वतन तेरे हम लाडले complete
- xyz
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Re: वतन तेरे हम लाडले
nice update
Friends Read my all stories
(मैं और मेरा परिवार Running )........
(रेशमा - मेरी पड़ोसन complete).....(मेरी मस्तानी समधन complete)......
(भूत प्रेतों की कहानियाँ complete)....... (इंसाफ कुदरत का complete).... (हरामी बेटा compleet )-.....(माया ने लगाया चस्का complete). (Incest-मेरे पति और मेरी ननद complete ).
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- Ankit
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Re: वतन तेरे हम लाडले
superb update
- sexi munda
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Re: वतन तेरे हम लाडले
superb bhai jan............
मित्रो नीचे दी हुई कहानियाँ ज़रूर पढ़ें
जवानी की तपिश Running करीना कपूर की पहली ट्रेन (रेल) यात्रा Running सिफली अमल ( काला जादू ) complete हरामी पड़ोसी complete मौका है चुदाई का complete बड़े घर की बहू (कामया बहू से कामयानी देवी) complete मैं ,दीदी और दोस्त complete मेरी बहनें मेरी जिंदगी complete अहसान complete
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- rajsharma
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- Joined: 10 Oct 2014 07:07
Re: वतन तेरे हम लाडले
यह सुनकर मेजर के पांव तले जमीन ही न रही, उसे लगा जैसे वह अब अपनी जगह पर गिर जाएगा उसने काँपती हुई आवाज़ में कहा, कहा ....... बच्चा ..... कौन सा बच्चा .... ???
कर्नल इरफ़ान फिर व्यंग्य का ठहाका लगाया और बोला वही बच्चा जो तुम्हारी जवान पत्नी के पेट में पल रहा है, लो अपनी पत्नी से बात करो ... यह कह कर कर्नल इरफ़ान ने फोन रश्मि के कान से लगा दिया जिसके हाथ पांव कर्नल इरफ़ान बाँध चुका था और वह एक अज्ञात जगह पर कैद थी। मेजर राज को रश्मि की आवाज सुनाई दी: हाय राज ???
रश्मि की आवाज सुनकर मेजर के होश खता हो गए, वह वास्तव में कर्नल इरफ़ान जैसे बेरहम और ज़ालिम आदमी के कब्ज़े में थी, लाचार मेजर राज की आंखों से आंसू बहने शुरू हो गए, वह बहुत बहादुर और मज़बूत जिस्म का मालिक था मगर इस समय वह बिल्कुल कमजोर बच्चे की तरह था जिसके हाथ में कुछ भी नहीं था, उसने हकलाती हुई आवाज में कहा, रश्मि तुम कहाँ हो ???
मगर आगे रश्मि की गूँजदार और शांत आवाज सुनाई दी: राज आपने सारा जीवन मेरे साथ रहने का वादा किया था, और मेरी सुरक्षा का मुझे आश्वासन दिया था, और मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम कभी वादा खिलाफी नहीं कर सकते। लेकिन याद रखना एक वादा आपने इस पवित्र भूमि से भी किया था कि अपनी जान पर खेलकर इस देश की एक एक इंच की रक्षा करेंगे। राज आज मैं रहूं या न रहूं, लेकिन तुम्हे मेरी तरह इस मातृभूमि पर, हमारे देश पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए .... रश्मि की इतनी शांत और भावनाओं से भरपूर आवाज सुनकर मेजर राज रो पड़ा था, उसकी आँखों से न केवल आंसू बह थे बल्कि वह बच्चे की तरह बिलबिला कर रो रहा था। उसके भ्रम व गुमान में भी नहीं था कि उसकी वजह से कभी उसकी पत्नी पर इतना बुरा समय आ जाएगा। वह अब भूल चुका था कि वह किस मिशन पर है और लोकाटी जल्द ही कितनी खतरनाक घोषणा करने वाला था, उसके मन में अगर कुछ था तो उसकी पत्नी ........ और उसका बच्चा ... जो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं था।
मेजर राज ने रोते हुए कहा रश्मि हमारा बच्चा ...... ????
रश्मि हल्की आवाज में मुस्कुराई और बोली हां हमारे बच्चे को भी अपने पापा पर गर्व होगा और आप को भी अपने बच्चे और अपनी पत्नी पर गर्व होना चाहिए कि वह अपने देश की खातिर अपनी जान का त्याग करने के लिए तैयार हैं,
मेजर राज फिर रोने लगा, नहीं रश्मि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। कभी नहीं होने दूंगा। इससे पहले कि रश्मि कुछ और कि पाती, कर्नल इरफ़ान ने उसके कान से फोन निकाल लिया और बोला चल हट, बड़ी आई जान की कुर्बानी देने वाली क्या समझती है तेरी ये बातें भारत को टूटने से बचा लेंगी ? यह कह कर उसने रश्मि के पेट में एक लात मारी जिससे रश्मि की एक दिलख़राश चीख निकली जो मेजर राज के कानों को चीरती हुई खत्म हो गई। मेजर राज समझ गया था कि कर्नल इरफ़ान ने रश्मि पर वार किया है, वह चिल्लाता हुआ कर्नल इरफ़ान से बोला कि खबरदार जो रश्मि को एक खराश तक भी पहुंचाई नहीं तो मैं तेरी बोटी बोटी कर दूंगा।
मगर कर्नल इरफ़ान पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ, वह जानता था कि उस समय मेजर राज कुछ नहीं कर सकता। अब मेजर राज को भी अपनी धमकी खोखली महसूस हो रही थी, वह जानता था कि उसके हाथ में कुछ नहीं रहा, खेल खत्म हो चुका है, अब उसे अपनी गलती का तीव्रता से महसूस हो रहा था, जब समीरा ने मेजर राज को इस बात पर उकसाया था कि कर्नल इरफ़ान को राफिया के बारे में बताकर अमजद और उसके साथियों को रिहा करवाए तो एक पल के लिए मेजर राज ने सोचा था कि यह सही नहीं है, अपनी आपस की लड़ाई में किसी की बेटी, किसी की इज्जत से खेलना और उसका लाभ उठाना ठीक नहीं। मगर फिर उसने सोचा कि वह कौन सा वास्तव में राफिया को नुकसान पहुंचाना चाहता है, बस एक धमकी ही देनी है और कर्नल इरफ़ान बेटी के प्यार में उसकी बात मान जाएगा। यही मेजर राज की गलती थी कि उसने एक पिता की भावनाओं का ख्याल नहीं किया, दरअसल उसने राफिया को कुछ नहीं कहा, लेकिन कर्नल इरफ़ान एक बेटी का बाप था, बेटी का सुनकर उसे कैसा महसूस हुआ होगा? वह किस पीड़ा से गुजरा होगा, मेजर राज ने यह सोचा ही नहीं था, और अब उसे इस गलती का अहसास तीव्रता से महसूस हो रहा था।
वह अब फोन पर कर्नल इरफ़ान की मिन्नतें कर रहा था कि भगवान के लिए मेरी पत्नी और बच्चे को छोड़ दो, इनका कोई दोष नहीं, मेरे बच्चा तो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं ....
इस पर कर्नल इरफ़ान ने अत्यंत दुख भरे स्वर में कहा, मेरी बेटी राफिया का क्या दोष था ??? तब तुम्हें विचार नहीं आया कि एक पिता के दिल पर क्या गुज़रेगी ???
मेजर राज ने कहा तुम अपनी बेटी से पूछ लो अगर मैंने उसको बाल बराबर भी नुकसान पहुंचाया हो, मैं तो तुम्हें फोन करने के बाद उसका फोन लेकर वहां से चला आया था और वह पूरी तरह आज़ाद थी तुम्हारी बेटी को कोई खतरा नहीं था। ..... प्लीज़ मेरी पत्नी को छोड़ दो ....
