बढ़िया अपडेट के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
अगले अपडेट का इंतज़ार रहेगा
Incest आग्याकारी माँ
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Re: आग्याकारी माँ
मांगलिक बहन....एक अधूरी प्यास- 2....Incest सपना-या-हकीकत.... Thriller कागज की किश्ती....फोरेस्ट आफिसर....रंगीन रातों की कहानियाँ....The Innocent Wife ( मासूम बीवी )....Nakhara chadhti jawani da (नखरा चढती जवानी दा ).....फिर बाजी पाजेब Running.....जंगल में लाश Running.....Jalan (जलन ).....Do Sage MadarChod (दो सगे मादरचोद ).....अँधा प्यार या अंधी वासना ek Family ki Kahani...A family Incest Saga- Sarjoo ki incest story).... धड़कन...
- SATISH
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Re: आग्याकारी माँ
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- SATISH
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Re: आग्याकारी माँ
सतीश ने मेज़ पर रखी श्वेता की पैंटी उठायी और चूत से रस पौंछने लगा. सतीश ने टांगों से लेकर चुत तक का सारा रस श्वेता की पैंटी से ही पौंछा. पैंटी उसके प्रेमरस से भीग गयी थी. फिर सतीश उठा और उसी तरह श्वेता की पैंटी को उसके मुँह में ठूंस दिया. उसने मुँह खोल कर बड़े आराम से पैंटी को अपने मुँह में ले लिया. अभी भी श्वेता इसी हालत में थी.
अब श्वेता चुदने के लिए तैयार थी. सतीश ने उसे बाल पकड़ के ही उठाया और कमरे में ले गया. कमरा भी पूरी तरह से सजा हुआ था. कैंडल्स से रंग बिरंगी रोशनी वाले बल्बों से सजावट थी. सतीश ने उसे वहीं बांधा, जहां कल बांधा था. सतीश ने श्वेता की गर्दन पे किस किया और आंखों पे पट्टी बांध दी.
सतीश ने ध्यान दिया कि उसका मुँह वासना से पूरी तरह लाल हो गया था. श्वेता की आंखों में नशा सा छाया हुआ था.
अपनी बहन के कानों पे सतीश ने किस किया और बोला- “क्या तुम पूरी रात मजे करने के लिए तैयार हो”?
श्वेताने हामी में सर हिलाया.
सतीश ने उसे गाल पे किस किया और उसे वैसे छोड़ कर टेबल की तरफ बढ़ा, जहां वाइन की बॉटल रखी थी. आइस बकेट में आइस थी, पूरा बकेट ऊपर गुलाब से सजा हुआ था. सतीश ने एक ग्लास में वाइन डाली और आइस डाल कर श्वेता के पास आया. सतीश ने उसके मुँह से पैंटी निकाली और उसे वाइन पिलाने लगा. श्वेता तो जैसे प्यासी थी, उसने झट से पूरा ग्लास खाली कर दिया.
सतीश ने उससे पूछा- “और चाहिए”?
श्वेताने नशीली आंखों से हां में सर हिलाया. सतीश ने ग्लास को वाइन से फिर से भरा और उसे पिलाने लगा. श्वेता दूसरा ग्लास भी पी गयी.
सतीश ने तीसरी बार गिलास भर लिया और पूछा- “और”?
इस बार सतीश आश्चर्य चकित था. उसने हां में सर हिलाया.
सतीश ग्लास उसके मुँह के पास ले गया, श्वेता पीने के लिए मुँह आगे करने लगी. सतीश ने हाथ वापस खींच लिया. श्वेता ने नाराज होने जैसा चेहरा बना लिया.
सतीश ने उससे बोला- “ना … ना … ऐसे नहीं”.
सतीश ने वाइन की एक सिप ली और उसके होंठों पे होंठों को रख दिया. उसके होंठ चूसते हुए सतीश ने वाईन को उसके मुँह में उड़ेल दिया. मुस्कुराते हुए श्वेता गटक गयी. सतीश उसके होंठों को चूसते हुए अलग हुआ.
इसी तरह सतीश ने वाइन उसे फिर से पिलाई और उसके होंठों पे फिर होंठों रख दिए. उसने वाइन सतीश के मुँह में उढ़ेल दिया. सतीश उसके होंठों को चूमते हुए पी गया.
कुछ देर ऐसा करने के बाद सतीश ने उसके गाल पकड़ के दबाये और पूरा मुँह खोल के ऊपर कर दिया. फिर पूरी बोतल उठा के उसे पिलाने लगा. श्वेता वाइन को इस तरह से पीने को मजबूर थी. उसका मुँह सतीश ने जबरदस्ती खोल रखा था. सतीश वाइन उसके मुँह में डाल रहा था. श्वेता जितना हो सके वाइन अन्दर गटकती जा रही थी. करीब आधी बोतल सतीश ने ऐसे ही खाली कर दी.
