अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी compleet

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rajsharma
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

श्रुति के कोई प्रतिक्रिया ना देने पर उसने बोलना जारी किया..," दर असल कयि महिने से उसको अजीब से सपने आ रहे हैं... उसके सपनो में तुम आती हो और अपने पास बुलाती हो.. पूर्व जनम का वास्ता देकर.. ये सब अजीब है और मेरी समझ से बाहर भी.. पर कुच्छ घटनाओ ने मुझे भी सोचने पर मजबूर कर दिया है.. रात को तुम्हारा जो कमीज़ फटा.. वो तुमने खुद उसके सपने में फाडा था.. कितना अजीब है ना.. खैर हमें उस'से क्या लेना देना.. सिर्फ़ काम की बात सुनो.. तुम्हे देखकर वो तुम्हे ही अपने सपनो की रानी मान'ने लगा था.. पर फिर सपने में तुमने ही उसको ये बोला कि वो लड़की मैं नही हूँ.. कोई और है.. नीरू नाम की.. समझी कुच्छ?"

"नही..!" सच में श्रुति के मॅन में कुच्छ भी पल्ले नही पड़ा...

"चलो एक मिनिट.. तुम्हे सारी बात विस्तार से बताता हूँ.." कहकर नितिन उसको पूरी कहानी बताने लगा जो उनके टीले पर जाने से शुरू हुई और आज दोपहर रोहन द्वारा सारी सपना-कहानी का पटाक्षेप करने पर ख़तम....

"अगर उसकी सारी कहानी उसके दिमाग़ का वेहम है तो फिर तुम्हे वो पीपल के पास दौरा क्यूँ पड़ा..?" श्रुति ने कहानी में पूरी दिलचस्पी ली.. हालाँकि वह उसको उसके दिमाग़ का वेहम नही बुल्की पूर्वजनम की कोई सच्ची अनकही कहानी मान रही थी...

"वो मैने नाटक किया था.. एक तरफ मैं उसको ये कह रहा था की ये सब कुच्छ नही है.. दूसरी तरफ उसके दिमाग़ में थूस थूस कर नीरू का भूत भर देना चाहता हूँ.. ताकि उसको मुझ पर रत्ती भर भी शक ना हो..." नितिन ने जैसे अपने मन की पूरी गंदगी निकाल कर उसके सामने रख दी...

श्रुति ने उसकी आँखों में देखा.. नितिन को अपने लिए श्रुति की आँखों में घृणा का संचार होते देखा," ऐसे क्या देख रही हो?"

"कुच्छ नही.. अब.. मुझसे क्या चाहते हो...?" श्रुति ने नज़रें झुकते हुए कहा...

"यही कि तुम इस प्लान में मेरा साथ दो... तुम रोहन को विस्वास दिलाओ की तुम्हे सब कुच्छ याद आ गया है.. और तुम्ही उसके पूर्वज़नम की प्रिया हो.. यानी इस जनम में रोहन की नीरू...!"

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"समय की पाबंदी तो कोई तुमसे सीखे.. कितने बजे का टाइम दिया था तुझे?" रोहन रविंदर के आते ही उस पर गुर्राया...

"ओये होये.. क्या बात हो गयी यारा...? टेन्षन ना ले.. आ तो गया ना मैं.. देख तेरी खातिर बिना नहाए ही भाग आया हूँ उठते ही... खाली ड्राइक्लेन की और पर्फ्यूम लगा लिया..," रविंदर ने अगली बात धीरे से उसके कान में कही," मैइले कपड़ों में ही.. धुले हुए मिले ही नही यार.. तूने कल रात को ही बताया..."

"तू नही सुधरेगा...! ट्रेन निकाल दी ना.. ट्रेन से चलने का प्रोग्राम था.. अब बस से जाना पड़ेगा.." रोहन ने मुँह बनाया...

" ऐसी भी क्या जल्दी है? आने वाली अपने आप सुधार देगी.. कोई इस जैसी सोहनी.." पास से गुजर रही सुंदर सी मस्त फिगर वाली लड़की को देखकर रविंदर ने जुमला फैंका... लड़की ने शायद बात सुन ली.. अपनी चाल को धीमी करके लड़की ने रविंदर को घूरा और आगे निकल गयी..

"देख कैसे देख रही थी.. मुझे ऐसी ही किसी की ज़रूरत है.. लाल मिर्ची जैसी.. जो मुझे सुधार सके.. है ना!.. हे हे हे" रविंदर ने थोड़ी और तेज आवाज़ में बात कहकर लड़की तक अपनी फरियाद पहुँचा ही दी....

"अपनी ज़ुबान को फेविकोल से चिपका कर रखा कर.. नही तो किसी दिन ऐसी धुलाई होगी कि.." रोहन ने वापस मुड़कर देख रही लड़की की तरफ देख कर आँखों ही आँखों में खेद प्रकट किया..

"ओये धुलाई उलाई छ्चोड़.. चल बस स्टॅंड ढूँढते हैं.. नही तो बस निकलने का ठीकरा भी मेरे ही सिर फोड़ेगा तू... बाकी लड़की पटाखा थी यार... नही?" रविंदर अब भी बाज नही आया...

"अबे ये क्या है चाचा... बस स्टॅंड ही तो है ये!" रोहन चिल्ला उठा...

"ओह माइ गॉड.. आइ'एम सो सॉरी.. मैं तो भूल ही गया था कि तूने मुझे दोबारा फोन करके बस-स्टॅंड पर आने को बोला था.. पर हम जा कहाँ रहे हैं.. ये तो बता दे..." रविंदर का बोलना बदस्तूर जारी था...

"जहन्नुम में.. अब तू चुप चाप खड़ा रह.. थोड़ी देर.. बस आने वाली है..."

"देख भाई.. जन्नत में चल या जहन्नुम में.. पर ख़टरा बस में में नही जाउन्गा.. नयी सी बस होनी चाहिए कोई... एक्सप्रेस!" रविंदर ने कहा...

"हुम्म.. तेरे बाप दादा ने एरपोर्ट बनवा रखा है यहाँ... खैर.. उसकी चिंता मत कर.. ए.सी. कोच है.."

"फिर ठीक है.. देख भाई.. जहाँ भी चलना है.. मुझसे बात मत करना.. रास्ते भर सोता जाउन्गा.. आज 5 घंटे पहले उतना पड़ गया.. तेरी वजह से... वैसे चलना कहाँ है यार.. बता ना..."

"तू चुप होगा तभी तो मैं बात करूँगा....यहाँ से अमृतसर चल रहे हैं.. आगे की आगे बताउन्गा.. अब और कुच्छ मत पूच्छना...!" रोहन ने उसको कहा...

"अमृतसर? अमृतसर में तो एक बार मेरी दादी खो गयी थी यार... स्वरण मंदिर के आगे कुलच्चे खाने के लिए गाड़ी से उतर गयी.. और मेरे दादा जी को याद ही नही रहा की उनके साथ दादी जी भी हैं.. बस.. फिर क्या था.. गाड़ी स्टार्ट करके चलते बने... बाद में ध्यान आया तो बड़े परेशान हुए.. पता है ढूँढते हुए वापस आए तो दादी क्या करती मिली...?" रविंदर तूफान मैल की तरह था....

"क्या यार?" रोहन ने खीजकर कहा...

"कुल्छे खाते मिली.. और क्या? कुल्छे खाने ही तो उतरी थी.. हे हे हे"

"बस अब चुप हो जा... बस आ गयी.. चल बॅग उठा...." रोहन ने उसका भोँपू बंद करवाया और बॅग उठाकर वो बस की तरफ चल पड़े....

"आहा.. अगर बस की सीट ऐसी हों तो फिर घर का पेट्रोल क्यूँ फूँकना....! सच में.. मस्त नींद आएगी यहाँ तो.." कहते हुए रविंदर ने अपने पैर उपर करके आगे वाली सीट पर रखकर सोने का प्रोग्राम सेट करना शुरू कर दिया..

आगे वाली सीट से एक सरदार जी ने पिछे मुँह निकल कर रविंदर को घूरा," ओये! पूरी बस को खरीद लिया है क्या तूने... पैर तो नीचे कर ले...!"

"अभी कहाँ सरदार जी.. अभी तो टेस्ट ड्राइव पर जा रहे हैं... हा हा हा.." कहते हुए रविंदर ने पैर नीचे रखे और अपनी बेल्ट ढीली करने लगा....

"क्या हुआ जी? क्यूँ सारा दिन सींग पीनाए घूमते रहते हो?.. सीधे नही बैठा जाता क्या?" सरदार्णि अपने सरदार पर ही सवार हो गयी...

"मैने क्या कहा है लाडो.. मेरे कंधे पर पैर रखेगा तो क्या मैं बोलूं भी नही..... देख.. तेरी गिफ्टेड शर्ट पर मिट्टी लगा दी... बस.. इसीलिए गुस्सा आ गया था..." सरदार जी ने खीँसे निपोर्ते हुए सरदारनी के आगे घुटने टेक दिए..

अचानक बस में चढ़ि एक लड़की को देख रोहन की साँसे वहीं की वहीं थम गयी.. खुले बालों को सुलझती हुई सी वो लड़की नज़रें नीची किए हुए अपनी सीट का नंबर. ढूँढती हुई आ रही थी... गोरे रंग और सम्मोहित कर देने वाले नयन नख्स ने रोहन को कुच्छ पलों के लिए बाँध सा दिया.. ग्रे कलर की धरीदार जीन और राउंड नेक की वाइट टी-शर्ट के उपर कॉलर वाली लाइट वाय्लेट कलर की बिना बटन की जॅकेट पहने उस लड़की की आँखों में ऐसा जादू था कि बस में बैठा हर सख्स उसको निहारने लगा...रोहन का क्षणिक सम्मोहन तभी टूटा जब वो उनके पास आकर खड़ी हुई..,"एक्सक्यूस मे! ये हमारी सीट है...!"

रविंदर रोहन को कहाँ बोलने देता," अच्च्छा.. सीट साथ लानी पड़ती हैं क्या घर से? मैने सोचा बस में ही मिल जाती होंगी.... कोई ना जी.. आप भी आ जाओ.. काफ़ी चौड़ी सीट है.. वो क्या है कि हम सीट लाना भूल गये.. क्यूँ रोहन?" कहकर रविंदर एक तरफ को खिसक लिया....

लड़की को उसकी बात पर हँसी भी आई और गुस्सा भी.. उसकी बेढंगी बात से सहम सी गयी लड़की को अचानक समझ नही आया की क्या बोले.. वो कुच्छ बोलती, इस'से पहले ही रोहन बोल पड़ा...," सॉरी मिस! ये कभी बस में बैठा नही है.. इसीलिए.. पर मेरे ख़याल से ये हमारी ही सीट है....!"

"अच्च्छा.. मेरे मज़ाक को मेरी नासमझी बता कर तू मेरा ही मज़ाक उड़ा रहा है साअ.." फिर लड़की की और देखकर मुँह से निकल गयी ग़ाली को वापस खींचते हुए बोला," वो क्या है की.. जैसे मर्द कभी अपनी ज़ुबान नही बदलते.. वैसे ही सीट भी नही बदलते.. पर जाओ.. हमारी सीट ढूँढ कर उस पर बैठ जाओ.. हम बड़े ही नरम दिल वाले हैं.. कुच्छ नही कहेंगे.. क्यूँ रोहन?" कहकर रविंदर लड़की की और आँखें फाड़ कर देखने लगा...

लड़की को अचानक जाने क्या सूझा.. उसने खिड़की से बाहर झाँका और आवाज़ लगाई..," रिट्युयूवूयूयुयूवयू.. जल्दी आआआआ!"

"क्या हुआ?" लड़की कुच्छ इस अंदाज में उपर चढ़ि जैसे आपात स्थिति में किसी ने उसको मदद के लिए पुकारा हो... लड़की वही थी जिस पर रवि ने बस-स्टॅंड पर खड़े होकर बातों ही बातों में जुमले कसे थे...," क्या हुआ? कोई प्राब्लम है क्या?"

ऋतु से अपने लिए इतनी हुम्दर्दि पाकर लड़की सुबकने लगी," ये हमारी सीट नही छ्चोड़ रहे..."

"तुम? " ऋतु रवि को पहचान कर गुस्से से आग बाबूला हो गयी...

"ओह्ह.. हम एक दूसरे को जानते हैं क्या? मेरी यादास्त थोड़ी कमजोर हैं.. पर देख लो.. तुम्हारा नाम अभी भी मुझे याद है.. ऋतु!.. वैसे.. कहाँ मिले हैं हम पहले..?" रवि ने सीना तानते हुए बत्तीसी निकाल दी..

"अभी बताती हूँ... चलो.. उठो यहाँ से.. नही तो अभी पोलीस अंकल को बुलाती हूँ..." ऋतु ने तैश में आकर बाँह चढ़ा कर कुल्हों पर हाथ जमा लिए...

"पोलीस मामा तुम्हारे अंकल हैं क्या? हमारी तो वैसे ही रिश्तेदारी निकल आई... हे हे हे.." रवि कहाँ काबू में आता....?

"चल उठ ना यार.. पिछे वाली सीट होगी हमारी.. सॉरी.. मिस.. डॉन'ट माइंड प्लीज़.." कहते हुए रोहन ने खड़ा होकर रवि को खींच लिया... मजबूरन रवि को उठना पड़ा... और दोनो पिछे वाली सीट पर जाकर बैठ गये...

"एय्यय.." लड़की ने पिछे देख कर रवि को अपने नाज़ुक हाथों के डोले बना कर चिड़ाया," पता है ऋतु.. मर्द कभी अपनी सीट नही बदलते... हा हा हा हा..."

रवि कुच्छ बोलता, इस'से पहले ही रोहन ने उसके मुँह को अपने हाथ से दबा दिया," कुच्छ मत बोल यार.. लड़कियाँ हैं.. खम्खा पंगा हो जाएगा..."

बेचारों को बैठे पूरा 1 मिनिट भी नही बीता होगा की एक जोड़ा आकर उनके पास खड़ा हो गया," एक्सक्यूस मे.. ये हमारी सीट है..."

रवि से रहा ना गया... अमिताभ की आवाज़ की नकल करते हुए बोला," जाओ.. पहले वो सीट देख कर आओ जिस पर हमारा नंबर. लिखा है.. ये लो हमारी टिकेट... हयें.."

