंदर देखने लगा.
लड़का अब भी उसी तेज़ी से पिछे से लड़की की चूत पर धक्के मार रहा था.उसके दोनो हाथ लड़की के पूरे जिस्म पर घूम रहे थे और वो लड़की भी उसका भरपूर साथ दे रही थी. जब वो आगे को धक्का मारता तो वो भी अपनी गांद पिछे को करती. उस लड़की के ऐसा करने से मुझे ऐसा लगा या सही में ऐसा हो रहा था ये पता नही पर मुझे महसूस हुआ के प्रिया भी अपनी गांद मेरे लंड पर ऐसे ही धीरे धीरे दबा रही थी. मैं भी काफ़ी जोश में आ चुका था और मैं अपना एक हाथ सीधा उसी गांद पर रख दिया और लंड धीरे से थोडा और उसकी गांद पर दबाया. उसके मुँह से एक बहुत हल्की सी आह निकली जिससे मैं समझ गया के उसको पता है के क्या हो रहा है और वो खुद भी गरमा चुकी है. मैं हाथ यूँ ही थोड़ी देर उसकी गांद पर फिराया और धीरे से आगे ले जाते हुए उसकी एक चूची पकड़ ली.
मेरा ऐसा करना ही था के प्रिया फ़ौरन सीधी उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पलटी. उसकी आँखों में वासना मुझे सॉफ दिखाई दे रही थी जो वो बुरी तरह से कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी.
"चलें?" उसने कहा और बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए कार की तरफ बढ़ चली.
मैं मंन मसोस कर रह गया. एक आखरी नज़र मैने लड़का लड़की पर डाली. लड़की अब नीचे ज़मीन पर घोड़ी बनी हुई थी और लड़का अब भी पिछे से उसको पेल रहा था. मैने एक लंबी आह भारी और प्रिया के पिछे अपनी कार की ओर बढ़ चला.
उस रात नींद तो जैसे आँखों से कोसो दूर थी. मैं काफ़ी देर तक बिस्तर पे यहाँ से वहाँ डोलाता रहा. करवट बदल बदल कर थक गया पर नींद तो जैसे नाराज़ सी हो गयी थी. उस लड़के और लड़के के बीच सेक्स का खेल और उपेर से प्रिया की गांद पर डाबता मेरा लंड दिमाग़ से जैसे निकल ही नही रहे थे. एक पल के लिए मैने सोचा था के जिस तरह प्रिया की गांद पर मेरा लंड दबा था और उसने कुच्छ नही कहा था तो शायद बात इससे आगे बढ़ सके पर कुच्छ नही हुआ. वो खामोशी से कार में जाकर बैठ गयी और उसी खामोशी से पूरे रास्ते बैठी रही . घर जाकर भी वो कार से निकली और अंदर चली गयी, बिना कुच्छ कहे. मैं बुरी तरह से गरम हो चुका था और किस्मत खराब के जिस वक़्त घर पहुँचा तो रुक्मणी के साथ कोई मौका हाथ नही लगा. और दिमाग़ में अब भी सेक्स ही घूम रहा था. मैने हर कोशिश की सेक्स से ध्यान हटाने की पर कामयाब नही हुआ. परेशान होकर मैने विपिन सोनी मर्डर के बारे में सोचना शुरू कर दिया पर सोचने के लिए ज़्यादा कुच्छ था नही सिवाय इसके के वो एक अजीब सा आदमी था और बहुत ही अजीब तरीके से मारा था. अजीब बातें करता था और अजीब सा लाइफस्टाइल था. पर हाँ उसकी बीवी सुंदर थी. इस बार भी नाकामयाभी ही हाथ लगी. सेक्स से ध्यान हटाने की सोची और घूम फिरकर फिर वहीं पहुँच गया. अब विपिन सोनी की बीवी आँखो के सामने घूम रही थी.
ऐसे ही पड़े पड़े आधी रात का वक़्त हो गया. मैने घड़ी पर नज़र डाली तो रात का 1 बज रहा था. जब मुझे महसूस होने लगा के आज पूरी रात यूँ ही गुज़रने वाली है तो मैने कमरे में रखे टीवी का रिमोट उठाया. टीवी ऑन करने ही वाला था के एक अजीब सी आवाज़ पर मेरा ध्यान गया. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत ही हल्की सी आवाज़ में गा रहा है. मैने ध्यान से सुनना शुरू किया. आवाज़ किसी औरत की थी पर वो क्या गा रही थी ये समझ नही आ रहा था. मैने एक नज़र टीवी पर डाली पर वो बंद था. म्यूज़िक सिस्टम को देखा तो वो भी बंद. अपने कंप्यूटर की तरफ नज़र डाली तो वो भी ऑफ था फिर भी लग रहा था जैसे कहीं दूर किसी ने म्यूज़िक सिस्टम ओन किया हुआ हो या वॉल्यूम बहुत धीरे कर रखा हो पर फरक सिर्फ़ ये था के म्यूज़िक नही था. सिर्फ़ एक औरत के हल्के से गाने की आवाज़. मेरे दिमाग़ में रुक्मणी का नाम आया पर मैं जानता था के वो बहुत बेसुरा गाती थी जबकि ये आवाज़ जिस किसी की भी थी वो बहुत सुर में गा रही थी. घर में बाकी देवयानी ही थी. मैं समझ गया के आवाज़ देवयानी की ही है. अंधेरे में यूँ ही पड़े पड़े मैं उसकी आवाज़ पर ध्यान देने लगा. जितनी अच्छी तरह से वो गा रही थी उस हिसाब से तो उसको इंडियन आइडल में ट्राइ करना चाहिए था. जो बात मुझे अजीब लगी वो था गाना. वो कोई फिल्मी गाना नही था. लग रहा था जैसे कोई माँ अपने किसी बच्चे को लोरी सुना रही हो. लोरी के बोल मुझे बिल्कुल भी समझ नही आ रहे थे पर उस आवाज़ ने मुझपर एक अजीब सा असर किया. कई घंटो से खुली हुई मेरी आँखें भारी होने लगी और मुझे पता ही नही चले के वो आवाज़ सुनते सुनते मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
सुबह उठा तो मुझपर एक अजीब सा नशा था. दिल में बेहद सुकून था. लग रहा था जैसे एक बहुत लंबी सुकून भरी नींद से सोकर उठा हूँ. मैं आखरी बार इस तरह कब सोया था मुझे याद भी नही था. जब भी सोकर उठता तो दिल में एक अजीब सी बेचैनी होती. उस दिन क्या क्या करना था और कल क्या क्या बाकी रह गया था ये सारे ख्याल आँख खोलते ही दिमाग़ में शोर मचाना शुरू कर देते थे. पर उस दिन ऐसा कुच्छ ना हुआ. मेरा दिमाग़ और दिल दोनो बेहद हल्के थे. और दीनो की तरह मैं परेशान ना उठा बल्कि आँख खोलते ही चेहरे पर मुस्कान आ गयी. मैं किस बात पर इतना खुश था ये मैं खुद भी नही जानता था.
"तुम गाती भी हो?" ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने देवयानी से पुचछा
मेरी बात सुनकर उसने हैरत से मेरी तरफ देखा. फिर एक नज़र रुक्मणी पर डाली और दोनो हस्ने लगी.
