किस्मत का खेल

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rajsharma
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Re: किस्मत का खेल

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किस्मत का खेल पार्ट --2

गतान्क से आगे.......

सच्चाई ये थी की अगर कुच्छ इन्स्ट्रुमेंट पूरे बन जाते तो इंडिया का फ़ायदा कम नुकसान ज़्यादा होता था. खास कर के जब जब विक्रम जूनागढ़ आता था तब किशोरीलाल कुच्छ खास खास बाते उनसे च्छूपाता था. क्यूकी वो जानता था एक शराबी या ऐयाशी ज़िंदगी कभी भी भरोसे लायक नही होती. वैसे वो सब बाते विक्रम से शेर करता था, कुच्छ प्राइवेट बाते भी. लेकिन साइन्स इन्स्ट्रुमेंट्स के बारे मे जब विक्रम कुच्छ अजीब अजीब सवाल पूछता था तब से उसने ऐसी बाते करना कम कर दिया था.

आक्च्युयली विक्रम भी कुच्छ इन्स्ट्रुमेंट्स का फ़ायदा अपने खास मक़सद के लिए करना चाहता था, इसलिए कई बार उसके मूह से उस इन्स्ट्रुमेंट्स के बारे मे जिज्ञासा निकल गयी थी. और शायद विक्रम को भी पता लग गया था कि अब किशोरीलाल सब बाते नही बताता जो की खास हुआ करती हो.

और एक दुर्घटना ने दोनो की ज़िंदगी ही पलट दी…………

किशोरीलाल की शादी जूनागढ़ की ही लड़की राजेश्वरिदेवी के साथ तय हुई. विक्रम भी शादी अटेंड करने आया. बड़ी सादगी से ये शादी सम्पन्न हुई. शादी के दो दिन बाद नारायनप्रासाद ने तीर्थयात्रा पे जाने का अपना फ़ैसला बताया. लेकिन सवाल ये उठा की अगर किशोरीलाल साथ मे जाता है तो ब्रामिन कार्य करने के लिए एक को वाहा होना ज़रूरी होता है. वैसे भी फॅमिली का गुज़ारा उन्ही पैसो से हुवा करता था. एक महीने की खोट मतलब एक साल की खोट. अंत मे तय हुवा की त्योहार का महीना सावन के महीने मे च्छुट्‍टी लेकर विक्रम सब को तीर्थयात्रा पे ले जाएगा. साथ मे विक्रम ने ये भी प्लान बनाया कि रास्ते मे वो सुनंदा से अपने मन की बात करेगा इसीलिए उसने अंकल नारायनप्रासाद को सुनंदा को साथ मे लेने के लिए राज़ी कर लिया. सावन के महीने मे विक्रम जूनागढ़ आया और विक्रम, नारायनप्रासाद, श्रीलेका (नारायनप्रासाद की बीवी), सुनंदा ने तीर्थयात्रा सौराष्ट्रा के सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से प्रारंभ की.

ये बात किशोरीलाल के शादी के 6 महीने के बाद की बात थी. ऑगस्ट 1977 का महीना था. तीर्थ यात्रा शुरू होने से पहले शायद नारायनप्रासाद और श्रीलेखा को उसका प्रसाद जैसे मिला था ये समाचार सुनके की वो अब दादा, दादी बनने वाले है. बहू राजेश्वरिदेवी को 4थ महीना चल रहा था, शायद इसीलिए भी किशोरीलाल साथ मे नही जा पाया. विक्रम साथ था, अपने दोस्त पर पूरा भरोसा था क्योकि किशोरीलाल जानता था की विक्रम के मन मे नारायनप्रासाद के लिए कितना आदर था. एक बात ऐसी नही की नारायनप्रासाद ने बोली और विक्रम ने ना मानी हो. सिर्फ़ सुरा, शराब और सुंदरी के बारे मे नारायनप्रासाद ने ज़यादा ज़ोर नही डाला इसीलिए विक्रम बेफ़िक़रा होकर आगे बढ़ता ही चला गया था. और दोस्ती के नाते किशोरीलाल भी कुछ हद तक चुप रहता था. वैसे भी उनका मिलना साल मे दो तीन बार ही होता था. क्योकि किशोरीलाल अपने काम और साइन्स मे ज़्यादा डूबा रहता था और विक्रम अपने काम मे…

एकदिन टेलीग्राम से समाचार आया की कन्याकुमारी मे नारायनप्रासाद और बीवी श्रीलेखा और बेहन सुनंदा का आक्सीडेंट हो गया और उनको बचाते हुवे दोस्त विक्रम बुरी तरह ज़ख़्मी होकर हॉस्पिटल मे अड्मिट है. दो दिन के प्रवास के बाद किशोरीलाल कन्याकुमारी की हॉस्पिटल मे पहुचा, विक्रम की पूरी बॉडी ज़ख़्मी थी, किशोरीलाल को देखते ही विक्रम बहुत रो पड़ा. 10 मिनट के बाद स्वस्थ होकर पूरी कहानी बताई. बातो से पता चला की सुबह के 5.00 बजे कन्याकुमारी के समुंदर किनारे सूर्योदय देखने के लिए वो सबसे पहले पहुचे थे. किसी ने बताया की अच्छी तरह से सूर्योदय देखना हो तो आसपास बिखरी पड़ी चट्टान के उपर से देखो तो अच्छा होगा. इसीलिए वो लोग एक उची चट्टान पर पहुचे. कन्याकुमारी अगर आप लोग मे सेकोई गया हो तो आप को पता होगा की वाहा का समुंदर तूफ़ानी है. अगर आप समुंदर किनारे से स्वामी विवेकानंद राक देखने के लिए बोट मे जाओगे तो बोट ऐसे छलकती है मानो कोई आप को एक मकान के ग्राउंड फ्लोर से अचानक दूसरी मंज़िल पर फेक रहा हो और फिर दोसरि मंज़िल से ग्राउंड फ्लोर पे फेक रहा हो. मतलब समुंदर की लहरे बहुत तूफ़ानी है वाहा. चट्टान पर खड़े हुवे चारो को ऐसी लहरे बार बार च्छू रही थी. अर्ली मॉर्निंग और सावन का महीना, धीमी धीमी बारिश की वजह से चट्टान गीली थी. अचानक नारायनप्रासाद का पैर फिसला और उसका हाथ अचानक श्रीलेखा को पकड़ मे आया, दोनो फिसले और करीब 30 फीट की हाइट से पटके, चिल्लाकर सुनंदा आगे झुकी की उसका भी पैर फिसला उसका कंधा जोरो से विक्रम को टकराया. दो सेकेंड मे हुई इस घटना को कुच्छ समझे इसके पहले सुनंदा का कंधा ज़ोर से टकराने की वजह से विक्रम का संतुलन गिरा और वो दूसरी साइड पे गिरने वाला था. लेकिन केवल दो सेकेंड मे उसने अपने माइंड को संभाला और एक हाथ से सुनंदा को पकड़ना चाहा, सुनंदा अब जो 30 फीट की उचाई से गिरने वाली थी वो और फिसले और सुनंदा मूह के बल 30 फीट नीचे गिरी उसके उपर विक्रम गिरा. जिसकी वजह से सुनंदा की तत्काल मृत्यु हो गयी और चेहरा भी पहचान मे ना आए ऐसा हो गया और विक्रम बुरी तरह से ज़ख़्मी हो गया. क्यूकी किशोरीलाल को पहुचने मे देर होने वाली थी इसीलिए ज़ख़्मी हालत मे भी विक्रम ने तीनो का अग्निसंस्कार किया.

