ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

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rajsharma
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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

Post by rajsharma »

साथ बने रहने के लिए धन्यवाद दोस्तो 😆
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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rajsharma
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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

Post by rajsharma »

सुबह उसकी आँख कुछ देर से खुली,करीब 9 बजे,उसके सिर में उस समय हल्का दर्द हो रहा था,वो उठी और अपने आस-पास अच्छी तरह से देखने लगी,उसे मेज पर इंजेक्शन पड़ा दिखा,वो इंजेक्शन किसी को लगाया जा चुका था। शीतल को समझ आ गया की कल रात उसे ये इंजेक्शन लगाया गया था। वो कमरे से निकल कर जय को ढूढ़ने लगी लेकिन जय घर में नही था,पूरे घर में देख लिया पर उसे जय कहीं नही दिखा ना ही कोई और। घर का दरवाजा खुला था,वो बाहर आई तो देखा जय गार्डेन में बैठा है उसके साथ 29-30 की एक लड़की एक बच्चे को गोद में लिए बैठी थी। शीतल उनके पास गयी। वहाँ कुछ कुर्सी और एक मेज रखी थी।

“शीतल,ये मेरी बड़ी बहन ज्योति है और गोद में इनका 2साल का बेटा यश है,” जय ने शीतल का परिचय कराते हुए कहा।

“जय मुझे तुमसे कुछ पूछना है,” शीतल ने ज्योति से नमस्ते करते हुए कहा।

“पूछो।”

“कल रात मेरे कमरे में कौन आया था और मुझे इंजेक्शन क्यों और किसने लगाया था?” शीतल ने पूछा।

“मैं आई थी,मैंने ही इंजेक्शन लगाया था,” ज्योति ने कहा।

“क्यों?”

“तुम इतनी लापरवाह क्यों हो,इतनी ठंड में तुम बिना किसी गर्म कपड़े के बाहर आ गयी। तुम्हारी तबीयत ठीक नही है लेकिन तुम्हें इसकी कोई परवाह नही है,कल रात को भी तुमने कुछ ओढ़ नही रखा था तुम्हारी पूरी शरीर ठंड से कांप रही थी,”ज्योति ने कहा।

“मुझे इंजेक्शन किसलिए लगाया था?”शीतल ने अपना प्रश्न दोहराया।

“तुम्हें बहुत ज़्यादा बुखार था इसलिए मुझे इंजेक्शन लगाना पड़ा,मैं एक डॉक्टर हूँ, वो इंजेक्शन दवाई का था,”ज्योति ने कहा।

शीतल बिल्कुल चुप हो गयी उसके पास ज्योति की बात का कोई जवाब नही था,उसे कुछ पूछना था लेकिन वो कुछ भी नही कह पाई।

“उस रात को भी तुमने कोई गर्म कपड़े नही पहने थे,ऐसे सड़क के किनारे पड़ी थी। घर नही है क्या?उस रात मैंने तुम्हारे कपड़े बदले थे और मैंने तुम्हारा पूरा मेडिकल चेक-उप किया था किसी तरह का कोई भी चोट का निशान नही था ना ही तुम्हारे साथ कुछ ग़लत हुआ था। बेहोश होकर भी नही गिरी थी क्योंकि बेहोश होकर गिरती तो कुछ चोट ज़रूर होती। आख़िर हुआ क्या था?” ज्योति ने उससे एक बार में बहुत कुछ कह दिया।

शीतल ने कोई जवाब नही दिया,ज्योति की बातों से उसे तसल्ली हो गयी थी की वो यहाँ पूरी तरह से सुरक्षित है।

“रहती कहाँ हो?”ज्योति ने पूछा।

“प्रीतमपुर।”

“पढ़ती हो?” ज्योति ने पूछा।


“पढ़ती हूँ और जॉब भी करती हूँ,” शीतल ने कहा।

“उम्र क्या है?”ज्योति ने पूछा।

“20 साल।”

“शादीशुदा हो?” ज्योति ने पूछा।

“हाँ।”

