Adultery ओह माय फ़किंग गॉड

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rajsharma
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

Post by rajsharma »



खैर अब घर में मेरा परिवार आ चूका है और मैं शाम का इंतज़ार कर रहा हूँ. मेरा दिल उदास था क्योंकि मैं दो दिन के बाद वापस अपने काम पर जा रहा था. लेकिन इस बात की ख़ुशी थी की मैंने सोमा को अच्छे जगह पर काम दिलवा दिया. शाम को 5 बजे मैं अपने नेहा के पार्लर पर गया. मेरा दोस्त विवेक भी वहां पर था. मुझे पार्लर में गेट के सामने देखकर ना जाने कहाँ से सोमलता निकल मेरे सामने आई.

मैंने हैरत से पूछा – “तुम कहाँ थी? कब आई हो?”

वह बोली की आधे घन्टे से .

मैं उसको लेकर अन्दर गया. विवेक ने सवालिया नजरो से देखा हमे. मैंने कहा – “यार, यही है जिसके बारे में मैंने बताया था. नेहा कहाँ है?”

विवेक को अचानक कुछ याद आया और नेहा को आवाज लगाया. नेहा बाहर आई. काफी दिनों के बाद मैं उसको देख रहा था, काफी खुबसूरत लग रही थी. उसने मुझसे हाथ मिलाया और शिकायत करते बोली – “क्या बिन्नी, इतने दिनों के बाद मिल रहे हो. घर आते फिर भी नहीं मिलते. क्या पुरानी दोस्ती का कोई मतलब नहीं होता है?”

मैं झेंपते हुए बोला – “नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है. तुम सब अपने लाइफ में बिजी हो. इसलिए नहीं हो पाता.”

नेहा भौंहे नचाते हुए बोली – “अच्छा बच्चू, हम बिजी हो गए है. और तुम. खैर छोड़ो, आज रात को हमारे घर में खाना पड़ेगा. अच्छा मैं इसको काम समझा देती हूँ.” यह कहकर वह सोमलता को अन्दर ले गई.

मैं और विवेक गप्पे मारने लगे. लगभग आधे घन्टे के बाद दोनों बाहर आई. नेहा बोली – “बिन्नी, मैंने इनको काम समझा दिया है. कल से काम पर आ सकती है. कोई दिक्कत नहीं है.”

मैं उठते हुए बोला – “थैंक्स यार! अभी चलता हूँ. रात को आता हूँ.” मैं पार्लर से निकल गया,

मेरे पीछे सोमा भी बाहर आई. बाहर आकर वह मेरे और देखकर मुस्कुराते हुए बोली – “बाबु तुमने मेरे लिए बहुत कुछ किया. हम फिर कब मिलेंगे?”

मैं थोड़ा सोचते हुए बोला – “देखते है, अभी मेरे हाथ में और 2 दिन है. कोई ना कोई जुगाड़ लगता हूँ.” मैं उसको चूमना चाहता था लेकिन बीच बाज़ार में यह करना मुनासिब नहीं था. इसलिए मैं उसको ऑटो में बिठाकर घर की और निकल गया.

घर जाने के रस्ते में पूर्णिमा भाभी दरवाजे पर दिखी. मुझे देखकर मुस्कुराई लेकिन चेहरे पर उदासी थी. मैंने आँखों में ही हेल्लो बोलकर घर घुंस गया. आज रात मुझे बिना चुदाई के रहना पड़ेगा, यह सोचकर मेरा दिमाग फटा जा रहा था. वह क्या है की पिछले कुछ दिनों के दिन-रात सेक्स का नशा लग गया था. इस तरह अचानक ब्रेक लगने पर मेरा हाल उस पियक्कड़ की तरह हो गया, जो जनता है की आज उसको पीने को पानी के सिवा कुछ नहीं मिलेगा फिर भी वह दारू की उम्मीद करता है.