"मज़ाक उड़ा रहे हो?" रुक्मणी ने मुझसे पुचछा.
"नही तो" मैने इनकार में सर हिलाया "मैं तो सीरियस्ली पुच्छ रहा था"
"ओह तो सीरियस्ली मज़ाक उड़ा रहे हो" देवयानी ने कहा
"तुम्हें कैसे पता के हम दोनो बहुत बेसुरी हैं?" रुक्मणी ने आगे कहा
"बेसुरी?" मैने आँखें सिकोडते हुए कहा
"हां और नही तो क्या" देवयानी बोली "हर वो इंसान जो हमको बचपन से जानता है इसी बात को लेकर हमारा मज़ाक उड़ाता है. अगर हम दोनो में से कोई भी गाने लगे तो घर के सारे शीशे टूट जाएँ"
मैं उन दोनो की बात सुनकर चौंक पड़ा. कल रात तो वो बहुत अच्छा गा रही थी. इतना अच्छा के 5 मिनट के अंदर अंदर मैं सो गया था
"तो कल रात तुम नही गा रही ही" मैने देवयानी और रुक्मणी दोनो से पुचछा
"नही तो" रुकमनि बोली और उन दोनो ने इनकार में सर हिलाया "हम दोनो भला रात को बैठके गाने क्यूँ गाएँगे?"
थोड़ी देर तक मैं उस रात के गाने को बारे में सोचता रहा पर फिर वो बात दिमाग़ से निकाल दी. रात का 1 बज रहा था और मैं सोने की कोशिश कर रहा था. बहुत मुमकिन था के किसी पड़ोसी ने गाना चला रखा था जिसकी हल्की सी आवाज़ मुझ तक पहुँच रही थी. मैं तैय्यार होकर घर से ऑफीस के लिए निकला. आधे रास्ते में ही था के मेरा फोन बजने लगा. कॉल मिश्रा की थी.
"कोर्ट में हियरिंग तो नही है तेरी आज?" मिश्रा ने पुचछा
"2 बजे के करीब एक केस की हियरिंग है. क्यूँ?" मैने पुचछा
"गुड. तो एक काम कर फिलहाल पोलीस स्टेशन आ जा" उसने मुझसे कहा. मैं खुद ही समझ गया के बात विपिन सोनी मर्डर केस को लेकर ही होगी
"क्या हुआ?" मैने पुचछा
"अरे यार यहाँ कुच्छ क़ानूनी बातें होने वाली हैं और तू जानता ही हैं के ये सब मेरे पल्ले नही पड़ता. तो मैने सोचा के मेरे पास जब एक घर का वकील है तो उसी को क्यूँ ना बुला लूँ"
वो बिल्कुल सही कह रहा था. लॉ से रिलेटेड बातें मिश्रा की समझ से बाहर थी जबकि वो एक पोलिसेवला था. उसके लिए तो उसका काम सिर्फ़ इतना था के जो भी ग़लत दिखे पकड़के उसकी हड्डियाँ तोड़ दो ताकि अगली बार कुच्छ ग़लत करने से पहले हज़ार बार सोचे.
"ठीक हैं मैं आ जाऊँगा. कितने बजे आना है?" मैने पुचछा
"अभी" मिश्रा ने जवाब दिया
पोलीस स्टेशन पहुँचा तो भूमिका सोनी और उसका बाप ऑलरेडी वहाँ बैठे हुए थे और मिश्रा उनसे कुच्छ बात कर रहा था. जाने क्यूँ दिल ही दिल में सोनी मर्डर केस में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट था जबकि इससे मेरा कुच्छ लेना देना नही था. पर फिर भी मैं क्लोस्ली इस केस को फॉलो करना चाहता था इसलिए मुझे अपने उस वक़्त पोलीस स्टेशन में होने पर बेहद खुशी हुई.
"तो आपको कोई अंदाज़ा नही के आपसे अलग होने और यहाँ आने के बीच आपके पति कहाँ थे" मिश्रा भूमिका से पूछ रहा था. जवाब में भूमिका और उसके बाप दोनो ने इनकार में सर हिलाया
मेरे आने पर थोड़ी देर के लिए बात रुक गयी. मैं उन दोनो से मिला और एक चेर लेकर वहीं पर बैठ गया. हैरत थी के मेरे वहाँ होने पर ना तो भूमिका ने कोई ऐतराज़ जताया और ना ही उसके बाप ने.
"मेरी और मिस्टर सोनी की कभी बनी नही" भूमिका ने अपनी बात जारी की "काफ़ी झगड़े होते थे हम दोनो के बीच और ऐसे ही एक झगड़े के बाद वो घर छ्चोड़कर चले गये थे. उसके बाद मुझे उनके बारे में कुच्छ पता नही चला तब तक जब तक की मुझे आपकी अड्वर्टाइज़्मेंट के बारे में पता नही चला"
"आपने ढूँढने की कोशिश की?" मिश्रा ने पुचछा
"हाँ पोलीस में रिपोर्ट भी लिखवाई थी. न्यूसपेपर में आड़ भी दिया था" इस बार भूमिका का बाप बोला
"झगड़े किसी ख़ास बात पर" मिश्रा ने सवाल किया
"ऐसे ही मियाँ बीवी के झगड़े पर बहुत ज़्यादा होते थे. छ्होटी छ्होटी बात पर. मैने जितना उनके करीब जाने की कोशिश करती वो उतना ही दूर चले जाते. बात इतनी बिगड़ चुकी थी के अगर वो घर से ना जाते तो शायद मैं चली जाती " भूमिका ने जवाब दिया
"ह्म्म्म्म " मिश्रा सोचते हुए बोला "तो वो कोई 8 महीने पहले आपको छ्चोड़के चले गये थे और अपना कोई अड्रेस नही दिया था"
भूमिका ने फिर इनकार में सर हिलाया
"बॉडी हमें कब तक मिल सकती है?" भूमिका के बाप ने पुचछा
"शायद आज ही. पोस्ट मॉर्टेम हो चुका है. मौत उनके दिल में किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमले की वजह से हुई थी. हमारी तलाश अब भी जारी है और शायद इस वजह से कुच्छ दिन आपको और यहीं रुकना पड़े." मिश्रा ने पेन नीचे रखता हुए कहा
"पर मुझे प्रॉपर्टी के सिलसिले में वापिस मुंबई जाना पड़ सकता है" भूमिका बोली "मिस्टर सोनी की विल पढ़ी जानी है"
उसकी बात सुनकर मिश्रा ऐसे मुस्कुराया के मुझे लगा के भूमिका अभी उसको थप्पड़ मार देगी
"हाँ दौलत तो काफ़ी मिली होगी आपको. जिस तरह से आपने बताया है उससे तो लगता है के मिस्टर सोनी काफ़ी अमीर आदमी थे. अब तो आप एक अमीर औरत हो गयी" उसने कहा
मुझे यकीन नही हुआ के वो ये कह रहा है. ये उसके मतलब की बात नही थी और मुझे समझ नही आया के वो ऐसा क्यूँ कह रहा था पर उससे ज़्यादा हैरत तब हुई जब भूमिका भी जवाब में मुक्सुरा उठी.
