Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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vnraj
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by vnraj »

(^^^-1$i7) यह बात बिल्कुल सच है राज भाई यह प्यास कभी नहीं बुझती 😘
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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

दोपहर के 2 बज गये थे.

"आ गये मेरे सरकार." रामेश्वर जी ने बिना देखे तंज़ किया क्योंकि बैठक मे ऐसे सिर्फ़ अर्जुन ही आता था.

"बाबा वो दीदी के कॉलेज मे टाइम लग गया थोड़ा. सॉरी आगे से नही होगा."

रामेश्वर जी अपने पोते के इस जवाब पर मुस्कुरा दिए और सर पे हाथ रख बोले, "अर्रे बेटा तू तो मेरा मान है. तू सॉरी
मत बोला कर किसी बात पे. एक तू ही तो है जो मेरा अच्छा बेटा और मेरा दोस्त है. मैं तो मज़ाक कर रहा था. तेरा ताऊ
खाना खा रहा है फिर उसके साथ जाकर साइकल ले आना. जा खाना खा ले."

अर्जुन भी अपने दादा से गले लग कर चल दिया खाने की टेबल पर.

"आज बड़ा निखर रहा है तू." माधुरी ने जब ये बात कही तो अर्जुन को रात याद आ गई.

"वो आप मेरा इतना ध्यान जो रखती हो दीदी." बिना संकोच उसने माधुरी की आँखों मे देखा तो पाया के वो भी चमक
रही है.

"रखना तो पड़ेगा ही. तू भी तो इतनी सेवा करता है." ये बात बोल वो रहस्यमयी मुस्कान दिखा के रोटी लेने चली गई

"दीदी को शायद पता लग गया है रात वाली बात का. लेकिन वो गुस्सा नही हुई." अर्जुन ने ये सोचा और फिर उसको जैसे याद
आया अलका का कहा शब्द, "माधुरी दीदी का तो 38-F है, सबसे बड़ा." और ये सोचते ही पैंट मे हलचल हो गई.

खाना खाने के बाद राजकुमार जी अर्जुन को अपनी कार मे लेकर अगले सेक्टर की मार्केट मे ले गया. अर्जुन को वहाँ जाते ही हीरो कंपनी की नई रेंजर और एक पतले टाइयर वाली साइकल हॉक नज़र आई.

"अंकल ये साइकल के टाइयर इतने पतले क्यो है?" दुकानदार से उसने सवाल किया. ये साइकल उसने एक बार कही देखी थी लेकिन याद नहीं आ रहा था.

"बेटा ये एक अलग साइकल है जो रेस के काम आती है. और जो लोग साइकलिंग के शौकीन होते है. माहिर लोग तो इसको 60
की स्पीड पे भी चला लेते है." दुकानदार का जवाब सुनकर उसका दिल आ गया साइकल पर.

"ताऊ जी यही साइकल लेनी है मुझे."

"देख ले बेटा. चलानी तुझे है बाद मे कुछ मत कहना. और हा इसके पीछे तो कोई बैठ नही सकता." ताऊ जी ने जब साइकल
को ध्यान से देखा तो ये कहा क्योंकि उसका तो करिएर नहीं था.

"मैने किसे बिठाना है. एक्सर्साइज़ के लिए तो चाहिए और इस्पे टाइम भी बचेगा मेरा."

"ठीक है बेटा. तो भाई साहब इसको ये साइकल तयार कर दीजिए और पैसे बताए." ताऊ जी ने इतना बोलका पर्स निकल लिया

"शर्मा जी आपसे तो वही दाम लेंगे जीतने मे हमारे पास ये आई है. लेकिन इतना कहूँगा के एक ये हेल्मेट ज़रूर ले लीजिएगा.
सावधानी भी ज़रूरी है." दुकानदार ने बड़े अपनेपन से ये बात अर्जुन को देख कर कही.

"हा अंकल दे दीजिए ये हेल्मेट और वो पानी की बॉटल भी."

ताऊ जी ने पैसे दिए और चले गये. दुकान पे काम करने वाले 2 लड़को ने 15 मिनिट में ही साइकल तयार कर के अर्जुन को दे
दी. हेल्मेट जो सिर्फ़ सर के उपर तक ही था लगाया और मार दिया उसने पेडल.

"वाह ये तो एकदम हल्की है. " सावधानी से थोड़ी दूर चलते ही अर्जुन ने महसूस किया के ये और साइकल बहुत तेज़ है.

