बहुत ही शानदार अपडेट है दोस्त
पिशाच की वापसी
- rajsharma
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Re: पिशाच की वापसी
Read my all running stories
(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: पिशाच की वापसी
बढ़िया अपडेट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
मांगलिक बहन....एक अधूरी प्यास- 2....Incest सपना-या-हकीकत.... Thriller कागज की किश्ती....फोरेस्ट आफिसर....रंगीन रातों की कहानियाँ....The Innocent Wife ( मासूम बीवी )....Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा ).....फिर बाजी पाजेब Running.....जंगल में लाश Running.....Jalan (जलन ).....Do Sage MadarChod (दो सगे मादरचोद ).....अँधा प्यार या अंधी वासना ek Family ki Kahani...A family Incest Saga- Sarjoo ki incest story).... धड़कन...
- SATISH
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Re: पिशाच की वापसी
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पिशाच की वापसी(running])
स्वाहा (complet)
लंगडा प्रेत(coming soon)
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- SATISH
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Re: पिशाच की वापसी
पिशाच की वापसी – 16
"अरे कैसी बात कर रहे हैं आप सर, ये तो मेरा काम था, आपको और मेयर साहब को तकलीफ हो तो फिर हम जैसों का फायदा क्या है"
पाटिल मुस्कुराते हुए अपनी बात रखता है.
"अरे ये तो आपका बड़प्पन है मिस्टर. पाटिल, वैसे अच्छा हुआ की अपने मुझे फोन कर दिया था उस टाइम, जब वह मजदूर आपके पास आए थे, उसी टाइम मैंने अपने आदमियो को इनफॉर्म कर दिया था, लेकिन ताज्जुब की बात ये है की उन्हें भी कुछ नहीं मिला, अगर वहां कुछ था ही नहीं तो वह सब मजदूर आपके पास आए क्यों, क्या आपको कुछ मिला."
सोचते सोचते मुख्तार ने अपनी बात रखी.
"नहीं मुख्तार साहब, हमें भी कुछ नहीं मिला, जब आपसे बात हुई, उसके बाद हमने काफी ढूंढा पर हमें कुछ नहीं मिला, जबकि सब कुछ ठीक था, एक दम नॉर्मल"
पाटिल ने बेहद आसानी से जवाब दिया.
इस जवाब को सुनकर मुख्तार सोच में पड गया,
"क्या सोच रहे हैं मुख्तार साहब"?
पाटिल ने मुख्तार को सोचते देख पूछा.
"बस यही सोच रहा हूँ की अगर कोई हादसा वहाँ हुआ तो क्यों कुछ नहीं मिला हमें"?
"इसका जवाब तो खुद मेरे पास नहीं है"
"आपको क्या लगता है मिस्टर. पाटिल क्या वहाँ सच मच कोई आत्मा, कोई रूह है"?
मुख्तार ने चिंतित टोन में कहा, उसके कहते ही वहाँ के माहौल में एक अजीब सी शांति छा गयी, दोनों एक दूसरे को देखने लगे.
"में कुछ समझा नहीं की आप क्या कहना चाहते है, क्या आपको लगता है वह सब सच कह रहे हैं"
पाटिल ने गंभीर चेहरा बनाते हुए कहा.
मुख्तार अपनी जगह से उठते हुए,
"नहीं मेरा ये मतलब नहीं है, में बस ये पूछ रहा हूँ, क्या आपको इस जगह का इतिहास पता है, मतलब की कोई छुपा हुआ राज़ जिसे शायद अभी हम सब अंजान हो"
मुख्तार घूम के पाटिल की आँखों में देखते हुए पूछता है.
कमरे का तापमान बढ़ रहा था, दोनों की साँसें तेज चल रही थी, माहौल इस वक्त कुछ अलग मोड़ ले रहा था, पाटिल अपनी जगह से खड़ा होता हुआ.
"इस बारे में आपको मैं कुछ नहीं बता सकता, मुझे आए हुए कुछ ही टाइम हुआ है, यहाँ पे जो हादसा हुआ था उसके बाद ही मेरी पोस्टिंग यहाँ की गयी थी"
पाटिल भी अब असमंजस में दिख रहा था.
"मतलब आपसे पहले कोई और होगा जो आपकी जगह पर होगा"
"हाँ बिलकुल, यहाँ पे पुलिस स्टेशन था, काली चौकी पुलिस स्टेशन के नाम से"
"था मतलब, अब नहीं है"?
मुख्तार पाटिल के करीब आते हुए बोला.