मरियल से उस आधे गंजे हो चुके लड़के ने चुपचाप टिकेट्स पकड़ ली.. और नंबर. देखते ही बोला..," सर यही तो हैं आपकी सीट.. आगे वाली..."

"क्या? क्या कहा? फिर से बोलना मेरे यार.. प्लीज़..." रवि उच्छल कर सीट से खड़ा हो गया..

"हां सर.. यही तो हैं.. 13-14 नंबर.. ये लड़कियाँ ग़लती से बैठ गयी लगती हैं.." लड़के ने दोहराया..

"ओये होये.. लाले दी जान.. जी करता है तेरा सिर चूम लूँ.." रवि ने एक पल भी नही लगाया आगे वाली सीट तक पहुँचने में," आ.. उठती है या पोलीस मामा को बुलाउ? हा हा हा हा हा.. मर्द कभी अपनी सीट नही छ्चोड़ते..."

अब लड़कियों को भी थोड़ा शक हुआ.. ऋतु ने कहा," ढंग से देख एक बार.. हमारी सीट का नंबर.."

लड़की ने अपनी जेब से टिकेट्स निकाली और बोली," यही तो हैं.. 8-9 नंबर."

"चल उठ यहाँ से.. 8-9 नंबर. अगली सीट्स का है... सीट नंबर. सीट के पिछे लिखा होता है पागल..." और दोनो लड़कियाँ झेन्प्ते हुए सीट छ्चोड़ने लगी...

"वा वा वा वा.. आजकल लड़कियाँ भी डोले शोले दिखाने लगी हैं.. क्या बात है.. वा वा!" रवि से इस मौके का फायडा उठाए बिना रहा ना गया...

"चुप कर यार.. बहुत हो गया.. ग़लती किसी से भी हो सकती है..." रोहन ने उसको शांत रहने की सलाह दी....

बेचारी दोनो लड़कियाँ सरदार जी के पास पहुँच गयी," एक्सक्यूस मे अंकल.. ये सीट हमारी है..."

"ओये कमाल कर रही हो कूडियो.. अभी इन्न बच्चों के पिछे पड़ी थी.. अब हमें परेशान करने आ गयी.. सारी सीट तुम्हारी हैं क्या? ये देखो हमारे नंबर. 8-9. सीधे भटिंडा तक की हैं..." सरदार ने सीना ठोंक कर कहा...

रवि जो उनकी बातें बड़े गौर से सुन रहा था, तपाक से बोला," पर ताउ.. बस तो अमृतसर जा रही है...."

"हैं? क्या?" सरदारजी ने चौंकते हुए पूचछा...

"और क्या? " कहकर लड़कियाँ भी हँसने लगी....

"ओह तेरी.. हमारी तो बस ही निकल गयी.. मैं भी कहूँ आज बस इतनी लेट कैसे है...?" सरदारजी सकपकाकर खड़े हुए और अपना सामान उतारने लगे....

"ले.. कब सीखेगा तू सीधे रास्ते चलना.. मेरे तो करम ही फुट गये तेरे साथ ब्याह करके.." सरदारनी सरदरजी को कोस्ती हुई उसके पिछे पिछे बस से उतर गयी...

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सारी रात श्रुति बेड के एक कोने में सिमटी लेटी रही.. नितिन उसकी बराबर में ही चैन से सोया पड़ा था... पर श्रुति ने एक बार भी झपकी नही ली.. सोने से पहले नितिन ने वादा किया था कि कल उसको वो कॉलेज छ्चोड़ देगा.. नितिन के द्वारा सुनाई गयी कहानी उसके दिमाग़ में किसी पिक्चर की तरह चल रही थी.. लेते लेते उसने कयि बार रोहन के बारे में सोचा.. शकल से एक दम शरीफ और क्यूट से दिखने वाले रोहन से उसको पूरी हुम्दर्दि थी.. अगर उस'से प्यार करने और शादी करने तक की ही बात होती तो श्रुति इसको अपना सौभाग्य ही मान'ती.. नितिन के कहे अनुसार रोहन उसका दीवाना था भी.. पर नितिन उसको जिस रास्ते पर लेकर जाना चाहता था उसके बारे में तो श्रुति को सोचना भी पाप लगता था.. धोखा देना तो उसने कभी सीखा ही नही.. या यूँ कहें कि उसके खून में ही नही था.. बचपन में ही उसकी मा के गुजर जाने के बाद उसके बापू ने दूसरी शादी तक नही की.. ये सिर्फ़ उसकी मा के प्रति उसके बापू की वफ़ा नही तो और क्या थी.. वरना वंश चलाना कौन नही चाहता.. ना.. वो ऐसा नही कर सकती.. और करेगी भी नही..

रात भर करवट बदलते बदलते श्रुति ने यही फ़ैसला लिया था, कि वो नितिन की हर हां में हां मिलाएगी.. जब तक की एक बार उसके चंगुल से आज़ाद नही हो जाती.. पर घर जाने के बाद वो सब कुच्छ अपने बापू को बता देगी.. सिर्फ़ अपना कौमार्या भंग होने की बात छ्चोड़कर.... साथ ही कोशिश करेगी कि इस कामीने आदमी की मंशा कभी पूरी ना हो.. चाहे इसके लिए उसको पोलीस में खबर करनी पड़े.. चाहे उसको कॉलेज ही क्यूँ ना छ्चोड़ना पड़े..

इन्ही विचारों की उथल पुथल में कब सवेरा हो गया, श्रुति को अहसास तक नही हुआ... अचानक नितिन के करवट बदलकर उसके सीने पर हाथ रखते ही वो उठ बैठी..

"जाग गयी तुम?" नितिन ने उठकर अंगड़ाई लेते हुए कहा...

"जी.." श्रुति ने घुटनो को मॉड्कर अपनी छाती से लगा रखा था.. वो भूल गयी थी की उसने स्कर्ट पहन रखी है और उसकी चिकनी जांघें घुटने मोड़ने की वजह से काफ़ी उपर तक नंगी हो गयी हैं... जैसे ही नज़रें उठाकर उसने नितिन की और देखा.. वह सकपका गयी.. नितिन की आँखों का निशाना उसकी जांघें ही थी..

श्रुति ने तुरंत अपने पैर सीधे करके स्कर्ट नीचे खींच ली...

"तुम्हारी इसी अदा का दीवाना हूँ मैं", नितिन वापस बेड पर लटेकर स्कर्ट के उपर से उसकी चिकनी जांघों पर हाथ फेरने लगा," क्या चीज़ हो यार तुम.. तुमसे कभी दिल नही भरेगा..."

श्रुति को हद से ज़्यादा अजीब लग रहा था.. पर मजबूरी थी की सीधे तौर पर मना नही कर सकती थी," प्लीज़.. मुझे देर हो रही है.. कॉलेज भी जाना है.."

"हाँ हाँ.. छ्चोड़ दूँगा.. चिंता क्यूँ करती हो मेरी जान.. पर तुमने ये तो बताया नही कि तुमने क्या फ़ैसला किया" नितिन ने उसको बेचैन होते देख अपना हाथ हटा लिया...

"ठीक है!" श्रुति ने इतना सा जवाब दिया...

"क्या ठीक है? उसके बारे में बताओ ना.. 10 करोड़ के बारे में क्या सोचा..?" नितिन की घाघ आँखों में उसका आनमना सा जवाब चुभ गया...

"हां.. कह तो रही हूँ कि जैसा तुम कहोगे.. मैं वैसा ही करूँगी.." श्रुति ने इस बार शब्दों में कुच्छ इज़ाफा करके बोला...

"कहीं ऐसा तो नही की तुम सिर्फ़ यहाँ से वापस जाने के लिए ही ऐसा बोल रही हो.. ये भी तो हो सकता है ना.." नितिन ने पैनी निगाहों से उसके मॅन को टटोलने की कोशिश की..

श्रुति को उसकी बात में छिपि दृढ़ता को भाँप कर महसूस हुआ कि जैसे उसका झूठ पकड़ा गया हो.. पर वह संभालते हुए बोली.. ," 10 करोड़ के लिए तो मैं 10 लोगों का उल्लू बनाने को भी तैयार हूँ.. और फिर ये तो कोई काम भी नही है.. मुझे उस'से प्यार का नाटक ही तो करना है.. या फिर वही करना है जो जो तुम कहोगे.."

"गुड.. दट'स लाइक अन इंटेलिजेंट गर्ल.. अक्सर खूबसूरत लड़कियों में दिमाग़ की कमी होती है.. मुझे खुशी है कि तुम्हारे अंदर बेपनाह हुष्ण के साथ साथ दिमाग़ भी है.. देखना हम दोनो मिलकर कैसे रोहन को जाल में फाँसते है..." फिर कुच्छ रुकते हुए बोला," फिर भी.. हो सकता है की कल को तुम्हारा दिल उसकी नादानी और शराफ़त देखकर पिघल जाए.. इसीलिए मैं ये पक्का कर देना चाहता हूँ कि अब तुम्हारा अपने बीच हुए इस करार से मुकरना तुम्हारी पूरी जिंदगी को मौत से भी बदतर बना सकता है... एक मिनिट"

नितिन उठकर कोने में रखे ल सी डी टीवी के पास गया और साथ रखे डी वी डी में सीडी डाल दी.. और वापस आकर बिस्तेर पर बैठ गया...," ये कुच्छ हसीन पल हैं जो तुमने मेरे साथ गुज़ारे हैं..."

टी.वी. पर तस्वीर उभरते ही श्रुति का कलेजा मुँह को आ गया.. शुरुआत वहाँ से हुई थी जहाँ श्रुति अपना स्कर्ट उठा, कमर तक खुद को नगा करके.. सिसकियाँ लेती हुई नितिन की जांघों के बीच बैठ गयी थी.. यहाँ से तो श्रुति की मर्ज़ी भी वासना के उस गंदे खेल में शामिल हो गयी थी जिसमें वो अन्यथा अपनी जान गँवाने के डर से शामिल हुई थी.. शुरुआती सहमति उसकी मजबूरी थी पर बाद में आनच्छुए यौवन पर वासना हावी हो जाने की वजह से वो भी पागल सी होकर उसका साथ देने लगी थी.. उस'से लिपटने लगी थी... वीडियो में कहीं भी ऐसा नही लग रहा था कि उसमें श्रुति को डराया गया है या ज़बरदस्ती की गयी है..

कुच्छ देर बाद ही श्रुति टी.वी. से नज़रें हटाकर नितिन की और निरीह आँखों से देखने लगी.. उसकी आँखों से आँसू लुढ़कने लगे," ययए.. मुझे दे दो ...प्लीज़..!"

"हा हा हा हा!" नितिन ठहाका लगाकर हँसने लगा... फिर रुक कर बोला," क्या इतना प्यार है मुझसे.. या फिर अपने पहली रात को सहेज कर रखना चाहती हो.. डोंट वरी डार्लिंग.. अब तो हमारा मिलना लगा ही रहेगा.. इसकी एक कॉपी तुम्हे दे दूँगा.. ये भी वादा रहा.. एक मिनिट.. रोहन आज ही बतला जाने की बात कर रहा था.. मैं उसको फोन मिलाता हूँ.. उसको बोलो कि तुम्हारा आज ही उस'से मिलना बहुत ज़रूरी है.. सपने के बारे में..." कहकर नितिन ने रोहन का नंबर. डाइयल किया...

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सरदरजी वाली सीट, जहाँ अब वो दोनो लड़कियाँ बैठी थी, के नीचे पड़ा मोबाइल हिलने लगा... फोने 'वाइब्रेशन्स' पर सेट किया हुआ था.. नितिन ने कयि बार नंबर. ट्राइ किया और अंत में गुस्से से अपने सेल को बेड पर पटक दिया..," लगता है अभी तक सो रहा है साला.. चलो.. बाद में ट्राइ करते हैं.. तुम जल्दी नहा लो.. नही तो कॉलेज में लेट हो जाने पर मुझसे नाराज़ हो जाओगी.. हे हे हे!"

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

अधूरा प्यार--6 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...

इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

'' मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "

दोस्तों कहानी का ये पार्ट पढ़ने के बाद कमेन्ट जरूर देना इस कहानी को आगे भी पोस्ट करू या नही

गतांक से आगे ............................

"एक मिनिट रुक जा ना यार.. उनको उतरने दे" अमृतसर बस स्टॅंड पर उतरते ही रवि ने रोहन के कंधे पर टंगा बॅग पकड़ कर खींच लिया...

"क्यूँ? अब क्या कसर रह गयी है? जल्दी चल और पता करके आ बतला के लिए बस कहाँ से मिलेगी.." रोहन ने उसको लगभग घसीट'ते हुए कहा," सारे रास्ते तूने उनकी नाक में दम रखा.. अब उनका इलाक़ा आ गया है.. यहाँ तुझे छ्चोड़ेंगी नही..देख ले!"

"आए हाए.. क्या बात कही है मेरे यार.. इलाक़ा ही नही, सच पूच्छो तो मैं भी अब उनका ही हो गया हूँ.. खास तौर पर उस लाल मिर्ची का.. देखा नही तूने.. पिछे मड्मड कर ऐसे देख रही थी जैसे खा जाएगी वहीं.. अफ ये पंजाब की लड़कियाँ..." रवि ने पिछे मुड़कर बस की और देखते हुए कहा...

लड़कियाँ अभी बस से उतरी नही थी.. जैसे ही ऋतु उठने लगी.. उसको पैर के नीचे कुच्छ महसूस हुआ.. ये मोबाइल था," ओह.. ये किसका रह गया..?"

"ड्राइवर को दे दो ऋतु.. शायद बिचारे सरदार जी का होगा.. वापस आएगा तो ड्राइवर से ही पूछेगा..." दूसरी लड़की ने ऋतु से कहा...

"तू पागल है क्या? इतना महँगा फोन.. कोई वापस नही करेगा इसको.. जिसका भी होगा वो इस नंबर. पर फोन तो करेगा ही... तभी हम बता देंगे की फोन हमारे पास है.. आकर ले लो..." ऋतु ने समझदारी की बात कही...

"हाँ.. ये बात भी ठीक है.. आ? उस लड़के का तो नही है ये फोन..? देख.. हमारी और ही आ रहा है.." लड़की बस से उतरते ही रवि की और इशारा करते हुए बोली...