जब सतीश ने उसे छोड़ा, तब उसने आखिरी घूँट गटक कर चिहुँक के ऐसे सांस ली, जैसे उस की जान में जान आयी हो. कुछ वाइन उसके चेहरे पे फैल गयी थी. सतीश ने उसके बाल पकड़ के खींचे, जिससे उसका चेहरा ऊपर को हो गया. उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे सतीश की इस हरकत का अंदाज नहीं था. सतीश ने उसके मुँह से गिरी वाईन, जोकि उसके गालों पर लग कर टपक रही थी, उसी अवस्था उसके गालों को चाटना शुरू कर दिया.
सतीश ने ऐसे ही चाट चाट कर सारी वाइन उसके चेहरे से साफ की. सतीश को ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे श्वेता के होंठों से लग के वाइन और भी नशीली हो गयी थी. सतीश उसके होंठों को चूसते हुए अलग हुआ. श्वेता सतीश का पूरा सहयोग कर रही थी. उसे इस तरह की सेक्स क्रियाओं में बड़ा मजा आ रहा था.
पिछले कई घंटो से सतीश श्वेता को अलग अलग तरीकों से उत्तेजित कर रहा था. पहले हॉल में, फिर सड़क पर, फिर यहां अपनी ही बिल्डिंग में श्वेता को नंगी घुमा रहा था. श्वेता अब इतनी गर्म हो चुकी थी कि अभी उसे जिस मर्द का भी लंड मिले, वह उससे चूत खोल कर चुद जायेगी.
श्वेता एक बार झड़ भी चुकी थी … ये भी उसे याद नहीं था. उसे जो हल्की थकान महसूस हो रही थी, वह भी वाइन के नशे से गायब हो चुकी थी. श्वेता सतीश से कहना चाहती थी कि ‘बस कर भाई … अब अपनी रंडी बहन को चोद दे’.
अब श्वेता चुदने के लिए तैयार थी. सतीश ने उसे बाल पकड़ के ही उठाया और कमरे में ले गया. कमरा भी पूरी तरह से सजा हुआ था. कैंडल्स से रंग बिरंगी रोशनी वाले बल्बों से सजावट थी. सतीश ने उसे वहीं बांधा, जहां कल बांधा था. सतीश ने श्वेता की गर्दन पे किस किया और आंखों पे पट्टी बांध दी.
सतीश ने ध्यान दिया कि उसका मुँह वासना से पूरी तरह लाल हो गया था. श्वेता की आंखों में नशा सा छाया हुआ था.
अपनी बहन के कानों पे सतीश ने किस किया और बोला- “क्या तुम पूरी रात मजे करने के लिए तैयार हो”?
श्वेताने हामी में सर हिलाया.
सतीश ने उसे गाल पे किस किया और उसे वैसे छोड़ कर टेबल की तरफ बढ़ा, जहां वाइन की बॉटल रखी थी. आइस बकेट में आइस थी, पूरा बकेट ऊपर गुलाब से सजा हुआ था. सतीश ने एक ग्लास में वाइन डाली और आइस डाल कर श्वेता के पास आया. सतीश ने उसके मुँह से पैंटी निकाली और उसे वाइन पिलाने लगा. श्वेता तो जैसे प्यासी थी, उसने झट से पूरा ग्लास खाली कर दिया.
सतीश ने उससे पूछा- “और चाहिए”?
श्वेताने नशीली आंखों से हां में सर हिलाया. सतीश ने ग्लास को वाइन से फिर से भरा और उसे पिलाने लगा. श्वेता दूसरा ग्लास भी पी गयी.
सतीश ने तीसरी बार गिलास भर लिया और पूछा- “और”?
इस बार सतीश आश्चर्य चकित था. उसने हां में सर हिलाया.
सतीश ग्लास उसके मुँह के पास ले गया, श्वेता पीने के लिए मुँह आगे करने लगी. सतीश ने हाथ वापस खींच लिया. श्वेता ने नाराज होने जैसा चेहरा बना लिया.
सतीश ने उससे बोला- “ना … ना … ऐसे नहीं”.
सतीश ने वाइन की एक सिप ली और उसके होंठों पे होंठों को रख दिया. उसके होंठ चूसते हुए सतीश ने वाईन को उसके मुँह में उड़ेल दिया. मुस्कुराते हुए श्वेता गटक गयी. सतीश उसके होंठों को चूसते हुए अलग हुआ.
