ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

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rajsharma
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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

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शीतल कुछ नही बोली। सुषमा ने बारी-बारी ऑफिस के सभी लोगों को फोन किया लेकिन कोई भी पैसा देने को तैयार नही हुआ,अन्त में सुषमा ने अनुज सर को फोन किया , वो पैसा देने को तैयार हो गये पर वो पहले शीतल से बात करना चाहते थे।

अनुज सर शीतल के सीनियर थे। वो शीतल को बहुत बुरी नज़र से देखते थे,ये बात शीतल भी जानती थी पर आज उसके सामने मजबूरी थी उनसे मदद लेने की।

“शीतल तुम अपने कपड़े बदल लो,”सुषमा ने कहा।

शीतल ने कपड़े बदले और सुषमा के साथ अनुज सर से मिलने के लिए उनके घर गयी। उनके घर पर उनकी एक बेटी और बेटा था। बेटा छोटा था,बेटी शीतल की ही उम्र की थी। उन्होंने शीतल को रुपये दे दिए और शर्त रखी की अगर 1 साल में पूरे रुपये नही चुकाये तो उसे उनसे शादी करनी पड़ेगी। शीतल ने शर्त मान ली और रुपये लेकर हॉस्पिटल की ओर चल दी।

“तुमने ये शर्त क्यों मानी,शीतल?” सुषमा ने पूछा।

और कोई रास्ता भी तो नही था,”शीतल ने कहा।

“लेकिन तुम इतने रुपये 1 साल में कैसे चुकाओगी। इससे तो अच्छा था की तुम राज के घर वालों की बात मान लेती। इस तरह अपना सौदा ना करती,” सुषमा ने कहा।

“मैंने राज से वादा किया था कि मैं उसका साथ कभी नही छोड़ूँगी,” शीतल ने कहा।

“और जब तुम पैसे नही चुका पओगी , तब क्या होगा?राज भी तुम्हारा साथ छोड़ देगा,जब उसे इस बारे में पता चलेगा,” सुषमा ने कहा।

“मुझे नही चुकाना है,पैसा राज चुकाएगा,” शीतल ने कहा।

“कैसे?उसकी हालत देखी है उसे ठीक होने में 6-7 महीने लग जाएँगे,” सुषमा ने कहा।

“मुझे नही मालूम,कैसे?लेकिन पैसा राज चुका देगा,”शीतल ने कहा।

“तुम क्यों इस रिश्ते को बचाना चाहती हो जब तुम दोनो एक-दूसरे से प्यार ही नही करते हो,हर दिन तो तुम दोनों में लड़ाई होती है। तुम्हारे लिए अच्छा होगा की तुम राज के घर वालों की बात मान लो,”सुषमा ने कहा।

“राज मुझसे नही लड़ता, मैं ज़िद करती हूँ , मैं लड़ती हूँ। मैं उनका साथ नही छोड़ सकती चाहे मुझे कितने भी दुख सहने पड़े,” शीतल ने कहा।

सुषमा कुछ नही बोली। थोड़ी देर में हॉस्पिटल आ गया। शीतल ने फीस जमा की और वहीं बेंच पर बैठ गयी। उसके सिर में बहुत तेज दर्द हो रहा था।

“आप ये इंजेक्शन और दवाइयाँ लेते आइए,” नर्स ने शीतल से कहा।

शीतल ने नर्स से पर्चा लिया और मेडिकल स्टोर चली गयी। वो ठीक से खड़ी भी नही हो पा रही थी फिर भी किसी तरह उसने दवाइयाँ ली और आकर नर्स को दी। अचानक उसे चक्कर आ गया और वो बेहोश होकर गिर गयी। रात को भीगने की वजह से उसकी तबियत खराब हो गयी थी। जब उसे होश आया तो वो भी हॉस्पिटल के एक बेड पर लेटी हुई थी। उसके बगल में सुषमा बैठी थी।