ऋतु रवि को देख आग बाबूला हो गयी...," आने दे उसको.. उसको तो मैं ऐसा फोन दूँगी की सपने में भी याद करेगा मुझको.. तू चुप रहना बस.." ऋतु ने फोन अपनी बॅक पॉकेट में डाल लिया...

ऋतु के पास आते ही रवि उसके तेवर देखकर सकपका सा गया.. वह लगातार उसको घूरे जा रही थी.. रवि की टोन अचानक बदल गयी," आप तो बुरा मान गयी.. मैने तो यूँही अपना सा मानकर कह दिया था.."

पहली बार रवि के मुँह से ऐसी बात सुनकर ऋतु के स्वर में भी नर्मी आई," अच्च्छा.. एक हम ही अपने से लगे आपको पूरी बस में?"

"अजी मेरा क्या है.. मैं तो अभी बिल्कुल कुँवारा हूँ..," रवि ने 'बिल्कुल' पर कुच्छ खास ज़ोर दिया," अभी तो सभी 'अपनी' हैं.. जब तक कोई लपेट'त्ति नही... वैसे ये बतला के लिए बस कहाँ से मिलेंगी..?"

"बतला? तुम.." दूसरी लड़की बोलने लगी थी कि ऋतु ने उसका हाथ पकड़ कर दोबोच दिया," पहली बार आए हो क्या यहाँ..?" ऋतु ने रहस्यमयी ढंग से मुस्कुराते हुए पूचछा...

" और नही तो क्या? बस यूँ समझ लो कि भगवान ने तुमसे मिलाने के लिए ही यहाँ खींच लिया.. उस रोहन की वजह से... मेरा नाम रवि है.. आपका?" ऋतु के मीठा बोलते ही रवि सीधा लिनेबाज़ी पर उतर आया...

"अनारकली.. अच्च्छा है ना.." ऋतु कहकर हँसने लगी..

"जी बहुत प्यारा है.. काश मेरा नाम सलीम होता.. और इनका.." रवि दूसरी लड़की को निहारते हुए पूचछा..

"गुलबो! तुम रास्ता पूच्छने आए थे या..?" ऋतु अब पक गयी थी...

"जी प्लीज़.. आइ'ल्ल बी ओब्लाइज्ड!" रवि ने अदब से झुकते हुए कहा..

"तुम्हे इंतजार करना पड़ेगा.. घंटे भर का.. उसके बाद वो सामने मिलेगी.. हो गया..?" ऋतु ने मुँह बनाकर कहा..

"अजी हमें तो पहली नज़र में ही हो गया था.. बस आपकी इनायत की ज़रूरत है.." रवि जाते जाते भी मसखरी करने से बाज़ नही आया..

गुलबो ने जाते ही ऋतु को घूरा..,"तूने उनको झूठ क्यूँ बोला.. बस तो चलने ही वाली होगी.. उसके बाद जाने कब आए..?"

"क्या बात है.. क्या बात है.. बड़ी चिंता हो रही है.. कौनसा पसंद आ गया?" ऋतु ने मज़ाक किया..

"तुझे पता है ऋतु.. मुझे ऐसी बातें बिल्कुल पसंद नही.. फिर क्यूँ?" गुलबो नाराज़ सी होते हुए बोली...

"अरे यार.. मज़ाक भी नही कर सकती क्या? खैर मैं अगर उसका उल्लू नही बनाती तो फिर से वो हमें पकाते हुए चलते.. साथ साथ.. चल अब जल्दी चल.. बस निकल गयी तो..." और दोनो जाकर चलने को तैयार खड़ी बस में जाकर बैठ गये... और बस चल पड़ी... ऋतु ने बस में बैठे हुए ही रवि को थैन्गा दिखाकर चिड़ाया और खिलखिलाकर हँसने लगी...

"यार.. अगर इनकी बस नही चलती तो ये अनारकली तो पाटी पटाई थी..." रवि ने अपने हाथ मसल्ते हुए कहा...

"हुन्ह.. तुझे लगता है कि तू इस जनम में कोई लड़की पटा पाएगा..?" रोहन ने मुस्कुराते हुए व्यंग्य किया...

"अर्रे.. क्या बात कर रहा है यार..? तूने वो.. क्या कहते हैं.. वो श्लोक नही सुना क्या 'लड़की हँसी तो फँसी.. देखा नही क्या तूने.. मेरी तरफ उसको हंसते हुए..' रवि ने ताल ठोनकी...

"हुम्म हंस रही थी?.. चल छ्चोड़.. यार अब घंटा भर इंतजार कैसे होगा.. और कोई वेहिकल नही जाता क्या बतला?" रोहन को बतला पहुँचने की जल्दी थी...

"यार ये अमृतसर तक की बात तो समझ में आती है.. पर ये बतला पतला में तेरी कौनसी अपायंटमेंट है..? जहाँ बसें भी नही जाती..." रवि ने कहा और दूर न्यूपेपर वाले को आवाज़ दी... पेपर वाला भागा भागा आया," जी साहब.. कौनसा दूं?"

"ये बतला के लिए बस कब आएगी.. और कुच्छ नही जाता क्या वहाँ..?" रवि ने पूचछा...

"अभी आपके सामने ही तो गयी है साहब यहीं से.. पठानकोट वाली.. उधर से ही जाती है.. वैसे बाहर जाकर किसी को भी लिफ्ट के लिए टोक लो.. हम पंजाब वाले बड़े दिल के होते हैं साहब.. हे हे हे.. अख़बार कौनसा दूं..?"

"हुम्म.. बहुत बड़े दिल के होते हैं पंजाब वाले.. अगर तेरी किसी न्यूसपेपर से सेट्टिंग हो तो एक खबर छप्वा देना.. एक सूकड़ी सी पुंजाबन हमारा उल्लू बना गयी... चल ला.. कोई भी दे दे एक.." रवि ने कहते हुए रोहन की और मायूसी से देखा...

"समझ गया?.. क्यूँ हंस रही थी वो..?.. बोलता है.. 'हँसी तो फँसी..' चल आजा बाहर.. अब लटक कर चलते हैं.. लिफ्ट लेकर.." रोहन खड़ा हो गया...

"मेरी क्या ग़लती है यार...?" रवि संजीदा होते हुए उसके साथ चलने लगा..

"नही नही.. ग़लती तो मेरी है.. जो तुझे साथ ले आया.. अबे उनसे ही रास्ता पूच्छना था तुझे?" रोहन और रवि बाहर आकर खड़े ही हुए थे की एक लंबी सी गाड़ी आकर उनके पास रुकी.. गाड़ी का शीशा नीचे हुआ और अंदर बैठे एक बहुत ही स्मार्ट युवक ने उनसे पूचछा..," भाई साहब.. ये बतला और कितनी दूर है?"

रोहन बोलने ही वाला था कि रवि ने झट से अंदर हाथ देकर खिड़की को अनलॉक किया और तपाक से अंदर बैठ गया...

"क्या है भाई साहब?" युवक ने अपने गॉगल्स आँखों से हटाते हुए पूचछा...

रवि ने उसकी बात पर कोई ध्यान नही दिया और पिच्छली खिड़की भी खोल दी," बैठ ना रोहन.. भाई साहब भी बतला जा रहे हैं.."

रोहन ने उस युवक से नज़रें मिलाई तो उसने अपने कंधे उचका दिए... रोहन पिछे जा बैठा... युवक ने गाड़ी दौड़ा दी...

"कितनी दूर होगा बतला यहाँ से...?" युवक ने फिर पूचछा..

"आगे चलकर पूच्छ लेते हैं ना.. टेन्षन ना ले भाई.. अब मैं साथ हूँ.." रवि ने मुस्कुरकर उसकी और देखा...

"मतलब तुम्हे भी नही पता..?" युवक ने चेहरा घूमकर रवि की और गौर से देखा...

"उम्म्म.. ऐसा है भाई साहब.. आक्च्युयली हम भी पहली बार ही आए हैं... मैने सोचा.. एक से भले तीन.. आपकी भी मदद हो जाएगी.. और हम भी पहुँच जाएँगे..." रवि ने जवाब दिया...

"हा हा हा.. कमाल के आदमी हो यार... लो.. सिगरेट पीते हो?" युवक ने सिगरेट निकालते हुए पूचछा...

"ना भाई ना.. और जब तक हम गाड़ी में हैं.. इसको सुलगाना भी मत.." रवि ने गाड़ी पर ही कब्जा सा कर लिया...

युवक ने अचानक ब्रेक लगा दिए.. और रवि को घूर कर देखने लगा..

"क्या हुआ भाई..? आगे चलकर पूछ्ते हैं ना..." रवि ने उसके हाथ से सिगरेट लेकर वापस पॅकेट में डाल दी...

गाड़ी में बैठा वो युवक अचंभित सा था.. अचानक ठहाका लगाकर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा और गाड़ी चला दी...

"नाम क्या है आपका?" रवि से ज़्यादा देर चुप बैठा नही गया..

"शेखर!" यौवक ने हल्का सा मुस्कुराते हुए कहा और फिर पूचछा," अपना भी बता दो यार.. तुम वैसे भी मनोगे नही.. बिना बताए...!"

"रवि.. और ये जो पिछे बैठा मुझे घूर रहा है.. ये रोहन है.. मेरा सबसे प्यारा दोस्त.. ये मत समझना कि ये गुस्से में है.. दरअसल करीब 2 महीने से इसकी शकल ही ऐसी रहती है...

"ऐसा क्या हो गया भाई.. ग/फ रूठ गयी क्या?" शेखर ने पिछे देखते हुए कहा..

"नही भाई.. आप अभी तक भी नही समझे क्या इसको! ये ऐसा ही है.. इसकी किसी बात का बुरा मत मान'ना.." रोहन गाड़ी में बैठने के बाद पहली बार बोला..

"हा हा हा.. वो तो मैं देख ही रहा हूँ.. वैसे बतला कोई रिश्तेदारी है क्या?" शेखर ने पूचछा...

रोहन के बोलने से पहले ही रवि बोल पड़ा," रिश्तेदारी? अजी मुझे तो अभी ये भी नही पता की फूटपाथ पर सुलाएगा या कोई होटेल भी नसीब होगा कि नही..जाने क्या रखकर भूल गया है बतला.." रवि ने मुँह बनाया..

"जहाँ मैं सो-उँगा वहाँ तो सुला ही लूँगा.. अब तेरे लिए वहाँ होटेल तो खोलने से रहा मैं.." रोहन ने कहा...

"वैसे बताओ तो यार.. जा किस काम से रहे हो.." शेखर को जान'ने की उत्सुकता हुई...

"अभी मुझे ही नही बताया तो तुम्हे क्या बताएगा..? वैसे 5-7 दिन का काम बोल रहा है... अब बता भी दे यार.. क्यूँ दिमाग़ की दही कर रहा है..?" रवि ने रोहन को देखते हुए कहा...

रोहन खिड़की से बाहर देखने लगा.. उसको कुच्छ ना बोलता देख शेखर ही बोल पड़ा..," वैसे अगर 5-7 दिन की बात है तो तुम मेरे साथ रह सकते हो.. वहाँ मेरे दोस्त की कोठी है.. अकेला ही रहता है.. अगर तुम्हारे सीक्रेट मिशन पर कोई आँच ना आ रही हो तो?"

"थॅंक्स यार.. तू तो मुझसे भी कमाल का है.. बिना जाने पूच्छे ही साथ रहने का ऑफर कर दिया... अपनी खूब जमेगी लगता है.. " रवि ने खुश होकर कहा...

"तुम्हे जान'ने में किसी को वक़्त ही कितना लग सकता है.." शेखर ने कहा और हँसने लगा... रोहन भी मुस्कुराए बिना ना रह सका...

अचानक गाड़ी के ब्रेक लगते ही रोहन और रवि का ध्यान आगे की और गया..

"ओह तेरी.. ये तो वही बस है.." रवि ने कहा...

बस सड़क के बींचों बीच खड़ी थी... उसके सामने ट्राक्टेर खड़ा था.. शायद बस का आक्सिडेंट हो गया था.. बस के पास ही 8-10 सवारियाँ खड़ी थी.. उनमें ही रवि की अनारकली और 'वो' गुलबो भी थी... रवि का ध्यान सीधा उन्ही पर गया..

"एक मिनिट रोकना शेखर भाई" रवि ने कहा और बाहर मुँह निकाल कर ज़ोर से आवाज़ लगाई...," आ जाओ.. आ जाओ.." जैसे उनकी पुरानी जान पहचान हो...

लेकिन शेखर को अब की बार गुस्सा नही आया.. वा बस रवि को देखकर मुस्कुराता रहा...

रवि के आवाज़ लगते ही उन्न दोनो लड़कियों को छ्चोड़कर सभी सवारियाँ भागी भागी आई...

"थॅंकआइयू भाई साहब!" उनमें से एक सवारी ने बाहर पास आते ही कहा...

"अरे भाई.. किराए की नही है.. अपनी है अपनी.." रवि ने कहा और गाड़ी से उतर कर उन्न लड़कियों की और चला गया," आ भी जाओ.. कब तक खड़ी रहोगी.. बस तो एक घंटे के बाद आएगी ना..."

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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

दोनो लड़कियों ने लज्जित होकर अपना मुँह फेर लिया.. कुच्छ देर पहले ही तो ऋतु ने उसका उल्लू बनाया था...

"सोच क्या रही हो अनारकली & पार्टी... ये सोचने का नही गाड़ी में बैठने का टाइम है.. जल्दी करो.. आ जाओ.. मैं गाड़ी को 2 मिनिट से ज़्यादा रुकवा नही पाउन्गा.." रवि ने कहा और घूम कर वापस चला गया....

"क्या करें? चलें?" ऋतु ने पूचछा...

"तू पागल है क्या? दिमाग़ तो नही सटाक गया है..? अंजान लड़कों के साथ.. हम गाड़ी में बैठेंगे.. ज़रा सोच के बोला कर यार..." दूसरी लड़की ने सॉफ मना कर दिया...