"मतलब उस हादसे के बाद वह पुलिस स्टेशन नहीं बचा, अब वह सिर्फ़ एक खंडहर की तरह हो गया है"
"हम्म पर मिस्टर. पाटिल में चाहता हूँ की आप उसके बारे में इन्फार्मेशन निकले"
"पर क्या करेंगे आप"?
"शायद यहाँ का छुपा हुआ कोई इतिहास मिल जाए हमें, या फिर कुछ भी, आप समझ रहे हैं ना में क्या कहना चाहता हूँ"
मुख्तार ने पाटिल की आँखों में एक बार फिर देखते हुए कहा.
"जी, अब में चलता हूँ, जल्दी ही खबर लगाउंगा"
पाटिल की आवाज़ इस बार कुछ अलग थी, इतना कह कर वह निकल गया.
उसके जाते ही मुख्तार ने अपना फोन उठाया और नंबर डायल किया,
"हेलो सर, जी काम चल रहा है, आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्या…., पर क्यों, हम्म, जी सर, अपने सही कहा, ये अच्छी मार्केटिंग स्ट्रॅटजी बन सकती है, हा बिलकुल सर में इस बात का बिलकुल ध्यान रखूँगा, जानता हूँ सर ये प्रोजेक्ट कितना इंपॉर्टेंट है आप बेफ़िक्र रहीये, यहाँ पे अब कोई भी उस बनने से रोक नहीं पाएगा, आप देखते जाइये सर, इस जगह का नाम एक बार फिर पहले की तरह कितना बड़ा हो जाएगा…., ओफ्फकोर्स सर, में जानता हूँ लेकिन कहते हैं ना सर कुछ पाने के लिए कुछ कुर्बनियाँ तो देनी ही पड़ती है, हाहहहाहा, बस आपकी मेहरबानी है सर"
इतनी बात करने के बाद थोड़ी देर मुख्तार शांत रहता है, दूसरी तरफ से कुछ देर सुनाने के बाद उसने कहना शुरू किया,
"नहीं सर फिलहाल उस जगह के बारे में कुछ नहीं जान पाया हूँ, आप तो जानते ही हैं सर मुझे आए हुए अभी सिर्फ़ 4 महीने ही हुए हैं, पर आप चिंता ना कर्रे में जल्दी ही पता लगा लूँगा, ओके सर, ये शुरू, जब आप कहे, पर में तो चाहता हूँ की आपसे उसी दिन मिलूं जब मेरा काम खत्म हो जाए, आप बेफ़िक्र रहिए, काम ऐसा होगा की दूर दूर से लोग आकर देखेंगे, जी सर ओके, ओके, हॅव आ नाइस डे सर"
इतना कहने के बाद मुख्तार ने फोन रख दिया.
"उफफ, ये मेयर साहब के सवाल का जवाब कहाँ से दु, मुझे जल्दी ही अब पता लगाना पड़ेगा की ऐसा क्या है उस जगह, जिसके बारे में जिसे पूछो वह कुछ बोल पाता नहीं पर मुझे उन सब के चेहरे पे एक अजीब सी खामोशी नज़र आती है"
इतना कह के मुख्तार अपना गिलास वाइन से भरने लगता है.
"साहब..!
मुख्तार के कानों में आवाज़ पड़ती है, अपनी गर्दन पीछे घुमा के देखता है तो उसका नौकर खड़ा होता है,
"हाँ बोल"
गिलास से एक घूँट भरते हुए वह उस बोलता है.
"साहब, क्या ये सब बातें उस जगह की है जहाँ वह कब्रिस्तान है"
छोटू ने थोड़े अटकते हुए कहा.
"हा, कब्रिस्तान है नहीं, था, अभी नहीं बचा, पर तुझे कैसे पता"?
अजीब सी निगाहों से पूछा.
"वह आपकी बातों से और उस दिन जो मजदूर आए थे उस दिन की बातों से मुझे लगा की वहीं की है..”
"तू बहुत बातें सुनने लगा है आज कल, चल जा के काम कर अपना, वैसे भी में इस वक्त कुछ सोच रहा हूँ"
मुख्तार थोड़ा चीखते हुए बोला और फिर वाइन की बॉटल उठा के अपना गिलास भरने लगा, गिलास में जा रही वाइन की आवाज़ उस कमरे में गूँज रही थी की तभी वह आवाज़ बंद हो गयी और मुख्तार के हाथ रुक गयी, वह फौरन घुमा और छोटू को देखने लगा.