मगर कर्नल इरफ़ान कहां सुनने वाला था, उसके दिल में न केवल राफिया का बदला था बल्कि भारत को दो फाड़ करने का मिशन भी था, आखिरकार कर्नल इरफ़ान ने कहा मैं तुम्हारी पत्नी को छोड़ दूँगा, मगर तुम वहाँ से वापस आजाो, और खबरदार, जो तुमने लोकाटी की कोई सीडी वहाँ चलाई। साना जावेद की फिल्म वाली सीडी चलने दो, लोकाटी को विद्रोह की घोषणा करने दो मैं तुमसे वादा करता हूँ, एक आर्मी कर्नल तुम्हें अपना वादा दे रहा है कि मैं तुम्हारी पत्नी को छोड़ दूंगा और फिर विद्रोह को कुचलने के लिए तुम पूरा जोर लगा लेना, फिर युद्ध के मैदान में ही हम दोनों आमने सामने आएंगे, और मेरा तुमसे वादा है तुम्हे तुम्हारी धरती पर ही अपने पैरों से कुचल कर मारूँगा और तुम्हारी पत्नी सारा जीवन शहीद की विधवा बनकर खुशी खुशी जिंदगी बिता लेगी ।
मेजर राज ने फिर कहा, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ, मैं लोकाटी भी कुछ नहीं कहूंगा, मैं उसकी सीडी नहीं चलाउन्गा मगर भगवान के लिए मेरी पत्नी को छोड़ दो। इस पर कर्नल इरफ़ान ने ठहाका लगाया और बोला पहले पहले विद्रोह शुरू तो हो लेने दो फिर तुम्हारी इस सुंदर और जवान पत्नी को छोड़ दूंगा। अभी कर्नल इरफ़ान ने इतना ही कहा था कि मेजर राज के कानों में लोकाटी की आवाज गूंजी, वह एक बार फिर मंच पर खड़ा हो गया था और उसने घोषणा कर दी थी कि अब हम आपको वह फिल्म दिखाएंगे जो कहानी मैंने आपको अभी सुनाई है, अगर हमारी इस बेटी के सिर से उतरती चादर देखकर भी आपका सम्मान नहीं जागता तो लानत भेजूँगा आपकी मर्दानगी को और यहीं इस सभा में अपने आपको गोली मार कर उड़ा दूंगा, कि मैं ऐसे बेगैरत राष्ट्र का नेता नहीं बन सकता जिसकी अपनी बेटी की इज्जत लुटती देखकर भी जमीर ना जागे। और अगर इस फिल्म को देखने के बाद आपका जमीर जाग उठे, आप मेरी एक आवाज पर अपनी जान देने के लिए तैयार हो जाओ, तो मैं वादा करता हूँ कि इस देश की हर बेटी की इज्जत की रक्षा के लिए आपके कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहूंगा, अपने खून की आखिरी बूंद तक आपकी बेटियों की इज्जत की रक्षा की खातिर देने के लिए तैयार रहूंगा, भारत की क्रूर सेना के अत्याचार और आपकी बेटियों की इज्जत के बीच में लोहे की दीवार बनकर खड़ा हो जाउन्गा, भारत की सेना पहले मेरी लाश पर से गुज़रेगी तो आपकी बेटियों की इज्जत पर हाथ डालेगी, लेकिन मुझे यकीन है कि मेरे मरने के बाद भी मेरी जगह लेने मेरी प्रजा के बहुत लोग मौजूद होंगे, और स्वतंत्रता की इस लड़ाई को तब तक लड़ेंगे जब तक राष्ट्र का हर आदमी मारा ना जाए, या फिर स्वतंत्रता हासिल न कर लें ...
लोकाटी का इतना कटौती दार भाषण सुनकर वहां मौजूद लोगों की भावनाओं अपने चरम पर पहुँच व्हुकी थी और अब पूरी सभा स्थल में भारत की सेना के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी और हर कोई प्रतिज्ञा कर रहा था कि वह अपनी बेटियों की इज्जत की रक्षा की खातिर अपनी गर्दनें कटवाने के लिए तैयार हैं। उधर कर्नल इरफ़ान भी मेजर राज के फोन के माध्यम से यह सारा भाषण सुन रहा था और ठहाके लगा रहा था, उसे विश्वास था कि इस भाषण के बाद कोई भी स्वस्थ युवा बिना कुछ सोचे समझे विद्रोह की घोषणा कर देगा और उसके लिए अपनी जान भी कुर्बान कर देगा। उसने फिर फोन मेजर राज को कहा कि देखो उन भावनाओं को .... क्या तुम उनकी भावनाओं को अपनी गोलियों से रोक सकते हो? तुम उनके सम्मान को समाप्त कर सकते हैं ???? नहीं मेजर नहीं ... तुम हार चुके हो, तुम कुछ नहीं कर सकते, तो भलाई इसी में है कि चुपचाप वहां से वापस आ जाओ और अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ अपना बाकी जीवन आराम से गुजारो ,
मेजर राज कोई फैसला नहीं कर पा रहा था, तो उसकी नज़र एक साइड पर बुलेटप्रूफ शीशे पर पड़ी जहां लोकाटी का खास आदमी था जिसने फिल्म चलानी थी उसे मेजर राज के इशारे का इंतजार कर रहा था ... तब मेजर राज को होश आया कि वह यहाँ क्यों आया था और उसका मकसद क्या था, उसके मन में एक ओर आर्मी ज्वाइन करते समय खाई गई कसम थीं कि वह अपने देश की खातिर अपना तन मन धन बलिदान कर देगा, तो दूसरी तरफ अपनी प्यार करने वाली पत्नी के साथ बिताए गए वो कुछ क्षण थे जिनके परिणामस्वरूप उसकी पत्नी पेट से थी और उसके बच्चे की मां बनने वाली थी मेजर को फैसला करना मुश्किल हो रहा था, वह अपनी निर्दोष पत्नी और बच्चे का कैसे त्याग कर सकता है ???
मगर फिर लोकाटी आवाज उसके में गूंजी कि फिल्म ड्राइव ............. जैसे ही यह बात मेजर राज के कानों में गूँजी , मेजर राज की नज़रों के सामने वह मासूम बच्चे आने लगे, वह निर्दोष जानें आने लगे, वह मासूम बेटियाँ और इस देश की औरतें आने लगीं जोकि इस विद्रोह के परिणामस्वरूप पाकिस्तानी सैनिकों से हलाक होने वाली थीं ...
एक ओर मेजर राज के सामने अपनी पत्नी के पेट में पलने वाला मासूम बच्चा, और अपनी पाक दामन और निर्दोष पत्नी थी जिसने अब जीवन की खुशियां देखी ही नहीं थी, तो दूसरी ओर अपने लोगों की वह अनगिनत बच्चियां थीं जो पाकिस्तानी सेना के उत्पीड़न का निशाना बनने जा रही थीं, उनके दूसरे देश के मुसलमान सैनिक जो अत्याचार करने वाले थे निर्दोष और मासूम मुसलमानों के साथ उनको उसका पता ही नहीं था ,
कर्नल इरफ़ान फिर व्यंग्य का ठहाका लगाया और बोला वही बच्चा जो तुम्हारी जवान पत्नी के पेट में पल रहा है, लो अपनी पत्नी से बात करो ... यह कह कर कर्नल इरफ़ान ने फोन रश्मि के कान से लगा दिया जिसके हाथ पांव कर्नल इरफ़ान बाँध चुका था और वह एक अज्ञात जगह पर कैद थी। मेजर राज को रश्मि की आवाज सुनाई दी: हाय राज ???
