वो तो जैसे उनकी नज़रो मे बस गया था. अलका दीदी भी बस अर्जुन को ही देख रही थी. "ये इम्तिहान मेरी जान ना ले ले." मन मे सोचा उन्होने.
"वो कॉल अंकल ने आज मार्केट मे प्रीति को भी मेरे साथ भेजा था. उसको भी समान लेना था तो मैं ले गया था.
" उसने स्टेडियम का जीकर नही किया.
"ओह अच्छा. वैसे तो वो हमारी पुरानी सहेली है लेकिन बाहर पढ़ रही थी और बस इस महीने ही आई है वापिस." चल री अलका फिर तेरा गाना लगवाते है
ये आंटियाँ ऐसे ही हिलती रहेंगी. दोनो हिरनी सी वहाँ से निकल गई. अर्जुन ने एक बार पलटकर देखा तो प्रीति अब उसकी मा के साथ वाली कुर्सी पर थी.
कामिनी आंटी को उनकी देवरानी अपने साथ ठुमका लगवा रही थी. घर के कुछ पुरुष सदस्य और लड़के भी वही बैठे नाच-गाना देख रहे थे और हल्का फूलका खा रहे थे. एक वेटर से जूस का गिलास लेकर वो वही साइड मे खड़ा बस उधर ही देखता रहा.
"भैया ये वाला गाना है आपके पास?" ऋतु दीदी ने डेक के पीछे खड़े युवक से कहा और गाना बताया. कुछ 2-3 मिनिट बाद गाना चला दिल तो पागल है फिल्म का और अब ज़्यादातर लड़कियों ने नाचने के जगह खाली कर दी थी. अगले 5 मिनिट कोई कुछ नही बोला जब अलका दीदी ने अपना हुनर दिखाया. उनका डॅन्स देख कर तो सभी की नज़रे उन्हीं पर लगी थी. अर्जुन के पास मे सीढ़ियों पर 2-3 लड़के बैठे थे. राजन भी वही था जो डॅन्स देख रहा था.
जैसे ही गाना ख़तम हुआ तो सब तालियाँ बजाने लगे. उनका डॅन्स भी जोरदार था. फिर बड़ी महिलाए वहाँ से उठकर खाना खाने जाने लगी. अब वहाँ ज़्यादातर हम उमर जवान लड़किया, भाभी लोग और कुछ युवक जो सिर्फ़ बैठे थे रह गया. ऋतु दीदी ने जा कर प्रीति का हाथ खींचा जो कब से कभी नाच तो कभी अर्जुन को देख रही थी.
"चल उठ अब तेरी बारी है. तूने प्रॉमिस किया था ना. सब हटो यहा से अब प्रीति का नंबर है और यही है अलका की टक्कर की.
बाकी तो बस कमर हिला के चल देते है." उन्होने इतना बोला तो पहले तो प्रीति नही नही करती रही फिर कुछ देर बाद आ गई जहाँ पहले अलका दीदी थी.
"अब बोल कॉन्सा गाना सुनकर तू अपना जलवा दिखाएगी?" ऋतु दीदी तो थी ही माहिर. प्रीति ने उनके कान मे कहा तो उन्होने वापिस गाना चलाने वाले लड़के को गाने के बोल बताए. कुछ ही देर मे गाने की धुन शुरू हुई. ये बिल्कुल ही नया गाना था जो ज़्यादातर लोगो ने नही सुना था. उसके बोल थे "सपने मे मिलती है कुड़ी मुझे सपने मे मिलती है."
संगीत भी बड़ा तेज और ढोल की मिलावट वाला था. फिर जब प्रीति के कदम थिरकने लगे तो वो बस कमर मे दुपट्टा बाँध ऐसे नाची की एक 2 लड़को के मूह से सीटी निकल गई. उनमे से एक राजन भी था. अर्जुन को उसका ये व्यवहार जचा नही लेकिन वो बस शांत रहा था.
