Incest अनैतिक संबंध

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rajsharma
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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अगली सुबह मैं अपने दोस्त से मिलने गया. ये वही दोस्त है जिसके पिताजी यानि तिवारी जी कल रात को आये थे.

जय: और भाई राज ! क्या हाल-चाल? कब आये?

मैं: अरे कल ही आया था. और तू सुना कैसा है?

जय: अरे अपना तो वही है! लुगाई और ठुकाई!

मैं: साले तू नहीं सुधरा! खेर कम से कम तू अपने पिताजी के कारोबार में ही उनका हाथ तो बटाने लगा! अच्छा ये बता यहाँ कहीं माल मिलेगा?

जय: हाँ है ना! बहुत मस्त वाला और वो भी तेरे घर पर ही है!

मैं: क्या बकवास कर रहा है?

जय: अबे सच में! तेरी भाभी.... हाय-हाय क्या मस्त माल है!

मैंने: (उसका कॉलर पकड़ते हुए) हरामी साले चुप करजा वरना यहीं पेल दूँगा तुझे!

जय: अच्छा-अच्छा.......... माफ़ कर दे यार.... सॉरी!

मैं ने उसका कॉलर छोड़ा और जाने लगा तभी उसने आके पीछे से मेरे कंधे पर हाथ रखा और कान पकड़ के माफ़ी माँगने लगा.

जय: भाई तेरी बचपन की आदत अभी तक गई नहीं है! साला अभी भी हर बात को दिल से लगा लेता हे.

मैं: परिवार के नाम पर कोई मजाक बर्दाश्त नहीं है मुझे! और याद रखिओ इस बात को दुबारा नहीं समाझाऊंगा.

जय: अच्छा यार माफ़ कर दे! आगे से कभी ऐसा मजाक नहीं करुंगा. चल तुझे माल पिलाता हूँ!

खेत पर एक छप्पर था जहाँ उसका टूबवेल लगा था. वहीँ पड़ी खाट पर मैं बैठ गया और उसने गांजा जो एक पुटकी में छप्पर में खोंस रखा था उसे निकला और फिर अच्छे से अंगूठे से मला. फिर वही मला हूअा गांजा सिगरेट में भर के सिगरेट मेरी ओर बढ़ा दी. मैंने सिगरेट मुंह पर लगाईं और सुलगाई. पहला कश मारते ही दिमाग सुन्न पड़ने लगा और मैं उसकी चारपाई पर लेट के मधोष होणे लगा. सिगरेट आधी हुई तो उसने मेरे हाथ से सिगरेट ले ली और वो भी फूँकने लगा.

जय: और बता ... कोई लड़की-वड़की पटाई या नही ?

मैं: साले फर्स्ट ईयर में हूँ ...अभी घंटा कोई लड़की नहीं मिली जिसे देख के दिल से आह निकल जाए!

जय: अबे तेरा मन नहीं करता पेलने का? हरामी स्कूल टाइम से देख रहा हूँ साला अभी तक हथ्थी लगाता हे.

मैं: अबे यार किससे बात करूँ.सुन्दर लड़की देख के लगता है की पक्का इसका कोई न कोई बॉयफ्रेंड होगा. फिर खुद ही खुद को रिजेक्ट कर देता हु.

जय: अबे तो शादी कर ले!

मैं: पागल है क्या? शादी कर के खिलाऊँगा क्या बीवी को?

जय: अपना हथियार और क्या?

मैं: हरामी तू नहीं सुधरेगा!!!

जय: अच्छा ये बता ये माल कब फूँकना शुरू किया?

मैं: यार कॉलेज के पहले महीने में ही कुछ दोस्त मिल गए और फिर घर की याद बहुत आती थी. इसे फूँकने के बाद दिमाग सुन्न हो जाता और मैं चैन से सो जाया करता था.

जय: अच्छा ये बता, रंडी पेलेगा?

मैं: पागल हो गया है क्या तू?

जय: अबे फट्टू साले! तेरे बस की कुछ नहीं है!

मैं: हरामी मैं तेरी तरह नहीं की कोई भी लड़की पेल दूँ! प्यार भी कोई चीज होती है?!

जय: ओये चिरांद ये प्यार-व्यार क्या होता है बे? हरामी पता नहीं तुझे तेरी भाभी के बारे में?

मैं: (चौंकते हुए) क्या बोल रहा है तू?

