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rajsharma
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सुबहका वक्त हे. कांचके झरोके लगाई इमारतोंके जंगलमें एक इमारत और उस इमारतके चौथे मालेपर एक एक करके एक आयटी कंपनीके कर्मचारी आने लगे थे. दस बजनेको आए थे और कर्मचारीयों की भीड अचानक बढने लगी. सब कर्मचारी ऑफीसमें जानेके लिए भीड और जल्दी करने लगे. कारण एकही था की देरी ना हो जाए. सब कर्मचारीयोंके आनेका वक्त दरवाजेपर ही स्मार्ट कार्ड रिडरपर दर्ज कीया जाता था.सिर्फ आनेका वक्त ही नही तो उनकी पुरी अंदर बाहर जानेकी गतिविधीयां उस कार्ड रिडरपर दर्ज किई जाती था. कंपनीका जो कांचसे बना मुख्य दरवाजा था उसे मॅग्नेटीक लॉक लगाया था और दरवाजा कर्मचारीयोंने अपना कार्ड दिखानेके सिवा खुलता नही था. उस कार्ड रिडरकी वजहसे कंपनीकी सुरक्षा और नियमितता बरकरार रखी जाती थी. दसका बझर बज गया और तबतक कंपनीके सारे कर्मचारी अंदर पहूंच गए थे. कंपनीकी डायरेक्टर और सिईओ ईशा भी अंदर आ गयी थी.

ईशाने बी.ई कॉम्प्यूटर किया था और उसकी उम्र जादासे जादा २३ साल होगी. उसके पिता, कंपनीके पुर्व डायरेक्टर और सिईओ, अचानक गुजर जानेसे, उम्रके लिहाजसे कंपनीकी बहुत बडी जिम्मेदारी उस पर आन पडी थी. नही तो यह तो उसके हंसने खेलनेके और मस्ती करनेके दिन थे.उसकी आगेकी पढाई यु.एस. में करनेकी इच्छा थी. लेकिन उसकी वह इच्छा पिताजी गुजर जानेसे केवल इच्छाही रह गई थी. वह भी कंपनीकी जिम्मेदारी अच्छी तरहसे निभाती थी और साथमें अपने मस्तीके, हंसने खेलनेके दिन मुरझा ना जाए इसका खयाल रखती थी.

हॉलमें दोनो तरफ क्यूबिकल्स थे और उसके बिचमेंसे जो संकरा रास्ता था उससे गुजरते हूए ईशा अपने कॅबिनकी तरफ जा रही थी. वैसे वह ऑफीसमें पहननेके लिए कॅजुअल्स पहनावा ही जादा पसंद करती थी. ढीला सफेद टी शर्ट और कॉटनका ढीला बादामी पॅंन्ट. कोई बडा प्रोग्रॅम होनेपर या कोई स्पेशल क्लायंट के साथ मिटींग होनेपर ही वह फॉर्मल ड्रेस पहनना पसंद करती थी.

ऑफीसके बाकी स्टाफ और डेव्हलपर्सकोभी फॉर्मल ड्रेसकी कोई जबरदस्ती नही थी. वे जिन कपडोमें कंफर्टेबल महसूस करे ऐसा पहनावा पहननेकी उन सबको छूट थी. ऑफीसके कामके बारेमें ईशाका एक सूत्र था. की सब लोग ऑफीस का काम ऍन्जॉय करनेमें सक्षम होना चाहिए. अगर लोग काम ऍन्जॉय कर पाएंगे तो उन्हे कामकी थकान कभी महसूस ही नही होगी. उसने ऑफीसमेंभी काम और विश्राम या हॉबी इसका अच्छा खासा तालमेंल बिठाकर कर उसके कंपनीमें काम कर रहे कर्मचारीयोंकी प्रॉडक्टीव्हीटी बढाई थी.उसने ऑफीसमें स्विमींग पुल, झेन चेंबर, मेडीटेशन रुम, जीम, टी टी रुम ऐसी अलग अलग सुविधाए कर्मचारीययोंको मुहय्या कराकर उनका ऑफीसके बारेमें अपनापन बढानेकी कोशीश की थी. और उसे उसके अच्छे परिणामभी दिखने लगे थे.