"तुम यहा की नही लगती." राजन उठकर अब प्रीति के पास जा रहा था और उसकी तरफ देखते हुए उसने ये बात कही.
"तुमसे मतलब. चलो अपना काम करो. यहा पर लड़को का आना मना है. उपर से तुमने पी रखी है." ऋतु दीदी दिलेर थी और उन्होने राजन को पीछे कर दिया.
वो भी ज़्यादा बहस किए वहाँ से चल दिया. लेकिन था वो भी थोड़ा टेढ़ा. ऐसे ही हल्के फुल्के नाचने गाने के बाद सब खाना खाने चले गये. संजीव भैया ने भी अर्जुन को बुलवा लिया था. खाने की तरफ अच्छी ख़ासी भीड़ थी तो अलका, ऋतु, प्रीति और उनके साथ वही लड़की जिसने अर्जुन को पहली नज़र मे ही दिल दे दिया था,
चारों खाने की प्लेट लेकर उपर छत पर चल दी. कमरो मे भी लोग भरे थे तो उनका जाना कुछ अलग नही लगा. संजीव भैया को वो बताकर गई थी. सबने खाना खाया और बातें भी की. बड़े बुजुर्ग घर निकल लिए थे तब तक. रामेश्वर जी भी पूरी साहब के सहत ही चले गये थे.
इस बीच अर्जुन की आँखें प्रीति को ढूँढ रही थी. "छोटे चल सब को एक बार बोल दे फिर घर चलते है." अर्जुन ने सही तरफ देखा तो कामिनी आंटी ने बताया के मा, दादीजी और ताईजी जा चुके है. तभी ऋतु और अलका दीदी के साथ कोमल दीदी और माधुरी दीदी भी आ गये. सभी निकलने ही लगे थे की अलका दीदी ने बोला, "भाई जल्दी से उपर से मेरा पर्स ले आ. वो मैं वही खाने के टाइम भूल गई शायद."
उनकी बात सुनकर अर्जुन सीढ़िया चढ़ उपर चल दिया. दूसरी मंज़िल बिल्कुल शांत थी और पीछे हल्का अंधेरा था. लेकिन जब वो वहाँ से नीचे गया था तब तो बल्ब जल रहा था वहाँ. अर्जुन ने ये सोचा और थोड़ा तेज़ी से तीसरी मंज़िल पर चढ़ने लगा.
"मेरा हाथ छोड़ दीजिए. मैं आपसे कोई बात नही करना चाहती." प्रीति की इतनी बात ही अर्जुन के कानो पे पड़ी और अगली 5 सीढ़िया वो एक झटके मे पार कर उपर आ खड़ा हुआ. बीच छत पर 3 साए खड़े थे. पास जाते ही देखा तो वो लड़की, राजन और प्रीति थे वहाँ.
प्रीति अर्जुन को वहाँ देखते ही उसकी और लपकी, राजन ने अभी भी उसका हाथ पकड़ा हुआ था.
"हाथ छोड़िए इसका." राजन को ज़रा कड़ी आवाज़ मे उसने ये बात कही.
"तू जा यहा से. मुझे बात करनी है इस से." थोड़ी हेकड़ी से इतना ही बोला था राजन ने की उसकी चीख निकल गई.
वो साथ मे खड़ी लड़की भी दोनो की तरफ देख कर बोली, "छोड़ो मेरे भाई को और दफ़ा हो जाओ यहा से."
अर्जुन ने राजन का जो हाथ प्रीति की कलाई को पकड़े था वो पकड़ कर लगभग पूरा ही मरोड़ दिया था और अब राजन का शरीर आधा झुक चुका था और आँखों मे पानी आ गया था.
"अपने भाई को कहो की लड़की की इज़्ज़त करना सीखे. कोई जागीर नही है प्रीति उसकी. और तुम एक लड़की होकर अपने भाई के ग़लत काम मे साथ दे रही हो. इतना भी मत गिरो के फिर उठ ही ना पाओ खुद की नज़र मे."