रश्मि की आवाज सुनकर मेजर के होश खता हो गए, वह वास्तव में कर्नल इरफ़ान जैसे बेरहम और ज़ालिम आदमी के कब्ज़े में थी, लाचार मेजर राज की आंखों से आंसू बहने शुरू हो गए, वह बहुत बहादुर और मज़बूत जिस्म का मालिक था मगर इस समय वह बिल्कुल कमजोर बच्चे की तरह था जिसके हाथ में कुछ भी नहीं था, उसने हकलाती हुई आवाज में कहा, रश्मि तुम कहाँ हो ???
मगर आगे रश्मि की गूँजदार और शांत आवाज सुनाई दी: राज आपने सारा जीवन मेरे साथ रहने का वादा किया था, और मेरी सुरक्षा का मुझे आश्वासन दिया था, और मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि तुम कभी वादा खिलाफी नहीं कर सकते। लेकिन याद रखना एक वादा आपने इस पवित्र भूमि से भी किया था कि अपनी जान पर खेलकर इस देश की एक एक इंच की रक्षा करेंगे। राज आज मैं रहूं या न रहूं, लेकिन तुम्हे मेरी तरह इस मातृभूमि पर, हमारे देश पर कोई आंच नहीं आनी चाहिए .... रश्मि की इतनी शांत और भावनाओं से भरपूर आवाज सुनकर मेजर राज रो पड़ा था, उसकी आँखों से न केवल आंसू बह थे बल्कि वह बच्चे की तरह बिलबिला कर रो रहा था। उसके भ्रम व गुमान में भी नहीं था कि उसकी वजह से कभी उसकी पत्नी पर इतना बुरा समय आ जाएगा। वह अब भूल चुका था कि वह किस मिशन पर है और लोकाटी जल्द ही कितनी खतरनाक घोषणा करने वाला था, उसके मन में अगर कुछ था तो उसकी पत्नी ........ और उसका बच्चा ... जो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं था।
मेजर राज ने रोते हुए कहा रश्मि हमारा बच्चा ...... ????
रश्मि हल्की आवाज में मुस्कुराई और बोली हां हमारे बच्चे को भी अपने पापा पर गर्व होगा और आप को भी अपने बच्चे और अपनी पत्नी पर गर्व होना चाहिए कि वह अपने देश की खातिर अपनी जान का त्याग करने के लिए तैयार हैं,
मेजर राज फिर रोने लगा, नहीं रश्मि नहीं, ऐसा नहीं हो सकता मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। कभी नहीं होने दूंगा। इससे पहले कि रश्मि कुछ और कि पाती, कर्नल इरफ़ान ने उसके कान से फोन निकाल लिया और बोला चल हट, बड़ी आई जान की कुर्बानी देने वाली क्या समझती है तेरी ये बातें भारत को टूटने से बचा लेंगी ? यह कह कर उसने रश्मि के पेट में एक लात मारी जिससे रश्मि की एक दिलख़राश चीख निकली जो मेजर राज के कानों को चीरती हुई खत्म हो गई। मेजर राज समझ गया था कि कर्नल इरफ़ान ने रश्मि पर वार किया है, वह चिल्लाता हुआ कर्नल इरफ़ान से बोला कि खबरदार जो रश्मि को एक खराश तक भी पहुंचाई नहीं तो मैं तेरी बोटी बोटी कर दूंगा।
मगर कर्नल इरफ़ान पर इस धमकी का कोई असर नहीं हुआ, वह जानता था कि उस समय मेजर राज कुछ नहीं कर सकता। अब मेजर राज को भी अपनी धमकी खोखली महसूस हो रही थी, वह जानता था कि उसके हाथ में कुछ नहीं रहा, खेल खत्म हो चुका है, अब उसे अपनी गलती का तीव्रता से महसूस हो रहा था, जब समीरा ने मेजर राज को इस बात पर उकसाया था कि कर्नल इरफ़ान को राफिया के बारे में बताकर अमजद और उसके साथियों को रिहा करवाए तो एक पल के लिए मेजर राज ने सोचा था कि यह सही नहीं है, अपनी आपस की लड़ाई में किसी की बेटी, किसी की इज्जत से खेलना और उसका लाभ उठाना ठीक नहीं। मगर फिर उसने सोचा कि वह कौन सा वास्तव में राफिया को नुकसान पहुंचाना चाहता है, बस एक धमकी ही देनी है और कर्नल इरफ़ान बेटी के प्यार में उसकी बात मान जाएगा। यही मेजर राज की गलती थी कि उसने एक पिता की भावनाओं का ख्याल नहीं किया, दरअसल उसने राफिया को कुछ नहीं कहा, लेकिन कर्नल इरफ़ान एक बेटी का बाप था, बेटी का सुनकर उसे कैसा महसूस हुआ होगा? वह किस पीड़ा से गुजरा होगा, मेजर राज ने यह सोचा ही नहीं था, और अब उसे इस गलती का अहसास तीव्रता से महसूस हो रहा था।
वह अब फोन पर कर्नल इरफ़ान की मिन्नतें कर रहा था कि भगवान के लिए मेरी पत्नी और बच्चे को छोड़ दो, इनका कोई दोष नहीं, मेरे बच्चा तो अभी इस दुनिया में आया भी नहीं ....
इस पर कर्नल इरफ़ान ने अत्यंत दुख भरे स्वर में कहा, मेरी बेटी राफिया का क्या दोष था ??? तब तुम्हें विचार नहीं आया कि एक पिता के दिल पर क्या गुज़रेगी ???
मेजर राज ने कहा तुम अपनी बेटी से पूछ लो अगर मैंने उसको बाल बराबर भी नुकसान पहुंचाया हो, मैं तो तुम्हें फोन करने के बाद उसका फोन लेकर वहां से चला आया था और वह पूरी तरह आज़ाद थी तुम्हारी बेटी को कोई खतरा नहीं था। ..... प्लीज़ मेरी पत्नी को छोड़ दो ....