किशोरीलाल पूरा सदमे मे था. उसको ये बात का रंज तो ज़रूर था की वो अपने माबाप और बेहन का अंतिम दर्शन भी नही कर पाया लेकिन उस से भी ज़्यादा ये सदमा पहुचा की एकलौता बेटा होने के बावजूद वो अपने माबाप का अंतिम संस्कार भी नही कर पाया.दूसरे दिन दोनो जूनागढ़ वापस आए और विक्रम अपने अंकल आंटी और प्यारी सुनंदा की बारहवी तक रुका, फिर चला गया.

इस घटना के ठीक 4 महीने बाद 25थ डिसेंबर 1977, नटाल के दिन राजेश्वरी देवी ने एक पुत्र को जन्म दिया. ये बालक हस्ता हुवा पैदा हुवा था, ठीक सुबह 6.05 मिनट पर जब गिर्नार के पर्वत पर सुबह की गुरु दत्तात्रेय की आरती शुरू हुई, घंटराव के साथ बच्चे का जन्म हुवा. छटी के दिन बड़े हसरत से बच्चे का नाम जय रखा गया. जब जय दो महीने का हुआ दोनो माता पिता ने मन्नत रखी थी कि वो गिर्नार पर्वत पे जाएँगे और मन्नत पूरी करेंगे. क्योकि राजेश्वरिदेवी बचपन से धार्मिक स्वाभाव की थी और उसको ये संस्कार मिले थे की…

“ गुरु और गोविंद दोनो खड़े किसको लागू पाय,

बलिहारी गुरुदेव ने गोविंद दियो दिखाय”

यानी बचपन से गुरु की ख़ौज थी. गुरु दत्तात्रेय तो गुरुओ के गुरु है, तो उन दोनो की मन्नत थी की बच्चे के जन्म के बाद गिर्नार ज़रूर जाएँगे. मार्च के पहले वीक मे दोनो गिर्नार चढ़ने के लिए सुबह 4.30 बजे निकले.

अगर कोई गिर्नार के उपर गया हो तो पता होगा गिर्नार पर्वत को टोटल 9,999 स्टेप्स है. अगर आप किसी लॅडीस के साथ सुबह 4 से 5 बजे शुरू करेंगा तो 12 से 1 बजे तक पहुच पाएँगे. इसीलिए किशोरीलाल और राजेश्वरिदेवी ने सुबज 5 बजे चढ़ना शुरू किया.

सबसे पहले वो अंबाजी पहुचे वाहा दर्शन किया. थोड़ी देर आराम के बाद और चढ़ाई शुरू की. ज़्यादा ठंड भी नही थी और ज़्यादा गर्मी भी नही थी. फिर भी थकान से थोड़े पसीने से तरबतर थे. वैसे भी केवल 2 महीने के बच्चे को साथ मे लेकर गिर्नार जाना तो संभव ही नही होता, क्योकि उपर तो ऑक्सिजन भी थोड़ी कम हो जाती है तो सास लेने मे भी तकलीफ़ होती है. फिर भी इन दोनो ने ईश्वर पे भरोसा रखा था की तूने औलाद दी है तो तू ही इसका रखवाल बनेगा और दोनो आगे बढ़ते बढ़ते आधी उचाई तक डातार तक पहुचे. थोड़ी देर विश्राम लेने का दोनो ने सोचा. दोनो स्टेप्स पर बैठ गये.
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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इतने मे एक आवाज़ आई,” बेटा इधर अजाओ”. आसपास तो घना जंगल हुवा करता है वाहा डाटार मे. दोनो ने आसपास नज़र दौड़ाई, लेकिन कुच्छ नही दिखाई दिया. फिर से आवाज़ आई,” तेरी दाई और देख और सीधा अंदर चला आ.” किशोरीलाल ने दाई और देखा तो 50 कदम दूर एक छोटी सी गुफा थी, थोड़ा सा डर भी लगा, लेकिन वाइब्रेशन इतने गहरे थे की दोनो के पैर मानो हिप्नटिज़्ड होकर उस गुफा की और चलने लगे. पास आकर देखा तो दोनो को झुक कर अंदर जाना पड़ा इतना छ्होटा सा द्वार था. दोनो ने अंदर प्रवेश किया तो अंदर 60 से 70 कदम दूर एक छ्होटे से पत्थर पर कोई संत ध्यानमगन अवस्था मे बैठे थे. चेहरे पर बड़ा तेजस था, गौर मुख छ्होटी सी दाढ़ी और भिखरे काले बॉल, उम्र होगी कोई 30 या 32 साल की. लेकिन उसको देखते ही दोनो को डर नही लगा और पास जाने के बाद दोनो ने प्रणाम किया और बैठ गये उनके चर्नो मे. संत ने धीरे से आँखे खोली और दो मिनट. तक मुस्कुरकर देखते रहे और धीरे से बोले,” हम साधु को अच्छी आत्मा की वाइब्रेशन की बड़ी अच्छी पहचान होती है. तुम दोनो के साथ तुम्हारे बेटे कीआत्मा की सुवास मुझे तुम दोनो को यहा पर खिचाने पर मजबूर कर गयी.”