देर रात में विवेक और नेहा के घर से लौटा. रात के लगभग 10:30 हो रहे थे. मैं ऊपर के कमरे में बैठा इन्टरनेट सर्फ कर रहा था. मेरा टेबल बिल्कुल खिड़की पर था, उस खिड़की के सामने रीता काकी का घर है. मैं ध्यान मग्न होकर लैपटॉप पर नज़रे गढ़ाए था. अचानक मेरा ध्यान सामने वाले छत पर गया. ऐसा लगा की कोई छत के किनारे खिड़की को देर से देख रहा है. बाहर चांदनी थी लेकिन इतना साफ़ नज़र नहीं आ रहा था. जब मैं उठकर खिड़की के और पास गया तो देखा की वह शख्स धीरे-धीरे चलते नीचे उतर गया. पायल की झंकार से मैं अंदाज़ा लगाया की यह पूर्णिमा भाभी ही थी. मेरे दिमाग में सवालो के बदल उमड़ने लगे. क्या सोमा की बात सच थी? क्या सच में भाभी को मुझमे दिलचस्पी है? क्या वह मेरा लोहा (लंड) चाहती है? क्या भैया से उसकी बनती नहीं है? बगैरह बगैरह... फिर मैंने सोचा कि ऐसा भी तो हो सकता है की वह ऐसे ही छत पर थी और मुझे देखना सिर्फ एक इत्तेफ़ाक था. खैर मेरा दिल को सेक्स की भूख लगी थी और मैं इसके लिए कुछ भी करना चाहता था लेकिन क्या करूँ? सोमलता को घर में नहीं ला सकता और कहीं बाहर भी नहीं मिल सकता. जिंदगी में आज पहली बार मुझे इतना मजबूर लग रहा था.


खैर जैसे-तैसे रात बीती. सुबह ही मैं बाइक लेकर सोमा के गाँव की तरफ निकल गया. गाँव घुसने के पहले एक छोटा-सा बगीचा आता है. उसके बाहर ही सोमा से मुलाकात हो गयी. शायद वह शहर आ रही थी पार्लर. मुझे देखकर वह घबरा गयी. चारो तरफ देखी कोई भी नहीं था वहां हमारे सिवा. घबराते हुए पूछी – “बाबु, तुम यहाँ क्यों आये? कोई देख ले तो मेरा जीना मुश्किल हो जायेगा. जल्दी से निकल जाओ.”

मैंने उसके पास आकर बाइक से उतरते हुए कहाँ – “कुछ नहीं होगा. तुम्हारा काम कैसा चल रहा है?”

वह धीरे से बोली – “अभी बस काम सीख ही रही हूँ. अब यहाँ से जाओ.” मुझे लगभग धक्के मरते हुए बोली.

मैंने उसका हाथ पकड़कर विनती की – “प्लीज रानी, मैं कल रात से तड़प रहा हूँ. कुछ करो ना.”

वह गुस्से में बोली – “क्या करूँ यहाँ? तुम मुझे यहाँ चोदना चाहते हो? दिमाग ख़राब हो गया है क्या बाबु?”

मैं धीरे से कान में कहा – “सुनो यहाँ बगल में एक पुराना मकान है जो खंडहर हो चूका है. वहां कोई नहीं आता है. एक बार आओ ना.”

वह फिर से नाराज हो बोली – “देखो बाबु, मुझे देर हो रही है. पार्लर जाने में देर हो जाएगी.”

मैंने फिर से विनती की – “सिर्फ 10 मिनट, प्लीज!”

वह मुस्कुराते हुए बोली – “ठीक है.”
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

Post by rajsharma »



मैं जल्दी से बाइक स्टार्ट की और 2 मिनट में खंडहर के पीछे वाले झाड़-जंगल में बाइक को छुपा दिया ताकि किसी हो पता नहीं चले. यह खंडहर काफी सालो पहले आलीशान बंगला था. लगभग 20 से ज्यादा कमरे है, कुछ तो अभी भी अच्छे हालत में है. लेकिन पुराने मकानों का जो हाल होता है वोही इसके साथ हुआ. भुत-प्रेत का भी अफवाह सुना है इसके बारे में. खंडहर के आस-पास झाड़-जंगल उग गए है. मैं एक झाड के पीछे सोमलता का इंतज़ार करने लगा. 5 मिनट के बाद वह आती दिखी. मैं आवाज देकर उसको बुलाया, वह जल्दी से अन्दर आई. मैं उसको पकड़ के एक बड़े से कमरे के अन्दर ले गया जो मैंने पहले ही देख रखा था.

वह अन्दर आकर थोड़ा सहम गई – “बाबु, मैंने तो सुना है कि यह जगह भुतिया है.”

मैंने उसको बाँहों में भरकर कहा – “कुछ नहीं होगा रानी. चलो अब प्यार करते है.” मैंने चूमना-चुसना शुरू किया.