"अर्रे अंजान वंजान कुच्छ नही हैं... और फिर अब अंधेरा भी होने लगेगा.. सारी बसें भरी हुई आ रही हैं... कब तक वेट करेंगे...? जहाँ तक इस लल्लू की बात है.. इसको मैं अच्च्ची तरह समझ गयी हूँ.. इसकी बस बोलने की आदत है.. कुच्छ करने वरने का दम नही है इसमें.. और दूसरा लड़का तो एकद्ूम शरीफ है.. शोले के अमिताभ जैसा.. वो तो कुच्छ बोलता भी नही.. चल ना कुच्छ नही होता.." ऋतु ने उसका हाथ पकड़ते हुए बोला...

लड़की ने गर्दन घूमाकर गाड़ी की और देखा.. और कुच्छ देर रुक'कर साथ साथ चलने लगी.. उनके गाड़ी के पास जाते ही रोहन ने खिड़की खोल दी और एक तरफ हो गया..

"तू बैठ पहले.." लड़की ने ऋतु से कहा..

"ठीक है.." ऋतु रोहन के साथ बीच में बैठ गयी.. और उस लड़की के बैठने के साथ ही शेखर ने गाड़ी चला दी.. उसकी समझ में अब तक नही आया था कि माजरा क्या है..

पर रवि था ना.. गाड़ी के चलते ही शुरू हो गया," इनसे मिलिए भाई साहब.. एक है अनारकली और दूसरी गुलबो.. अगर आज ये ना होती तो ना तो हम और आप मिल पाते.. और ना ही हमारा बतला में रहने का इतना अच्च्छा इंतज़ाम होता..." कहकर रवि हँसने लगा...

"ऐसा क्यूँ?" शेखर ने उत्सुकतावश पूचछा...

"वो तो तुम इन्ही से पूच्छ लो.. वरना तो में बताउन्गा ही.. नमक मिर्च लगाकर.. बता दो अब.. अंजान मुसाफिरों के साथ की गयी अपनी करतूत..."

लड़कियाँ सिर झुकाए बैठी थी.. उनसे कुच्छ बोला ही नही जा रहा था... शेखर ने बात को वहीं छ्चोड़ दिया और पूच्छने लगा," वैसे जाना कहाँ तक है आपको?"

"जी बतला.." ऋतु ने सिर झुकाए हुए ही जवाब दिया...

"हूंम्म.. मतलब एक ही मंज़िल के मुसाफिर हैं.." शेखर ने कहा और गाड़ी की स्पीड बढ़ा दी....

---------------------------

"कहो तो घर छ्चोड़ आयें.." बतला पहुँचते ही लड़कियों ने गाड़ी रोकने को कहा तो रवि ने चटखारा लिया...

बिना कुच्छ बोले लड़कियाँ गाड़ी से उतर गयी.. फिर अचानक वापस मुड़ते हुए ऋतु आगे गयी और बोली," थॅंक्स..... आंड सॉरी!"

"क्या लड़कियाँ थी यार...? ये कहाँ मिल गयी तुम्हे?" शेखर ने लड़कियों के जाते ही रवि को देखते हुए सवाल किया..

"कहाँ लड़कियाँ थी यार...? अहसानमंद होना चाहिए था इनको.. मैं ले आया.. खाली थॅंक्स बोल कर चली गयी.. कम से कम अपना मोबाइल नंबर. तो देकर जाती..." रवि ने कहते हुए इस तरह मुँह बनाया मानो सच में ही उसको उनका चले जाना अच्च्छा नही लगा हो...

मोबाइल शब्द सुनकर रवि को एक फोन करने की सूझी.. और जेब को हाथ लगाते ही वह उच्छल पड़ा," ओये.. मेरा फोन?"

"क्या हुआ? शेखर और रवि एक साथ बोल पड़े...

"फोन गया.. कहीं निकल गया शायद.." अपनी शर्ट और जीन की सभी जेबों में टटोलने के बाद रवि हताशा से भर गया....

"श..!" रवि के मुँह से निकला..,"अब?"

"एक मिनिट.. नंबर. बताना.." शेखर ने अपना मोबाइल निकालते हुए कहा...

रोहन के नंबर. बताने पर शेखर ने डाइयल किया..," हुम्म.. फोन तो यार किसी ग़लत आदमी के हाथ लग गया.. स्विच्ड ऑफ आ रहा है..!" कहते हुए अचानक मोबाइल स्क्रीन पर देखते हुए शेखर लगभग उच्छल ही पड़ा," आप.. रोहन हैं?"

"और मैं रवि.. अभी बताया तो था भाई..." रोहन के बोलने से पहले ही रवि ने जवाब दे दिया...

"नही.. मतलब मेरा मतलब आप स्काइ व्यू एस्टेट के मलिक रोहन हैं?" शेखर ने चौंकते हुए गाड़ी को ब्रेक लगा दिए...

"मलिक तो मेरे पिताजी हैं.. मैं तो सिर्फ़ उनका वारिस हूँ.. अभी मैने ऑफीस देखना शुरू नही किया.. पढ़ ही रहा हूँ अभी... पर... आपको ये सब कैसे पता?" रोहन की दिलचस्पी अपने मोबाइल से हटकर शेखर पर आ गयी...

"मेरी आपसे बात हुई थी.. कुच्छ दिन पहले.. गुड़गाँवा में आपकी नयी कन्स्ट्रक्षन में हिस्सेदारी को लेकर.. याद है? आपने अपने फादर का नंबर. दिया था.. और हां.. आपने अपना नाम भी रोहन ही बताया था..." शेखर हतप्रभ सा उसको देख रहा था...

"सॉरी.. मुझे याद नही है.. आक्च्युयली पिताजी ने मेरा नंबर. भी विज़िटिंग कार्ड्स पर डाल रखा है... इसीलिए अक्सर जब उनका फोन ऑफ रहता है तो मेरे पास कॉल आ जाते हैं..."

"हुम्म.. मैने भी आपका नंबर. कार्ड्स से ही निकाला था.. और आपके नाम बताने पर मैने नंबर. को रोहन एस.वी. एस्टेट नाम से सेव कर लिया था.. कमाल हो गया यार.. मुझे अब भी विस्वास नही हो रहा की मैं इतने बड़े आदमी के साथ बैठा हूँ..." शेखर वास्तव में ही आसचर्यचकित था... उसने अपना हाथ रोहन की और बढ़ा दिया जिसे रोहन ने दोनो हाथों से पकड़ लिया...

"फिर बात बनी की नही...?" रवि ने शेखर को टोका...

"किस बारे में?" शेखर ने उसकी और देखते हुए पूचछा...

"पार्ट्नरशिप के बारे में.. और क्या?"

"हां.. वो तो पहले ही डन थी.. सिर्फ़ कुच्छ फॉरमॅलिटीस बाकी थी..." शेखर ने गाड़ी चला दी...

"फिर तो बहुत अच्च्छा हो गया यार... अब हम तीनो पार्ट्नर हैं.. अब तुम्हारे पास रहकर मुफ़्त का खाते हुए शर्म नही आएगी... हा हा हा!" रवि ने अपना हाथ बढ़ा उस'से हाथ मिलाया...

"पर एक बात समझ में नही आई यार... यहाँ बतला में? और वो भी बस से?" शेखर के दिमाग़ में अभी भी काफ़ी सवाल थे....

"सब इसकी करतूत है.. बोला ड्राइवर को लेकर नही चलना.. और इतनी दूर गाड़ी चलाने में दिक्कत होगी...!" रवि ने मुँह बनाते हुए कहा...

"पर फिर भी यार.. यहाँ इस छ्होटे से शहर में ऐसा क्या काम निकल आया..?" शेखर ने पूचछा...

रवि ने पिछे मुड़कर रोहन की और हाथ जोड़कर चेहरा झुका लिया," अब तो बता दो गुरुदेव! अब तो आपका बतला भी आ गया..."

रवि को तो बताना ही था.. अपने हम उमरा शेखर को बताने में भी रोहन को कोई नुकसान नज़र नही आया...," दरअसल मैं एक लड़की के लिए यहाँ आया हूँ...!"

"ओये.. तेरी तो.. तूने लड़की के लिए मुझे इतनी दूर घसीटा... ये दुर्गति की.. वहाँ लड़कियों की कमी है क्या... जिसकी बोलता उसकी.... और कॉलेज में तुझ पर लट्तू लड़कियों की गिनती भी याद है तुझे..? वहाँ तो बाजर्भट्टू बना बैठा रहता है.. लड़की के लिए आया है यहाँ... मुझे नही चलना तेरे साथ.. उतार नीचे अभी... गाड़ी रोक शेखर भाई.. अभी के अभी गाड़ी रोक..." रवि जाने क्या क्या बोलने लगा...

शेखर ने सच ही गाड़ी के ब्रेक लगा दिए..

"मज़ाक कर रहा हूँ यार... चल ना जल्दी.. बहुत भूख लगी है.. हे हे हे.. और प्यास भी..." रवि ने शेखर को चलने का इशारा किया और हँसने लगा....

शेखर भी मुस्कुरा दिया...," और कहाँ चलें.. आ तो गये...!"

"श.. मुझे लगा अभी तुम दोनो मुझे ज़बरदस्ती उतार दोगे.." रवि मुस्कुराया और गाड़ी से उतर गया... रोहन के बाहर निकलते ही रवि उसके कंधे पर हाथ रख कर उसको एक तरफ ले गया," ये लड़की का क्या माम'ला है वीरे..?"

"बताता हूँ यार.. सब बताता हूँ..." रोहन ने कहा और तीनो मिलकर सामने वाली तिमन्जिला सफेद कोठी में चले गये... गेट पर ही उन्हे गेट्कीपर ने रोक लिया..," किस'से मिलना है सर?"

"उसी उल्लू के पत्थे से... जो इस घर का मलिक है.. अमन से.. खोल भी दे अब यार..." शेखर ने चिदते हुए कहा.....

"पर.. पर साहब बिज़ी हैं सर.. किसी को भी नही आने देने के लिए बोला है.. एक घंटे तक और..."

"साला.. लड़की लिए पड़ा होगा.. दारू और लड़की के अलावा वो कुच्छ करता भी है.." शेखर मंन ही मंन बड़बड़ाया और फोन निकाल कर उसका नंबर डाइयल करने लगा....

"ओये यार शेखर!" अमन तेज़ी से चलता हुआ नीचे उतर कर आ ही रहा था कि शेखर उन्न दोनो को लेकर उपर ही पहुँच गया.. बरमूडे और बनियान में वह आते ही शेखर से लिपट गया...

"साले नांग्दे.. आज तो कम से कम इंतजार कर लेता.. सुबह सुबह ही चालू हो गया था क्या?" शेखर ने मज़ाक में कहा...

"हे हे हे.. नही तो!" अमन ने हंसते हुए कहा...

"नही तो मतलब? और क्या शराब की स्मेल का पर्फ्यूम लगाने लगा है क्या?" शेखर ने उसके मुँह के पास मुँह लाकर सूंघते हुए कहा...

"हां.. यार.. वो छ्होटा सा प्रोग्राम बन गया था..." अमन ने कहा और रोहन और रवि से हाथ मिलाता हुआ बोला," ये भाई?"

"भाई ही समझ ले.." शेखर कहते हुए उसके बेडरूम की और जाने लगा...

"नही यार.. यहाँ नहीं.. चल.. नीचे ही बैठते हैं.." अमन ने शेखर का हाथ पकड़ लिया...

"क्यूँ? यहाँ क्यूँ नही? देखू तो सही.. ब्रांड कौनसा ले रहा है आजकल.." शेखर ने कहा और ज़बरदस्ती बेडरूम में घुस गया.. अंदर जाते ही बाहर खड़े तीनो लोगों को उसके जोरदार ठहाके की आवाज़ सुनाई दी.. अगले ही पल वह वापस बाहर था.. उसकी हँसी थमने का नाम नही ले रही थी.. हंसते हंसते ही बोला," आबे.. 2 -2 एक साथ.." फिर पास आकर धीरे से बोला," मुझे नही पता था तू इतना कमीना हो जाएगा एक दिन.. अब रंडिया भी लानी शुरू कर दी..."

अमन रवि और रोहन के सामने कुच्छ शर्मा सा रहा था," ऐसा मत बोल यार.. तुझे रंडिया लगती हैं वो.. गर्लफ्रेंड्स हैं मेरी..."

"मैने चेहरा नही देखा...!" शेखर कहकर चुप हुआ ही था कि रवि ने बीच में टाँग घुसा दी," 2-2 गर्लफ्रेंड्स एक साथ? कैसे मॅनेज करता है भाई?"

"क्या करें यार... अपना दिल ही इतना बड़ा है! हा हा हा.. चलो नीचे चलते हैं.. इनको आराम करने दो यहीं" अमन ने कहा और उनको लेकर नीचे चला आया..."

-----------------------------------------------

नीचे जाते ही उनको ड्रॉयिंग रूम में बैठते ही अमन ने रोहन और रवि से मुखातिब होते हुए पूचछा," थोड़ी बहुत चलेगी क्या? या खाना लगाने को बोल दूँ..."

रोहन ने कोई प्रतिक्रिया नही दी पर रवि का ध्यान उपर से नीचे नही आ पा रहा था,"वो दोनो पर्सनल है या टाइम पास?"

अमन पर नशे का हूल्का हूल्का सुरूर तो था ही.. उसने किसी दार्शनिक की तरह से लंबा चौड़ा भासन देना शुरू कर दिया," मेरा तो मैं खुद ही पर्सनल नही हूँ यार.. लड़कियाँ क्या खाक पर्सनल होंगी.. बस जिंदगी जैसे चला रही है.. वैसे चल रहा हूँ.. सूरत देखकर लड़कियाँ पट जाती हैं और पैसा देखकर नंगी हो जाती हैं.. लड़कियों के मामले में सीरीयस होना तो मैं एकद्ूम पागलपन मान'ता हूँ..."

"ये हुई ना बात यार... तू एकदम सही आदमी है.. एक इसको देखो.. एक लड़की के चक्कर में धक्के ख़ाता हुआ यहाँ आ गया है..." रोहन के लाख इशारे करने पर भी रवि कहे बिना नही माना...

पर अमन समझदार लड़का था.. दो मिनिट पहले ही कही गयी अपनी बात से मुकर गया," वो तो अपनी अपनी मेनटॅलिटी होती है यार.. और हो सकता है इसको किस्मत से कोई सच्चा प्यार करने वाली मिल गयी हो.. पर ऐसी होती हज़ारों में एक आध ही है.. वरना तो.. अब बस क्या कहूँ.. इन्न उपर वाली लड़कियों को ही देख लो!"

