जिस्म की प्यास compleet

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rajsharma
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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »

lalaora wrote:Pls update dete rahe
zainu98 wrote:nice store age ke parts jalde bhejo raj bhai



dosto aapke coment aane se ab kahaaniyan post karne me achcha lagane laga hai . bas aap yun hi
apne coment dete rahe . main bhi jaldi jaldi update deta rahunga . ek baar fir aapka dhanywaaad
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »


जिस्म की प्यास--27
गतान्क से आगे……………………………………
नारायण चलता हुआ रश्मि के पास आया और रश्मि ने उसे कॅमरा पकड़ाया... मोती लाल हस्ता हुआ टेबल के नीचे बैठ गया और रश्मि ने रीत को वापस अपनी शर्ट पहेन्ने को कहा और फिर वो कॅबिन के दरवाज़े के पास चली गयी....

नारायण ने कॅमरा पॉज़ से हटाया और रीत कॅबिन के दरवाज़े से चलती हुई आई और इधर उधर देखने लगी....
"सर.... सर" रीत ने अपने मुँह को खोलते हुए दो बारी प्रिंसिपल को आवाज़ दी मगर जवाब कोई नही आया...

रीत प्रिंसिपल का वेट करने लगी तो धक कर कुर्सी पे बैठ गयी.... उसकी नज़र टेबल पे पड़े कुच्छ पेपर्स पे पड़ी जिसको
देख कर उसने कहा 'ओह्ह तो ये है मेरे सारे एग्ज़ॅम पेपर्स... सर तो है नही तो मैं इन्हे चुराके ही भाग जाती हूँ
तो किसिको पता नही चलेगा.... उसने पेपर्स को उठाया और शर्ट के अंदर डालके वहाँ से जाने लगी...
तभी वहाँ से आवाज़ आई "हॅंड्ज़ अप"

तो मोती लाल टेबल के नीचे से उछलता हुआ बाहर आया "ज़्यादा स्यानी बन रही हो... अभी सर को आने दो तुम्हारी खैर नहीं लड़की..."

"तुम कौन हो" रीत ने पूछा

"हम पीयान मोती लाल है" मोटी लाल ने गर्व से कहा... रश्मि नारायण के साथ खड़े होकर ये सब सुन रही थी और इस डाइलॉग पे उसकी हँसी छूट गयी...

रीत ने घबरा रश्मि को देखा और उसके गुस्से वाले चेहरे को देख कर वो मोतीलाल को देख कर शरारती अंदाज़ में बोली
"ओह्ह तो आप मोती लाल है... वो तो मैं बस ऐसी ही पेपर्स देख रही थी"

मोती लाल टेबल से चलता हुआ रीत के पास खड़ा हो गया और बोला "पेपर निकाल और टेबल पे रख"

रीत ने फिरसे अपनी शर्ट के बटन्स खोले और मोतीलाल का गला सूख गया.... दो बटन्स खोलने के बाद रीत ने पूछा "और देखोगे" तो मोती लाल एक प्यासे की तरह पानी देख कर बोला "हां हां"

रीत ने अपनी शर्ट के सारे बटन्स खोलदीए और मोती लाल को वो पेपर पढ़ाए... मोतीलाल उन्हे पकड़ के सूँगने लगा...
रीत ने मोती लाल के सीधे हाथ को पकड़ा और अपने एक स्तन पे रक्ख दिया जो कि सफेद ब्रा से ढका हुआ था...
एक स्कूल की लड़की के स्तन को दबाकर मोती लाल को मुँह से लार टपकने लगी और खुश होकर उसने दूसरा हाथ भी बढ़ाया और रीत के मम्मो को दबाने लगा.... रीत अपने मुँह से आहह ओह्ह की आवाज़ें निकालने लगी जैसे कि कोई भी चुदाई की मूवी में होती है.... मोती लाल अब बेकाबू हो चुका था और उसने रीत को अपनी बाँहों में भर लिया और उसकी शर्ट को उतारकर उसके उपरी जिस्म को चूमने और कभी कबार काटने लगा....