और फिर जय ने मुझे सारी कहानी याद दीलाई. जिसे सुन के सारा नशा काफूर हो गया.खेत में खड़ा वो पेड़ जिसमें दोनों प्रेमियों की अस्थियां हैं जहाँ पिताजी कभी जाने नहीं देते थे वो सब याद आने लगा. ये सब सुन के तो बुरी तरह फट गई और दिल में जितने भी प्यार के कीड़े थे सब के सब मर गए! मैंने फैसला कर लिया की चाहे जो भी हो जाये प्यार-व्यार के चक्कर में नहीं पडूँगा! खेर उस दिन के बाद मेरे मन में प्यार की कोई जगह नहीं रह गई थी. मैंने खुद का ध्यान पढ़ाई और पार्ट-टाइम जॉब में लगा दिया और जो समय बच जाता उसमें मैं डॉली के साथ कुछ खुशियां बाँट लेता.
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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दो साल और निकल गए और मैं थर्ड ईयर में आ गया और डॉली भी दसवीं कक्षा में आ गई. अब इस साल उसके बोर्ड के पेपर थे और उसका सेंटर घर से कुछ दूर था तो अब घर वालों को तो कोई चिंता थी नही. उनकी बला से वो पेपर दे या नहीं पर मैं ये बात जानता था इसलिए जब उसकी डेट-शीट आई तो मैं ने उससे उसके सेंटर के बारे में पूछा. वो बहुत परेशान थी की सेंटर कैसे जाएगी? उसकी एक-दो सहलियां थी पर उनका सेंटर अलग पड़ा था!

मैं: आशु? क्या हुआ परेशान लग रही है?

डॉली : (रोने लगी) चाचू ... मैं....कल पेपर नहीं दे पाऊँगी! सेंटर तक कैसे जाऊँ? घर से अकेले कोई नहीं जाने दे रहा और पापा ने भी मना कर दिया? दादाजी भी यहाँ नहीं हैं!

मैं: (आशु के सर पर प्यार से एक चपत लगाई) अच्छा ?? और तेरे चाचू नहीं हैं यहाँ?

डॉली : चाचू ... पेपर तो सोमवार को है और आप तो रविवार को चले जाओगे?

मैं: पागल ... मैं नहीं जा रहा! जब-जब तेरे पेपर होंगे मैं ठीक एक दिन पहले आ जाऊंगा.

और हुआ भी यही .... मैं पेपर के समय डॉली को सेंटर छोड़ देता और जब तक वो बाहर नहीं आती तब तक वहीँ कहीं घूमते हुए समय पार कर लेता और फिर उसे ले के घर आ जाता. रास्ते में हम उसी के पेपर को चर्चा करते जिससे उसे बहुत ख़ुशी होती. सारे पेपर ख़तम हुए और आप रिजल्ट का इंतजार था. इधर घर वालों ने उसकी शादी के लिए लड़का ढूँढना शुरू कर दिया. जब ये बात डॉली को पता चली तो उसे बहुत बुरा लगा क्योंकि वो हर साल स्कूल में प्रथम आया करती थी. पर घर वाले हैं की उनको जबरदस्ती उसकी शादी की पड़ी थी.

डॉली अब मायूस रहने लगी थी और मुझसे उसकी ये मायूसी नहीं देखि जा रही थी. परन्तु मैं कुछ कर नहीं सकता था. शुक्रवार शाम जब मैं घर पहुँचा तो डॉली मेरे पास पानी ले के आई पर उसके चेहरे पर अब भी गम का साया था. रिजल्ट रविवार सुबह आना था पर घर में किसी को कुछ भी नहीं पड़ी थी. मैंने ताई जी और माँ से डॉली के आगे पढ़ने की बात की तो दोनों ने मुझे बहुत तगड़ी झड़ लगाईं! ''इसकी उम्र में लड़कियों की शादी हो जाती है!" ये कह के उन्होंने बात खत्म कर दी और मैं अपना इतना सा मुंह ले के ऊपर अपने कमरे में आ गया.कुछ देर बाद डॉली मेरे पास आई और बोली; ''चाचू... आप क्यों मेरी वजह से बातें सुन रहे हो? रहने दो... जो किस्मत में लिखा है वो तो मिलके रहेगा ना?"