इसी तरह सतीश ने वाइन उसे फिर से पिलाई और उसके होंठों पे फिर होंठों रख दिए. उसने वाइन सतीश के मुँह में उढ़ेल दिया. सतीश उसके होंठों को चूमते हुए पी गया.
कुछ देर ऐसा करने के बाद सतीश ने उसके गाल पकड़ के दबाये और पूरा मुँह खोल के ऊपर कर दिया. फिर पूरी बोतल उठा के उसे पिलाने लगा. श्वेता वाइन को इस तरह से पीने को मजबूर थी. उसका मुँह सतीश ने जबरदस्ती खोल रखा था. सतीश वाइन उसके मुँह में डाल रहा था. श्वेता जितना हो सके वाइन अन्दर गटकती जा रही थी. करीब आधी बोतल सतीश ने ऐसे ही खाली कर दी.
जब सतीश ने उसे छोड़ा, तब उसने आखिरी घूँट गटक कर चिहुँक के ऐसे सांस ली, जैसे उस की जान में जान आयी हो. कुछ वाइन उसके चेहरे पे फैल गयी थी. सतीश ने उसके बाल पकड़ के खींचे, जिससे उसका चेहरा ऊपर को हो गया. उसके चेहरे से लग रहा था कि उसे सतीश की इस हरकत का अंदाज नहीं था. सतीश ने उसके मुँह से गिरी वाईन, जोकि उसके गालों पर लग कर टपक रही थी, उसी अवस्था उसके गालों को चाटना शुरू कर दिया.
सतीश ने ऐसे ही चाट चाट कर सारी वाइन उसके चेहरे से साफ की. सतीश को ऐसा प्रतीत हो रहा था, जैसे श्वेता के होंठों से लग के वाइन और भी नशीली हो गयी थी. सतीश उसके होंठों को चूसते हुए अलग हुआ. श्वेता सतीश का पूरा सहयोग कर रही थी. उसे इस तरह की सेक्स क्रियाओं में बड़ा मजा आ रहा था.
पिछले कई घंटो से सतीश श्वेता को अलग अलग तरीकों से उत्तेजित कर रहा था. पहले हॉल में, फिर सड़क पर, फिर यहां अपनी ही बिल्डिंग में श्वेता को नंगी घुमा रहा था. श्वेता अब इतनी गर्म हो चुकी थी कि अभी उसे जिस मर्द का भी लंड मिले, वह उससे चूत खोल कर चुद जायेगी.
श्वेता एक बार झड़ भी चुकी थी … ये भी उसे याद नहीं था. उसे जो हल्की थकान महसूस हो रही थी, वह भी वाइन के नशे से गायब हो चुकी थी. श्वेता सतीश से कहना चाहती थी कि ‘बस कर भाई … अब अपनी रंडी बहन को चोद दे’.
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Re: आग्याकारी माँ
लेकिन श्वेता ने खुद को रोका. श्वेता ने लॉकेट की तरफ देखा और खुद को याद दिलाया कि ‘वह भाई की गुलाम है’. वास्तव में नार्मल सेक्स तो श्वेता ने अपने भाई के साथ बहुत बार किया है. लेकिन ऐसे अपने भाई की निजी रंडी बनके चुदने का मजा ही कुछ और था.
श्वेता के दोनों हाथ ऊपर बार से बंधे हुए थे. इस वक्त श्वेता पीटी करने वाली पोजीशन में बंधी थी. सतीश ने श्वेता को ऐसे बांध रखा था कि श्वेता अपनी एड़ियों पे उचक कर असहाय सी खड़ी थी. श्वेता कुछ देख नहीं सकती थी, उसकी आंखों पे पट्टी थी. भले ही वह देख नहीं पा रही थी. लेकिन हां वह महसूस सब कुछ कर रही थी. श्वेता अपने भाई के जूतों की आवाज को सुन सकती थी. उसे महसूस हो रहा था कि सतीश उसके चारों तरफ घूम के उसके जिस्म का निरीक्षण कर रहा था. सतीश को ऐसे घूरने में पता नहीं क्या मजा आता था. श्वेता के मन में तरह तरह के ख्याल उठ रहे थे कि पता नहीं अब सतीश उस के साथ क्या करेगा?. श्वेता अब एक नए दर्द भरे रोमांच के लिए खुद को तैयार कर रही थी.
तभी अचानक जूतों की आवाज रुक गई. एक कामुक से अहसास से श्वेता की सांसें तेज हो गईं. श्वेता नहीं जानती थी कि अगले ही पल क्या होने वाला है. उस के नंगे जिस्म में वासना की एक लहर सी दौड़ गयी.