फिर उसके उठाकर टेबल पे बिठाया और उसकी ब्रा को चीर दिया... रीत के मम्मे मोती लाल की आँखों में घूमने लगे और
उसकी चुचियो को वो चूसने लगा... एक स्तन पे उसकी ज़ुबान चल रही थी तो दूसरे पे उसके हाथ...
फिर उसने रीत की स्कर्ट को उपर उठा दिया और उसकी सफेद पैंटी को नीचे कर दिया... उसकी चूत को देख कर पीयान मोती लाल बोला
'छोरि एक बाल भी नही है तेरी चूत पे... वाह देख कर मज़ा आ गया.. अब उसे कुत्ते की तरह चाटूँगा मैं"
रीत को टेबल पे लिटाकर वो अपनी ज़ुबान रीत की चूत पे लेगया और चाटने लगा..

नारायण को विश्वास नही हो रहा था रीत की चूत को देख कर जोकि पूरी तरह से गीली हो चुकी थी....
मगर जो हाल रीत की चूत का हो रहा था वो उसके लंड का भी था जो की आहिस्ते आहिस्ते खड़ा होने लगा था...
मोती रीत को चूत को चाटने में लगा और रीत मज़े में सिसकियाँ ले रही थी... कुच्छ देर बाद मोती बोला
"चल छोरि अब मुझे खुश कर..." ये कहकर उसने अपनी शर्ट को उतारा और उसका काला जपतला बदन सामने आया और
अपनी पॅंट को उतारकर उसने अपना लंड रीत के सामने रख दिया.... नारायण मोती लाल के लंड को देख कर दंग रह गया
क्यूंकी वो उसके लंड से काफ़ी शक्तिशाली लग रहा था... रीत टेबल से उतरी और उस महा लंड को चूमते हुए चूसने लगी.... मोती का लंड बालो से ढका हुआ था जिसके अंदर से अजीब सी बदबू कमरे में फेल गयी थी पर शायद अब तक
रीत उस बदबू में खुश्बू ढूँढ चुकी थी.... मोती लाल ने एक पल के लिए नारायण को देखा और हँसने लगा...
नारायण की पॅंट में से उसका लंड कूदने को आ चुका था मगर वो ऐसा कर नही सकता था...

अपना लंड चुस्वकार मोती लाल बोला "चल अब मैं तुझे खुश करता हूँ... आजा टेबल पे अपनी टाँगें चौड़ी करके बैठ जा... रीत मोती लाल से मदद लेती हुई टेबल पे बैठी और अपनी टाँगें चौड़ी करली... उसकी चूत का पानी टेबल से
बहता हुआ ज़मीन पे टपक रहा था... मोती लाल आगे बढ़ा और अपना लंड उसकी चूत में डालकर ठोकने लगा....
नारायण ने हाथ बढ़ा कर अपने लंड को ठीक करा और चलता हुआ रीत के पास जाने लगा ताकि वो उसको रेकॉर्ड कर सके
लेकिन रश्मि ने उसे वही रोक दिया....मोती लाल की पीठ की वजह से वो कुच्छ रेकॉर्ड नही कर पा रहा था और वो घबरा
गया था कि कहीं इस बात का फ़ायदा रश्मि ना उठा ले मगर वो चौक गया जब उसके साथ में खड़ी रश्मि के हाथ ने उसके
लंड को च्छुआ और उसकी पॅंट की ज़िप को खोलकर उस जागे हुए लंड को आज़ाद कर दिया...

नारायण ने रश्मि को देखका जोकि नारायण की तरफ देख नही रही थी मगर फिर भी उसका हाथ खुशी खुशी नारायण के
लंड पे चल रहा था... इतने समय के बाद ये खुशी महसूस करके नारायण अपने सारे गम भूल गया था....
जहा मोती लाल और रीत चुदाई की आवाज़ पूरे कमरे में घूम रही थी वही नारायण चुप चाप खड़ा रश्मि के हाथो
मज़े ले रहा था.... चोदता चोद्ता मोती लाल ने अपना सारा वीर्य रश्मि के चेहरे पे छिरक दिया और नारायण ने सारा
ज़मीन पे डाल दिया... कुच्छ वीर्य रश्मि के हाथो पे रह गया जिसको उसने ख़ुसी खुशी चाट लिया...
मोती लाल खुश होता हुआ अपने कपड़े पहनने लगा और जाते जाते रश्मि ने नारायण को कहा "कमरे में पहले से ही 4 कमेरे लगा रखे है हमने तुम्हे तो बस ऐसी ही खड़ा करवा रखा था हम ने..."