प्रीति बुरी तरह चिपक चुकी थी अर्जुन की छाती से. ऐसा नही था कि वो कोई कमजोर लड़की थी लेकिन
किसी शादी वाले घर मे वो भी अकेली एक शराब पिए लड़के के सामने वो डर गई थी. नही तो किसी और जगह तो राजन जैसा लड़का उसको हाथ भी ना लगा सकता था.
अर्जुन ने उसको अपने से अलग किए बिना ही वहाँ पड़ी चारपाई से पर्स उठाया ओर चलने लगा.
प्रीति का हाथ थोड़ा गीला सा लगा तो बस अन उसको अपनी नज़रो के सामने ही किया और फिर राजन की तरफ वापिस घूम कर उसके गाल पर पूरे ज़ोर से तमाचा जड़ दिया. एक के बाद एक लगातार 4-5 झापड़ खाने के बाद राजन भी घुटनो पे गिर गया था. नाक से खून आ चुका था उसके. प्रीति ने अर्जुन को अपनी तरफ किया और भीख मांगती सी बोली, "प्लीज़ यहा से चलो अर्जुन. अब और कोई तमाशा नही करना. प्लीज़."
अर्जुन उसका सर सहलाता सर्द आवाज़ मे राजन को बोला, "मेरी प्रीति का एक कतरा खून भी इतना कीमती है की इसके बदले मे तेरी जान भी ले लू मैं. और तूने तो उसका हाथ ही ज़ख्मी कर दिया. अगर फिर तू नज़र आया तो मैं भूल जाउन्गा सबकुछ." और इतना बोलकर वो प्रीति को साथ लिए नीचे चल दिया.
Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
अर्जुन उसका सर सहलाता सर्द आवाज़ मे राजन को बोला, "मेरी प्रीति का एक कतरा खून भी इतना कीमती है की इसके बदले मे तेरी जान भी ले लू मैं. और तूने तो उसका हाथ ही ज़ख्मी कर दिया. अगर फिर तू नज़र आया तो मैं भूल जाउन्गा सबकुछ." और इतना बोलकर वो प्रीति को साथ लिए नीचे चल दिया.
आँगन मे आने पर देखा तो वो सफेद काली चूड़ियाँ जो उसके सीधे हाथ की कलाई मे थी उनमे से 4-5 टूट कर उपर ही रह गई थी. कलाई पर अभी भी हल्का खून था. \
"मुझे रोक कर अच्छा नही किया तुमने." अर्जुन अभी भी गुस्से मे था और प्रीति उसको इस तरह देख कर बस मुस्कुरा दी.
"ओये तू पर्स लेने गया था या बनाने. आरू प्रीति तुम कहा थी.?" अलका दीदी उनकी तरफ आती हुई बोली.
"आप के साथ गई थी ना ये? तो लेकर भी साथ आना चाहिए था आपको." अर्जुन बिना कोई जवाब सुने वहाँ से निकल लिया.
गेट पर ही संजीव भैया और बाकी दीदी भी खड़े थे. सबको सामने देख कर थोड़ा शांत पड गया अर्जुन और उनके पास रुक गया.
"चलो भी अब. सब ऐसे क्यू खड़े हो."अलका दीदी ने हंसते हुए कहा और सब चलने लगे. अपने घर के बाहर पहुचते ही माधुरी दीदी ने अर्जुन को रोका.
"पहले प्रीति को घर तक छोड़कर आ."
"प्रीति आज तुम हमारे यहा रुक जाओ ना." ऋतु दीदी ने उसके करीब जा कर कहा.
"नही दीदी. आज तो नही लेकिन जल्दी ही आउन्गी. आज वैसे भी थकान है थोड़ी और फिर दादाजी को नही बताया है."
"चल ठीक है. कल आ जाना साथ मे तयार होंगे. गुडनाइट." सब आपस मे मिले. संजीव भैया ने भी शिष्टाचार दिखाते हुए "गुडनाइट गुड़िया कहा"
और सामने से भी प्रीति ने जवाब दिया.