"क्या कहाँ तूने अभी"?
मुख्तार ने बहुत तेजी से अपना सवाल किया.
"वही साहब जो मैंने सुना है, अपनी मां से, उसने बताया था मुझे एक बार, की वह जगह शापित है, साहब मां ने इतना भी बताया था की वहाँ कुछ साल पहले एक हवेली हुआ करती थी, बहुत बड़ी हवेली जिसे किसी शैतान ने जकड़ा हुआ था, बहुतो का खून पिया है साहब उस हवेली ने, मुझे तो लगता है साहब की ये वही हवेली है जो बदला ले रही है"
छोटू ने इतना कहा और वह चुप हो गया, एक पल के लिए कमरे को शांति ने घेर लिया, एक दम खोमोशी, मुख्तार एक गहरी सोच में डूबा हुआ था.
"हवेली हम्म, तुम जाकर खाने की तैयारी करो"
मुख्तार ने इतना कहा और फिर से सोच में डूब गया.
पुलिस स्टेशन.
"अरे राकेश मेरा एक काम तो कर देना"
पाटिल ने अंदर घुसते ही अपना आर्डर एक सब-इंस्पेक्टर को दिया.
"जी सर बोलिए"
"राकेश यार तू वह काली चौकी पुलिस स्टेशन के बारे में जानता है ना, जो उस पहाड़ी के ठीक आगे बना हुआ है"
"वह खंडहर सर"
"हाँ हाँ, यार वही"
"उस खंडहर में क्या काम आ गया है सर"
"अरे यार तू ये पता कर की मेरे आने से पहले वहाँ किसकी पोस्टिंग थी और किस वजह से उसका ट्रांसफर कर दिया, साथ ही साथ उसकी पूरी यूनिट का भी, क्यों की मेरे यहाँ पोस्टिंग करने की वजह मुझे नहीं बताई गयी थी, तो सोच रहा हूँ अब जब यहाँ आ गया हूँ तो सब कुछ पता कर लू"
"ये तो हम सबके साथ है सर, हम सबकी पोस्टिंग का रीज़न दिया ही नहीं गया है, आप चिंता मत कीजिए, ये काम जल्दी ही हो जाएगा"
राकेश ने इतना कहा और वह वहाँ से चला गया.
"लगता है अब गडे मुर्दे उखाड़ने का वक्त आ गया है"
पाटिल ने अजीब सा चेहरा बनाते हुए अपने आप से कहा और फिर फाइल खोल के अपने काम में लग गया…
"अरे कैसी बात कर रहे हैं आप सर, ये तो मेरा काम था, आपको और मेयर साहब को तकलीफ हो तो फिर हम जैसों का फायदा क्या है"
पाटिल मुस्कुराते हुए अपनी बात रखता है.
"अरे ये तो आपका बड़प्पन है मिस्टर. पाटिल, वैसे अच्छा हुआ की अपने मुझे फोन कर दिया था उस टाइम, जब वह मजदूर आपके पास आए थे, उसी टाइम मैंने अपने आदमियो को इनफॉर्म कर दिया था, लेकिन ताज्जुब की बात ये है की उन्हें भी कुछ नहीं मिला, अगर वहां कुछ था ही नहीं तो वह सब मजदूर आपके पास आए क्यों, क्या आपको कुछ मिला."
सोचते सोचते मुख्तार ने अपनी बात रखी.
"नहीं मुख्तार साहब, हमें भी कुछ नहीं मिला, जब आपसे बात हुई, उसके बाद हमने काफी ढूंढा पर हमें कुछ नहीं मिला, जबकि सब कुछ ठीक था, एक दम नॉर्मल"
पाटिल ने बेहद आसानी से जवाब दिया.
इस जवाब को सुनकर मुख्तार सोच में पड गया,
"क्या सोच रहे हैं मुख्तार साहब"?
पाटिल ने मुख्तार को सोचते देख पूछा.
"बस यही सोच रहा हूँ की अगर कोई हादसा वहाँ हुआ तो क्यों कुछ नहीं मिला हमें"?
"इसका जवाब तो खुद मेरे पास नहीं है"
"आपको क्या लगता है मिस्टर. पाटिल क्या वहाँ सच मच कोई आत्मा, कोई रूह है"?
मुख्तार ने चिंतित टोन में कहा, उसके कहते ही वहाँ के माहौल में एक अजीब सी शांति छा गयी, दोनों एक दूसरे को देखने लगे.