रीत भी अपने कपड़े पेहेन्के वहाँ से चली गयी.. मगर नारायण को यकीन नही हुआ कि इन लोगो ने मेरे कमरे में
हिडन कॅमरा लगा रखे है और मेरा इस तरह इस्तेमाल भी कर लिया... मगर एक ओर नारायण को ये भी समझ नही आया कि इन बातो में रश्मि ने उसके लंड को क्यूँ खुश करा..??
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Re: जिस्म की प्यास

Post by rajsharma »


उधर दिल्ली में चेतन अपनी मा को घर में चोद चोद कर थोड़ा बोर होने लगा था मगर शन्नो दिन रात
अपने बेटे से चुद्ने के लिए तैयार रहती थी... नज़ाने ऐसा क्या जादू कर रखा था चेतन के लंड ने अपनी मा की चूत पर.... चेतन का मन किसी दूसरी औरत को चोद्ने को कर रहा था.... उसने अपनी मासी आकांक्षा को कॉल भी करने की
कोशिश करी मगर जब उसने उसे कॉल करा तो आकांक्षा ने उसका फोन नही उठाया और बादमें मैसेज करके कह दिया कि
वो अब देहरादून में है और उसे बात नहीं करना चाहती... आज की रात भी उसकी मा की चूत में खुजली हो
रही थी नज़ाने कितनी बारी उसने चेतन को ललचाने की कोशिश करी मगर शन्नो नाक़ामयाब रही.....

अगली सुबह घंटी बजते ही शन्नो की आँख खुली.... अपने बिस्तर से वो आँख मलते वे उठी उसका बेटा उसी बिस्तर के दूसरे
कोने में सोया पड़ा था... वैसे हमेशा चेतन शन्नो से चिपक के सोते था मगर आज ऐसा नहीं हुआ था...
वो देख कर शन्नो को एहसास हुआ कि कल की रात कितनी खाली थी... खैर बिस्तर से उठ कर उसने देखा कि उसने अभी भी वोई
बड़ी टी-शर्ट पहेन रखी थी जो चेतन ने उसको पहले पहनने को दी थी.... कल रात वो पेहेन्कर उसने चेतन को
अपनी तरफ आकर्षित करने की कोशिश करी थी मगर काम नहीं बना था.... उसे बाकी कपड़े ज़मीन पे ही पड़े थे और
जब उसने उन्हे उठाया तब उसे एक गंदा आइडिया आया और उसने अपने कपड़े वही ज़मीन पे ही छोड़ दिए....
उसी लंबी टी-शर्ट में जोकि उसकी जाँघो को आधा भी मुश्किल से ढक पाती थी उसमें धीमे धीमे चलके वो
दरवाज़ा खोलने के लिए बढ़ी... शन्नो को याद था कि चेतन उसको ये करते हुए देखना चाहता था....
दरवाज़े की तरफ पहूचकर उसने एक लंबी साँस ली और दरवाज़े की कुण्डी खोली... दरवाज़ा आवाज़ करते हुए खुला और
सामने दूधवाले के आँखें ज़मीन की तरफ देख रही थी.... शन्नो के पाओ को देख कर जोकि रेक्सोना की चप्पलो में
थे दूधवाले की आँखें बढ़ती हुई शन्नो की टाँगो पे पड़ी... धीरे धीरे वो शन्नो की मलाईदार टाँगो को
देखता गया ताकि अगर ये सपना हो तो जल्दी टूट ना जाए..... उसकी नज़रे जब शन्नो की जाँघो तक आई तो उसका पूरा गलासूख गया.... शन्नो के चेहरे पे शरम थी और उसका दिल ज़ोर ज़ोर से धड़के जा रहा था....

शन्नो ने हिम्मत दिखाते हुए कहा "ये लो पतीला 1 किल्लो दूध ही देना आज"