उसके कॅबिनकी तरफ जाते जाते उसे उसके कंपनीके कुछ कर्मचारी क्रॉस हो गए. उन्होने उसे अदबके साथ विश किया. उसनेभी एक मीठे स्माईलके साथ उनको विश कर प्रतिउत्तर दिया. वे सिर्फ डरके कारण उसे विश नही करते थे तो उनके मनमें उसके बारेमें उसके काबिलियत के बारेमें एक आदर दिख रहा था. वह अपने कॅबिनके पास पहूंच गई.

उसके कॅबिनकी एक खासियत थी की उसकी कॅबिन बाकि कर्मचायोंसे भारी सामानसे ना भरी होकर, जो सुविधाएँ उसके कर्मचारीयोंको थी वही उसके कॅबिनमें भी थी. ‘मै भी तुममेंसे एक हूँ.’ यह भावना सबके मनमें दृढ हो, यह उसका उद्देश्य होगा.

वह अपने कॅबिनके पास पहूँचतेही उसने स्प्रिंग लगाया हूवा अपने कॅबिनका कांचका दरवाजा अंदरकी ओर धकेला और वह अंदर चली गई.

ईशाने ऑफीसमें आये बराबर रोजके जो महत्वपुर्ण काम थे वह निपटाए. जैसे महत्वपुर्ण खत, ऑफीशियल मेल्स, प्रोग्रेस रिपोर्ट्स इत्यादी. कुछ महत्वपुर्ण मेल्स थी उन्हे जवाब भेज दिया, कुछ मेल्सके प्रिंट लिए. सब महत्वपुर्ण काम निपटनेके बाद उसने अपने कॉम्प्यूटरका चॅटींग सेशन ओपन किया.

कामकी थकान महसूस होनेसे या कुछ खाली वक्त मिलनेपर वह चॅटींग करती थी. यह उसका हर दिन कार्यक्रम रहता था. यूभी इतनी बडी कंपनीकी जिम्मेदारी संभालना कोई मामूली बात नही थी. कामका तणाव, टेन्शन्स इनसे छूटकारा पानेके लिए उसने चॅटींगके रुपमें बहुत अच्छा विकल्प चुना था.

तभी फोनकी घंटी बजी. उसने चॅटींग विंडोमें आये मेसेजेस पढते हूए फोन उठाया. हुबहु कॉम्प्यूटरके पॅरेलल प्रोसेसिंग जैसे सारे काम वह एकही वक्त कर सकती थी.

" यस दीपिका"

"मॅडम .. सीक्युर डेटाज मॅनेजींग डायरेक्टर … मि. कश्यप इज ऑन द लाईन…" उधरसे दीपिकाका आवाज आया.

" कनेक्ट प्लीज"

‘ हाय’ तबतक चॅटींगपर किसीका मेसेज आया.

ईशाने किसका मेसेज है यह चेक किया. ‘क्युट बॉय’ मेसेज भेजने वालेने धारण किया हुवा नाम था.

‘ क्या चिपकू आदमी है ‘ ईशाने सोचा.

यही ‘क्युट बॉय’ हमेशा चॅटींगपर उसे मिलता था. और लगभग हरबार ईशाने चॅटींग सेशन ओपन किए बराबर उसका मेसेज आया नही ऐसा बहुत कम होता था.

‘ इसे कुछ काम धंदे है की नाही … जब देखो तब चॅटींगपर पडा रहता है ‘

ईशाने आजभी उसे इग्नोर करनेकी ठान ली. दो तिन ऑफलाईन मेसेजेस थे.

ईशा कान और कंधेके बिच फोनका क्रेडल पकडकर की बोर्डपर सफाईसे अपनी नाजुक उंगलीया चलाते हूए वे ऑफलाईन मेसेजेस चेक करने लगी.

" गुड मॉर्निंम मि. कश्यप… हाऊ आर यू" ईशाने फोन कनेक्ट होतेही मि. कश्यपका स्वागत किया और वह उधरसे कश्यपकी बातचीत सुननेके लिए बिचमें रुक गई.