"किस्मत बनाने से बनती है, उसके आगे यूँ हथियार डालने से कुछ नहीं मिलता." इतना कह के मैं वहाँ से उठा और घर से निकल गया.
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Re: Incest अनैतिक संबंध

Post by rajsharma »

शनिवार सुबह मैं उठा और फिर घूमने के लिए घर से निकल गया.शाम को घर आया और खाना खाके फिर सो गया.रविवार सुबह मैं जल्दी उठा और नाहा-धो के तैयार हो गया.मैंने डॉली को आवाज दी तो वो रसोई से निकली और मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी; "जल्दी से तैयार होजा, तेरा रिजल्ट लेने जाना हे."

पर मेरी इस बात का उस पर कोई असर ही नहीं पड़ा वो सर झुकाये खड़ी रही. इतने में उसकी सौतेली माँ आ गई और बीच में बोल पड़ी; "कहाँ जा रही है? खाना नहीं बनाना?"

"भाभी मैं इसे ले के रिजल्ट लेने जा रहा हूँ!" मैंने उनकी बात का जवाब हलीमी से दिया.

"क्या करोगे देवर जी इसका रिजल्ट ला के? होनी तो इसकी शादी ही है! रिजल्ट हो या न हो क्या फर्क पड़ता है?" भाभी ने तंज कस्ते हुए कहा.

"शादी आज तो नहीं हो रही ना?" मैंने उनके तंज का जवाब देते हुए कहा और डॉली को तैयार होने को कहा. तब तक मैं आंगन में ही बैठा था की वहाँ ताऊ जी, पिताजी, माँ और ताई जी भी आ गए और मुझे तैयार बैठा देख पूछने लगे;

ताऊ जी: आज ही वापस जा रहा है?

मैं: जी नहीं! वो आशु का रिजल्ट आएगा आज वही लेने जा रहा हूँ उसके साथ|

पिताजी: रिजल्ट ले के सीधे घर आ जाना, इधर उधर कहीं मत जाना. पंडितजी को बुलवाया है डॉली की शादी की बात करने के लिए.

मैंने इस बात का कोई जवाब नहीं दिया की तभी डॉली ने ऊपर से सारी बात सुन ली.उसका दिल अब टूट चूका था. मैंने उसे जल्दी आने को कहा और फिर अपनी साईकिल उठाई और उसे पीछे बिठा के पहले उसे मंदिर ले गया और वहाँ उसके पास होने की प्रार्थना की और फिर सीधे बाजार जा के इंटरनेट कैफ़े के बाहर रुक गया.

मैं: रिजल्ट की चिंता मत कर, तू फर्स्ट ही आएगी देख लेना!

डॉली : क्या फायदा! (उसने मायूसी से कहा)

मैं: तेरी शादी कल नहीं हो रही! समझी? थोड़ा सब्र कर भगवान् जरूर मदद करेगा|

पर डॉली बिलकुल हार मान चुकी थी और उसके मन में कोई उम्मीद नहीं थी की कुछ अच्छा भी हो सकता हे. करीब दस बजे रिजल्ट आया और दूकान में भीड़ बढ़ने लगी. मैंने जल्दी से डॉली का रोल नंबर वेबसाइट में डाला और जैसे ही उसका रिजल्ट आया मैं ख़ुशी से उछल पड़ा! उसने ९७% अंक स्कोर किये थे. ये जब मैंने उसे बताया तो वो भी बहुत खुश हुई और मेरे गले लग गई. हम दोनों ख़ुशी-ख़ुशी दूकान से मार्कशीट का प्रिंट-आउट लेके निकले और मैं उसे सबसे पहले मिठाई की दूकान पर ले गया और रस मलाई जो उसे सबसे ज्यादा पसंद थी खीलाई. फिर मैंने घर के लिए भी पैक करवाई और हम फिर घर पहुंचे.

घर पहुँचते ही देखा तो पंडित जी अपनी आसान पर बैठे थे और कुछ पोथी-पत्रा लेके उँगलियों पर कुछ गिन रहे थे. उन्हें देखते ही डॉली के आँसूं छलक आये और जो अभी तक खुश थी वो फिर से मायूस हो के अपने कमरे में घुस गई. मुझे भी पंडित जी को देख के घरवालों पर बहुत गुस्सा आया.कम से कम कुछ देर तो रुक जाते.आशु कुछ दिन तो खुश हो लेती! इधर डॉली के हेडमास्टर साहब भी आ धमके और सब को बधाइयाँ देने लगे पर घर में कोई जानता ही नहीं था की वो बधाई क्यों दे रहे हैं?

