नुसरत की नज़रे भी मेरी नज़रों का पीछा करते हुए उस के शोहर पर पड़ी और साथ ही उस के गले से एक हैरत भरी आवाज़ निकली “किय्ाआआआआआआआअ”.
मेरे कुछ बोले बिना ही नुसरत मेरी सारी बात और नज़रो का मतलब पूरी तरह समझ गई थी.
“ ऊएफफफ्फ़,लानत हो तुम पे, इतनी गंदी सोच,लगता है तुम्हारा दिमाग़ चल गया है और तुम पागल हो गई हो रुखसाना” नुसरत ने मेरे हाथ को नफ़रत से एक झटके में छोड़ते हुए कहा.
साथ ही उस ने अपनी बेटी को गुस्से में मेरी गोद से उठा कर अपनी छाती से लगाया और अपने बेटे को उंगली से पकड़ कर बड बड़ाती अपने शोहर की तरफ चल पड़ी.
में उधर ही बैठी नुसरत को जाता देखती रही. मुझे उस के रवैये पर कोई अफ़सोस नही था.
क्यों कि अगर में नुसरत की जगह होती तो शायद मेरा रिक्षन भी इसी तरह का होता.
क्यों कि में खुद भी ये बात अच्छी तरह जानती थी कि वाकई ही मेरा मंसूबा एक पागल पन ही तो था.
आज ना जाने मुझ क्या हुआ था कि अपना घर बचाने की खातिर अपने ही भाई के साथ हम बिस्तरी की सोच मेरे दिमाग़ में ना सिर्फ़ समा गई बल्कि मैने उस का इज़हार अपनी कज़िन और भाभी से भी कर दिया था.
अब क्या हो सकता था. क्यों कि कहते हैं ना कि “कमान से निकला तीर और ज़ुबान से निकली बात फिर वापिस नही होती”
उस के बाद एक हफ्ते तक नुसरत मुझ से खिची खिंची सी रही और उस ने मुझ से कोई बात नही की.
इधर अब में भी अपनी जगह अपनी बात पर अब शर्मिंदगी महसूस कर रही थी. इस लिए मुझ खुद भी नुसरत से बात करने का होसला ना पड़ा और मैने अपने आप को घर के काम काज में मसरूफ़ कर लिया.
एक हफ्ते बाद एक सुबह में बाथरूम में नहाने गई. नहाने के दौरान में अपनी चूत पर हाथ फेरने लगी. मेरी चूत पर हल्के हल्के बाल उगे हुए थे.
वैसे तो में अपनी चूत हर वक़्त सॉफ ही रखती थी. मगर बाल सफ़ा पाउडर ख़तम होने की वजह से में कुछ दिनो से अपनी चूत की सफाई नही कर सकी थी.
थोड़ी देर बाद नहाने से फारिग हो कर अपने कमरे की तरफ जाते हुए जब में रसोई के पास से गुज़री तो देखा कि नुसरत रसोई में चाइ बना रही थी.
नुसरत को रसोई में देख कर मेरे पावं उधर ही रुक गये. जब नुसरत ने मुझे रसोई के दरवाज़े के सामने खड़े देखा तो मुझे देखते ही एक मुस्कुराहट सी उस के होंठों पर फैल गई.
मुझे आज काफ़ी दिनो बाद उसे इस तरह मुस्कुराता देख कर एक सकून सा महसूस हुआ और में भी उस की तरफ देखते हुए मुस्कुराइ.
फिर देखते ही देखते नुसरत अचानक रसोई से बाहर निकली और मेरे पास आ कर मुझ गले से लगा कर रोने लगी.
मुझे नुसरत के इस तरह रोने पर हैरानी हुई और मैने पूछा “नुसरत क्या बात है तुम रो क्यों रही हो”.
“रुखसाना भाई गुल नवाज़ आख़िर कार अम्मी के आगे हार मानते हुए तुम को तलाक़ देने पर राज़ी हो ही गया है” नुसरत ने रोते हुए मुझ बताया.
नुसरत की बात सुन कर मेरा तो दिल ही जैसे टूट गया और मेरी भी आँखों से बे इकतियार आँसू जारी हो गये.
आख़िर कार वो लमहा करीब आन ही पहुँचा था जिस का मुझ हर वक़्त डर लगा रहता था. अब जल्द ही मुझ पर एक तलाक़ याफ़्ता होने का लेबल लगने ही वाला था.