“लव या अरेंज?” ज्योति ने पूछा।

“कोर्ट मैरिज,” शीतल ने कहा।

“इतनी जल्दी क्या थी शादी करने की घरवाले करते तो कुछ समझ आता है पर तुमने अपनी मर्ज़ी से की। क्या तुम पागल हो?देखने में बच्ची जैसी मासूम दिखती हो और हरकतें भी बच्ची जैसी हैं फिर क्यों इतनी जल्दी थी। थोड़ी और बड़ी हो जाती तभी शादी करती,” ज्योति ने कहा।

शीतल से कुछ बोलते नही बना। ज्योति तो उससे इस तरह से पेश आ रही थी जैसे की शीतल कोई आतंकवादी हो और वो सेना की अधिकारी। शीतल नज़रें झुकाए खड़ी थी वो उन्हें कैसे बताती की उसकी शादी किन हालत में हुई थी।

"शीतल तुमने जीन्स नही पहनी,” जय ने माहौल को हल्का करने के लिए मज़ाक में कहा।

शीतल हँस दी पर कुछ बोली नही,वो शर्मा गयी थी। उसने वहाँ से चले जाना ही बेहतर समझा और घर के अंदर चली गयी अपने कमरे में पहुँच कर उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। जय की बात उसके मन में चल रही थी,उसने सोचा क्यों ना एक बार जीन्स पहन ही लूँ,वो बेड पर लेटी यही सब सोच रही थी किसी ने दरवाजा खटखटाया,शीतल ने दरवाजा खोला,सामने ज्योति खड़ी थी।

“तुम नहा कर तैयार हो जाओ,” ज्योति ने कहा।

“क्यों दीदी?”

“तुम्हें तुम्हारे घर जाना है या नही,”ज्योति ने कहा।

“ठीक है,दीदी,” शीतल ने कहा पर तब तक ज्योति जा चुकी थी।
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Re: ये कैसी दूरियाँ( एक प्रेमकहानी )

Post by rajsharma »

एक घंटे बाद शीतल अपने कमरे से बाहर हॉल में आई। उस समय ज्योति किचन में थी,हॉल में यश सोफे पर बैठा खिलौनों से खेल रहा था। शीतल भी यश के साथ खेलने लगी। तभी ज्योति किचन से निकल कर हॉल में आई।

“तुम कुछ खाओगी?” ज्योति ने पूछा।

“नही दीदी,मुझे मेरे घर छोड़ दीजिए,” शीतल ने कहा।

“जय बाहर गार्डेन में है,तुम उसके साथ चली जाओ,” ज्योति ने कहा।

शीतल बाहर गार्डेन में गयी,जय की नज़रें जब उस पर पड़ी तो उसकी नज़रें शीतल पर ही टिक गयी। शीतल ने रेड टॉप और ब्लू जीन्स पहनी थी।

“जय,मुझे घर छोड़ दो,” शीतल ने कहा।

“ठीक है,” जय ने उससे नज़रें बिना हटाए ही कहा।

शीतल बिना कुछ कहे वहीं थोड़ी ही दूरी पर खड़ी जय की गाड़ी में जा कर बैठ गयी। जय भी कुछ नही बोला और गाड़ी में बैठ गया। करीब 40 मिनट में हाइवे पर आ गये इस 40 मिनट में दोनों ने एक दूसरे से कोई बात नही की।

“बहुत सुंदर दिख रही हो,” जय ने बिना शीतल की ओर देखे ही कहा।

शीतल कुछ नही बोली बस नीचे की ओर देखने लगी। उसे राज की याद आ र्ही थी। राज से वो क्या कहेगी,कहाँ थी वो 2दिन। राज की हालत इतनी तो सुधर गयी थी की वो बोल सकता था सिर्फ़ उसके पैर का फ्रैक्चर ठीक नही हुआ था। उसे रुपयों का इंतज़ाम भी करना था। शीतल की आँखों से कब आँसू बहने लगे उसे पता ही नही चला।