वह भी मुझे कसकर पकड़ ली और मुझे चूमने लगी. उसकी बदन से किसी खुशबूदार साबुन की महक आ रही थी. अचानक वह अलग हो गयी और बोली – “बाबु, मुझे देर हो रही है. अभी जाने दो.”

मैंने लगभग चिल्लाते हुए बोला – “क्या? मैं इतना झमेला करके आया तुमसे मिलने और तुम बोल रही हो जाने दो?”

वह थोड़ा सोचने के बाद बोली – “ठीक है. चलो मैं जल्दी से तुमको ठंडा कर देती हूँ.” यह बोल वह मेरे सामने घुटनों पर बैठ गयी और मेरा पेंट उतारने लगी. जींस को उतारने के बाद जैसे ही मेरा कच्चा नीचे खिसकाई, मेरा लंड उछल के बाहर आ गया. मेरी और मुस्कुरा कर बोली – “बाबु, तुम बड़े औरतबाज हो. शक्ल से तो भोले लगते हो.”

मैंने लंड को उसकी मुँह से सटा कर बोला – “रानी, तेरी जवानी ही ऐसी नशीली है की मैं पागल हो जाता हूँ.”

वह हँसे हुए मुँह खोल मेरे लंड को चुसना शुरू करती है. उसकी मुँह की लार की ठंडक से मेरा लंड सख्त हो जाता है और उसका सुपारा फुल के कुप्पा हो गया. मैं आखें बंद कर उसकी माथे हो आगे-पीछे करने लगा. लंड चूसते समय वह मेरे अन्डो से खेल रही थी. सोमा ने चूसने की गति बढाई तो मेरा दिल तेज धड़कने लगा. 10 मिनट हो चुके थे, और मैं अब भी झड़ने का नाम नहीं ले रहा था. सोमा अब लंड को काटने-दबाने लगी. आखिर मेरा लावा छुट गया. पुरे बदन में तेज हरकत हुई. ऐसा लगा की मेरे पैर उखड जायेंगे. मैं बड़ी मुश्किल से खड़ा रहा. ढेर सारा गरम बिर्य से सोमा का मुँह भर गया, और कुछ उसकी होंठो से बहने लगी. मैं धडाम से नीचे बैठ गया और तेज साँस लेने लगा.

सोमा एक ही घूंट में बिर्य को निगल कर रुमाल से मुँह साफ़ की और बोली – “ठीक है बाबु, मैं चलती हूँ. याद रखना मैं अभी भी प्यासी हूँ. आज रात को यहाँ आये?”

मैंने ख़ुशी से उसको गले लगते हुए कहा – “जरूर रानी. मैं बगीचे में इंतज़ार करूँगा रात के 9 बजे. सारा इन्तेजाम कर लूँगा. चलो मैं तुमको बाइक पर छोड़ हूँ.”

सोमा कपड़े ठीक करते हुए बोली – “नहीं बाबु, कोई देख लेगा. अभी चलती हूँ रात को आती हूँ.” यह कहकर वोह तेज कदमो से चली गयी.

मैं थोड़ी देर बैठा रहा, फिर जींस पहनी और पुरे खंडहर का मुयायना करने लगा. बेसब्री से रात का इंतज़ार रहेगा.
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यह खंडहर किसी ज़माने में आलिशान रहा होगा. जिसमे आज रात हमलोग कामलीला करने वाले है वहां न जाने कितनो बार चुदाई हो चुकी होगी. खण्डहर की पुरी निगरानी करने के बाद मुझे एक जगह पसंद आई. यह तीसरी मंजिल में थी. यह एकदम अन्दर वाला कमरा था, जिसके चारो ओर कमरे बने थे. इसलिए अन्दर की कोई भी हलचल आसानी से बाहर नहीं जानेवाली. ओरो के लिए यह बंगला भुतिया और डरावना हो सकता है लेकिन हमारे लिए यह ताजमहल से कम नहीं. मैं बाहर निकल के चुपके से बाइक निकली और बिना किसी को दिखाई दिए निकल गया. घर जाकर रात के लिए तैयारी शुरू की. एक बैग में एक मोटी चादर, टोर्च, मोमबत्ती, माचिस, चाकू, मच्छर भागनेवाला अगरबत्ती बगैरह डालकर तैयार था. खाना मैं रस्ते में पैक करवाने वाला था. मैं बेसब्री से रात का इन्तेजार करने लगा. दोपहर को गहरी नींद में सोया. शाम को घर में बताया की एक दोस्त के घर जा रहा हूँ कुछ बिज़नस प्लान के बारे में बात करने. रात को उसके घर में रुकुंगा.सोमलता लगभग शाम को 7 बजे पार्लर से निकलती है. मैं भी उसके समय के हिसाब से सब तैयारी की. रेस्तरा से खाना पैक करवाया पानी की बोतले डाली. मैं बाइक से ही निकला, हालाँकि यह सुरक्षित नहीं था. मैं शहर के बाहर के चौराहे पर सोमा की रह देखने लगा. मेरा दिल जोर-जोर से उछाले मर रहा था.