किशोरीलाल और राजेश्वरिदेवी को तो बड़ा आश्चर्या हुवा की उसने ना तो कभी इस साधु को देखा था और 70 फीट आगे और अपनी बाई और गुफा से 50 कदम दूर उनको यहा बैठे बैठे देखने वाले ये महात्मा कौन है. खास करके जिज्नशा ये हुई की उनके बेटे जय के बारे मे उस संत ने अच्छि आत्मा बोला था. इसका मतलब वो महात्मा जो भी है उन सब के बारे मे कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर जानते है. उन दोनो को बड़ी जिगयाशा हुई की ये संत आख़िर कौन है ?? कहा से आए है ?? क्यो उसको ही मिले ?? और इनका मकसद क्या है ??

गिर्नार के खुशनुमा वातावरण मे किशोरीलाल और राजेश्वरिदेवी दोनो थके हुवे थे और आवाज़ सुनकर जैसे हिप्नटिज़्ड की तरह आवाज़ की और खिचते चले गये और उस संत को देखकर उसके सामने बैठे हुवे थे. बड़े आश्चर्या से किशोरीलाल ने विनम्रता से पुचछा,” बाबा आप कौन है, और हमे कैसे जानते है और आप को कैसे पता की हम यहा है और आप इस बच्चे के बारे मे क्या जानते है.” संत थोड़ी देर मुस्कुराए और फिर बोले,” बेटे इस ब्रह्मांड की कई पुण्या आत्माए इस पृथ्वी पर जन्म लेना चाहती है, क्यूकी जब वो तपसचर्या कर रहे थे तब उसकी पूरी आयु ख़तम हो गयी और उनको इस दुनिया से अवकाश लेना पड़ा. अब समय आ गया है कि उसके पास जो है वो इस समाज मे बाँटे और इस समाज के लोग जो तापश्चर्या के लिए एकांत मे नही जा सकते वो यही इसी समाज मे बैठे बैठे वो सबकुच्छ पा सके जो की आज तक संभव नही था. दूसरा कभी मा बाप संतान की पसंदगी नही कर सकता. वे सिर्फ़ परमात्मा से अच्छी संतान की प्रार्थना कर सकते है. लेकिन एक आत्मा हमेशा उसको जो कार्य या मनोकामना पूर्णा करनी हो तो वो अपने लिए ऐसे उपयुक्त मा बाप की पसंदगी करता हो जहा उसे अपने अनुकूल वातावरण पर्याप्त हो सके.”

बाबा की वाणी असखलित बह रही थी. दोनो भावविभोर होकर एक्चित सुन रहे थे. “ जैसे एक दारू पीनेवाला मर जाता है और उनकी ये इच्छा अधूरी रह जाती है तो उसकी आत्मा ऐसा घर और मा बाप ढूँढती है जहा उसे दारू की कोई बंदिश ना कर सके वैसे ही एक पवितरा आत्मा हमेशा ऐसा वातावरण और मा बाप ढूँढती है जहा उसकी तापश्चर्या का लाभ पूरे समाज को मिल सके. तुम्हारी आत्मा एक पवितरा आत्मा है और तुम्हारी पत्नी की आत्मा तुमसे भी पवितरा है, तुम दोनो के कई जन्मो के अच्छे करमो के फल स्वरूप ये आत्मा तुम्हारे बच्चे के स्वरूप मे आई है. इस पवितरा आत्मा को सामानया समझने की भूल कभी मत करना. इस आत्मा ने इस बेटी की कोख को स्वीकार किया इसी से तुम दोनो का जन्म सफल हो चुका है. लेकिन अभी उपयुक्त समय नही आया है. ये बच्चा तो सिर्फ़ मध्यम है इसे बड़े जतन से तुम्हे वो वातावरण देना है जिस से उसकी आत्मा तुम लोगो से भी पवितरा होनी है. क्यूकी आने वाला समय कलियुग का बड़ा ख़तरनाक समय आनेवाला है. इस समय मे एक बच्चे को अच्छे संस्कार देना बहुत कठिन कार्य होना है. खास करके बेटी तुम्हे बहुत मेहनत करनी पड़ेगी, क्यूकी अगर ये साथ नही दे सका तो तुम्हे अकेले इस सफ़र को तय करना है.”

दोनो एकदुसरे को देखते रहे. राजेश्वरिदेवी ने मौन तोड़ते हुवे पुचछा,” बाबा आप कह रहे है की मुझे अकेले सफ़र तय करना होगा तो क्या…” संत ने बीच मे रोक कर जवाब दिया,” नही बेटी कोई शंका नही है की तुम्हारे पति की आयुष्या कम होगी, दीर्घायुष्या है उसकी लेकिन कुच्छ अपने पूर्व जन्म के दोष भी तो भोगतने होते है. मे कोई भविष्यावेता नही हू. मे यहा सिर्फ़ अपने गुरुओ के आदेश से आया हू.” फिर आँखे बाँध कर के और बोले,” मेरे गुरुओ ने बताया था के इसी दिन इसी समय तुम लोग मुझे यहा मिलोगे और मे तुम्हे कुच्छ बाते बताउ. बेटी मैने तुम्हे जो कहा है उसे याद रखो क्यूकी तुम्हारा बेटा अगर जैसा हम साधुलगो ने सोचा है वैसी आत्मा हुई तो उनकी शादी एक इस से भी पवित्र आत्मा से होनेवाली है और उन्दोनो के संयोग से जो संतान भविष्या मे आनेवाली है वो मेरे गुरुओ मे से ही कोई एक होगा. क्यूकी समय अभी बहुत है लेकिन अभी से आप को आगाज़ करना हम साधुओ का कर्तव्य है.”

राजेश्वरिदेवी ने बड़े प्यार से अपने गोद मे बैठे हुवे जय की ओर देखा और बाबा को पुचछा,” बाबा, आपका आदेश हमारे सर आँखो पर, लेकिन इसकी लायक बच्ची कौन है वो तो आप को पता ही होगा, उसके बारे मे हमे कृपया कुच्छ जानकारी दीजिए.”

