शिद्द्त - सफ़र प्यार का

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rajsharma
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शिद्द्त - सफ़र प्यार का

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शिद्द्त - सफ़र प्यार का

कहते हैं कि अगर आप किसी चीज़ को या इंसान को बड़ी शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने मे जुट जाती है। ये कहानी उसी शिद्दत की कहानी है जिसमें कहानी का नायक राजू अपने प्यार को इतनी शिद्दत से चाहता है कि भगवान को भी उसके सामने हारना पड़ता है। इससे ज्यादा परिचय इस कहानी के बारे मे मैं नही दे पाऊंगा क्योंकि अगर इससे ज्यादा परिचय दिया तो इसका मूल विषय उजागर हो जाएगा और आप इसका आनंद नही ले पाएंगे। अब आपका ज्यादा समय न लेते हुए कहानी पर आता हूँ।


बात 1995 की राजस्थान के छोटे से कस्बे बांधवगढ़ की है जहां राजू अपनी माँ के साथ रहता था,राजू पेशे से एक टूरिस्ट गाइड था,पास ही मे जोधपुर शहर था जहां वो गाइड का काम करता था,स्वभाव से वो थोड़ा गुस्सैल था और नास्तिक भी वो भगवान को नही मानता था और उसके होने पर उसको विश्वास नही था । भगवान को न मानने की एक वजह ये भी थी कि वो उसकी माँ की नाज़ायज़ संतान था और हमेशा इस बात का दोषी वो भगवान को मानता था,उसने अपनी माँ से बहुत बार ये जानने की कोशिश की की उसके पिता कौन है पर हर बार माँ कोई न कोई बहाना बना कर बात टाल देती थी, राजू बहुत छोटी उम्र मैं ही अपनी घर की जिम्मेदारियां संभाल रहा था अभी उम्र ही क्या थी उसकी,सिर्फ 18 साल का था राजू,इतनी कम उम्र मे काम करना और घर की जिम्मेदारियां संभालना उसकी मजबूरी बन गया था क्योंकि उसकी माँ की तबियत कुछ ठीक नही रहती थी।

इतनी सारी परेशानियों से झुझते झुझते वो इतना कठोर हो गया था कि उसका कठोरपन उसकी आदत मे शामिल हो गया था और वो चिड़चिड़ा सा होने लगा था,उसके जीवन का लक्ष्य सिर्फ ये जानना था कि उसके पिता कौन है और उन्होंने उसकी माँ को क्यों छोड़ा..? ये सवाल हमेशा उसे कचोटता रहता था। समय बीतता गया और फिर एक दिन मुंबई का एक स्कूल का ग्रुप जोधपुर घूमने आया,कंपनी की तरफ से राजू गाइड को उस ग्रुप को घुमाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। राजू ने ग्रुप को घुमाने के लिए हामी भर दी पर हर बार की तरह इस बार भी उसकी सिर्फ एक ही शर्त रहती थी और इस शर्त के बारे मे उसकी कंपनी बखूबी जानती थी कि वो अपने यात्रियों को हर जगह घुमाएगा,किले,महल पर किसी मंदिर की सीढ़ियां नही चढ़ेगा। उसकी ये शर्त थी तो अजीब पर वो अपना काम इतने अच्छे से करता था कि उसकी ये शर्त मान ली जाती थी।

अब वो दिन आ ही गया जिस दिन राजू को उस ग्रुप से मिलकर उसे घुमाना था,वो जनवरी का महीना था,राजस्थान की ठंड अपने चरम पर थी,पारा 5° पे आ गया था। राजू अपने दिए गए समय पर होटल पहुँच जाता है अपने ग्रुप को लेने,10 लड़के लड़कियों का ये मुम्बई वाला ग्रुप था जो कुछ दिनों के लिए राजस्थान आया हुआ था,जोधपुर का उनका प्रोग्राम 5 दिनों का था। धीरे धीरे स्कूल टीचर्स और उनके स्टूडेंट्स आने शुरू हुए। सब इकट्ठा कर के ले जाना था राजू को, धीरेधीरे सब आ गए और चलने को तैयार हो गए,इतने मे उस ग्रुप मे से किसी ने बोला