वैसे स्कूल के दिनों में मैं अपने दोस्तों के साथ इस तरह के भूतिया जगहों पर रोमांच के लिए राते गुजारी है लेकिन उसमे रोमांच था और इसमें रोमांस और सेक्स है. थोड़ी देर इंतज़ार करने के बाद सोमलता आते दिखी. उसने दूर से ही मुझे सड़क के किनारे खड़े देख ली लेकिन कोई हरकत नहीं की. शाम के वक़्त चौराहे पर काफी भीड़ थी. वह बिना किसी तवज्जो के मेरे बगल से निकल गयी. उसके जाने के बाद मैंने बाइक स्टार्ट की और उलटी दिशा में निकल गया. आगे से एक गली निकलती है जो खंडहर वाले बंगले के कुछ पहले निकलती है. मैं पहले बंगले पर पहुँच गया और बाइक को बंगले के भीतर छुपा दिया. बाहर से सोमलता का इन्तेजार करने लगा. शाम घनी और अँधेरी हो गयी थी.

सोमा 15 मिनट में आई. मैंने झड़ी के पीछे से उसको अन्दर खिंच लिया.

वह सकपका गयी. मेरे कान में फुसफुसाते हुए बोली – “क्या करते हो बाबु? मेरी जान निकल दी तुमने!” .
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

Post by rajsharma »



मैं उसकी बांह पकड़ कर तेजी से अन्दर ले गया. “जल्दी चलो, नहीं तो कोई देख लेगा.”

जाहिर सी बात है की वह थोड़ा डरी हुई थी. थोड़ी देर में हमलोग अपने घोंसले में आ गए. मैंने चादर बिछाई, एक मोमबत्ती जलाई. वह चारो तरफ घुमती हुई बोली – “वाह बाबु, इन्तेजाम तो बढ़िया किया है. आज की रात मैं याद रखूंगी.”

मै उसकी पतली कमर को कसकर पकड़ते हुए बोला – “मेरी रानी, आज मेरा लंड और तेरी चूत रात भर सुहागरात मनाएंगे.” कहकर मैंने उसकी होंठ पर होंठ लगा दिया. उसने भी होंठो को खोलकर मेरी पहल का जवाब दिया. हमलोग एक-दुसरे की जीभ का स्वाद ले रहे थे और हमारे लार आपस में घुलकर एक नया स्वाद बना रहे थे. चुम्मा करते-करते हमलोग चादर में बैठ गए और एक-दुसरे की जिस्म को टटोलने लगे.

सोमा शायद कुछ ज्यादा ही चुदासी हो रही थी. चुमते-चूसते वह मेरी शर्ट की निकलने की कोशिश कर रही थी. मैंने खुद उसकी मदद करते हुए अपनी शर्ट-बनियान को निकल दी और पेंट भी उतार दी. मेरा लंड पहलवान मेरी जॉकी की अंडरवियर को फाड़ने को था. हमलोग 20 मिनट से एक-दुसरे का रस चूस रहे थे. सोमा एक हाथ से मेरे माथे को पकड़कर मुझे चूम रही थी और दुसरे हाथ से मेरे लंड को सहला रही थी. अचानक वह रुक गयी. उसकी आखों में वासना तैर रही थी. मेरा लंड अब भी उसकी हाथ की पकड़ में था. वह धीरे से बोली – “बाबु, याद है, तुम्हारा उधार बाकी है.”

अब मुझे सुबह की बात याद आई. उसने मेरा लंड चूसा था, अब मुझे भी उसकी चूत चूसकर उसे झड़ाना होगा.



वह खड़े होकर ऑंखें मटकाते हुए बोली – “तुम्हे कुछ दिखाना है.”