"में कुछ समझा नहीं की आप क्या कहना चाहते है, क्या आपको लगता है वह सब सच कह रहे हैं"
पाटिल ने गंभीर चेहरा बनाते हुए कहा.
मुख्तार अपनी जगह से उठते हुए,
"नहीं मेरा ये मतलब नहीं है, में बस ये पूछ रहा हूँ, क्या आपको इस जगह का इतिहास पता है, मतलब की कोई छुपा हुआ राज़ जिसे शायद अभी हम सब अंजान हो"
मुख्तार घूम के पाटिल की आँखों में देखते हुए पूछता है.
कमरे का तापमान बढ़ रहा था, दोनों की साँसें तेज चल रही थी, माहौल इस वक्त कुछ अलग मोड़ ले रहा था, पाटिल अपनी जगह से खड़ा होता हुआ.
"इस बारे में आपको मैं कुछ नहीं बता सकता, मुझे आए हुए कुछ ही टाइम हुआ है, यहाँ पे जो हादसा हुआ था उसके बाद ही मेरी पोस्टिंग यहाँ की गयी थी"
पाटिल भी अब असमंजस में दिख रहा था.
"मतलब आपसे पहले कोई और होगा जो आपकी जगह पर होगा"
"हाँ बिलकुल, यहाँ पे पुलिस स्टेशन था, काली चौकी पुलिस स्टेशन के नाम से"
"था मतलब, अब नहीं है"?
मुख्तार पाटिल के करीब आते हुए बोला.
"मतलब उस हादसे के बाद वह पुलिस स्टेशन नहीं बचा, अब वह सिर्फ़ एक खंडहर की तरह हो गया है"
"हम्म पर मिस्टर. पाटिल में चाहता हूँ की आप उसके बारे में इन्फार्मेशन निकले"
"पर क्या करेंगे आप"?
"शायद यहाँ का छुपा हुआ कोई इतिहास मिल जाए हमें, या फिर कुछ भी, आप समझ रहे हैं ना में क्या कहना चाहता हूँ"
मुख्तार ने पाटिल की आँखों में एक बार फिर देखते हुए कहा.
"जी, अब में चलता हूँ, जल्दी ही खबर लगाउंगा"
पाटिल की आवाज़ इस बार कुछ अलग थी, इतना कह कर वह निकल गया.
उसके जाते ही मुख्तार ने अपना फोन उठाया और नंबर डायल किया,
"हेलो सर, जी काम चल रहा है, आपको फिक्र करने की जरूरत नहीं है, क्या…., पर क्यों, हम्म, जी सर, अपने सही कहा, ये अच्छी मार्केटिंग स्ट्रॅटजी बन सकती है, हा बिलकुल सर में इस बात का बिलकुल ध्यान रखूँगा, जानता हूँ सर ये प्रोजेक्ट कितना इंपॉर्टेंट है आप बेफ़िक्र रहीये, यहाँ पे अब कोई भी उस बनने से रोक नहीं पाएगा, आप देखते जाइये सर, इस जगह का नाम एक बार फिर पहले की तरह कितना बड़ा हो जाएगा…., ओफ्फकोर्स सर, में जानता हूँ लेकिन कहते हैं ना सर कुछ पाने के लिए कुछ कुर्बनियाँ तो देनी ही पड़ती है, हाहहहाहा, बस आपकी मेहरबानी है सर"
इतनी बात करने के बाद थोड़ी देर मुख्तार शांत रहता है, दूसरी तरफ से कुछ देर सुनाने के बाद उसने कहना शुरू किया,
"नहीं सर फिलहाल उस जगह के बारे में कुछ नहीं जान पाया हूँ, आप तो जानते ही हैं सर मुझे आए हुए अभी सिर्फ़ 4 महीने ही हुए हैं, पर आप चिंता ना कर्रे में जल्दी ही पता लगा लूँगा, ओके सर, ये शुरू, जब आप कहे, पर में तो चाहता हूँ की आपसे उसी दिन मिलूं जब मेरा काम खत्म हो जाए, आप बेफ़िक्र रहिए, काम ऐसा होगा की दूर दूर से लोग आकर देखेंगे, जी सर ओके, ओके, हॅव आ नाइस डे सर"
इतना कहने के बाद मुख्तार ने फोन रख दिया.
"उफफ, ये मेयर साहब के सवाल का जवाब कहाँ से दु, मुझे जल्दी ही अब पता लगाना पड़ेगा की ऐसा क्या है उस जगह, जिसके बारे में जिसे पूछो वह कुछ बोल पाता नहीं पर मुझे उन सब के चेहरे पे एक अजीब सी खामोशी नज़र आती है"
इतना कह के मुख्तार अपना गिलास वाइन से भरने लगता है.