"देख लूँ?" रवि तो जैसे इसी बात को पकड़ने के लिए मुँह खोले बैठा था.. जैसे ही अमन ने एग्ज़ॅंपल के तौर पर उन्न लड़कियों का नाम लिया.. झट से रवि ने 'देख लो' पकड़ लिया...

"क्या?" अमन ने रवि की और देखा...

"लड़कियों को.. आपने ही तो कहा है.. अपर वाली लड़कियों को देख लो..." रवि ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...

"हाहहाहा.. तू एक नंबर. का आदमी है यार.. जाओ देख लो.. पर देख भाई.. कोई ऊँच नीच होती दिखाई दे तो चुप चाप वापस आ जाना... इन्न साली लड़कियों का कोई भरोसा नही होता.. कब साली नाटक करने लग जायें.. कब पिच्छड़ी मार दें..." अमन ने हंसते हुए रवि को अंदर से ही उपर जाने का रास्ता दिखा दिया... " मैं चलूं क्या एक बार साथ..?"

"नही यार.. तुम बैठो.. तुम्हारा दोस्त आया है.. मैं अकेला ही ट्राइ करके देखता हूँ.." रवि ने कहा और मस्ती से गुनगुनाते हुए उपर चला गया...

"कमाल का आदमी है यार.. मेरी ऐसे लोगों से बहुत बनती है..." अमन ने कहा और फिर रोहन को देखते हुए बोला," तुम ऐसे गुम्सुम क्यूँ बैठ गये यार.. आज मस्ती करो.. कल लड़की से भी मिल लेना... ठीक है ना..?"

"ऐसी कोई बात नही है यार.. बस मैं ठीक हूँ.. रवि की बातों का बुरा मत मान'ना यार.. ये ज़रा मुँहफट है.. जो मन में आए बोल देता है.." रोहन ने कहा...

"ये क्या बात कह दी यार.. अगर दोबारा ऐसा बोला तो तुझसे बुरा ज़रूर मान जाउन्गा.. हम तो यारों के यार हैं यार.. और फिर शेखर के यार तो मुझे उस'से भी अज़ीज होंगे कि नही... ये.. शेखर कहाँ चला गया?" अचानक अमन का ध्यान शेखर पर गया," कहीं वो भी उपर ही तो नही पहुँच गया...?"

"यहीं हूँ बे.. फ्रेश हो रहा था.. सुबह से चला हुआ हूँ.. पेशाब तक नही किया था रास्ते भर.." शेखर बाथरूम से निकलते हुए बोला...

"साले.. मुझे पता है तू अंदर क्या कर रहा होगा... लड़कियाँ देख कर खड़ा हो गया था क्या?" और अमन कहते ही ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...

"सला.. पियाक्कड़.. हमेशा बकवास करता रहता है... वो.. रवि भाई कहाँ गया.." शेखर ने रोहन के पास बैठते हुए पूचछा....

"उपर..!" रोहन कहते हुए मुस्कुराहट को चेहरे पर आने से नही रोक पाया.....

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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

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अधूरा प्यार--7 एक होरर लव स्टोरी

दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा इस कहानी मैं रहस्य रोमांच सेक्स भय सब कुछ है मेरा दावा जब आप इस कहानी को पढ़ेंगे तो आप भी अपने आप को रोमांच से भरा हुआ महसूस करेंगे दोस्तो कल का कोई भरोसा नही.. जिंदगी कयि बार ऐसे अजीब मोड़ लेती है कि सच झूठ और झूठ सच लगने लगता है.. बड़े से बड़ा आस्तिक नास्तिक और बड़े से बड़ा नास्तिक आस्तिक होने को मजबूर हो जाता है.. सिर्फ़ यही क्यूँ, कुच्छ ऐसे हादसे भी जिंदगी में घट जाते है कि आख़िर तक हमें समझ नही आता कि वो सब कैसे हुआ, क्यूँ हुआ. सच कोई नही जान पाता.. कि आख़िर वो सब किसी प्रेतात्मा का किया धरा है, याभगवान का चमत्कार है या फिर किसी 'अपने' की साज़िश... हम सिर्फ़ कल्पना ही करते रहते हैं और आख़िर तक सोचते रहते हैं कि ऐसा हमारे साथ ही क्यूँ हुआ? किसी और के साथ क्यूँ नही.. हालात तब और बिगड़ जाते हैं जब हम वो हादसे किसी के साथ बाँट भी नही पाते.. क्यूंकी लोग विस्वास नही करेंगे.. और हमें अकेला ही निकलना पड़ता है, अपनी अंजान मंज़िल की तरफ.. मन में उठ रहे उत्सुकता के अग्यात भंवर के पटाक्षेप की खातिर....

कुच्छ ऐसा ही रोहन के साथ कहानी में हुआ.. हमेशा अपनी मस्ती में ही मस्त रहने वाला एक करोड़पति बाप का बेटा अचानक अपने आपको गहरी आसमनझास में घिरा महसूस करता है जब कोई अंजान सुंदरी उसके सपनों में आकर उसको प्यार की दुहाई देकर अपने पास बुलाती है.. और जब ये सिलसिला हर रोज़ का बन जाता है तो अपनी बिगड़ती मनोदशा की वजह से मजबूर होकर निकलना ही पड़ता है.. उसकी तलाश में.. उसके बताए आधे अधूरे रास्ते पर.. लड़की उसको आख़िरकार मिलती भी है, पर तब तक उसको अहसास हो चुका होता है कि 'वो' लड़की कोई और है.. और फिर से मजबूरन उसकी तलाश शुरू होती है, एक अनदेखी अंजानी लड़की के लिए.. जो ना जाने कैसी है...

इस अंजानी डगर पर चला रोहन जाने कितनी ही बार हताश होकर उसके सपने में आने वाली लड़की से सवाल करता है," मैं विस्वाश क्यूँ करूँ?" .. तो उसकी चाहत में तड़प रही लड़की का हमेशा एक ही जवाब होता है:

'' मुर्दे कभी झूठ नही बोलते "

दोस्तों कहानी का ये पार्ट पढ़ने के बाद कमेन्ट जरूर देना इस कहानी को आगे भी पोस्ट करू या नही

गतांक से आगे ............................

रवि दबे कदमों से चलता हुआ बेडरूम के करीब आया.. दरवाजे के सामने आते ही लड़कियों से उसकी टक्कर होते होते बची.. शायद वो निकलने की तैयारी कर ही रही थी.. अंजान लड़के को सामने पाकर वो चौंक उठी और एकदम से अपना चेहरा घुमा उसकी तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी.. उधर लड़कियों का हुष्ण और करारा बदन देखकर रवि भी हक्का बक्का रह गया.. लगभग एक ही कद काठी की वो लड़कियाँ बमुश्किल 20-21 साल की होंगी... एक दम गोरी चित्ति लंबी लड़कियों का भरा भरा बदन देख रवि के मुँह में पानी आ गया..

दोनो ने जीन पहन रखी थी.. एक लड़की ने उपर जांघों तक का कुर्ता डाल रखा था.. इसीलिए वह उसके पिच्छवाड़े का क्ष-रे नही कर पाया पर दूसरी लड़की, जिसने स्लीवलेशस टॉप डाल रखा था.. उसके नितंबों को देखते ही रवि का बॅमबू खड़खड़ा उठा.. आख़िर उम्मीद तो थी ही, कुच्छ हासिल होने की वहाँ से.... भरे भरे पिछे की और काफ़ी उभरे हुए उसके नितंब एकदम गोलाई में तराशे हुए से थे.. और जीन उनकी गोलाई और बीच की खाई से चिपकी हुई उसके जर्रे जर्रे के आकर का जयजा दे रही थी.. योनि से नीचे हुल्की सी झिर्री के बाद कुच्छ इंच तक उसकी जांघें एक दूसरी से चिपकी हुई सी थी.. हाँ.. कमर दोनो की ही कहर ढा-ने वाली थी.. बमुश्किल 27" की होगी... यूँही मस्ती करने के लिए आया रवि उनको 'उसे' करने को लालायित हो उठा...," हेलो!"

जब लड़कियों को निकलने का और कोई रास्ता नही सूझा तो मजबूरन उनको पलट'ना ही पड़ा.. जवाब में 'हाई' कहा और रवि की बराबर से निकलने की कोशिश करने लगी..

रवि ने बीचों बीच खड़े होकर दरवाजे की चौखट पर हाथ रख लिए," ऐसे कहाँ भागी जा रही हो यार.. इंट्रोडक्षन तो हो जाए एक बार..!"

कुर्ते वाली ने चेहरा नीचे किए हुए ही नज़रें उठाकर देखने की कोशिश की," हमें जाने दो.. हम लेट हो रही हैं...!" उनके चेहरे से सॉफ झलक रहा था कि वो सहमी हुई सी हैं...

"नाम क्या है तुम्हारा?" रवि ने कुर्ते वाली की ही कलाई पकड़ ली... दूसरी डर कर पिछे हट गयी.. दोनो के चेहरे का रंग उड़ा हुआ था...

" अमन!" लड़की हुल्की सी चीखी और कोई और रास्ता ना पाकर टोन बदल ली," प्लीज़.. जाने दो ना.. सच्ची में हम लेट हो रही हैं.. घर जाना है..!" कलाई मोड़ कर अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश करते हुए उसने मायूसी से रवि के चेहरे की और देखा....

"और अगर ये टूट गयी तो? इतनी नाज़ुक है.. क्यूँ परेशान हो रही हो..? 2-4 मिनिट में कुच्छ नही होता.. आओ.." रवि ने दूसरी लड़की का हाथ भी पकड़ लिया.. और ना चाहते हुए भी दोनो उसके साथ चलते हुए बिस्तेर पर जाकर बैठ गयी.. तीनो के पैर लटके हुए थे.. रवि दोनो के बीच बैठा था...

"प्लीज़.. हाथ हटाओ.. हम ऐसी लड़की नही हैं..!" टॉप वाली ने अपनी कमर को हिलाते हुए रवि से दूर होने की कोशिश की.. पर रवि ने एक ही झटके में दोनो को अपनी और खींच लिया..," आए हाए.. मैं सदके जावां.. और कैसी लड़की हो तुम?" रवि ने टॉप वाली के गाल की चुम्मि ले ली.. गुस्से और अंजाने से डर की वजह से उसके आँसू निकल आए..

"तुम होते कौन हो हमसे ऐसी बात करने वाले.. हम आपको जानती भी नही हैं... अमन किधर है? उसको बुलाओ.." कुर्ते वाली ने बंदर घुड़की दी....

"क्या? तुम सच में मुझे नही जानती.. अमन ने तुम्हे बताया नही...?" रवि ने आसचर्यचकित सा होने का नाटक किया...

दोनो लड़कियों ने चौंक कर उसको देखा.. पर उनकी समझ में बात आई नही..," क्यूँ? हमें क्यूँ बताएगा..? हमें आपसे क्या लेना देना...?" वो लगातार उसकी बाहों के घेरे से छ्छूटने की कोशिश कर रही थी..

"अरे.. तुम्हे मेरे लिए ही तो बुलाया था उसने.. और तुम्हे बताया भी नही? बताना चाहिए था यार उसको..." उनकी गरमागरम मस्त चूचियो का रह रह कर स्पर्श पाकर रवि अधीर होता जा रहा था.. पर दोनो लड़कियाँ लगातार उस'से बचे रहने की कोशिश कर रही थी... यूँ कहें की एक तरह की कसंकस सी चल रही थी... रवि और लड़कियों के बारे में...

पर अचानक रवि की ये बात सुनकर वो अजीब सी नज़रों से उसको देखते हुए विरोध करना भूल गयी..," आपके लिए? क्या बकवास कर रहे हो? वो.. वो मुझसे बहुत प्यार करता है..." कुर्ते वाली ने कहा...

"हां.. मुझे भी पता है.. और तुम भी उस'से बहुत प्यार करती हो..इसीलिए तो तुम्हे मेरे लिए बुलाया है.. तुम्हारी खातिर ही.." रवि ने बारी बारी से दोनो के चेहरों को देखा... पर बात शायद उनके सिर के उपर से निकल गयी थी....

"ये क्या बात हुई..? आप क्यूँ हमें परेशान कर रहे हैं... प्लीज़.. जाने दीजिए ना.." कुर्ते वाली लड़की ने अपना हाथ च्छुदाने की एक और कोशिश करते हुए कहा....

"हद है यार.. लगता है मुझे ही सब कुच्छ बताना पड़ेगा अब... वो क्या है की पिच्छली बार जब तुम आई थी तो मैने चुपके से पर्दे के पिछे खड़ा होकर तुम्हारी फिल्म बना ली थी..." रवि ने अंधेरे में तीर छ्चोड़ा जो सीधा निशाने पर जा लगा....उसकी बात सुनकर तो जैसे कुर्ते वाली लड़की को झटका सा लगा.. उसके चेहरे का रंग यकायक पीला पड़ गया...," क्कक्या?"

"हाँ.. और नही तो क्या? मैं तो आज फ्री भी नही था... एक दोस्त का उसकी गर्लफ्रेंड के साथ पार्क में एम्म्स बनाने जाना था मुझे.. पर अमन अड़ गया.. बोला आज ही आ जाओ.. मैने बुला लिया लड़कियों को... अब वो तुमसे प्यार ही इतना करता है.. वो नही चाहता कि तुम्हारी 'वो' फिल्म घर घर में देखी जाए... मेरा नुकसान तो बहुत है.. पर क्या करूँ? अमन भी खास यार है अपना.. उसकी और उसके 'प्यार' की इज़्ज़त का ख़याल तो रखना ही पड़ेगा...." कहता हुआ रवि हँसने लगा..

"पर.. आप तो उस दिन यहाँ थे ही नही..!"

"हां.. पहले अमन भी यही कह रहा था.. जब उसको मूवी दिखाई तब जाकर यकीन हुआ.. दरअसल मुझे अमन ने बता रखा था कि उस दिन उसके साथ तुम आने वाली हो.. मैं पिछे से आया और गेट्कीपर को बोल दिया कि अमन को कुच्छ ना बताए.. मुझे सुरपरिज़े देना है.. अब भला वो दोस्तों के बीच कैसे आता.. और मैं छिप्कर अपना काम करके ले गया.." रवि ने कलाकारी दिखाई...