"डॉली के ९७% आये हैं!!!" मैंने सर झुकाये कहा.

"सिर्फ यही नहीं भाई साहब बल्कि, डॉली ने पूरे प्रदेश में टॉप किया है! उसके जितने किसी के भी नंबर नहीं हैं!" हेडमास्टर ने गर्व से कहा.

"अरे भाई फिर तो मुँह मीठा होना चाहिए!" लालची पंडित ने होठों पर जीभ फेरते हुए कहा.
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Re: Incest अनैतिक संबंध

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मैंने भाभी को रस मलाई से भरा थैला दीया और सब के लिए परोस के लाने को कहा. इतने में हेड मास्टर साहब बोले; "भाई साहब मानना पड़ेगा.पहले आपके लड़के ने दसवीं में जिले में टॉप किया था और आपकी पोती तो चार कदम आगे निकल गई! वैसे है कहाँ डॉली ?" मैंने डॉली को आवाज दे कर बुलाया और वो अपने आँसुंओं से ख़राब हो चुके चेहरे को पोंछ के नीचे आई और हेडमास्टर साहब के पाँव छुए.उन्होंने उसके सर पर हाथ रख के आशीर्वाद दिया. फिर उसने मुझे छोड़के सभी के पाँव छुए और सब ने सिर्फ उसके सर पर हाथ रख दिया. पर कुछ बोले नही. आज से पहले ऐसा कुछ नहीं हुआ था!

इससे पहले की रस मलाई परोस के आती पंडित बोल पड़ा; "जजमान! एक विकट समस्या है लड़की की कुंडली में!" ये सुनते ही सारे चौंक गए पर डॉली को रत्ती भर भी फर्क नहीं पडा. वो बस हाथ बंधे और सर झुकाये मेरे साथ खड़ी थी. पंडित ने आगे अपनी बात पूरी की; "लड़की की कुंडली में ग्रहों और नक्षत्रों की कुछ असामान्य स्थिति है जिसके कारन इसका विवाह आने वाले पाँच साल तक नामुमकिन है!"

ये सुन के सब के सब सुन्न हो गए.पर डॉली के मुख पर अभी भी कोई भाव नहीं आया था. "परन्तु कोई तो उपाय होगा? कोई व्रत, कोई पूजा पाठ, कोई हवन? कुछ तो उपाय करो पंडित जी?" ताऊ जी बोले.

"नहीं जजमान! कोई उपाय नहीं! जब तक इसके प्रमुख ग्रहों की दशा नहीं बदलती तब तक कुछ नहीं हो सकता? जबरदस्ती की गई तो अनहोनी हो सकती है?" पंडित ने सबको चेतावनी दी!

ये सुन के सब के सब स्तब्ध रह गये. करीब दस मिनट तक सभी चुप रहे! कोई कुछ बोल नहीं रहा था की तभी मैंने चुप्पी तोड़ते हुए कहा; "तो डॉली को आगे पढ़ने देते हैं? अब पाँच साल घर पर रह कर करेगी भी क्या? कम से कम कुछ पढ़ लिख जाएगी तो परिवार का नाम रोशन होगा!"

ये सुनते ही ताई जी बोल पड़ी; "कोई जरुरत नहीं है आगे पढ़ने की? जितना पढ़ना था इसने पढ़ लिया अब चूल्हा-चौका संभाले! पाँच साल बाद ही सही पर जायेगी तो ससुराल ही? वहाँ जा के क्या नाम करेगी?"

इतने में ही हेडमास्टर साहब बोल पड़े; "अरे भाभी जी क्या बात कर रहे हो आप? वो ज़माना गया जब लड़कियों के पढ़े लिखे होने न होने से कोई फर्क नहीं पड़ता था! आजकल तो लड़कियां लड़कों से कई ज्यादा आगे निकल चुकी हैं! शादी के बाद भी कई सास-ससुर अपनी बहु को नौकरी करने देते हैं. जिससे न केवल घर में आमदनी का जरिया बढ़ता है.बल्कि पति-पत्नी घर की जिम्मेदारियाँ मिल के उठाते हे. हर जगह कम से कम ग्रेजुएट लड़की की ज्यादा कदर की जाती है! वो घर के हिसाब-किताब को भी संभालती हे. अगर कल को डॉली के होने वाले पति का कारोबार हुआ तो ये भी उसकी मदद कर सकती है और ऐसे में सारा श्रेय आप लोगों को ही मिलेगा.आपके समधी-समधन आप ही को धन्यवाद करेंगे की आपने बच्ची को इतने प्यार से पढ़ाया लिखाया है!"