" देखीए कश्यपजी… वुई आर द बेस्ट ऍट अवर क्वालीटी ऍन्ड डिलीवरी शेड्यूलस… यू डोन्ट वरी… वुई विल डिलीवर युवर प्रॉडक्ट ऑन टाईम… हमारी डिलीवरी वक्तके अंदर नही हूई ऐसा कभी हुवा है क्या?… नही ना?… देन डोंट वरी… आप एकदम निश्चिंत रहीएगा … यस… ओके… बाय.. " ईशाने फोन रख दिया और फिरसे दो डीजीट डायल कर फोन उठाया, " जरा निकिताको अंदर भेज दो "
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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फोनपर चल रहे बातचीतसे ईशाका कॉम्प्यूटर पर खयाल नही रहा था. क्योंकी उस वक्त काम महत्वपुर्ण था और बाकी बाते बाद में.

तभी कॉम्पूटरपर ‘बिप’ बजा. चॅटींग विंडोमें ईशाको किसीका मेसेज आया था. ईशाने चिढकर मॉनिटरकी तरफ देखा.

‘फिरसे उसी क्युट बॉयकाही मेसेज होगा ‘ उसने सोचा.

लेकिन वह मेसेज क्युट बॉयका नही था. इसलिए वह पढने लगी.
मेसेज था – ‘ क्या तुम मेरी दोस्त बनना पसंद करोगी ?’

मॉनिटरपर अबभी ‘ क्या तुम मेरा दोस्त बनना पसंद करोगी ?’ यह चॅटींगपर आया मेसेज दिख रहा था. अब इसे क्या जवाब भेजा जाए ताकी वह अपना पिछा छोडेगा ऐसा सोचते हूए ईशाने मेसेज भेजनेवालेका नाम देखा. लेकिन वह ‘क्युट बॉय’ नही था यह देखकर उसे सुकून महसुस हूवा.

‘ क्यो नही ? जरुर… दोस्ती करनेसे निभाना जादा मायने रखता है ‘ ईशाने मेसेज टाईप किया.

तभी निकिता – ईशाकी सेक्रेटरी अंदर आ गई.
" यस मॅडम"

" निकिता मैने तुम्हे कितनी बार कहा है … की डोन्ट कॉल मी मॅडम… कॉल मी सिम्प्ली ईशा… तुम जब मुझे मॅडम कहती हो मुझे एकदम २३ सालसे ५० सालका हुए जैसा लगता है " ईशा चिढकर बोली.

वह उसपर गुस्सा तो हो गई लेकिन फिर उसे बुरा लगने लगा.

ईशा अचानक एकदम गंभीर होकर बोली, " सच कहूं तो पापा के अचानक जानेके बाद यह जिम्मेदारी मुझपर आन पडी है … नहीतो अभी तो मेरे हसने खेलनेके दिन थे… सच कहूं तो … मैने तुम्हे यहां जानबुझकर बुला लिया है .. ताकी इस कामकाजी मौहोलमें मै अपनी हंसी खुशी ना खो दूं … कम से कम तूम तो मुझे ईशा कह सकती हो … तूम मेरी दोस्त पहले हो और सेक्रेटरी बादमें … समझी? " ईशाने कहा.

" यस मॅडम … आय मीन ईशा" निकिताने कहा.

ईशा निकिताकी तरफ देखकर मंद मंद मुस्कुराने लगी. निकिता उसके सामने कुर्सीपर बैठ गई तभी फिरसे कॉम्पूटरका अलर्ट बझर बज गया. चाटींगके विंडोमें फिरसे मेसेज आ गया था –
‘तुम्हारा नाम क्या है ?’

‘ मेरा नाम ईशा … तुम्हारा ?’ ईशाने मेसेज टाइप किया.

ईशाने सेन्ड बटनपर माऊस क्लिक किया और बोलनेके लिए निकिता बैठी थी उधर अपनी चेअर घुमाई.

" वह सीक्युर डेटाका प्रोजेक्ट कैसा चल रहा है ?…" ईशाने पुछा.