"आप सब ऐसे मिल रहे हो जैसे ये अगले शहर जा रही है. 2 घर दूर ही इनका घर है." अर्जुन की बात सुनकर सब हंस दिए और प्रीति अर्जुन को छोड़कर सब अंदर चले गये.
"वैसे मुझे लगा था की अब तुम्हे गुस्सा आना बंद हो गया होगा. बड़े शांत से तो दिखते हो." प्रीति ने चलने से पहले घर से बाहर आती रोशनी मे एक बार उसके चेहरे को ध्यान से देख कर कहा
"बंद हो गया होगा से मतलब.? तुम्हे क्या पता है मेरे बारे मे.?"
"तुम्हारी दीदी ने बताया था कि बचपन मे तुम्हे बड़ा गुस्सा आता था. लेकिन फिर तुम हॉस्टिल मे रहने के बाद से ही बिल्कुल शांत हो गये थे." सफाई से प्रीति ने जवाब दिया.
"अच्छा तुम्हारा घर आ गया है." अर्जुन और प्रीति दोनो बातें करते हुए घर तो पहुच गये थे लें साथ चलने पर उनके साथ वाले हाथो की उंगलियाँ एक दूसरे से खेल रही थी. उसकी बात सुनते ही प्रीति ने एक बार अर्जुन का पूरा हाथ पकड़ वापिस छोड़ दिया.
"मेरी प्रीति को हाथ भी लगाया तो तेरी जान ले लूँगा." गेट की तरफ जाती प्रीति ने अर्जुन की नकल करते हुए उसकी ही बात दोहराई तो वो शर्मा कर अपने घर की और वापिस चल दिया और प्रीति खुद के घर के अंदर.
आँगन मे आने पर देखा तो वो सफेद काली चूड़ियाँ जो उसके सीधे हाथ की कलाई मे थी उनमे से 4-5 टूट कर उपर ही रह गई थी. कलाई पर अभी भी हल्का खून था. \
"मुझे रोक कर अच्छा नही किया तुमने." अर्जुन अभी भी गुस्से मे था और प्रीति उसको इस तरह देख कर बस मुस्कुरा दी.
"ओये तू पर्स लेने गया था या बनाने. आरू प्रीति तुम कहा थी.?" अलका दीदी उनकी तरफ आती हुई बोली.
"आप के साथ गई थी ना ये? तो लेकर भी साथ आना चाहिए था आपको." अर्जुन बिना कोई जवाब सुने वहाँ से निकल लिया.
गेट पर ही संजीव भैया और बाकी दीदी भी खड़े थे. सबको सामने देख कर थोड़ा शांत पड गया अर्जुन और उनके पास रुक गया.
"चलो भी अब. सब ऐसे क्यू खड़े हो."अलका दीदी ने हंसते हुए कहा और सब चलने लगे. अपने घर के बाहर पहुचते ही माधुरी दीदी ने अर्जुन को रोका.
"पहले प्रीति को घर तक छोड़कर आ."
"प्रीति आज तुम हमारे यहा रुक जाओ ना." ऋतु दीदी ने उसके करीब जा कर कहा.
"नही दीदी. आज तो नही लेकिन जल्दी ही आउन्गी. आज वैसे भी थकान है थोड़ी और फिर दादाजी को नही बताया है."
"चल ठीक है. कल आ जाना साथ मे तयार होंगे. गुडनाइट." सब आपस मे मिले. संजीव भैया ने भी शिष्टाचार दिखाते हुए "गुडनाइट गुड़िया कहा"
और सामने से भी प्रीति ने जवाब दिया.
"आप सब ऐसे मिल रहे हो जैसे ये अगले शहर जा रही है. 2 घर दूर ही इनका घर है." अर्जुन की बात सुनकर सब हंस दिए और प्रीति अर्जुन को छोड़कर सब अंदर चले गये.