सतीश अपनी बहन के नंगे जिस्म को तरसा रहा था. सतीश मन में सोच रहा था कि श्वेता न जाने मुझे कैसे चोदने को मिल गई. आह … उसका गोरा जिस्म … कड़क उठे हुए स्तन, उन पे गुलाबी निपल्स, सपाट पेट, नंगी पीठ, गोरी बांहें, सुराही दार गर्दन, पतली कमर, उठि हुयी और कसी हुई गांड. सब मिला के उसे श्वेता कामवासना की देवी लग रही थी.
उसके नंगे जिस्म को देख के इतनी उत्तेजना बरस रही थी कि कोई भी झड़ जाए. सतीश के कदमों की आहट से श्वेता अवगत थी. सतीश के कदमों के आहट से श्वेता की सांसें तेज हो रही थीं. हर बार जब श्वेता सांस लेती, तो उसके स्तन ऊपर नीचे होने लगते. उसके स्तनों का इस तरह से उठना गिरना, उस पूरे दृश्य को और भी कामुक बना रहे था.
सतीश एक पल के लिए रुका. सतीश ने ड्रावर खोला, जिसमें उसने सारे सेक्स के सामान रखे हुए थे. उसमें से सतीश ने कुछ सामान निकाला. उसे पास में स्टडी टेबल पे रखा … फिर वापस उसके पास आया.
अब सतीश उसके नीचे आ गया. सतीश ने अपनी बहन के गांड पे किस किया. श्वेता की नंगी पीठ पे किस करते हुए ऊपर की तरफ बढ़ा. सतीश ने उसके लेफ्ट हाथ को खोला और उसे पुलअप मशीन के दूसरे बार से फैला कर बांध दिया. यही काम सतीश ने उसके पैरों के साथ किया. अब श्वेता लगभग एक्स आकार में पिछली रात की तरह बंधी थी. श्वेता नशे तथा वासना से लिप्त थी. उसे बस सेक्स दिख रहा था. उसे याद है कि जब सतीश उसके नंगी पीठ पे किस कर रहा था. श्वेता किस तरह कामुक तरीके से दांते भींचे हुए मजे ले रही थी. सतीश ने सेक्स खिलौनों में से झाड़ूनुमा एक खिलौना लिया, जिसे ‘व्हिप’ कहते थे, उसे अपने हाथ में उठाया.
यह व्हिप नामक सामान एक झाड़ू जैसा खिलौना होता है. जो कि सॉफ्ट लेदर की रस्सियों का बना था. आगे यह रस्सियां खुले गुच्छे के रूप में खुली हुई होती हैं. पीछे ये सब गुंथ कर एक हैंडल सा बनाती हैं. इन सब चीजों से उसी ने सतीश को अवगत कराया था. सतीश ने उस व्हिप को लिया और वापस उसके पास आया.
सतीश अब घूम के फिर से श्वेता की हालत का मुयाअना करने लगा. उसका पूरा जिस्म स्थिर था. क्योंकि श्वेता रस्सी से बंधी थी. बस सतीश के कदमों की आहट पाकर श्वेता की सांसें फिर से तेज हो जाती थीं.
सतीश घूमते हुए श्वेता की दायीं तरफ आया और व्हिप से उसके नंगे सपाट पेट पे दे मारा. श्वेता ‘आ..’ की आवाज से चिहुंक उठी. श्वेता की सांसें एक सेकंड के लिए जैसे अटक सी गईं. हालांकि उसे दर्द हुआ होगा … लेकिन दर्द पे वासना हावी था. कुछ सेकंड में श्वेता की सांस में जान आयी. उसने लम्बी संतोष भरी हम्मम … की आवाज के साथ सांस छोड़ी.
सतीश- “कैसा लगा”?
श्वेता सांसें सम्भालते हुए कांपती सी आवाज में बोली- “यह बहुत ही अच्छा था”
श्वेता के दोनों हाथ ऊपर बार से बंधे हुए थे. इस वक्त श्वेता पीटी करने वाली पोजीशन में बंधी थी. सतीश ने श्वेता को ऐसे बांध रखा था कि श्वेता अपनी एड़ियों पे उचक कर असहाय सी खड़ी थी. श्वेता कुछ देख नहीं सकती थी, उसकी आंखों पे पट्टी थी. भले ही वह देख नहीं पा रही थी. लेकिन हां वह महसूस सब कुछ कर रही थी. श्वेता अपने भाई के जूतों की आवाज को सुन सकती थी. उसे महसूस हो रहा था कि सतीश उसके चारों तरफ घूम के उसके जिस्म का निरीक्षण कर रहा था. सतीश को ऐसे घूरने में पता नहीं क्या मजा आता था. श्वेता के मन में तरह तरह के ख्याल उठ रहे थे कि पता नहीं अब सतीश उस के साथ क्या करेगा?. श्वेता अब एक नए दर्द भरे रोमांच के लिए खुद को तैयार कर रही थी.