अरे रुको रुको...रानी नही आई अभी,अगर उसे छोड़कर गए तो सारा जोधपुर सिर पर उठा लेगी,आखिर वो स्कूल के ट्रस्टी की लड़की है।

ये सुनकर स्कूल का स्टाफ भी परेशान हो गया जो उस ग्रुप के साथ आया हुआ था।

ये सब देखकर राजू के गुस्से का पारा भी चढ़ने लगा था क्योंकि वो अपना काम ईमानदारी से कर रहा था,पर आखिर वो नौकरी कर रहा था तो अपने गुस्से को पी गया और चुपचाप खड़ा रहा और वो भी देखना चाहता था कि आखिर ये बिगड़ी शहजादी है कौन....??

तभी उसके आने की आहट सुनाई देती है और सबकी निगाहें होटल से नीचे आती हुई सीढ़ियों पर पड़ती है।।

सबका उस एक लड़की के लिए इस तरह इंतज़ार करना राजू को भी समझ नही आ रहा था,और खासकर उसके इंतज़ार मे लड़के पलकें बिछाएं बैठे थे।
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: शिद्द्त - सफ़र प्यार का

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भाग 2


जैसे ही वो लड़की रानी सीढ़ियों से नीचे उतरी तो जैसे लड़कों का तो बुरा हाल हो गया,वो इसीलिए की वो लड़की थी ही इतनी बला की खूबसूरत ,उसकी बड़ी बड़ी आंखें,रेशम जैसे बाल,गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठ,और दूध जैसा रंग,मानो जिसे आसमान से कोई अप्सरा उतर रही हो । उसको देखकर कोई नही कह सकता था कि उसकी उम्र अभी मात्र 15 वर्ष थी। इतनी कम उम्र मे इतनी खूबसूरत कोई आम इंसान नही हो सकती। रानी आम इंसान नही थी ,वो स्कूल के ट्रस्टी की बेटी थी । Mr. बलदेव सिंघानिया,उसकी एकलौती औलाद और बलदेव सिंघानिया की पूरी प्रॉपर्टी की अकेली वारिस ।
एकलौती होने के कारण वो थोड़ी नखचिड़ी और बदतमीज़ तो थी ही,गुस्सा उसकी नाक पर टिका रहता था।
जैसे ही राजू की नज़र उस पर पढ़ी तो एक पल के लिए वो भी उसके नशे मे खो गया,पर अगले ही पल किसी की आवाज़ से उसका नशा टूटा और वो फिर अपने होश मे आया ।


किसी टीचर ने राजू को आवाज़ लगाई थी,अरे राजू गाइड अगर आपकी मेहरबानी होगी तो हम आज कुछ घूम लेंगे।

जी मैडम - राजू ने उनकी बात का उत्तर देते हुए जवाब दिया ।

स्कूल की बस आयी और सब उसमे बैठ गए,और बस जोधपुर के किलों की तरफ रास्ते पे निकल पड़ी ।राजू आगे ड्राइवर के पास बैठा और पीछे टीचर्स और स्टूडेंट्स बैठे थे,रानी बस की पहली सीट पर बैठी थी,और उसकी नज़र अचानक राजू पर पड़ी और वो राजू से बोली - ए गाइड,

राजू ने उसकी आवाज़ सुन तो ली थी पर उसे सुन के भी अनदेखा कर दिया था और रानी की बात का जवाब नही दिया और न ही पलटकर उसकी तरफ देखा।

अपने आप को इस तरफ इग्नोर होता देख रानी का पारा चढ़ गया और उसने ज़ोर से आवाज़ लगाई,ए गाइड,सुनाई नही देता क्या...? या फिर बेहरा हो गया है ।

इस पर राजू पलटा और उसने जवाब दिया - मैडम पहली बात तो ये की मेरी माँ ने मेरा एक खूबसूरत सा नाम रखा है राजू,और जब तकआप मुझे अपने नाम से नही बुलाएंगी तो मैं आपकी बात कैसे सुनूंगा..?