लड़कियों को काटो तो खून नही.. कुर्ते वाली तो अपने सारे बदन को ढीला छ्चोड़ उसस्पर ही झुक गयी.. और काँपने सी लगी...

टॉप वाली लड़की की मुश्किल से आवाज़ निकली," पर... पर मैं तो आज पहली बार आई हूँ.. बाइ गॉड! है ना सलमा!"

"मुझे सब पता है यार.. मुझे क्यूँ बता रही हो.. मुझे तो वो मूवी देखे बिना नींद ही नही आती.. पर अब तो आज के दिन की यादें ही बची रहनी है बस.. सी.डी. तो मैं दे ही दूँगा आज अमन को...!" रवि ने कुर्ते वाली के गाल को चूमते हुए कहा.. पर वह तो बर्फ की तरह ठंडी हो चुकी थी.. उसने इस बार कतयि बुरा नही माना," एक रिक्वेस्ट करूँ तो मान लोगे ना प्लीज़...!"

"हाँ हाँ.. क्यूँ नही जान.. हज़ार बातें बोलो...!" रवि अब अपने हाथ से जीन के उपर से उसकी जांघों को सहलाने लगा.. मज़े से.. बिना किसी विरोध के...

"ववो.. सी.डी. अमन को मत देना प्लीज़.. मुझे दे देना..." सलमा ने अपनी शोख नज़रों का जादू उस पर चलाने की कोशिश की...

"क्या फ़र्क पड़ता है? अमन तुम्हे इतना प्यार करता है.. एक ही बात है.. तुम रखो या वो..!" कहते कहते रवि ने अपनी उंगलिया धीरे धीरे सरकाते हुए सलमा की जांघों के बीच फँसा दी.. सलमा ने कसमसकर अपनी जांघें भींच ली.. पर कुच्छ बोली नही..... पर जैसे ही रवि ने दूसरा हाथ टॉप वाली लड़की की जांघों के बीच फँसना चाहा.. वह बिदक कर खड़ी हो गयी.. और उसको घूरते हुए सोफे पर जा बैठी..

"कमाल है यार.. गरम क्यूँ होती हो..?" रवि ने मुस्कुराते हुए टॉप वाली लड़की को आँख मारी...

" छ्चोड़ो ना... वो सी.डी. तुम मुझे ही दोगे ना प्लीज़..." सलमा ने प्यार से रवि के गाल पर हाथ रखकर चेहरा अपनी और घूमाते हुए कहा...

" हाँ मेरी जान...." रवि ने कहा और अपने दोनो हाथों में उसका चेहरा लेकर उसके होंटो को चूसने लगा... सलमा की अब क्या मज़ाल थी जो हूल्का सा भी विरोध करती.. अपना शरीर ढीला छ्चोड़ वह सी.डी. के बारे में सोचने लगी....

"मैं जाउ सलमा? तू आ जाना बाद में..." टॉप वाली लड़की का शरीर भारी भारी होने लगा था.. उसको अहसास हो चुका था की थोड़ी देर और यहाँ रुकी तो उसके लिए खुद को संभालना मुश्किल हो जाएगा...

"ना साना.. मुझे छ्चोड़ कर मत जा प्लीज़.. सिर्फ़ 2 मिनिट.." सलमा ने कहा और रवि की और देखते हुए बोली," अब तो वो सी.डी. दे दो प्लीज़.. मेरी जिंदगी तबाह हो जाएगी.. मैं मुँह दिखाने के लायक नही रहूंगी..."

"पहले साना को बोलो यहाँ से हिलने की कोशिश ना करे.. जब तक मैं ना कहूँ.. तभी मैं सी.डी. तुम्हे देने के बारे में सोचूँगा..." रवि के हाथ शानदार हथियार लग गया था...

"बोल तो रही हूँ.. एक मिनिट.." सलमा रवि के पास से उठी और साना को एक कोने की तरफ ले गयी..," देख साना.. मेरी इज़्ज़त का सवाल है.. प्लीज़ यार.. थोड़ी देर की बात है... मान जा..मैं इसको चुम्मा चाती में ही ढीला कर दूँगी... तू देखती जा.. और आइन्दा कभी तुझे यहाँ लेकर नही आउन्गि.. प्रोमिस!" सलमा ने साना को भरोसा दिलाने की कोशिश की....

"वो तो ठीक है यार.. पर तुझे पता है कि मैने ये सब कभी नही किया... तुम्हारे कहने पर ही मैं यहाँ आ गयी.. अगर कहीं इसने मुझसे भी ज़बरदस्ती करने की कोशिश की तो?" साना ने कहा...

" नही यार.. तू देख तो मैं क्या करती हूँ....! बस 5 मिनिट में ही नही झाड़ गया तो मेरा नाम बदल देना... बैठ तू आराम से.. और देख मेरा कमाल..." सलमा के कहने पर साना अजीब सी निगाहों से रवि को देखती हुई सोफे पर जा बैठी....

"क्या करोगे?" सलमा ने जाते ही रवि से सीधा सीधा पूच्छ लिया कि उसका इरादा क्या है आख़िर...

"हे हे हे.. हिन्दी में बताउ या अँग्रेज़ी में.." रवि कहकर मुस्कुराने लगा...

"किसी में भी बताओ यार.. पर जल्दी करो प्लीज़..... हम सच में लेट हो रहे हैं..." सलमा ने खीजते हुए पूचछा.......

"नही, जिसमें तुम कहो!" रवि ने उसके उरजों को मसालते हुए बत्तीसी निकाल दी....

"ओह, कॉम'ऑन यार.. चलो हिन्दी में ही बता दो... बट बी फास्ट!" सलमा जल्द से जल्द सी.डी. हासिल करना चाहती थी...

"चोदून्गा!" रवि के मुँह से बेबाक ढंग से कहे गये इस शब्द ने दूर बैठी साना की भी सीटी सी बजा दी... हालाँकि सलमा को शायद ऐसे शब्द सुन'ने की आदत थी....

सलमा ने एक बार साना की और देखा और फिर तपाक से बोली," चलो पॅंट उतारो....!"

"कमाल है? मारनी मुझे है या तुझे.. कपड़े तो पहले तुम्हारे ही उतरेंगे...."

सलमा खिन्न होकर खुद एकद्ूम नीचे बैठ गयी.. और घुटनो के बल होकर रवि की पॅंट का हुक खोलने लगी... साना ने शर्मकार अपना चेहरा घुमा लिया.....

सलमा ने पॅंट की ज़िप खोली और बिना देर किए उसको नीचे सरका दिया. इतनी गरम लड़की के इस अदा से उनका नंगा करते ही रवि के अंडरवेर में तंबू सा तन कर खड़ा हो गया.. जैसे ही सलमा ने अंडरवेर के बाहर से ही रवि के तने हुए लंड को अपनी मुट्ठी में लेने की कोशिश की, रवि सिसक उठा.. और अपनी आइडियाँ उठाकर आँखें बंद कर ली.. सलमा ने बाहर से ही महसूस कर लिया.. उसका भी अमन की तरह अच्च्छा ख़ासा मोटा और लंबा है.. रवि को एक एक करके अपने पैर आगे पिछे सरकाते हुए सिसकियाँ लेते देख सलमा समझ गयी की लोहा पहले ही काफ़ी गरम है.. पिघलने के लिए ज़्यादा आग नही जलानी पड़ेगी...

सलमा ने अपनी नज़रें तिर्छि करके एक बार साना को देखा.. वह भी कुच्छ इसी तरह से तिर्छि नज़रों से उनकी ही और देख रही थी.. पर बहुत शरमाई हुई.. और थोड़ी ललचाई हुई.. कहने को तो उसने अपना चेहरा दूसरी और कर रखा था.. पर उसकी नज़रों का निशाना रवि के कच्च्चे का उभार ही था..... उसके मन में वासना की हल्की हल्की लहरें उठने लगी थी.. यही कारण था कि अंजाने में ही उसने अपने दोनो हाथ जोड़ कर अपनी जांघों के बीच फँसा लिए थे..

सलमा का हाथ अभी भी कच्च्चे के उपर से रवि के लंड को सहला रहा था.. उस ने अपनी गर्दन उठा आँखें बंद करके सिसक रहे रवि को देखा और मुस्कुरा उठी.. वो तो अपने आपे में ही नही था..

वो झुकी और अंडरवेर के 'उस' खास उभरे हुए हिस्से पर अपने दाँत गाड़ने लगी..

"उफफफ्फ़" मारे गुदगुदी और आनंद के रवि उच्छल सा पड़ा और बिस्तर पर पैर नीचे करके जंघें चौड़ी करके बैठ गया.. पर सलमा उसको जल्द से जल्द टपकाने के मूड में थी.. वह तपाक से उसकी जांघों के बीच आई और अपनी कोहनियाँ उसकी जांघों पर रख कर जितना करीब हो सकती थी हो गयी... अब वो दोनो बिल्कुल साना की नज़रों के सामने बैठे थे...

"क्या बात है छम्मक छल्लो.. अंदर ही रस निकालने का इरादा है क्या? सलमा के गरम हाथों से 2 पल के लिए निजात पा कर रवि को ज़ुबान खोलने का मौका मिल गया..

सलमा ने उसकी आँखों में आँखें डाली और कामुक ढंग से मुस्कुराने लगी," क्यूँ? अच्च्छा नही लग रहा क्या?" सलमा ने कहते हुए उसका मोटा ताज़ा लिंग अंडरवेर की झिर्री से निकाल कर अपनी और साना की नज़रों के सामने बेपर्दा कर दिया.. साना खुद को एक लंबी साँस लेने से ना रोक सकी.. और जांघों के बीच छीपी बैठी उसकी कामुक तितली तड़प उठी....

हल्क भूरे रंग का रवि का 7.5" अब सीधे तौर पर सलमा के हाथों की थिरकन महसूस कर रहा था... क्या गजब का अहसास था.. रवि एक बार फिर मदहोश होने लगा... लगभग सिसकते हुए उसने कहा," हाईए.. मुँह में ले ले ना! और जो अंदर समान बच गया.. उसको तो बाहर निकाल.. वहाँ खुजली हो रही है..!"

"इतना मोटा मेरे मुँह में नही आएगा.." उपर नीचे करके सलमा उसकी मोटाई का अंदाज़ा लेते हुए बोली.. और हाथ अंदर करके उसके 'गोलों' को भी बाहर निकाल लिया....

"आ जाएगा.. ट्राइ तो कारर्र...!" रवि के लिंग में रह रह कर उफान सा आ रहा था...

साना ने शायद मर्द का लंड या कूम से कूम इश्स तरह का लंड पहली बार देखा था... लगातार उसकी और देखे जा रही साना की फटी हुई सी सेक्सी आँखों से तो यही अंदाज़ा लग रहा था...

रवि के दबाव डालने पर सलमा ने अपने मुँह को जितना हो सकता था उतना खोला और हाथ में पकड़े हुए रवि के लिंग के सूपदे को अंदर निगल लिया.. उसकी जीभ सूपदे के नीचे थी और होन्ट लगभग फटने को हो गये..

अचानक सिसकियाँ ले रहे रवि को शरारत सूझी.. उसने सलमा का सिर अपने दोनो हाथों से पकड़ा और खुद थोड़ा आगे होते हुए सलमा का चेहरा ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिया...

सलमा की तो जान निकल गयी होती.. उसके नथुने अचानक फूल गये और आँखों से आँसू निकल गये.. असहाया सी सलमा ने 'गों..गों..गों..' की आवाज़ निकालते हुए रवि को प्रार्थना की नज़र से देखा... लंबी सी आआआः भर कर रवि ने उसको ढीला छ्चोड़ दिया और हँसने लगा," चला गया था ना पूरा.. तुम तो खम्खा डर रही थी... हे हे हे"

सलमा लंड से निजात पाते ही बुरी तरह खांसने लगी.. आँखों में अब भी नमी थी..," अब नही लूँगी..!" सलमा ने एलान कर दिया...

"चाट तो सकती हो ना.. उपर से नीचे तक.." रवि ने दया करते हुए उसको आसान रास्ता बता दिया...

"हूंम्म..!" बेचारा सा मुँह बनाकर सलमा ने कहा और अपनी नज़रों के सामने फुफ्कार रहे लंड को देखने लगी.. उसकी लार से पूरा सना हुआ रवि का लिंग ट्यूबलाइज्ट की रोशनी में चमक सा रहा था.. सलमा एक बार फिर झुकी और जीभ बाहर निकाल कर रवि के लिंग पर लगी हुई अपनी ही लार सॉफ करने लगी.. उपर से नीचे तक.. ऐसा करते हुए उसने रवि के गोलों को हाथों में पकड़ रखा था और हौले हुले सहला रही थी.. उत्तेजना की अग्नि में तड़प रहा रवि पिछे बिस्तेर पर लुढ़क गया और उसका लिंग सीधा तना हुआ छत की और निहारने लगा.. साना तब तक बुरी तरह मचलने सी लगी थी और समझ नही पा रही थी की अपने बदन में उठ रही इन्न झुझूरियों को कैसे शांत करे...

सलमा ने रवि को जैसे ही अपने आपे से बाहर देखा.. लिंग को चाटना छ्चोड़ वा तेज़ी से उसको अपने हाथ में ले उपर नीचे करने लगी... गोले अभी भी उसके दूसरे हाथ की सेवा से अभिभूत से थे...

अचानक रवि कोहनियाँ बिस्तेर पर टीका आगे से थोड़ा उठ गया," ये तुमने कहाँ से सीखा.. आ?"

"क्या?" हिलाना छ्चोड़ सलमा ने उसकी आँखों में देखा...

"मूठ मारना.. और क्या?" और रवि हँसने लगा...

सलमा अचानक किए गये इस अप्रत्याशित सवाल से बौखला गयी," चुप रहो ना.. मुझे अपना काम करने दो...!"

"अरे वा.. खुद तो बेवजह देरी करने में लगी हो.. इसकी ज़रूरत क्या है.. ये तो पहले ही पूरी तरह खड़ा है.. और कितना खीँचोगी इसको.. सीधे सीधे कपड़े निकल कर लेट क्यूँ नही जाती.. अगर काम जल्दी ख़तम करना है तो?" रवि ने हंसते हुए कहा....

"और अगर मैं ऐसे ही निकलवां दूं तो..?" सलमा की बात में प्रशन और प्रार्थना दोनो थे...

