दस जनवरी की रात
कार के ब्रेकों के चीखने का शोर इतना तीव्र था कि अपने घोंसलों में सोते पक्षी भी फड़फड़ाकर उड़ चले । रात की नीरवता खण्ड-विखण्ड होकर रह गयी ।
"क्या हुआ ?" सेठ कमलनाथ ने पूछा ।
"एक आदमी गाड़ी के आगे अचानक कूद गया ।" ड्राइवर ने थर्राई आवाज में उत्तर दिया, "मेरी कोई गलती नहीं सेठ जी ! मैंने तो पूरी कौशिश की ।"
"अरे देखो तो, जिन्दा है या मर गया ।"
ड्राइवर ने फुर्ती से दरवाजा खोला । हेडलाइट्स अभी भी ऑन थी, वह ड्राइविंग सीट से उतरकर आगे आ गया । गाड़ी के नीचे एक व्यक्ति औंधा पड़ा था, उसके जिस्म पर आगे के पहिये उतर चुके थे । चूँकि पहियों के बीच में अन्धेरा था, इसलिये कुछ ठीक से नजर नहीं आ रहा था, अलबत्ता उसकी टांगें साफ दिखाई दे रही थीं । ड्राइवर हाँफता हुआ वापिस कार की पिछली सीट वाली खिड़की पर आ गया ।
"हुआ क्या ?"
"वह तो नीचे दबा है, मुझे लगता है मर गया ।"
"गाड़ी पीछे हटा बेवकूफ ।"
ड्राइवर झटपट गाड़ी में सवार हुआ और उसने कार पीछे हटा ली । अब हेडलाइट में वह शख्स साफ नजर आ रहा था । उसने आसमानी रंग की शर्ट पहनी हुई थी, जो अब खून में लथपथ थी । उसे देखते ही सेठ कमलनाथ भी नीचे उतर आया । दोनों ने सड़क पर औंधे पड़े उस आत्मघाती शख्स को देखा ।
"साले को हमारी गाड़ी के आगे ही कूदना था क्या ?" ड्राइवर सोमू बड़बड़ाया ।
कमलनाथ ने उस व्यक्ति की नब्ज देखी, फिर दिल पर हाथ रखकर देखा और उसके बाद उसका चेहरा गौर से देखा । अचानक सेठ कमलनाथ की आंखों में चमक उभरने लगी । अब वह मृतक को उस तरह देख रहा था, जैसे बिल्ली चूहे को देखती है ।
"सोमू !" सेठ कमलनाथ ने उठते हुए कहा ।
"जी सेठ जी !"
"इस लाश के कपड़े उतार डालो ।"
"जी...।"
"जी के बच्चे जो मैं कह रहा हूँ, वह कर, नहीं तो तू सीधा अन्दर होगा ।"
"लेकिन सेठ जी, कपड़े क्यों ?"
"सवाल नहीं करने का, समझे ! जो बोला वह करो ।" इस बार सेठ कमलनाथ मवालियों जैसे अन्दाज में बोला ।
सोमू ने डरते हए कपड़े उतार डाले । इसी बीच सेठ कमलनाथ ने अपने भी कपड़े उतारे और खुद कार की पिछली सीट पर आ गया । उसने कार में रखी एक चादर लपेट ली ।
"मेरे कपड़े लाश को पहना दे सोमू ।" सेठ कमलनाथ ने खलनायक वाले अन्दाज में कहा ।
"सोमू के कुछ भी समझ नहीं आ रहा था कि हो क्या रहा है ? अपने मालिक का हुक्म मानते हुए उसने सेठ कमलनाथ के कपड़े लाश को पहना दिये ।
"मेरी घड़ी, मेरी अंगूठी, मेरे गले की चेन भी इसे पहना दे ।" कमलनाथ ने अपनी घड़ी, चेन और अंगूठी भी सोमू को थमा दी ।
सोमू ने सेठ कमलनाथ को ऐसी निगाहों से देखा, जैसे सेठ पागल हो गया हो । फिर उसने वह तीनों चीजें भी लाश को पहना दी ।
"अब कार में आ जा...।"
सोमू कार में आ गया ।
"इसका चेहरा इस तरह कुचल दे, जो पहचाना न जा सके ।"
सोमू ने यह काम भी कर दिखाया । इस बीच वह हांफने भी लगा था । चादर ओढ़े सेठ ने एक बार फिर लाश का निरीक्षण किया और फिर से गाड़ी में आ बैठा ।
"हमें किसी ने देखा तो नहीं ?"
"इतनी रात गये इस सड़क पर कौन आयेगा ।"
"हूँ चलो ! छुट्टी हुई, मैं मर गया ।"
"क… क्या कह रहे हैं ?"
"अबे गाड़ी चला, रास्ते में तुझे सब बता दूँगा कि सेठ कमलनाथ कैसे मरा और किसने मारा, चल बेफिक्र होकर गाड़ी चला ।"
गाड़ी आगे बढ़ गई, इसके साथ ही सेठ कमलनाथ का कहकहा गूँज उठा ।
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