दूधवाले ने नज़रे शन्नो की नज़रो से मिलाई तो उसकी आखो में खो गया... शन्नो की नींद सी भरी आँखों में
इतना नशा था कि शन्नो को फिर दूधवाले को पतीला लेने के लिए कहना पड़ा.... दूधवाला अपनी टाइट पॅंट को उपर
खीचता हुआ ज़मीन पे बैठके अपने बड़े से डेक्चे में से दूध निकालने लगा.....
उसकी निगाहें शन्नो की जाँघो की तरफ थी वो देखने की दिल से दुआ कर रहा था कि मुझे इस खूबसूरत बाला की चूत
के दर्शन हो जाए मगर शन्नो की टाँगें एक दूसरे से जुड़ी होने के कारण कुच्छ दिखना मुश्किल था....
शन्नो को समझ आ गया था कि दूधवाला क्या देखना चाह रहा और वो अपने को रोक नहीं पाई और अपनी
टाँगो को थोड़ा चौड़ा कर दी... दूधवाले की आँखें शन्नो की गंदी पुरानी सफेद रंग पैंटी पे पड़ी और वो हिल गया...
इस कारण दूध शन्नो के पतीले में डालने के बजाए उसने फर्श पे गिरा दिया.... फर्श पे दूध की आवाज़ पड़ते ही
शन्नो ने अपनी टाँगो को वापस जोड़ लिया और दूधवाले ने भी अपनी नज़रे फेर दी... शन्नो के पतीले में दूध
डालकर वो अपने पॅंट के अंदर जागे हुए लंड को ठीक करता हुआ वो उठा.... शन्नो की उंगलिओ को छूता हुआ उसने वो
पातीला शन्नो को पकड़ाया और शन्नो ने दरवाज़ा बंद कर दिया..... दरवाज़े से टिक्क कर करीबन 1 मिनट
शन्नो लंबी लंबी साँसें लेती रही.... उसकी चूत ने उसकी पैंटी को नम कर दिया था.... उसने जल्दी से पतीले को किचन
में रखा और टाय्लेट जाके मूतने लगी.... टाय्लेट की सीट पे बैठकर वो उस दूधवाले के हावभाव को देख कर हँसने लगी... "बिचारा पागल हो गया होगा मुझे ऐसा देख कर" शन्नो ने हस्ते हुए कहा...

टाय्लेट से निकल कर जब शन्नो वापस अपने बिस्तर पे लेटी तो उसके बेटे चेतन ने उससे चिपकते हुए कहा "मज़ा आया ना??"
ये सुनके शन्नो चौक गयी कि चेतन को कैसे पता चला?? वो तो सो रहा था?? अपनी धीमी आवाज़ मे शन्नो ने "हां"
कहा और आँखें बंद करके सो गयी...

उधर दूसरी ओर ललिता की आँख कुच्छ लघ्हबघ सुबह के 11 बजे के करीब खुली.... अपनी आँखो को मलते हुए और ज़ोर
से उबासी लेते हुए वो बिस्तर से उठी... चलकर वो अपनी बहन डॉली के कमरे में गयी मगर वहाँ कोई नहीं था....
हर कमरे को देखने के बाद जब उसे डॉली नहीं दिखाई दी तो उसने डॉली को कॉल करा.. डॉली ने ललिता को
बताया कि वो राज के साथ गयी हुई है और थोड़ा समय लग जाएगा आने में तो तू नाश्ता कर लिओ...

ललिता को इतनी खुशी हुई कि वो मज़े में नाचने लग गयी.... नज़ाने कितने दिनो के बाद ललिता को एक दिन अकेले घर पे रहने को मिला था... वो अपने रात के कपड़ो में थी जोकि गुलाबी रंग का पाजामा और काला रंग का नूडल स्ट्रॅप
गुलाबी ब्रा के साथ पहना हुआ था...उसका फिलहाल नहाने का मन नहीं था तो वो टीवी ऑन करके गाने सुनने के लिए...
जब उसने टीवी ऑन करा तो केबल नहीं आ रहा था... उसको इतना गुस्सा आया उस वजह से और उसने डॉली से केबल वालो का
नंबर. माँगा ताकि वो उनको ठीक करने के लिए बुला सके.. फिर उसने केबल वालो को कॉल करा तो किसी प्रकाश ने फोन उठाया... ललिता ने बड़ी बदतमीज़ी से उससे बात करी और उसको तुरंत घर बुलाया केबल ठीक करने के लिए..
अब उसे ये अकेलापन काटने लगा था.... ललिता के दिमाग़ में घंटी बजी और तेज़ी से भागकर अपने कमरे में गयी और अलमारी खोलकर वो पालिका बाज़ार से खरीदी हुई सीडी निकाल ली..... अपने चेहरे पे गंदी सी हँसी लेकर वो टीवी की तरफ
बढ़ी और सीडी प्लेयर में उसने 'प्रेम का रस' नाम की अडल्ट पिक्चर लगा दी..... सोफे पर आल्ति पालती मारकर ललिता टीवी को
घूर के देखने लगी... कुच्छ 20 सेकेंड हो गये थे और तब तक टीवी पर काली स्क्रीन ही थी... ललिता ने सीडी प्लेयर के
रिमोट से पिक्चर आगे बढ़ानी चाही मगर वो वही रुक गयी.... गुस्से में उठकर ललिता ने दूसरी सीडी डाली और
वो भी नहीं चली... ललिता को अपनी किस्मत पर इतना गुस्सा आया कि उसने डिस्क को तोड़ दिया....