“नुसरत में बांझ नही हूँ और अगर बच्चा नही हो रहा तो इस में मेरा क्या कसूर है” मैने रोते हुए कहा.
“मुझ पता है कि तुम बीमार नही हो रुखसाना और मैने अपनी अम्मी को इस बात से रोकने की पूरी कॉसिश की है. मगर उन की तो एक ही ज़िद है कि उन को हर सूरत पोता या पोती चाहिए” नुसरत ने मुझ अपने आप से अलग किया और मेरी तरफ देखते हुए बोली.
में उस की बात का क्या जवाब देती इस लिए खामोश खड़ी हसरत भरी नज़रो से नुसरत की तरफ देखती रही.
“तुम को पता है कि तुम्हारे और मेरे अम्मी अब्बू सब कल सुबह मुल्तान में एक मज़ार पर तिजारत करने जा रहे हैं. और अम्मी ने कहा है कि उन के मज़ार पर तिजारत के एक साल में रुखसाणा को बच्चा ना हुआ तो फिर वो तुम को फारिग करवा दें गीं” नुसरत दुबारा बोली.
उस की बातें सुन कर मेरी आँखों से आँसू तो पहले ही जारी थे अब उस की अम्मे का ये फ़ैसला सुन कर में मजीद रंजीदा हो गई और फूट फूट कर रो पड़ी.
मुझ इस तरह रोता देख कर नुसरत ने मुझे दुबारा गले से लगाया और मुझ झूठी तसल्लियाँ देने लगी.
कुछ देर के बाद मेरी हालत थोड़ी संभली और हम दोनो साथ साथ बैठ कर इधर उधर की बातें करने लगी और फिर इस तरह दिन गुज़र गया.
रात को में अपने बिस्तर पर ओन्धे मुँह लेटी हुई थी कि गुल नवाज़ पीछे से आ कर मेरे उपर लेट गया और अपना मुँह आगे की तरफ कर के मेरे गाल को चूसने लगा. उसकी सांसो से शराब की स्मेल आ रही थी.
गुल नवाज़ ने पहले तो मुझे घोड़ी की तरह बन जाने को कहा. ज्यूँ ही में घोड़ी बनी उस ने अपने हाथ से मेरा नाडा ढीला कर के मेरी शलवार मेरे चुतड़ों से हल्की सी सरकाई.
मेरी चड्ढी में फँसी मेरी गान्ड को देखते ही मेरे शोहर के जिस्म में मस्ती छाने लगी और उस ने जल्दी से एक एक कर के मेरे सारे कपड़े उतार दिए.
मुझे घोड़ी बना कर चोदना मेरे शोहर गुल नवाज़ का बहुत का पसेन्दीदा स्टाइल था. वो जब भी मुझ चोदता हमेशा चुदाई का स्टार्ट इस तरीके से करता.
मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है complete
- rajsharma
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
सुपर्ब राज भाई ये दोनो ही कहानियाँ मस्त शुरू हुई है
- Ankit
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
superb update Raj bhai
- rajsharma
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
धन्यवाद दोस्तो
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Re: मुहब्बत और जंग में सब जायज़ है
मैने एक दफ़ा अपने शोहर से इस की वजह पूछी.तो उस का जवाब था कि इस तरीके में मेरी चौड़ी गान्ड मजीद चौड़ी हो जाती है. जिस को देख कर उस के लंड में और ज़्यादा तर आ जाती है और वो मजीद मस्त हो कर चुदाई का मज़ा लेता है.
गुल नवाज़ के कहने के मुताबिक मैने अपनी गान्ड को उपर किया और घोड़ी बन गई. गुल नवाज़ ने मेरी कमर पकड़ कर अपना मोटा लंड पीछे से मेरी चूत में डाल दिया.
में अब अपनी गान्ड को पीछे पुश कर कर के ताल से ताल मिलाने लगी.
और फिर कुछ देर की चुदाई के बाद उस ने अपना पानी मेरी चूत में छोड़ दिया.
इस मोके पर मुझ एक लतीफ़ा याद आ गया है कि,
एक आदमी की शादी के कुछ महीने बाद उस की बीवी का पेट थोड़ा बाहर गया तो वो समझा कि बीवी प्रेग्नेंट है.वो अपनी बीवी को डॉक्टर के पास चेक अप के लिए लिए गया.