मगर कर्नल इरफ़ान कहां सुनने वाला था, उसके दिल में न केवल राफिया का बदला था बल्कि भारत को दो फाड़ करने का मिशन भी था, आखिरकार कर्नल इरफ़ान ने कहा मैं तुम्हारी पत्नी को छोड़ दूँगा, मगर तुम वहाँ से वापस आजाो, और खबरदार, जो तुमने लोकाटी की कोई सीडी वहाँ चलाई। साना जावेद की फिल्म वाली सीडी चलने दो, लोकाटी को विद्रोह की घोषणा करने दो मैं तुमसे वादा करता हूँ, एक आर्मी कर्नल तुम्हें अपना वादा दे रहा है कि मैं तुम्हारी पत्नी को छोड़ दूंगा और फिर विद्रोह को कुचलने के लिए तुम पूरा जोर लगा लेना, फिर युद्ध के मैदान में ही हम दोनों आमने सामने आएंगे, और मेरा तुमसे वादा है तुम्हे तुम्हारी धरती पर ही अपने पैरों से कुचल कर मारूँगा और तुम्हारी पत्नी सारा जीवन शहीद की विधवा बनकर खुशी खुशी जिंदगी बिता लेगी ।
मेजर राज ने फिर कहा, मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूँ, मैं लोकाटी भी कुछ नहीं कहूंगा, मैं उसकी सीडी नहीं चलाउन्गा मगर भगवान के लिए मेरी पत्नी को छोड़ दो। इस पर कर्नल इरफ़ान ने ठहाका लगाया और बोला पहले पहले विद्रोह शुरू तो हो लेने दो फिर तुम्हारी इस सुंदर और जवान पत्नी को छोड़ दूंगा। अभी कर्नल इरफ़ान ने इतना ही कहा था कि मेजर राज के कानों में लोकाटी की आवाज गूंजी, वह एक बार फिर मंच पर खड़ा हो गया था और उसने घोषणा कर दी थी कि अब हम आपको वह फिल्म दिखाएंगे जो कहानी मैंने आपको अभी सुनाई है, अगर हमारी इस बेटी के सिर से उतरती चादर देखकर भी आपका सम्मान नहीं जागता तो लानत भेजूँगा आपकी मर्दानगी को और यहीं इस सभा में अपने आपको गोली मार कर उड़ा दूंगा, कि मैं ऐसे बेगैरत राष्ट्र का नेता नहीं बन सकता जिसकी अपनी बेटी की इज्जत लुटती देखकर भी जमीर ना जागे। और अगर इस फिल्म को देखने के बाद आपका जमीर जाग उठे, आप मेरी एक आवाज पर अपनी जान देने के लिए तैयार हो जाओ, तो मैं वादा करता हूँ कि इस देश की हर बेटी की इज्जत की रक्षा के लिए आपके कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा रहूंगा, अपने खून की आखिरी बूंद तक आपकी बेटियों की इज्जत की रक्षा की खातिर देने के लिए तैयार रहूंगा, भारत की क्रूर सेना के अत्याचार और आपकी बेटियों की इज्जत के बीच में लोहे की दीवार बनकर खड़ा हो जाउन्गा, भारत की सेना पहले मेरी लाश पर से गुज़रेगी तो आपकी बेटियों की इज्जत पर हाथ डालेगी, लेकिन मुझे यकीन है कि मेरे मरने के बाद भी मेरी जगह लेने मेरी प्रजा के बहुत लोग मौजूद होंगे, और स्वतंत्रता की इस लड़ाई को तब तक लड़ेंगे जब तक राष्ट्र का हर आदमी मारा ना जाए, या फिर स्वतंत्रता हासिल न कर लें ...
लोकाटी का इतना कटौती दार भाषण सुनकर वहां मौजूद लोगों की भावनाओं अपने चरम पर पहुँच व्हुकी थी और अब पूरी सभा स्थल में भारत की सेना के खिलाफ नारेबाजी हो रही थी और हर कोई प्रतिज्ञा कर रहा था कि वह अपनी बेटियों की इज्जत की रक्षा की खातिर अपनी गर्दनें कटवाने के लिए तैयार हैं। उधर कर्नल इरफ़ान भी मेजर राज के फोन के माध्यम से यह सारा भाषण सुन रहा था और ठहाके लगा रहा था, उसे विश्वास था कि इस भाषण के बाद कोई भी स्वस्थ युवा बिना कुछ सोचे समझे विद्रोह की घोषणा कर देगा और उसके लिए अपनी जान भी कुर्बान कर देगा। उसने फिर फोन मेजर राज को कहा कि देखो उन भावनाओं को .... क्या तुम उनकी भावनाओं को अपनी गोलियों से रोक सकते हो? तुम उनके सम्मान को समाप्त कर सकते हैं ???? नहीं मेजर नहीं ... तुम हार चुके हो, तुम कुछ नहीं कर सकते, तो भलाई इसी में है कि चुपचाप वहां से वापस आ जाओ और अपनी पत्नी और अपने बच्चे के साथ अपना बाकी जीवन आराम से गुजारो ,
मेजर राज कोई फैसला नहीं कर पा रहा था, तो उसकी नज़र एक साइड पर बुलेटप्रूफ शीशे पर पड़ी जहां लोकाटी का खास आदमी था जिसने फिल्म चलानी थी उसे मेजर राज के इशारे का इंतजार कर रहा था ... तब मेजर राज को होश आया कि वह यहाँ क्यों आया था और उसका मकसद क्या था, उसके मन में एक ओर आर्मी ज्वाइन करते समय खाई गई कसम थीं कि वह अपने देश की खातिर अपना तन मन धन बलिदान कर देगा, तो दूसरी तरफ अपनी प्यार करने वाली पत्नी के साथ बिताए गए वो कुछ क्षण थे जिनके परिणामस्वरूप उसकी पत्नी पेट से थी और उसके बच्चे की मां बनने वाली थी मेजर को फैसला करना मुश्किल हो रहा था, वह अपनी निर्दोष पत्नी और बच्चे का कैसे त्याग कर सकता है ???
मगर फिर लोकाटी आवाज उसके में गूंजी कि फिल्म ड्राइव ............. जैसे ही यह बात मेजर राज के कानों में गूँजी , मेजर राज की नज़रों के सामने वह मासूम बच्चे आने लगे, वह निर्दोष जानें आने लगे, वह मासूम बेटियाँ और इस देश की औरतें आने लगीं जोकि इस विद्रोह के परिणामस्वरूप पाकिस्तानी सैनिकों से हलाक होने वाली थीं ...
एक ओर मेजर राज के सामने अपनी पत्नी के पेट में पलने वाला मासूम बच्चा, और अपनी पाक दामन और निर्दोष पत्नी थी जिसने अब जीवन की खुशियां देखी ही नहीं थी, तो दूसरी ओर अपने लोगों की वह अनगिनत बच्चियां थीं जो पाकिस्तानी सेना के उत्पीड़न का निशाना बनने जा रही थीं, उनके दूसरे देश के मुसलमान सैनिक जो अत्याचार करने वाले थे निर्दोष और मासूम मुसलमानों के साथ उनको उसका पता ही नहीं था ,
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: वतन तेरे हम लाडले
आख़िरकार मेजर राज ने गहरी साँस ली और अपने साहस को इकट्ठा करने लगा तभी उसके मोबाइल में रश्मि की चीख सुनाई दी, रश्मि पूरी आवाज के साथ चीख कर कह रही थी: राज मेरी जान: पत्नी तो और भी मिल जाएगी, बच्चे भी और मिल जाएंगे, लेकिन अगर आपने अपने देश से गद्दारी की तो तुम्हें यह रश्मि कभी नहीं मिलेगी, और न ही तुम्हारा होने वाला बच्चा तुम्हें कभी माफ करेगा
रश्मि की इस बात ने मेजर राज को वह हौसला दिया जिससे कोई भी सेना के जवान अपने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है, अंत में रश्मि की इस बात ने मेजर राज के अंदर वही जोश और उल्लास पैदा कर दिया कि आर्मी ज्वाइन करते समय मेजर के अंदर था, मेजर राज ने बुलेटप्रूफ शीशे में उस आदमी को देखा जो अब तक हसरत भरी निगाहों से मेजर राज के इशारे का इंतजार कर रहा था, थोड़ी देर और हो जाती तो उसे साना जावेद की फिल्म चलानी ही पड़ती मेजर राज ने अपना हाथ ऊपर उठाया, एक नारा जय हिंद का बुलंद किया और उस व्यक्ति को लोकाटी की सीडी चलाने का निर्देश दिया, जैसे ही स्क्रीन चालू हुई उस पर पहला चेहरा लोकाटी का ही नजर आया, जिसे देखकर सभा स्थल में मौजूद लोकाटी के चेहरे पर हवाइयां उड़ गईं क्योंकि उसको कर्नल इरफ़ान ने आश्वासन दिया था कि यह वीडियो सभा में नहीं चलेगी। लोकाटी तब कर्नल इरफ़ान से बातें कर रहा था जिसमें वह घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के बदले अपनी मांगों को रख रहा था कि उसे पाकिस्तान की खूबसूरत एक्ट्रेस प्रदान की जाएं दिन व दिन एक नई अभिनेत्री के साथ रात बिताएगा .