"ये तो विल पर डिपेंड करता है" वो बोली "यहाँ से देअथ सर्टिफिकेट मिलने पर जब विल खुलेगी तब पता चलेगा के कितना मुझे मिला और कितना मिस्टर सोनी की बेटी को"
ये एक नयी बात थी. मैं और मिश्रा दोनो ही चौंक पड़े
"मिस्टर सोनी की बेटी?" मैं पूरी बात के दौरान पहली बार बोला "आपसे?"
"नही" वो मेरी तरफ देखकर बोली "मुझसे होती तो मैं हमारी बेटी कहती, सिर्फ़ मिस्टर सोनी की बेटी नही"
"तो आप उनकी दूसरी बीवी थी" मैने कहा
"जी हां" भूमिका ने एक लंबी साँस छ्चोड़ते हुए कहा "पहली बीवी से उनकी एक 24 साल की बेटी है, रश्मि"
"और उनकी वो बेटी कहाँ है?" मैने भूमिका से पुचछा
"अब ये तो भगवान ही जाने" उसने जवाब दिया "कोई साल भर पहले ऑस्ट्रेलिया गयी थी और अब वहाँ है के नही मैं नही जानती"
"क्या उसको इस बात की खबर है के उसके पिता अब नही रहे?" मिश्रा बोला
"पता नही" भूमिका ने कंधे हिलाते हुए कहा "मेरे पास ना तो उसका कोई अड्रेस है और ना ही फोन नंबर. जो पहले था अब वो फोन काम नही कर रहा और मुझसे उसने कभी बात नही की"
"और अपने पिता से?" मैने पुचछा
"पता नही" भूमिका ने जवाब दिया "शायद फोन करती हो"
कमरे में थोड़ी देर के लिए खामोशी च्छा गयी
"आपको क्या लगता है किसने मारा होगा आपके पति को?" मैने थोड़ी देर बाद सवाल किया
"नही जानती" भूमिका ने छ्होटा सा जवाब दिया
"उनके कोई दुश्मन?"
"नही जानती" फिर वही छ्होटा सा सवाल
"मुझे तो उन्होने कहा था के उनके दुश्मन थे जो उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते थे" मैने कहा
"मुझसे इस बारे में कभी कोई बात नही की उन्होने" भूमिका ने जवाब दिया
"देखा जाए तो पैसे के मामले में बड़ा टेढ़ा था वो" इस बार भूमिका के बाप ने जवाब दिया "इसके चक्कर में कई लोग उसको पसंद नही करते थे, जिनके साथ बिज़्नेस था वो. पर ऐसी कोई बात नही थी के कोई उसका खून ही कर दे. उसने तो कभी किसी को कोई नुकसान नही पहुँचाया"
"फिर भी उनका खून तो हुआ ही ना" मैने कहा तो कमरे में फिर पल के लिए सन्नाटा फेल गया
"सही कह रहे हैं आप" इस बार सनना भूमिका के बाप ने ही तोड़ा "और ये किसने किया ये सबसे ज़्यादा अगर कोई जानना चाहता है तो वो मैं और मेरी बेटी ही हैं"
"किसने किया ये तो फिलहाल कोई नही जानता पर कैसे किया ये मैं आपको ज़रूर बता सकता हूँ. उनपर किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमला किया गया था जो सीधा उनके दिल में उतर गयी. उनकी मौत भी फ़ौरन ही हो गयी." मैने कहा
"अगर बिल्कुल सही बात कहूँ तो हमला एक खंजर से किया गया था. पोस्ट मॉर्टेम की रिपोर्ट के हिसाब से वो ऐसा खंजर था जो पुराने ज़माने में राजा महाराजा रखा करते थे. वो तलवार जैसे होता है ना, आगे से मुड़ा हुआ" इस बार मिश्रा ने बात की
"खंजर?" भूमिका ने कहा और वो बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी.
क्रमशः..........................................
गतान्क से आगे.....................
मुझे यकीन नही हो रहा था के वो मेरे सामने ही कपड़े बदल रही है. उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ किया हुआ हुआ कमर मेरी तरफ थी. सावली कमर पर वाइट ब्रा के स्ट्रॅप्स देख कर जैसे मेरे मुँह में पानी भर आया. वो उसी हालत में खड़ी अपना बॅग खोलकर कपड़े निकालने लगी. एक कपड़ा उसने खींच कर बाहर निकाला और देखा तो वो स्कर्ट थी. उसने एक पल के लिए दोबारा बॅग में हाथ डालने की सोची पर फिर एक कदम पिछे को हुई और अपनी पेंट खोलने लगी.
मैं आँखें फाडे उसको देख रहा था. मेरा मन एक तरफ तो मुझे घूम कर दूसरी और देखने को कह रहा था और दूसरी तरफ मेरा दिल ये भी चाह रहा था के मैं उसको देखता रहू. ये मेरी ज़िंदगी में पहली बार था के कोई ऐसी लड़की जिससे मेरा इस तरह का कोई रिश्ता नही था बेझिझक मेरे सामने कपड़े बदल रही थी. अगले ही पल उसने अपनी पेंट खोली और और नीचे को झुक कर उतार दी.
अब वो मेरे सामने सिर्फ़ एक वाइट कलर की ब्रा और ब्लू कलर की पॅंटी पहने मेरी तरफ पीठ किए खड़ी थी. उसकी पॅंटी ने उसकी गांद को पूरी तरह ढक रखा था पर फिर भी उस पतले कपड़े में हिलते हुए उसकी गांद के कुवर्व्स सॉफ दिखाई दे रहे थे. मेरी नज़र कभी उसकी कमर पर जाती तो कभी उसकी गांद पर. किसी गूंगे की तरह खड़ा मैं बस उसको चुप चाप देख रहा था. मैं सोच रहा था के वो यूँ ही मेरी तरफ पीठ किए स्कर्ट पहनेगी पर मेरी उम्मीद के बिल्कुल उल्टा हुआ. वो स्कर्ट हाथ में पकड़े मेरी तरफ घूम गयी.
आज पहली बार उसको आधी नंगी हालत में देख कर मुझे एहसास हुआ के उसको बनाने वाले ने भले शकल सूरत कोई ख़ास उसको नही दी थी पर वो कमी उसका जिस्म बनाने में पूरी कर दी थी. उसका जिस्म हर तरफ से कसा हुआ और कहीं ज़रा भी ढीलापन नही थी. मैने एक अपने सामने सिर्फ़ ब्रा और पॅंटी में खड़ी प्रिया को उपेर से नीचे तक देखा. वो फ़ौरन समझ गयी के मैं क्या देख रहा हूँ और हस पड़ी.
"ओह प्लीज़" वो बोली "अब तुम फिर मेरे ब्रेस्ट्स को घूर्ना मत शुरू कर देना"
मेरी शकल ऐसी हो गयी जैसे किसी चोर की चोरी पकड़ी गयी हो.