"वैसे मुझे लगा था की अब तुम्हे गुस्सा आना बंद हो गया होगा. बड़े शांत से तो दिखते हो." प्रीति ने चलने से पहले घर से बाहर आती रोशनी मे एक बार उसके चेहरे को ध्यान से देख कर कहा
"बंद हो गया होगा से मतलब.? तुम्हे क्या पता है मेरे बारे मे.?"
"तुम्हारी दीदी ने बताया था कि बचपन मे तुम्हे बड़ा गुस्सा आता था. लेकिन फिर तुम हॉस्टिल मे रहने के बाद से ही बिल्कुल शांत हो गये थे." सफाई से प्रीति ने जवाब दिया.
"अच्छा तुम्हारा घर आ गया है." अर्जुन और प्रीति दोनो बातें करते हुए घर तो पहुच गये थे लें साथ चलने पर उनके साथ वाले हाथो की उंगलियाँ एक दूसरे से खेल रही थी. उसकी बात सुनते ही प्रीति ने एक बार अर्जुन का पूरा हाथ पकड़ वापिस छोड़ दिया.
"मेरी प्रीति को हाथ भी लगाया तो तेरी जान ले लूँगा." गेट की तरफ जाती प्रीति ने अर्जुन की नकल करते हुए उसकी ही बात दोहराई तो वो शर्मा कर अपने घर की और वापिस चल दिया और प्रीति खुद के घर के अंदर.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
अरे भाई कब अपडेट देगा बता दे
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही
सत्य-असत्य
"भैया आप सो गये?" अर्जुन कपड़े बदल कर भैया के कमरे मे आया.
"क्या बात है तुझे नींद नही आ रही क्या?" भाई वैसे ही लेटे थे.
"नही भैया बस कपड़े बदल कर यही आ आपके पास."
"कुछ पूछना है क्या भाई?" भैया अब बिस्तर पर टेक लगा कर बैठ से गये. उन्होने अपने छोटे भाई को थोड़ा परेशान देखा
"आप मेरे बारे मे सबकुछ जानते है ना? सबसे बड़े तो आप ही है. मुझे ज़्यादा कुछ याद नही लेकिन क्या आप कुछ बता सकते है?" अर्जुन की बात सुनकर
थोड़ी देर तक तो संजीव भैया किसी गहरी सोच मे डूब गये फिर उसको अपने पास बिठा लिया.
"जो भी मैं बताउन्गा तू वो किसी से नही कहेगा. ख़ासकर घर मे तो बिल्कुल भी नही." उन्होने अर्जुन की तरफ देखा तो उसने हा मे सर हिला दिया.
"तू समय से पहले पैदा हुआ था मेरे भाई. उसकी वजह से काफ़ी दिक्कत उठाई थी सबने. तुझे 3 साल तक तो बहुत ही प्यार से और एहतियात से संभाला.
कही बाहर नही ले जाते थे की तू कही बीमार ना हो जाए. तुझे जो भी पसंद होता सब फरमाइश पूरी होती थी. फिर जब एक दिन जब डॉक्टर ने बताया की तू अब बिल्कुल ठीक है तो घर मे थोड़ा आराम हुआ सबको. लेकिन सबके इस प्यार ने तुझे ज़िद्दी बना दिया था. ऋतु तो तुझे अपने से चिपकाए ही घूमती रहती थी. उसके साथ ही तुझको स्कूल भी भेजना शुरू किया लेकिन तू वहाँ भी ऋतु की क्लास मे बैठने की जिद्द करता था.
दादा जी का अच्छा नाम था वो बड़े पुलिस अधिकारी थे तो स्कूल मे भी तुझे इतनी आज़ादी मिल गई." फिर भैया ने एक गहरी साँस ली और कहा, "तेरी वजह से अलका और ऋतु दोनो के ही खराब नंबर आने लगे थे तो शंकर चाचा जी नाराज़ रहने लगे. दादा जी ने ही उनको समझाया. कुछ समय बाद सतीश अंकल का बेटा और बहूँ आए पड़ोस मे,उनकी बेटी भी उसके साथ आई थी. वो लोग शायद अमेरिका मे कही रहते थे."