फिर दूसरे सीन में लोकाटी पाकिस्तान के एक अधिकारी से घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के बदले 200 अरब रुपये मांग रहा था। यह वीडियो देखकर सभा स्थल में पूर्ण शांति छा गई थी सब को जैसे सांप सूंघ गया था, इसलिए शांति थी कि सुई गिरने की भी आवाज सुनाई दे, फिर इसी तरह के कुछ और सीन चले जिसमें लोकाटी भारत से गद्दारी के बदले बड़ी बड़ी रकम बटोर रहा था और बदले में पाकिस्तान में विलय का आश्वासन भी करवा रहा था, जबकि इस गद्दार ने अपने लोगों को तो आजादी के सपने दिखाए थे ....
लोकाटी को अपना सब कुछ खत्म होता नजर आने लगा, उसने साथ खड़े सुरक्षा गार्ड से बंदूक पकड़ी और स्क्रीन की तरफ कर गन चलाने लगा, लेकिन वह भूल गया था कि स्क्रीन की सूरक्षा के लिए तो वह खुद उसके सामने बुलेटप्रूफ ग्लास लगवा चुका था, फिर उसने सभा स्थल की बिजली बंद करने का निर्देश दिया, पूरे सभा स्थल की बिजली बंद हो गई मगर स्क्रीन को बिजली शायद कहीं और से मिल रही थी वह बंद नहीं हुई वह चलती रही।
अंततः स्क्रीन पर वह सीन भी चला जब लोकाटी की हालत बुरी हो रही थी, वह बेड पर लेटा हुआ ऊपर नीचे हिल रहा था कैमरा उसके चेहरे पर था, उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह इस समय बहुत मजे में है, और फिर एक लड़की यानी समीरा की सिसकियों की आवाज आई, और इन्हीं सिसकियों के दौरान समीरा ने पूछा कि घाटी के असरदार भी सरकार में अपना हिस्सा मांगेंगे तो क्या करोगे? तो लोकाटी ने हिकारत से कहा था कि उन पागलों को भला क्या मिलना है? स्वतंत्रता की घोषणा और पाकिस्तान से विलय की घोषणा के बाद जब पाकिस्तानी सेना घाटी में घुस जाएंगी तो पहले इन असरदारों का ही सफ़ाया होगा मैं अपने धन और अपनी सरकार में किसी को शामिल नहीं करूँगा यह लाइन चलने की देर थी कि वहां मौजूद सभी लोग अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, और उनको मानने वाली जनता भी गुस्से से पागल हो गई, वे समझ गए थे कि लोकाटी उन्हें स्वतंत्रता के सपने दिखाकर केवल अपना लाभ प्राप्त करना चाहता है ।
इससे पहले कि कोई नेता लोकाटी को मारता है, वहाँ मौजूद लोकाटी बेटे फग़ान ने सोचा कि यही सही मौका है, मारिया बीबी यानी अंजलि ने जो बताया था कि कब लोकाटी कोमारना है यह आपको पता चल जाएगा, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने पिता की ओर लपका, उसने अपने पिता को देशद्रोही कह कर पुकारा और उस पर निशाना तान कर गोली चला दी, उसका विचार था कि उसका प्रांत रहेगा तो भारत के साथ ही, लेकिन अपने विश्वासघाती पिता को मौत की नींद सलाने के बाद उसी की सेना उसी को यहां की सरकार लिये चुन लेगी और जनता भी खुश होगी कि उसने अपने देश की खातिर अपने पिता की जान ले ली, दूसरी ओर फैजल था जो खेल बिगड़ता देख रहा था, वह समझ गया था कि अब कोई स्वतंत्रता नहीं नही सरकार नहीं, मगर जब उसने देखा कि फग़ान ने अपने पिता को मार दिया है तो वह समझ गया कि अगला मुख्यमंत्री अब फग़ान होगा, मगर वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता था, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने भाई को गोलियों से छलनी करने लगा जबकि फग़ान ने भी अंतिम सांसें लेते हुए अपनी बंदूक का रुख फैजल की ओर कर गन में मौजूद शेष गोलियाँ अपने भाई के शरीर में उतार दी .
लोकाटी की चाल समाप्त हो चुकी थी, कर्नल इरफ़ान जो भारत को दो टुकड़े करने की योजना बना बैठा था वह सब मलिया मैट हो चुका था, सीमा पार जो पाकिस्तानी आर्मी भारत पर हमला करने के लिए तैयार बैठी थीं उन तक खबर पहुंच गई थी कि घाटी की जनता पर लोकाटी का विश्वासघात उजागर हो गया है, और अब वहां की जनता अपनी सेना के बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है, तो ऐसी स्थिति में भारत पर हमला करने के लिए अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर था। 6 सितंबर 1965 को अभी वह भूले नहीं थे। ऐसे में फिर से इस देश पर हमला करना जहां जनता अपनी सेना के साथ गोलियाँ खाने के लिए अपना सीना तान कर खड़ी हो वहां हमला करना सबसे बड़ी मूर्खता होगी।
मगर दूसरी ओर मेजर राज की दुनिया उजड़ चुकी थी। जब उसने लोकाटी को वीडियो चलाने का आदेश दिया और फोन पर कर्नल इरफ़ान को मालूम हो गया कि मेजर राज ने रश्मि के अंतिम शब्द सुनकर पत्नी और बेटे की बलि देने का सोच लिया है तो वह गुस्से से कांपने लगा था, उसका गुस्सा बढ़ गया था , अब उसके सामने मेजर राज से बदला लेने के लिए एक ही रास्ता था और वह था उसकी पत्नी और पत्नी के पेट में महज 1 से डेढ़ महीने के बच्चे को मौत के घाट उतारना था ताकि मेजर राज सारा जीवन कर्नल इरफ़ान का यह बदला नहीं भूल सके ।
तभी मेजर राज को फोन पर गोली चलने की आवाज सुनाई दी, और रश्मि की एक दिलख़राश चीख मेजर राज के कानों को चीरती हुई चली गई .... मेजर राज के हाथ से मोबाइल गिर चुका था, उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी, उसकी प्यारी पत्नी जिसको अभी उसने जी भर कर प्यार भी नहीं किया था और उसका अजन्मा बेटा उसकी एक छोटी सी गलती के परिणामस्वरूप अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। मेजर राज अपनी जगह बैठा ज़ोर से रो रहा था, सभा स्थल में क्या हो रहा था, कब लोकाटी को फग़ान ने मारा, और कब फैजल ने फग़ान को मारा, मेजर राज को उसका कुछ पता नहीं था। अगर उसके मन में कुछ था तो उसकी निर्दोष पत्नी और उसका बेटा जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं था। उसे लग रहा था कि उसकी दुनिया उजड़ गई है, वह अपने आप को अपनी पत्नी और बच्चे का हत्यारा समझ रहा था .... मगर फिर अचानक .......... मेजर राज को एक नयी पहचान मिली .... जब उसके कानों में भारत जिंदाबाद .... भारत जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे ..... पाकिस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे ने मेजर राज को एक नया जीवन दिया और उसे यह एहसास दिलाया कि वो पहले अपने इस लाड़ले वतन का सिपाही है ... उसके सारे रिश्ते सारे नाते बाद में, पहले उसकी मातृभूमि, इस मातृभूमि की रक्षा। वतन है तो सब कुछ है ... स्वदेश नहीं तो कुछ भी नहीं।