बाबा ने 2 मिनट के बाद मौन तोड़ा,” वैसे ये भविष्या की बाते है लेकिन मे आप को थोड़ी जानकारी देता हू. इनके लायक बच्ची तुम्हारे किसी निकट स्वजन, दोस्त के यहा जन्म लेनेवाली है.” किशोरीलाल एकदम खुश हो गया,” बाबा आप कही मेरे दोस्त विक्रम की बात तो नही कर रहे है.”

बाबा फिर आँखे बाँध करके 2 मिनट के बाद बोले,”बेटे मेरे गुरुओ की कोई संकेत नही मिल रही है, लेकिन हा इस दोस्त से हमेशा सावधान रहने की सूचना मे तुम्हे दू ऐसी आग्या मुझे मेरे गुरु दे रहे है.”

दोनो एकदुसरे को देखते रहे. बाबा ने आँखे खोली और फिर बोले,” बेटे हम साधुओ को सिर्फ़ उस पवित्र आत्मा जो हमारे गुरुओ मे से कोई है उसके जन्म के लिए उपयुक्त मा बाप और वातावरण मिले उसकी ही फिक़्र है. बाकी इस समाज की घटना की कोई सूचना हमे नही है, क्यूकी तुमने तुम्हारे दोस्त की बात बताई तो कुच्छ जवाब नही आया लेकिन सावधान रहने की सूचना मिल रही है.”

********

क्रमशः................

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Re: किस्मत का खेल

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किस्मत का खेल पार्ट --2

gataank se aage.......

Sachchai ye thi ki agar kuchh instrument pure ban jate to India ka fayda kam nuksan jyada hota tha. Khas kar ke jab jab Vikram Junagadh aata tha tab Kishorilal kuchch khas khas bate unse chhupata tha. Kyuki wo janta tha Ek sharabi ya aiyashi zindagi kabhi bhi bharose layak nahi hoti. Waise wo sab bate Vikram se share karta tha, kuchh private bate bhi. Lekin Science Instruments ke bare me jab Vikram kuchh ajib ajib sawal puchchta tha tab se usne aisi baate karna kam kar diya tha.

Actually Vikram bhi kuchch instruments ka fayada apne khas maqsad ke liye karna chahata tha, isliye kai bar uske muh se us instruments ke bare me jignasa nikal gayi thi. Aur shayad Vikram ko bhi pata lag gaya tha ki ab Kishorilal sab bate nahi batata jo ki khas huva karti ho.

Aur ek durghatana ne dono ki zindagi hi palat di…………

Kishorilal ki shadi Junagadh ki hi ladki Rajeshwaridevi ke sath tay huyi. Vikram bhi shadi attend karne aya. Badi sadgi se ye shadi smpann huyi. Shadi ke do din bad Narayanprasad ne Tirthyatra pe jane ka apna faisla bataya. Lekin sawal ye utha ki agar Kishorilal sath me jata hai to Brahmin karya karne ke liye ek ko waha hona jaruri hota hai. Vaise bhi family ka gujara unhi paiso se huva karta tha. Ek mahine ki khot matlab ek saal ki khot. Ant me tay huva ki Tyohar ka mahina sawan ke mahine me chchutti lekar Vikram sab ko Tirthyatra pe le jayega. Sath me Vikram ne ye bhi plan banaya ki raste me wo Sunanda ko apne man ki bat karega isiliye usne uncle Narayanprasad ko Sunanda ko sath me lene ke liye raji kar liya. Sawan ke mahine me Vikram Junagadh aya aur Vikram, Narayanprasad, Shrileka (Narayanprasad ki biwi), Sunanda ne Tirthyatra Saurashtra ke Somnath Jyotirling se prarambh ki.

Ye bat Kishorilal ke shadi ke 6 mahine ke bad ki bat thi. August 1977 ka mahina tha. Trithyatra shuru hone se pehle shayad Narayanprasad aur shrilekha ko uska Prasad jaise mila tha ye samachar sunke ki we ab dada, dadi banana wale hai. Bahu Rajeshwaridevi ko 4th mahina chal raha tha, shayad isiliye bhi Kishorilal sath me nahi ja paya. Vikram sath tha, apne dost par pura bharosa tha kyoki Kishorilal janta tha ki Vikram ke man me Narayanprasad ke liye kita adar tha. Ek bat aisi nahi ki Narayanprasad ne boli aur Vikram ne na mani ho. Sirf Sur, Sharab aur Sundari ke bare me Narayanprasad ne jayada jor nahi dala isiliye Vikram befiqra hokar age badhata hi chala gaya tha. Aur dosti ke nate Kishorilal bhi kuch had tak chup rehta tha. Vaise bhi unka milna saal me do tin bar hi hota tha. Kyoki Kishorilal apne kam aur science me jyada duba rehta tha aur Vikram apne KAAM me…

