Thriller दस जनवरी की रात

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rajsharma
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

Post by rajsharma »

वैशाली जब पुलिस स्टेशन से बाहर निकली, तो उसका मन काफी कुछ हल्का हो गया था । किस्मत ने उसे एक बार विजय से मिला दिया था । इंटर तक दोनों साथ-साथ पढ़े थे । वह बड़ौदा में थी उस वक्त, फिर परिवार मुम्बई आ गया और वैशाली का बीच में एक वर्ष बेकार चला गया । उसने पुनः अपनी शिक्षा जारी रखी ।

वह विजय से प्यार करती थी, विजय भी उसे उतना ही चाहता था, परन्तु उस वक्त यह प्यार मुखरित नहीं हो पाया । इस अधूरे प्यार के बाद दोनों कभी नहीं मिले और आज संयोग ने उन्हें मिला दिया था ।

"क्या विजय आज भी मुझे उतना ही चाहता है ?" यह सोचती हुई वह अपने आप में खोई बढ़ी चली जा रही थी ।

☐☐☐

एडवोकेट रोमेश सक्सेना ने नवयौवना को ध्यानपूर्वक देखा ।

"इस किस्म का यह पहला केस है ।" रोमेश मे कहा,"एक तरफ तो आप फरमाती हैं कि वह बेकसूर है । दूसरी तरफ उसके खिलाफ खुद सबूत जुटाकर थाने में पहुँचा रही हैं, तीसरी बात यह कि मुझसे मदद भी चाहती हैं, आप आखिर हैं क्या चीज ?"

"सर आप मेरी मनोस्थिति समझिए, मैं उसकी सगी बहन हूँ, बचपन से उसे जानती हूँ । वह मुझे बेइन्तहा चाहता है, मगर ऐसा नहीं कि वह किसी का कत्ल कर डाले ।"

"तो फिर वह रुपया कहाँ से आ गया ?"

"उसी रुपये ने मुझे दोहरी मानसिक स्थिति में ला खड़ा किया है, इसीलिये तो मैं आपके पास आई हूँ । कहीं ऐसा न हो कि वह निर्दोष हो और मेरी एक भूल से उसे फाँसी की सजा हो जाये, फिर तो मैं अपने आपको कभी माफ न कर पाऊँगी । सर हो सकता है किसी ने उसे फंसाने के लिए चाल चली हो और एक लाख रुपया मेरे घर पहुंचाया हो, क्योंकि सोमू ने कभी उस व्यक्ति का जिक्र तक नहीं किया, जो अपने को उसका शुभचिंतक बता रहा है ।"

"मिस वैशाली पहले अपना माइण्ड मेकअप करो, एक ट्रैक पर चलो, यह तय करो कि वह निर्दोष है या दोषी, उसके बाद मेरे पास आना, वैसे भी मैं कोई मुकदमा तब तक हाथ में नहीं लेता, जब तक मुझे यकीन नहीं हो जाता कि मुलजिम निर्दोष है ।"

"लेकिन सर, जब तक आप या मैं इस नतीजे पर पहुँचेंगे… ।"

"कुछ नहीं होगा, तब तक के लिए अदालत की कार्यवाही रोकी जा सकती है । आप मुझे अगले सप्ताह इसी दिन मिलना समझी आप, तब तक मैं अपने तौर से भी पुष्टि कर लूँगा, हाँ उस आदमी का नाम पता नोट कराओ, जिसने एक लाख रुपया दिया है ।"

वैशाली ने उसका नाम-पता नोट करा दिया ।

☐☐☐
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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rajsharma
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

Post by rajsharma »

अगले सप्ताह उसी दिन एक बार फिर रोमेश सक्सेना के सामने थी ।

"अब बताइए आपकी पटरी किसी एक लाइन पर चढ़ी ?" एडवोकेट सक्सेना ने प्रश्न किया ।

रोमेश सक्सेना की आयु करीब पैंतीस वर्ष थी । उसका आकर्षक व्यक्तित्व था और गोरा चिट्टा छरहरा शरीर । उसकी उजली-सी आँखें, चौड़ा ललाट और बलिष्ट भुजायें, इस कसरती बदन को देखकर कोई भी सहज ही अनुमान लगा सकता था कि वह शख्स एथलीट होगा ।

रोमेश सक्सेना सिगरेट का धुआं छोड़ रहा था और उसकी दूरदृष्टि शून्य में बैलेंस थी ।

"बोलिए कौन-सा ट्रैक चुना है ?" इस बार रोमेश ने सीधे वैशाली की आँखों में देखते हुए कहा ।

"मैंने उससे जेल में मुलाकात की थी ।" वैशाली बोली ।

"फिर ।"

"उससे मिलने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुँची हूँ कि कत्ल उसी ने किया है, आई एम सॉरी सर, मैंने व्यर्थ में आपका समय नष्ट किया ।"

"क्या तुमने उसे यह भी बता दिया था कि तुमने रुपया पुलिस स्टेशन में जमा कर दिया है ।"

"मैंने उससे रुपए का कोई जिक्र नहीं किया, ऐसा इसलिये कि कहीं यह जानकर उसे सदमा न पहुंच जाये, उसने मुझे साफ-साफ बताया कि मेरी शादी के लिए उसने सेठ से कर्जा माँगा था, सेठ ने देने से इन्कार कर दिया और फिर वह अवसर की ताक में रहा, वह मेरे लिए कुछ भी कर गुजर सकता था बस ।"

"तो आपके दिमाग ने यह तय कर लिया कि सोमू हत्यारा है, इसलिये उसे सजा मिलनी ही चाहिये ।"

"कानून के आगे मैं रिश्तों को महत्व नहीं देती सर ।"

"हम तुम्हारे जज्बे की कद्र करते हैं और हमने यह फैसला किया है कि हम सोमू का मुकदमा लड़ेंगे ।"

"क्या ? मगर सर ?"

"मिस वैशाली, तुम्हारी नजर में सोमू हत्यारा है, मगर मेरी नजर से वह हत्यारा नहीं है और यह जानने के बाद कि सोमू हत्यारा नहीं है, मैं आँख नहीं मूंद सकता, ऐसे मुकदमों को मैं जरूर लड़ता हूँ ।"

"लेकिन आप यह किस आधार पर कह रहे हैं ?"

"आधार आपको अदालत में पता चल जायेगा । अब आप निश्चिन्त हो जायें, बेशक आप सबको बता सकती हैं कि आपका ब्रदर बरी होकर बाहर आयेगा, क्योंकि रोमेश सक्सेना जिस मुकदमे को हाथ में लेता है, दुनिया की कोई अदालत उसमें मुलजिम को सजा नहीं दे सकती ।"

"मेरे लिए वह क्षण बेहद अद्भुत और आश्चर्यजनक होंगे ।"

"नाउ रिलैक्स ।" रोमेश उठ खड़ा हुआ, "मुझे जरूरी काम से जाना है ।
"
वैशाली और रोमेश दोनों साथ-साथ फ्लैट से बाहर निकले और फिर रोमेश ने अपनी मोटरसाइकिल सम्भाली, जबकि वैशाली आगे की तरफ बढ़ गई ।

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Re: Thriller दस जनवरी की रात

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(^%$^-1rs((7)
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Re: Thriller दस जनवरी की रात

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