“शीतल,ये कुछ फल खा लो उसके बाद ये दवाइयाँ,” सुषमा ने उसे फल पकड़ाते हुए कहा।

“मैंने तुम्हारी छुट्टी के लिए अप्लिकेशन लगा दी है,” सुषमा ने फिर कहा।

थोड़ी देर रुकने के बाद सुषमा वहाँ से चली गयी। राज का एक्सिडेंट शीतल की जिंदगी में बहुत बड़ा बदलाव लाया। शीतल रात भर राज के पास बैठी रहती और सुबह ऑफिस जाती उसे इस बात का ध्यान ही नही रहता था की उसने सुबह से कुछ खाया है या नही,सुषमा के कहने पर थोड़ा बहुत खा लेती थी। एक तरफ राज की हालत में सुधार आ रहा था तो दूसरी ओर शीतल की तबियत खराब होती जा रही थी। उसने अपने उपर ध्यान देना छोड़ दिया था , उसे सिर्फ़ राज की ही चिंता थी। राज का एक्सिडेंट हुए 1 महीना हो गया था। इस एक महीने में शीतल ने बहुत कुछ सहा था। एक महीने में उसने खुद को बहुत ज़्यादा बदला,कभी छोटी-छोटी बात पर ज़िद करने वाली शीतल बहुत गंभीर हो गयी थी,रात को घर पर अकेले रहने से डर लगता था लेकिन अब वो रात को अकेले कहीं जाने से भी नही डरती थी। उसका बचपना कहीं खो गया था राज के एक्सिडेंट ने उसे बहुत बड़ा बना दिया था।

शीतल कई-कई दिन घर नही जाती थी। हॉस्पिटल से ऑफिस और ओफिसे से हॉस्पिटल यही उसकी दिनचर्या हो गयी थी। सुबह से उसका सिर बहुत तेज दर्द हो रहा था और उसे उल्टियाँ भी आ रही थी , इस वजह से वो ऑफिस नही गयी। शीतल ऑफिस नही गयी थी इसलिए सुषमा उससे मिलने हॉस्पिटल आ गयी।

“राज की हालत कैसी है?”सुषमा ने पूछा।

“ठीक है।”

“और तुम्हारी?” सुषमा ने फिर पूछा।

शीतल कुछ नही बोली।

“तुमने सुबह से कुछ खाया या नही।”

शीतल फिर कुछ नही बोली।

“शीतल,तुम अपनी हालत देख रही हो,मुझे तो लगता है की कहीं तुम ही ना मर जाओ……।”
“तुम अपना थोड़ा तो ख्याल रखो,कितनी सुंदर दिखती थी तुम और अब देखो अपने को……। आज तुम इतनी कमजोर हो गयी हो की ठीक से खड़ी भी नही हो पा रही हो,”सुषमा ने कहा।

“तो मैं क्या करूँ?मुझसे सब कुछ नही संभाला जाता,मैंने आज तक अकेले कुछ नही किया है और आज मुझे सब कुछ अकेले ही करना पड़ रहा है। मुझे किसी का सहारा चाहिए मैं अपना दर्द तो किसी से बाँट सकूँ। पहले राज तो था साथ में, अब कोई नही है,”शीतल ने कहा।

“तुम अपने घर क्यों नही चली जाती। हो सकता है कि उन्होनें तुम्हे माफ़ कर दिया हो,” सुषमा ने कहा।

“जब राज के घरवाले राज की इस हालत में भी उसका साथ नही दे रहे तो क्या मेरे मम्मी-पापा देंगे?मेरी किस्मत में सिर्फ़ रोना ही लिखा है। जब घर नही छोड़ा था तब भी रोयी,घर छोड़ने के बाद भी रोयी,राज के साथ भी रोयी और आज जब राज इस हालत में हैं तब भी रो रही हूँ,” शीतल ने कहा।

“ज़रूरी नही की सबकी सोच एक जैसी हो,हो सकता है की तुम्हारे घरवाले तुम्हारा साथ दें एक बार घर जा कर तो देखो,” सुषमा ने कहा।

“गयी थी एक बार जब मेरी जॉब लगी थी,घर पर प्रिया(शीतल की छोटी बहन) थी मैं उससे कुछ कहती उससे पहले वो मुझसे बोली-‘दीदी,आप यहाँ क्यों आई हो,मम्मी ने देख लिया तो वो मुझे बहुत डाटेंगी। मम्मी आपसे बहुत नफ़रत करती हैं , उन्होंने हमसे भी कहा है कि अगर हम आप से कभी मिले तो मुझसे भी रिश्ता तोड़ देंगी,उनके लिए आप मर चुकी हो………।‘ वो और कुछ कहती उससे पहले ही मैं बिना कुछ कहे लौट आयी,”शीतल ने कहा।
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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Post by rajsharma »