Ekdin telegram se samachar aya ki Kanyakumari me Narayanprasad aur biwi shrilekha aur behan Sunanda ka accdent ho gaya aur unko bachate huve dost Vikram buri tarah zakhmi hokar hospital me admit hai. Do din ke pravas ke bad Kishorilal Kanyakumari ki hospital me pahucha, Vikram ki puri body zakhmi thi, Kishorilal ko dekhate hi Vikram bahut ro pada. 10 min ke bad svasth hokar puri kahani batayi. Bato se pata chala ki subah ke 5.00 baje Kanyakumar ke samundar kinare Suryoday dekhane ke liye we sabse pehle pahuche the. Kisi ne bataya ki achchi tarah se Suryoday dekhana ho to aaspas bikhari padi chattan ke upar se dekho to achchca hoga. Isiliye we log ek uchi chattan par pahuche. Kanyakumari agar aap log koi gaya ho to aap ko pata hoga ki vaha ka samundar tufani hai. Agar aap samundar kinare se Swami vivekanand rock dekhane ke liye boat me jaoge to boat aise chalkti hai mano koi aap ko ek makan ke ground floor se achanak dusri manzil par fek raha ho aur fir dosri manzil se ground floor pe fek raha ho. Matlab samundar ki lehri bahut tufani hai vaha. Chattan par khade huve charo ko aisi lehre bar bar chhu rahi thi. Earli morning aur sawan ka mahina, dhimi dhimi barish ki vajah se chattan gili thi. Achanak Narayanprasad ka pair fisla aur uska hath achanak shrilekha ko pakad me aya, dono fisle aur karib 30 feet ki height se patke, chillakar sunanda age juki ki uska bhi pair fisla uska kandha joro se Vikram ko takraya. Do second me huyi is ghatana ko kuchh samje iske pehle sunanda ka kandha jor se takrane ki vajah se Vikram ka santulan gira aur wo dusri side pe girne wala tha. Lekin keval do second me usne apne mind ko sambhala aur ek hath se sunanda ko pakadana chaha, Sunanda ab jo 30 feet ki uchai se girne wali thi wo aur fisle aur Sunanda muh ke bal 30 feet niche giri uske upar Vikram gira. Jiski vajah se Sunanda ki tatkal mrityu ho gayi aur chehara bhi pehchan me na aye aisa ho gaya aur Vikram buri tarah se zakhmi ho gaya. Kyuki Kishorilal ko pahuchane me der hone wali thi isiliye zakhmi halat me bhi Vikram ne tino ka agnisanskar kiya.

Kishorilal pura sadme me tha. Usko ye bat ka ranj to jarur tha ki wo apne mabap aur behan ka antim darshan bhi nari kar paya lekin us se bhi jyada ye sadma pahucha ki ekluta beta hone ke bavjud wo apne mabap ka antim sanskar bhi nahi kar paya.Dusre din dono Junaadh wapas aye aur Vikram apne uncle aunty aur pyari sunanda ki barahvi tak ruka, fir chala gaya.

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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Is ghatna ke thik 4 mahine bad 25th December 1977, natal ke din Rajeshwari devi ne ek putra ko janm diya. Ye balak hasta huva paida huva tha, thik subah 6.05 min par jab Girnar ke parvat par subah ki guru dattatrey ki aarti shuru huyi, ghantarav ke sath bachche ka janm huva. Chhatthi ke din bade hasrat se bachche ka nam JAY rakha gaya. Jab JAY do mahine ka huvadono mata pita ne mannat rakhi thi ki wo Girnar parvat pe jayenge aur mannat puri karenge. Kyoki Rajeshwaridevi bachpan se dharmik svabhav kit hi aur usko ye sanskar mile the ki…

“ GURU AUR GOVIND DONO KHADE KISKO LAGU PAY,

BALIHARI GURUDEV IN JIN GOVIND DIYO DIKHAY”

Yani bachpan se guru ki khauj thi. Guru dattatrey to guruo ke guru hai, to un dono ki mannat thi ki bachche ke janm ke bad Girnar jarur jayenge. March ke pehle week me dono Girnar chadhne ke liye subah 4.30 baje nikle.

Agar koi Girnar ke upar gaya ho to pata hoga Girnar parvat ko total 9,999 steps hai. Agar aap kisi ladies ke sath subah 4 se 5 baje shuru karengae to 12 se 1 baje tak pahuch payenge. Isiliye kishorilal aur Rajeshwaridevi ne subaj 5 baje chadhana shuru kiya.

Sabse pehle wo Ambaji pahuche waha darshan kiya. Thodi der aaram ke bad aur chadhai shuru ki. Jyada thand bhi nahi thi aur jyada garmi bhi nahi thi. Fir bhi thakan se thode pasine se tarbatar the. Waise bhi keval 2 mahine ke bachche ko sath me lekar Girnar jana to sambhav hi nahi hota, kyoki upar to oxygen bhi thodi kam ho jati hai to saas lene me bhi taklif hoti hai. Fir bhi indo no ne ishwar pe bharosa rakha tha ki tune aulad di hai to tu hi iska rakhwal banega aur dono age badhate badhate adhi uchai tak DAATAR tak pahuche. Thodi der vishram lene ka dono ne socha. Dono steps par baith gaye.

Itne me ek awaz ayi,” beta idhar ajao”. Aaspas to Ghana jungle huva karta hai waha daatar me. Dono ne aaspas nazar daudai, lekin kuchh nahi dikhai diya. Fir se awaz ayi,” teri dayi aur dekh aur sida andar chala aa.” Kishorilal ne dayi aur dekha to 50 kadam dur ek choti si gufa thi, thoda sa dar bhi laga, lekin vibration itne gehre the ki dono ke pair mano hipnotised hokar us gufa ki aur chalne lage. Pas aakar dekha to dono ku zuk kar andar jana pada itna chhota sa dwar tha. Don one andar pravesh kiya to andar 60 se 70 kadam dur ek chhote se paththar par koi sant dyanmagn awastha me baithe the. Chehre par bada tejas tha, gaur mukh chhoti si dadhi aur bhikhare kale baal, umra hogi koi 30 ya 32 saal ki. Lekin usko dekhate hi dono ko dar nahi laga aur pas jane ke bad don one pranamkiya aur baith gaye unke charno me. Sant ne dhire se ankhe kholi aur do min. tak muskurakar dekhate rahe aur dhire se bole,” Ham sadhu ko achchi aatma ki vibration ki badi achhi pehchan hoti hai. Tumdono ke sath tumhara bete aatma ki suvas muje tumdono ki yaha par khichane par majbur kar gayi.”

Kishorilal aur Rajeshwaridevi ko to bada ashcharya huva ki usne na to kabhi is sadhu ko dekha tha aur 70 feet age aur apni bayi aur gufa se 50 kadam dur unko yaha baithe baithe dekhane wale ye mahatma kaun hai. Khas karke jignasha ye huyi ki unke bete JAY ke bare me us sant ne achchhi aatma bola tha. Iska matlab wo mahatma job hi hai un sab ke bare me kuchh na kuchh jarur jante hai. Un dono ko badi jignasha huyi ki ye Sant akhir kaun hai ?? kaha se aye hai ?? kyo usko hi mile ?? aur inka maksad kya hai ??