"सतीश?" अर्जुन ने ये नाम दोहराया.
"हा कॉल सतीश पूरी जी. और जब वो हमारे घर आते तो उनकी पोती भी यहा आती थी. ऋतु, अलका के साथ साथ तू उसके साथ भी खेलने लगा था. दोनो इतना साथ रहने लगे की कई बार वो यही सो जाती या तू उनके घर. तीन साल तक हर साल वो यहा आते एक महीने के लिए और तू उनकी बेटी के साथ ही खेलता रहता.
फिर उस साल वो लोग वापिस चले गये और जब सतीश अंकल तुझे समझाने लगे तो तूने उनके उपर पत्थर फेंक के मार दिया था. तू 7 साल का था उस समय. ये बात चाचा जी को गुस्सा दिला गई. तू सबके साथ झगड़ने लगा था. सिर्फ़ ऋतु और अलका के साथ ही शांत रहता. और वो दोनो भी तेरे उपर जान छिडकती थी. लेकिन चाचा जी ने ठान लिया था कि तुझे वो ठीक करके ही रहेंगे. उनको सबसे ज्याद उम्मीद तेरे जनम लेने से हुई थी लेकिन तेरी जिद्द और गुस्से ने उनको बड़ा फैंसला लेने को मजबूर कर दिया था. फिर उन्होने तुझे हॉस्टिल भेज दिया, सबके मना करने के बावजूद. रेखा चाची तो सदमे मे चली गई थी.
सब धीरे धीरे शांत होने लगा. दादाजी ही तुझ से मिलने हॉस्टिल जाते थे और कोई नई. हॉस्टिल के वॉर्डन और स्कूल के अनुशाशण ने तेरा गुस्सा तुझ पर ही प्रयोग कर तेरा ध्यान सिर्फ़ चुनोतियो पर लगा दिया. अब जो गुस्सा और ज़िद थी वो तेरी ताक़त थी. गुस्सा तो ख़तम ही हो गया था. और अपने दादाजी ने भी बड़े प्यार से तेरे जीवन मे ये परिवर्तन किया की तू सबकी भावनाओ को समझे. मुझे आज भी याद है जब तू वापिस आता था तो वो सब काम छोड़ कर 2-3 घंटे सिर्फ़ प्यार, संस्कार और भगवान की बातें सिखाते थे. अलका और ऋतु को तो सॉफ बोल दिया गया था कि उस एक महीने कभी घर के बाहर वालो कमरे मे नही जाएँगी. तुझे जो ये सब बगीचे के काम अब अच्छे से आते है ये तू 5-6 साल से कर रहा है. है ना."
"भैया आप सो गये?" अर्जुन कपड़े बदल कर भैया के कमरे मे आया.
"क्या बात है तुझे नींद नही आ रही क्या?" भाई वैसे ही लेटे थे.
"नही भैया बस कपड़े बदल कर यही आ आपके पास."
"कुछ पूछना है क्या भाई?" भैया अब बिस्तर पर टेक लगा कर बैठ से गये. उन्होने अपने छोटे भाई को थोड़ा परेशान देखा
"आप मेरे बारे मे सबकुछ जानते है ना? सबसे बड़े तो आप ही है. मुझे ज़्यादा कुछ याद नही लेकिन क्या आप कुछ बता सकते है?" अर्जुन की बात सुनकर
थोड़ी देर तक तो संजीव भैया किसी गहरी सोच मे डूब गये फिर उसको अपने पास बिठा लिया.
"जो भी मैं बताउन्गा तू वो किसी से नही कहेगा. ख़ासकर घर मे तो बिल्कुल भी नही." उन्होने अर्जुन की तरफ देखा तो उसने हा मे सर हिला दिया.
"तू समय से पहले पैदा हुआ था मेरे भाई. उसकी वजह से काफ़ी दिक्कत उठाई थी सबने. तुझे 3 साल तक तो बहुत ही प्यार से और एहतियात से संभाला.