"ये भी कोई बात हुई भला.. ऐसे ही निकालना होता तो मेरे पास हाथ नही हैं क्या?"... और थोड़ा रुक'कर सोचते हुए बोला..," वैसे भी तुम्हारे ऐसे करने से इसमें से कुच्छ नही निकलने वाला.. इसको मेरे हाथों की आदत पड़ी हुई है.. हे हे हे.. चाहो तो कोशिश करके देख लो.. पर इसमें तुम्हारा ही नुकसान होगा.. बेवजह की देरी होगी.. पहले बता रहा हूँ..."

सलमा को उसकी बात में कोई दम नज़र नही आया.. उसको अपने हाथों की काबिलियत पर पूरा विस्वास था..," अब तक तो निकल चुका होता.. अगर तुम बीच में नही बोलते.. ठीक है.. मुझे 5 मिनिट और दे दो.. फिर जो चाहे कर लेना.."

"ठीक है.. जैसी तुम्हारी मर्ज़ी.. तुम्हारे 5 मिनिट और खराब सही..!" कहकर रवि फिर से सीधा लेट गया...

"बस थोड़ी देर और साना...," कहते हुए उसने जैसे ही साना को देखा.. वह चौंक पड़ी," आ.. तुम्हे क्या हुआ ?"

पसीने से लथपथ साना ने अपनी जीन1414016176

की जीप खोलकर उंगली अंदर फँसा रखी थी और बुरी तरह हाफ रही थी," कुच्छ.. नही.. कुच्छ नही.. हाआआ.. हययाया... ह्बीयेययाया!"

सलमा को एक बार हँसी आने को हुई पर मिले हुए पाँच मिनिट का पूरा फायडा उठाने के लिए वह उसको नज़रअंदाज करके तेज़ी से अपने काम में जुट गयी.. सलमा ने अपने होंटो को रवि के सूपदे पर रखा और जीभ से वहाँ अठखेलियन करती हुई एक हाथ से तेज़ी से लिंग की खाल को उपर नीचे करने लगी.. कामोत्तेजना बढ़ाने के लिए वह रह रह कर सिसकियाँ ले रही थी.. हालाँकि उसका इसमें इतना इंटेरेस्ट नही था.. जितना सी.डी. पाने में था... रवि भी अब तक बेकाबू हो चुका था.. कमसिन हाथों, होंटो और जीभ के एक साथ हम'ले ने उसको पागल सा कर दिया था... सिर घूमाते ही उसकी नज़र अपनी पॅंट में उंगली अंदर बाहर कर रही साना पर पड़ी और इतना शानदार मंज़र देखते ही उसकी साँसें तक खिंचने लगी.. उसको लगा वह अब टिक नही पाएगा.. पर अब वो रुकना चाहता भी नही था.. अचानक उठा और फिर से उतनी ही बेदर्दी के साथ अपना लंड सलमा के मुँह में ठोक कर गहरी साँसें लेने लगा.. वीरया की तेज धार पिचकारियाँ सलमा के गले को तर करती चली गयी... और सलमा चाहते हुए भी अपना मुँह बाहर नही निकाल सकी.. जब तक की खुद रवि ने उसको नही छ्चोड़ा....

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: अधूरा प्यार-- एक होरर लव स्टोरी

Post by rajsharma »

एक पल को मुँह खट्टा सा बनाती हुई सलमा अचानक छाती तान कर बोली," देखा.. निकलवा दिया ना.. अब लाओ वो सी.डी."

"कौनसी सी.डी.?" बिस्तेर पर निढाल पड़ा हुआ रवि अचानक उठ बैठा...

"अब प्लीज़.. ऐसे मत करो.. मैने अपना काम कर दिया है.. " सलमा खुद को ठगा हुआ सा महसूस करते हुए बोली....

"मैं तो मज़ाक कर रहा था यार.. मैं क्या तुम्हे ब्लू फिल्मों का दल्ला लगता हूँ.. सूरत तो देखो एक बार.. कितनी भोली है यार...!" रवि ने मुस्कुराते हुए उसके दोनो हाथ पकड़ लिए....

"तो क्या वो सब...?" सलमा ने हैरत से पूचछा...

"हां.. झूठ था.. पर ये सच है कि तुम बहुत ही गरम और सेक्सी माल हो.. एक बार अंदर बाहर खेल लो यार... प्लीज़!" रवि ने उसके हाथों को पकड़े हुए उसको अपनी और खींचने की कोशिश की....

"कुत्ता.. कमीना..!" सलमा को अब पहले से कहीं अधिक अफ़सोस हो रहा था..," खाली फोकट में मेरे हाथ तुड़वा दिए... चल साना.. जल्दी चल..!"

"मान भी जाओ यार.. अब अगर मैं तुमको सच नही बताता, तब भी तो तुम सब कुच्छ करती.. जो मैं चाहता...!" रवि ने शराफ़त से कहा...

"नही मुझे कुच्छ नही करना.. छ्चोड़ो मेरा हाथ.." सलमा ने गुस्से से कहा...

"मुझे करना है!" साना की आवाज़ सुनकर दोनो ने चौंक कर उसको देखा.. वह सिर झुकाए बैठी थी......

ओह वाउ.. ये तो कमाल ही हो गया.." रवि झूमते हुए उठा और सलमा को भूल कर साना को अपनी बाहों में उठा लिया.. उसका बदन तप रहा था.. आँखें बंद थी और पूरा बदन रवि की बाहों में उसने ढीला छ्चोड़ दिया था... रवि ने उसको प्यार से बिस्तेर पर लिटा दिया और उसके उपर आकर उसके होंटो को चूमने लगा...

"साना! ये क्या कर रही हो तुम?.. और वो भी...इस चीटर के साथ!" सलमा को जलन सी महसूस हुई.. वह पहले सी.डी. के लिए जल्दबाज़ी कर रही थी और बाद में साना के लिए.. वरना जिसको देखकर साना गरम हो गयी थी, सलमा ने तो उसका च्छुआ था.. चूमा था.. चॅटा था.. चूसा था.. और निगला भी..

पर जिसके लिए उसने अपने जज्बातों पर काबू रखा, खुद उसी को मैदान में कूदते पाया तो उसकी हैरानी का ठिकाना ना रहा.. उसने दो बार और साना को पुकारा.. पर साना तो जैसे वहाँ थी ही नही.. वह तो कहीं उपर मस्तियों के सागर में डुबकी सी लगा रही थी.. आसमान में तेर सी रही थी..

"इस'से अच्च्छा तो मैं ही ना कर लेती..."सलमा बड़बड़ाती हुई सोफे पर जाकर पसर गयी और अपने कपड़े निकालने लगी....

उधर रवि का ध्यान अब पूरी तरह उसके नीचे लेटी सिसकियाँ ले रही साना पर था... उसके गालों, गर्दन, होंटो को चूमते हुए धीरे धीरे रवि उसके मादक उरजों से खेल रहा था.. उसकी हर हरकत के साथ साना की हालत खराब से और खराब होती जा रही थी... और अब वह इंतजार करने की हालत में नही थी... उसने अपना हाथ लंबा करके रवि के अंडरवेर में हाथ घुसा लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया.. वह फिर से अकड़ चुका था...

"ज़्यादा जल्दी है क्या?" रवि ने साना के होंटो पर उंगली फेरते हुए कहा....

"हां.. प्लीज़.. मुझे कुच्छ अजीब सा हो रहा है.. जल्दी कुच्छ करो.." 2-3 लंबी लंबी साँसे लेती हुई साना ने इस छ्होटी सी बात को पूरा किया...

अब रवि को टाइम बिताने का कोई फायडा लग भी नही रहा था.. उसने झट से बैठते हुए साना का टॉप उपर खिसकाकर निकाल दिया.. और पलटी खाकर उसको अपने उपर ले आया.. साना के गोल मटोल ब्रा में क़ैद संतरों की भीनी भीनी खुसबू पाकर निहाल हो गया... उसकी कमर में हाथ डालते हुए उसने उन्न कबूतर के बच्चों को ब्रा से भी निजात दिला दी...

नग्न होते ही साना की दोनो मस्त चूचियाँ पेड़ से लटके फलों की भाँति रवि के चेहरे के सामने लटक गयी.. ऐसे कुंवारे फल जिन्हे किसी ने आज तक चखा नही था.. तोड़ा नही था.. आज टूटने ही थे!

रवि ने साना की गोल चूची के गुलाबी रंगत लिए हुए एक दाने को अपने होंटो में दबाया और उनसे रस निकालने की कोशिश करने लगा... वहाँ तो रस नही निकला, अलबत्ता साना को अपनी कुँवारी चूत फिर से बहती हुई महसूस हुई... लगातार तेज होती जा रही सिसकियों को काबू में रखने के चक्कर में साना पागल सी हो गयी थी.. उसने झट से बिस्तेर पर घुटने टेक अपने नितंब उपर उठा लिए और अपना सीना रवि भरोसे छ्चोड़ती हुई दोनो हाथ पिछे लेजाकार अपनी पॅंट का हुक खोला और हाथों से ही थोड़ा नीचे सरकाकर पैरों से खिसका खिसका कर बाहर निकाल दिया... अब सिर्फ़ उसकी नाभि रंग की पॅंटी ही उसके नितंबों और योनि को ढके हुए थी..

जैसे ही रवि के हाथों ने उसके नंगे बदन पर लहराते हुए साना के नितंबों की गोलाई और ठरकं को महसूस किया.. वह पागल सा हो गया.. उसके दाने से मुँह हटा उसने फिर से साना को नीचे गिरा लिया और लपकते हुए उसकी जांघों के बीच आ गया...

साना अब तक इतनी उत्तेजित हो रही थी कि रवि के कुच्छ करने का इंतज़ार किए बगैर ही अपनी पॅंटी में हाथ घुसा दिया.. रवि की मौजूदगी का वहाँ अहसास होते ही लगातार मीठी सिसकियाँ अपने होंटो से उत्सर्जित करती हुई साना ने अपनी जांघों को पूरी तरह खोल दिया.. उसकी योनि के बराबर के उभार की लाली पॅंटी से बाहर झाँकने लगी.. इसके साथ ही हुल्के हुल्के बॉल भी वहाँ से अपना सिर बाहर निकालने लगे...

रवि ने झटका देते हुए उसके नितंबों को उठाया और पॅंटी खींच ली.. योनि की सुंदरता और पतली झिर्री के बीच लाल रंग की खुल सी गयी फांकों को देखकर वह पागल सा हो गया.. पॅंटी को पूरी तरह बाहर निकालने की जहमत उठाए बिना ही उसने साना की टाँगों को उपर उठाकर पिछे किया और थोड़ी और खुल चुकी योनि पर अपने होन्ट सटा दिए.. साना उच्छल पड़ी..," ऊओईईईई... आआआआहह!"

मादक रस की भीनी भीनी खुश्बू तो गजब ढा ही रही थी.. उस पर उसकी सिसकती हुई आवाज़ ने रवि को और उकसा दिया... झट से उसने पूरी योनि को मुँह में लिया और अपनी जीभ गोल करके अंदर डालने की कोशिश करने लगा...

साना इस अभूतपूर्व आनंद को सहन नही कर पा रही थी.. बचने की कोशिश में उससने च्चटपटाते हुए अपने चूतदों को इधर उधर हिलाना शुरू कर दिया.. रवि ने उसके नितंबों की दोनो फांकों को अपने हाथों में पकड़कर वहीं दबा लिया.. साना तो जैसे पागल ही हो रही थी.. पूरे कमरे में उसकी मादक सिसकियाँ गूंजने लगी... और बीच बीच में आधा अधूरा.. 'प्लीज़' भी उसकी आवाज़ में सुनाई देने लगा....

अचानक उसको अहसास हुआ कि सलमा उसके लंड को अंडरवेर से निकाल कर उसको चूसने में लगी हुई है.... सलमा ने लंड को पूरी तरह बाहर निकाल कर पिछे की तरफ घुमाया हुआ था और अब तो वो बार बार सूपदे को मुँह में भी लेकर चूस रही थी... रवि तो मानो धान्या हो गया.....

जी भरकर उसके रस का स्वाद लेते हुए उसको तडपा तडपा कर झड़ने के बाद जैसे ही रवि होश में आया.. वह उठा और साना की पॅंटी पूरी तरह उसकी जांघों से निकाल फर्श पर फैंक दी... जीभ को स्वाद चखा चखा कर उसकी योनि लाल हो चुकी थी और जैसे अंदर लेने को मरी जा रही थी... रवि ने जैसे ही उसकी टाँगों को मोड़ उसकी छाती से लगाया.. योनि की फांकों ने पूरी तरह मुँह खोल उसके स्वागत के लिए खुद को तैयार करार दिया....

अब देर किस बात की थी.. किस्मत से मिले इस खजाने के चप्पे चप्पे को तो वो चूस ही चुका था.. अब अंदर जाने की तैयारी में वह आगे खिसका और अपना लंड साना की फांकों के बीच रख दिया...

सूपदे की मौजूदगी को साना सहन नही कर पाई और एक बार फिर रस छ्चोड़ दिया.. सिसकते हुए..," आआआआअहूऊऊऊऊओ!"

"हुम्म.. ये ले.." रवि ने जैसे ही दबाव बनाया.. साना की चीख निकल गयी.. इस चीख को यक़ीनन नीचे बैठे लोगों ने भी सुना होगा.. सूपड़ा 'पक' की आवाज़ के साथ योनि में जाकर फँस गया.. साना की आँखें निकल कर बाहर आने को हो गयी.. अगर रवि उसके होंटो को अपने हाथ से दबा नही लेता तो उसकी चीखें अभी काई मिनिट तक गूँजनी थी...

मुँह पर हाथ रखे हुए ही रवि उसकी छतियो पर झुक गया.. और बेदर्दी से उन्हे चूसने लगा...

सलमा अपने आपको अकेला पाकर फिर से भनना गयी.. आख़िर उसके पास भी तो तराशा हुआ माल था.. बड़ी ही बेशर्मी के साथ वह उठकर रवि के आगे साना के दोनो और घुटने टेक आगे की और झुक गयी.. और अपने मोटी मोटी हुल्की सी खुली हुई फांकों वाले 'माल' का पारदर्शन रवि को रिझाने के लिए करने लगी...