मेजर राज ने सिर उठाकर देखा तो सभा स्थल में लोकाटी का शव आग का निशाना बन चुका था, वहां मौजूद लोगों और हाकिमों ने लोकाटी की असलियत जान लेने के बाद उसकी लाश को जला दिया था। और अब सभा स्थल के मंच पर मेजर राज का खास आदमी मौजूद था जो माइक पर रोमांचक आवाज में भारत जिंदाबाद के नारे लगवा रहा था, और उन्हें बता रहा था कि इस गद्दार ने कैसे यहां की जनता को अनपढ़ रखा और उन्हें उनकी बेटियों की इज्जत की कसम देकर अपने नापाक इरादों के लिए इस्तेमाल करना चाहा। घाटी के लोगों के दिल में देश प्रेम मौजूद था, बस उस पर लोकाटी की झूठी कहानियों ने थोड़ी धूल जमा दी थी, वीडियो मे लोकाटी की असलियत देख लेने के बाद यह उड़ गई थी और वही जुनून जो इस देश के आबा-ओ-अजदाद का 1947 में था, आज 6 सितंबर के अवसर पर भी इस देश के बेटों का वही जुनून था और लाखों का मजमा क़यामत तक इस देश की रक्षा और इस देश को लोकाटी जैसे दुष्ट लोगों से बचाने की कसम खा रहा था। यह देखकर मेजर राज अपनी पत्नी और बच्चे की बलि भूल गया था। अब उसे यह महसूस हो रहा था कि वह हारा नहीं, बल्कि वह जीत गया है। कर्नल इरफ़ान की जीवन भर की मेहनत बेकार हो गई थी, उसके नापाक मंसूबे मिट्टी में मिल गए थे और ये प्रांत फिर से तिरंगे झंडे से सज गया था।
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने मेजर राज को इस बड़ी सफलता पर बधाई दी, प्रधानमंत्री ने भी इस भयानक विद्रोह को कुचलने में मेजर राज को फोन करके बधाई दी और सुसमाचार सुनाया। मेजर राज को अपनी पत्नी और बच्चे को खो देने का गम था, लेकिन अभी वह कमजोर नहीं था, बल्कि वह खुश था कि उसने अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देकर इस देश को बचा लिया था। यही देश के फ़ौजी का मूल धन है। अब उसके मन में केवल एक बात थी। अमजद से किया गया अपना वादा पूरा करना। उसकी बहन समीरा को बा रक्षा उसके घर पहुंचाना
इन्हीं सोचों के साथ मेजर राज वापस पहुंच चुका था। और समीरा को ढूंढना चाहता था, उसने मेजर मिनी को फोन किया और उससे पूछा कि समीरा कहाँ है ??? मेजर मिनी ने मेजर राज को सुसमाचार सुनाया कि मुबारक हो, समीरा मिल गई है, और मैं इस समय समीरा को लेकर तुम्हारे घर पर तुम्हारी माँ के साथ ही हूं आ जाओ तुम भी , तुम्हारी माँ अपने बहादुर बच्चे को देखने के लिए बेचैन हो रही है। माँ का सुनकर मेजर राज शक्तिहीन सा अपने घर की तरफ बढ़ने लगा। घर पहुंचकर मेजर राज ने अपने घर का दरवाजा खोला तो दरवाजे पर ही उसे अपनी माँ दिखाई दी, माँ को देखते ही मेजर राज अपनी माँ से लिपट गया, मेजर राज की आंखों में आंसू थे, बहुत समय बाद वह अपनी मां से मिला जो माँ के चेहरे को रोज देखा करता था आज करीब 2 महीने के बाद वह अपनी माँ से मिल रहा था। मगर इस माँ की आँखों में एक आंसू भी जुदाई का नही था, लेकिन उसकी आंखों में अपने बहादुर बेटे के लिए प्यार ही प्यार था और सीना गर्व से फूला हुआ था और चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था कि शायद किस्मत वालों का ही ऐसा नसीब होता है ....
मेजर राज के दिल में कहीं रश्मि का भी ख्याल था कि अगर आज रश्मि भी होती तो वह कितनी खुश होती। मां से मिलने के बाद मेजर राज ने मेजर मिनी को देखा जो गर्व से मेजर राज को देख रही थी, उसने मेजर राज को एक सलयूट और उसे शानदार उपलब्धि पर बधाई दी। मेजर मिनी के पीछे समीरा खड़ी थी, वह भी खुश थी और उसकी आँखों में जहां मेजर राज की सफलता पर खुशी और गर्व था, वहीं शायद एक पीड़ा भी थी, वह जानती थी कि अब इसे मेजर राज से अलग होना है। कुछ दिन मेजर राज के साथ गुजार कर वह उससे प्यार करने लगी थी। और सारी ज़िंदगी उसी के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था .....
समीरा अपनी जगह से साइड पर हटी तो उसके पीछे मेजर राज ने जो दृश्य देखा, उसे समझ नहीं आया कि वह खुशी से रोए या चीखें मारे। समीरा केपीछे मेजर राज को रश्मि दिखी थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं आ रहा था। मेजर राज ने एक बार अपनी आँखें मली और उसके बाद फिर से देखा तो रश्मि अब तक अपनी जगह पर मौजूद थी और उसकी आँखें धृड और अपने पति की बहादुरी पर गर्व से झिलमिलाती नजर आ रही थीं। मेजर राज एकदम से आगे बढ़ा और सबके सामने ही अपनी पत्नी को अपने गले से लगा लिया, रश्मि भी अपने पति के सीने से लगकर सारी पीड़ा भूल गई थी जो उसे कर्नल इरफ़ान से मिली थी, या जो जुदाई के दिन उसने हनीमून से ही बिताना शुरू कर दिए थे, पति के सीने से लगकर उसे उसकी दुनिया वापस मिल गई थी, उसका प्यार वापस मिल गया था। मेजर राज को समझ नहीं आया था कि आखिर यह सब कैसे हुआ?
तब मेजर मिनी ने मेजर राज को कहा कि तुम्हें समीरा को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहिए, जिसने कर्नल इरफ़ान की कैद से रश्मि को न केवल बचाया बल्कि उसको इबरत नाक सजा भी दी, और उसकी लाश इस समय पाकिस्तानी बॉर्डर पर पड़ी है, और कोई उसे उठाने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा। मेजर राज ने समीरा देखा और अब की बार आगे बढ़कर उसे भी गले से लगा लिया, और उसका माथा चूम कर उसका बहुत बहुत धन्यवाद।किया .
रश्मि की इस बात ने मेजर राज को वह हौसला दिया जिससे कोई भी सेना के जवान अपने देश के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर देता है, अंत में रश्मि की इस बात ने मेजर राज के अंदर वही जोश और उल्लास पैदा कर दिया कि आर्मी ज्वाइन करते समय मेजर के अंदर था, मेजर राज ने बुलेटप्रूफ शीशे में उस आदमी को देखा जो अब तक हसरत भरी निगाहों से मेजर राज के इशारे का इंतजार कर रहा था, थोड़ी देर और हो जाती तो उसे साना जावेद की फिल्म चलानी ही पड़ती मेजर राज ने अपना हाथ ऊपर उठाया, एक नारा जय हिंद का बुलंद किया और उस व्यक्ति को लोकाटी की सीडी चलाने का निर्देश दिया, जैसे ही स्क्रीन चालू हुई उस पर पहला चेहरा लोकाटी का ही नजर आया, जिसे देखकर सभा स्थल में मौजूद लोकाटी के चेहरे पर हवाइयां उड़ गईं क्योंकि उसको कर्नल इरफ़ान ने आश्वासन दिया था कि यह वीडियो सभा में नहीं चलेगी। लोकाटी तब कर्नल इरफ़ान से बातें कर रहा था जिसमें वह घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के बदले अपनी मांगों को रख रहा था कि उसे पाकिस्तान की खूबसूरत एक्ट्रेस प्रदान की जाएं दिन व दिन एक नई अभिनेत्री के साथ रात बिताएगा .