कही बाहर नही ले जाते थे की तू कही बीमार ना हो जाए. तुझे जो भी पसंद होता सब फरमाइश पूरी होती थी. फिर जब एक दिन जब डॉक्टर ने बताया की तू अब बिल्कुल ठीक है तो घर मे थोड़ा आराम हुआ सबको. लेकिन सबके इस प्यार ने तुझे ज़िद्दी बना दिया था. ऋतु तो तुझे अपने से चिपकाए ही घूमती रहती थी. उसके साथ ही तुझको स्कूल भी भेजना शुरू किया लेकिन तू वहाँ भी ऋतु की क्लास मे बैठने की जिद्द करता था.
दादा जी का अच्छा नाम था वो बड़े पुलिस अधिकारी थे तो स्कूल मे भी तुझे इतनी आज़ादी मिल गई." फिर भैया ने एक गहरी साँस ली और कहा, "तेरी वजह से अलका और ऋतु दोनो के ही खराब नंबर आने लगे थे तो शंकर चाचा जी नाराज़ रहने लगे. दादा जी ने ही उनको समझाया. कुछ समय बाद सतीश अंकल का बेटा और बहूँ आए पड़ोस मे,उनकी बेटी भी उसके साथ आई थी. वो लोग शायद अमेरिका मे कही रहते थे."
"सतीश?" अर्जुन ने ये नाम दोहराया.
"हा कॉल सतीश पूरी जी. और जब वो हमारे घर आते तो उनकी पोती भी यहा आती थी. ऋतु, अलका के साथ साथ तू उसके साथ भी खेलने लगा था. दोनो इतना साथ रहने लगे की कई बार वो यही सो जाती या तू उनके घर. तीन साल तक हर साल वो यहा आते एक महीने के लिए और तू उनकी बेटी के साथ ही खेलता रहता.
फिर उस साल वो लोग वापिस चले गये और जब सतीश अंकल तुझे समझाने लगे तो तूने उनके उपर पत्थर फेंक के मार दिया था. तू 7 साल का था उस समय. ये बात चाचा जी को गुस्सा दिला गई. तू सबके साथ झगड़ने लगा था. सिर्फ़ ऋतु और अलका के साथ ही शांत रहता. और वो दोनो भी तेरे उपर जान छिडकती थी. लेकिन चाचा जी ने ठान लिया था कि तुझे वो ठीक करके ही रहेंगे. उनको सबसे ज्याद उम्मीद तेरे जनम लेने से हुई थी लेकिन तेरी जिद्द और गुस्से ने उनको बड़ा फैंसला लेने को मजबूर कर दिया था. फिर उन्होने तुझे हॉस्टिल भेज दिया, सबके मना करने के बावजूद. रेखा चाची तो सदमे मे चली गई थी.
सब धीरे धीरे शांत होने लगा. दादाजी ही तुझ से मिलने हॉस्टिल जाते थे और कोई नई. हॉस्टिल के वॉर्डन और स्कूल के अनुशाशण ने तेरा गुस्सा तुझ पर ही प्रयोग कर तेरा ध्यान सिर्फ़ चुनोतियो पर लगा दिया. अब जो गुस्सा और ज़िद थी वो तेरी ताक़त थी. गुस्सा तो ख़तम ही हो गया था. और अपने दादाजी ने भी बड़े प्यार से तेरे जीवन मे ये परिवर्तन किया की तू सबकी भावनाओ को समझे. मुझे आज भी याद है जब तू वापिस आता था तो वो सब काम छोड़ कर 2-3 घंटे सिर्फ़ प्यार, संस्कार और भगवान की बातें सिखाते थे. अलका और ऋतु को तो सॉफ बोल दिया गया था कि उस एक महीने कभी घर के बाहर वालो कमरे मे नही जाएँगी. तुझे जो ये सब बगीचे के काम अब अच्छे से आते है ये तू 5-6 साल से कर रहा है. है ना."
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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