Thriller फरेब

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rajsharma
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Re: Thriller फरेब

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वंशिका अरोड़ा एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती थी। वह अपने माँ-बाप की इकलौती संतान थी। यूँ तो उसे किसी तरह की समस्या नहीं थी। अपने माता-पिता के साथ दो कमरों के साधारण मकान में रहती थी, जहाँ दिनभर रौनक लगी रहती थी।
वह एक कमरे में लेटी ‘मनोरमा’ पढ़ रही थी। उसका पूरा ध्यान चंद्रेश की तरफ लगा हुआ था। एक कमरे में उसके माँ-बाप आराम कर रहे थे। वंशिका के कानों में रात 10 बजे भी बस्ती वालों के लड़ने की आवाज आ रही थी। यह यहाँ रोज का माहौल था कोई शराब पीकर अपने को बादशाह समझता और पूरे मोहल्ले को सर पर उठा लेता था। वंशिका इन सब बातों से बेफिक्र थी। अतः उसका ध्यान इन सब बातों में ना था। तभी उसके मोबाइल की रिंगटोन बजी। सुन कर उसका ध्यान भंग हुआ उसने घड़ी की तरफ नज़रें घुमाई दस बज रहे थे। इस समय किस का फ़ोन आया होगा यह सोच कर उसने स्क्रीन पर नजरें गडाई स्क्रीन पर अननोन नंबर आ रहा था।
उसने मोबाइल उठा कर ग्रीन बटन पर हाथ रखा सामने से अपरिचित आवाज उसके कानों में पड़ी “ मिस वंशिका आप घर पर आराम करती रहेंगी और आपके चाहने वाले आपकी जिंदगी को तबाह कर देंगें। “ सामने से हंसने की आवाज सुनाई दी।
“कौन बदतमीज बात कर रहा हैं।” वंशिका तेज़ स्वर में बोली।
“तुम ऐसे ही लापरवाह रहोगी तुम्हारी जगह चंद्रेश के दिल में कोई और बैठा होगा।”
“क्या बकवास कर रहे हो किस चंद्रेश की बात कर रहे हो।” वंशिका उखड़े स्वर में बोली।
“या तो तुम खुद को ज्यादा बुद्धिमान समझ रही हो या मुझे मूर्ख समझ रही हो।” सामने वाले ने व्यंग्य से कहा। वंशिका तिलमिला के रह गयी
“आज तुम्हारा यार तुम्हारे साथ धोखा करके निशा को अपने आगोश में समेंट रहा हैं।” सामने वाले ने रहस्मय स्वर में कहा।
“ तुम कौन हो और मेरे और चंद्रेश के बारे में इतना कैसे जानते हो।” वंशिका ने आश्चर्य से पूछा। “ तुम आम खाने से मतलब रखो पेड गिनने के लिये हम यहाँ बैठे हैं , अगर अपनी जिन्दगी यानी चंद्रेश का दूसरा रूप देखना चाहती हो तो निशा के घर पहुँचो फिर हमें दोष मत देना।”
“मुझे तुम्हारी बात में विश्वास नहीं हैं। चंद्रेश को मैं अच्छी तरह जानती हूँ।”
“विश्वास तो कपिलदेव को भी नहीं था, जब वेस्टइंडीज को हराकर उसने वर्ल्ड कप जीता।” सामने वाले ने व्यंग्य से कहा।
“मुझे तुम्हारी कोई बात नहीं सुननी।” कह कर वंशिका ने फ़ोन काट दिया।
लेकिन उसके मन में बेचैनी बढ़ गयी। वह उठी और निशा के घर जाने की तैयारी करने लगी। दूसरी और सुमित अवस्थी ने मुसकुराते हुए अपना फ़ोन रखा और मन ही मन बड़बड़ाया “अब तुझे कौन बचाएगा मि. चंद्रेश”
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वंशिका जल्दी से घर से बाहर निकली। माता-पिता को समझा कर आयी थी कि उसकी सहेली की तबियत ठीक नहीं है, मिल कर आती है। उसके पिताजी उस सहेली को जानते थे, जो अक्सर बीमार रहती थी, और वंशिका उससे मिलने जाया करती थी, सो उन्होंने इजाज़त दे दी। वंशिका घर से बाहर निकली।
चारों तरफ वातावरण में सन्नाटा छाया हुआ था। मेन रोड पर आते ही उसे टैक्सी मिल गयी। उसने उसे निशा के बंगले का पता बताया और बैठ गयी। वंशिका को विश्वास था फ़ोन कॉल फर्जी थी, फिर भी उसने देखना जरूरी समझा। उसने टैक्सी निशा के घर के बाहर रुकवाई और उसे किराया देकर बंगले की तरफ बढ़ी।
वहाँ की शान्ति आने वाले तूफ़ान का संकेत कर रही थी। वंशिका के बंगले का वातावरण रहस्यमय था। चारों और सन्नाटा और अन्धेरा छाया हुआ था। बाहर के गार्डन में भी अँधेरा था कहीं रौशनी का प्रबंध नहीं था। अगर था भी तो शायद उसे बंद कर रखा था। वंशिका ने हिम्मत दिखाते हुए दरवाजे को धकेला। वह आवाज करता हुआ खुला, फिर शान्ति छा गयी।