Girnar ke khushnuma vatavaran me Kishorilal aur Rajeshwaridevi dono thake huve the aur awaz sunkar jaise hipnotised ki tarah awaz ki aur kichate chale gaye aur us sant ko dekhkar uske samne baithe huve the. Bade ashcharya se Kishorilal ne vinamrata se puchha,” Baba aap kaun hai, aur hame kaise jante hai aur aap ko kaise pata ki ham yaha hai aur aap is bachche ke bare me kya jante hai.” Sant thodi der muskuraye aur fir bole,” Bete is brahmand ke kai punya aatmaye is pruthvi par janm lena chahti hai, kyuki jab vo tapascharya kar rahe the tab uski puri ayu khatam ho gayi aur unko is duniya se avakash lena pada. Ab samay aa gaya hai ki uske pas jo hai wo is samaj me bate aur is samaj ke log jo tapashcharya ke liye ekant me nahi ja sakte wo yahi isi samaj me baithe baithe wo sabkuchh pa sake jo ki aaj tak sambhav nahi tha. Dusra kabhi ma bap santan ki pasandagi nahi kar sakta. Ve sirf parmatma se achchi santan ki prarthana kar sakte hai. Lekin ek aatma hamesha usko jo karya ya manokamana purna karni ho to vo apne liye aise upyukt ma bap ki pasandagi karta ho jaha use apne anukul vatavaran paryapt ho sake.”

Baba ki vani askhlit bah rahi thi. Dono bhavvibhor hokar ekchit sun rahe the. “ Jaise ek daru pinewala mar jata hai aur unki ye ichcha adhuri rah jati hai to uski aatma aisa ghar aur ma bap dhundhati hai jaha use daru ki koi bandhi na kar sake vaise hi ek pavitra aatma hamesha aisa vatavaran aur ma bap dhundhati hai jaha uski tapashcharya ka labh pure samaj ko mil sake. Tumhari aatma ek pavitra aatma hai aur tumhari patni ki aatma tumse bhi pavitra hai, tum dono ke kai janmo ke achche karmo ke fal swarup ye aatma tumhare bachche ke swarup me aayi hai. Is pavitra aatma ko samanya samajane ki bhul kabhi mat karma. Is aatma ne is beti ki kukh ko svikar kiya isi se tum dono ka janm safal ho chukahai. Lekin abhi upyukt samay nahi aaya hai. Ye bachcha to sirf madhyam hai ise bade jatan se tumhe wo vatavaran dena hai jis se uski aatma tum logo se bhi pavitra honi hai. Kyuki aane wala samay kaliyug ka bada khatarnak samay aanewala hai. Is samay me ek bachche ko achche sanskar dena bahut kathin karya hona hai. Khas karke beti tumhe bahut mehnat karni padegi, kyuki agar ye sath nahi de saka to tumhe akele is safar ko tay karma hai.”

Dono ekdusre ko dekhate rahe. Rajeshwaridevi ne maun todte huve puchha,” baba aap kah rahe hai ki muje akele safar tay karma hoga to kya…” Sant ne bich me rok kar jawab diya,” Nahi beti koi shanka nahi hai ki tumhare pati ki ayushya kam hogi, dirghayushya hai uski lekin kuchh apne purva janm ke dosh bhi to bhogatane hote hai. Me koi bhavishyaveta nahi hu. Me yaha sirf apne guruo ke aadesh se aya hu.” Fir ankhe bandh kar ke aur bole,” Mere guruo ne bataya tha ke isi din isi samay tu log muje yaha miloge aur me tumhe kuchh bate batau. Beti maine tumhe jo kaha hai use yad rakho kyuki tumhara beta agar jaisa ham sadhulogo ne socha hai vaisi aatma huyi to unki shadi ek is se bhi pavitra aatma se honewali hai aur undono ke sanyog se jo santan bhavishya me aanewali hai wo mere guruo me se hi koi ek hoga. Kyuki samay abhi bahut hai lekin abhi se aap ko agaz karna ham sadhuo ka kartavya hai.”

Rajeshwaridevi ne bade pyar se apne god me baithe huve JAY ki aur dekha aur baba ko puchha,” Baba, aapka adesh hamare sar ankho par, lekin iski layak bachchi kaun hai wo to aap ko pata hi hoga, uske bare me hame krupya kuchh jankari dijiye.”

Baba ne 2 min ke bad maun toda,” vaise ye bhavishya ki bate hai lekin me aap ko thodi jankari deta hu. Inke layak bachchi tumhare kisi nikat swajan, dost ke yaha janm lenewali hai.” Kishorilal ekdam khush ho gaya,” Baba aap kahi mere dost Vikram ki bat to nahi kar rahe hai.”

Baba fir ankhe bandh karke 2 min ke bad bole,”Bete mere guruo ki koi sanket nahi mil rahi hai, lekin ha is dost se hamesha savdhan rehne ki suchana me tumhe du aisi agya muje mere guru de rahe hai.”

Dono ekdusre ko dekhate rahe. Baba ne ankhe khole aur fir bole,” Bete ham sadhuo ko sirf us pavitra aatma jo hamare guruo mese koi hai uske janm ke liye upyukt ma bap aur vatavaran mile uski hi fiqra hai. Baki is samaj ki ghatna ki koi suchana hame nahi hai, kyuki tumne tumhare dost ki bat batayi to kuchh jawab nahi aya lekin savdhan rehne ki suchana mil rahi hai.”

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kramashah................

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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: किस्मत का खेल

Post by rajsharma »

किस्मत का खेल पार्ट --3

गतान्क से आगे.......

किशोरीलाल बड़े आश्चर्या से देखता रहा और पुचछा,” लेकिन बाबा अगर विक्रम की ही बेटी से मेरेबेटे की शादी होनी है तो मुझे उसके साथ संबंध तो रखना ही पड़ेगा ना.” बाबा मुस्कुरकर बोले,” बेटे हम संबंध जोड़ने और तोड़नेवाले कौन होते है. और मैं कहा संबंध तोड़ने की बात कर रहा हू. अगर उसकी बेटी के साथ ही इस बच्चे की शादी होनी है तो उसे कोई नही रोक पाएगा.”