10-12 मिनिट लगे उसको घर आने मे और फिर सबको उसने अपनी नई साइकल दिखाई. बाहर आँगन में ही ताला मार के खड़ी की और चल दिया अपने कमरे मे. आज बहुत तक गया था वो तो थोड़ा आराम भी ज़रूरी था.
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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

अपडेट - 8
बीच मझदार

मेरे होंठ अलका दीदी के होंठो से चिपके हुए थे. मैं उनका निचला होंठ धीरे धीरे अपने मूह से चूस रहा था. उनका एक हाथ मेरा सर सहला रहा था और दूसरा मेरी पीठ. मदहोशी से उनकी आँखें बंद पड़ी थी और मेरा एक हाथ उनके कूल्हे को दबा रहा था और एक गर्दन को. हम दोनो जैसे इस दुनिया से दूर एक अपनी ही दुनिया मे थे. उनके मूह की वो मिठास मुझे पागल बना रही थी जिसे मैं और ज़ोर से पीने लगा था. कुल्हो से सरकता हुआ हाथ कमीज़ के अंदर से उनके पेट को सहला रहा था. अलका दीदी के लिए ये सहन करना जब मुश्किल हो गया तो उन्होने अपना मूह खोल के मेरी जीब को चूसना शुरू कर दिया था.

अब वो मुझे खुद से चिपका रही थी जैसे मुझे खुद मे समाहित कर लेना चाहती हो. यहा मेरा हाथ अब उनकी छाती के उभार को मसल रहा तो जो रूई से मुलायम लेकिन रब्बर से लचीले और सख़्त थे. जैसे ही मैने उनका निप्पल कुरेदा उन्होने मुझे चूमना छोड़ मेरा मूह अपनी गर्दन पर सटा दिया. मेरी जीब उनकी सुराइ दार गर्दन पर कमाल दिखा रही थी और हाथ उनके स्तन ढूढ़ निकालने की कोशिश कर रहे थे. जैसे ही मैने अपना दूसरा हाथ उनकी सलवार के अंदर किया.....

"अर्जुन-अर्जुन.. अर्रे कब से हिला रही हू. उठ जा कुंभकारण?" ये आवाज़ बीच मे कहाँ से आई और जैसे ही मेरी नज़र सामने पड़ी तो माधुरी दीदी मेरे उपर झुकी हुई थी. उनका यौवन कमीज़ से बाहर झलक रहा था. उनकी तेज़ आवाज़ से मेरा होश वापिस आया.

"क्या हुआ दीदी? ऐसे क्यो जिंझोड़ रही हो आप मुझे?" अर्जुन ने सामने खड़ी माधुरी दीदी से पूछा

"4 बजे सोया था तू और अब 8 बज रहे है. चल सब नीचे बुला रहे है तुझे", इतना बोलकर वो हँसती हुई बाहर निकल गई. जाते हुए एक बार फिर पीछे मुड़कर देखा और हँसती हुई गायब.

"जाने क्या हुआ है इनको?" लेकिन जैसे ही नज़र पेंट पर पड़ी तो दिखाई दिया सच. वहाँ तंबू बना हुआ था उस सपने की वजह से. झेंपता हुआ बाथरूम गया और हाथ मूह धोकर सूती पाजामा ओर लूस टी शर्ट पहन अर्जुन नीचे चल दिया.

"भाई तू बैठ मैं खाना लगाती हू.", कोमल ने उसके लिए कुर्सी खींच कहा. सामने ऋतु और माधुरी बैठे थे. रामेश्वर जी आज अपने कमरे में ही खाना खा चुके थे कौशल्या जी के साथ . रेखा जी रोटियाँ बना रही थी और अलका उन्हे सेक रही थी.

"मा, ताई जी और संजीव भैया कहा है? दिख नही रहे." अर्जुन ने रोटी का टुकड़ा तोड़ते हुए अपनी मा रेखा से पूछा.

बेटा वो दोनो तेरी ताई जी के गाँव गये है सुबह तक आएँगे. संजीव को वहाँ कुछ काम था ऑफीस का तो तेरी ताई जी भी इस बहाने अपने मा-बाप से एक रात मिल आएँगी." रेखा ने रोटी बनाते हुए ही जवाब दिया.

"अच्छा. और मा ये ऋतु दीदी कभी रसोई मे काम क्यो नही करती.?" ये बात अर्जुन ने ऋतु को छेड़ते हुए ही कही थी जो की
खाने में ही गुम थी लेकिन अपना नाम सुनकर अर्जुन को गुस्से मे देखने लगी थी.