अचानक दूर से कुत्ते रोने की आवाज ने भय पैदा कर दिया। तभी अचानक उसकी नजरें चंद्रेश की कार पर पड़ी। उसका दिल धड़क उठा। उसे लगने लगा शायद फ़ोन करने वाले की बातों में सच्चाई है। चारों तरफ नजरें दौडाते हुए वह मेन गेट पर पहुँची। उसने दरवाजा धकेला। दरवाजा खुला हुआ था। वह भीतर आयी। नीचे कमरे में कोई नहीं था। सामने सीढियाँ दिखायी दी, जो ऊपर जा रही थी। वहाँ उसे प्रकाश होने का आभास मिला, साथ में बोलने की आवाज भी सुनाई दी।
उसने दिल को मजबूत कर के सीढियों पर कदम रखा और दबे पाँव ऊपर की तरफ बढ़ने लगी। सीढियाँ ख़त्म करने के बाद एक दरवाजा दिखायी दिया, जो अधखुला था। उसने धड़कते दिल से थोड़ा सा भीतर झाँक कर देखा, तो उसकी साँसे ऊपर की ऊपर नीचे की नीचे रह गयी। सामने बैड पर चंद्रेश लेटा था। उसके बदन पर कपडे नाम मात्र के भी नहीं थे। बाथरूम के अन्दर से निशा के गुनगुनाने की आवाज आ रही थी।
उससे यह दृश्य देखा न गया। वह भाग कर नीचे आयी और मेन दरवाजा पार करके रोड पर आ गयी। उसकी आँखों से आँसू निकल पड़े। उसका दिल जोर-जोर से रोने का हो रहा था। उसके सारे सपने बिखर गये थे। उसे चंद्रेश से बहुत आस थी जो पल भर में बिखर गयी।
वह थके कदमों से अपने घर की ओर चलने लगी। वह पागलों तरह चल रही थी। उसे खुद का भी भान ना था। अचानक एक गाड़ी सामने से आकर रुकी। गाड़ी में से विमल उतरा। उसने वंशिका को देखा। वंशिका उसे देख कर जोर-जोर से रोने लगी।
विमल ने कार का दरवाजा खोला और उसे आगे वाली सीट पर बिठाया। उसे पीने के लिये पानी दिया, “तुम यहाँ कैसे?” आँसू पोंछते हुए वंशिका ने विमल से पूछा।
विमल ने उसकी ओर देखते हुए कहा “मुझे यहाँ देखकर तुम्हें हैरानी हो रही होगी ना।”
वंशिका का सिर सहमति से हिला।
“तुम्हें नहीं मालूम विमल आज मैं कितना टूट चुकी हूँ। आज मैंने चंद्रेश का वह रूप देखा, जिसकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते। चंद्रेश फरेबी है। उसने मेरे साथ फरेब किया है।” वंशिका ने अपने दिल के जज़्बात उसके आगे उड़ेल दिये।
विमल चुपचाप उसे देखता रहा, फिर धीरे से उसे देखकर मुस्कुराकर कहा, “आई लव यू वंशिका।”
वंशिका चिंहुक कर विमल को देखने लगी, “क्या बकवास कर रहे हो विमल।” उसे विमल से डर लगने लगा।
विमल ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा, “मैंने जब से तुम्हें देखा है, तब से मैं तुम्हारा दीवाना हूँ। अगर चंद्रेश नहीं होता, तो आज मेरी जिन्दगी में तुम होती।” विमल ने आँखों में प्यार भरते हुए वंशिका का हाथ पकड़ा।
वंशिका ने भय से कार का लॉक खोलना चाहा, किन्तु वह मास्टर लॉक था, केवल रिमोट से खुलता था, जो विमल के पास था।
“मुझे तुमसे यह उम्मीद नहीं थी कमीने। मैं तुझे क्या समझती थी और तुम क्या निकले?” विमल ने उसकी बातें सुने बिना ही कहा।
“याद है जब तुम पहले दिन कॉलेज में आयी थी, कुछ डरी-डरी सी थी, तुम्हारे वह खुले बाल, लाल लिबास में पहली बार तुम्हें देखा, तो मेरा दिल मेरा नहीं रहा, तुम्हारा हो गया। यह तो चंद्रेश बीच में टपक पड़ा। अमीर आदमी था मेरे ऊपर बहुत अहसान थे। इसलिये मैं कुछ ना बोल सका लेकिन अब हमारे बीच में कोई नहीं हैं।” उसके शब्दों में दर्द झलक रहा था
उसने अपने प्यार का इज़हार कर दिया। उसकी आँखों में ऐसे भाव थे कि वंशिका की नजरें झुक गयी।” लेकिन मेरी जिन्दगी में चंद्रेश के अलावा दूसरा नहीं होगा वह नहीं तो मैं नहीं” वंशिका भी गुस्से में बोली।
“वाह री भारतीय नारी, चंद्रेश की बेवफाई देख कर अभी भी उससे चिपकी हुई हो।” वंशिका ने आश्चर्य से देखा।
“तुम्हें कैसे मालूम, मैं कहाँ गयी थी?” वंशिका बोली।
“वैसे तुमने क्या देखा? चंद्रेश बेवफा है, यह तुम कैसे कह सकते हो?” विमल पूछा।
वह बहुत जोर से हंसा फिर हंसता ही चला गया। उसकी हँसी रुकने का नाम नहीं ले रही थी।