" वैसे सब ठिक है … लेकिन एक मॉड्यूल सिस्टीमको बारबार क्रॅश कर रहा है … बग क्या है कुछ समझमें नही आ रहा है … " निकिताने जानकारी दी.

तभी चॅटींगपर फिरसे मेसेज आया –
‘ मेरा नाम अस्तित्व है … बाय द वे… आपकी पसंदीदा चिजें क्या है … आय मीन हॉबीज?’

ईशाने कॉम्पूटरकी तरफ देखा. और उस मेसेजकी तरफ ध्यान ना देते हूए चिंतायुक्त चेहरेसे निकिताकी तरफ देखने लगी.
" उस मॉड्यूलपर कौन काम कर रहा है ?" ईशाने पुछा.

" पंकज भदोरिया" निकिताने जानकारी दी.

" वही ना जो पिछले महिने जॉईन हुवा था ?" ईशाने पुछा.

" हां वही "

" उसके साथ कोई सिनीयर असोशिएट करो और सी दॅट द मॅटर इज रिझॉल्वड " ईशाने एक पलमें उस समस्याकी जड ढूंढते हुए उसपर उपायभी सुझाया था.

" यस मॅडम… आय मीन ईशा" निकिता बडे गर्वके साथ ईशाके तरफ देखते हूए बोली.

उसे अपने बॉस और दोस्त ईशाके मॅनेजमेंट स्किलसे हमेशा अभिमानीत महसूस करती थी.

ईशाने फिरसे अपना रुख अपने कॉम्प्यूटरकी तरफ किया.

निकिता वहांसे उठकर बाहर गई और ईशा कॉम्प्यूटरपर आए चॅटींग मेसेजको जवाब टाईप करने लगी.
‘ हॉबीज … हां .. पढना, तैरना … कभी कभी लिखना और ऑफ कोर्स चॅटींग’

ईशाने मेसेज टाईप कर ‘सेन्ड’ की दबाकर वह भेजा और चॅटींग विंडो मिनीमाईझ कर उसने मायक्रोसॉफ्ट एक्सेलकी दुसरी एक विंडो ओपन की. वह उस एक्सेल शिटमें लिखे हूए आंकडे पढते हूए गुमसी गई. शायद वह उसके कंपनीके किसी प्रोजेक्टके फायनांसिएल डिटेल्स थे.
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तभी फिरसे एक चॅटींग मेसेज आ गया.
‘ अरे वा .. क्या संयोग है … मेरी हॉबीजभी तुम्हारी हॉबीजसे मेल खाती है … एकदम हुबहु … एक कम ना एक जादा …’ उधरसे अस्तित्व का था.

‘ रिअली?’ उसने उपरोधसे भरे लहजेसे जवाब दिया.

फ्लर्टींगके इस पुराने नुस्केसे ईशा अच्छी तरहसे वाकिफ थी.

तभी चपरासी अंदर आया. उसने कुछ कागजाद दस्तखत करनेके लिए ईशाके सामने रखे. ईशाने उन सब कागजाद पर एक दौडती हुई नजर घुमाई और उनपर दस्तखत करने लगी.
‘ आय स्वीअर’ मॉनिटरपर अस्तित्व ने उधरसे भेजा हुवा मेसेज आ गया.
शायद उसे उसके शब्दोमें छुपा उपरोध समझमें आया था.

‘ मुझे तुम्हारा मेलींग ऍड्रेस मीलेगा ? ‘ उधरसे अस्तित्व का फिरसे मेसेज आ गया.

ईशाने खास चॅटींगपर मिलनेवाले अजनबी लोगोंको देनेके लिए बनाया मेल ऍड्रेस उसे भेज दिया.

ईशाने अब अपनी चेअर घुमाकर अपनी डायरी ढुंढी और अपने घडीकी तरफ देखते हूए वह कुर्सीसे उठ खडी हो गई.