"नही ऐसा कुच्छ नही है" मैने झेन्प्ते हुए कहा
उसने फुल लेंग्थ स्कर्ट को एक बार झटका और फिर पहेन्ने के लिए सामने की और झुकी. उसकी दोनो छातिया जो अब तक मैं ब्रा के उपेर से देख रहा था उसके झुकने की वजह से आधी मेरे सामने आ गयी. भले ये एक पल के लिए ही था पर मैने अंदाज़ा लगा लिया के उसकी चूचिया बहुत बड़ी हैं और कहीं अगर उसके जिस्म पर ढीला पन है तो वो वहाँ है. वो शायद इतनी बड़ी होने की वजह से अपने वज़न से थोड़ा ढालकी हुई थी. स्कर्ट टाँगो के उपेर खींचती हुई वो उठ खड़ी हुई और नीचे से अपने बदन को ढक लिया. उसके बाद उसने बॅग से टॉप निकाला और उसको पहेन्ने के लिए हाथ उपेर उठाए.
"आह" उसके मुँह से एक आह निकली
"क्या हुआ?" मैने पुचछा
"ब्रा शाद टाइट आ गयी है. सुबह भी कपड़े बदलते हुए पिछे कमर पर स्ट्रॅप चुभ सा रहा था" उसने टॉप अपने गले से नीचे उतारते हुए कहा
"जाके बदल आना" मैं पहली बार अपने सामने एक लड़की को अपनी सेक्रेटरी के रूप में देख रहा था. आज से पहले तो मैने जैसे कभी उसपर इतना ध्यान दिया ही नही था.
"हां या शायद मुझे आदत नही है इसलिए थोड़ी मुश्किल हो रही है" कहते हुए उसने सामने से अपनी चूचियो को पकड़ा और हल्का सा इधर उधर करते हुए ब्रा के अंदर सेट करने लगी.
मेरा मन किया के मैं उसके हाथ सेआगे बढ़कर खुद उन दोनो छातियो को अपने हाथ में ले लूं. मेरा लंड पूरी तरह तन चुका था और उसको च्छुपाने के लिए मैं टेबल के पिछे से खड़ा भी नही हो रहा था के कहीं वो देख ना ले. कपड़े ठीक करके वो मेरे सामने आ खड़ी हुई और घूम घूमकर मुझे दिखाने लगी.
"कैसी लग रही हूँ?" उसने इठलाते हुए पुचछा
"पहली बार पूरी लड़की लग रही हो. बस थोडा सा चेंज और बाकी है" मैने जवाब दिया.
"क्या?" उसने पुचछा ही था के सामने रखे फोन की घंटी बजने लगी. मैने फोन उठाया. दूसरी तरफ मिश्रा था.
"वो सोनी की बीवी ने कन्फर्म कर दिया के लाश उसके पति की ही है" फोन के दूसरी तरफ से मिश्रा बोला
"अब?" मैने प्रिया की तरफ देखते हुए कहा
"कल सुबह वो पेपर्स पर साइन करके लाश ले लेगी. मैने उसको अभी कुच्छ दिन और यहीं शहेर में रहने को कहा है. वो मान गयी. पति का क्रियकरम भी यहीं करवा रही है. लाश मुंबई नही ले जा रही" मिश्रा बोला
"और कोई इन्फर्मेशन मिली उससे?" मैने सवाल किया
"नही अभी तो नही. मुझे फिलहाल उससे सवाल करना ठीक नही लगा. काफ़ी परेशान सी लग रही थी. एक दो दिन बाद फिर मिलूँगा उससे" मिश्रा ने कहा
"ह्म्म्म्म "मैं हामी भरी
"अच्छा एक बात सुन. मेरा पोलीस में एक दोस्त है जिसने अभी अभी शादी की है. वो पार्टी दे रहा है. शाम को तू आजा" मिश्रा ने कहा
वैसे तो मैं जाने को तैय्यार नही था क्यूंकी मैं उस पोलिसेवाले को जानता नही था पर मिश्रा के ज़ोर डालने पर मान गया. शाम को 7 बजे मिलने का कहकर मैने फोन नीचे रख दिया.
"क्या प्लान है?" प्रिया ने मुझे पुचछा तो मैने उसको शादी की पार्टी के बारे में बताया.
"ओके. एंजाय करना" उसने मुझसे कहा और वापिस अपनी टेबल पर जाके बैठ गयी.
अचानक मेरे दिमाग़ में एक ख्याल आया
"तुम साथ क्यूँ नही चलती. रात को मैं तुम्हें घर छ्चोड़ दूँगा" मेरा कहना ही था के वो इतनी जल्दी मान गयी जैसे मेरे पुच्छने का इंतेज़ार ही कर रही थी.
पार्टी मेरी उम्मीद से भी कहीं ज़्यादा बोर निकली. वो उस पोलिसेवाले के छ्होटे से फ्लॅट पर ही थी और कुच्छ फॅमिलीस आई हुई थी और मैं मिश्रा को छ्चोड़कर किसी को नही जानता था जो उस वक़्त पूरी तरह नशे में था इसलिए उसका होना या ना होना बराबर था. मैने कई बार वहाँ से निकलने की कोशिश की पर निकल ना सका. प्रिया भी मेरी तरह बोर हो रही थी और बार बार चलने को कह रही थी. आख़िर में तकरीबन 11 बजे हम दोनो वहाँ से निकल सके.
"क्या बोर पार्टी थी" मैने फ्लॅट से निकलकर नीचे बेसमेंट की ओर बढ़ते हुए कहा जहाँ मेरी कार खड़ी हुई थी
"सही में" प्रिया ने मेरे साथ कदम मिलाते हुए कहा. उसने उस वक़्त भी वही स्कर्ट और टॉप पहना हुआ था.
थोड़ी ही देर बाद हम दोनो बेसमेंट में पहुँचे और मेरी कार की तरफ बढ़े. मैने अपनी कार के पास पहुँचकर देखा तो प्रिया थोड़ा पिछे रुक गयी और एक अंधेरे कोने की तरफ ध्यान से देख रही थी. हम दोनो की नज़रें मिली और मैने के कुच्छ कहने के लिए मुँह खोला ही था के प्रिया ने मुझे हाथ से चुप रहने का इशारा किया और धीरे से अपनी और आने को कहा. मुझे समझ नही आया के वो क्या कह रही है पर मैं शांति से उसकी तरफ बढ़ा.
"क्या हुआ?" उसके पास पहुँच कर मैने कहा
"इधर आओ" उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे तकरीबन खींचते दबे पावं से उस कोने की तरफ ले गयी जहाँ वो गौर से देख रही थी.
हम लोग धीरे धीरे चलते हुए उस कोने तक पहुँचे. प्रिया ने मुझे वहाँ रुकने का इशारा किया और किसी चोर की तरह चलती हुई आगे बढ़ी. सामने एक छ्होटा सा दरवाज़ा बना हुआ था जो बिल्डिंग की सीढ़ियों की और खुलता था. दरवाज़े की हालत देखकर ही लग रहा था के उन बिल्डिंग मे आने जाने के लिए सीढ़ियों का इस्तेमाल कम ही होता था. दरवाज़े पर ज़ंग लगा हुआ था और उसी वजह से उसको पूरी तरह बंद नही किया जा सकता था. देखकर लग रहा था के किसी ने दरवाज़ा बंद तो किया पर फिर भी वो हल्का सा खुला रह गया. प्रिया उस दरवाज़े के पास पहुँची और धीरे से उस खुले हुए हिस्से से अंदर देखने लगी. फिर वो पलटी और मुस्कुराते हुए मुझे बहुत धीरे से अपने पास आने को कहा.