वंशिका को अब उससे और भी डर लगने लगा। “लगता है, मुझे फ़ोन करने वाले तुम ही हो। चंद्रेश मुझे धोखा दे रहा है, यह बात तुम जानते थे। तुमने मुझे फ़ोन करके जान कर यह दृश्य दिखाया ताकि तुम्हारा रास्ता साफ़ हो जाये।”
“हम प्यार को छीनने में यकीन रखते है मेरी जान ! सोचो कार में हम-तुम अकेले हैं। यहाँ अगर मैं मनमानी कर लूँ, तो कौन रोकेगा मुझे?” वंशिका थर-थर काँपने लगी।
“मैं जोर-जोर से चिल्लाऊँगी।” वह जोर से बोली।
“यहाँ तुम्हारी आवाज कौन सुनेगा जानेमन? कार के शीशे चढ़े हुए हैं। तुम्हारी आवाज दब जायेगी।” उसके स्वर में व्यंग्य झलक रहा था।
“यह मुझसे किस जन्म का बदला ले रहे हो विमल? मुझे तुमसे यह आशा नहीं थी।” घबराकर वंशिका ने हाथ जोड़ लिये।
“मुझे छोड़ दो प्लीज।” वह रोते हुए बोली।
“हे भगवान, आज मुझे कैसा दिन दिखाया। एक ही झटके में सब अपने पराये हो गये।” वह रोये जा रही थी।
अचानक विमल ने ठहाका लगाया। उसकी हँसी सुनकर वंशिका ने चेहरा ऊपर उठाया।
“यानी मैं पास हो गया। अब मुझे एक्टर बनने से दुनिया की कोई भी ताक़त नहीं रोक सकती। कैसा लगा मेरा मजाक?” विमल ने मुस्कुराते हुए पूछा।
वंशिका के मुँह से बोल नहीं निकले। वह अविश्वास भरी नज़रों से विमल को देखने लगी, “क्या तुम सच कह रहे हो। यह सब मजाक था?” वंशिका के स्वर में हैरानी थी।
उसे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि विमल मजाक कर रहा है।
“तो मैं जा सकती हूँ?” वंशिका ने पूछा।
“हां-हां बिलकुल, तुम कहो तो मैं तुम्हें घर छोड़ आता हूँ।” विमल ने सामान्य स्वर में कहा।
“तो पहले कार के दरवाजे का लॉक हटाओ और कार के शीशे खोलो।” विमल ने शराफत से लॉक हटा दिया और कार के शीशे नीचे कर दिये।
वंशिका बिना कुछ बोले कार का दरवाजा खोल रही थी। विमल ने उसे रोक दिया। उसने सिगरेट निकाली और लाइटर से उसे सुलगाया। वंशिका ने प्रश्नवाचक दृष्टि से उसे देखा।
“अभी तुमने दो ड्रामे देखे हैं। तीसरा ड्रामा देखना बाकी है।”
“कौन से दो ड्रामे?” वंशिका ने पूछा।
“तुमने सवाल गलत पूछा वंशिका। पहला ड्रामा चंद्रेश और निशा का, दूसरा ड्रामा मेरा और तुम्हारा, तीसरा ड्रामा बाकी है, कहानी का अंत बाकी है, क्या तुम्हें मुझ पर विश्वास है?”
वंशिका का सर सहमति से हिला।
“मुझसे डर तो नहीं लग रहा?”
नकारात्मक ढंग से वंशिका का सिर हिला।
“क्या मुँह में जुबान नहीं है? गूंगी हो गयी हो अटैक तो नहीं आ जायेगा।”
वंशिका हलके से मुस्कुराई, “मुझे आप से डर नहीं लग रहा है?”
“अब तुम से आप पर आ गयी” वंशिका ने उदासी भरे चेहरे से विमल को देखा।
“अब मुझे घर छोड़ दो। रात काफी हो गयी है।” साधारण स्वर में वंशिका बोली।
विमल की दृष्टि कलाई में बंधी घड़ी से टकराई, “बस कुछ समय और तीसरा ड्रामा देखना बाकी है। वह देख कर जाना।”
वंशिका ने ना समझने वाले ढंग से सिर हिलाया
विमल ने यू-टर्न लिया और कार को निशा के बंगले की तरफ मोड़ दिया। कार निशा के बंगले से थोड़ी दूर खड़ी करने के बाद उसने उसकी सारी लाइटें बंद कर दी और चुपचाप बैठ गया।
वंशिका शांत भाव से विमल को देखने लगी, “यहाँ वापस क्यों आये? धोखेबाज़ चंद्रेश को वापस दिखाने, मुझे नफरत है चंद्रेश से।”
वह कुछ कहना ही चाहती थी, कि एक कार के आने की हल्की-हल्की आवाज उनके कानों से टकराई। विमल ने वंशिका को ऊँगली होठों पर रखकर चुप रहने का इशारा किया।
वंशिका सस्पेंस में फँसी चुप रह गयी। उसका दिल कह रहा था कुछ होने वाला है। अचानक एक कार निशा के बंगले के थोड़ी दूर आकर रुक गयी। पांच मिनट बाद उसकी सब बत्तियाँ बुझ गयी।
कार में से एक साया निकला और निशा के बंगले में दवे पाँव चला गया।
“तीसरा ड्रामा शुरू।” विमल के मुँह से निकला।
वंशिका हैरत से देखती हुई बोली, “यह तो सुमित की कार है।”
“थोड़ा इन्तजार करो मोहतरमा, कहानी तो अभी शुरू हुई है।”
फिर लगभग दस मिनट वंशिका और विमल कार में बैठे रहे।
फिर कार से निकले, कार को लॉक किया और निशा के बंगले की तरफ बढ़ गये।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: Thriller फरेब