''और अगर इतनी पढ़ाई लिखाई के बावजूद इस के पर निकल आये और ये ज्यादा उड़ने लगी तो? या मानलो कल को इसके जितना पढ़ा लिखा लड़का न मिला तो?" ताऊ जी ने अपना सवाल दागा!

"आपको लगता है की आपकी इतनी सुशील बेटी कभी ऐसा कुछ कर सकती है? मैंने इसे आज तक किसी से बात करते हुए नहीं देखा. सर झुका के स्कूल आती है और सर झुका के वापस! ऐसी गुणवान लड़की के लिए वर न मिले ऐसा तो हो ही नहीं सकता" आप देख लेना इसे सबसे अच्छा लड़का मिलेगा!" हेडमास्टर साहब ने छाती ठोंक के कहा.

"पर..." पिताजी कुछ बोलने लगे तो हेडमास्टर साहब बीच में बोल पडे. "भाई साहब मैं आपसे हाथ जोड़ के विनती करता हूँ की आप बच्ची को आगे पढ़ने से न रोकिये! ये बहुत तरक्की करेगी, मुझे पूरा विश्वास है इस पर!"

"ठीक है... हेडमास्टर साहब!" ताऊ जी बोले और भाभी को मीठा लाने को बोले.

ताऊ जी का फैसला अंतिम फैसला था और उसके आगे कोई कुछ नहीं बोला. इतने में भाभी रस मलाई ले आई. पर उनके चेहरे पर बारह बजे हुए थे. सभी ने मिठाई खाई और फिर पंडित जी अपने घर निकल गए और हेड मास्टर साहब अपने घर. साफ़ दिखाई दे रहा था की डॉली के आगे पढ़ने से कोई खुश नहीं था और इधर डॉली फूली नहीं समां रही थी. घर के सारे मर्द चारपाई पर बैठ के कुछ बात कर रहे थे और इधर मैं और डॉली दूसरी चारपाई पर बैठे आगे क्या कोर्स सेलेक्ट करना है उस पर बात कर रहे थे. डॉली साइंस लेना चाहती थी पर मैंने उसे विस्तार से समझाया की साइंस लेना उसके लिए वाजिब नहीं क्योंकि ग्यारहवीं की साइंस के लिए उसे कोचिंग लेना जरुरी हे. अब चूँकि कोचिंग सेंटर घर से घंटा भर दूर है तो कोई भी तुझे लेने या छोड़ने नहीं जायेगा. ऊपर से साइंस लेने के बाद या तो उसे इंजीनियरिंग करनी होगी या डॉक्टरी और दोनों ही सूरतों में घर वाले उसे घर से दूर कोचिंग, प्रेपरेशन और टेस्ट के लिए नहीं जाने देंगे! अब चूँकि एकाउंट्स और इकोनॉमिक्स उसके लिए बिलकुल नए थे तो मैंने उसे विश्वास दिलाया की इन्हें समझने में मैं उसकी पूरी मदद करुंगा.

अब डॉली निश्चिन्त थी और उसके मुख पर हँसी लौट आई थी. वो उठ के अपने कमरे में गई. अगले महीने मेरे पेपर थे तो मैं उन दिनों घर नहीं जा सका और जब पहुँचा तो डॉली के स्कूल खुलने वाले थे. मैं पहले ही उसके लिए कुछ हेल्पबूक्स ले आया था. उन हेल्पबूक्स की मदद से मैंने उसे एकाउंट्स और इकोनॉमिक्स के टिप्स दे दिये. अब मेरे कॉलेज के रिजल्ट का इंतजार था और मैं घर पर ही रहने लगा था. पार्ट टाइम वाली टूशन भी छूट चुकी थी तो मैंने घर पर रह के डॉली को पढ़ना शुरू कर दिया.अब वो एकाउंट्स में बहुत अच्छी हो चुकी थी. जब मेरे रिजल्ट आया तो घरवाले बहुत खुश हुए क्योंकि मैंने कॉलेज में टॉप किया था.
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