अपनी डायरी लेकर वह जानेके लिए घुम गई तभी फिरसे कॉम्प्यूटरपर चॅटींगका बझर बज गया. उसने जाते जाते मुडकर मॉनिटरकी तरफ देखा.
मॉनिटरपर अस्तित्व का मेसेज था, ‘ ओके थॅंक यू… बाय … सी यू सम टाईम…’
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इंटरनेट कॅफेमें अस्तित्व एक कॉम्प्यूटरके सामने बैठकर कुछ कर रहा था. एक उसकेही उम्रके लडकेने, शायद उसका दोस्तही हो, विकासने पिछेसे आकर उसके दोनो कंधोपर अपने हाथ रख दिए और उसके कंधे हल्केसे दबाकर कहा, " हाय अस्तित्व … क्या कर रहे हो ?"

अपने धूनसे बाहर आते हूए अस्तित्व ने पिछे मुडकर देखा और फिरसे अपने काममें व्यस्त होते हूए बोला, " कुछ नही यार… एक लडकीको मेल भेजनेकी कोशीश कर रहा हूं "

" लडकीको? …ओ हो… तो मामला इश्क का है" विकास उसे चिढाते हूए बोला.

" अरे नही यार… बस सिर्फ दोस्त है …" अस्तित्व ने कहा.

" प्यारे … मानो या ना मानो…

जब कभी लडकीसे बात करना हो और लब्ज ना सुझे…और जब कभी लडकीको खत लिखना हो और शब्द ना सुझे…तो समझो मामला इश्क का है …" विकास उसे और चिढाते हूए बोला.

अस्तित्व कुछ ना बोलते हूए सिर्फ मुस्कुरा दिया.
" देखो देखो गाल कैसे लाल लाल हो रहे है …" विकासने कहा.

अस्तित्व फिरसे कुछ ना बोलते हूए सिर्फ मुस्कुरा दिया.
" जब कोई ना करे इन्कार …

या ना करे इकरार ….

तो समझो वह प्यार है "
विकास उसे छोडनेके लिए तैयार नही था.

लेकिन अब अस्तित्व चिढ गया, " तू यहांसे जाने वाले हो या मुझसे पिटने वाले हो? …"

" तुम जैसा समझ रहे हो ऐसा कुछ नही है … मै सिर्फ अपने पिएचडीके टॉपीक्स सर्च कर रहा हूं और बिच बिचमें बोरीयतसे बचनेके लिए मेल्स भेज रहा हूं बस्स…" अस्तित्व ने अपना चिढना काबूमें रखनेकी कोशीश करते हूए कहा.


" बस्स?" विकास.

" तुम अब जानेवाले हो? … या तुम्हारी इतने सारे लोगोंके सामने अपमानीत होनेकी इच्छा है ?" अस्तित्व फिरसे चिढकर बोला.

" ओके .. ओके… काम डाऊन… अच्छा तुम्हारे पिएचडीका टॉपीक क्या है ?" विकासने पुछा.

" इट्स सिक्रीट टॉपीक डीयर… आय कान्ट डिस्क्लोज टू ऐनीवन…" अस्तित्व ने कहा.

" नॉट टू मी आल्सो ?…" विकासने पुछा.

" यस नॉट टू यू आल्सो" अस्तित्व ने जोर देकर कहा.

" तुम्हारा अच्छा है … सिक्रसीके पिछे … इश्क का चक्करभी चल रहा है …" विकासने कहा.

" तूम वह कुछभी समझो …" अस्तित्व ने कहा.

" नही अब मै समझनेके भी आगे पहूंच चूका हूँ …" विकासने कहा.

" मतलब ?"

" मतलब … मुझे कुछ समझनेकी जरुरत नही बची है "

" मतलब ?"

" मतलब अब मुझे पक्का यकिन हो गया है " विकासने कहा.

अस्तित्व फिरसे चिढकर पिछे मुडा. तबतक विकास मुस्कुराते हूए उसकी तरफ देखते हूए वहांसे दरवाजेकी तरफ निकल चूका था.
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सुबहके लगभग दस बजे होंगे. ईशा जल्दी जल्दी अपने कॅबिनमें घुस गई. जब वह कॅबिनमें आगई थी तब निकिताकी कॅबिनकी चिजे ठिक लगाना चल रहा था. ईशाके अनुपस्थितीमें उसके कॅबिनकी पुरी जिम्मेदारी निकिताकी ही रहती थी.