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Re: Thriller फरेब

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अन्दर का माहौल वैसा ही था। हर तरफ शान्ति छाई हुई थी। दबे पाँव वे लोग अंदर पहुँचे। आगे विमल, पीछे वंशिका, वे उस कमरे में पहुँचे, जहाँ वह पहले भी आयी थी। अब उस कमरे में लाल रंग का नाईट बल्ब जलता दिख रहा था। चंद्रेश दुनिया से बेसुध पड़ा हुआ था।

वंशिका की आँखों में नफरत के भाव उठे, तभी बाजू वाले कमरे से हँसी की आवाज सुनाई दी। विमल ने वंशिका को अपने पीछे आने का इशारा किया। दोनों अधखुली खिड़की के पास पहुँचे। विमल ने खिड़की के पल्ले को धीरे से धक्का दिया। वह बेआवाज खुल गया।

अब भीतर का पूरा नजारा स्पष्ट दिख रहा था। बाहर चूंकि अँधेरा था, इसलिये अन्दर से बाहर बिलकुल नहीं दिखायी दे रहा था। दोनों सांसे रोक कर अन्दर का दृश्य देखने लगे। अन्दर निशा और सुमित बातें करते हुए खूब हँस रहे थे। वह इस बात से बेखबर थे कि उनकी यह बात बाहर भी कोई सुन रहा है।

“निशा तुम्हारी स्कीम कामयाब रही। अब तुम्हारी राह का काँटा हट गया। अब चंद्रेश तुम्हारा हुआ।” घूँट भरते हुए सुमित बोला।

“वाह! क्या प्लान बनाया तुमने। एक झटके से एक तीर से दो शिकार। एक तो चंद्रेश वंशिका में फूट पड़ गयी और दूसरी तरफ मुझ जैसी नायाब चीज़ तुम्हें मिल गयी।” मुस्कुराते हुए निशा बोली।

“ज्यादा फायदा तो तुम्हें हुआ। तुम्हारे और चंद्रेश के बीच का काँटा हमेशा के लिये हट गया। अब चंद्रेश केवल तुम्हारा ही होगा।” मुँह बनाकर सुमित बोला।

सुमित निशा के होठों को चूमने के लिये उठा ही था कि निशा ने रोक दिया, “चंद्रेश जाग जायेगा।”

“उसकी फिक्र मत करो। नशे की दवाई की एक गोली ही आदमी को चार-पांच घंटे बेसुध कर देती है। तुमने तो उसे दो दे दी, यानी सात-आठ घंटे की छुट्टी।” सुमित ने हँसते हुए कहा।

“मैं बहुत दिन से इस मौके की तलाश में थी कि कब मौका मिले और चंद्रेश मेरा हो।” कुटिल मुस्कान चेहरे पर लाती निशा बोली।

“मैंने भी बड़ी आसानी से वंशिका को फ़ोन करके भड़का दिया। बेवकूफ वंशिका सपने में भी नहीं सोच सकती कि फ़ोन किसने किया था? औरत जितनी ख़ूबसूरत होती हैं, उतनी ही बेवकूफ होती हैं।” सुमित अवस्थी निशा के साथ सट गया।