फिर ध्यान मे बैठ कर 2 मिनट के बाद बोले,” बेट एक और सूचना मुझे मिल रही है की अपने बेटे को कभी ग़लत नही समझना, उसे भी अपने पिछछले जन्मो के करमो को भोगतान है. याद रखो तुम चाहो की ना चाहो जो होना है वो तो होना ही है. लेकिन हमे सिर्फ़ कर्म करना है और तुम दोनो को कर्म करते हुवे सिर्फ़ एक अच्छा माध्यम होना है. दूसरा इस बच्चे की शादी जिसके साथ होनी है वो जल्द ही इस पृथ्वी पर जन्म लेनेवाली है.”

दोनो ने प्रणाम किया और बोले,”और कोई आदेश बाबा.”

बाबा बोले,” बस और कुच्छ नही अब प्रस्थान कीजिए मुझे भी जाना होगा,”

दोनो ने बहुत विनती को वे उनके घर आए, लेकिन बाबा बोले,”मेरी साधना अभी अधूरी है. मैं हिमालय जा रहा हू.जब मेरे गुरु आदेश देंगे तो मैं फिर आप को मिलूँगा. मेरा आशीर्वाद तुम दोनो पर हमेशा रहेगा,लेकिन याद रखना करमो के फल तो भुगतने ही होते है चाहे भगवान हो या इंसान.”

इसके बाद बाबा ने जय को गोदी मे उठाया और थोड़ी देर आँखे बाँध करके उसके मस्तिष्क पर हाथ रखा और 2 मिनट बाद फिर उसकी मा को वापिस कर दिया. दोनो खड़े हुवे और प्रणाम करके गुफा के बाहर चले आए और आगे चढ़ना शुरू किया. करीब 12 बजे के वक़्त वे गुरु दत्तात्रेय पहुचे और बड़ी आदर और आस्था से मन्नत पूरी की और वापिस उतरना शुरू किया. रास्ते मे फिर डाटार रुके और उस गुफा मे गये तो कोई नही दिखा और ईश्वर का प्रसाद समजकर दोनो वापिस अपने संसार मे खो गये.

इसके बाद किशोरीलाल और राजेश्वरी देवी की अलग लाइफ शुरू हुई और वाहा जोधपुर मे विक्रम कई राज़ अपने दिल मे च्छुपाकर मस्त ज़िंदगी जी रहा था. ऐसे ही 2 साल बीत गये. जब विक्रम को छुट्टी की तकलीफ़ थी तो किशोरीलाल ने सोचा क्यू ना वे दोनो जोधपुर चले जाए और विक्रम से मिले. दोनो ने टेलिग्रॅम किया और ट्रेन पकड़ ली. विक्रमकी सच्ची ज़िंदगी अब सामने आनेवाली थी जिसका कोई अंदाज़ा इन दोनो को नही था.

जब किशोरीलाल विथ फॅमिली जोधपुर पहुचे तो रेलवे स्टेशन पर विक्रम का खास नौकर बंसीबाबू खड़े थे उन्होने स्वागत किया. जब किशोरीलाल ने विक्रम के लिए पुचछा तो बंसी ने बताया की वो तो शिकार पर गये है और रात को देर से लौटेंगे, क्यूकी टेलिग्रॅम आज सुबह देर से आया था इसीलिए विक्रम को तो पता ही नही था. और ये ही वजह उसके लिए घातक सिद्ध हो गयी. थके हुए किशोरीलाल विथ फॅमिली जोधपुर के आलीशान बंग्लॉ पर पहुचे. नारायनप्रासाद के समय से ही किशोरीलाल का पूरा फॅमिली ग़रीबी मे आ चुक्का था, लेकिन राजेश्वरिदेवी तो पहली बार जोधपुर आई थी, उसने देखा की यहा पैसे की, अमीरी की कोई कमी नही थी. एक बड़ी हवेली के पास तांगा रुका और बंसी सब को अंदर ले गया. पूरी हवेली 3 मजलो पे फैली हुई थी. हर मजले पर 10 से 12 रूम्स थे. इस पूरी हवेली मे विक्रम अकेला रहता था. फ्रेश होकर सब दीवानखाना मे आए और बंसी गरम गरम चाय लेके आया. बंसी 40 साल का था और सेवा के लिए अभी शादी नही की थी. उसका एक ही मकसद था विक्रम की देखरेख करना. दोनो दोस्तो के पिताजी ने यही ज़ोर लगाया था की विक्रम को संभाले. लेकिन आज बंसी कुच्छ गंभीर दिख रहा था. वैसे तो किशोरीलाल को देखते ही उसकी आँखो मे आनंद दिखाई देता था. क्योकि किशोरीलाल उसे दोस्त की तरह रखता था और विक्रम सिर्फ़ बंसी का इस्तेमाल करता था. विक्रम जानता था कि बंसी पुराने ख़यालात का है इसीलिए अपने कुकर्म कभी किसी से शेर नही करता था, यहा तक की किशोरीलाल को भी कुच्छ कुच्छ बाते ही पता थी. किशोरीलाल ने बंसी को जब पुचछा,”क्यो बंसी हम लोग आए ये तुझे पसंद नही, तेरी भाभी पहली बार आई तो क्या कुच्छ बाते ही नही करेगा मुझसे ?, मेरा बच्चा पहली बार आया है यहा, क्या तुझे अच्छा नही लगता ?”

बंसी के आँख मे आँसू आ गये और भारी स्वर मे बोला,”भैया (किशोरीलाल ने उसे भैया कहने को ही बोल रखा था) ये कैसी बाते करते है आप, मेरी बीबीजी पहली बार आया है, छ्होटे बाबा पहली बार यहा पधारे है तो क्या मुझे खुशी नही होगी ?, इतना गिरा हुवा हू क्या मैं ? ये तो हमारे सदभाग्य है की कोई संस्कारी औरत के पाव कई साल के बाद इस हवेली मे उतरे है . और आप ने भाभी बोल दिया ये ही बहुत है मेरे लिए वरना मेरी क्या औकात भला.”

किशोरीलाल ने फिर पुचछा,”वो सब छ्चोड़ लेकिन तेरी सूरत पे क्यू बारह बजे है ये तो बता ?”