तभी अचानक जूतों की आवाज रुक गई. एक कामुक से अहसास से श्वेता की सांसें तेज हो गईं. श्वेता नहीं जानती थी कि अगले ही पल क्या होने वाला है. उस के नंगे जिस्म में वासना की एक लहर सी दौड़ गयी.
सतीश अपनी बहन के नंगे जिस्म को तरसा रहा था. सतीश मन में सोच रहा था कि श्वेता न जाने मुझे कैसे चोदने को मिल गई. आह … उसका गोरा जिस्म … कड़क उठे हुए स्तन, उन पे गुलाबी निपल्स, सपाट पेट, नंगी पीठ, गोरी बांहें, सुराही दार गर्दन, पतली कमर, उठि हुयी और कसी हुई गांड. सब मिला के उसे श्वेता कामवासना की देवी लग रही थी.
उसके नंगे जिस्म को देख के इतनी उत्तेजना बरस रही थी कि कोई भी झड़ जाए. सतीश के कदमों की आहट से श्वेता अवगत थी. सतीश के कदमों के आहट से श्वेता की सांसें तेज हो रही थीं. हर बार जब श्वेता सांस लेती, तो उसके स्तन ऊपर नीचे होने लगते. उसके स्तनों का इस तरह से उठना गिरना, उस पूरे दृश्य को और भी कामुक बना रहे था.
सतीश एक पल के लिए रुका. सतीश ने ड्रावर खोला, जिसमें उसने सारे सेक्स के सामान रखे हुए थे. उसमें से सतीश ने कुछ सामान निकाला. उसे पास में स्टडी टेबल पे रखा … फिर वापस उसके पास आया.
अब सतीश उसके नीचे आ गया. सतीश ने अपनी बहन के गांड पे किस किया. श्वेता की नंगी पीठ पे किस करते हुए ऊपर की तरफ बढ़ा. सतीश ने उसके लेफ्ट हाथ को खोला और उसे पुलअप मशीन के दूसरे बार से फैला कर बांध दिया. यही काम सतीश ने उसके पैरों के साथ किया. अब श्वेता लगभग एक्स आकार में पिछली रात की तरह बंधी थी. श्वेता नशे तथा वासना से लिप्त थी. उसे बस सेक्स दिख रहा था. उसे याद है कि जब सतीश उसके नंगी पीठ पे किस कर रहा था. श्वेता किस तरह कामुक तरीके से दांते भींचे हुए मजे ले रही थी. सतीश ने सेक्स खिलौनों में से झाड़ूनुमा एक खिलौना लिया, जिसे ‘व्हिप’ कहते थे, उसे अपने हाथ में उठाया.
यह व्हिप नामक सामान एक झाड़ू जैसा खिलौना होता है. जो कि सॉफ्ट लेदर की रस्सियों का बना था. आगे यह रस्सियां खुले गुच्छे के रूप में खुली हुई होती हैं. पीछे ये सब गुंथ कर एक हैंडल सा बनाती हैं. इन सब चीजों से उसी ने सतीश को अवगत कराया था. सतीश ने उस व्हिप को लिया और वापस उसके पास आया.
सतीश अब घूम के फिर से श्वेता की हालत का मुयाअना करने लगा. उसका पूरा जिस्म स्थिर था. क्योंकि श्वेता रस्सी से बंधी थी. बस सतीश के कदमों की आहट पाकर श्वेता की सांसें फिर से तेज हो जाती थीं.
सतीश घूमते हुए श्वेता की दायीं तरफ आया और व्हिप से उसके नंगे सपाट पेट पे दे मारा. श्वेता ‘आ..’ की आवाज से चिहुंक उठी. श्वेता की सांसें एक सेकंड के लिए जैसे अटक सी गईं. हालांकि उसे दर्द हुआ होगा … लेकिन दर्द पे वासना हावी था. कुछ सेकंड में श्वेता की सांस में जान आयी. उसने लम्बी संतोष भरी हम्मम … की आवाज के साथ सांस छोड़ी.
सतीश- “कैसा लगा”?
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- rajsharma
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Re: आग्याकारी माँ
बहुत ही शानदार अपडेट है दोस्त
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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