उसके गाल पर जोरदार किस किया। निशा ने किसी भी तरह का प्रतिरोध नहीं किया। वह अदा से मुस्कुरायी सुमित की वाह-वाह हो गयी। बाहर खिड़की के पीछे खड़े विमल और वंशिका उनके बीच हो रहे एक-एक शब्द को सुन रहे थे। विमल शांत था, जबकि चेहरे पर भूचाल के भाव लिये वंशिका खड़ी थी। उसके चेहरे पर हैरानी के भाव थे।

उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसने जो सुना वह सही है। उसकी आँखों से खुशी के आँसू निकले। चंद्रेश के लिये उसके मन में प्यार दुगना हो गया।
विमल बुदबुदाया, “ड्रामा नंबर तीन ख़त्म।” वंशिका के चेहरे में सहमति के भाव थे।
उसने उदार दृष्टि से विमल को देखा। कमरे से आती हल्की रोशनी में विमल बड़बड़ाया, “ऐसे मत देखो, वर्ना तुम्हें मुझसे प्यार हो जायेगा।”
वंशिका के चेहरे पर धीमे से मुस्कराहट उभरी। तभी विमल बोला चलो “ड्रामे का खात्मा करते हैं।”
निशा और सुमित एक दूसरे की बाहों में खोये हुए थे। ताली बजाता हुआ विमल अंदर पहुँचा। चिहुँक कर दोनों अलग हो गये। पीछे-पीछे वंशिका भी पहुँची। सुमित और निशा के चेहरे में जहाँ भर की हैरानी भर गयी।
विमल सामने सोफे पर बैठ कर बोला, “ वाह! क्या सीन हैं।”
“तुम यहाँ कैसे?” निशा ने हैरानी से विमल को देखा।
वंशिका नफरत से निशा और सुमित को देख रही थी।
“बंदा तो शुरुआत से हर जगह उपस्थित था। पार्क में जब आप लोग बात कर रहे थे सुमित के घर में, जब वह वंशिका से बात कर रहा था, हर जगह हम ही हम थे। आपका प्लान हम शुरू से जानते हैं।” व्यंग्य से विमल ने जवाब दिया।
“तुम औरत के नाम पर कलंक हो। तुम एक नागिन हो, जिस पर कभी भरोसा नहीं किया जा सकता।” वंशिका नफरत से बोली।
“चलो विमल, इन लोगों के क्या मुँह लगना। चंद्रेश को संभालो और साथ ले चलो।” वंशिका विमल की तरफ मुड कर बोली।
विमल का सिर सहमति से हिला, “जनाब आप दोनों को आदाब अर्ज करता है।” कह कर वंशिका और विमल चंद्रेश ओर बढे।
उसे सँभालते हुए अपनी कार तक ले गये। दूसरी तरफ निशा और सुमित के बीच सन्नाटा छा गया। निशा को ऐसा लगा जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो।
अचानक सुमित चेतना से जागा, “मैं अभी उनको रोकता हूँ।”
निशा ने हाथ पकड़ कर मना कर दिया, “अब सब कुछ ख़त्म हो गया। बाजी अपने हाथ से पलट गयी है।” सोफे से उठता हुआ सुमित धम्म से सोफे पर बैठ गया।
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विमल वंशिका के साथ चंद्रेश को सम्भाले जब अपने घर में पहुँचा, उस समय रात के एक बजे थे। वंशिका ने घड़ी देखी और बोली, “मेरे घर पर मम्मी-पापा राह देख रहे होंगे। मुझे भी मेरे घर छोड़ दो।”
“इतनी रात में घर कहाँ जाओगी? यहीं लेट जाओ। अपने घर पर मम्मी-पापा को खबर कर दो।” विमल ने कहा।
वंशिका ने उसे देखा।
चंद्रेश को सोफे पर लेटे देख विमल बोला, “तुम भी यही आराम करो वंशिका। मैं ऊपर अपने रूम में चला जाता हूँ। तुम मुझ पर भरोसा कर सकती हो।”
वंशिका का सिर सहमति से हिला
उसने अपने माता-पिता को फ़ोन पर खबर कर दी कि उसकी सहेली की तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब है और वह रात में वही रुक रही है। उसके माता पिता ने आज्ञा दे दी।
विमल अपने बेडरूम में चला गया और वंशिका वहीँ पड़े दीवान पर लेट गयी। सुबह आठ बजे चंद्रेश ने मिचमिचाते हुए आँखें खोली। तेज रोशनी सीधे उसके मुँह पर पड़ी।