ईशाके कॅबिनमें प्रवेश करतेही निकिताने अदबसे खडे रहते हूए उसे विश किया, " गुडमॉर्निंग…"

‘मॅडम’ उसकें मुंहमें आते आते रह गया. ईशा उसे कितनीभी दोस्तकी तरह लगती हो या उससे दोस्तकी तरह व्यवहार करती हो फिरभी निकिताको कमसे कम उसके कॅबिनमें उससे दोस्तकी तरह बरताव करना बडा कठिण जाता था, और वह भी कभी कभी बाकी लोगोंके सामने.

ईशाने अंदर आकर उसके पाससे गुजरते हूए उसके पिठपर थपथपाते हूए कहा, " हाय"

उसके पिछे पिछे उसका ड्रायव्हर उसकी सुटकेस लेकर अंदर आ गया. जैसेही ईशा अपने कुर्सीपर बैठ गई, ड्रायव्हरने सुटकेस उसके बगलमे रख दी और वह कॅबिनसे निकल गया.

निकिता ईशाके आमने सामने कुर्सीपर बैठ गई और उसने उसकी अपॉईंटमेंट्सकी डायरी खोलकर उसके सामने खिसकाई. ईशाने अपने कॉम्पूटरका स्विच ऑन किया और वह डायरीमें लिखी अपॉईंटमेट्स पढने लगी.

" सुबह आए बराबर मिटींग…" ईशा बुरासा मुंह बनाकर बोली, " अच्छा इस दोपहरके सेमीनारको मै नही जा पाऊंगी .. क्यों न शर्माजीं को भेज दे?…"

"ठिक है " निकिता उस अपॉईंटके सामने स्टार मार्क करते हूए बोली.

" क्या करें इन लोगोंको मुंहपर कुछ बोलभी नही सकते … और समयके अभावमें सेमीनार को जा भी नही सकते…. सचमुछ किसी कंपनीके हेडका काम कोई मामुली नही होता."

ईशा अपनी सूटकेस खोलकर उनमेंसे कुछ पेपर्स बाहर निकालने लगी. पेपर निकालते हूए एक पेपरकी तरफ देखकर, वह पेपर बगलमें निकालकर रखते हूए बोली, " अब यह देखो … इस कंपनीके टेंडरका काम अब तक पुरा नही हुवा … यह पेपर जरा उस पांडेकी तरफ भेज देना …"

" पांडे आज छुट्टीपर है " निकिताने कहा.

" लेकिन मेरे जानकारीके अनुसार उनकी छुट्टी तो कलतक ही थी. …" ईशा चिढकर बोली.

" हां …लेकिन अभी थोडी देर पहले उनका फोन आया था. … वे कामपर नही आ सकते यह बोलनेके लिए " निकिताने कहा.

" क्यों नही आ सकते ?" निकिताने गुस्सेसे पुछा.

" मैने पुछा तो उन्होने कुछ ना कहते हूएही फोन रख दिया.

" यह पांडे मतलब एक बेहद गैरजिम्मेदाराना आदमी …" ईशा चिढकर बोली.

और फिर जो ईशाकी बडबड शुरु होगई वह रुकनेका नाम नही लेही थी. निकिताको खुब पता था की जब ईशा ऐसी बडबड करने लगे तो क्या करना चाहिए. कुछ नही, चूपचाप बैठकर सिर्फ उसकी बडबड सुन लेना. बिचमें एकभी लब्ज नही बोलना. ईशाने ही उसे एक बार बताया था की जब अपना बॉस ऐसा बडबड करने लगे, तो उसकी वह बडबड मतलब एक तरह का स्ट्रेस बाहर निकालने का तरीका होता है. जब उसकी ऐसी बडबड चल रही होती है तब जो सेक्रेटरी उसे और कुछ बोलकर या और कुछ पुछकर उसकी और स्ट्रेस बढाती है उसे मोस्ट अनसक्सेसफुल सेक्रेटरी कहना चाहिए. और जो सेक्रेटरी चूपचाप अपने बॉसकी बकबक सुनती है और अपने बॉसको फिर से नॉर्मल होनेकी राह देखती है उसे मोस्ट सक्सेसफुल सेक्रेटरी कहना चाहिए.