अपनी बात का ये जवाब रानी ने नही सोचा था,उसको ये उम्मीद नही थी कि कोई इतना छोटा सा गाइड उससे इस तरह से बात करेगा। उसका गुस्सा सातवे आसमान पे पहुँच गया था,उसने तुरंत बस रोकने को कहा और हंगामा मचा दिया। टीचर्स और स्टूडेंट रानी को समझाने लगे कि माफ कर दो उसको,छोटा आदमी है अभी तुम्हें जानता नही है कि तुम कौन हो..? तुम उसे आवाज़ क्यों लगा रही थी,क्या चाहिए तुम्हें हमे बताओ...? टीचर्स ने रानी को समझाते हुए बोला


मुझे कुछ नही चाहिए था,मैं सिर्फ ये जानना चाहती थी कि आज हम कहाँ कहाँ घूमेंगे,यही पूछने के लिए इसको आवाज़ लगाई थी,और इसकी हिम्मत देखो की इसने मुझे पलटकर जवाब दिया। क्या औकात है इसकी मेरे सामने । - रानी ने टीचर की बात का जवाब देते हुए कहा।

रानी ने बस रुकवा दी,और राजू की कंपनी मे उसके बॉस को बुलवा लिया। राजू के बॉस वहां आये और उन्होंने सारा किस्सा सुना। रानी चाहती थी कि राजू उससे माफी मांगे,पर राजू भी अड़ियल था,उसने माफी मांगने से मना कर दिया क्योंकि उसकी कोई गलती नही थी। रानी ने गाइड बदलने के लिए उसके बॉस से कहा,पर बॉस ने ये कहते हुए असमर्थता जताई कि अभी सीजन चल रहा है। हमारे पास गाइड की कमी है और एक दम से दूसरा गाइड arrange करने मे टाइम लग सकता है और आपके पास घूमने के लिए टाइम भी कम है।
तभी वहां पर एंट्री होती है रिया की,रिया रानी की बेस्ट फ्रेंड रहती है। रानी जितनी गुस्सैल,रिया उतनी ही शांत,और रानी के गुस्से को संभालने मे एक्सपर्ट। जब टीचर्स के हाथ से बात फिसलते देखी रिया ने तो उसने मोर्चा संभालने की सोची ।

रिया वहाँ आयी और उसने अपने तरीके से रानी को समझाया कि देख तुझे उससे बदला लेना है ना,तो बिल्कुल ले लेना पर अभी नही। अभी हम यहां घूमने आए हैं और इसके सिवा हमारे पास दूसरा कोई गाइड नही है। पूरी ट्रिप हो जाने दे हम इसे बाद मे भी सबक सिखा सकते हैँ।

रिया की बातें रानी को समझ आ गयी थी।मामला शांत हो गया और रानी बस मे जाकर बैठी और उसने बस चलाने को कहा। राजू भी बस मे आकर बैठ गया और जोधपुर के किले की तरफ चल पड़ी बस।

रानी ने अपने मन मे राजू के लिए गुस्सा पाल रखा था,ये गुस्सा बेमतलब के घमण्ड का था क्योंकि रानी एक बड़े घर की लड़की थी,माँ नही होने की वजह से थोड़ी बिगड़ गयी थी। अपने पिता की आंख का तारा थी रानी और बहुत ज़िद्दी भी जो उसे चाहिए वो हर कीमत पे उस पा कर रहती थी।

दिन निकल गया,राजू ने सबको किला घुमा दिया था और होटल छोड़ दिया था,पर रानी के मन मे राजू को सबक सिखाने का प्लान शुरू हो गया था,उसने रिया को अपने रूम मे बुलाया और अपने प्लान के बारे मे बताया।
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Re: शिद्द्त - सफ़र प्यार का

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भाग 3


रानी ने राजू को सबक सिखाने के लिए जो प्लान बनाया था,वो जब रिया ने सुना तब रिया ने रानी से कहा -

नही रानी,हम ये नही कर सकते,इससे राजू का दिल टूट सकता है,और फिर उसकी गलती ही क्या है । सिर्फ ये की उसने तुम्हारी बात नही मानी । मेरी बात मानो,भूल जाओ जो हुआ,अब आगे बढ़ो,कब तक पुरानी बातों को लेकर बैठी रहोगी,राजू अच्छा लड़का है और अच्छा गाइड भी है। अब इतनी सी गलती के लिए तुम उसका दिल तोड़ोगी क्या..?