“मैं यहाँ कैसे?” उसने उठते हुए वंशिका को देखते हुए आश्चर्य से पूछा।
“लो चाय पियो?” वंशिका ने उसे चाय का कप पकड़ा दिया।
चंद्रेश ने चाय का कप थामते हुए विमल को देखा, जो उसे देख कर मुस्करा रहा था। धीरे-धीरे उसे रात की घटना याद आ गयी। वैसे वह बेहोश हो गया था, तभी उसका सिर घूमा। उसे चक्कर से आने लगे उसने कप मेज पर रखा और अपना सिर थाम लिया।
वंशिका ने उसे वापस सोफे पर लिटाया। थोड़े समय बाद वह सामान्य हुआ, तब वंशिका ने उसे सारी घटना बताई और विमल के बारे में बताया कि कैसे उसकी वजह से पूरा माहौल कण्ट्रोल में आया।
चंद्रेश ने विमल को धन्यवाद दिया और वंशिका से कहा, “अब मैं सहन नहीं कर सकता। जल्द से जल्द मैं तुमसे शादी करना चाहता हूँ।”
वंशिका ने विमल की तरफ देखा। उसने सहमति से सिर हिलाया। वंशिका चंद्रेश के सीने से लिपट गयी। कुछ दिनो बाद चंद्रेश और वंशिका की शादी हो गयी, जबकि वह अभी पढ़ ही रहे थे। शादी बड़े-धूमधाम से हुई, जिसमें चंद्रेश ने निशा और सुमित को भी बुलाया। वे शादी में नहीं आये, पर उनकी तरफ से गिफ्ट पहुँचा, जिसमें उनके लिये ढेर सारी शुभकामनाएं दी हुई थी और अपनी गलती के लिये दोनों ने माफी भी मांग ली।
मैंने और वंशिका ने उन्हें माफ़ कर दिया था। यह कहता हुआ चंद्रेश अतीत के झरोखों से बाहर निकला उसकी आँखों से आँसू झिलमिला रहे थे।
भाटी और निरंजन भी उसकी कहानी सुनकर द्रवित हो गये। वंशिका के चेहरे पर कोई भाव नहीं था।
चंद्रेश बोला, “यह मेरी वाइफ वंशिका नहीं है।”
विमल ने भी उसका समर्थन किया। भाटी का सिर सहमति से हिला।
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भाटी उठ खड़ा हुआ और गंभीर स्वर में चंद्रेश से बोला, “मिस्टर चंद्रेश, मुझे तुम से हमदर्दी है। तुम्हारी कहानी काफी दिलचस्प और भावनाओं से भरी हुई है, लेकिन यहाँ बात एक मर्डर के छानबीन की चल रही है, जो कि आप के मुताबिक इन मोहतरमा ने किया है।” उसने वंशिका की तरफ इशारा कर के कहा।
वंशिका चिल्लाई, “यह झूठ है, मैंने कोई मर्डर नहीं किया है।”
निरंजन और चंद्रेश ने वंशिका के चेहरे को देखा, जिसमें भरी सर्दी में भी पसीना निकल रहा था।
निरंजन और भाटी पूरी तरह से चंद्रेश की बातों से प्रभावित लग रहे थे।
“लेकिन अभी का जो सबसे बड़ा सवाल है, वह है कि लाश कहाँ हैं?” निरंजन चंद्रेश की तरफ देख कर बोला।
“एक लड़की, वह भी अकेली लाश को गायब नहीं कर सकती?” भाटी ने भी निरंजन का समर्थन किया।
“आप क्या कहते हैं मिस्टर चंद्रेश? लाश कहाँ जा सकती है?”
“मैं जब यहाँ से गया, लाश इसके पास छोड़ के गया था?” चंद्रेश पक्के स्वर में बोला।
“यहाँ का माहौल समझ में नहीं आ रहा, यह अपने को वंशिका बताती है जो है नहीं।” विमल हैरानी से वंशिका को घूरे जा रहा था।
यह बातें आपस में चल ही रही थी कि बाहर से कार रुकने आवाज आयी। सब का ध्यान भंग हो गया, तभी किसी के कदमों के आने की आवाज सुनाई दी। सब का ध्यान दरवाजे की तरफ चला गया आने वाले को देख कर चंद्रेश के मुँह से सिसकारी निकल गयी।
सामने सफ़ेद पेंट और काला कोट पहने सागर खड़ा था। उसकी आँखों में काला चश्मा लगा था, जो उसकी सुन्दरता को बढ़ा रहा था।