ईशाकी बकबक अब बंद होकर वह काफी शांत हो गई थी. वह हाथमें कुछ पेपर्स और फाईल्स लेकर मिटींगको जानेके लिए अपने कुर्सीसे उठ खडी हो गई. निकिताभी उठ खडी होगई.

बगलमें चल रहे कॉम्प्यूटरके मॉनिटरकी तरफ देखते हूए वह निकितासे बोली, " तूम जरा मेरी मेल्स चेक कर लेना … मै मिटींगको हो आती हूं …" और ईशा अपने कॅबिनसे बाहर जाने लगी.

"पर्सनल मेल्सभी ?" निकिताने उसे छेडते हूए मुस्कुराकर मजाकमें कहा.

" यू नो… देअर इज नथींग पर्सनल… और जोभी है … तुम्हे सब पता है ही …" ईशाभी उसकी तरफ देखकर, मुस्कुराते हूए बोली और पलटकर जल्दी जल्दी मिटींगको जानेके लिए निकल पडी.


सुबह सुबह रास्तेपर बॅग हाथमें लेकर अस्तित्व की कही जानेकी गडबड चल रही थी.

पिछेसे दौडते हूए आकर उसके दोस्त विकासने उसे जोरसे आवाज दिया, " ए सुन गुरु… इतनी सुबह सुबह कहां जा रहा है"

अस्तित्व ने मुडकर देखा और उसे अनदेखा करते हूए फिरसे पहले जैसे जल्दी जल्दी सामने चलने लगा.

" किसी लडकी के साथ भाग तो नही जा रहे हो ?…" विकासने वह रुक नही रहा है और उसकी गडबड देखते हूए पुछा.

विकास अबभी उसके पिछेसे दौडते हूए उसके पास पहूंचनेकी कोशीश कर रहा था.

" क्या सरदर्द है … जरा दो दिन बाहर जा रहा हूं … उसका भी इतना ढींढोरा… " अस्तित्व बडबड करते हूए सामने चल रहा था.

" दो दिन बाहर जा रहा हूं … उतनाही तूमसे छूटकारा मिलेगा" अस्तित्व ने चलते हूए जोरसे विकासको ताना मारते हूए कहा.

" थोडी देर रुको तो सही … तुमसे एक अर्जंट बात पुछनी थी. …" विकासने कहा.

अस्तित्व रुक गया और विकास दौडते हूए आकर उसके पास पहूंच गया.

" बोलो … क्या पुछना है ? … जल्दी पुछो … नही तो उधर मेरी बस छूट जाएगी " अस्तित्व बुरासा मुंह बनाकर बोला.

" क्या हूवा फिर कल ?" विकासने पुछा.

" किस बातका ?" अस्तित्व ने प्रतिप्रश्न किया.

" वही उस मेलका? … कल मेल भेजी की नही ? " विकासने उसे छेडते हूए उसके गलेमें हाथ डालकर पुछा.

" अजीब बेवकुफ हो तूम … किस वक्त किस बातका महत्व है इसका कोई तुम्हे सरोकार नही होता… उधर मेरी बस लेट हो रही है और तुम्हे उस मेलकी पडी है …" अस्तित्व झल्लाते हूए उसका हाथ अपने कंधेसे झटकते हूए बोला.

अस्तित्व अब फिरसे तेजीसे आगे बढने लगा.

" क्या बात करते हो यार तूम ?… बससे कभीभी मेल महत्वपुर्ण होगी … अब मुझे बता.. हावडा मेल, राजधानी मेल…. ये सारी मेल बडी की वह तुम्हारी टपरी बस?" विकास अबभी उसके पिछे पिछे जाते हूए उसे छेडते हूए बोला.

अस्तित्व समझ चूका था की अब विकाससे बात करनेमें कोई मतलब नही था. वह अपने बडे बडे कदम बढाते हूए आगे चलने लगा. और विकासभी बकबक करते हूए और उसे छेडते हूए उसके साथ साथ चलने लगा.
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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