मैं सवालिया नजरो से उसको देखा, वह मंद-मंद मुस्कुराते हुए अपनी साड़ी पेटीकोट समेत कमर से ऊपर तक उठा दी.

“ओ साली!!” मेरा मुँह पूरा का पूरा खुला रह गया.

सोमा ने अपनी चूत को बड़ी अच्छे से सफाई की हुई थी, जो मोमबत्ती की रौशनी में चमक रही थी. इतनी चिकनी चूत मैंने पहले कहीं नहीं देखी थी. मेरे मुँह से तो लार निकल रही थी. साली, ऐसी चूत अगर चाटने को मिले तो मैं दिनभर चूत में मुँह लगाकर पड़ा रहूँ! यह जरूर पार्लर का काम है.

सोमा कमर मटकाते हुए मेरे करीब आई और कमर को मेरे मुँह से सटा दी. फिर फरमान वाली आवाज में बोली – “चलो, अब अपना उधार चुकाओ. खास तुम्हारे लिए आज पार्लर में मैं सफाई कराइ है अपनी मुनिया की.”

मैंने कमर को पकड़ कर चूत की होंठो को चूम लिया. चूत से अभी भी क्रीम की मीठी महक आ रही थी. मैंने उसको चादर पर लेटाया और उसकी साड़ी,पेटीकोट को ऊपर उठाकर उसकी चूत के दरार को ऊँगली से मसलने लगा. वह हल्की-हल्की सिसकारी ले रही थी. अब मैंने ढेर सारा थूक ले उसकी चूत में ऊँगली करने लगा.

सोमा सिसकारी लेते हुए धीरे से बोली – “बाबु, इसको चुसो ना. आज चूस-चूसकर इसकी पानी निकल दो. मेरा कर दो... आहा...आआह्हह्हह...आआह...”

मैंने फ़ौरन जीभ से चाटना शुरू किया. सोमा तो सातवे असमान पर थी, जैसे सुबह से ही इसका इंतज़ार कर रही हो. मैं पहले चूत के आस-पास को चाटना शुरू किया, फिर चूत की फटी दरार को चाटना शुरू किया. मेरा खुरदुरा जीभ कमाल कर रही थी, जिसका अंदाज़ा सोमा की सिसकारी से चल रहा था, जो अब तेज हो रही थी. तेज सिसकारी के साथ उसका पूरा शरीर बरि तरह से कांप रहा था. इधर मेरा भी बुरा हाल था. मेरा लोहे जैसा लंड खम्भा जैसा खड़ा था और काफी तकलीफ दे रहा था. सोम आँख बंद लिए सिसकारी मर रही थी. मज़बूरी में मुझे एक हाथ से अपने लंड को झटके देना पड़ा. मैं सोमा की चूत को जीभ से चोद भी रहा था और खुद मुठ भी मार रहा था. उसकी चूत आब गीली हो रही थी. उसकी सिसकी धीमी हो रही थी लेकिन शरीर तेजी से झटके दे रहा था. मैंने जीभ को और अन्दर डालकर ज्यादा लार से चुसना चालू किया. कमरे में सोमा की सिसकारी और चुसाई की सुडुप-सुडुप की आवाज भर रही थी. अचानक सोमा जोर से चीखी – “आःह्ह्ह.....माई रीईई....मेरा हो गयाआआ...बाबुऊऊउ.........” उसकी चूत ने रस का बांध खोल दिया और मेरा मुँह उसकी प्रेमरस से भर गया. अजीब नमकीन सा स्वाद था उसकी चूत का पानी का. सोमा का बदन झटके मर शांत हो गया. वह आँखें बंद कर ‘उम्म्मम्म.....उम्म्मम्म’ कर रही थी लेकिन मेरा अभी भी नहीं हुआ था. मैं उसकी टांगो के बीच घुटनों के बल बैठकर जोर जोर से मुठ मरने लगा. मेरा लंड भी कुछ झटको के बाद छुट गया. तेज पिचकारी के साथ लंड का माल सोमा की चूत में जा गिरा. मैं भी धड़ाम से सोमा के बगल में जा गिरा. हमदोनो चुपचाप आँखें बंद कर लेटे रहे. प्यास से गला सुख रहा था
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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

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Re: ओह माय फ़किंग गॉड

Post by rajababu »

Bahut hi shandaar or jabardast update bhai.
Bahut khoob superb
Waiting for the next update
(^^^-1$i7)
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