मैं दरवाज़े के पास पहुँचा तो प्रिया ने साइड हटकर मुझे अंदर झाँकने को कहा. अंदर देखते ही जैसे मेरे होश से उड़ गये. अंदर मुश्किल से 17-18 साल का एक लड़का और उतनी ही उमर की एक लड़की खड़ी थी. उन दोनो को देखने से ही लग रहा था के वो दोनो अभी भी स्कूल में ही हैं. लड़की दीवार के साथ लगी खड़ी थी और लड़का उसके सामने खड़ा उसको चूम रहा था. मैने एक पल के लिए उन्हें देखा और नज़र हटाकर वापिस प्रिया की और देखा जो अब भी मुस्कुरा रही थी. मैने उसको वहाँ से चलने का इशारा किया पर उसने इनकार में सर हिलाया और फिर से मुझे हटाके अंदर झाँकने लगी. थोड़ी देर देखकर वो फिर से हटी और मुझे देखने को कहा. मैने अंदर नज़र डाली तो फिर नज़र हटाना मुश्किल हो गया.
उस लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर कर दी थी और उसकी छ्होटी छ्होटी चूचियो को मसल रहा था. लड़की की आँखें बंद थी और ज़ाहिर था के उसको भी बहुत मज़ा आ रहा था. मैं देख ही रहा था के पिछे से मुझे अपने कंधो पर प्रिया के हाथ महसूस हुए जो मुझे नीचे को दबा रहे थे. मैं समझ गया के वो मुझे बैठ जाने को कह रही है ताकि खुद भी मेरे सर के उपेर से अंदर देख सके. मैने नीचे को बैठ गया और अंदर देखने लगा. प्रिया पिछे से मेरे उपेर झुकी और खुद भी दरवाज़े से देखने लगी.
अब वो लड़का नीचे झुक कर उस लड़की की एक चूची को चूस रहा था और दूसरी को हाथ से मसल रहा था. लड़की का एक हाथ उसके सर पर था और वो खुद ज़ोर डालकर उस लड़के का मुँह अपनी चूची पर दबा रही थी और दूसरे हाथ से पेंट के उपेर से उसका लंड सहला रही थी. वो लड़का कभी उसकी एक चूची चूस्टा तो कभी दूसरी. हम दोनो चुप चाप खड़े सब देख रहे था और मैं अंदाज़ा लगाने की कोशिश कर रहा था के वो लड़का लड़की किस हद तक जाने वाले हैं. प्रिया मेरे उपेर को झुकी हुई और. उसकी चिन मेरे सर पर थी और दोनो हाथ मेरे कंधो पर.
थोड़ी देर यूँ ही चूचिया चूसने के बाद वो लड़का हटा और लड़की के होंठों को एक बार चूमकर उसे दीवार से हटाया. लड़की ने आँखें खोलकर उस लड़के की तरफ देखा जो तब तक खुद भी दीवार के साथ सॅट कर खड़ा हो चुका था. लड़की धीरे से मुस्कुराइ और उसके सामने आकर अपने घुटनो पर बैठ गयी और उसकी पेंट खोलने लगी. उसने लड़की की पेंट अनज़िप की और हुक खोलकर अंडरवेर के साथी ही पेंट नीचे घुटनो तक खींच दी. लड़का का खड़ा हुआ लंड जो की उतना बड़ा नही था ठीक उस लड़की की चेहरे के सामने आ गया. उसने एक बार नज़र उठाकर लड़के को देखा और मुस्कुरकर अपने मुँह खोलते हुआ पूरा लंड अपने मुँह में ले गयी.
लंड उस लड़की के मुँह में जाते ही मुझे अपने सर के उपेर एक सिसकी सी सुनाई दी तो मेरा ध्यान प्रिया पर गया. वो बड़ी गौर से उन दोनो को देख रही थी और शायद बेध्यानी में पूरी तरह मुझपर झुक चुकी थी. उसकी दोनो चूचिया मेरे कंधो पर दब रही थी और जिस तरह से वो हिल रही थी उससे मुझे अंदाज़ा हो गया के प्रिया काफ़ी तेज़ी के साथ साँस ले रही है. ज़ाहिर था के वो गरम हो चुकी थी और ये खेल देखने में उसको बड़ा मज़ा आ रहा था. मेरी नज़र उस लड़के लड़की पर और ध्यान अपने कंधो पर दब रही प्रिया की चूचियो पर था.
थोड़ी देर लंड चुसवाने के बाद उस लड़के ने लड़की को दोबारा खड़ा किया और फिर दीवार के साथ सटा दिया पर इस बार उस लड़की का चेहरा दीवार की तरफ और गांद लड़के की तरफ थी. वो लड़का उस लड़की के पिछे खड़े हुए अपने हाथ आगे को ले गया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. खुलते ही सलवार सरकते हुए लड़की के पैरों में जा गिरी और बल्ब की रोशनी में उस लड़की की दूध जैसी सफेद टांगे चमकने लगी. पीछे खड़े लड़के ने लड़की की कमीज़ उपेर उठाकर उसके गले के पास फसा दी ताकि वो उपेर ही रहे और लड़की के पिछे बैठकर उसकी पॅंटी को पकड़कर नीचे खींचता चला गया.
मुझे अपने उपेर एक और सिसकी सी सुनाई दी तो ध्यान फिर प्रिया पर गया. वो अभी भी वैसे ही झुकी चुप चाप तमाशा देख रही थी. जो बदला था वो था मेरे कंधी पर उसकी चूचियो का दबाव जो पहला बहुत हल्का था पर अब इतना बढ़ चुका था के मुझे लगा के प्रिया या तो अंजाने में या जान भूझकर अपनी चूचिया मेरे कंधो पर रगड़ रही है. उधेर वो लड़का लड़की की पॅंटी को नीचे खींच कर पिछे से उसकी टाँगो के बीचे मुँह घुसाकर उस लड़की की चूत चाटने लगा. वो लड़की अब धीरे धीरे आहें भर रही थी और खुद भी अपनी गांद हिलाकर लड़के के मुँह पर अपनी चूत रगड़ रही थी. मैं उन दोनो को देखकर हैरत में पड़ गया. इतनी सी उमर में सेक्स का इतना ग्यान. वो किसी पोर्नस्तर्स की तरह सब कुच्छ एक दम सही तरीके से एक दूसरे को मज़ा देते हुए कर रहे थे. लड़की जब लंड चूस रही थी तो ऐसी थी के कोई पोर्नस्तर भी उसको देखकर शर्मा जाए और लड़का भी बिल्कुल उसी तरह उसकी चूत चाट रहा था.
प्रिया ने मेरा कंधा हिलाया और मुझे हटने को कहा. शायद यूँ मेरे पीछे से झुक कर देखने की वजह से वो थक गयी थी इसलिए मुझे हटाकर पिछे आने को कह रही थी. मैं हटा और उसके पिछे आकर खड़ा हो गया पर मेरी तरह वो नीचे नही बैठी बल्कि खड़ी खड़ी ही झुक कर उन दोनो को देखने लगी. मैं भी उसके पिछे खड़ा होकर अंदर ध्यान देने लगा.