“क्या बताउ भैया,” बंसी बोला,”साहब की मृत्यु के बाद आप के पिताजी ही थे जिसके काबू मे बाबा रहते थे (बाबा यानी विक्रम), लेकिन उसकी भी मृत्यु के बाद उसकी शराब पीने की आदत और भी ज्याद हो चुकी है. और अब तो कंट्रोल से भी बाहर है.” किशोरीलाल ने कहा,”हा ये तो मैं जानता हू की शराब की बुरी लत लगी है इसको, लेकिन तू कुच्छ क्यू नही कहता.” “अरे बाबा मे क्या बोलू, मेरी थोड़ी ही सुनते है बाबा ?” बंसी ने बताया.

किशोरीलाल ने थोड़ी देर बाद बताया,” मैं आज बात करूँगा उस से, शायद पिताजी के मरने का गम लगा हो उसको.”

“ हा ये हो सकता है कि अंकल की मृत्यु के बाद जब बाबा वापस आए तो तीन दिन तक तो घर मे ही बैठे रहे थे और पूरी तरह नशे मे डूबे हुवे थे. लेकिन बाद मे तो मानो लत ही लग गयी हो.”

“लेकिन ये बात तो साफ ही थी कि मेरे पिताजी की मृत्यु का सदमा तो लगनेवाला ही था उसे.” किशोरीलाल ने बताया.

बंसी ने जवाब दिया,”भैया, सिर्फ़ सदमा होता तो थोड़े दीनो मे ख़तम भी हो जाता, लेकिन आजकल तो यहा शराब और मुज़रा की महफ़िल भी जमती है. ऐसे महॉल को सदमा नही ऐयाशी कहते है. आप घरवाले है इसीलिए मैं ज़ुबान खोलता हू वरना ना तो मेरी औकात है और नही मुझे घर की बाते बाहर निकालने का इरादा है.”

“क्या बात करते हो, विक्रम को ये शौक कब लगा ? “ किशोरीलाल ने पुचछा.

बंसी घबराता हुवा बोला उठा,”भैया मेरा नाम नही आना चाहिए वरना बाबा मेरी खाल उधेड़ देंगे. लेकिन यहा की मशहूर कोठे वाली बाई रंगीली ने ये लत लगाई है. दूसरा बाबा रंगीली बाई से शायद डरते भी है.”

“क्यू ?” किशोरीलाल ने पुचछा तो बंसी ने जवाब दिया,” वो तो मुझे पता नही लेकिन उसके इशारे से बहुत कुच्छ होता है यहा.”

“चलो में बात करूँगा विक्रम से.” कहकर चाय पीकर किशोरीलाल विक्रम के कमरे मे गया और राजेश्वरिदेवी बंसी के साथ रसोईघर मे गयी. बंसी के लाख मना करने पर भी राजेश्वरिदेवी ने खाने मे उसका हाथ बटाया. यहा विक्रम के कमरे मे सोच मे डूबा हुवा किशोरीलाल बैठा था की वो विक्रम से कैसे बात करे. तभी खाने की आवाज़ आई और दोनो ने खाना खाया और फिर राजेश्वरिदेवी आराम करने चली गयी और किशोरीलाल फिर विक्रम के कमरे मे आया. बंसी सफ़साफाई करने मे लग गया था. अचानक आधे घंटे के बाद बंसी की आवाज़ आई,”भैया भाभिजी आप को बुला रही है.” किशोरीलाल राजेश्वरिदेवी के पास पहुचा तो उसके हाथ मे एक पोस्ट का जला हुवा कवर था जिसमे कुच्छ फोटोग्रॅफ्स थे और एक कोई मेडिकल रिपोर्ट थी. सब को जलाने की किसीने कोशिश की थी. किशोरीलाल ने फोटोग्रॅफ्स देखने की कोशिश की. फोटोस कोई समुंदर किनारे की उँचे पत्थरो की थी और बहुत दूर से खींची गयी थी और ब्लॅक & वाइट का जमाना था तो स्पष्ट स्वरूप से कुच्छ नही दिखाई देता था. आधी जैल हुई तस्वीर को देखना भी मुश्किल था. लेकिन आँखो मे आँसू लिए खड़ी हुई राजेश्वरिदेवी ने उसके हाथ मे जो मेडिकल रिपोर्ट थी वो किशोरीलाल को दिखाई तो गुस्से से उसकी आँखे फटी रह गयी.

वो मेडिकल रिपोर्ट कन्याकुमारी के किसी हॉस्पिटल की थी जिसमे लिखा था की नारायनप्रासाद की फॅमिली के तीनो सदस्यो की मौत सिर पे गहरी चौत लगने से हुई थी. इसमे तो कोई हैरत की बात नही थी लेकिन आगे जो लिखा था वो पढ़कर मानो बिजली गिर पड़ी थी. सुनंदा के गुप्तांग मे इजा पाई गयी थी. इसका स्पष्ट मतलब था की किसी ने उसपर बलात्कार किया था या बलात्कार की कोशिश की थी. चिल्लाकर किशोरीलाल ने बंसी को आवाज़ लगाई. बंसी दौड़ता हाजिर हुवा. किशोरीलाल को गुस्से मे और आँखो मे खून के आँसू देखे और राजेश्वरिदेवी की आँख मे आँसू देखकर वो समझ गया की मामला गंभीर है. उसने पुचछा,”क्या हुवा भैया ?” किशोरीलाल ने कवर दिखाकर पुचछा,”ये क्या है ?” बंसी ने कवर हाथ मे लेकर, देखकर बोला,”ये तो वो कवर है जो एकदिन बाबा के हाथो से नशे की हालत मे आग की भट्टी मे चला गया था. मैने सोचा कि ये कोई ज़रूरी काग़ज़ है इसीलिए मैने आग से निकाल लिया और यहा इस कमरे मे रख दिया. बाद मे बाबा से कभी बात नही हो पाई क्यूकी बाबा घर कम और बाहर ज़्यादा रहते थे. लेकिन इसमे है क्या ?”

किशोरीलाल कुच्छ नही बोल पाया लेकिन राजेश्वरी देवी ने बताया,” बंसी भैया ये पिताज़े, माताजी और सुनंदा बहन की मेडिकल रिपोर्ट है और इसमे लिखा है की सुनंदा बहन की लाज लूटी गयी है या किसी ने लाज लूटने की कोशिश की है.”
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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