चंद्रेश जोर से चिल्लाया, “तुम जिन्दा नहीं हो सकते? तुम तो वंशिका द्वारा दिये गये जहर से मर चुके थे। मैं खुद तुम्हारी लाश यहाँ छोड़ के गया था।”
“क्या जीजाजी, आप भी ना, भरी जवानी में ही सठिया गये हो।” सागर अपने अंदाज में बोला।
वंशिका के चेहरे पर ख़ुशी लहर आ गयी और सागर से लिपट कर बोली, “भैया, इन लोगों का मानना है कि मैंने कॉफ़ी में जहर देकर आपको मार दिया है और आपकी लाश ठिकाने लगा दी है।”
“क्या जीजाजी, आज दिन में ही चढ़ा ली हैं क्या? या ऊपर का माला खाली हो गया है।” सागर चंद्रेश के पास आकर बोला।
भाटी और निरंजन की नजरें मिली। भाटी सागर को घूरता हुआ बोला, “कहाँ से पधार रहे हैं आप?”
“अब क्या मुझे आपको बता कर जाना पड़ेगा कि इंस्पेक्टर साहब मुझे टॉयलेट जाना है?” व्यंग्य भरे स्वर में सागर बोला।
“मिस्टर सागर, वकील होने का यह मतलब नहीं कि आपको हमारी बेइज्जती करने का अधिकार मिल गया।” निरंजन ने कठोर स्वर में कहा।
“मिस्टर सागर, आपकी जानकारी के लिये बता दें कि यह साबित हो चुका है कि यह वंशिका नकली है। चंद्रेश ने हमें सारी कहानी सुना दी है और हमें उसमें विश्वास है।”
निरंजन हँस कर बोला, “मिस्टर सागर, आप जानते नहीं यह विमल हैं। इन्होंने यह पहचान कर ली है कि यह वंशिका नहीं है क्योंकि ये साथ में पढ़े हैं और वंशिका को अच्छी तरह जानते हैं।” निरंजन ने साधारण स्वर में कहा।
“बहुत खूब।” सागर ने विमल को ऊपर से नीचे घूरते हुए देखा, “इन्होंने कहा और आपने मान लिया। सबूत कहाँ हैं? कानून सबूत मांगता है। सरकारी आदमी होकर भी आप यह नहीं जानते?”
विमल कसमसा कर रह गया, जब सागर ने यह शब्द किशोर सिंह भाटी को कहे।
“क्या जीता जागता सबूत अहमियत नहीं रखता?” भाटी ने विमल की तरफ इशारा कर के कहा।
सागर जोर-जोर से हंसने लगा। वंशिका ने उसे हैरानी से देखा। चंद्रेश और विमल उसे हँसते हुए देख कर आश्चर्य चकित रह गये। फिर सागर रुका, विमल की तरफ बढ़ कर बोला, “आपका एक सबूत यह साबित कर सकता है कि यह वंशिका नहीं है और मेरे दो सबूत यह साबित करते हैं कि यह वंशिका है।”
“तुम्हारे कौन-से दो सबूत?” निरंजन हैरान होकर बोला।
“निशा ओबरॉय और राहुल मकरानी को भूल ही गये आप?”
निरंजन के होठों पर मानो ताला लग गया।
वंशिका के चेहरे की रौनक बढ़ गयी निरंजन और भाटी से कुछ कहते नहीं बना।
“क्या यह सच है निशा ने इसे वंशिका कहा?” विमल आश्चर्य चकित होकर बोला।
भाटी की गर्दन सहमति से हिली।
“मिस्टर निरंजन और मिस्टर भाटी, काइंड योर इनफार्मेशन, सारे सबूत इन्हें वंशिका साबित करते हैं। चाहे वह आधार कार्ड हो या वोटर आई डी कार्ड। वह पक्का सबूत है कि ये वंशिका हैं। ड्राइविंग लाइसेंस भी आपको मैं दिखा सकता हूँ।”
सबकी बोलती बंद हो गयी। निरंजन और विमल बगले झांकने लगे।
चंद्रेश धम्म से सोफे पर बैठ गया। भाटी ने सागर को घूरते हुए कहा, “सरकारी नौकरी में रहते हुए हम जानते हैं ये सारे सबूत कैसे पैदा किये जाते हैं। फिलहाल हम मजबूर हैं वक्त तुम्हारे साथ है।” विवशता से भाटी बोला।
“अब आप लोग जा सकते हैं।” वंशिका गुस्से में दरवाजे के पास आकर खडी हो गयी।
दुनिया भर का अपमान महसूस करते हुए विमल, निरंजन और भाटी वहाँ से निकल गये। भाटी गुस्से में सागर को घूर रहा था, लेकिन कर कुछ नहीं सकता था।
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller फरेब