वो लड़का अब भी लड़की की चूत चाट रहा था. उसने पिछे से दोनो हाथों से लड़की की गांद पकड़ कर खोल रखी थी और धीरे धीरे अपनी ज़ुबान उसकी चूत पर चला रहा था. एक हाथ की अंगुली से वो लड़की की गांद के छेद को टटोल रहा था. थोड़ी देर यूँ ही चलता रहा और फिर उसके बाद लड़का खड़ा होकर लड़की के पिछे पोज़िशन लेने लगा. लड़की ने खुद अपना एक हाथ टाँगो के बीचे से निकालकर लड़के का लंड पकड़ा और अपनी चूत में सही जगह पर रखा. लड़के ने उसकी कमर को पकड़ा और ज़ोर लगाया. लड़की के मुँह से अचानक निकली आह सुनकर मैं समझ गया के लंड अंदर जा चुका है जिसके बाद लड़की ने हाथ लंड से हटाकर फिर से दीवार पकड़ ली और आधी झुक गयी. अपनी गांद उसके उपेर को उठाकर और पिछे निकाल दी ताकि लड़के का लंड आसानी से अंदर बाहर हो सके. लड़का भी पिछे से स्पीड बढ़ा चुका था और तेज़ी के साथ लंड को चूत के अंदर बाहर कर रहा था. उसकी एक अंगुली अब भी उस लड़की की गांद पर घूम रही थी जिसे देख कर मेरे मंन में ख्याल आया के ये शायद उसकी गांद भी मरेगा.
गांद का ख्याल आते हुए मेरा ध्यान अपने सामने झुकी प्रिया की गांद पर गया और तब मुझे एहसास हुआ के पिछे से देखने के कारण मैं प्रिया के कितना करीब आ चुका था. मेरा लंड ठीक उसकी गांद के बीचे दबा हुआ था. वो भी ठीक अंदर खड़ी लड़की की तरह सामने दरवाज़े को पकड़े आधी झुकी खड़ी थी और मैं उसके पिछे था. मेरा लंड पूरी तरह तना हुआ था और जिस तरह प्रिया की गांद पर दबा हुआ था उससे ऐसा ही ही नही सकता था के प्रिया को ये महसोस ना हुआ हो. मैं अजीब हालत में पड़ गया. समझ नही आया के लंड हटा लूँ या फिर ऐसे ही रगड़ता रहूं. प्रिया की भारी गांद उस वक़्त मेरे लंड को जो मज़ा दे रही थी उसके चलते मेरे लिए मुश्किल था के मैं वहाँ से हट पाता. मैं उसकी हालत में खड़ा रहा और फिर अंदर देखने लगा.
लड़का अब भी उसी तेज़ी से पिछे से लड़की की चूत पर धक्के मार रहा था.उसके दोनो हाथ लड़की के पूरे जिस्म पर घूम रहे थे और वो लड़की भी उसका भरपूर साथ दे रही थी. जब वो आगे को धक्का मारता तो वो भी अपनी गांद पिछे को करती. उस लड़की के ऐसा करने से मुझे ऐसा लगा या सही में ऐसा हो रहा था ये पता नही पर मुझे महसूस हुआ के प्रिया भी अपनी गांद मेरे लंड पर ऐसे ही धीरे धीरे दबा रही थी. मैं भी काफ़ी जोश में आ चुका था और मैं अपना एक हाथ सीधा उसी गांद पर रख दिया और लंड धीरे से थोडा और उसकी गांद पर दबाया. उसके मुँह से एक बहुत हल्की सी आह निकली जिससे मैं समझ गया के उसको पता है के क्या हो रहा है और वो खुद भी गरमा चुकी है. मैं हाथ यूँ ही थोड़ी देर उसकी गांद पर फिराया और धीरे से आगे ले जाते हुए उसकी एक चूची पकड़ ली.
मेरा ऐसा करना ही था के प्रिया फ़ौरन सीधी उठ खड़ी हुई और मेरी तरफ पलटी. उसकी आँखों में वासना मुझे सॉफ दिखाई दे रही थी जो वो बुरी तरह से कंट्रोल करने की कोशिश कर रही थी.
"चलें?" उसने कहा और बिना मेरे जवाब का इंतेज़ार किए कार की तरफ बढ़ चली.
मैं मंन मसोस कर रह गया. एक आखरी नज़र मैने लड़का लड़की पर डाली. लड़की अब नीचे ज़मीन पर घोड़ी बनी हुई थी और लड़का अब भी पिछे से उसको पेल रहा था. मैने एक लंबी आह भारी और प्रिया के पिछे अपनी कार की ओर बढ़ चला.
उस रात नींद तो जैसे आँखों से कोसो दूर थी. मैं काफ़ी देर तक बिस्तर पे यहाँ से वहाँ डोलाता रहा. करवट बदल बदल कर थक गया पर नींद तो जैसे नाराज़ सी हो गयी थी. उस लड़के और लड़के के बीच सेक्स का खेल और उपेर से प्रिया की गांद पर डाबता मेरा लंड दिमाग़ से जैसे निकल ही नही रहे थे. एक पल के लिए मैने सोचा था के जिस तरह प्रिया की गांद पर मेरा लंड दबा था और उसने कुच्छ नही कहा था तो शायद बात इससे आगे बढ़ सके पर कुच्छ नही हुआ. वो खामोशी से कार में जाकर बैठ गयी और उसी खामोशी से पूरे रास्ते बैठी रही . घर जाकर भी वो कार से निकली और अंदर चली गयी, बिना कुच्छ कहे. मैं बुरी तरह से गरम हो चुका था और किस्मत खराब के जिस वक़्त घर पहुँचा तो रुक्मणी के साथ कोई मौका हाथ नही लगा. और दिमाग़ में अब भी सेक्स ही घूम रहा था. मैने हर कोशिश की सेक्स से ध्यान हटाने की पर कामयाब नही हुआ. परेशान होकर मैने विपिन सोनी मर्डर के बारे में सोचना शुरू कर दिया पर सोचने के लिए ज़्यादा कुच्छ था नही सिवाय इसके के वो एक अजीब सा आदमी था और बहुत ही अजीब तरीके से मारा था. अजीब बातें करता था और अजीब सा लाइफस्टाइल था. पर हाँ उसकी बीवी सुंदर थी. इस बार भी नाकामयाभी ही हाथ लगी. सेक्स से ध्यान हटाने की सोची और घूम फिरकर फिर वहीं पहुँच गया. अब विपिन सोनी की बीवी आँखो के सामने घूम रही थी.