“तुमने कुछ भी ग़लत नही किया शीतल,वो तुम्हारी शादी 31साल के आदमी से करा रहे थे,ऐसे में तुम क्या करती,तुमने किसी के प्यार में पड़ कर,उनका दिल दुखा कर घर नही छोड़ा था बल्कि तुम्हारा दिल दुखा था,” सुषमा ने कहा।

“आज का मालूम नही लेकिन मेरी माँ मुझसे बहुत प्यार करती थी। वो मेरी शादी उससे कभी नही करती वो तो सिर्फ़ मुझे देखने आए थे और मम्मी ने जो कुछ भी कहा था उस समय गुस्से में कहा था मैं ही ज़िद कर बैठी थी,” शीतल ने कहा।

कुछ देर दोनों कुछ नही बोले। शीतल , सुषमा का सहारा लेकर खड़ी हुई और बोली-“मुझे मेरे घर छोड़ दो,सह लूँगी मम्मी की डाँट आख़िर कितनी देर गुस्सा रहेंगी। ”
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5.

सुषमा ने उसे अपनी स्कूटी से उसे उसके घर रात के 9 बजे तक छोड़ दिया और खुद वहाँ से तुरंत चली गयी। शीतल दरवाजा खट खटाने जा रही थी की अचानक एकदम से रुक गयी,घर के अंदर से उसकी मम्मी की आवाज़ आ रही थी। वो क्या कह रही थी ये साफ-साफ नही सुनायी पड़ रहा था। शीतल कुछ सोच कर वापस लौटने लगी। उसने दरवाजा नही खटखटाया,शीतल ठीक से चल भी नही पा रही थी,वो लड़खड़ाते हुए कदमों से चल रही थी। घर से कुछ दूर सड़क पर एक किनारे बैठ गयी और किसी गाड़ी का वहाँ से निकलने का इंतज़ार करने लगी। वो एक घंटे तक इंतज़ार करती रही पर वहाँ से कोई नही निकला । वो जहाँ थी वहाँ से रात के समय कोई नही निकलता था। उसका सिर दर्द से फटा जा रहा था,दर्द और थकान के कारण उसे कब नींद आ गयी उसे पता भी नही चला।


सुबह जब उसकी नींद खुली तो उसने खुद को बेड पर पाया। उसके आस-पास कोई नही था। वो एक कमरे में थी , कमरे से बाहर निकल कर उसने पूरा घर देख डाला पर उसे कोई कहीं नही दिखा । घर का दरवाजा बाहर से बंद था या फिर ताला लगा था। घर बहुत बड़ा और सुंदर था शायद वो किसी के बंगले में थी। वो अभी भी पूरी तरह से ठीक नही थी उसके सिर में अभी भी दर्द हो रहा था। शीतल हॉल में पड़े सोफे पर लेट गयी और किसी के आने का इंतज़ार करने लगी। उसे डर भी लग रहा था की कहीं कुछ बुरा …………कुछ देर बाद वो अचानक से बड़ी ही तेज़ी से खड़ी हुई और अपने-आप को अच्छी तरह से देखने लगी और बहुत ज़्यादा घबरा गयी,उसके कपड़े बदले हुए थे उसने किसी और के कपड़े पहन रखे थे। कहीं किसी ने उसके साथ कुछ किया तो नही या फिर किसी ने…। कोई लड़की थी या फिर कोई लड़का। तरह-तरह की बातें उसके मन में आने लगी वो जितना ज़्यादा सोचती उतना ही ज़्यादा डरने लगती। वो रोने लगी थोड़ी देर रोती रही फिर हॉल से उठकर वापस उसी कमरे में चली गयी और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया।