"बेटा उसका वो ही जाने. मैं कुछ नही कहती जब अपने घर जाएगी तब देखेंगे." उसकी मा ने ये बात चुहल वाले अंदाज मे
कही थी.

"ये ही मेरा घर है और मैं यहा की मालकिन. और अपने मुन्ने को थोड़ा पल्लू से बाहर निकालो मा नही तो बिल्कुल लड़की होता जा रहा है ये दिन प्रतिदिन." ऋतु भी कहा कम थी

ऐसे ही वो लोग खाना खाते रहे और अलका भी आ गई अपनी प्लेट लेकर. रेखा जी चूल्‍हे के पास ही बैठ गई अपना खाना खाने.

जैसे ही अर्जुन ने अलका की और मुस्कुरा कर देखा, शरम से उसकी नज़र नीचे हो गई और खाँसी होने लगी.

"लो दीदी पानी पियो." अर्जुन झट अपना गिलास लेकर उसके सर के पास खड़ा हो गया. जैसे ही अलका ने ये देखा उसका चेहरा चमक उठा.

"थॅंक यू, आरू." उसने पानी पीते ही कहा, अर्जुन उसकी पीठ प्यार से सहला रहा था.

"क्या यही प्यार है?" दोनो के मन मे यही था.

"मुझे तो आजतक इतने प्यार से तूने पानी नही पिलाया. अलका शायद तेरी ज़्यादा प्यारी है." अब ऋतु ने फिर से अर्जुन को छेड़ा.

"दीदी प्यारी तो एक आप ही हो मेरे लिए. लेकिन कहा मैं नौकर और कहा आप मालकिन." अर्जुन ने उसकी पहले वाली बात ही सुना दी.

उसकी सभी बहने ये सुनकर ज़ोर से हँसने लगी और रेखा जी भी बच्चों के बीच इतना प्यार देख मुस्कुरा रही थी.

"चाची आप खाना खा के आराम कीजिए. बर्तन मैं कर दूँगी." माधुरी ने टेबल से सभी के बर्तन उठाते हुए कहा.

"ठीक है मेरी बच्ची. बस मैं मा- बाबूजी को दूध दे आऊ गरम कर के. और तू भी टाइम से सो जाना सारा दिन काम करती है."
रेखा जी ने माधुरी को माथा चूमते हुए कहा.

"भाई उपर वाले टेलीविजन पर हम फिल्म देख ले क्या?" कोमल ने अर्जुन से गुज़ारिश भरे लहजे मे कहा.

"अर्रे दीदी. आपका भी तो है वो. पूछ क्यो रही हो. और वैसे भी मैं तो दिन भर सो चुका, मैं भी देख लूँगा." इतना बोलकर
अर्जुन अपनी मा का गाल चूम उपर कमरे मे चल दिया. पीछे पीछे कोमल, अलका और ऋतु आ गई.

"सोनी पे हम दिल दे चुके सनम आ रही है. वही लगा ले ऋतु." अलका ने ऋतु को ये बात कही जिसके हाथ मे रिमोट था.

"तूने तो नही दे दिया किसी को दिल. हाहहः.."कहते हुए उसने वो चॅनेल लगा दिया और बैठ गई देखने फिल्म.

ऋतु हमेशा सिंगल सोफा पे बैठ कर ही देखती थी और बड़े सोफे पे कोमल और अलका थे. मूह सॉफ करके अर्जुन भी आ गया
और बैठ गया दोनो बहनो के बीच मे. कोई आधे घंटे बाद माधुरी दीदी भी आ गई थी. अब उन्होने एक खुली टी शर्ट ओर
पाजामा पहना हुआ था. ऋतु भी कुछ ऐसे ही लिबास मे थी. सभी फिल्म मे खोए हुए थे. बस एक अर्जुन था जो अलका मे खोया था.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

अर्जुन ने अलका के कान मे सरगोशी की. "दीदी नई ड्रेस कब पहन कर दिखा रही हो.?"

"परसो जनमदिन है तो तभी देख लेना."उसने टेलिविषन की तरफ देखते हुए शर्मा कर जवाब दिया.

"जनमदिन तो कल रात 12 बजे से शुरू होगा ना. मैं चाहता हू आपको सबसे पहले मैं विश करू. और ज़्यादा अच्छा लगेगा अगर आप उस समय मेरे दिए गिफ्ट को पहन कर आओ." अर्जुन ने ये बात ऐसे कही थी जैसे कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से निवेदन कर रहा हो. अलका ने एक बार प्यार से उसकी तरफ देखा और उसकी आँखों ने कुछ कहा जो सिर्फ़ अर्जुन को ही दिखा. वो भी खुश हो गया.