नेकी और पूच्छ पूच्छ.. रवि ने 'इस' माल का स्वागत भी उतनी ही इज़्ज़त और तत्परता के साथ किया... साना की जांघों में भी अब दर्द कम होने लगा था.. साना की छातियो को छ्चोड़ वह थोड़ा उपर उठा और सलमा को पीछे खींच लिया...नितंबों को मसालते हुए उसने सलमा की बॉल कटी हुई योनि को अपने हाथ में लेकर मसल सा दिया.. सलमा उच्छल पड़ी...," आ.. दर्द होता है ऐसे!"

"और ऐसे!" जैसे ही रवि ने अपनी एक उंगली उसकी चूत में घुसाई.. वो पूरी थिरक उठी .. एक बार कमर को लारजते हुए उपर उठी और तुरंत ही नीचे झुक कर साना के मुँह में अपनी एक चूची दे दी... साना पूरे मज़े से किसी बच्चे की तरह उसको चूसने लगी...

रस से सनी उंगली निकाल कर रवि ने रस को सलमा की गांद के छेद पर लगा दिया.. सलमा समझ गयी कि अब क्या होने वाला है.. दाँत भींच कर उसने अपने आपको इस आघात के लिए पहले ही तैयार कर लिया...

रवि ने छेद को उंगली से उपर से ही कूरेदना शुरू कर दिया.. सलमा निहाल हो गयी.. उसने अपने नितंबों को ढीला छ्चोड़ दिया.. तब तक साना भी अपने नितंबों को थिरकने लगी थी.. रवि ने धीरे धीरे वहाँ दबाव बनाना शुरू किया और जैसे ही मौका मिला.. एक दम से नीचे होकर पूरा लिंग घुसकर साना को उच्छालने की कोशिश करने पर मजबूर कर दिया.. पर अब चीख नही निकली.. उसके मुँह में तो सलमा की चूची फँसी हुई थी.... सो अंदर ही घुट कर रह गयी होगी....

अब उच्छलने की बारी सलमा की थी.. अचानक रवि की उंगली के दो परवे उसके छेद में घुस गये.. और झटके के साथ उसने अपने चूतदों को कस कर भींच लिया.. पर अब तो उंगली जा ही चुकी थी..

सलमा की टाँगों को एक एक करके रवि ने हवा में उठी हुई साना की जांघों से पिछे कर दिया... साना की जांघें अब सलमा की कमर से सटी हुई उपर की और उठी थी...

रवि ने धीरे धीरे धक्के लगाने शुरू किए.. पर अब तक साना के बदन में इतनी गर्मी भर चुकी थी कि सहज धक्कों से कुच्छ नही होना था.. साना ने भी अपनी टाँगों को हिला हिला कर चूतादो को धक्कों के साथ ले मिलाते हुए थिरकना शुरू कर दिया... इस'से उत्तेजित होते हुए रवि ने अपनी पूरी उंगली सलमा के अंदर घुसेड दी.. सलमा काँप उठी.. दर्द के मारे नही.. आनंद के मारे.. अपना हाथ नीचे लाकर वह खुद ही अपनी योनि को बुरी तरह मसले जा रही थी....

धीरे धीरे करते हुए रवि ने धक्कों की रफ़्तार बढ़ा दी.. इसी बीच रवि की उंगली की जगह उसका अंगूठा ले चुका था.. पर अब तो सलमा पूरी तरह मस्त थी.. और भी कुच्छ होता तो शायद ले लेती....

एक बार और सखलन के करीब आकर साना बुरी तरह हाँफने लगी थी.. सारा शरीर अकड़ गया था और सलमा की चूची मुँह से निकाल अब वह छ्चोड़ देने की गुहार लगाई...

रवि ने 2 पल के लिए धक्के लगाते हुए सोचा.. साना की चूत में अंदर आते जाते उसको अपनी कल्पना से भी कहीं अधिक आनंद आ रहा था... पर उसने साना पर अहसान करने का निर्णय कर ही लिया... आख़िर उसके पास स्पेर में दूसरा 'माल भी तो था....

जैसे ही रवि ने अपना लिंग साना की योनि से बाहर निकाला.. वह गहरी साँस लेते हुए सलमा के नीचे से निकल कर आँखें बंद करके बिस्तेर पर सीधी पड़ी हुई लंबी लंबी साँसे लेने लगी....

अब रवि का निशाना सलमा थी.. पर जैसे ही उसको नीचे झुका रवि ने लंड उसकी गांद के छेद पर रखने की कोशिश की.. सलमा तड़प उठी," प्लीज़.. यहाँ ये नही.. नीचे घुसा दो.. मैं कब से तड़प रही हूँ...!"

"अच्च्छा.. पहले क्यूँ नही बताया..!" रवि ने मुस्कुराते हुए अपना इरादा बदल दिया और उसको थोड़ा सा उपर उठा, एक ही धक्के में लंड आधे से ज़्यादा उसकी योनि में उतार दिया...

"आआआहह!" सलमा सिसक उठी... आनंद के मारे अपनी छातियो को अपने आप ही मसल्ने लगी..," कर दो नाआ!"

"ये ले..!" और अगले ही झटके में रवि का लिंग पूरा अंदर गया और इसके साथ ही अंदर बाहर होने लगा... सलमा पर मदहोशी का सुरूर छाया हुआ था.. हर धक्के का जवाब वह अपने पिछे की ओर धक्के और 'आह' के साथ दे रही थी... मुश्किल से 4-5 मिनिट हुए होंगे की उसने भी हिचकियाँ सी लेते हुए जवाब दे दिया... ," आ.. बस.. थॅंक्स याआआर!" और सलमा अपने को छुड़ाने की कोशिश करने लगी....

"सीधी हो जाओ.. पर मेरा काम तो पूरा करवा दो.." रवि ने मिन्नत सी करते हुए कहा....

"नही यार.. बस.. और सहन नही कर सकती..!" सलमा ने सॉफ जवाब दे दिया...

रवि ने मायूसी से साना की और देखा.. वह उसका इशारा समझते ही मुस्कुराइ और सलमा वाली पोज़िशन में उसकी तरफ चूतड़ उठाकर घूम गयी... रवि की बाँच्चें खिल गयी.. आख़िर पहली बार वाली तो पहली बार वाली ही होती है... वह घूमा और उसके पिछे जाकर खड़ा हो गया...

रवि ने झुककर उसकी छतियो को दोनो हाथों में पकड़ा और कमर पर गर्दन के पास चुंबन अंकित करके अपना धन्यवाद प्रकट किया... इस स्थिति में लंड को अपने योनि द्वार पर टक्कर मारते देख साना निहाल हो गयी..

रवि ने उठकर उसकी कमर को झुकाया और उसके उपर की और उठ गये नितंबों को पकड़ कर एक दूसरे से दूर खींचा.. योनि का मुँह खुल गया.. रवि ने छेद के मुँह पर लिंग का सूपड़ा रखा और उसकी मखमली जांघें कसकर पकड़ ली...

"आउच..!" साना के मुँह से निकला...

"बस एक मिनिट... !" रवि भी उत्तेजना की प्रकस्था तक पहुँचने ही वाला था.. जांघों को कसकर पकड़े हुए उसने लिंग पूरा उतारा और तुरंत ही बाहर खींचते हुए तेज़ी से अंदर ठोंक दिया.. साना तो अब मज़े के मारे मरी जा रही थी... हर झटका उसको आनंद सागर के पार लगा रहा था मानो... उसने पूरा सहयोग करना शुरू कर दिया और सलमा की और मुस्कुराते हुए और ज़्यादा उत्तेजित होकर झटके लगाती रही.. लगवाती रही...

आख़िर कार रवि के सखलन का समय आ गया... तेज़ी से धक्के लगाता लगाता वह एक दम रुक गया और साना के उपर झुक कर उसकी छातियो को कसकर मसालने लगा... साना ने उसके वीरया की बूँदों को अपने अंदर महसूस किया और रवि के आलिंगन से मदहोश होकर किलकरियाँ सी लगानी शुरू कर दी... अब तो रवि भी बुरी तरह हाँफ रहा था....

तीनो काफ़ी देर तक एक दूसरे के बाजू में आँखें बंद किए पड़े रहे.. अचानक सलमा ने पूचछा," सच में तुमने कोई सी.डी. नही बनाई है ना.....

"बनाई है... अगली बार दूँगा.." कहकर रवि खिलखिला कर हँसने लगा....," नही यार.. ऐसा कुच्छ नही है.. बट थॅंक्स फॉर एवेरितिंग.. ये मेरे जीवन का पहला सेक्स था...

साना ने पलटे हुए अपनी छाती रवि से सटा'ते हुए अपनी नंगी जाँघ उस'की जांघों पर रख ली," मेरा भी!" उसने कहा और रवि के होंटो को चूसने लगी.......

नीचे महफ़िल जम चुकी थी.. कुच्छ देर रवि का इंतजार करने के बाद अमन ने वहीं प्रोग्राम जमा लिया.. गिलासों को खड़खड़ते अब करीब आधा घंटा हो चुका था.. शराब के नशे में रोहन वो सब कुच्छ बोलने लगा था जिसको बताने में अब तक वो हिचक रहा था...

"ओह तेरी.. फिर क्या हुआ?" अमन जिगयासू होकर आगे झुक गया...

"छ्चोड़ो यार.. क्यूँ टाइम खोटा कर रहे हो.. आइ डॉन'ट बिलीव इन ऑल दीज़ फूलिश थिंग्स.. एक सपने को लेकर इतना सीरीयस और एमोशनल होने की ज़रूरत नही है.. " शेखर सूपरस्टिशस किस्म की बातों में विस्वास नही कर पा रहा था...

"पूरी बात तो सुन ले डमरू... रोहन ने शेखर को डांटा और कहानी सुनने लगा....

"कौन डमरू.. मैं.. हा हा हा...!" शेखर ज़ोर ज़ोर से हँसने लगा...," डमरू.. हा हा हा!"

"तुझे नही सुन'नि ना.. चल.. जाकर सामने बैठ.. और अपना मुँह बंद रख.. मैं मानता हूँ.. और मुझे सुन'नि हैं..." अमन आकर सामने वाले सोफे पर शेखर और रोहन के बीच में फँस गया.. शेखर उठा और बड़बड़ाता हुआ सामने चला गया," डमरू.. हा हा हा!"

बातें अभी चल ही रही थी कि मुस्कुराते हुए रवि ने कमरे में प्रवेश किया..," अच्च्छा.. अकेले अकेले..!"

शेखर उसके आते ही खड़ा हो गया," साले डमरू! अकेले अकेले तू फोड़ के आया है या हम.. ? बात करता है...

"भाई तू मेरे को डमरू कैसे बोल रहा है.. वो तो रोहन बोलता है..." रवि ने उसके पास बैठते हुए कहा...

"क्यूंकी मेरे अंदर रोहन का भूत घुस आया है.. हे हे हा हा हो हो!" शेखर ने भूतों वाली बात का मज़ाक बना लिया....

"चुप कर ओये जॅलील इंसान.. ऐसी बातों को मज़ाक में नही लेते.. किसी के साथ भी कुच्छ भी हो सकता है..." अमन ने प्यार से उसको दुतकारा...

"किस के साथ क्या हो गया भाई? मुझे भी तो बता दो.." रवि ने अपना गिलास उठाया और सबके साथ चियर्स किया...

"वो बात बाद में शुरू से शुरू करेंगे.. अब सबको सीरीयस होकर सुन'नि हैं.. पहले तू बता.. दी भी या नही.. मुझे तो उसकी चीख सुनकर ऐसा लगा जैसे तू अपना हाथ में पकड़े उसके पिछे दौड़ रहा है.. और वो बचने के लिए चिल्लती हुई कमरे में इधर उधर भाग रही है...हा हा हा.. साली ने नखरे बहुत किए थे पहले दिन... मैं ऐसी नही हूँ.. मैं वैसी नही हूँ.. पर डालने के बाद पता लगा वो तो पकई पकाई है..." अमन ने अपना अनुभव सुनाया....

रवि ने छाती चौड़ी करके अपने कॉलर उपर कर लिए," देती कैसे नही... !"

"अरे... सच में.. चल आ गले लग जा.. बधाई हो बधाई.." अमन आकर उसके गले लग गया..," हां.. यार.. बात तो तू सही कह रहा है.. सलमा की खुश्बू आ रही है तेरे में से.... पर वो चिल्लाई क्यूँ यार.. साली एक नंबर. की नौटंकी है.. तुझे भी यही कह रही थी क्या की पहली बार मरवा रही हूँ.." अमन ने वापस रोहन के पास बैठते हुए कहा...

" नही यार.. वो तो साना की चीख थी... उसकी पहली बार फटी है ना आज!" रवि ने अपनी बात भी पूरी नही की थी की अमन ने गिलास रखा और उच्छल कर खड़ा हो गया..," तूने साना की मार ली????"

"हां.. कुच्छ ग़लत हो गया क्या?" रवि ने मारा सा मुँह बनाकर कहा...

"ग़लत क्या यार..? ये तो कमाल हो गया.. साली को तीन बार बुला चुका हूँ.. सलमा के हाथों.. पर वो तो हाथ ही नही लगाने देती थी यार.. तूने किया कैसे.. अब तो ज़ोर की पार्टी होनी चाहिए यार.. ज़ोर की.. तूने मेरा काम आसान कर दिया...!" अमन जोश में पूरा पैग एक साथ पी गया...

"वो कैसे? " रवि की समझ में नही आई बात....

"क्या बताउ यार.. तुझे तो पता होगा.. वो और सलमा दोनो सग़ी बेहन हैं..!"

अमन को रवि ने बीच में ही टोक दिया," क्या? सग़ी बेहन हैं.. ?"

"हां.. चल छ्चोड़ यार.. लंबी कहानी है.. उसके बारे में बाद में बात करेंगे... पहले रोहन भाई की सुनते हैं.. चल भाई रोहन.. अब सब इकट्ठे हो गये हैं.. शुरू से शुरू करके आख़िर तक सुना दे.. पहले बोल रहा हूँ शेखर.. बीच में नही बोलेगा.. देख ले नही तो...!" अमन शेखर को चेतावनी सी देते हुए बोला..

"नही बोलूँगा यार... चलो सूनाओ!" कहकर शेखर भी रोहन की और देखने लगा....

रोहन ने कहानी सुननी शुरू कर दी.....

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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