उस समय 10 बज रहे थे,वो फिर से बेड पर लेट गयी तभी उसकी नज़र वहीं बेड के बगल में रखी मेज पर गयी। उस पर एक पर्चा और कुछ दवाइयाँ रखी थी । उसने पर्चा उठाया और पढ़ने लगी। उसमें लिखा था - “ तुम्हारी तबीयत ठीक नही है इसलिए ये दवाइयाँ खा लेना और भूख लगे तो कुछ खा लेना।” उसे पढ़ कर शीतल में थोड़ी हिम्मत आई । उसे उम्मीद हुई की शायद कोई अच्छा………। उसने कल से कुछ नही खाया था भूख तो लगी ही थी,वो किचन में गयी वहाँ खाना रखा हुआ था, खाना ताज़ा था किसी ने सुबह ही बनाया था। शीतल ने खाना खाया और वापस कमरे में आकर दवाई खाई। वो थोड़ी देर के लिए लेट गयी लेकिन उसे नींद नही आ रही थी वो उठी और छत पर चली गयी। छत से दूर तक का नज़ारा दिखाई दे रहा था। वहाँ आस-पास कोई घर नही था , दूर-दूर तक कोई दिखाई भी नही दे रहा था । शायद वो किसी का फार्म हाउस था। शीतल को फिर से डर लगने लगा , आख़िर उसे कोई यहाँ क्यों लाया?अगर किसी ने उसकी मदद की थी वो उसे हॉस्पिटल या फिर पुलिस स्टेशन क्यों नही ले गया ? इस सूनसान जगह पर क्यों लाया? वो बड़ी देर तक सोचती रही,उसे डर भी था और एक उम्मीद भी की कोई अच्छा व्यक्ति हो तो। वो उसी कमरे में जाकर लेट गयी थोड़ी ही देर में उसे नींद आ गयी और वो सो गयी। शाम को जब वो उठी तब भी कोई नही आया था। उसने फिर से कुछ खाया और हॉल में सोफे पर बैठ गयी,वो इंतज़ार कर रही थी किसी के आने का। करीब 9बजे दरवाजा खुला,कोई लड़का था 25-26 साल का उसके साथ और कोई नही था। शीतल उसे मूर्ति बनी देख रही थी,उसके पूरा शरीर कांप रहा था। वो लड़का अंदर आकर सोफे पर बैठ गया।
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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

Post by rajsharma »

“आप कौन?” शीतल ने पूछा।

“ये मेरा ही घर है,” उस लड़के ने कहा।

शीतल कुछ नही बोली,पूछना तो चाहती थी की आप ही मुझे यहाँ लाए थे लेकिन उससे कुछ भी नही कह पाई,वो उसे चोर निगाहों से देख रही थी। वो लड़का देखने में किसी हीरो से कम नही था।

“तुम्हारा नाम क्या है?” उस लड़के ने पूछा।

“शीतल…………और आपका?”

“जय,आप को कल मैं ही यहाँ लेकर आया था,आप मुझे सड़क के किनारे बेसुध पड़ी मिली थी,बारिश की वजह से आप पूरी तरह से भीगी हुई थीं,” उस लड़के ने कहा।

“पर कल बारिश नही हो रही थी,” शीतल ने कहा।

“हो सकता है आपके बेहोश होने के बाद हुई हो,” जय ने कहा।

शीतल कुछ नही बोली वो असहज महसूस कर रही थी।

“तुम्हारे साथ हुआ क्या था ? तुम वहाँ बेहोश पड़ी थी,देख कर ऐसा तो नही लग रहा था की तुम्हारे साथ कुछ हुआ हो,”जय ने कहा।

“मेरी तबीयत खराब हो गयी थी,”शीतल ने कहा। कुछ रुककर फिर पूछा-“क्या आप मुझे वापस वहीं छोड़ सकते हैं?”

“अभी नही क्योंकि यहाँ से वो जगह लगभग 80किलोमीटर दूर है और यहाँ से शहर भी बहुत दूर है,” जय ने कहा।

“ठीक है………। आप यहाँ अकेले रहते हैं,” शीतल ने पूछा।

“नही,यहाँ कोई नही रहता , कभी-कभी मैं यहाँ आता हूँ। आपको डर लग रहा है क्या?जो आपने ऐसा पूछा,”जय ने कहा।

नही।

“बहुत सुंदर हो तुम,”जय ने शीतल की तारीफ करते हुए कहा।

“मालूम है,और मेरे बारे में सोचने की ज़रूरत नही है मैं शादीशुदा हूँ,” शीतल ने उसी लहजे में कहा।

“दिखती तो बहुत कम उम्र की हो। करती क्या हो?” जय ने पूछा।

“सिर्फ़ 20 की ही हूँ, बी.ए. कर रही हूँ और साथ ही सरकारी जॉब।”

“बहुत अच्छी।”