एक तो इतने दिनो के बाद पॉर्न देखने का मौका मिला था उसका भी फ़ायदा नहीं उठा पाई ललिता.... अकेले बैठकर वो केबल वालोइंतजार करती रही... उसने फिर गीज़र भी ऑन कर दिया ताकि जब केबल का काम हो जाए तब वो नहाने चली जाएगी....
आधा घंटे के बाद पूरा घंटा हो गया और कोई भी नहीं आया.. जब ललिता ने उनको वापस फोन मिलाया तो
नंबर. बीच में ही कटे जा रहा... ललिता का दिमाग़ खराब हो रहा था उसने सोचा नहा ही लेती हूँ नहीं तो फिर दीदी आजएँगी और 3-4 बातें सुनाएँगी.. ललिता ने अपने कमरे में से लाल रंग का तौलिया लिया और जाके डॉली के कमरे के
टाय्लेट में नहाने चली गयी क्यूंकी उसके कमरे में टाय्लेट नहीं था... ललिता ने एक के बाद एक धरधार अपने
कपड़े उतारे और शवर के नीचे खड़ी हो गई... इतना आनंद मिल रहा था उसको जब उसके बदन पे गरम पानी गिर रहा था... अच्छे ख़ासे 20 मिनट वो अंदर रही और इस दौरान अपने बदन को हाथ फेरती रही.... नज़ाने नहाते नहाते उसको
बड़ी ज़ोर से पेशाब आई तो वो शवर से हॅट कर टाय्लेट की सीट की तरफ भागी मगर एक दम से उसने अपने कदम रोक दिए.... अपने कदम वापस शवर के तरफ बढ़ा दिया और अपनी टाँगें थोड़ी सी खोलके वो नहाती रही....
उसके अंदर एक दम से मीठा दर्द उठा और उसने नलके को पकड़ लिया... उसकी चूत के पानी कीधार फर्श पे गिराने लगी था...
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Re: जिस्म की प्यास

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ललिता अपनी आँखों से अपनी चूत का पानी बहते हुए देखने लगी... फिर उसने अपने बदन को साबुन से धोया और अपने
बदन को पौछ्कर टाय्लेट के बाहर निकली..

उसने दो-तीन बारी ज़ोर से बोला "डॉली दीदी....... दीदी...... दीदी" मगर कोई जवाब नहीं आया....
अपने हल्के नम बदन पे लिपटा हुआ लाल तौलिया उसने दो उंगलिओ से खोल दिया और नंगी खड़ी हो गयी....
इस घर की सबसे अच्छी बात ये थी कि इसके आस पास कोई और घर नहीं था तो कोई भी घर के अंदर ताका झाकी नहीं
कर सकता था.. ललिता ने वो तौलिया अपने बालो पे बाँध दिया और चलकर अपने कमरे में जाने लगी....
जैसी ही वो डॉली के कमरे के बाहर निकली तभी घर का दरवाज़ा किसीने खोल दिया..... ललिता को नज़ाने क्यूँ लगा की वो
उसकी बहन नहीं कोई और है.... और अगले ही सेकेंड उसका ये वेहम हक़ीकत बन गया.... दरवाज़े के सामने खड़ा एक
सावला लंबा पतला आदमी सिर पर हल्के हल्के बाल और चेहरे पे हैरत लिए खड़ा था.... वो आदमी वही खड़ा
ललिता के नंगे बदन को देख कर जा रहा था.... ललिता ने जल्द से जल्द अपने सिर से तौलिया निकाला और अपने बदन
पे बाँध लिया.... इश्स दौरान ललिता के मम्मे ज़ोर से हिले जिनको देख कर उस आदमी का लंड हिल गया....
ललिता को घबराया देख उस आदमी ने भी अपनी आँख घुमा ली.....