चेक अप के बाद डॉक्टर बोला: कुछ नही बस हवा ही है,
दूसरे साल और फिर तीसरे साल भी जब डॉक्टर ने चेक अप के बाद कहा कि “कुछ नही बस हवा ही है”
वो आदमी गुस्से में आया और डॉक्टर के सामने अपना लंड निकालते हुए बोला: ”डॉक्टर साब ज़रा चेक तो करिए ये मेरा लंड है या पंप जो हर वक़्त हवा ही मारता है”
दूसरे दिन सब मेरी अम्मी अब्बू और मेरे सास सुसर मुल्तान वाले मज़ार पर तिजारत करने के लिए घर से चले गये.
मेरा शोहर गुल नवाज़ और मेरा भाई सुल्तान दोनो उन सब को करीबी शहर के बस स्टेशन तक छोड़ने उन के साथ निकल गये.अब घर में नुसरत उस के बच्चे और में ही रह गये.
में उस दिन बहुत उदास थी. क्यों कि मुझ पता था कि मेरी सास की मज़ार से वापिसी पर मेरा घर उजड़ने का काउंट डाउन शुरू हो जाएगा.
ये ही बात सोच सोच कर मेरा दिल डूबा जा रहा था. मगर मेरे अपने इकतियार में तो कुछ भी नही था.
इस लिए मैने ना चाहते हुए भी अपने आप को घर के काम काज में मसरूफ़ कर लिए और मुझ पता ही ना चला कि दिन गुजर गया.
शाम का अंधेरा फैलने लगा मगर मेरा भाई और शोहर अभी तक वापिस नही लोटे थे.
वो दोनो जाते वक़्त हम को बता कर गये थे कि उन को शहर में कुछ काम हैं. जिस की वजह से वो रात को शायद देर से घर वापिस आएँगे.
शाम की रोटी पका और खा कर मेने और नुसरत ने अपने अपने शोहर के लिए उन की रोटी को और सालन को डोंगे में डाल कर रसोई में रख दिया कि अगर वो हमेशा की तरह रात देर से लोटे तो खुद ही अपना खाना रसोई में खा लेंगे.
रात के तकरीबन 10 बजे जब सब कामों से फारिग हो कर में अपने कमरे में जाने लगी तो मैने नुसरत को अपने बच्चों को उन के दादा दादी के कमरे में सुला कर अपने कमरे में दाखिल होते देखा तो मैने उसे आवाज़ दी.
नुसरत मेरे पुकारने पर अपने कमरे के दरवाज़े से मूड कर मेरे पास चली आई.
में: मैने तुम से एक बात करनी है नुसरत.
नुसरत: हां कहो.
में: मैने तुम से उस दिन जो बात डेरे पर की थी इस के बारे में तुम ने क्या सोचा है?.
नुसरत: रुखसाना इस बारे में सोचना क्या है. मेरा उस वक़्त भी जवाब “ना” में था और आज भी जवाब “ना” ही है.
“वैसे एक बात में तुम से पूछना चाहती हूँ कि तुम ने इस काम के लिए अपने ही भाई का क्यों और कैसी सोच लिया. अगर तुम कोई ऐसा वैसा काम करनी पर तूल ही गई हो तो फिर अपने ही भाई के साथ ये “गुनाह” करने की बजाय कोई बाहर का मर्द क्यों नही?” नुसरत ने मुझ से सवाल किया.
में: नुसरत तुम को पता है कि गुनाह तो गुनाह (अडल्टरी) है. चाहे बाहर के किसी मर्द से क्या जाय या फिर घर के किसी मर्द से दोनो का गुनाह का एक ही जैसा होता है. मगर बात ये है कि बाहर के मर्द के साथ ये काम करने में बदनामी का डर हर वक़्त होता है. जब कि सुल्तान के साथ शायद ये मामला ना हो.
“वो कैसे? नुसरत ने मेरी इस मुन्ता क पर हैरान होते हुए सवाल किया.
“वो ऐसे नुसरत कि तुम को पता है कि मेरा और तुम्हारा भाई दोनो ही रात को घर पी कर आते हैं. नशे की ऐसी हालत में उन को कोई होश नही होता कि वो किधर हैं और क्या कर रहे हैं. और उस हालत में तुम्हारे और मेरे भाई दोनो को एक “सुराख” ही चाहिए होता है. जिस में वो अपना लंड डाल कर अपना पानी निकाल सकैं.
गुल नवाज़ के कहने के मुताबिक मैने अपनी गान्ड को उपर किया और घोड़ी बन गई. गुल नवाज़ ने मेरी कमर पकड़ कर अपना मोटा लंड पीछे से मेरी चूत में डाल दिया.