ये बात समझाते हुए रिया रानी को समझाने लगी,रिया बहुत ही सुलझी हुई लड़की थी,और रिया के पापा रानी के पापा के मैनेजर थे,दोनों बचपन से साथ खेली और बड़ी हुई,रिया रानी से ज्यादा समझदार थी,और हर बार उसे कुछ गलत करने से रोकती भी थी।

पर रानी मानने को तैयार नही थी,उसकी ज़िद थी कि या तो राजू उससे माफ़ी मांगेगा या फिर वो उसे सबक सिखाएगी,रिया के लाख समझाने पर रानी नही समझी तो हारकर रिया ने उसकी बात मान ली,पर रिया ने रानी से कहा कि उसकी एक शर्त है।

रानी के पूछने पर उसने बताया की रिया सिर्फ एक शर्त पर उसका साथ देगी की राजू को तुम ज्यादा परेशान नही करोगी।

रानी भी इस बात को मान गयी ।

अगले दिन सुबह राजू सबको लेने होटल आया,रानी भी उसी का इंतज़ार कर रही थी। रानी और राजू की नजरें मिली पर राजू की नज़रों मे एक यात्री के लिए सम्मान था तो रानी की नज़रों मे राजू के लिए गुस्सा साफ नजर आ रहा था । जनवरी की ठंड और खासकर राजस्थान की ठंड ने माहौल बहुत ठंडा बना दिया था ।

राजू ने आकर सभी को चलने को कहा,और बोला कि आज हम मेहरानगढ़ के किले मे जाएंगे जो कि ज़मीन से 400 फ़ीट की ऊंचाई पर स्थित है । सब वहाँ जाने के लिए बस मे बैठ गए। रानी भी अपने नियत स्थान पर बैठ गयी।

राजू भी अपनी जगह पर बैठ गया,आज ठंड ज्यादा होने की वजह से बस के सारे शीशे चढ़े हुए थे पर रानी जहां बैठी उसने अपने पास काशीशा थोड़ा खोल रखा था जिससे थोड़ी हवा अंदर आ रही थी और रानी के बालों को उड़ा रही थी। जिससे उसकी खूबसूरती मे चार चांद लग गए थे ।

अचानक राजू की नज़र रानी पे पड़ी और वहीँ ठहर गयी। नारी का ऐसा सुंदर रूप शायद राजू ने आज तक नही देखा था। राजू लगातार रानी को देख रहा था,और ये सारा नज़ारा पास बैठी रिया देख रही थी।

अचानक रानी की नज़र राजू पर पड़ी और उसने भी उसे देखा। राजू ने जब देखा कि रानी उसे देख रही है तो उसने अपनी नज़रें इधर उधर घुमा ली,ताकि रानी को ये नही लगे कि वो उसे देख रहा है। पर थोड़ी थोड़ी देर मे राजू दबी नज़रों से रानी को देख लिया करता था।

अबकी बार जब राजू ने रानी को देखा तो उसकी नज़रें रानी से मिल गयी पर इस बार उसने अपनी नज़रें रानी पर से हटाई नहीं क्योंकि पता नही क्यों रानी भी राजू को मदहोश नज़रों से देख रहीं थी। उसकी नशीली आंखों मे जैसे राजू खो सा गया ।

यही सब चलता रहा और बस मेहरानगढ़ फोर्ट पर आ गयी।
राजू ने सबको उतरने को कहा और फिर स्कूल का सारा स्टाफ बस से नीचे उतरा और राजू उन्हें किले के बारे मे बताने लग गया । रह रह कर राजू की नजरें रानी पे आकर टिक जाती थी,क्योंकि रानी की मदहोश आंखे राजू को भी अलग नज़र से देख रही थी। और रानी हमेशा जब भी राजू सबको इकट्ठा करके किले के बारे मे बताता था तो उसके सामने आकर खड़ी हो जाती और बस उसको घूरकर देखती रहती।

राजू को एक ही दिन मे रानी का बदला हुआ व्यवहार समझ नही आरहा था पर वो रानी को देखे बिना भी नही रह पा रहा था। ये सिर्फ रानी के प्रति राजू का झुकाव था या कुछ और उसकी समझ से परे था। राजू धीरे धीरे रानी की तरफ आकर्षित होने लगा था ।

एक बार राजू किले की एक दीवार के पास खड़ा हुआ था कि तभी रिया वहां आती है और राजू से कहती है कि उसे रानी ने वहाँ उस जगह बुलाया है। रिया राजू को किले के पीछे की तरफ इशारा करते हुए कहती है।

राजू रिया से कहता है - अगर रानी जी को मुझसे बात करनी है तो यहाँ आकर कर ले,उन्हें जो भी पूछना हो किले के बारे मे,मैं बता दूंगा,फिर मुझे अलग से क्यों बुलाया है..?