शीतल कुछ नही बोली।

“तुमने कुछ खाया था या……और अब तुम्हारी तबीयत कैसी है?जय ने पूछा।”

“खाया था और तबीयत भी ठीक है।”

“तुम जाकर सो जाओ रात बहुत हो गयी,” जय ने कहा और खुद वहाँ से उठ कर एक कमरे में चला गया। शीतल भी अपने कमरे में चली गयी और दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। उसे लेटे थोड़ी ही देर हुई थी की जय ने दरवाजा खटखटाया। शीतल ने दरवाजा खोला तो जय तुरन्त कमरे के अंदर आ गया। शीतल को जय की ये हरकत बुरी लगी और थोडा डर भी लगा। जय बेड पर बैठ गया,उसने शीतल को अपने बगल बैठने का इशारा किया। शीतल बैठना तो नही चाहती लेकिन वो जय को मना भी नही कर पाई,वो बेड पर जय से थोड़ी दूरी बना कर बैठ गयी।

“क्या हुआ ? आप यहाँ क्यों आए हैं?” शीतल ने पूछा।

“मैं तुम्हारे लिए कुछ कपड़े लाया हूँ,” जय ने शीतल को कपड़े पकड़ाते हुए कहा।

जय उसके लिए ब्लैक सलवार-सूट और ब्लू जीन्स,रेड टॉप लाया था।

“मैं जीन्स नही पहनती और आपको मेरे लिए ये सब करने की ज़रूरत नही है,” शीतल ने कहा।

“जीन्स क्यों नही पहनती,अच्छी लगोगी,” जय ने कहा।

“मैं ब्लैक सूट में ज़्यादा अच्छी लगती हूँ,आपका लाया हुआ सूट मुझे ज़्यादा पसन्द है पर मैं जीन्स नही पहन सकती,” शीतल ने हँसते हुए कहा।

वो बहुत दिन बाद वो खुल कर हँसी थी । जो कुछ वो राज से चाहती थी वो उसे जय से मिल रहा था।

“एक बार जीन्स पहन कर तो देखो,”जय ने उससे थोड़ा ज़िद करते हुए कहा।

“आप मेरे कौन हो ? जो आपके लिए मैं ………,”शीतल ने कहा।

“कोई बात नही ना , पहनो जीन्स पर मुझे तो इस तरह पराया ना करो,” जय ने शीतल के हाथ पर हाथ रखते हुए कहा।

शीतल हँस दी और अपना हाथ पीछे खींच लिया।
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“तुम्हें तो अब भी बुखार है और तुम कह रही थी तुम ठीक हो,” जय ने कहा।

“बस हल्का-सा ही तो है,” शीतल ने बड़ी ही मासूमियत से बच्चों की तरह कहा।

जय उसके इस तरह से बोलने पर हँस दिया।

“अब तुम सो जाओ,मुझे तो अभी किसी का इंतज़ार करना है,” जय ने कहा और वो कमरे से बाहर हॉल में चला गया।

शीतल राज से 6 महीने में इतना नही खुली थी जितना वो जय से कुछ घंटों में खुल गयी थी। जय ठीक वैसा था जैसा पति वो चाहती थी। उसने सोचा की क्यों ना एक बार जीन्स ट्राई की जाए। वो कपड़े बदलने जा ही रही थी कि उसका ध्यान पहने हुए कपड़ों पर चला गया जो उसके थे ही नही, वो किसी और लड़की के थे। उसका चेहरा फिर से उतर गया क्या जय ने कल रात को उसके कपड़े बदले थे?वो चुपचाप लेट गयी उसकी सारी खुशी एक पल में चली गयी,वो तरह-तरह की बातें सोचने लगी,उसे समाज,राज सभी का डर सताने लगा,कहीं जय ने उसके साथ कुछ………। ऐसे सोचते-सोचते उसे नींद आ गयी और वो सो गयी । वो कमरे का दरवाजा बंद करना भी भूल गयी। आधी रात को उसके हाथों में कुछ चुभने से उसकी नींद खुली पर कमरे में अंधेरा था और नींद में भरे होने के कारण वो ठीक से देख भी नही पायी की कौन था। शायद उसे कोई इंजेक्शन लगा रहा था। वो ठीक से उठ भी नही पायी थी की इंजेक्शन की वजह से वो बेहोश हो गयी या फिर सो गयी।

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