में अब अपनी गान्ड को पीछे पुश कर कर के ताल से ताल मिलाने लगी.
और फिर कुछ देर की चुदाई के बाद उस ने अपना पानी मेरी चूत में छोड़ दिया.
इस मोके पर मुझ एक लतीफ़ा याद आ गया है कि,
एक आदमी की शादी के कुछ महीने बाद उस की बीवी का पेट थोड़ा बाहर गया तो वो समझा कि बीवी प्रेग्नेंट है.वो अपनी बीवी को डॉक्टर के पास चेक अप के लिए लिए गया.
चेक अप के बाद डॉक्टर बोला: कुछ नही बस हवा ही है,
दूसरे साल और फिर तीसरे साल भी जब डॉक्टर ने चेक अप के बाद कहा कि “कुछ नही बस हवा ही है”
वो आदमी गुस्से में आया और डॉक्टर के सामने अपना लंड निकालते हुए बोला: ”डॉक्टर साब ज़रा चेक तो करिए ये मेरा लंड है या पंप जो हर वक़्त हवा ही मारता है”
दूसरे दिन सब मेरी अम्मी अब्बू और मेरे सास सुसर मुल्तान वाले मज़ार पर तिजारत करने के लिए घर से चले गये.
मेरा शोहर गुल नवाज़ और मेरा भाई सुल्तान दोनो उन सब को करीबी शहर के बस स्टेशन तक छोड़ने उन के साथ निकल गये.अब घर में नुसरत उस के बच्चे और में ही रह गये.
में उस दिन बहुत उदास थी. क्यों कि मुझ पता था कि मेरी सास की मज़ार से वापिसी पर मेरा घर उजड़ने का काउंट डाउन शुरू हो जाएगा.
ये ही बात सोच सोच कर मेरा दिल डूबा जा रहा था. मगर मेरे अपने इकतियार में तो कुछ भी नही था.
इस लिए मैने ना चाहते हुए भी अपने आप को घर के काम काज में मसरूफ़ कर लिए और मुझ पता ही ना चला कि दिन गुजर गया.
शाम का अंधेरा फैलने लगा मगर मेरा भाई और शोहर अभी तक वापिस नही लोटे थे.
वो दोनो जाते वक़्त हम को बता कर गये थे कि उन को शहर में कुछ काम हैं. जिस की वजह से वो रात को शायद देर से घर वापिस आएँगे.
शाम की रोटी पका और खा कर मेने और नुसरत ने अपने अपने शोहर के लिए उन की रोटी को और सालन को डोंगे में डाल कर रसोई में रख दिया कि अगर वो हमेशा की तरह रात देर से लोटे तो खुद ही अपना खाना रसोई में खा लेंगे.
रात के तकरीबन 10 बजे जब सब कामों से फारिग हो कर में अपने कमरे में जाने लगी तो मैने नुसरत को अपने बच्चों को उन के दादा दादी के कमरे में सुला कर अपने कमरे में दाखिल होते देखा तो मैने उसे आवाज़ दी.
नुसरत मेरे पुकारने पर अपने कमरे के दरवाज़े से मूड कर मेरे पास चली आई.
में: मैने तुम से एक बात करनी है नुसरत.
नुसरत: हां कहो.
में: मैने तुम से उस दिन जो बात डेरे पर की थी इस के बारे में तुम ने क्या सोचा है?.
नुसरत: रुखसाना इस बारे में सोचना क्या है. मेरा उस वक़्त भी जवाब “ना” में था और आज भी जवाब “ना” ही है.
“वैसे एक बात में तुम से पूछना चाहती हूँ कि तुम ने इस काम के लिए अपने ही भाई का क्यों और कैसी सोच लिया. अगर तुम कोई ऐसा वैसा काम करनी पर तूल ही गई हो तो फिर अपने ही भाई के साथ ये “गुनाह” करने की बजाय कोई बाहर का मर्द क्यों नही?” नुसरत ने मुझ से सवाल किया.
में: नुसरत तुम को पता है कि गुनाह तो गुनाह (अडल्टरी) है. चाहे बाहर के किसी मर्द से क्या जाय या फिर घर के किसी मर्द से दोनो का गुनाह का एक ही जैसा होता है. मगर बात ये है कि बाहर के मर्द के साथ ये काम करने में बदनामी का डर हर वक़्त होता है. जब कि सुल्तान के साथ शायद ये मामला ना हो.
“वो कैसे? नुसरत ने मेरी इस मुन्ता क पर हैरान होते हुए सवाल किया.
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