फिर दूसरे सीन में लोकाटी पाकिस्तान के एक अधिकारी से घाटी में स्वतंत्रता आंदोलन चलाने के लिए अनुकूल माहौल बनाने के बदले 200 अरब रुपये मांग रहा था। यह वीडियो देखकर सभा स्थल में पूर्ण शांति छा गई थी सब को जैसे सांप सूंघ गया था, इसलिए शांति थी कि सुई गिरने की भी आवाज सुनाई दे, फिर इसी तरह के कुछ और सीन चले जिसमें लोकाटी भारत से गद्दारी के बदले बड़ी बड़ी रकम बटोर रहा था और बदले में पाकिस्तान में विलय का आश्वासन भी करवा रहा था, जबकि इस गद्दार ने अपने लोगों को तो आजादी के सपने दिखाए थे ....
लोकाटी को अपना सब कुछ खत्म होता नजर आने लगा, उसने साथ खड़े सुरक्षा गार्ड से बंदूक पकड़ी और स्क्रीन की तरफ कर गन चलाने लगा, लेकिन वह भूल गया था कि स्क्रीन की सूरक्षा के लिए तो वह खुद उसके सामने बुलेटप्रूफ ग्लास लगवा चुका था, फिर उसने सभा स्थल की बिजली बंद करने का निर्देश दिया, पूरे सभा स्थल की बिजली बंद हो गई मगर स्क्रीन को बिजली शायद कहीं और से मिल रही थी वह बंद नहीं हुई वह चलती रही।
अंततः स्क्रीन पर वह सीन भी चला जब लोकाटी की हालत बुरी हो रही थी, वह बेड पर लेटा हुआ ऊपर नीचे हिल रहा था कैमरा उसके चेहरे पर था, उसके चेहरे से साफ लग रहा था कि वह इस समय बहुत मजे में है, और फिर एक लड़की यानी समीरा की सिसकियों की आवाज आई, और इन्हीं सिसकियों के दौरान समीरा ने पूछा कि घाटी के असरदार भी सरकार में अपना हिस्सा मांगेंगे तो क्या करोगे? तो लोकाटी ने हिकारत से कहा था कि उन पागलों को भला क्या मिलना है? स्वतंत्रता की घोषणा और पाकिस्तान से विलय की घोषणा के बाद जब पाकिस्तानी सेना घाटी में घुस जाएंगी तो पहले इन असरदारों का ही सफ़ाया होगा मैं अपने धन और अपनी सरकार में किसी को शामिल नहीं करूँगा यह लाइन चलने की देर थी कि वहां मौजूद सभी लोग अपने अपने स्थान से खड़े हो गए, और उनको मानने वाली जनता भी गुस्से से पागल हो गई, वे समझ गए थे कि लोकाटी उन्हें स्वतंत्रता के सपने दिखाकर केवल अपना लाभ प्राप्त करना चाहता है ।
इससे पहले कि कोई नेता लोकाटी को मारता है, वहाँ मौजूद लोकाटी बेटे फग़ान ने सोचा कि यही सही मौका है, मारिया बीबी यानी अंजलि ने जो बताया था कि कब लोकाटी कोमारना है यह आपको पता चल जाएगा, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने पिता की ओर लपका, उसने अपने पिता को देशद्रोही कह कर पुकारा और उस पर निशाना तान कर गोली चला दी, उसका विचार था कि उसका प्रांत रहेगा तो भारत के साथ ही, लेकिन अपने विश्वासघाती पिता को मौत की नींद सलाने के बाद उसी की सेना उसी को यहां की सरकार लिये चुन लेगी और जनता भी खुश होगी कि उसने अपने देश की खातिर अपने पिता की जान ले ली, दूसरी ओर फैजल था जो खेल बिगड़ता देख रहा था, वह समझ गया था कि अब कोई स्वतंत्रता नहीं नही सरकार नहीं, मगर जब उसने देखा कि फग़ान ने अपने पिता को मार दिया है तो वह समझ गया कि अगला मुख्यमंत्री अब फग़ान होगा, मगर वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता था, उसने अपनी बंदूक निकाली और अपने भाई को गोलियों से छलनी करने लगा जबकि फग़ान ने भी अंतिम सांसें लेते हुए अपनी बंदूक का रुख फैजल की ओर कर गन में मौजूद शेष गोलियाँ अपने भाई के शरीर में उतार दी .
लोकाटी की चाल समाप्त हो चुकी थी, कर्नल इरफ़ान जो भारत को दो टुकड़े करने की योजना बना बैठा था वह सब मलिया मैट हो चुका था, सीमा पार जो पाकिस्तानी आर्मी भारत पर हमला करने के लिए तैयार बैठी थीं उन तक खबर पहुंच गई थी कि घाटी की जनता पर लोकाटी का विश्वासघात उजागर हो गया है, और अब वहां की जनता अपनी सेना के बलों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है, तो ऐसी स्थिति में भारत पर हमला करने के लिए अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मारने के बराबर था। 6 सितंबर 1965 को अभी वह भूले नहीं थे। ऐसे में फिर से इस देश पर हमला करना जहां जनता अपनी सेना के साथ गोलियाँ खाने के लिए अपना सीना तान कर खड़ी हो वहां हमला करना सबसे बड़ी मूर्खता होगी।
मगर दूसरी ओर मेजर राज की दुनिया उजड़ चुकी थी। जब उसने लोकाटी को वीडियो चलाने का आदेश दिया और फोन पर कर्नल इरफ़ान को मालूम हो गया कि मेजर राज ने रश्मि के अंतिम शब्द सुनकर पत्नी और बेटे की बलि देने का सोच लिया है तो वह गुस्से से कांपने लगा था, उसका गुस्सा बढ़ गया था , अब उसके सामने मेजर राज से बदला लेने के लिए एक ही रास्ता था और वह था उसकी पत्नी और पत्नी के पेट में महज 1 से डेढ़ महीने के बच्चे को मौत के घाट उतारना था ताकि मेजर राज सारा जीवन कर्नल इरफ़ान का यह बदला नहीं भूल सके ।
तभी मेजर राज को फोन पर गोली चलने की आवाज सुनाई दी, और रश्मि की एक दिलख़राश चीख मेजर राज के कानों को चीरती हुई चली गई .... मेजर राज के हाथ से मोबाइल गिर चुका था, उसकी दुनिया उजड़ चुकी थी, उसकी प्यारी पत्नी जिसको अभी उसने जी भर कर प्यार भी नहीं किया था और उसका अजन्मा बेटा उसकी एक छोटी सी गलती के परिणामस्वरूप अपनी जान से हाथ धो बैठे थे। मेजर राज अपनी जगह बैठा ज़ोर से रो रहा था, सभा स्थल में क्या हो रहा था, कब लोकाटी को फग़ान ने मारा, और कब फैजल ने फग़ान को मारा, मेजर राज को उसका कुछ पता नहीं था। अगर उसके मन में कुछ था तो उसकी निर्दोष पत्नी और उसका बेटा जो अभी इस दुनिया में आया ही नहीं था। उसे लग रहा था कि उसकी दुनिया उजड़ गई है, वह अपने आप को अपनी पत्नी और बच्चे का हत्यारा समझ रहा था .... मगर फिर अचानक .......... मेजर राज को एक नयी पहचान मिली .... जब उसके कानों में भारत जिंदाबाद .... भारत जिंदाबाद के नारे गूंजने लगे ..... पाकिस्तान मुर्दाबाद, पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे ने मेजर राज को एक नया जीवन दिया और उसे यह एहसास दिलाया कि वो पहले अपने इस लाड़ले वतन का सिपाही है ... उसके सारे रिश्ते सारे नाते बाद में, पहले उसकी मातृभूमि, इस मातृभूमि की रक्षा। वतन है तो सब कुछ है ... स्वदेश नहीं तो कुछ भी नहीं।