ऐसे ही पड़े पड़े आधी रात का वक़्त हो गया. मैने घड़ी पर नज़र डाली तो रात का 1 बज रहा था. जब मुझे महसूस होने लगा के आज पूरी रात यूँ ही गुज़रने वाली है तो मैने कमरे में रखे टीवी का रिमोट उठाया. टीवी ऑन करने ही वाला था के एक अजीब सी आवाज़ पर मेरा ध्यान गया. ऐसा लग रहा था जैसे कोई बहुत ही हल्की सी आवाज़ में गा रहा है. मैने ध्यान से सुनना शुरू किया. आवाज़ किसी औरत की थी पर वो क्या गा रही थी ये समझ नही आ रहा था. मैने एक नज़र टीवी पर डाली पर वो बंद था. म्यूज़िक सिस्टम को देखा तो वो भी बंद. अपने कंप्यूटर की तरफ नज़र डाली तो वो भी ऑफ था फिर भी लग रहा था जैसे कहीं दूर किसी ने म्यूज़िक सिस्टम ओन किया हुआ हो या वॉल्यूम बहुत धीरे कर रखा हो पर फरक सिर्फ़ ये था के म्यूज़िक नही था. सिर्फ़ एक औरत के हल्के से गाने की आवाज़. मेरे दिमाग़ में रुक्मणी का नाम आया पर मैं जानता था के वो बहुत बेसुरा गाती थी जबकि ये आवाज़ जिस किसी की भी थी वो बहुत सुर में गा रही थी. घर में बाकी देवयानी ही थी. मैं समझ गया के आवाज़ देवयानी की ही है. अंधेरे में यूँ ही पड़े पड़े मैं उसकी आवाज़ पर ध्यान देने लगा. जितनी अच्छी तरह से वो गा रही थी उस हिसाब से तो उसको इंडियन आइडल में ट्राइ करना चाहिए था. जो बात मुझे अजीब लगी वो था गाना. वो कोई फिल्मी गाना नही था. लग रहा था जैसे कोई माँ अपने किसी बच्चे को लोरी सुना रही हो. लोरी के बोल मुझे बिल्कुल भी समझ नही आ रहे थे पर उस आवाज़ ने मुझपर एक अजीब सा असर किया. कई घंटो से खुली हुई मेरी आँखें भारी होने लगी और मुझे पता ही नही चले के वो आवाज़ सुनते सुनते मैं कब नींद के आगोश में चला गया.
सुबह उठा तो मुझपर एक अजीब सा नशा था. दिल में बेहद सुकून था. लग रहा था जैसे एक बहुत लंबी सुकून भरी नींद से सोकर उठा हूँ. मैं आखरी बार इस तरह कब सोया था मुझे याद भी नही था. जब भी सोकर उठता तो दिल में एक अजीब सी बेचैनी होती. उस दिन क्या क्या करना था और कल क्या क्या बाकी रह गया था ये सारे ख्याल आँख खोलते ही दिमाग़ में शोर मचाना शुरू कर देते थे. पर उस दिन ऐसा कुच्छ ना हुआ. मेरा दिमाग़ और दिल दोनो बेहद हल्के थे. और दीनो की तरह मैं परेशान ना उठा बल्कि आँख खोलते ही चेहरे पर मुस्कान आ गयी. मैं किस बात पर इतना खुश था ये मैं खुद भी नही जानता था.
"तुम गाती भी हो?" ब्रेकफास्ट टेबल पर मैने देवयानी से पुचछा
मेरी बात सुनकर उसने हैरत से मेरी तरफ देखा. फिर एक नज़र रुक्मणी पर डाली और दोनो हस्ने लगी.
"मज़ाक उड़ा रहे हो?" रुक्मणी ने मुझसे पुचछा.
"नही तो" मैने इनकार में सर हिलाया "मैं तो सीरियस्ली पुच्छ रहा था"
"ओह तो सीरियस्ली मज़ाक उड़ा रहे हो" देवयानी ने कहा
"तुम्हें कैसे पता के हम दोनो बहुत बेसुरी हैं?" रुक्मणी ने आगे कहा
"बेसुरी?" मैने आँखें सिकोडते हुए कहा
"हां और नही तो क्या" देवयानी बोली "हर वो इंसान जो हमको बचपन से जानता है इसी बात को लेकर हमारा मज़ाक उड़ाता है. अगर हम दोनो में से कोई भी गाने लगे तो घर के सारे शीशे टूट जाएँ"
मैं उन दोनो की बात सुनकर चौंक पड़ा. कल रात तो वो बहुत अच्छा गा रही थी. इतना अच्छा के 5 मिनट के अंदर अंदर मैं सो गया था
"तो कल रात तुम नही गा रही ही" मैने देवयानी और रुक्मणी दोनो से पुचछा
"नही तो" रुकमनि बोली और उन दोनो ने इनकार में सर हिलाया "हम दोनो भला रात को बैठके गाने क्यूँ गाएँगे?"
थोड़ी देर तक मैं उस रात के गाने को बारे में सोचता रहा पर फिर वो बात दिमाग़ से निकाल दी. रात का 1 बज रहा था और मैं सोने की कोशिश कर रहा था. बहुत मुमकिन था के किसी पड़ोसी ने गाना चला रखा था जिसकी हल्की सी आवाज़ मुझ तक पहुँच रही थी. मैं तैय्यार होकर घर से ऑफीस के लिए निकला. आधे रास्ते में ही था के मेरा फोन बजने लगा. कॉल मिश्रा की थी.
"कोर्ट में हियरिंग तो नही है तेरी आज?" मिश्रा ने पुचछा
"2 बजे के करीब एक केस की हियरिंग है. क्यूँ?" मैने पुचछा
"गुड. तो एक काम कर फिलहाल पोलीस स्टेशन आ जा" उसने मुझसे कहा. मैं खुद ही समझ गया के बात विपिन सोनी मर्डर केस को लेकर ही होगी
"क्या हुआ?" मैने पुचछा
"अरे यार यहाँ कुच्छ क़ानूनी बातें होने वाली हैं और तू जानता ही हैं के ये सब मेरे पल्ले नही पड़ता. तो मैने सोचा के मेरे पास जब एक घर का वकील है तो उसी को क्यूँ ना बुला लूँ"
वो बिल्कुल सही कह रहा था. लॉ से रिलेटेड बातें मिश्रा की समझ से बाहर थी जबकि वो एक पोलिसेवला था. उसके लिए तो उसका काम सिर्फ़ इतना था के जो भी ग़लत दिखे पकड़के उसकी हड्डियाँ तोड़ दो ताकि अगली बार कुच्छ ग़लत करने से पहले हज़ार बार सोचे.
"ठीक हैं मैं आ जाऊँगा. कितने बजे आना है?" मैने पुचछा
"अभी" मिश्रा ने जवाब दिया
पोलीस स्टेशन पहुँचा तो भूमिका सोनी और उसका बाप ऑलरेडी वहाँ बैठे हुए थे और मिश्रा उनसे कुच्छ बात कर रहा था. जाने क्यूँ दिल ही दिल में सोनी मर्डर केस में मुझे कुच्छ ज़्यादा ही इंटेरेस्ट था जबकि इससे मेरा कुच्छ लेना देना नही था. पर फिर भी मैं क्लोस्ली इस केस को फॉलो करना चाहता था इसलिए मुझे अपने उस वक़्त पोलीस स्टेशन में होने पर बेहद खुशी हुई.