Post by rajsharma »

जीप में बैठे हुए विमल, भाटी और निरंजन शांत बैठे थे, फिर अचानक चुप्पी निरंजन ने तोड़ी, “तगड़ी मात खाई आज हमने।”
भाटी का सिर सहमति से हिला।
“मैं यह जानता हूँ वह असली वंशिका नहीं है, फिर भी मैं कुछ नहीं कर सका।” अफ़सोस भरे स्वर में विमल बोला।
“इन सब चक्कर में एक चीज अच्छी हुई कि हमें सुमित अवस्थी के बारे में और जानकारी मिली, जो उसका केस सुलझाने में मदद करेगी।” निरंजन के स्वर में उत्साह भरा हुआ था।
“तुमने ठीक कहा निरंजन, अब हमारे पास और रास्ते खुल गये हैं जिनसे कातिल का सुराग मिल जायेगा।” भाटी ने लम्बी सांस ली।
“मैं आप दोनों की जानकारी में इजाफा करना चाहूँगा, शायद आपको पता नहीं है। सुमित अवस्थी का बाप नेता सुन्दर लाल अवस्थी नशे का व्यापार भी करता था और उसके सम्बन्ध अयूब खान से हो सकते हैं।” विमल रहस्यमय स्वर में बोला।
निरंजन ने आश्चर्य से विमल को देखा, “तुम्हें यह बात कैसे पता चली?”
“एक दिन जब हम दोनों कॉलेज में दोस्त बन गये थे, तो एक दिन नशे में उसके मुँह से निकल गया कि वह अपने बाप से बहुत डरता था।” विमल के चेहरे पर मुस्कान आ गयी।
“और तुमने बताया था कि वह किसी लड़की को चाहने लगा था, वह कौन थी?” निरंजन ने पूछा।
“यह बात हमको लास्ट तक पता नहीं चली।”
अचानक भाटी ने अपना मौन तोडा, “तुम तो अच्छा आदमी बताते थे। चंद्रेश की कहानी के हिसाब से तो वह नेगेटिव किरदार था।”
“चंद्रेश की शादी के बाद उसमें बदलाव आया, तभी हम करीब आये।” विमल तुरंत बोला, “बस मुझे यहीं उतार दो सर, अब घर जाना चाहता हूँ।”
भाटी का ब्रेक पर पैर पड़ा, जीप झटके से रुक गयी। विमल उतरा उनका अभिवादन करते हुए बस स्टैंड की तरफ चला गया।
निरंजन और भाटी काफी देर तक जाता देखते रहे। फिर भाटी ने जीप आगे बढ़ा दी।
“सर सुमित अवस्थी का केस अब जल्द हल होने वाला हैं।” निरंजन बोला।
भाटी ने कुछ सोचते हुए ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
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दूसरी तरफ चंद्रेश के घर में माहौल तनावपूर्ण था। वंशिका खुल कर अपने रूप में आ गयी थी। वह सागर के पास आकर बैठ गयी थी। सागर और वंशिका की नज़रें मिली, वे हौले से मुस्कुराये।
वंशिका चंद्रेश को सुना कर बोली, “सागर डार्लिंग, अपना प्लान तो सुपर हिट रहा।”
“अपने पति की तो शर्म करो भई, इनके सामने ही मुझे डार्लिंग कह रही हो।”
“अब छिपाने से क्या फायदा? यह तो जानते ही हैं कि मैं वंशिका नहीं हूँ। क्यों पतिदेव?” चंद्रेश दाँत भींच कर रह गया।
“कैसे बेचारा रात को छुपकर हमारी रासलीला देख रहा था। जैसेकि हमें पता ही न हो, जबकि हम दिखाने के लिये ही रासलीला खेल रहे थे।” मज़े लेते हुए सागर बोला।
“तुमने मुझे उस समय सही से प्यार नहीं किया था, अब कर लो?” वंशिका चंद्रेश को उत्तेजित करने के लिये सागर से बोली।
“रहने दो, यह सीन देखकर तुम्हारे पति को अटैक ना आ जाये।”
फिर वंशिका धीरे से सागर के करीब आयी। उसके होठों को किस करते हुए चंद्रेश को देखने लगी।
चंद्रेश का पूरा शरीर गुस्से में जलने लगा। उसने गर्दन फिरा ली और क्रोध को पीने की कोशिश करने लगा।
“अब तो यह मुझे घर से बाहर भी नहीं निकाल सकता क्योंकि निरंजन और भाटी मुझे झूठा साबित नहीं कर पाए।” वंशिका इठला कर बोली।
“चलो ऊपर वाले कमरे में थोड़ा प्यार कर लिया जाये?” सागर वंशिका का हाथ पकड़ कर बोला।
“प्लीज स्टॉप नोनसेन्स। मैंने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है? तुम मुझसे क्या चाहती हो?” चंद्रेश गुस्से में दाँत भीँच कर बोला।
गुस्से में उसकी लाल-लाल आँखें जलने लगी।
“ओह! पतिदेव गुस्सा हो गये?” वंशिका नकली अफ़सोस जाहिर करते हुए बोली।
“तुम लोग क्या चाहते हो? बंगला, धन, दौलत जो चाहे ले लो पर मुझे माफ़ करो?” चंद्रेश ने गुस्से में हाथ जोड़ कर कहा।
“वह तो वैसे ही हमारा हो जायेगा, जब तुम पागल हो जाओगे। चलो डार्लिंग ऊपरवाले कमरे में चलते हैं।” सागर का हाथ पकड़ कर मंद-मंद मुस्कुराते हुए वंशिका बोली।
“ओह! तो यह प्लान है, मुझे पागल साबित करके मेरी दौलत हड़पना चाहते हो।” मन ही मन बड़बड़ाता चंद्रेश उन्हें ऊपर जाते देखकर बोला।
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