अलका उठ गई अपनी जगह से और बोली, "चलो दीदी मैं तो सोने जा रही हू. हो गई फिल्म ख़तम." अर्जुन ने जब देखा तो सच मे फिल्म ख़तम हो चुकी थी. वो सारा टाइम सिर्फ़ अलका को ही देख रहा था.

"मैं तो अभी थोड़ी देर और देखूँगी जिसने सोना है वो सो जाए." माधुरी दीदी ने रिमोट लेते हुए कहा

लेकिन कोमल, ऋतु और अलका दीदी चले गये नीचे सोने और उपर रह गये अर्जुन और माधुरी दीदी.

"आप संजीव भैया के कमरे में ही सो जाना दीदी. वहाँ डबल बेड भी है." अर्जुन ने चॅनेल चेंज करती हुई माधुरी दीदी से कहा तो उन्होने पलट कर उसकी तरफ देखा. "मैं अकेले नही सोउंगी. हा तू भी वही सोएगा तो ठीक है. अलार्म वही लगा लिओ."

"चलो ठीक है. लेकिन आप ज़्यादा देर टेलिविषन नही देखोगी." अर्जुन ने चेताया क्योंकि 11:30 हो चुके थे.

"बस आधा घंटा भाई." इतना बोलकर वो सोफे पे अर्जुन के साथ जुड़कर बैठ गई. एक तरफ का सोफा खाली ही था.

अर्जुन की नज़र जब टेलिविषन पर गई तो उसकी आँखें वही जम् सी गई. टाइटॅनिक आ रही थी स्टार मूवीस पे. ये वो टाइम थे
जब इंडिया मे टेलिविषन सेन्सरशिप नही थी. रात 11 के बाद अडल्ट मूवीस आती थी.

फिल्म का सीन भी सबसे पॉपुलर चल रहा था. हीरोइन एक सोफे पे लेटी थी और हीरो कागज लेकर उसके सामने बैठा था.
धीरे से लड़की ने अपनी ड्रेस उतार दी और लेट गई. कॅमरा का फोकस जब उसके स्तनो पे आया तो दोनो भाई बहन की धड़कन बाहर तक सुनाई दे रही थी. कमरे की लाइट बंद थी लेकिन टेलीविजन की रोशनी मे चेहरे सॉफ दिख रहे थे. जहाँ अर्जुन हीरोइन की सर उठाए गोलाइयाँ देख रहा था, वही माधुरी कभी अर्जुन को तो कभी फिल्म को देख रही थी. बोल कोई भी नही रहा था. कुछ ही क्षण मे सीन ख़तम हो गया था लेकिन इन दोनो की हालत खराब हो चुकी थी.

"चल भाई अब सोने का टाइम हो गया." बोलते हुए माधुरी बिना पीछे मुड़े संजीव भैया के कमरे मे चली गई. अर्जुन ने टीवी
बंद किया और बाथरूम मे जाकर अपना अंडरवेर उतार वापिस पाजामा पहन उसी कमरे मे चल दिया.

माधुरी चुपचाप एक तरफ करवट लेकर लेटी थी और उसकी तरफ ही मूह करके अर्जुन भी लेट गया. कमरे मे लाइट बंद कर दी और पंखा चल रहा था. थोड़ी बहुत चाँद की रोशनी आ रही थी खिड़की से जिसमे अर्जुन अपनी बड़ी दीदी के खुले बाल और
सुंदर चेहरा निहार रहा था. बिल्कुल चाँदनी जैसी लग रही थी माधुरी.

"ऐसे क्या देख रहा है?"

"आप कितनी खूसूरत हो दीदी. ये देखो चाँद की रोशनी मे आपकी आँखें कैसे चमक रही है और आपके खुले हुए बाल."
इतना बोल अर्जुन वापिस देखने लगा.

"इतनी भी कुछ खास नही हू. अलका और ऋतु को देख वो दोनो कितनी ज़्यादा सुंदर है. और मेरी तो उमर भी कितनी ज़्यादा हो
गई है." इतना बोलकर माधुरी किसी सोच मे डूब सी गई. उसको एहसास तब हुआ जब अर्जुन का हाथ उसे अपने कान के पीछे महसूस हुआ

वो उसकी लटो को खोल रहा था. देख रहा था कि कितने प्यारे है बाल जो उसकी दीदी के गाल को सहला रहे है.