"तो आपको कोई अंदाज़ा नही के आपसे अलग होने और यहाँ आने के बीच आपके पति कहाँ थे" मिश्रा भूमिका से पूछ रहा था. जवाब में भूमिका और उसके बाप दोनो ने इनकार में सर हिलाया
मेरे आने पर थोड़ी देर के लिए बात रुक गयी. मैं उन दोनो से मिला और एक चेर लेकर वहीं पर बैठ गया. हैरत थी के मेरे वहाँ होने पर ना तो भूमिका ने कोई ऐतराज़ जताया और ना ही उसके बाप ने.
"मेरी और मिस्टर सोनी की कभी बनी नही" भूमिका ने अपनी बात जारी की "काफ़ी झगड़े होते थे हम दोनो के बीच और ऐसे ही एक झगड़े के बाद वो घर छ्चोड़कर चले गये थे. उसके बाद मुझे उनके बारे में कुच्छ पता नही चला तब तक जब तक की मुझे आपकी अड्वर्टाइज़्मेंट के बारे में पता नही चला"
"आपने ढूँढने की कोशिश की?" मिश्रा ने पुचछा
"हाँ पोलीस में रिपोर्ट भी लिखवाई थी. न्यूसपेपर में आड़ भी दिया था" इस बार भूमिका का बाप बोला
"झगड़े किसी ख़ास बात पर" मिश्रा ने सवाल किया
"ऐसे ही मियाँ बीवी के झगड़े पर बहुत ज़्यादा होते थे. छ्होटी छ्होटी बात पर. मैने जितना उनके करीब जाने की कोशिश करती वो उतना ही दूर चले जाते. बात इतनी बिगड़ चुकी थी के अगर वो घर से ना जाते तो शायद मैं चली जाती " भूमिका ने जवाब दिया
"ह्म्म्म्म " मिश्रा सोचते हुए बोला "तो वो कोई 8 महीने पहले आपको छ्चोड़के चले गये थे और अपना कोई अड्रेस नही दिया था"
भूमिका ने फिर इनकार में सर हिलाया
"बॉडी हमें कब तक मिल सकती है?" भूमिका के बाप ने पुचछा
"शायद आज ही. पोस्ट मॉर्टेम हो चुका है. मौत उनके दिल में किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमले की वजह से हुई थी. हमारी तलाश अब भी जारी है और शायद इस वजह से कुच्छ दिन आपको और यहीं रुकना पड़े." मिश्रा ने पेन नीचे रखता हुए कहा
"पर मुझे प्रॉपर्टी के सिलसिले में वापिस मुंबई जाना पड़ सकता है" भूमिका बोली "मिस्टर सोनी की विल पढ़ी जानी है"
उसकी बात सुनकर मिश्रा ऐसे मुस्कुराया के मुझे लगा के भूमिका अभी उसको थप्पड़ मार देगी
"हाँ दौलत तो काफ़ी मिली होगी आपको. जिस तरह से आपने बताया है उससे तो लगता है के मिस्टर सोनी काफ़ी अमीर आदमी थे. अब तो आप एक अमीर औरत हो गयी" उसने कहा
मुझे यकीन नही हुआ के वो ये कह रहा है. ये उसके मतलब की बात नही थी और मुझे समझ नही आया के वो ऐसा क्यूँ कह रहा था पर उससे ज़्यादा हैरत तब हुई जब भूमिका भी जवाब में मुक्सुरा उठी.
"ये तो विल पर डिपेंड करता है" वो बोली "यहाँ से देअथ सर्टिफिकेट मिलने पर जब विल खुलेगी तब पता चलेगा के कितना मुझे मिला और कितना मिस्टर सोनी की बेटी को"
ये एक नयी बात थी. मैं और मिश्रा दोनो ही चौंक पड़े
"मिस्टर सोनी की बेटी?" मैं पूरी बात के दौरान पहली बार बोला "आपसे?"
"नही" वो मेरी तरफ देखकर बोली "मुझसे होती तो मैं हमारी बेटी कहती, सिर्फ़ मिस्टर सोनी की बेटी नही"
"तो आप उनकी दूसरी बीवी थी" मैने कहा
"जी हां" भूमिका ने एक लंबी साँस छ्चोड़ते हुए कहा "पहली बीवी से उनकी एक 24 साल की बेटी है, रश्मि"
"और उनकी वो बेटी कहाँ है?" मैने भूमिका से पुचछा
"अब ये तो भगवान ही जाने" उसने जवाब दिया "कोई साल भर पहले ऑस्ट्रेलिया गयी थी और अब वहाँ है के नही मैं नही जानती"
"क्या उसको इस बात की खबर है के उसके पिता अब नही रहे?" मिश्रा बोला
"पता नही" भूमिका ने कंधे हिलाते हुए कहा "मेरे पास ना तो उसका कोई अड्रेस है और ना ही फोन नंबर. जो पहले था अब वो फोन काम नही कर रहा और मुझसे उसने कभी बात नही की"
"और अपने पिता से?" मैने पुचछा
"पता नही" भूमिका ने जवाब दिया "शायद फोन करती हो"
कमरे में थोड़ी देर के लिए खामोशी च्छा गयी
"आपको क्या लगता है किसने मारा होगा आपके पति को?" मैने थोड़ी देर बाद सवाल किया
"नही जानती" भूमिका ने छ्होटा सा जवाब दिया
"उनके कोई दुश्मन?"
"नही जानती" फिर वही छ्होटा सा सवाल
"मुझे तो उन्होने कहा था के उनके दुश्मन थे जो उन्हें नुकसान पहुँचाना चाहते थे" मैने कहा
"मुझसे इस बारे में कभी कोई बात नही की उन्होने" भूमिका ने जवाब दिया
"देखा जाए तो पैसे के मामले में बड़ा टेढ़ा था वो" इस बार भूमिका के बाप ने जवाब दिया "इसके चक्कर में कई लोग उसको पसंद नही करते थे, जिनके साथ बिज़्नेस था वो. पर ऐसी कोई बात नही थी के कोई उसका खून ही कर दे. उसने तो कभी किसी को कोई नुकसान नही पहुँचाया"
"फिर भी उनका खून तो हुआ ही ना" मैने कहा तो कमरे में फिर पल के लिए सन्नाटा फेल गया
"सही कह रहे हैं आप" इस बार सनना भूमिका के बाप ने ही तोड़ा "और ये किसने किया ये सबसे ज़्यादा अगर कोई जानना चाहता है तो वो मैं और मेरी बेटी ही हैं"
"किसने किया ये तो फिलहाल कोई नही जानता पर कैसे किया ये मैं आपको ज़रूर बता सकता हूँ. उनपर किसी तेज़ धार वाली चीज़ से हमला किया गया था जो सीधा उनके दिल में उतर गयी. उनकी मौत भी फ़ौरन ही हो गयी." मैने कहा
"अगर बिल्कुल सही बात कहूँ तो हमला एक खंजर से किया गया था. पोस्ट मॉर्टेम की रिपोर्ट के हिसाब से वो ऐसा खंजर था जो पुराने ज़माने में राजा महाराजा रखा करते थे. वो तलवार जैसे होता है ना, आगे से मुड़ा हुआ" इस बार मिश्रा ने बात की
"खंजर?" भूमिका ने कहा और वो बेहोश होकर कुर्सी से गिर पड़ी.
क्रमशः..........................................
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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