मेजर राज ने सिर उठाकर देखा तो सभा स्थल में लोकाटी का शव आग का निशाना बन चुका था, वहां मौजूद लोगों और हाकिमों ने लोकाटी की असलियत जान लेने के बाद उसकी लाश को जला दिया था। और अब सभा स्थल के मंच पर मेजर राज का खास आदमी मौजूद था जो माइक पर रोमांचक आवाज में भारत जिंदाबाद के नारे लगवा रहा था, और उन्हें बता रहा था कि इस गद्दार ने कैसे यहां की जनता को अनपढ़ रखा और उन्हें उनकी बेटियों की इज्जत की कसम देकर अपने नापाक इरादों के लिए इस्तेमाल करना चाहा। घाटी के लोगों के दिल में देश प्रेम मौजूद था, बस उस पर लोकाटी की झूठी कहानियों ने थोड़ी धूल जमा दी थी, वीडियो मे लोकाटी की असलियत देख लेने के बाद यह उड़ गई थी और वही जुनून जो इस देश के आबा-ओ-अजदाद का 1947 में था, आज 6 सितंबर के अवसर पर भी इस देश के बेटों का वही जुनून था और लाखों का मजमा क़यामत तक इस देश की रक्षा और इस देश को लोकाटी जैसे दुष्ट लोगों से बचाने की कसम खा रहा था। यह देखकर मेजर राज अपनी पत्नी और बच्चे की बलि भूल गया था। अब उसे यह महसूस हो रहा था कि वह हारा नहीं, बल्कि वह जीत गया है। कर्नल इरफ़ान की जीवन भर की मेहनत बेकार हो गई थी, उसके नापाक मंसूबे मिट्टी में मिल गए थे और ये प्रांत फिर से तिरंगे झंडे से सज गया था।
चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ ने मेजर राज को इस बड़ी सफलता पर बधाई दी, प्रधानमंत्री ने भी इस भयानक विद्रोह को कुचलने में मेजर राज को फोन करके बधाई दी और सुसमाचार सुनाया। मेजर राज को अपनी पत्नी और बच्चे को खो देने का गम था, लेकिन अभी वह कमजोर नहीं था, बल्कि वह खुश था कि उसने अपनी सबसे प्यारी चीज की कुर्बानी देकर इस देश को बचा लिया था। यही देश के फ़ौजी का मूल धन है। अब उसके मन में केवल एक बात थी। अमजद से किया गया अपना वादा पूरा करना। उसकी बहन समीरा को बा रक्षा उसके घर पहुंचाना
इन्हीं सोचों के साथ मेजर राज वापस पहुंच चुका था। और समीरा को ढूंढना चाहता था, उसने मेजर मिनी को फोन किया और उससे पूछा कि समीरा कहाँ है ??? मेजर मिनी ने मेजर राज को सुसमाचार सुनाया कि मुबारक हो, समीरा मिल गई है, और मैं इस समय समीरा को लेकर तुम्हारे घर पर तुम्हारी माँ के साथ ही हूं आ जाओ तुम भी , तुम्हारी माँ अपने बहादुर बच्चे को देखने के लिए बेचैन हो रही है। माँ का सुनकर मेजर राज शक्तिहीन सा अपने घर की तरफ बढ़ने लगा। घर पहुंचकर मेजर राज ने अपने घर का दरवाजा खोला तो दरवाजे पर ही उसे अपनी माँ दिखाई दी, माँ को देखते ही मेजर राज अपनी माँ से लिपट गया, मेजर राज की आंखों में आंसू थे, बहुत समय बाद वह अपनी मां से मिला जो माँ के चेहरे को रोज देखा करता था आज करीब 2 महीने के बाद वह अपनी माँ से मिल रहा था। मगर इस माँ की आँखों में एक आंसू भी जुदाई का नही था, लेकिन उसकी आंखों में अपने बहादुर बेटे के लिए प्यार ही प्यार था और सीना गर्व से फूला हुआ था और चेहरे पर एक अजीब सा संतोष था कि शायद किस्मत वालों का ही ऐसा नसीब होता है ....
मेजर राज के दिल में कहीं रश्मि का भी ख्याल था कि अगर आज रश्मि भी होती तो वह कितनी खुश होती। मां से मिलने के बाद मेजर राज ने मेजर मिनी को देखा जो गर्व से मेजर राज को देख रही थी, उसने मेजर राज को एक सलयूट और उसे शानदार उपलब्धि पर बधाई दी। मेजर मिनी के पीछे समीरा खड़ी थी, वह भी खुश थी और उसकी आँखों में जहां मेजर राज की सफलता पर खुशी और गर्व था, वहीं शायद एक पीड़ा भी थी, वह जानती थी कि अब इसे मेजर राज से अलग होना है। कुछ दिन मेजर राज के साथ गुजार कर वह उससे प्यार करने लगी थी। और सारी ज़िंदगी उसी के साथ बिताना चाहती थी, लेकिन ऐसा होना संभव नहीं था .....
समीरा अपनी जगह से साइड पर हटी तो उसके पीछे मेजर राज ने जो दृश्य देखा, उसे समझ नहीं आया कि वह खुशी से रोए या चीखें मारे। समीरा केपीछे मेजर राज को रश्मि दिखी थी। उसे अपनी आँखों पर विश्वास नहीं आ रहा था। मेजर राज ने एक बार अपनी आँखें मली और उसके बाद फिर से देखा तो रश्मि अब तक अपनी जगह पर मौजूद थी और उसकी आँखें धृड और अपने पति की बहादुरी पर गर्व से झिलमिलाती नजर आ रही थीं। मेजर राज एकदम से आगे बढ़ा और सबके सामने ही अपनी पत्नी को अपने गले से लगा लिया, रश्मि भी अपने पति के सीने से लगकर सारी पीड़ा भूल गई थी जो उसे कर्नल इरफ़ान से मिली थी, या जो जुदाई के दिन उसने हनीमून से ही बिताना शुरू कर दिए थे, पति के सीने से लगकर उसे उसकी दुनिया वापस मिल गई थी, उसका प्यार वापस मिल गया था। मेजर राज को समझ नहीं आया था कि आखिर यह सब कैसे हुआ?
तब मेजर मिनी ने मेजर राज को कहा कि तुम्हें समीरा को बहुत बहुत धन्यवाद देना चाहिए, जिसने कर्नल इरफ़ान की कैद से रश्मि को न केवल बचाया बल्कि उसको इबरत नाक सजा भी दी, और उसकी लाश इस समय पाकिस्तानी बॉर्डर पर पड़ी है, और कोई उसे उठाने के लिए आगे नहीं बढ़ रहा। मेजर राज ने समीरा देखा और अब की बार आगे बढ़कर उसे भी गले से लगा लिया, और उसका माथा चूम कर उसका बहुत बहुत धन्यवाद।किया .
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