"क्या हुआ आरू? ऐसे क्या कर रहा है?"

"देख रहा हू दीदी के ये बाल कितने खुशनसीब है जो आपके चेहरे को सहलाते रहते है."

"तू भी तो सहला सकता है. तुझे किसने मना किया."ये बात माधुरी ने उसकी तरफ सरकते हुए कही थी. बड़ा प्यार आ रहा था
उसको अपने भाई के इस निस्वार्थ प्रेम को देख के.

अब हालत ये थी की दोनो ही एक दूसरे के साथ लेटे हुए थे. मूह से मूह 4-5 इंच दूर था. शरीर को भी दूसरे शरीर का एहसास
हो रहा था. अर्जुन ने जैसे ही अपना हाथ दीदी के गाल पे रखा उसका रोम रोम गनगना गया. हल्के भरे भरे और मुलायम गाल
यही हाल माधुरी का भी था. उसके शरीर मे भी उत्तेजना उठ रही थी. माधुरी एक पढ़ी लिखी लड़की थी. जिसको लड़का और
लड़की के काम का भी कुछ किताबी और कुछ सुना हुआ ज्ञान था. उसकी कुछ सहेलियों ने तो कॉलेज टाइम ही अपना कोमार्य ख़तम कर लिया था. लेकिन माधुरी ने ऐसा कभी नही किया था. एक-2 बार उसने ऐसी फ़िल्मे ज़रूर देखी थी लेकिन किया कभी कुछ नही था. लेकिन आज आसार कुछ और ही थे.

अर्जुन का एक हाथ खुद ही माधुरी की कमर पर आ गया था. और एक हाथ से वो अपनी दीदी की माथे से बाल पीछे कर रहा था.

अब दोनो कुछ बोल नही रहे थे लेकिन उनके शरीर चिपक चुके थे.

माधुरी ने अपनी एक बाह उसके उपर रख दी जिस से उसके स्तन अब अपने छोटे भाई के सीने मे धँस रहे थे. जब उसने देखा के अर्जुन इस से आगे कुछ नही कर रहा तो माधुरी ने धीरे से अपने तपते गरम होंठ उसके होंठ से चिपका दिए.

मज़े से अर्जुन की आँखें बंद हो गई थी और हाथ स्वतः ही उसकी दीदी के ठोस नितंबों को सहलाने लगे थे.

ये देख माधुरी का भी जोश बढ़ गया और उसने अपनी मांसल जाँघ अर्जुन की टाँग पर रख दी. दोनो चुपचाप बस एक दूसरे के
होंठ चूम रहे थे की अर्जुन का हाथ माधुरी क सीने पे आ गया.

"दीदी, मुझे ये सब नही आता?" बड़ी मासूमियत से उसने ये बात कही तो माधुरी मुस्कुराइ और बैठ गई. अपने हाथ पीछे ले
जाकर उसने कमीज़ के अंदर से अपनी ब्रा खोली और गले से निकाल दी.

"अच्छा भाई ये बता तुझे कितना पता है?"

"मतलब दीदी?" अर्जुन ने धीमे से पूछा.

"यही के औरत और मर्द के बीच ये जो प्यार होता है ये कैसे करते है?" माधुरी ने भी ये बात बहुत प्यार से कही

"दीदी जो अभी हम कर रहे थे वो किस होता है. ये आपके स्तन है (अपना हाथ हल्के से माधुरी के सीने पर रखते हुए),
ये आपके नितंब है (कूल्हे को सहलाते हुए), यहा आपकी योनि होती है (जाँघो पे हाथ रखते हुए), ये मेरा लिंग है. बस
इतना मालूम है दीदी." अर्जुन ने भोलेपन से कहा. उस पे उत्तेजना ज़रूर चढ़ि थी लेकिन वो अपनी बड़ी बहन से प्यार करता
था और उनका भरोसा नही तोड़ना चाहता था.

"हाहाहा. तुझे कुछ भी नही मालूम. ये देख जो ये गुब्बारे है इनको चुचिया, बूब्स, ब्रेस्ट्स या दूध बोलते है, और जो
तूने नितंब बताया उसको कूल्हे, चूतड़ या बट्स बोलते है. योनि को बोलते है चूत, वेजाइना या पुस्सी. और तेरे लिंग को कहते
है लॅंड, पेनिस या डिक." इतना बोलकर माधुरी ने एक बार फिर अर्जुन के होंठ चूम लिए.
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