"साहब..!
मुख्तार के कानों में आवाज़ पड़ती है, अपनी गर्दन पीछे घुमा के देखता है तो उसका नौकर खड़ा होता है,
"हाँ बोल"
गिलास से एक घूँट भरते हुए वह उस बोलता है.
"साहब, क्या ये सब बातें उस जगह की है जहाँ वह कब्रिस्तान है"
छोटू ने थोड़े अटकते हुए कहा.
"हा, कब्रिस्तान है नहीं, था, अभी नहीं बचा, पर तुझे कैसे पता"?
अजीब सी निगाहों से पूछा.
"वह आपकी बातों से और उस दिन जो मजदूर आए थे उस दिन की बातों से मुझे लगा की वहीं की है..”
"तू बहुत बातें सुनने लगा है आज कल, चल जा के काम कर अपना, वैसे भी में इस वक्त कुछ सोच रहा हूँ"
मुख्तार थोड़ा चीखते हुए बोला और फिर वाइन की बॉटल उठा के अपना गिलास भरने लगा, गिलास में जा रही वाइन की आवाज़ उस कमरे में गूँज रही थी की तभी वह आवाज़ बंद हो गयी और मुख्तार के हाथ रुक गयी, वह फौरन घुमा और छोटू को देखने लगा.
"क्या कहाँ तूने अभी"?
मुख्तार ने बहुत तेजी से अपना सवाल किया.
"वही साहब जो मैंने सुना है, अपनी मां से, उसने बताया था मुझे एक बार, की वह जगह शापित है, साहब मां ने इतना भी बताया था की वहाँ कुछ साल पहले एक हवेली हुआ करती थी, बहुत बड़ी हवेली जिसे किसी शैतान ने जकड़ा हुआ था, बहुतो का खून पिया है साहब उस हवेली ने, मुझे तो लगता है साहब की ये वही हवेली है जो बदला ले रही है"
छोटू ने इतना कहा और वह चुप हो गया, एक पल के लिए कमरे को शांति ने घेर लिया, एक दम खोमोशी, मुख्तार एक गहरी सोच में डूबा हुआ था.
"हवेली हम्म, तुम जाकर खाने की तैयारी करो"
मुख्तार ने इतना कहा और फिर से सोच में डूब गया.
पुलिस स्टेशन.
"अरे राकेश मेरा एक काम तो कर देना"
पाटिल ने अंदर घुसते ही अपना आर्डर एक सब-इंस्पेक्टर को दिया.
"जी सर बोलिए"
"राकेश यार तू वह काली चौकी पुलिस स्टेशन के बारे में जानता है ना, जो उस पहाड़ी के ठीक आगे बना हुआ है"
"वह खंडहर सर"
"हाँ हाँ, यार वही"
"उस खंडहर में क्या काम आ गया है सर"
"अरे यार तू ये पता कर की मेरे आने से पहले वहाँ किसकी पोस्टिंग थी और किस वजह से उसका ट्रांसफर कर दिया, साथ ही साथ उसकी पूरी यूनिट का भी, क्यों की मेरे यहाँ पोस्टिंग करने की वजह मुझे नहीं बताई गयी थी, तो सोच रहा हूँ अब जब यहाँ आ गया हूँ तो सब कुछ पता कर लू"
"ये तो हम सबके साथ है सर, हम सबकी पोस्टिंग का रीज़न दिया ही नहीं गया है, आप चिंता मत कीजिए, ये काम जल्दी ही हो जाएगा"
राकेश ने इतना कहा और वह वहाँ से चला गया.
"लगता है अब गडे मुर्दे उखाड़ने का वक्त आ गया है"
पाटिल ने अजीब सा चेहरा बनाते हुए अपने आप से कहा और फिर फाइल खोल के अपने काम में लग गया…
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मेरा सुहाना सफर-कुछ पुरानी यादें(running)
पिशाच की वापसी(running])
स्वाहा (complet)
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- rangila
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- Joined: 17 Aug 2015 16:50
Re: पिशाच की वापसी
Nice update hai Satish bhai
मकसद running.....जिंदगी के रंग अपनों के संग running..... मैं अपने परिवार का दीवाना running.....
( Marathi Sex Stories )... ( Hindi Sexi Novels ) ....( हिंदी सेक्स कहानियाँ )...( Urdu Sex Stories )....( Thriller Stories )