राजू ने आश्चर्य भरे शब्दों मे पूछा

तो रिया ने जवाब मे कहा- मुझे नही पता,तुम खुद ही जाकर पूछ लो।

ऐसा कहकर रिया वहाँ से चली गयी,

राजू ने भी हाँ में सर हिलाते हुए कहा,ठीक है मैं आता हूँ ।
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Re: शिद्द्त - सफ़र प्यार का

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भाग 5




और तभी महल के सन्नाटे को चीरती हुई रानी की चीखें सभी के कानों मे पहुँच जाती है । सभी उस चीख की दिशा मे ऊपर की तरफ दौड़ते हैं । रिया भी चीख सुनके तुरंत वहां पहुचंती है । राजू भी तुरंत दौड़ता हुआ रानी के पास पहुँचता है । जब वहाँ पहुँचता है तो देखता है कि रानी किले की दीवार पे लटक रही है अपने हाथों से,और ज़ोर ज़ोर से चिल्ला रही है बचाओ ....बचाओ...।।

ये देख सभी के होश उड़ गए और सभी परेशान होने लगे,किसी को कुछ समझ नही आ रहा था कि क्या किया जाए । तभी राजू ने तुरंतवहाँ के कर्मचारियों की मदद से एक रस्सी का इंतज़ाम किया और रानी को बचाने कूद पड़ा । वहां के स्टाफ ने भी इस काम मे साथ दिया और उन दोनों को बचाने के लिए रस्सी ऊपर खिंचने लगे । राजू रानी के पास रस्सी के सहारे पहुँचा क्योंकि रानी जब दीवार से फिसली तो कुछ नीचे की तरफ आकर लटक गई थी,राजू भी रस्सी के सहारे थोड़ा नीचे आया और रानी के पास आकर उसे पकड़ लिया और उससे कहा - रानी जी आप मेरे कंधो पर आ जाइये और ज़ोर से पकड़ लीजिये,घबराइए मत कुछ नही होगा,मैं हूँ ना,

राजू के ये 3 शब्द जैसे रानी पर जादू कर गए,उसके कानों मे जैसे ये 3 शब्द ही गूंज रहे थे "मैं हूँ ना",और रानी को ये भी पता नही था कि अभी वो जीवन और मृत्यु के बीच लटकी हुई है,वो लगातार राजू को देख रही थी कि अचानक बोल पड़ा - मैडम...मैडम...कहाँ खो गयी आप..? जल्दी कीजिये रस्सी दो लोगों का वज़न ज्यादा देर नही उठा पाएगी । अचानक जैसे रानी की तंत्रा टूटी और वो राजू का कहना मानती हुई उसके कंधे पर आ गयी । अब राजू ने ऊपर खड़े कर्मचारियों को रस्सी ऊपर खिंचने के निर्देश दिए,और वो रस्सी खिंचने लगे । इस सारे वाकये के दौरान रानी लगातार राजू को देख रही थी जैसे राजू का जादू रानी पे चल गया था,जैसे उसने अपनी जान की परवाह नही करते हुए रानी की जान बचाई जबकि ये काम उसका नही था । ये सब सोचकर रानी खुश हो रही थी । रानी को शायद अब ये प्यार का नाटक करने की ज़रूरत नही पड़ेगी क्योंकि अब उसके प्यार का नाटक राजू के प्रति सच मे प्यार मे बदल गया था ।

धीरे धीरे दोनो रस्सी के सहारे ऊपर आते हैं और राजू पहले रानी को ऊपर खिंचने के लिए बोलता है । रानी को सभी ऊपर खींच लेते है । रिया भी ये देख परेशान हो जाती है और रानी जैसे ही ऊपर आती हैवो उसके गले लगकर ज़ोर से रोने लगती है।जैसे मानो रानी मौत के मुह से बचकर आयी हो,उसको खोने का डर रिया के चेहरे पर साफ दिख रहा था ,पर रानी को सही सलामत देख रिया की सांस मे सांस आ जाती है,पर अभी भी उसके चेहरे के भाव बदले नही थे ।

रानी के ऊपर आने के बाद राजू अभी भी रस्सी पे लटका हुआ था,पर जैसे ही वो ऊपर आने लगता है वैसे ही रस्सी कमज़ोर होने के कारण टूट जाती है ओर तभी...