“तुम रो क्यों रही हो?” जय ने शीतल से पूछा।

शीतल कुछ नही बोली जैसे उसने कुछ सुना ही नही। जय ने फिर पूछा इस बार जय ने अपना हाथ उसके हाथ पर रख दिया था। शीतल ने कोई प्रतिक्रिया नही की सिर्फ़ नज़रें उठा कर जय की ओर देखा,जय ने अपना हाथ हटा लिया। शीतल कुछ देर जय को इसी तरह देखती रही लेकिन कुछ कहा नही। थोड़ी देर बाद उसने अपनी नज़रें झुका ली।

“जय क्या मैं तुम पर भरोसा कर सकती हूँ?”शीतल ने अपनी आखों से आँसू पोछते हुए जय की ओर देखे बिना ही कहा।

“हाँ,पर बात क्या है?” जय ने गाड़ी सड़क के किनारे खड़ी करते हुए पूछा।

शीतल बिल्कुल शांत हो गयी,वो हिम्मत जुटा रही थी जय को सब कुछ बताने की पर वो कुछ नही कह पायी,किसी गहरी सोच में डूब गयी।

“शीतल क्या हुआ?”जय ने पूछा।

शीतल ने जय की ओर देखा और उसके बाद उसने अपनी पूरी कहानी जय को सुना दी। कैसे उसकी मुलाकात राज से हुई,किस तरह उनकी शादी हुई सभी कुछ जो कुछ उसके साथ घर छोड़ने के बाद हुआ था। अनुज सर के बारे में,उन्होने उसे किस शर्त पर रुपये दिये। राज के घर वालों ने उसके साथ जो व्यवहार किया। उसने हर एक बात जय को बता दी।

जय की आखें भी नम हो गयी थीं। दोनों गाड़ी में ही बैठे थे । जय ने शीतल के आँसू अपने हाथों से पोछे और उसके सर को अपने कंधे पर रख कर उसे दिलासा देने लगा। वो शीतल के बालों को सहलाने लगा,बार-बार उसके सर पर हाथ फेर रहा था लेकिन फिर भी जय उसे किसी भी तरह से शांत नही करा सका। रोते-रोते शीतल कब सो गयी उसे पता ही नही चला। जय ने उसे जगाया नही ना ही उसके सिर को अपने कंधे से हटाया। उसने गाड़ी स्टार्ट करी और वहाँ से चल दिया।

एक घंटे के बाद शीतल की आँख खुली,उसके सामने जय बैठा था और वो सोफे पर लेटी थी। वो अभी भी जय के घर में ही थी। शीतल झटके से उठ कर बैठ गयी।

“मुझे वापस यहाँ क्यों लाए?” शीतल ने पूछा।

“दीदी कह रही हैं कि तुमने सुबह कुछ खाया नही था,” जय ने उसकी बात को टालते हुए कहा।

“मैं वहाँ खाना खा लेती पर तुम मुझे यहाँ क्यों ले आए,”शीतल ने पूछा।

“तुम्हे रुपेयों की ज़रूरत है,ये लो 2 लाख,” जय ने उसे रुपये पकड़ाते हुए कहा।

“मुझे हॉस्पिटल छोड़ दो,” शीतल ने रुपये पकड़ते हुए कहा। उसने रुपये लेने में कोई हिचक नही दिखाई।

“कल चली जाना,” जय ने कहा।

शीतल ने जय की ओर गुस्से से देखा पर ये उसका घर था इसलिए वो उसे कुछ कह नही पाई। ज्योति भी अपने कमरे से बाहर हॉल मे आ गयी थी। वो शीतल का चेहरा देखकर सब समझ गयी।

“शीतल तुम खाना खा लो,फिर मैं तुम्हे छोड़ दूँगी,” ज्योति ने शीतल से कहा।

शीतल कुछ नही बोली,उसने खाना खा लिया।

“मैं कुछ मेडिसिन के नाम लिख दे रही हूँ तुम इन्हे कुछ दिन तक खा लेना,” ज्योति ने शीतल से कहा और उसे मेडिसिन के नाम लिख कर पर्चा पकड़ा दिया।

“जय,शीतल को अभी छोड़ कर आओ,” ज्योति ने जय से कहा।

जय,ज्योति की बात को टाल नही सका। उसे शीतल को हॉस्पिटल छोड़ने जाना पड़ा। जय शीतल को हॉस्पिटल के बाहर छोड़ कर चला गया।

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