ललिता उस आदमी की वजह से जल्दी से अपने कमरे में भाग गयी और दरवाज़ा लॉक कर दिया.... अपने बिस्तर पे बैठके
वो सोचने लगी कि ये आदमी कौन था और ऐसी ही घर में कैसे घुस गया?? कहीं चोर तो नहीं था क्यूंकी उसके हाथ में
एर बॅग भी तो था... ललिता दबे पाओ से दरवाज़े की तरफ बढ़ी और तभी उसने अपने कमरे के बाहर से एक आवाज़ सुनी...

"देखो बेटा तुम शायद ललिता होगी मैं तुम्हारी मम्मी का भाई यानी तुम्हारा विजय मामा हूँ...."
ललिता वहीं खड़े खड़े उस आदमी की बात सुनती रही... उस आदमी ने फिर से कहा "वो हुआ ऐसा कि मैने घर की बेल
बजाई तो वो बजी नहीं.. और काफ़ी देर खटखटाया भी मगर किसीने नहीं खोला... मुझे डॉली ने बताया था कि तुम घर पर ही होगी तो मैने दरवाज़े की नॉब को घुमाया तो वो अपने आप खुल गया... सॉरी अगर तुमको मेरी वजह शर्मिंदगी हुई हो"

ये सुनते ही ललिता बोली 'नहीं ऐसी कोई बात नहीं है... आप बैठिए मैं अभी बाहर आती हूँ"

ललिता ने जल्दी से एक हरी सफेद सलवार कुरती निकाली और सैफीड ब्रा पैंटी के साथ पहेन ली....
अपने बालो को कंघी करके अच्छे से बाँध कर एक लंबी साँस लेके उसने अपने कमरे का दरवाज़ा खोला...
सोफे के पास बैठे उसने अपने मामा को कहा "नमस्ते मामा... आप पानी पीएँगे??" ये कहकर ललिता को बड़ी
झिझक हुई और विजय को ललिता को धकि हुई देखकर काफ़ी राहत मिली.... पानी देते वक़्त ललिता विजय के साथ वाले
सोफे पे बैठ गयी और जहा उसका मोबाइल पड़ा था... उसने मोबाइल पे देखा तो डॉली के मीसड कॉल आए हुए थे
और मैसेज पे भी लिखा था कि विजय मामा आएँगे घर तो पहले ही नहा लेना"....

ये पढ़कर ललिता बोली 'डॉली दीदी ने मैसेज भी करा था कि आप आने वाले है मगर मैने देखा ही नहीं था...'

विजय ने कहा "कोई बात नहीं बेटी... हो जाता है ऐसा कभी कभी"

विजय को शांत देख कर ललिता भी उस बात भूलने की कोशिश करती रही... विजय ने बताया कि वो सिर्फ़ आज रात के लिएइन्दोर से यहाँ आया कुच्छ बिज़्नेस के काम से और कल सुबह की ट्रेन से वापस रवाना हो जाएगा... उसने अपनी पत्नी और
अपने 2 बच्चो के बारे में भी बताया जिन्होने ललिता और उसकी बहन को बहुत प्यार भेजा है....
फिर कुच्छ देर के लिए ललिता विजय मामू के साथ बैठी रही और उसके बाद डॉली घर आ गयी...
डॉली विजय मामू को जानती थी क्यूंकी जब वो उनसे आखरी बारी मिली थी तो उसकी उम्र कुच्छ 14 साल थी...
विजय अपनी दोनो भाँजियो को देखकर काफ़ी खुश हुआ और दोनो को एक बड़ी डेरी मिल्क का डिब्बा भी दिया....

कुच्छ देर बाद जब विजय आराम करने के लिए नारायण के कमरे में चले गया तब ललिता ने डॉली को बोला
"आप क्या डोर लॉक नहीं कर सकते थे"

डॉली ने कहा "अर्रे तेरेको जगाके बोला तो था कि दरवाज़ा बंद करले और तूने हां भी कहा था कि करलूंगी..
अब मुझे क्या पता तू नींद में ही हां कह रही थी..... और वैसे तंग ना कर मेरा मूड ऑफ है"

ललिता ने चिड़ाते हुए पूछा "क्यूँ क्या कर दिया आपके आशिक़ ने ऐसा जो आपका मूड ऑफ हो गया"

डॉली ललिता को हल्के से मारके बोली "चल हॅट... अपना काम कर"

क्रमशः…………………..
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mini

Re: जिस्म की प्यास

Post by mini »

bahut bahut masttttttttt
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