राजू उस दीवार से नीचे गिर जाता है,ये देख सभी ज़ोर से चिल्लाने लगते हैं। शाम होते होते रात का अंधेरा गहराने लगता है। कुछ नीचे नही दिखाई देता और राजू को पुकारने पर उसकी कोई आवाज़ भी नही आती है ।

मेहरानगढ़ किला पहाड़ी पर स्थित था जैसे कि आमतौर पर हर किला होता है। और किले की बड़ी दीवार के नीचे पहाड़ी थी,और फिर नीचे जोधपुर शहर ।

सभी ज़ोर ज़ोर से राजू को आवाज़ लगा रहे थे कि कहीं से कोई आवाज़ आये और राजू को बचाया जा सके,रानी और रिया भी रोने लगी थी । रानी को इस बात का पछतावा था कि जिस इंसान को उसने सबक सिखाने के लिए प्यार का नाटक किया था उस इंसान ने ही उसकी जान बचाई थी । रानी अंदर ही अंदर आत्मग्लानि से भर गई थी । रिया को भी बुरा लग रहा था । सब राजू की बहादुरी को दाद दे रहे थे और कोई कह रहा था कि राजू अब नही रहा,वो हमेशा के लिए इस दुनिया को अलविदा कह गया है।
तभी रानी ने सबका मुँह बन्द करने के लिए ज़ोर से उठ कर कहा - कुछ नही हुआ है राजू को,नही मरा है वो,वो ज़रूर आएगा । रानी के इस बर्ताव की उम्मीद किसी को नही थी और रानी का ये रूप भी पहले किसी ने नही देखा था ।

उसके इन शब्दों मे जैसे विश्वास था कि राजू को कुछ नही हुआ है वो अभी ज़िंदा है। ये देखकर रिया भी चोंक गयी कि रानी को अचानक राजू की इतनी फिक्र क्यों होने लगी । इस हादसे की जानकारी जब स्थानीय पुलिस को लगी तो उन्होंने भी राजू की तलाश शुरू कर दी,और स्कूल स्टाफ को किले से होटल जाने को कहा । पर रानी ने जाने से साफ मना कर दिया और कहा जब तक राजू का पता नही लग जाता मै यहां से नही जाऊंगी। रानी का ऐसा व्यवहार देखकर सभी चोंक पड़े थे कि आखिर रानी को हो क्या गया है,जो लड़की राजू से कल लड़ रही थी और उसके माफी न मांगने पर उसे भला बुरा कह रही थी आज उसके लिए इतनी फिक्रमंद क्यों है।

रिया को भी रानी का ये व्यवहार समझ नही आ रहा था,तभी टीचर्स ने रिया को भेजा रानी को समझाने के लिए । रिया रानी के पास आकर बोलती है - रानी,तू ये क्या कर रही है,क्या बोल रही है तू..? तुझे पता भी है तू क्या कर रही है..?
क्या हो गया है तुझे...? तू ऐसी तो नही थी । देख यहां तमाशा मत कर ,हम होटल चलकर बात करते हैं। रिया रुंधे गले से रानी को समझा रही थी । रिया भी दुखी थी इस हादसे से ।

तभी रानी रिया से बोल पड़ती है- कैसे नही करूँ उसकी फिक्र,उस इंसान ने मेरी जान बचाने के लिए खुद की जान दाव पर लगा दी क्योंकि वो मुझसे प्यार करता था,और अगर उसकी जान चली गयी तोमैं अपने आप को कभी माफ नही कर पाऊंगी। क्योंकि प्यार का नाटक नही कर रही थी मैं,सच मे प्यार करती थी उससे। मैंने तुझसे झूठ बोला था ।

I LOVE RAJU....


ये सुनकर रिया को जैसे झटका लगता है ।
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